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तकफीरीय आतंकवादियों को हार का मज़ा चखा के ही दम लेंगे।
लेबनानी सेना प्रमुख ने तकफीरी आतंकवादियों को हराने का संकल्प किया है। रिपोर्ट के अनुसार लेबनानी सेना प्रमुख जनरल जीन काहोची ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि सीरिया से लेबनान में प्रवेश करने वाले तकफीरी आतंकवादियों को सख्ती से निशाना बनाया जा रहा है और हम उन्हें पूरी तरह हार का सामना कराये बिना अपने हमलों का निशाना बनाते रहेंगे। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों के खिलाफ हमारी खुली लड़ाई है और आतंकवादी चाहे किसी भी समूह के रूप में सामने आए हम उनको ख़त्म करके ही दम लेंगे।
इस्लामो फ़ोबिया के कारण ऑस्ट्रेलियाई डॉक्टर हिजाब की ओर आकर्षित।
ऑस्ट्रेलिया में इस्लामोफ़ोबिया पर आधारित घटनाओं के मद्देनजर जहां मुस्लिम औरतें डर की वजह से हिजाब हटाने पर मजबूर हो रही हैं वहीं कुछ मुस्लिम औरतें ऐसी भी हैं जिन्होंने हिजाब को अब गर्व के साथ अपना लिया है और वह जनता में इस्लाम के प्रति गलत फ़हमियों को दूर करना चाहती हैं।
ऐसी ही महिलाओं में से एक ऑस्ट्रेलिया के कोइंज़लैंड में रहने वाली मुस्लिम महिला डॉक्टर गुल रअना हैं। गुल रअना एक साल पहले तक हेजाब में नहीं रहती थीं। उन्होंने एक न्यूज़ पेपर से बातचीत करते हुए कहा कि में हमेशा हेजाब में रहना चाहती थीं लेकिन कुछ करने के लिए आपको भरोसा करने की ज़रूरत होती है। उन्होंने कहा ऑस्ट्रेलिया में मुस्लिम महिलाओं पर हमलों में बढ़ोत्तरी के बाद उनमें बदलाव आया है और आखिरकार हेजाब से रहने का फैसला कर लिया।
डा. गुल रअना ने कहा कि मैंने हिजाब को इस्लाम की ओर से एक सम्मान और गर्व के रूप में अपनाया लेकिन मुझे चिंता थी कि इससे कहीं इस अस्पताल में जहां मैं काम करती हूं किसी तरह की नकारात्मक लहर तो पैदा नहीं होगी। मुझे सबसे अधिक चिंता यह थी कि क्या मरीज़ इस्लामो फ़ोबिया के इस दौर में एक हिजाब वाली औरत पर भरोसा करेंगे। डॉ गुल रअना ने कहा कि मैं हमेशा से मुसलमान दिखना चाहती थी और मुझे इस्लाम से बेहद प्यार है।
मैं इस बात पर चिंतित थीं कि 100 प्रतिशत शांतिपूर्ण धर्म के संबंध से इसलिए भयभीत हो जाते हैं कि वह इस धर्म के अनुयायियों के अपराधों की खबरें पढ़ते और सुनते रहते हैं। मेरी इच्छा है कि वह अपने रवैये से इन गलतफ़हमी को दूर कर सकूं। उन्होंने कहाः जब मीडिया में यही सब (मुसलमानों से जुड़ी अपराधों की घटनाएं) भरी पड़ी होंगे तो आप निश्चित रूप से उनसे डरेंगे। बहेरहाल बतौर मुसलमान हमारे लिए यह कष्टप्रद है क्योंकि कोई भी धर्म अनुयायियों को गलत काम की प्रेरणा नहीं देता।
तकफ़ीरियत और चरमपंथ को बढ़ावा देना फ़िलिस्तीनी मुद्दे को दबाने का षड्यंत्र।
इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने आज सुबह (मंगलवार) को तकफीरी आतंकी गुटों के बारे में मुस्लिम उल्मा की इंटरनेशनल कान्फ़्रेंस में शरीक मेहमानों और बुद्धिजीवियों के साथ बैठक में हाल के वर्षों में तकफीरी गुटों के गठन को इस्लामी दुनिया के लिए साम्राज्यवाद की घिनौनी साजिश और थोपी गई मुश्किल बताया और सल्फ़ी वहाबी तकफीरी गुट की कार्यवाहियों को मस्जिदुल अक़सा और फ़िलिस्तीन को भुलाने के संबंध में अमेरिकी, इस्राईली और साम्राज्यवादी शक्तियों की घिनौनी साजिश का हिस्सा बताया। और कहा कि सल्फ़ी वहाबी तकफीरी गुटों की जड़ें काटने के लिए इंटरनेशनल पैमाने पर इस गुट के विरूद्ध मुहिम चलाने को इस्लामी दुनिया के उल्मा की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों और प्राथमिकताओं में बताया। इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के सुप्रीम लीडर ने अपने भाषण की शुरुआत में आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी, आयतुल्लाह सुबहानी और क़ुम के दूसरे उल्मा की इस कान्फ़्रेंस के आयोजन के संबंध में अच्छे प्रबंध और तकफीरी समूह के साथ मुक़ाबले के लिए इस्लामी दुनिया के उल्मा के बीच समन्वय की ओर इशारा करते हुए कहा: इस ख़तरनाक गिरोह के संबंध में रिसर्च के बारे में इस प्वाइंट पर ध्यान देना चाहिए कि असली विषय सभी तकफीरी गिरोहों के साथ इंटरनेशनल स्तर पर मुक़ाबला करना है जो दाइश आतंकवादी गुट से बढ़ कर है और वास्तव में दाइश इस बुरी नस्ल की एक शाखा नाम है। इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के सुप्रीम लीडर ने इसके बाद एक और महत्वपूर्ण प्वाइंट की ओर इशारा करते हुए कहा तकफीरी समूह और उसका समर्थन करने वाली हुकूमतें पूरी तरह से अमेरिका, इस्राईल और यूरोपीय साम्राज्यवादी शक्तियों के लक्ष्य की ओर हरकत कर रही हैं और इस्लामी लबादा पहन कर अमेरिका और इस्राईल की सेवा कर रही हैं। इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के सुप्रीम लीडर ने इस्लामी दुनिया के साथ मुक़ाबले और साम्राज्यवादी शक्तियों के लक्ष्य के संबंध में सल्फ़ी तकफीरियों की कार्यवाहियों के कुछ नमूनों की ओर इशारा किया। इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के सुप्रीम लीडर ने इस्लामी जागरूकता को गुमराह करने को पहले उदाहरण के रूप में बयान करते हुए कहा कि इस्लामी जागरूकता अमेरिका विरोधी, इस्राईल विरोधी और साम्राज्यवाद विरोधी थी लेकिन सल्फ़ी वहाबी तकफीरियों ने इस महान इस्लामी आंदोलन को मुसलमानों के बीच गृहयुद्ध और साम्प्रदायिक हिंसा में तब्दील कर दिया। इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के सुप्रीम लीडर ने कहा कि इस क्षेत्र में मुसलमानों के प्रतिरोध की फ़्रंट लाइन अधिकृत फिलिस्तीन थी लेकिन सल्फ़ी वहाबी तकफीरी गिरोह ने इस फ़्रंट लाइन को बदल दिया और इराक़, सीरिया, पाकिस्तान और लीबिया के शहरों की सड़कों पर उसे ले आये जो तकफीरियों के भयानक, ख़ौफ़नाक और न भूलने वाले अपराध का एक हिस्सा है। इस्लामिक रिपब्लिक ईरान के सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई ने इस्लामी जागरूकता को गुमराह करने को अमेरिका, इस्राईल, ब्रिटेन