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ईरान ने बहादुरी का रचा इतिहास
ईरान की फ्री स्टाइल कुश्ती की टीम ने अमेरिका को पराजित करके विश्व कप जीत लिया है।
रविवार की सुबह अमेरिका के लास एंजेलस नगर में आयोजित कुश्ती के मुकाबले में ईरानी टीम का मुकाबला अमेरिका से था जिसमें ईरानी टीम ने तीन के मुकाबले अमेरिकी टीम को पांच से पराजित कर दिया।
इससे पहले ईरान की फ्री स्टाइल कुश्ती की टीम शून्य के मुकाबले आठ अंको से बेलारूस, और सात के मुकाबले एक एक से तुर्की और आज़रबाइजान गणराज्य को पराजित कर चुकी थी।
एशियन बैंक के बने 5 नए सदस्य
5 और देश एशियन बैंक के सदस्य बन गए हैं।
ऐसी स्थिति में कि जब अमरीका, एशियन बैंक की स्थापना का विरोध कर रहा है, पांच अन्य देश इसके नए सदस्य बने हैं। स्पुटनिक न्यूज़ के अनुसार जॉर्जिया, डेनमार्क, ब्राज़ील, हॉलैंड और फ़िन्लैंड इस बैंक के नए सदस्य बन गए हैं। इस प्रकार एशियन बैंक के सदस्यों की संख्या बढ़कर अब 52 हो गई है।
ज्ञात रहे 2013 में चीन के राष्ट्रपति ने एशियन बैंक की स्थापना का प्रस्ताव रखा था ताकि इस बैंक के माध्यम से एशियाई देशों में आधारभूत संरचनाओं के निर्माण के क्षेत्र में अधिक पूंजि निवेश हो सके। अक्तूबर 2014 में 22 एशियाई देशों ने इस बैंक के सहमतिपत्र पर बीजिंग में दस्तख़त किए थे। एशियन बैंक के पूंजीनिवेश का स्तर लगभग 100 अरब डॉलर होगा। इस बैंक के सदस्यों की अंतिम सूचि की घोषणा अप्रैल के मध्य में की जाएगी।
इससे पहले ब्रिटेन, स्वीज़रलैंड, जर्मनी, फ़्रांस, ऑस्ट्रेलिया, ऑस्ट्रिया और इटली, एशियन बैंक के सदस्य बन चुके हैं।
अमरीका इसलिए एशियन बैंक की स्थापना का विरोध कर रहा है क्योंकि इसे वह विश्व बैंक के लिए बड़ा प्रतिस्पर्धी समझता है। अमरीका ने एशियन बैंक का सदस्य बनने वाले देशों को, अपने फ़ैसले पर पुनर्विचार न करने की हालत में चेतावनी भी दी है।
दिक़्क़त
قرآن کریم : يا ويلتى ليتنى لم اتخذ فلانا خليلا
वाय हो मुझ पर, काश फ़लाँ शख़्स को मैंने अपना दोस्त न बनाया होता।
(सूरा ए फ़ुरक़ान आयत न. 28 )
इंसान की कुछ परेशानियाँ, उसके अपने इख़्तियार से बाहर होती हैं जैसे सैलाब व तूफ़ान का आना, वबा जैसी बीमारियों का फैलना वग़ैरा । यह ऐसी मुसीबतें हैं कि इंसान ख़ुद को उसूले इजतेमाई से बहुत ज़्यादा आरास्ता करने के बाद भी इनसे नही बच सकता।
लेकिन इंसानी समाज की कुछ परेशानियाँ ऐसी हैं कि जो ख़ुद इंसान के वुजूद से जन्म लेती हैं। मिसाल के तौर पर इंसान कभी - कभी दिक़्क़त किये बग़ैर कुछ ऐसे फ़ैसले लेता है या अमल अंजाम देता है कि उसकी ज़िन्दगी ख़तरे में पड़ जाती है।
ऐसे इत्तेफ़ाक़ बहुत ज़्यादा पेश आते हैं कि इंसान बग़ैर सोचे समझे कोई मुआहेदा कर लेता है, शादी कर लेता है, किसी प्रोग्राम में शरीक हो जाता है, किसा काम को करने पर राज़ी हो जाता है, या किसी ओहदे को क़बूल कर लेता है, इसके नतीजे में जो परेशानियाँ इंसान के सामने आती हैं, उन्हें इंसान खुद ही अपने लिए जन्म देता है।
बतौरे मुसल्लम कहा जा सकता है कि अगर इंसान उनको आसान समझने के बजाये उनमें ग़ौर व ख़ोज़ से काम ले तो परेशानियों में मुबतला न हो।
आल्लाह ने क़ुरआने करीम के सूराए फ़ुरक़ान की आयत न. 28
يا ويلتى ليتنى لم اتخذ فلانا خليلا
में दर हक़ीक़त दोस्त के इन्तेख़ाब के बारे में बरती जाने वाली सहल अन्गेज़ी यानी ग़ौर व ख़ोज़ न करने को बयान फ़रमाया है। इसके बारे में इंसान क़ियामत के दिन समझेगा कि उसने अपने ईमान की दौलत को अपने दोस्त की वजह से किस तरह बर्बाद किया है। उस वक़्त वह आरज़ू करेगा कि काश मैंने उसे अपना दोस्त न बनाया होता।
सहल अंगारी और उसके नुक़्सान
हम में से जब भी कोई अपनी ज़िन्दगी के वरक़ पलटता है तो देखता है कि हमने किसी मौक़े पर जल्दबाज़ी में ग़ौर व ख़ोज़ किये बग़ैर कोई ऐसा काम किया है जिसके बारे में आज तक अफ़सोस है कि काश हमने उसे करने से पहले ग़ौर व ख़ोज़ किया होता ! हमने बाल की खाल निकाली होती और उसके हर पहलु को समझने के बाद उसे अंजाम न दिया होता। ज़िमनन इस बात पर भी तवज्जो देनी चाहिए कि बड़े काम छोटे कामों से वुजूद में आते हैं। समुन्द्र छोटी छोटी नदियों से मिलकर बनता है। अपनी जगह से न हिलने वाले पहाड़ सहरा के छोटे छोटे संगरेज़ों से मिलकर वुजूद में आते हैं।
दुनिया के बड़े बड़े ज़हीन व बेनज़ीर इंसान इन्हीँ छोटे छोटे बच्चों के दरमियान से निकलते हैं। यह इतना बड़ा व बाअज़मत जहान बहुत छोटे छोटे अटमों (ज़र्रों) से मिलकर बना है।
हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि छोटी चीज़, छोटी तो होती है लेकिन उनका अमल बड़ा और बहुत मोहकम होता है।
सिगरेट का एक टोटक या आग की एक चिंगारी एक बहुत बड़े गोदाम या शहर को जलाकर खाक कर सकती है। एक छोटा सा वैरस (जरसूमा) कुछ इंसानों या किसी शहर के तमाम साकिनान की सेहतव सलामती को ख़तरे में डाल सकता है।
मुमकिन है कि किसी बाँध में पैदा होने वाली एक छोटी सी दरार, उस बाँध के किनारे बसे शहर को वीरान करके उसके साकिनान को मौत के घाट उतार सकती है।
एक छोटा सा जुमला या इबारत दो बस्तियों के लोगों को एकदूसरे का जानी दुश्मन बना सकती है। इसी तरह हवस से भरी एक निगाह या मुस्कुराहट इंसान के ईमान की दौलत को बर्बादकर सकती है।
यतीम की आँख से गिरने वाला एक आँसू या दर्दमंद की एक आह या दुआ किसी इंसान या इंसानों को हलाकत से बचा सकती है।
एक लम्हे का तकब्बुर इंसान के मुस्तक़बिल को बर्बाद कर सकता है इसी तरह एक हिक़ारत भरी निगाह या तौहीन आमेज़ इबारत या ज़िल्लत का बर्ताव किसी इंसान, जवान या बच्चे के मुस्तक़बिल को तारीक बना सकता है।
इन मसालों के बयान करने का मक़सद यह है कि हमें इस बात पर तवज्जो देनी चाहिए कि इस आलम का निज़ाम अज़ीम होते हुए भी छोटो पर मुशतमिल है। छोटे आमाल ही बड़े अमल की बुनियाद बनते हैं। लिहाज़ा जिस तरह हमारी अक़्ल की आँखे इस अज़ीम जहान व इसके नक़्शे को देखती हैं, इसी तरह उनमें ज़रीफ़ व दक़ीक़ मसाइल को देखने की भी ताक़त होनी चाहिए।
इस बिना पर इजतेमाई ज़िन्दगी में हमारा जिस चीज़ से मुजहज़ होना ज़रूरी है और जिससे हर इंसान को मुसलेह होना चाहिए वह ग़ौर व ख़ोज़ की आदत है। क्योंकि कि सहलअंगारी या सुस्ती की वजह से इंसान की ज़िन्दगी के बर्बाद होने के इमकान पाये जाते हैं। मशहूर है कि तसादुफ़ात एक लम्हे में रूनुमा होते हैं। मुमकिन है एक लम्हे की अदमे तवज्जो, एक लम्हे की लापरवाही, एक लम्हे का मज़ाक़, एक लम्हे की नीँद, एक लम्हे का ग़ुस्सा, एक लम्हे का ग़रूर इंसान को जेल की सलाख़ों के पीछे पहुँचा दे या उसे मौत की नीँद सुला दे। जो अफ़राद जेल की चार दीवारी में ज़िन्दगी बसर कर रहे हैं उनमें से अक़्सर लोग एक लम्हे के सताये हुए हैं, एक लम्हे की सहलअंगारी, एक लम्हे की ग़फ़लत या एक लम्हे की लापरवाही।
इस्लाम, मुसलमानों को तमाम कामों में ग़ौर व ख़ोज़ करने की नसीहत करता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया कि : "वाय हो उस इंसान पर जो बग़ैर सोचे समझे कोई जुमला अपनी ज़बान पर लाये।" इससे यह साबित होता है कि हर मुसलमान की ज़िम्मेदारी है कि वह जो बात भी कहना चाहे, कहने से पहले उस पर ग़ौर करे। दूसरे लफ़्जों में यह कहा जा सकता है कि जिस तरह हम खाने को इतना चबाते हैं कि वह दहन की राल में मिलकर नर्म हो जाता, इसी तरह हमें हर बात कहने से पहले अपने लफ़्ज़ों व जुमलों पर भी ग़ौर करना चाहिए और ऐब व इश्काल से खाली होने की सूरत में उसे कहना चाहिए।
لسان العاقل وراء قلبه و قلب الاسحمق وراء لسانه
अक़्लमंद की ज़बान उसके दिल के पीछे होती है और अहमक़ का दिल उसकी ज़बान के पीछे होता है। इस रिवायत से यह नुक्ता निकलता है कि अक़लमंद इंसान को चाहिए कि कोई बात कहने से पहले उसके बारे में पूरी तरह तहक़ीक़ करनी चाहिए, अगर दिल उस बात को कहने की ताईद करे तो उसे कहना चाहिए। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) सअद को दफ़्न कर रहे थे तो मुसलमानों का एक गिरोह इस काम में पैग़म्बर (स.) की मदद कर रहा था। पैग़म्बर (स.) ने एक मुसलमान को अपने काम में सहल अन्गारी करते देखा तो उसे घूरते हुए फ़रमाया मोमिन हर काम को दिक़्क़त व यक़ीन के साथ अंजाम देता है।
शुक्रिये व क़द्रदानी का जज़्बा
قرآن کریم : لئن شكرتم لأزيدنكم
अगर तुम ने शुक्र अदा किया तो मैं यक़ीनन नेमतों को ज़्यादा कर दूँगा।
सूरए इब्राहीम आयत न. 127
इंसान को समाजी एतेबार से एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होती है। अगर कुल की सूरत में समाज मौजूद है तो उसके जुज़ की शक्ल में फ़र्द का वुजूद भी ज़रूरी है लिहाज़ा जुज़ (फ़र्द) अपने वुजूद व ज़िन्दगी बसर करने में कुल (समाज) का मोहताज है। समाजी ऐतबार से भी समाज का हर फ़र्द दिगर तमाम अफ़राद का मोहताज होता है। इस बिना पर तमाम मेयारों को नज़र अंदाज़ करते हुए यह कहा जासकता है कि एक इंसान ज़िन्दगी बसर करने के लिए समाज के दूसरे तमाम अफ़राद का मोहताज होता है और चूँकि वह उनका मोहताज है इस लिए उसे उनके वुजूद और ख़िदमात का शुक्रिया अदा करना चाहिए। मिसाल के तौर पर तमाम लोगों को उस्तादों की ज़रूरत होती है, सबको ड्राईवरों की ज़रूरत होती है और इसी तरह तमाम लोगों को समाज के मुख़तलिफ़ गिरोहों की ज़रूरतें पड़ती हैं, इस हिसाब से समाज के तमाम अफ़राद को काम करने वाले तमाम ही गिरोहों का शुक्रिया अदा करना चाहिए।
