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ज्ञान आंदोलन
विभिन्न विषयों पर इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई के विचार ।
इस चर्चा का विषय है ज्ञान आंदोलन। ईरान में यह आंदोलन बारह साल से जारी है और इसके परिणाम स्वरूप ईरान ने ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में तीव्र गति से प्रगति की है और यदि यह गति इसी प्रकार जारी रही तो ईरान का नाम वैज्ञानिक उपलब्धियों और नई खोज के क्षेत्र में विश्व स्तर पर चौथे नंबर पर पहुंच जाएगा। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने ज्ञान आंदोलन आरंभ करवाने और इसे तेज़ी से आगे बढ़ाने में बहुत प्रभावी भूमिका निभाई है और उन्होंने लगातार इस विषय को उठाकर तथा संबंधित अधिकारियों का ध्यान इस दिशा में आकृष्ट करवाकर ज्ञान आंदोलन में मूलभूत योगदान किया है। आज के कार्यक्रम में हम इसी आंदोलन के बारे में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता के विचार पेश कर रहे हैं। यह कार्यक्रम वरिष्ठ नेता के भाषण के कुछ खंडों पर आधारित है।
एक महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि लगभग दस बारह साल पहले देश में ज्ञान आंदोलन आरंभ हुआ और निरंतर बढ़ता यह आंदोलन जारी रहा तथा इसका दायरा भी बढ़ता रहा। मेरा यह विचार है कि देश में ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज और नई उपलब्धियां अर्जित करने की प्रक्रिया, ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में संघर्षपूर्ण कार्यशैली आरंभ होने के बाद न केवल यह कि कभी रुकी नहीं बल्कि इसमें निरंतर तेज़ी आई है और यह कहना ग़लत नहीं है कि ज्ञान विज्ञान के हर क्षेत्र में यह आंदोलन जारी है। कुछ क्षेत्रों में इसकी गति कम थी तो कुछ में अधिक थी, लेकिन यह आंदोलन सभी क्षेत्रों में नज़र आया। यह वही स्थिति है जिसके लिए हम प्रयासरत थे। बारह साल के दौरान जो विकास हुआ है उसकी तुलना इससे पहले के बारह वर्षों में होने वाले विकास से की जाए तो पता चलेगा कि यह विकास सोलह गुना अधिक है। यह विश्व के मान्यता प्राम्त केन्द्रों की ओर से जारी किए गए आंकड़े हैं। यही ज्ञान आंदोलन इस बात का कारण बना कि विश्व के मान्य केन्द्र और संस्थाएं ईरान के बारे में अपना विचार और अपने आंकड़े पेश करें। इन संस्थाओं का कहना है कि ईरान में विज्ञान के क्षेत्र में होने वाले विकास की गति विश्व की औसत गति से १३ गुना अधिक है। हमें इन तथ्यों को दृष्टिगत रखना चाहिए, यह बहुत महत्वपूर्ण तथ्य हैं। चूंकि हम यह बातें और आंकड़े अकसर सुनते रहते हैं अतः हमें इसकी आदत हो गई है और हमें यह सामान्य बात लगने लगी है। यह आंकड़े ईरान के भीतर की स्थानीय संस्थाओं के आंकड़े नहीं हैं। एसा नहीं है कि कोई व्यक्ति कुछ आंकड़े दे और कोई दूसरा कुछ और आंकड़े दे। यह विश्व के औपचारिक संस्थाएं हैं जो यह विचार व्यक्त कर रही हें और यह आंकड़े जारी कर रही हैं। यह एसी संस्थाएं हैं कि ईरान से जिनके संबंध बहुत मधुर नहीं हैं। मैं यह बात स्वीकार नहीं कर सकता कि विश्व की वर्चस्ववादी और विस्तारवादी सरकारें इन संस्थाओं को पूरी स्वतंत्रता से काम करने और आंकड़े जारी करने की अनुमति देती होंगी किंतु इसके बावजूद यह संस्थाएं ईरान के बारे में यह मानने और स्वीकार करने पर विवश हैं। अगर इन संस्थाओं का बस चले तो वे इस प्रगति का इंकार कर दें, जैसाकि वह हमारी बहुत से उन्नतियों का इंकार करती हैं। यही संस्थाएं अपने आंकड़ों में और अपनी रिपोर्टों में कह रही हैं कि यदि ईरान की वैज्ञानिक प्रगति यदि इसी गति से जारी रही तो पांच साल के भीतर अर्थात वर्ष २०१८ तक ईरान का नाम अमरीका, चीन और ब्रिटेन के बाद चौथे स्थान पर होगा। यह बहुत बड़ी बात है। अल्बत्ता मैं यह नहीं कहता कि यह आंकड़े सत प्रतिशत सही हैं। किंतु बहरहाल इससे यह अनुमान लगाया जा सकता कि देश के विश्वविद्यालयों की कार्यशैली और उपलब्धियां इस प्रकार की हैं। एक सर्वव्यापी आंदोलन आगे बढ़ रहा है।