और उनकी खुफिया एजेंसियों की सेवा बताते हुए कहा कि इस गुमराह समूह के साम्राज्यवादी लक्ष्यों के संबंध में सेवा का दूसरा उदाहरण यह है कि सल्फ़ी वहाबी तकफीरियों का समर्थन करने वाली सरकारें ग़ासिब ज़ायोनी सरकार के मुकाबले में ज़बान खोलने में असमर्थ हैं यहाँ तक वह मुसलमानों के खिलाफ़ इस्राईल का समर्थन कर रही हैं लेकिन यही ताकतें इस्लामी देशों और मुसलमानों पर चोट पहुंचाने के लिए बहुत ज्यादा सक्रिय हैं।
इस्राईली सैनिकों का अल-ख़लील शहर पर हमला।
आईएसआईएल इस्लाम को बदनाम कर रहा है।इस्राईली सैनिकों ने अल-ख़लील शहर पर हमला किया है। अलरेसालह नेट वेबसाइट की रिपोर्ट के अनुसार स्थानीय सूत्रों ने कहा है कि इस्राईली सैनिकों ने पिछले रात अल-ख़लील क्षेत्र में फिलिस्तीनियों को अपने हमले का निशाना बनाया। इस हमले में इस्राईली सैनिकों ने फायरिंग कर दो फिलिस्तीनियों को घायल कर दिया। इस्राईली सैनिकों ने अल-ख़लील में एक फिलिस्तीनी का उसके घर से अपहरण कर लिया है जबकि पांच फिलिस्तीनियों से कई घंटों तक पूछताछ करते रहे। इस रिपोर्ट के अनुसार कई इस्राईली सैनिकों को दक्षिणी अल-ख़लील में स्थित वादुल हरया क्षेत्र में तैनात किया गया है जो इस मार्ग से गुजरने वाली गाड़ियों को चेक करते रहें।
हम पूरी ताक़त के साथ तकफीरी आतंकवादियों का मुकाबला करेंगे।
मिस्र के प्रमुख सुन्नी मौलाना “ताजुद्दीन हेलाली” ने “मुस्लिम उल्मा की दृष्टि से कट्टरपंथी, अतिवादी और तकफीरी विचारधाराओं पर अंतर-राष्ट्रीय सम्मेलन” को सम्बोधित किया। उन्होंने इस सम्मेलन के आयोजन की खातिर आयतुल्लाह मकारिम शीराज़ी का आभार व्यक्त करते हुए कहा: तकफीरी टोलों ने धार्मिक जंग के बहाने और ला इलाहा इल्लल्लाह की आड़ में मुसलमान महिलाओं और पुरुषों का खून बहाया है।
उन्होंने कहा: हम इस सम्मेलन में उपस्थित होकर इस बात की घोषणा करते हैं कि हम अपनी पूरी ताक़त और क्षमता के साथ तकफीरियों का मुकाबला करेंगे और जो लोग “अल्लाह अकबर” के नारे के साथ इस्लामी मूल्यों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं, हम उनका डटकर मुकाबला करेंगे और उनकी जड़ें काट देंगे।
अंत में ताजुद्दीन हेलाली ने इस बात की ओर इशारा करते हुए कि तकफीरी टोले सीरिया, इराक, लीबिया, यमन और अन्य इस्लामी देशों को नाबूद करने के लिए क्षेत्र में आये हैं, कहा: हमें एक वास्तविक अमन और शांति की जरूरत है और इस्लामी दुनिया के उल्मा वविद्वानों का यह कर्तव्य है कि अपने गठबंधन और सहमति के साथ तकफीरियों के मुक़ाबले के लिए उठ खड़े हों और उनकी गंदे विचारों को नाबूद कर दें।
ज़रूरत से ज़्यादा मांगें न रखे ग्रुप 5+1।
ईरान के डिप्टी स्पीकर सैयद मोहम्मद हसन तुराबीफ़र्द ने उम्मीद जताई है कि वियाना में जारी एटमी वार्ता में ग्रुप 5+1, ज़रूरत से ज़्यादा मांगें नहीं रखेगा।
हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन सैयद मोहम्मद हसन तुराबीफ़र्द ने इरना के साथ बातचीत के दौरान व्यापक समझौते तक पहुँचने से सम्बंधित ईरान और ग्रुप 5+1 के बीच होने वाली वार्ता की ओर इशारा करते हुए कहा कि यूरोप इस नतीजे पर पहुंच चुका है कि उसे इस्लामी रिपब्लिक ईरान के साथ वार्ता की मेज पर और बराबर स्तर पर संयुक्त निर्णय तक पहुंचना होगा।
सैयद मोहम्मद हसन तुराबीफ़र्द ने कहा कि अगर यूरोप वालों ने वार्ता के दौरान तार्किक रास्ता नहीं अपनाया तो उन्हें बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। गौरतलब है कि ईरान और ग्रुप 5+1 के बीच व्यापक एटमी वार्ता का दसवाँ और अंतिम दौर मंगलवार के दिन से वियाना में शुरू हुआ है और दोनों पक्ष चौबीस नवंबर तक समझौते तक पहुंचने के लिये प्रयासरत हैं।
इस्राईली कर्मीचारियों से फ़िलिस्तीनी क़ैदियों का जेल में टकराव।
फ़िलिस्तीन में इस्राईली जेलों में बंद फ़िलिस्तीनी क़ैदियों के मामलों की निगरानी करने वाली संस्था का कहना है कि सोमवार की सुबह दक्षिणी इस्राईल की रीमोन जेल में फ़िलिस्तीनी बंदियों और जेलकर्मियों के मध्य झड़पें हुई हैं।
इस संस्था की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि फ़िलिस्तीनी बंदियों और जेलकर्मियों के मध्य सोमवार की सुबह झड़पें हुईं। जिसके बाद जेलकर्मियों ने अतिरिक्त बल को बुलाया। सूत्रों का कहना है कि फ़िलिस्तीनी बंदी जेल में एक स्थान अलफ़ौरा पर एकत्रित हुए जिसके बाद जेलकर्मियों ने उन्हें हटाने का प्रयास किया। फ़िलिस्तीनियों की ओर से इन्कार करने के बाद दोनों पक्षों में हाथापाई आरंभ हो गयी। फौरह वह स्थान है जहां फ़िलिस्तीनी बंदी चार घंटे व्यायाम और अन्य गतिविधियों के लिए एकत्रित होते हैं।
बयान में इस जेल में बंद फ़िलिस्तीनी बंदियों की सही संख्या नहीं बताई गयी है और न ही इस ओर संकेत किया गया कि झड़पों में कितने लोग घायल हुए। इस्राईली अधिकारियों की ओर से इस संबंध में कोई प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है।
इस्राईली जेलों में हज़ारों फ़िलिस्तीनी क़ैद है और जेलों की ख़राब स्थिति तथा गैर क़ानूनी बर्ताव के कारण फ़िलिस्तीनी कई बार विरोध कर चुके हैं।
क़ुरआन हाथ में लेकर प्रदर्शन, सिफ़्फ़ीन जैसा षड्यंत्र हैः अलअज़हर
मिस्र के अलअज़हर विश्वविद्यालय ने इस देश में विरोधियों को 28 नवंबर को पवित्र क़ुरआन को हाथ में लेकर प्रदर्शन करने से मना करते हुए कहा है कि 28 नवंबर को क़ुरआन हाथ में लेकर प्रदर्शन करना, सिफ़्फ़ीन के षड्यंत्र की याद दिलाता है जिसने इस्लामी जगत को सबसे भारी नुक़सान पहुंचाया था।
अलअज़हर विश्वविद्यालय ने शुक्रवार को बयान में बल दिया,“ क़ुरआन हाथ में लेना, षड्यंत्रकारी क़दम है और सिफ़्फ़ीन की घटना की याद दिलाता है कि इस षड्यंत्र के दुष्परिणाम अब तक भुगत रहे हैं।” अलअज़हर ने कहा है कि इस फ़ित्ने अर्थात षड्यंत्र से सिर्फ़ इस्लामी जगत के दुश्मनों को फ़ायदा पहुंचेगा।