हर घराने को उस्ताद का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि उसने उनके बच्चों को तालीम दी और उनकी तरबीयत की। सफ़ाई करने वाले का शुक्रिया अदा करना चाहिए कि अगर वह न होता तो सब जगह गंदगी के ढेर नज़र आते और इसी तरह हिफ़ाज़त करने और पहरा देने वालों का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए कि अगर वह न होते तो अम्नियत न होती और कोई आराम की नींद सोने की हिम्मत न करता और सारे लोग ख़ुद ही पहरा देते। मामूली से ग़ौर व फ़िक्र के बाद यह बात सामने आती है कि हर फ़र्द की ज़िन्दगी समाज के दूसरे अफ़राद की बेदरेग़ मेहनतों का नतीजा है। मुमकिन है यहाँ पर कोई एतेराज़ करे कि हर फ़र्द को चाहिए कि वह अपनी ज़िम्मेदारी को निभाये, ताकि उसकी ज़िम्मेदारी की वजह से दूसरे अफ़राद भी अपनी ज़िम्मेदारी निभायें। इस तरह एक दूसरे का शुक्रिया अदा करने और एहसान मंद होने की कोई ज़रूरत नही है। उनके जवाब में कहा जा सकता है कि हाँ आपकी बात सही है कि
तरक़्क़ी याफ़्ता समाज में शुक्रिया अदा करने और एहसानमंद होने की कोई ज़रूरत नही है और हर शख़्स के लिए ज़रूरी है कि वह अपनी ज़िम्मेदारियों को बेहतरीन तरीक़े से निभाये और किसी से कोई तवक़्क़ो न रखे। लेकिन वह समाज जिसके अफ़राद में यह शायस्तगी न पाई जाती हो और जिन्हें जन्नत में जाने और जहन्नम से बचने के लिए, शौक़, ख़ौफ़ और धमकियों की ज़रूरत पेश आती हो, उनसे यह तवक़्क़ो कैसे की जा सकती है कि वह दुनियवी ज़िन्दगी में अपनी ज़िम्मेदारियों को बेहतरीन तरह से अँजाम दे सकते हैं। इस बुनियाद पर यह कहा जा सकता है कि ऐसे समाज में लोगों के अमल पर उनका शुक्रिया अदा करना ही इस बात का सबब बनेगा कि काम करने वाले अपने कामों को ज़्यादा मेहनत व लगन से अंजाम दें और अपने कामों से फ़रार न करें। मिसाल के तौर पर एक ड्राईवर जिसकी ज़िम्मेदारी हमें एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना है अगर हम अपनी मंज़िल पर उतरते वक़्त उसका शुक्रिया अदा कर दें तो हमारा यह शुक्रिये का एक जुमला, उसकी पूरे दिन की थकन को दूर करने का सबब बनेगा और वह अपने इस फ़रीज़े को और ज़्यादा खुशी के साथ अंजाम देगा।
तरक़्क़ी याफ़्ता व मोहज़्ज़ब समाजों में छोटी छोटी और मामूली मामूली बातों पर शुक्रिया अदा करने का रिवाज है, लेकिन पिछड़े समाज़ों में मन्ज़र इसके बिल्कुल उलटा है, वहाँ शुक्रिया अदा करने के बजाए हमेशा एतेराज़ किये जाते हैं। उनकी मंतिक़ यही होती है कि उसकी ज़िम्मेदारी है लिहाज़ा उसे अदा करना चाहिए। अगर ड्राईवर है तो ड्राईवरी करनी चाहिए, मुहाफ़िज़ है तो उसे पहरा देना चाहिए और अगर सफ़ाई करने वाला है तो उसे सफ़ाई करना चाहिए।
ज़ाहिर है कि जो लोग समाज़ी एतेबार से बहुत ऊँची सतह पर नही है अगर उन्हें उनके कामों पर शौक़ न दिलाया जाये या उनकी हौसला अफ़ज़ाई न की जाये तो इससे उनके ऊपर बुरा असर पड़ेगा।
मिसाल : अगर घरेलू ज़िन्दगी में मर्द, अपनी बीवी की बेदरेग़ ज़हमतों के बदले में एक बार भी उसका शुक्रिया अदा न करे, या इसके बरअक्स अगर बीवी, शौहर की बेशुमार ज़हमतों के बदले एक बार भी ज़बान पर शुक्रिये के अलफ़ाज़ न लाये तो ऐसे घर में कुछ मुद्दत के बाद अगर लडाई झगड़ा न भी हुआ तो मुहब्बत व ख़ुलूस यक़ीनी तौर रुख़सत हो जायेगा, हर तरफ़ बेरौनक़ी नज़र आयेगी और ऐसी फ़ज़ा में सिर्फ़ घुटन की ज़िन्दगी ही बाक़ी रह जायेगी।
हमें यह बात कभी नही भूलनी चाहिए कि हर अज़ीम व तख़लीकी काम का आमिल, शौक़ व रग़बत पैदा करना होता है। जबकि रोज़ाना की ज़िम्मेदारों को निभाने में यह ख़ल्लाक़ियत नज़र नही आती ।
राग़िब ने अपनी किताब मुफ़रेदात में शुक्र के मअना इस तरह बयान किये है:
الشكر تصور النعمة و اظهارها
शुक्र का मतलब यह है कि इंसान पहले मरहले में नेमत को समझ कर उसकी तारीफ़ करे फिर दूसरे मरहले में उसका इज़हार करे।
इसके बाद राग़िब लिखते हैं कि शुक्र की तीन क़िस्में हैं:
الشكر علي ثلثة اضرب شكر القلب و هو تصور النعمة و شكر باللسان و هو ثناء علي النعم وشكر لساير الجوارح و هو مكافات النعمة بقدر استحقاقها .