यदि हम आज देश की युनिवर्सिटियों की स्थिति की तुलना इस्लामी क्रान्ति से पहले देश के विश्वविद्यालयों की स्थिति से करें तो और भी आश्चर्यजनक आंकड़े सामने आएंगे। जिस दिन क्रान्ति सफल हुई, देश में एक लाख सत्तर हज़ार युनिवर्सिटी छात्र थे आज देश में युनिवर्सिटी छात्रों की संख्या ४४ लाख है। अर्थात लगभग २५ गुना की वृद्धि हुई है। उस समय शिक्षकों की संख्या लगभग ५ हज़ार थी और आज यह संख्या बढ़कर ६० हज़ार तक पहुंच गई है। यह बहुत बड़ी बात है। यह बड़ी मूल्यवान प्रगति है।
यहां एक सवाल यह पैदा होता है कि अब जब हम विभिन्न क्षेत्रों में वैज्ञानिक प्रगति देख रहे हैं तो क्या हम चैन की सांस लेकर बैठ जाना चाहिए? ज़ाहिर है कि नहीं। हम ज्ञान विज्ञान की अंग्रिम पंक्ति से अभी पीछे हैं। जीवन के लिए आवश्वक बहुत से विज्ञानों और तकनीकों के क्षेत्र में अभी हम पीछे हैं। हमें काम करना होगा। विज्ञान और तकनीक का कारवां ठहरने वाला नहीं है कि हम बैठकर कुछ विश्राम करें। हमें अपनी वर्तमान स्थिति को सुरक्षित रखने ही नहीं बल्कि और तेज़ी से आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए संघर्ष की आवश्यकता है। अतः विश्वविद्यालयों और बुद्धिजीवियों के लिए हमारी अनुशंसा यह है कि ज्ञान आंदोलन की इस गति को किसी भी स्थिति में कम न होने दें। इसमें कभी भी कोई रुकावट न आने दें। हम ज्ञान विज्ञान पर इतना अधिक बल केवल इसलिए नहीं देते कि ज्ञान बहुत सम्मानजनक चीज़ है, ज्ञान का सम्मान तो एसी चीज़ है जिससे किसी को इंकार नहीं है और इस्लाम धर्म ने भी इस पर बहुत अधिक बल दिया है, सम्मान के अलावा यह भी एक सच्चाई हे कि ज्ञान विज्ञान से शक्ति उत्पन्न होती है। यदि कोई राष्ट्र चाहता है कि प्रतिष्ठापूर्वक जीवन व्यतीत करे, सम्मानजनक जीवन बिताए तो उसे शक्ति की आवश्यकता है और किसी भी राष्ट्र को असली शक्ति ज्ञान और विज्ञान से मिलती है। ज्ञान है तो वह आर्थिक शक्ति भी उत्पन्न कर सकता है और राजनैतिक शक्ति भी उत्पन्न कर सकता है और विश्व में सम्मान और प्रतिष्ठा भी दिला सकता है। एक ज्ञानी राष्ट्र, विज्ञान के क्षेत्र में भारी उपलब्धियों वाला राष्ट्र विश्व जनमत की दृष्टि में सम्मानजनक राष्ट्र होता है, उसका आदर किया जाता है। अतः ज्ञान का अपना जो सम्मान है वह तो अपनी जगह है, इससे शक्ति भी मिलती है।
विश्व में एक अड़ियल शत्रु मोर्चा है। क्या यह मोर्चा विश्व के अधिकांश देशों पर आधारित है? नहीं, क्या इस मोर्चे में पश्चिम के अधिकतर देश शामिल हैं? नहीं। यह केवल मुट्ठी भर देशों पर आधारित मोर्चा है जो कुछ विशेष कारणों से इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था और उसके विकास के विरोधी हैं और इस विकास को रोकने के लिए वह बार बार नियमों और क़ानूनों का उल्लंघन करते हैं। विज्ञान के क्षेत्र में भी यह उल्लंघन जारी है।
मेरा यह आग्रह है कि विज्ञान, वैज्ञानिक प्रगति के साथ ही देश की आम प्रगति का विषय भी विश्वविद्यालयों के भीतर चर्चा में रहना चाहिए। अर्थात देश के विकास में साझीदारी और योगदान की भावना विश्वविद्यालयों में आम होनी चाहिए। यह भावना विश्वविद्यालयों में मौजूद है किंतु इसे और भी प्रबल बनाने की आवश्यकता है। इस संदर्भ में कोई रुकावट नहीं आने देना चाहिए। विश्वविद्यालयो में हमेंशा इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में नई उपलब्धियां अर्जित की जाएं, नई खोज की जाए। इस बात पर आग्रह होना चाहिए कि वैज्ञानिक प्रगति से देश की आवश्यकताओं की पूर्ति हो।