अलअज़हर विश्वविद्यालय की ओर से जारी बयान में आया है, “ 28 नवंबर को जनता से हाथ में क़ुरआन लेकर प्रदर्शन की अपील, धर्म का दुरुपयोग और धोखा है और हक़ीक़त में लोगों को विद्रोह के लिए उकसाना है कि यह क़दम पवित्र क़ुरआन का अनादर और रक्तपात की पृष्ठिभूमि होगा।” अलअज़हर विश्वविद्यालय ने इस बयान में बल दिया कि जनता से 28 नवंबर को प्रदर्शन के लिए अपील हक़ीक़त में उन्हें नरक भेजने के समान है और अफ़सोस है कि यह अपील ऐसे समय की जा रही है जब मिस्री सेना, सीना प्रायद्वीप में आतंकवादी गुटों से संघर्ष कर रही है।
अलअज़हर ने अपने बयान में 28 नवंबर को जनता से प्रदर्शन की अपील को धर्म, देश और राष्ट्र से ग़द्दारी के समान बताते हुए कहा है, अली बिन अबी तालिब अलैहिस्सलाम ने आतंकवादी गुटों की ओर से सचेत करते हुए कहा था, “ जब भी काले झंडों को देखो तो अपने घरों में बैठे रहना और इन गुटों की मदद मन करना। काले झंडे वाले अपने किसी भी वादे को पूरा नहीं करेंगे। लोगों को सत्य के मार्ग पर बुलाएंगे जबकि ख़ुद सत्य से कोई लाभ नहीं उठाया होगा। काले झंडे वाले द्वेष से भरे होंगे।”
ज्ञात रहे जब हज़रत अली अलैहिस्सलाम ख़लीफ़ा थे तो उनकी तत्तकालीन सीरिया के राज्यपाल मोआविया से 37 हिजरी क़मरी में सिफ़्फ़ीन नामक जंग हुयी थी। इस जंग में जब मोआविया की सेना हार की कगार पर पहुंच गयी थी कि मोआविया के सलाहकार अम्रे आस के मशविरे पर मोआविया के सैनिक पवित्र क़ुरआन को भाले पर उठा कर यह दुहाई देने लगे कि हम क़ुरआन से फ़ैसला चाहते हैं। मोआविया की इस चाल से हज़रत अली अलैहिस्सलाम की सेना में फूट पड़ गयी थी जो बाद में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शहीद होने का कारण बनी।
म्यांमार सरकार मुसलमानों को नागरिकता देः संयुक्त राष्ट्र संघ
संयुक्त राष्ट्र संघ ने एक प्रस्ताव को पारित कर जिसमें म्यांमार सरकार से इस देश के उत्पीड़ित रोहिंग्या मुसलमानों को पूरी नागरिकता देने की मांग की गयी है, इस देश पर विवादास्पद पहचान योजना को रद्द करने के लिए दबाव बढ़ा दिया है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा की मानवाधिकार समिति ने शुक्रवार को सर्सम्मति से एक अबाध्यकारी प्रस्ताव पारित किया ताकि दक्षिण-पूर्वी एशिया के देश म्यांमार पर रोहिंग्या मुसलमानों के संबंध में उसके व्यवहार को बदलने के लिए दबाव डाल सके। म्यांमार के अधिकारी इस देश में रहने वाले 13 लाख रोहिंग्या मुसलमानों को बंगालियों के रूप में वर्गीकृत करना चाहता है ताकि उन्हें पड़ोसी देश बंग्लादेश से अवैध प्रवासी दर्शाए। जो मुसलमान इस पहचान को रद्द करेंगे उन्हें या तो जेल में डाल दिया जाएगा या फिर निर्वासित कर दिया जाएगा।
संयुक्त राष्ट्र संघ में म्यांमार के दूत टिम क्याव ने इस प्रस्ताव की प्रतिक्रिया में कहा कि इस प्रस्ताव में मुसलमानों और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों पर हमले की भाषा, गुमराह करने वाली है।
रिपोर्टों के अनुसार म्यांमार में लाखों मुसलमान को खाने की चीज़ों और पानी की भारी कमी का सामना है। राख़ीन राज्य में जहां बड़ी संख्या में मुसलमान रहते हैं, हिंसा बढ़ने के कारण राहत सामग्री पहुंचाने की प्रक्रिया धीमी पड़ गयी है।