शुक्र तीन तरह का होता है 1- शुक्रे क़ल्बी, यानी नेमत को जानना और उसे पहचानना है। 2- शुक्रे जबानी, यानी नेमत अता करने वाले की तारीफ़ करना है। 3- शुक्र जवारेही, यानी इंसान का अपनी क़ुदरत के मुताबिक़ उसका शुक्र अदा करना है। दूसरे लफ़्ज़ों में शुक्र का तीसरा मरहला यह है कि हमारे आज़ा व जवारेह उस नेमत से जो फ़ायदा उठाते हैं, उसके बदले में जिस क़दर हो सके उसका शुक्र अदा करें। जैसे किसी फल का शुक्र यह है कि उसे खालिया जाये न यह कि उसे ज़ाये कर दिया जाये, क्योकि यह नेमत इंसान के लिए पैदा की गई है।
हमने सुना है कि कुछ मुहज़्ज़ब मुल्कों में जब लोग आपस में मिलते हैं तो हमेशा एक दूसरे का शुक्रिया अदा करते हैं। हम यह दावा नही करना चाहते कि ऐसे मुल्कों में हर तरह की तहज़ीब पाई जाती है, मुमकिन है उन्ही मुल्कों में दूसरी तरह की बुराईयाँ भी पायी जाती हों लेकिन उनका यह अमल यानी शुक्रिया अदा करना, जो वहाँ के समाज में आम है, एक अच्छा अमल है। इससे समाज में रहने वाले अफ़राद के अदब, अख़लाक़, ख़ुलूस और मुहब्बत में इज़ाफ़ा होता है।
इस्लाम की तालीमात में एक बाब शुक्रिये का भी पाया जाता है, जिसमें यह बताया जाता है कि तमाम बन्दों की ज़िम्मेदारी है कि वह अल्लाह से मिलने वाली नेमतों के बदले उसका शुक्र अदा करें।
ज़ाहिर है कि जैसे जैसे लोगों में शुक्रिये का जज़्बा बढ़ता जायेगा वैसे वैसे उनके पास अल्लाह की नेमतों में इज़ाफ़ा होता जायेगा।
शुक्रिये के बाब में जो एक अहम व दिलचस्प नुक्ता बयान किया गया है वह यह है कि वली ए नेअमत ख़ुदा है और तमाम नेमतें उसी से हासिल होती हैं, लेकिन चूँकि दुनिया के निज़ाम की बुनियाद इल्लत व असबाब पर मुनहसिर है, इस लिए हर नेमत किसी इंसान के ज़रीये ही दूसरे इंसान तक पहुँचेगी।
हम इंसानों का फ़रीज़ा यह है कि नेमतों को अल्लाह की इनायत समझे और उसका शुक्र अदा करे, लेकिन चूँकि अल्लाह की इस नेअमत व रहमत के पहुँचने में इंसान वसीला बना है, लिहाज़ा उसका भी शुक्रिया अदा करना चाहिए लेकिन सिर्फ़ इसी हद तक कि वह अल्लाह की नेअमत पहुँचाने में वसीला बना है।
हमें इस नुक्ते पर भी तवज्जो देनी चाहिए कि उस इंसान का शुक्रिया इस तरह न किया जाये कि अल्लाह के बजाए वही वली ए नेमत समझा जाये। हमें इस बात पर भी तवज्जो देनी चाहिए कि इस तरह के मसाइल में गफ़लत के तहत यह दावा नही करना चाहिए कि यह तो अल्लाह का रहमों करम था कि यह नेमत हमें नसीब हुई। बल्कि हमें उस इंसान का शुक्रिया इन अलफ़ाज़ में अदा करना चाहिए कि अल्लाह की यह नेमत आपके हाथो से हम तक पहुँची है लिहाज़ा अल्लाह के फ़ैज़ का वसीला बनने की वजह से हम आपका शुक्रिया अदा करते हैं।
इस्लामी रिवायातों में मिलता है कि जिसने मख़लूक़ का शुक्र अदा नही किया, उसने ख़ालिक़ का भी शुक्र अदा नही किया।
من لم يشكرالمخلوق لم يشكر الخالق
एक हदीस में पैग़म्बरे अकरम (स) से इस तरह नक़्ल हुआ है: क़ियामत के दिन एक शख़्स को अल्लाह के सामने पेश किया जायेगा, कुछ देर बाद अल्लाह का हुक्म होगा कि इसे जहन्नम में डाल दिया जाये। वह शख़्स इस हुक्म के पर कहेगा: ख़ुदाया मैं तो तेरे क़ुरआन की तिलावत कर के उस पर अमल करता था, उसके जवाब में कहा जायेगा: सही है कि तू क़ुरआन पढ़ा करता था मगर तूने उन नेअमतों का शुक्र अदा नही किया जो मैने तुझ पर नाज़िल की थीं। वह जवाब में वह कहेगा: ख़ुदाया मैने तो तेरी तमाम नेमतों का शुक्र अदा किया है, तब ख़िताब होगा:
الا انك لم تشكر من اجريت لك نعمتي علي يديه و قد اليت علي نفسي ان لا اقبل شكر عبد بنعمة انعمتها عليه حتي يشكر من ساقها من خلقي اليه
हाँ मगर तूने उनका शुक्र अदा नही किया जिनके ज़रिये से मेरी नेमतें तुझ तक पहुचती थीं।
और मैने अपने लिए लाज़िम कर लिया है कि उस इंसान के शुक्र को क़बूल नही करूगा जो मेरी नेअमत पहुँचाने वाले इंसान का शुक्र अदा न करे।
माँ बाप को चाहिए कि घर में अपने बच्चो के अन्दर तदरीजन शुक्रिये का जज़्बा पैदा करें और उन्हे यह समझायें कि अगर कोई तुम्हारे लिए किसी काम को अंजाम दो तो अगरचे नेमत देने वाला ख़ुदा है, लेकिन चूँकि वह ज़रिया बना है, इसलिए उसका भी शुक्र अदा करना चाहिए। अगर बच्चों में बचपन से ही यह जज़्बा पैदा हो जाये और बड़े उसकी ताईद करें और दूसरी तरफ़ वह ख़ुद अपने घर में बुज़ुर्गों को एक दूसरे का शुक्रिया अदा करते देखें तो वह मुस्तक़िबल में समाजी ज़िन्दगी में शुक्रिया अदा करने वाले अफ़राद बनेगे।
वरिष्ठ नेता की नज़र में परमाणु वार्ता और उसकी अहमियत