मंडेला का अन्तिम संस्कार 15 दिसंबर को
दक्षिण अफ्रीका के दिवंगत नेता नेल्सन मंडेला के अन्तिम संसार में विश्व के कई नेता और गणमान्य लोग भाग लेंगे। जोहनेसबर्ग से प्राप्त रिपोर्अ के अनुसार 15 दिसंबर को होने वाले अन्तिम संस्कार के लिए तैयारियां शनिवार से आरंभ हो चुकी हैं। दक्षिण अफ्रीका की सरकार का कहना है कि 10 दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विश्व भर के नेताओं और गणमान्य लोगों के पहुंचने की उम्मीद है। मंडेला के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार से पहले प्रीटोरिया की यूनियन बिल्डिंग में तीन दिनों तक रखा जाएगा। उनकी अंत्येष्टि 15 दिसंबर को कुनु में की जाएगी जहां पर उनका बचपन बीता था। इन तीन दिनों में उनके पार्थिव शरीर को एक शवयात्रा के माध्यम से प्रीटोरिया की सड़कों से अंत्येष्टि स्थल तक ले जाया जाएगा। रविवार 8 दिसंबर को दक्षिणी अफ्रीका में राष्ट्रीय प्रार्थना दिवस घोषित किया गया है। 11 से 13 दिसंबर के बीच दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति की याद में कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। बताया गया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश तथा बिल क्लिंटन, दक्षिण अफ्रीका जाकर रंगभेद विरोधी आंदोलन के नायक नेल्सन मंडेला के लिए आयोजित होने वाली प्रार्थना सभा में भाग लेंगे। ज्ञात रहे कि गुरूवार को नेंसल मंडेला का निधन हो गया था।
भारतीय नौसेना के कमांडर ने ईरानी नौसेना को सराहा
भारतीय नौसेनाकीपश्चिमी कमान के प्रमुखवाइस एडमिरल शेखरसिन्हा इस्लामी गणतंत्र ईरान की नौसेना की पनडुब्बियों और युद्धपोतों को, ईरान की नौसेना की शक्ति का प्रतीक बताया है।
भारत के वाइस एडमिरल शेखरसिन्हा ने शनिवार को ईरानी नौसेना के २८वें बेड़े का मुंबई की बंदरगाह पर निरीक्षण करते हुए कहा कि ईरानी नौसेना की पनडुब्बियों और युद्धपोतों तथा इस सेना की शक्ति को देख कर यह लगता है कि प्रतिबंधों का ईरानी सेना पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।
भारतीय सेना के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी एस आर कपूर ने भी मुंबई बंदरगाह पर ईरान की युनुस नामक पनडुब्बी के निरीक्षण के समय प्रतिबंधों के बावजूद इस पनडुब्बी की संभावनाओं पर आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा कि इस पनडुब्बी की दशा, इसी प्रकार की भारत के पास उपलब्ध कुछ पनडुब्बियों से भी बेहतर है।
ईरान का २८वां बेड़ा, इस समय भारत के तटों पर उपस्थित है।
अल्लामा सय्यद मोहम्मद हुसैन तबातबाई
अल्लामा तबातबाई की एक विशेषता ज्ञान की विभिन्न शाखाओं से संपन्न होना भी है। ज्ञान की प्राप्ति का जुनून और इस दिशा में अथाह पर्यास ने उन्हें ज्ञान के उच्च स्थान पर पहुंचा कर उन्हें अद्वितीय हस्ती बना दिया। यह महान दार्शनिक इस्लामी विचारों व पश्चिमी दर्शनशास्त्र में दक्ष होने के इलावा दूसरे धर्मों व मतों का भी गहरा ज्ञान रखते थे। अल्लामा तबातबाई विश्व के विभिन्न धर्मों व मतों पर चर्चा के लिए सभाएं आयोजित करते थे। इतना ही नहीं बल्कि विभिन्न धर्मों की शिक्षाओं की समीक्षा भी की है। अल्लामा के एक शिष्य डाक्टर शायगान विश्व के विभिन्न धर्मों के बारे में उनके तुलनात्मक अध्ययन व शोध के बारे में कहते हैः अल्लामा तबातबाई की इस्लामी संस्कृति के बारे में व्यापक ज्ञान