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अमरीका में ख़ून बहाने का सिलसिला जारी।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार अमरीका के बोस्टन शहर में होने वाली फ़ायरिंग की एक और घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई है जबकि तीन और लोग गायल हो गए हैं।

अमरीका में हथियार रखने के परिणाम स्वरूप हिंसा भड़क उठने की यह ताज़ा घटना है। यह घटना अमरीका के बोस्टन शहर में एक घर में एक प्रोग्राम के दौरान हुआ। एक पड़ोसी के अनुसार इस दौरान कई राउण्ड गोलियां चलीं। पुलिस नें इस सिलसिले में कई लोगों को गिरफ़्तार किया है।

स्पष्ट रहे कि चौदह सितम्बर सन् दो हज़ार बारह को एडम लान्ज़ नाम के एक हमलावर नें एक स्कूल में फ़ायरिंग करके 26 लोगों सहित 6 से 7 साल के बीच के बीस स्कूली बच्चों को मौत की घाट उतार दिया था जिसके बाद पूरे अमरीका में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शनों और असलहा रखने के बारे में नए क़ानून को लागू करने की मांग हो रही है।

रक्षा के क्षेत्र में ईरान का एक और महत्वपूर्ण कारनामाइस्लामी गणतंत्र ईरान ने सूसनगेर्द की स्वतंत्रता की वर्षगांठ के अवसर पर अत्याधुनिक रणनीतिक ड्रोन विमान फ़ितरुस का अनावरण किया है।

इराक़ के तत्कालीन तानाशाह सद्दाम के सैनिकों ने 14 नवम्बर 1980 को ईरान की सीमाओं में अतिक्रमण जारी रखते हुए ईरान के दक्षिणी शहर सूसनगेर्द का परिवेष्टन कर लिया था, लेकिन उसके तीन दिन बाद ही ईरानी जियालों ने इस परिवेष्टन को तोड़ने में सफलता प्राप्त कर ली।

सोमवार को ईरानी रक्षा मंत्री हुसैन देहक़ान ने प्रमुख चालक रहित विमान फ़ितरुस के अनावरण समारोह में कहा कि इस उच्च क्षमता वाले ड्रोन विमान को ईरानी विशेषज्ञों ने देश के सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं को मद्दे नज़र रखकर विकसित किया है।

इस ड्रोन विमान के अनावरण समारोह में रक्षा मंत्री हुसैन देहक़ान ने कहा कि फ़ितरुस ड्रोन विमान २००० किलोमीटर तक २५ हज़ार फुट की ऊंचाई से १६ से ३० घंटों तक निरंतर उड़ान भर सकता है, तथा विभिन्न प्रकार के कैमरों के अलावा उसे हवा से सतह पर मार करने वाले मिज़ाइलों से भी लैस किया गया है।

रक्षा मंत्री ने कहा कि यह गौरवशाली कारनामा ईरानी विशेषज्ञों के अथक प्रयासों से संभव हुआ है और इससे एक बार पुनः यह सिद्ध हो गया कि शत्रुओं द्वारा लागू प्रतिबंध, रक्षा क्षेत्र में ईरान के विकास को प्रभावित नहीं कर सकते।

उल्लेखनीय है कि ईरान के सबसे बड़े एवं महत्वपूर्ण ड्रोन विमान फ़ितरुस का अनावरण, घरेलू तकनीक के विकास का एक उदाहरण है। देश की सीमाओं की रक्षा के उद्देश्य से ईरानी विशेषज्ञों ने अब तक सशस्त्र बलों की आवश्यकताओं के दृष्टिगत कई महत्वपूर्ण कारनामे अंजाम दिए हैं।

ईरान के विदेश मंत्री के अनुसार, भविष्य में होने वाले युद्धों में ड्रोन विमानों की महत्वपूर्ण भूमिका के दृष्टिगत ईरान इस जटिल तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो गया है।

रूस और अमरीका के विदेशमंत्रियों की टेलीफोनी वार्ता,रूस और अमरीका के विदेशमंत्रियों ने ईरान के परमाणु मामले पर टेलीफोनी वार्ता की है।