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने, पैग़म्बरे इस्लाम की बेटी हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस की बधाई देते हुए पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से श्रद्धा रखने वाले शायरों, वक्ताओं और लोगों के एक समूह से मुलाक़ात में, ईरान और गुट पांच धन एक के बीच जारी परमाणु वार्ता के विषय की ओर इशारा करते हुए एक बार फिर इस बात पर बल दिया कि परमाणु विषय के संबंध में ईरान का दृष्टिकोण नैतिक व धार्मिक सिद्धांतों पर आधारित है जिसमें परमाणु हथियार का कोई स्थान नहीं है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अपने बयान के दूसरे भाग में क्षेत्र के हालात का ज़िक्र करते हुए बल दिया कि सऊदी अरब ने यमन पर अतिक्रमण करके बहुत बड़ी ग़लती की है और क्षेत्र में एक बुरी प्रथा का आधार रखा है। वरिष्ठ नेता ने यमन के ख़िलाफ़ सऊदी अरब के अतिक्रमण को जातीय सफ़ाए और ऐसे अपराध की संज्ञा दी जिसके ख़िलाफ़ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कार्यवाही होनी चाहिए। वरिष्ठ नेता ने कहा कि बच्चों की जान लेना, घरों को तबाह करना और एक राष्ट्र की संपत्ति व आधारभूत संरचना को ध्वस्त करना महाअपराध है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने बल दिया कि यमन के मामले में सऊदी अरब को यक़ीनन नुक़सान पहुंचेगा और वे किसी हालत में सफल नहीं होंगे।
यमन के संबंध में वरिष्ठ नेता के बयान की अहमियत को समझने के लिए इस बिन्दु पर ध्यान देना ज़रूरी है कि जब सऊदी अरब से कई गुना ताक़तवर इस्राइली सेना को हमास ने नाको चने चबवा दिए और इस्राईल मिस्र की मध्यस्थता से हमास के साथ संघर्ष विराम के लिए मजबूर हो गया, यमन तो एक शक्तिशाली राष्ट्र है जिसकी आबादी लगभग ढाई करोड़ है। उसके सामने सऊदी अरब कितनी देर तक टिक पाएगा।
पिछले कुछ दिनों में अमरीकी राष्ट्रपति सहित इस देश के कुछ बड़े अधिकारियों के बयान यह दर्शाते हैं कि वे ईरान के ख़िलाफ़ पाबंदियों को तुरंत नहीं हटाना चाहते बल्कि उसे ख़त्म करने के लिए एक समय सीमा चाहते हैं।
गुट पांच धन एक और ख़ास तौर पर अमरीका के इसी व्यवहार के कारण वरिष्ठ नेता ने बल दिया कि अगर पाबंदियों को ख़त्म करना एक नई प्रक्रिया पर निर्भर कर दिया गया तो फिर परमाणु वार्ता निरर्थक हो जाएगी क्योंकि वार्ता का उद्देश्य पाबंदियों को ख़त्म करना है। आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने ईरान के प्रतिष्ठानों के निरीक्षण के संबंध में बल दिया कि बिल्कुल भी इस बात की इजाज़त न दी जाए कि निरीक्षण के बहाने वे देश की सुरक्षा और रक्षा स्थिति का पता लगाएं और सैन्य अधिकारियों को भी किसी भी स्थिति में इस बात की इजाज़त नहीं है कि वे विदेशियों को, निरीक्षण के बहाने देश की रक्षा और सुरक्षा घेरे में दाख़िल होने दें या देश के रक्षा विकास को रोकें।
हक़ीक़त में जैसा कि वरिष्ठ नेता ने कहा कि परमाणु वार्ता में जो बात अहम है वह सामने वाले पक्ष और ख़ास तौर पर अमरीका पर विश्वास न होने का विषय है क्योंकि अमरीका की मांग ईरान की परमाणु उपलब्धियों पर विशिष्टता लेने पर आधारित है। वरिष्ठ नेता के शब्दों में बुरे समझौते से समझौता न करना बेहतर है क्योंकि ऐसे समझौते को न मानना ही बेहतर है कि जिसका लक्ष्य ईरानी राष्ट्र के हितों को नुक़सान पहुंचाना और ईरानी राष्ट्र के सम्मान को ख़त्म करना है।
हुस्ने अख़लाक़
بسم الله الرحمن الرحيم
فَبِمَا رَحْمَةٍ مِّنَ اللّهِ لِنتَ لَهُمْ وَلَوْ كُنتَ فَظًّا غَلِيظَ الْقَلْبِ لاَنفَضُّواْ مِنْ حَوْلِكَ
सूरः ए आलि इमरान आयतन. 159
तर्जमा ------
हुस्ने अख़लाक़
यह आयत पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की कामयाबी का राज़ आपके नम्र मिज़ाज को मानती है। इसी वजह से कहा गया है कि अगर आप सख़्त मिज़ाज होते तो लोग आपके पास से भाग जाते। इस बुनियाद पर यह आयत, समाजी ज़िन्दगी में इंसान की कामयाबी का राज़, हुस्ने अख़लाक़ को मानती है।
बेशक पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के पास बहुत से मोजज़े व ग़ैबी इमदाद थी, लोकिन जिस चीज़ ने समाजी ज़िन्दगी में आपकी कामयाबी के रास्ते को हमवार किया वह आपका हुस्ने अख़लाक़ ही था। बस अगर कोई इंसान समाज के दूसरों अफ़राद को अपनी तरफ़ मुतवज्जे करके उनकी नज़रो का मरकज़ बनना चाहता हो तो उसे हुस्ने अख़लाक़ से काम लेना चाहिए। इसी के साथ यह हक़ीक़त भी वाज़ेह करते चलें कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) तमाम ख़ुदा दाद कमालात, किताब व मोजज़ात के बावजूद, अगर सख़्त मिज़ाज होते तो लोग उनके पास से भाग जाते। इससे यह बात भी आशकार हो जाती है कि अगर कोई इंसान इल्म व अक़्ल की तमाम फ़ज़ीलतों से आरास्ता हो लेकिन हुस्ने अख़लाक़ से मुज़य्यन न हो तो वह समाजी ज़िन्दगी में कामयाब नही हो सकता, क्योंकि समाज ऐसे इंसान को क़बूल नही करता। लिहाज़ा मानना पड़ेगा कि समाजी ज़िन्दगी में मक़बूल होने का राज़ हुस्ने अख़लाक़ ही है। एक मक़ाम पर पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने इस बात की वज़ाहत करते हुए फ़रमाया कि तुम अपने माल व दौलत के ज़रिये हरगिज़ लोगों के दिलों को अपनी तरफ़ मायल नही कर सकते, लेकिन हुस्ने अख़लाक़ के ज़रिये उनको अपनी तरफ़ मुतवज्जे कर सकते हो।