होने के इलावा एक विशेषता जिसने मुझे बहुत प्रभावित किया वह दूसरों के विचारों को तनमयता से सुनने की विशेषता थी। वह सबकी बात सुनते थे, जिज्ञासू थे, आध्यात्म के दूसरे मतों के प्रति बहुत संवेदनशील थे। हमने उनके साथ रहकर ऐसा अनुभव प्राप्त किया जो शायद इसल्मी जगत में अनुपम है। बाइबल, उपनिषदों, गौतम बौद्ध धर के सूत्र और ताउते चींग के अनुवादों की समीक्षा करते थे। उस्ताद अंतर्ज्ञान की ऐसी अवस्था में मूलग्रंथों की व्याख्या करते थे मानो इसके लिखने में वह भी सहभागी हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम का एक स्वर्ग कथन हैः ज्ञान प्राप्त करो चाहे तुम्हें चीन ही क्यों न जाना पड़े। इस मूल्यवान कथन में चीन से तात्पर्य सुदूर क्षेत्र है और पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम अपने इस कथन से मुलमानों को कठिनाइयां सहन करते हुए ज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रेरित करना चाहते हैं। अल्लाम ने इस्लाम के सच्चे अनुयायी के रूप में पैग़म्बरे इस्लाम के कथन को व्यवहार में उतारा और दिन प्रतिदिन दूसरे मतों के दृष्टिकोणों से अवगत होकर अपने ज्ञान में वृद्धि की। अल्लामा तबातबाई को इस्लामी शिक्षाओं, दूसरे धर्मों विशेष रूप से पूर्वी एशिया के धर्मों व मतों का ज्ञान था। अल्लामा तबातबाई का मानना था कि शुद्ध वास्तविकता पवित्र क़ुरआन में है किन्तु दूसरे धर्म भी वास्ततविकता के किसी न किसी भाग से संपन्न हैं इसलिए वह दूसरे धर्मों के विचारों का सम्मान करते थे। अल्लामा तबातबाई की पवित्र क़ुरआन में अथाह रूचि ने उन्हें पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या पर आधारित अल्मीज़ान जैसी अमर किताब लिखने के लिए प्रेरित किया जो पवित्र क़ुरआन की व्याख्या की दृष्टि से सबसे अच्छी किताबों में गिनी जाती है। उन्होंने अल्मीज़ान में क़ुरआन की एक आयत की दूसरी आयत से व्याख्या की है। अल्लामा तबातबाई के एक शिष्य हुज्जतुल इस्लाम फ़ाकिर मबीदी अल्मीज़ान की विशिष्टता का कारण इसमें व्याख्या की अपनाई गयी अनुपम शैली को मानते हैं और कहते हैः अल्मीज़ान तफ़सीर में पवित्र क़ुरआन की आयतों की व्याख्या आयतों से की गयी है अर्थात ऐ शैली को अपनाया गया है जिसका संबंध पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों से है कि अल्लामा ने अपनी शैली इसे अपने काल में पुनर्जीवित किया। स्वर्गीश अल्लामा तबातबाई ने क़ुरआन की आयतों की क़ुरआन की आयतों से व्याख्या करने की शैली अपनाई किन्तु इसके साथ ही उन्होंने पैग़म्बरे स्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों से भी आवश्यकता पड़ने पर लाभ उठाया है। अल्लामा तबातबाई पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की पवित्र क़ुरआन की व्याख्या करने की शैली के बारे में कहते हैः यद्यपि पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजन पवित्र क़ुरआन की आयतों के अनुसार क़ुरआन के व्याख्याकार हैं किन्तु उनके उपदेशों का आधार और शिक्षा देने व व्याख्या करने की शैली क़ुरआन की क़ुरआन द्वारा व्याख्या रही है जिसे क़ुरआन ने हमें सिखाया है और पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण व परंपरा से भी पता चलता है कि उन्होंने पवित्र क़ुरआन की व्याख्या में क़ुरआन से हटकर किसी चीज़ की सहायता नहीं ली है।
अल्लामा तबातबाई ने अपनी किताब अल्मीज़ान में समकालीन विश्व की समस्याओं व मामलों तथा विभिन्न मतों व विचारों पर पर्याप्त चर्चा की है। पूर्वी और पश्चिमी मतों द्वारा इस्लाम के जिन बिन्दुओं पर आपत्ति जताई गयी है उनका संतोषजनक उत्तर दिया है। कुल मिलाकर यह कि क़ुरआन की व्याख्या की अल्मीज़ान नाम किताब में क़ुरआन को सत्या का आधार बनाया गया है और इसी की कसौटी पर विभिन्न विचारों व मतों को परखा गया है और अंत में दूसरे मतों व विचारों की त्रुटियों का उल्लेख किया गया है।