रूसी विदेशमंत्रालय से जारी एक बयान में बताया गया है कि रूसी विदेशमंत्री सरगई लावरोव ने रविवार की शाम अपने अमरीकी समकक्ष, जॉन कैरी से टेलीफोनी वार्ता की जिसमें उन्होंने ईरान और गुट पांच धन एक के मध्य हालिया जेनेवा वार्ता के परिणामों पर चर्चा की।

बयान के अनुसार इस वार्ता में ईरान और गुट पांच धन एक के मध्य आगामी वार्ता पर भी विचार विमर्श हुआ जो २० नवम्बर को आयोजित होने वाली है।

अमरीका और रूस के विदेशमंत्रियों ने इसी प्रकार सीरिया संकट की ताज़ा स्थिति पर भी चर्चा की और सीरिया के संदर्भ में जेनेवा २ सम्मेलन के आयोजन के लिए कार्यक्रम और भूमिका पर बात की ।

रूस और अमरीका सीरिया के संदर्भ में जेनेवा २ सम्मेलन के आयोजन और इस देश के संकट के समाधान के लिए एक दूसरे से सहयोग कर रहे हैं।

ईरान के परमाणु मामले के समाधान के लिए फ्रांस की शर्तेंगुट पांच धन एक और ईरान के मध्य परमाणु वार्ता में सहमति में रोड़े अटकाने वाले फ्रांस ने ईरान के परमाणु मामले के समाधान के लिए कुछ शर्तें पेश की हैं।

फ्रांस के राष्ट्रपति ने अवैध अधिकृत फिलिस्तीन की अपनी यात्रा के दौरान ईरान के परमाणु मामले के समाधान के लिए ४ शर्तें पेश की हैं।

फ्रांस के राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने इस्राईली प्रधानमंत्री बिन यामिन नितिनयाहू के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में ईरान के परमाणु मामले पर आगामी वार्ता की ओर संकेत करते हुए अपनी शर्तों का उल्लेख किया।

उन्होंने कहा कि सब से पहले ईरान को अपने सभी परमाणु प्रतिष्ठान अंतरराष्ट्रीय निगरानी में देने होंगे और दूसरे उसे बीस प्रतिशत यूरेनियम का संवर्धन रोकना होगा, तीसे ईरान को सवंर्धित यूरेनियम के भंडार में कमी करनी होगी और चौथे, अराक के भारी पानी के रिएक्टर का निर्माण रोकना होगा।

उन्होंने कहा कि वे एक आरंभिक सहमति का समर्थन करते हैं किंतु उसके लिए भी उनकी शर्तों का पालन ज़रूरी है। फ्रांस के राष्ट्रपति ऐसी दशा में समाधान के लिए शर्त लगा रहे हैं कि जब उनके विदेश मंत्री ने ही पिछली वार्ता को सहमति तक पहुंचने से रोक दिया था। टीकाकारों का कहना है कि अमरीका की ओर से निराश होने के बाद इस्राईल और सऊदी अरब ने ईरान और पश्चिम के मध्य सहमति को रोकने के लिए फ्रांस को मोहरा बनाया है और इसके बदले उसे सऊदी अरब की ओर से बड़ा व्यापार मिलने की आशा है।

ईरान और गुट पांच धन एक के मध्य कोई बड़ा मतभेद नहींरूस के विदेशमंत्री ने कहा है कि परमाणु मामले पर ईरान और गुट पांच धन एक के मध्य वार्ता प्रक्रिया में कोई बड़ा मतभेद नहीं है।

रूसी विदेशमंत्री ने अपने एक बयान में कहा कि ईरान के विदेशमंत्री मुहम्मद जवाद ज़रीफ़ से वार्ता में ऐसा पहली बार आभास हुआ कि ईरान और गुट पांच धन एक के देश एक संयुक्त समाधान तक पहुंचने में गंभीर हैं। रूसी विदेशमंत्री ने कहा कि वह समझते हैं कि ईरान के परमाणु मामले के समाधान के लिए उचित वातावरण उत्पन्न हो गया है।