इस से यह साबित होता है कि लोगों के दिलों को न इल्मी फ़ज़ाइल से जीता जा सकता है और न मालो दौलत के ज़रिये, बल्कि सिर्फ़ अच्छा अख़लाक़ है जो लोगों को अपनी तरफ़ जज़्ब करता है। तमाम नबियों का आख़िरी हदफ़ और ख़सूसन पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का बुनियादी मक़सद हुस्ने अख़लाक़ था। क्योंकि आपने ख़ुद फ़रमाया है :
بعثت لاتمم مكارم الاخلاق
मैं इस लिए मबऊस किया गया हूँ ताकि अख़लाक़ को कमाल तक पहुँचाऊँ। इससे साबित होता है कि पैग़म्बरे इस्लाम (स.) का मक़सद सीधे सादे अख़लाक़ी मसाइल नही थे, बल्कि वह इंसानी अख़लाक़ के सबसे बलन्द दर्जों को पूरा करने के लिए तशरीफ़ लाये थे।
नेपोलियन का दावा था कि जंग के मैदान में जिस्मानी ताक़त के मुक़ाबेले में रूहानी ताक़त असर अन्दाज़ होती है यानी रूहानी व मअनवी ताक़त के अमल का मुवाज़ेना जंगी साज़ व सामान से नही हो सकता।
मुख़तलिफ़ क़ौमों पर तहक़ीक़ करने से यह बात सामने आती है कि किसी भी क़ौम की तहज़ीब व ताक़त, उस क़ौम के आदाब व अख़लाक़ से वाबस्ता होती है।
समाजी ज़िन्दगी में हर इंसान अपने शख़्सी फ़ायदों की तरफ़ दौड़ता है और हर इंसान का अपने फ़ायदे की तरफ़ दौड़ना एक फ़ितरी चीज़ है। इसी बिना पर यह तबीई रुजहान हर इंसान में पाया जाता है और अपनी ज़ात से मुब्बत की बिना पर हर इंसान अपनी पूरी ताक़त के साथ अपने नफ़े को तलाश करता है।
इंसान के अन्दर बलन्दी, कमाल व अख़लाक़ का पाया जाना ही इंसानियत है। इस सिफ़त के पैदा होने से इंसान हैवानी तबीअत से बाहर निकलता है और इससे इंसान में बलन्दी पैदा होती है, जो इंसान को समाज में मुनफ़रिद बना देती है। लिहाज़ा अगर हम लोगों के दिलों में अपना ऊँचा मक़ाम बनाना चाहते हैं तो पहले हमें इंसान बनना पड़ेगा और अपने अन्दर ईसार, कुर्बानी व इंसानी ख़िदमत का शौक़ व जज़्बा पैदा करना होगा। इस तरह से लोगों ने हैवानी ज़िन्दगी से आगे क़दम बढ़ा कर इंसानी ज़िन्दगी के आख़िरी कमाल को हासिल किया हैं।
इंसाने हक़ीक़ी की बहुत सी निशानियाँ है लेकिन उनमें से सबसे अहम निशानी उसका अपने मातहत लोगों के साथ बरताव है। अगर वह कोई फौजी अफ़सर है तो अपने सिपाहियों से नरमी के साथ, अगर मोअल्लिम है तो अपने शागिर्दों से मुहब्बत से और अगर अफ़सर है तो अपने साथियों से अद्ल व इन्साफ़ से पेश आता है। हाँ जो दूसरों के साथ प्यार मुहब्बत का बरताव करे, अद्ल व इन्साफ़ से काम ले, क़ुरबानियाँ दे और दूसरों की ग़लतियों को माफ़ और नज़र अन्दाज़ करे तो वह इंसान नमूना बन जायेगा और सबको अपनी तरफ़ जज़्ब करेगा।
हाँ! हुस्ने अख़लाक़ यही है कि इंसान अपनी ज़ात में ख़ुद पसन्दी, जाह तलबी, कीनः और हसद जैसे रज़ाइल को न पनपने दे।
समाज़ उन्हीं अफ़राद से मुहब्बत करता है जिनमें ईसार व क़ुरबानी का जज़्बा पाया जाता है। एक मुल्क में एक नदी में बाढ़ आई जिससे उस पर बना पुल टूट गया। फ़कत उसका एक हिस्सा बाक़ी रह गया जिस पर एक ग़रीब फ़क़ीर घराने का ठिकाना था। सबको मालूम था कि यह हिस्सा भी जल्दी ही डूबने वाला है, इस लिए एक मालदार आदमी ने कहा कि जो इस गरीब घराने की जान बचायेगा मैं उसे एक बड़ी रक़म दूंगा। रिआया में से एक सादा लोह इंसान इस काम को अंजाम देने के लिए उठा और उसने एक छूटी सी क़िश्ती दरिया की मौजों के दरमियान डाल दी और बहुत ज़्यादा मेहनत व कोशिश से उस ग़रीब घराने की जान बचाई। जब वह मालदार आदमी उसे रक़म देने लगा तो उसने वह रक़म लेने से इन्कार कर दिया और कहा कि मैंने यह काम पैसों के लिए नही किया, क्योंकि पैसों के लिए अपनी जान को ख़तरों में डालना अक़्लमन्दी नही है, बल्कि मैंने यह ख़तरनाक काम अपने इंसान दोस्ती और कुरबानी के जज़्बे के तहत अंजाम दिया है।
मैं यह चाहता हूँ कि यह रक़म इसी ग़रीब घराने के हवाले कर दी जाये। उस मालदार इंसान का कहना है कि मैं उस इंसान की रूह की अज़मत के सामने अपने अपको बहुत छोटा महसूस कर रहा था और फ़रावान माल व दौलत के होते हुए अपने आपको हक़ीर समझ रहा था।
कोई भी चीज़ अच्छे अख़लाक़ से ज़्यादा वाजिब नही है, हुस्ने अख़लाक़ उलूम व फ़नून से से ज़्यादा ज़रूरी है। हुस्ने अख़लाक़ कामयाबी व कामरानी का सबसे मोस्सिर आमिल है। किसी भी इंसान की कोई भी बलन्दी हुस्ने अख़लाक़ की बराबरी नही कर सकती