उस्ताद शहीद मुत्तहरी के शब्दों मेः अल्लामा तबातबाई क़ुरआन की व्याख्या में अलौकिक कृपा व ज्ञान से वचिंत नहीं रहे। इस संदर्भ में स्वंय अल्लामा का मानना हैः क़ुरआन का एक वास्तविक रूप है जिसका इंकार नहीं किया जा सकता और वह यह है कि जब मनुष्य ईश्वर को अपना अभिभावक बनाए और उसके निकट जो जाए तो उसके सामने ज़मीन व आसमान के रहस्यों का ऐसा द्वार खुल जाता है जिससे वह ईश्वर ऐसी बड़ी निशानियों को देखता है जिसे दूसरे नहीं देख पाते।
इस मूल्यवान तफ़्सीर में नैतिक व आत्मज्ञान संबंधी मामलों की व्यापक व विस्तृत रूप से चर्चा की गयी है और अल्लामा बहुत ही आकर्षक व छोटे वाक्यों में ईश्वर की ओर बुलाते हैं।
अल्मीज़ान अरबी साहित्य की दृष्टि से बहुत ही प्रभावी किताब है। इस किताब के लिखने में अरबी साहित्य व व्याकरण की बारीकियों को इस सीमा तक ध्यान में रखा गया है कि अरब धर्मगरुओं और शोधकर्ताओं के लिए इस बात का पता लगाना कठिन है कि इस किताब का लेखक एक ग़ैर अरब है।
अल्लामा के ज्ञन व आत्मज्ञान के विशाल दरिया से केवल अल्मीज़ान नामक रत्न नहीं निकला है बल्कि और भी बहुत सी मूल्यवान किताबें उनकी यादगार के रूप में बाक़ी हैं। बिदायतुल हिकमत नामक किताब दर्शन शास्त्र के विषय पर है जिसमें संक्षेप में बहस की गयी है और यह किताब तर्क पर आधारित ज्ञन के प्यासों के लिए मूल्यवान किताब है। यह किताब अल्लामा के अध्यापन के एक सत्र का निचोड़ है। यह किताब पहले क़ुम के धार्मिक केन्द्र में और फिर देश के विश्वविद्यालयों में पढ़ायी गयी। इस किताब के बाद अल्लामा ने एक और किताब लिखी जिसका नाम निहायतुल हिकमत है। यह किताब भी दर्शनशास्त्र की शिक्षा पर आधारित है जिसमें दर्शनशास्त्र की विषयवस्तु की विस्तार से चर्चा की गयी है और यह बड़ी कक्षाओं के लिए लिखी गयी है। हाशिया बर किफ़ाया अल्लामा की एक और किताब है जो धर्मशास्त्र के सिद्धांत के बारे में किफ़ाया नामक किताब के हाशिए पर अल्लामा के नोट पर आधारित है।
शीया दर इस्लाम अर्थात इस्लाम में शीया नामक किताब अल्लामा तबातबाई की एक उत्कृष्ट रचना है जो विश्व की विभिन्न भाषाओं में अनुवादित होकर छप चुकी है। ख़ुलासए तालीमे इस्लाम और रवाबिते इज्तेमाई दर इस्लाम भी अल्लामा की दूसरी मूल्यवान किताबे हैं। आमोज़िशे दीन भी अल्लामा की एक और किताब है जिसमें अल्लामा ने धर्म की आवश्यक व अनिवार्य विषयवस्तुओं की छात्रों के लिए व्याख्या की है। इसी प्रकार रिसालते इन्सान क़ब्ल अज़् दुनिया, क़ुव्वओ फ़ेल, ईश्वर की विशेषता, उसके काम इत्यादि विषयों पर अल्लाम के 26 लेख हैं जिसे अल्लामा ने समाज की आवश्यकता के दृष्टिगत लिखा है। क़ुव्वह का अर्थ होता है मनुष्य में किसी चीज़ को प्राप्त करने की वह क्षमता जो वह चाहे तो प्राप्त कर सकता है और फ़ेल का अर्थ होता है वह क्षमता जो उसमें वर्तमान में विद्यमान है।
फ़ारसी शाशी का दीवान अल्लामा के प्रसिद्ध शेरों का संकलन है। इसी प्रकार अल्लामा ने पैग़म्बरे इस्लाम के सामाजिक आचरण के बारे में भी एक किताब लिखी है जिसका शीर्षक हैः सुननुन नबी। अल्लामा के क़ुम के धार्मिक केन्द्र के शिक्षकों के लिए नैतिक शिक्षा के क्लासों पर आधारित किताब का नाम लुब्बुल लुबाब है।