संयुक्त राष्ट्र संघ म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमानों को दुनिया के सबसे ज़्यादा उत्पीड़ित संप्रदाय मानती है। 1948 में म्यांमार की आज़ादी के बाद से इसदेश में मुसलमानों को यातनाओं, उपेक्षा और दमन का सामना है।
म्यांमार सरकार, रोहिंग्या मुसलमानों की रक्षा में नाकाम रहने के कारण मानवाधिकार संगठन की बारंबार आलोचनाओं के निशाने पर रही है।
रोहिंग्या मुसलमानों के पूर्वज लगभग आठ शातब्दी पूर्व राख़ीन में बसे थे। रोहिंग्या मुसलमानों के पूर्वज, ईरानी, तुर्क, बंगाली और पठान थे। पंद्रहवीं शताब्दी के आरंभ में अराकान के बौद्ध राजा नरामेख़ला (Narameikhla) के दरबार में बहुत से मुलमान सलाहकार व मंत्री थे
हिज़बुल्लाह ने अपने मिज़ाईल इस्राईल के लिए बचा रखे हैं।
ज़ायोनी शासन के पूर्व रक्षामंत्री ने अपने एक लेख में लिखा है कि हिज़बुल्लाह ने अपने मिज़ाईल इस्राईल लिए बचा रखे हैं।
अल अहद न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार ज़ायोनी सरकार के पूर्व रक्षामंत्री मोशी अरनस ने पिछले दिनों इस्राईली अख़बार "हार्थस" में एक लंबे लेख में एक महत्वपूर्ण तथ्य का खुलासा किया है कि हिज़बुल्लाह ने अपने मिज़ाईल इस्राईल लिए बचा रखे हैं।
उनका कहना था कि ग़ज़्ज़ा जंग में इस्राईल किसी भी सूरत में हमास के फ़ौजी सेटंरो को तबाह नहीं कर सका।
उन्होंने हिज़्बुल्लाह के हवाले से कहा कि उनके पास 100 मिज़ाईल हैं जिसके माध्यम से हिज़बुल्लाह इस्राईल के किसी भी ठिकाने को निशाना बना सकता है इसलिए हमारे कुछ यहूदियों का यह कहना गलत और अपने आप से धोखा है कि हमने हिज़बुल्लाह को रोक के रखा हुआ है, यह एक कल्पना है कि जिसका बारे में रिसर्च की जा सकती है।
सूत्रों के अनुसार उन्होंने कहा कि हिज़बुल्लाह जैसे संगठनों के साथ लड़ना आसान नहीं है इसलिए कि वह कदापि शहीद होने से नहीं डरते हैं।
उन्होंने कहा कि अभी हमने ग़ज़्ज़ा में हमास पर हर तरह के मिज़ाईल मार दिए जबकि दूसरी ओर हमास और जिहादे इस्लामी ने 4 हजार मिज़ाईल इस्राईल पर गिरा दिए जिससे लाखों इस्राईली छिपने पर मजबूर हुए यहां तक कि बिन गोरियान हवाई अड्डे तक को बंद करना पड़ा। हमने देखा कि आख़िर हम नाकाम हुए और हम जंग हार गए इसले आगे से ऐसी नीति बनाते समय पहले जांच पड़ताल कर के फ़ैसला लेना चाहिए।
उन्होंने कहा हालांकि हिज़बुल्लाह सीरिया में मौजूद है और ISIL से लड़ रहा है लेकिन अभी तक एक भी मिज़ाईल इस्तेमाल नहीं किया है, वह अपने मिसाईलों को इस्राईल के लिए संभाल रखा है और वह लगातार इस्राईली क्षेत्रों की समीक्षा कर रहा है और अगर वह हम पर हमला करना चाहेगा तो उम्मीद है कि हमास के साथ गठबंधन बना कर हमला होगा और हमें इस तरह पीछे धकेल देगा कि कभी भी फिर हम आगे नहीं बढ़ सकेंगे।
आख़िर में उनका कहना था कि इस लोहे की दीवार को केवल मिज़ाईल से नहीं गिराया जा सकता बल्कि उसके हर पहलू की रिसर्च करना बहुत जरूरी है।