इस्लामी देशों को पश्चिम और अमरीका पर भरोसा करके कुछ मिलने वाला नहीं, वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ ने कहा है कि यमन संकट का समाधान, हमले और विदेशी हस्तक्षेप बंद होना है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनई ने मंगलवार को तेहरान में तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोगान से होने वाली भेंट में यमन संकट को इस्लामी जगत की नयी समस्या का एक उदाहरण बताया और कहा कि यमन सहित सभी देशों के संदर्भ में इस्लामी गणतंत्र ईरान का रुख़ विदेशी हस्तक्षेप का विरोध है।
वरिष्ठ नेता ने इस्लामी चेतना और इस्लामी जगत के शुत्रओं की ओर से उसके मुकाबले के लिए की जाने वाली साज़िशों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस इस्लामी चेतना के विरुद्ध शत्रुओं ने बहुत पहले से अपने हमले आरंभ कर रखे हैं और अफसोस की बात है कि कुछ इस्लामी देश भी ग़द्दारी कर रहे हैं और अपना धन और संसाधन, शत्रुओं की सेवा में लगा रहे हैं।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हम सदैव इस बात पर बल देते हैं कि इस्लामी देशों को पश्चिम और अमरीका पर भरोसा करके मिलने वाला नहीं है।
वरिष्ठ नेता ने कुछ क्षेत्रीय देशों की घटनाओं और इराक व सीरिया में आतंकवादी गुटों की बर्बरता का उल्लेख करते हुए कहा कि यदि कोई इन घटनाओं में शत्रु का हाथ न देख पाए तो वह स्वंय को धोखा दे रहा है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनई ने कहा कि ज़ायोनी और बहुत सी पश्चिमी सरकारें और सब से अधिक अमरीका, इन घटनाओं से खुश हैं और वह किसी भी दशा में यह नहीं चाहती कि आईएसआईएल का मामला ख़त्म हो इस लिए इस्लामी देशों को इस समस्या के समाधान के लिए फैसला करना होगा किंतु खेद है कि उचित और सार्थक सामूहिक निर्णय नहीं किया जा सका है।
वरिष्ठ नेता ने इराक के लिए ईरान की सहायताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि ईरान सैन्य रूप से इराक में उपस्थित नहीं है किंतु ईरान और इराक के मध्य एतिहासिक, प्राचीन और अत्याधिक घनिष्ट संबंध हैं।
वरिष्ठ नेता ने तुर्की के राष्ट्रपति से भेंट में ईरान और तुर्की के संयुक्त हितों पर बल देते हुए कहा कि इस्लामी जगत के किसी भी देश की शक्ति वास्तव में इस्लामी राष्ट्र की शक्ति है और इस्लामी गणतंत्र ईरान की नीति यह है कि इस्लामी देश एक दूसरे को मज़बूत करें और एक दूसरे को कमज़ोर करने से बचें और ईरान व तुर्की के संबंधों में विस्तार इस उद्देश्य में सहायक सिद्ध होगा।
तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोगान ने भी इस भेंट में तेहरान में अपनी भेंटवार्ताओं का उल्लेख किया और ऊर्जा के क्षेत्र में तेहरान व अन्करा के संबंधों की ओर संकेत करते हुए दोनों देशों के मध्य आर्थिक सहयोग में विस्तार की आशा प्रकट की।
रजब तैयब अर्दोगान ने इस्लामी जगत की समस्याओं को पश्चिम के हस्तक्षेप के बिना हल किये जाने पर बल देते हुए कहा कि वह आईएसआईएल के अपराधों की आलोचना करते हैं और वह इस गुट को मुसलमान नहीं समझते।
इस भेंट के अवसर पर राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी, विदेशमंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ , विदेशी मामलों में वरिष्ठ नेता के सलाहकार डाक्टर अली अकबर विलायती और तुर्की के विदेशमंत्री मौलूद दाऊद ओगलू भी उपस्थित थे।
तुर्की के राष्ट्रपति मंगलवार प्रातः ईरान की यात्रा पर तेहरान पहुंचे।
क्षेत्रीय युद्ध, राजनीतिक, पर धार्मिक रंग में दे दिया गया, हसन नसरुल्लाह
हिज़्बुल्लाह लेबनान के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने बल दिया है कि इस में कोई शंका नहीं कि क्षेत्र में जारी टकराव, राजनीतिक है जिसे धर्म के नाम पर आगे बढ़ाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि वास्तविकता यह है कि इस्राईल के साथ भी टकराव धार्मिक नहीं है बल्कि ज़ायोनियों के साथ हमारी लड़ाई का कारण, इस्राईल द्वारा फिलिस्तीनी क्षेत्रों पर अवैध क़ब्ज़ा है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने सीरियाई टीवी चैनल के साथ एक वार्ता में कहा कि क्षेत्र में पहले होने वाली और वर्तमान समय में जारी बहुत सी लड़ाइयों के पीछे राजनीतिक उद्देश्य हैं जिन्हें धार्मिक रंग दे दिया गया है।
उन्होंने सीरिया के युद्ध के बारे में पूछे गये एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि हमारा रूख स्पष्ट था और उसके कारणों का भी हमने एलान किया।