अल्लामा तबातबाई धर्मशास्त्र, धर्मशास्त्र के सिद्धांत, अल्जबरा, ज्योमितीय और अंकगणित में दक्ष थे। इसी प्रकार वह ज्योतिष शास्त्र में भी दक्ष थे। उन्होंने पवित्र नगर नजफ़ में धर्मगुरु सय्यद अबुल क़ासिम ख़ुन्सारी से गणित की शिक्षा प्राप्त की थी जो अपने समय के प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। अल्लामा तबातबाई अरबी साहित्य, अलंकारिक भाषा के प्रयोग और वाक्पटुता में भी अद्वितीय थे।
अल्लामा के बारे में एक रोचक बात यह भी है कि उन्होंने इस्लामी वास्तुकला के क्षेत्र में एक इमारत भी यादगार छोड़ी है। जिस समय अल्लामा शिक्षा प्राप्ति के लिए पवित्र नगर क़ुम गए तो वहां के हुज्जतिया मदरसे की इमारत छोटी थी और इस मदरसे के प्राध्यापक इसका विस्तार करना चाहते थे। वह इस्लामी मदरसे की शैली में एक बड़ी इमारत का निर्माण करवाना चाहते थे जिसमें बहुत से कमरे, मस्जिद, पुस्तकालय, भूमिगत कक्ष व हाल तथा छात्रों की आवश्यकता की दूसरी चीज़े मौजूद हों।
तेहरान समेत दूसरे नगरों के वास्तुकारों ने जितने भी नक़्शे पेश किए वह मदरसे के प्राध्यापक को पसंद न आया यहां तक कि अल्लामा ने भी एक नक़्शा बनाकर प्राध्यापक को दिया जो उन्हें पसन्द आया। नक़्शा पास होने के बाद अल्लामा के निरीक्षण में मदरसे की इमारत का बड़े अच्छे ढंग से निर्माण हुआ।
अल्लामा तबातबाई के एक महान शिष्य हैं आयतुल्लाह जवादी आमुली। वह अल्लामा के बारे में कहते हैः अल्लामा तबातबाई का मन बहुत पवित्र व संवेदनशील था। जिस समय ईश्वर का नाम लिया जाता तो उनकी स्थिति ऐसी हो जाती थी कि लोग आश्चर्य में पड़ जाते थे। अल्लामा में आध्यात्म में रूचि इतनी अधिक थी कि उनके सभी निकटवर्ती उनकी इस विशेषता से अवगत थे। वह इस्लामी आध्यात्म के बहुत उच्च स्थान पर पहुंचे थे और मुहयुद्दीन अरबी की किताब फ़ुतूहाते मक्किया पर उन्हें पूरा अधिकार था।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता अल्लामा तबातबाई के बारे में कहते हैः अल्लामा तबातबाई की आध्यात्मिक छवि एक मज़बूत व्यक्ति की है जिसने व्यापक ज्ञान से दृढ़ ईमान व सच्चे आध्यात्म से स्वंय को सुसज्जित किया और अपने इस आश्चर्यचकित व्यक्तित्व से यह सिद्ध किया कि इस्लाम में आध्यात्म और दर्शनशास्त्र एक साथ इकट्ठा हो सकते हैं।
मिस्र में सैन्य विद्रोह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने वालों की गिरफ़्तारी
मिस्र में पुलिस ने सैन्य विद्रोह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे दर्जनों लोगों को गिरफ़्तार किया और इख़्वानुल मुस्लेमीन के हज़ारों कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों पर आंसू गैस के गोले फ़ायर किए। ये लोग 3 जुलाई को सेना द्वारा अपदस्थ किए गए राष्ट्रपति मोहम्मद मुरसी की बहाली की मांग कर रहे थे।
प्रेस टीवी के अनुसार सैन्य विद्रोह के ख़िलाफ़ लोगों ने राजधानी क़ाहेरा सहित अनेक मिस्री शहरों में जुमे की नमाज़ के बाद प्रदर्शन किए।
मिस्र के गृह मंत्रालय के अनुसार 30 लोगों को राजधानी क़ाहेरा में गिरफ़्तार किया गया जबकि 43 लोगों को 7 प्रान्तों से गिरफ़्तार किया गया।
प्रदर्शनकारी सेना के ख़िलाफ़ नारे लगा रहे थे और उनके हाथों में इख़्वानुल मुस्लेमीन के उन सदस्यों की तस्वीरें थीं जिन्हें सेना समर्थित सरकार ने सैन्य विद्रोह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन के समय हताहत किया था।
प्रदर्शनकारी सैन्य शासन मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे।
थाईलैंड के अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुक़द्दमा चलेः मानवाधिकार कार्यकर्ता
एक मानवाधिकार कार्यकर्ता ने थाईलैंड के अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुकद्दमा चलाए जाने की मांग की है जिन पर म्यांमार में जातीय सफ़ाए के डर से भागने वाले मुसलमानों को मानव तस्करों के हाथों बेचने का संदेह है।