उन्होंने कहा कि पहला कारण यह था कि इस युद्ध में सीरिया की स्वाधीनता को निशाना बनाया गया था जिसका आरंभ हाफिज़ असद के काल से हुआ था और आज तक जारी है और दूसरा कारण यह है कि सीरिया क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मोर्चा है और वह एक स्वाधीन देश है और जब उसकी इस स्वाधीनता को समाप्त करने की साजिश नाकाम हो गयी तो तो सीरिया को फंसाने के लिए लेबनान में रफीक़ हरीरी की हत्या कर दी गयी और वर्ष २००६ में लेबनान के विरुद्ध अमरीकी समर्थन से इस्राईली हमले का उद्देश्य भी हिज़्बुल्लाह और उसके बाद सीरिया को तबाह करना था।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि तीसरा कारण तेल और गैस से संबधिंत था और शत्रु, सीरिया को अपने मार्ग के रूप में प्रयोग करना चाहते थे।
उन्होंने कहा कि सीरिया युद्ध का एक अन्य कारण अलकाएदा द्वारा इस देश पर क़ब्ज़े का प्रयास था ताकि इस प्रकार से पूरे क्षेत्र पर अधिकार जमाया जा सके। उन्होंने कहा कि सीरिया में सीरिया में अमरीका और अलकाएदा के हित एक हो गये थे और अलकाएदा ने, सीरिया में अमरीकी ज़रूरत से फायदा उठाया और पूरी दुनिया से आतंकवादियों को सीरिया में एकत्रित कर लिया ताकि उसके उद्देश्यों की पूर्ति हो सके।
भारत, ईरान में अपने तेल हितों की रक्षा करेगा
भारत के पैट्रोलियम मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान का कहना है कि अगर भारतीय कंपनियों को अमरीकी प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़े तो भी नई दिल्ली ईरान में अपने तेल हितों की रक्षा करेगा।
प्रधान का कहना था कि भारत, ईरान में अपनी तेल कंपनियों के हितों की रक्षा करेगा, यद्यपि अगर उन्हें ईरान में निवेश करने के लिए अमरीकी प्रतिबंधों का सामना भी करना पड़े।
प्रधान का यह बयान अमरीकी सरकार की उस घोषणा के बाद आया है कि जिसमें धमकी दी गई थी कि ओएनजीसी, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन और ऑयल इंडिया लिमिटेड समेत चीन की दो कंपनियों को ईरान के साथ ऊर्जा संबंधों के कारण अमरीकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है।
भारत के पैट्रोलियम मंत्री का कहना था कि इस मामले में भारत अपने तौर पर स्वतंत्रतापूर्ण कूटनयिक क़दम उठाएगा। उन्होंने कहा कि निःसंदेह, हमारी कंपनियों और राष्ट्र के हित सर्वोपरि हैं।
उल्लेखनीय है कि अमरीका इससे पहले भी भारत पर ईरान के साथ व्यापार विशेष रूप से ऊर्जा के क्षेत्र में लेन देन पर कड़ी आपत्ति करता रहा है। यहां तक कि नई दिल्ली ने अमरीका के दबाव में ईरान से आयात करने वाले तेल की मात्रा में कटौती भी की थी
परमाणु समझौते की रूपरेखा पर ईरान और गुट 5+1 के बीच समझौता।
छली रात लोज़ान युनीवर्सिटी में ईरान औ गुट 5+1 के बीच होने वाली वार्ता के अंत में एक संयुक्त बयान जारी किया गया।
यह बयान ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ और यूरोपीय संघ के विदेश मामलों की प्रमुख फ़ेडरिका मोगरीनी ने पढ़कर सुनाया जिसमें ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर होने वाले समझौते की रूपरेखा का उल्लेख विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया गया। इस समझौते के तहत ईरान के सभी परमाणु केंद्रों की गतिविधियां ख़ास कर नतन्ज़,फ़ुरदो,इस्फ़हान और एराक मेंजारी रहेंगी और किसी केंद्र की गतिविधियों में न विराम होगा न ही उसे बंद किया जाएगा। इस समझौते के तहत ईरान अपने परमाणु ऊर्जा केंद्रों के लिए औद्योगिक स्तर पर ईंधन का उत्पादन जारी रखेगा। इस बयान में कहा गया है कि ईरान को यह अधिकार प्राप्त है कि परमाणु ईंधन भंडारों को विश्व बाजारों में बेचे।
वार्ता में प्राप्त समाधान के तहत फ़ुरदो परमाणु केंद्र की क्षमता के आधार पर आधुनिक परमाणु रिसर्च की जाएंगी और स्टेबल आईज़ोटोप के उत्पादन का काम शुरू कर दिया जाएगा। इस आईज़ोटोप का उपयोग, औद्योगिक, कृषि और चिकित्सा क्षेत्र में होता है। समझौते के ढांचे के तहत एराक के भारी पानी के रिएक्टर की गतिविधियां जारी रहेंगी और उसकी रिडिज़ाईनिंग करके उसका आधुनिकीकरण किया जाएगा।
इस समझौते पर अमल के बाद, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की ओर से ईरान पर लगाए गए सभी प्रतिबंध हटा दिये जाएंगे और अमेरिका और यूरोपीय देश भी सभी बैंकिंग, बीमा, निवेश और तेल, गैस, पेट्रो रसायन और कार बनाने के क्षेत्रों पर लगाये गये प्रतिबंधों को खत्म करने पर मजबूर होंगे। इस समझौते के तहत ईरानियों पर राष्ट्रीय और निजी संस्थानों खास कर ईरान के केंद्रीय बैंक, वित्तीय और आर्थिक केंद्र, स्विफ्ट सिस्टम, नागरिक उड्डयन और समुद्री व्यापार केन्द्रों और तेल विभाग पर लगाये गये प्रतिबंध तुरंत हटा दिये जाएंगे और यूरोपीय संघ को यह अधिकार नहीं होगा कि परमाणु मुद्दे के बहाने ईरान पर कोई नया प्रतिबंध लगाये।