मानवाधिकार कार्यकर्ता माइरा दहगेपा ने शुक्रवार को प्रेस टीवी से विशेष साक्षात्कार में कहा, “यह बहुत गंभीर विषय है। इंसानों को अपने फ़ायदे के लिए दूसरे देश को बेचना, इसलिए इस विषय पर इंसाफ़ होना च़ाहिए। उन लोगों के हक़ में जिन्हें बेचा गया है। ”
माइरा दहगेपा ने कहा कि थाइलैंड के अधिकारियों ने रोहिंग्या मुसलमानों को मलेशिया के हाथों बेच कर यह अपराध किए हैं।
रोयटर्ज़ न्यूज़ एजेंसी ने इस विषय पर तीन देशों में जांच करायी है और उसने गुरुवार को एक रिपोर्ट में कहा है कि रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों को थाईलैंड के अप्रवासन केन्द्र से हटा कर, समुद्र किनारे इंतेज़ार करने वाले मानव तस्करों के हवाले कर दिया गया।
म्यांमार सरकार आठ लाख मुसलमानों को नागरिकता से वंचित किए हुए है जबकि उनके पूर्वज लगभग आठ शातब्दी पूर्व राख़ीन राज्य में बसे थे। रोहिंग्या मुसलमानों के पूर्वज, ईरानी, तुर्क, बंगाली और पठान थे। पंद्रहवीं शताब्दी के आरंभ में अराकान के बौद्ध राजा नरामेख़ला (Narameikhla) के दरबार में बहुत से मुलमान सलाहकार व दरबारी थे।
15 दिसंबर को होगा नेल्सन मंडेला का अंतिम संस्कार
दक्षिण अफ्रीक़ा के पहले अश्वेत राष्ट्रपति और विश्व भर में नस्लभेद के ख़िलाफ़ संघर्ष का प्रतीक समझे जाने वाले नेता नेल्सन मंडेला के निधन पर विश्व भर में शोक मनाया जा रहा है।
दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा ने घोषणा की है कि 15 दिसंबर को राजकीय सम्मान के साथ उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
उन्होंने बताया कि जोहानेसबर्ग के बाहरी इलाक़े में स्थित 95,000 लोगों की क्षमता वाले एक स्टेडियम में राष्ट्रीय शोक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा।
इसके बाद नेल्सन मंडेला का शव राजधानी प्रीटोरिया में तीन दिन तक दर्शना के लिए रखा जाएगा और फिर उनके गांव ले जाया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा।
उल्लेखनीय है कि मंडेला काफ़ी समय से फेफड़ों के संक्रमण की समस्या से ग्रस्त थे। स्थानीय समय के अनुसार गुरुवार की रात लगभग नौ बजे उनका निधन हुआ।
परमाणु समझौते का लाभ पूरे क्षेत्र की जनता को पहुंचा
हिज़्बुल्लाह लेबनान के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा है कि ईरान और विश्व शक्तियों के बीच होने वाले परमाणु समझौते का सबसे अधिक लाभ क्षेत्र की जनता को पहुंचा है क्योंकि इस समझौते से क्षैत्र पर बहुत महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा।
हिज़्बुल्लाह के प्रमुख ने मंगलवार की शाम ओ टीवी को साक्षात्कार देते हुए ईरान के परमाणु समझौते के बारे में कहा कि इससे युद्ध का विकल्प बहुत दूर हो गया है और मैं जब युद्ध की बात करता हूं तो उससे तात्पर्य पश्चिमी युद्ध, अमरीकी युद्ध और इस्राईली युद्ध है अतः इस समझौते का सबसे अधिक लाभ क्षेत्र की जनता के लिए है। सैयद हसन नसरुल्लाह ने इस समझौते ने विश्व में बहुध्रुवीय व्यवस्था व्यवस्था को प्रमाणित किया है और यह साबित हुआ है कि इस समय विश्व में केवल एक सुपर पावर या दो सुपर पावर नहीं हैं। सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि क्षेत्र की कुछ सरकारें बहुत दिनों से ईरान के विरुद्ध युद्ध आरंभ करवाने का प्रयास कर रही थीं और यदि युद्ध होता तो पूरे क्षेत्र पर इसके विनाशकारी प्रभाव पड़ते क्योंकि ईरान कमज़ोर देश नहीं है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि ईरान ने प्रतिबंधों का डटकर मुक़ाबला किया और अमेरिका ईरान की शासन व्यवस्था को गिराने मे विफल हो गया जबकि यूरोप और अमरीका में आज़ कुछ नए तथ्य सामने हैं और यह देश किसी भी यद्ध में पड़ना नहीं चाहते। हिज़्बुल्लाह के प्रमुख ने कहा कि इस्राईल के बारे में ईरान की रणनीति में कोई परिवर्तन नहीं आया है।
परमाणु समझौते पर कुछ क्षेत्रीय देशों की कथित चिंता के बारे में सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि वाशिंग्टन के साथ तेहरान के समझौते से फ़ार्स खाड़ी के देशों को नुक़सान नहीं पहुंचेगा। उन्होंने कहा कि ईरान कभी भी अपने पड़ोसी देशों से संबंध नहीं तोड़ा, समस्या दूसरे पक्ष के यहां है। सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि ईरान कई साल से सऊदी अरब के साथ सहयोग के द्वार खोलना चाहता है किंतु हर बार के प्रयास विफल हुए हैं। सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि सऊदी अरब की सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसने ईरान को शुरू से ही अपना शत्रु समझा, सऊदी अरब में यह साहस नहीं है कि वह युद्ध में भाग ले किंतु उसने धन खर्च करके हमेशा दूसरों को लड़वाया है। सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि मिस्र, सीरिया और यमन से भी सऊदी अरब की गहरी समस्याएं रही हैं। उन्होंने कहा कि सऊदी अरब साझेदारी नहीं चाहता बल्कि क्षेत्र की सभी सरकारों को अपना ग़ुलाम बनाना चाहता है।
पाकिस्तान में पोलियो टीम के रक्षक पुलिस अधिकारी की हत्या
पाकिस्तान के ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह प्रांत की राजधानी पेशावर में बच्चों को पोलियो की दवा पिलाने वाली टीमों को सुरक्षा देने वाले सुरक्षाकर्मियों पर अज्ञात लोगों के हमले में एक पुलिस अधिकारी की मौत हो गई है और एक अन्य घायल हो गया है।
एक पुलिस अधिकारी के अनुसार, हमलावर पुलिस अफ़सरों की बंदूक़े भी साथ ले गए हैं। अभी तक किसी भी गुट ने इस हमले की ज़िम्मेदारी स्वीकार नहीं की है।
मारे गए ज़ाकिर आफ़रीदी स्पेशल पुलिस फ़ोर्स के सदस्य थे और उन्हें दस हज़ार रुपये प्रति महीने के वेतन पर भर्ती किया गया था।
स्पेशल पुलिस फ़ोर्स के कर्मचारी मारे जाने या घायल होने की स्थिति में किसी तरह की आर्थिक सहायता पाने के हक़दार नहीं होते हैं।
पाकिस्तान के क़बायली इलाक़ों में पिछले एक साल में पोलियो टीमों पर होने वाले हमलों में लगभग दो दर्जन लोग मारे गए हैं।
चरमपंथियों का मानना है कि बच्चों को पोलियो से बचाने वाली दवा पिलाने वाली टीमें पश्चिमी देशों की जासूस हैं, या यह प्रक्रिया मुसलमानों को वंश बढ़ाने से रोकने
ईरान,भारत और अफगानिस्तान के मध्य आर्थिक समझौता
अफगानिस्तान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा है कि शीघ्र ही ईरान,भारत और अफगानिस्तान के मध्य एक त्रिपक्षीय आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर होने वाला है। समाचार एजेन्सी इर्ना की रिपोर्ट के अनुसार जानान मूसा ज़ई ने कहा कि ईरान की चाबहार बंदरगाह के रास्ते से शीघ्र ही एक त्रिपक्षीय आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर होगा। उन्होंने काबुल में एक प्रेस कांफ्रेन्स में अफगानिस्तान के विदेशमंत्रालय के प्रमुख ज़ेरार अहमद उसमानी की ईरान यात्रा को लाभप्रद बताया। अफगानिस्तान के विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मोहम्मद नवाज़ शरीफ की अफगानिस्तान की एक दिवसीय यात्रा के परिणामों को बयान करते हुए कहा कि इस्लामाबाद ने वादा किया है कि आतंकवाद से मुकाबले के संबंध में इस्लामाबाद काबुल के साथ रचनात्मक सहयोग करेगा।