सर्गेई लावरोफ़ ने कहा कि ईरान के नये राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ किसी समाधान तक पहुंचने के लिए गुट पांच धन एक दृढ़ संकल्पित हैं। ज्ञात रहे कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के अस्पष्टता को दूर करने के संबंध तेहरान के गंभीर प्रयासों से गुट पांच धन एक के साथ वार्ता प्रक्रिया में नया वातावरण उत्पन्न हुआ है।

 

भारत और पाकिस्तान में पूरी श्रद्धा से मनाया गया आशूरभारत और पाकिस्तान में आज भरपूर श्रद्धा से आशूर मनाया गया है। भारत में मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, लखनऊ, हैदराबाद सहित अनेक शहरों, क़स्बों और गावों में आशूर के उपलक्ष्य में मजलिसें हुईं और जुलूस निकाले गए। जुलूसों में बहुत बड़ी संख्या में हज़रत इमाम हुसैन के श्रद्धालुओं ने भाग लिया और उनकी क़ुरबानी को याद किया। जुलूसों में शीया और सुन्नी मुसलमानों के साथ ही हिंदु समुदाय के लोग भी पराम्परागत रूप से शामिल हुए।

पाकिस्तान में कराची, लाहौर, इस्लामाबाद, पेशावर सहित सभी शहरों और गांवों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को श्रद्धांजलि अर्पित करने और उनकी क़ुरबानी को याद करने के लिए कार्यक्रमों के आयोजन हुए।

आशूर की मजलिसों और जुलूसों को देखते हुए कई शहरों में सुरक्षा आशंकाओं के कारण मोबाइल सेवा बंद कर दी गई है। लाहौर और कुछ शहरों में रात आठ बजे तक जबकि पेशावर तथा कुछ अन्य शहरो में रात बारह बजे तब मोबाइल सेवा बंद रखी जाएगी। जुलूसों और मजिलसों के स्थानों पर बड़ी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया गया है।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ ने इस अवसर पर अपने संदेश में कहा कि आशूर का दिन दुख और दर्द की याद दिलाने के साथ ही असत्य पर सत्य की विजय की भी याद दिलाता है। राष्ट्रपति ममनून हुसैन ने कहा कि कर्बला की घटना सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने का पाठ देती है।

इसी बीच सूचना है कि पाकिस्तान के कई शहरों में आशूर के जुलूस समाप्त होना शुरू हो गए हैं और कहीं से किसी अप्रिय घटना की कोई सूचना नहीं मिली है।

पाकिस्तान में 8 शिया अज़ादारों की हत्यापाकिस्तान के शहर रावलपिंडी में तालिबान समर्थित तकफ़ीरी आतंकवादियों ने इमाम हुसैन (अ) और कर्बला के शहीदों का ग़म मना रहे शिया मुसलमानों पर हमला करके 8 लोगों को मौत के घाट उतार दिया और अन्य दर्जनों को घायल कर दिया।

यह हमला उस समय किया गया जब पैग़म्बरे इस्लाम (स) के नाती इमाम हुसैन (अ) की शहादत की वर्षगांठ के अवसर पर शुक्रवार को श्रद्धालू मातमी जुलूस निकाल रहे थे।

इस घटना के बाद शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया है और सुरक्षा व्यवस्था की ज़िम्मेदारी सेना के हवाले कर दी गई है।

पाकिस्तान में शिया समुदाय लम्बे समय से सरकार से चरमपंथियों एवं असमाजिक तत्वों के ख़िलाफ़ निर्णायक कार्यवाई की मांग कर रहा है कि जो मस्जिदों, इमामबाड़ों और धार्मिक स्थलों को अपना निशाना बनाते हैं।

ईरान से सहयोग का अर्थ समर्पण नहीं, हेगलअमरीका के रक्षा मंत्री चक हेगल ने कहा है कि ईरान से सहयोग का अर्थ उसके सामने आत्म समर्पण कर देना नहीं है।

अमरीकी रक्षा मंत्री ने ईरान से अमरीका की वार्ता के विरोधियों को संबोधित करते हुए कहा कि हम वर्ष 1979 से ईरान के साथ अनौपचारिक युद्ध में व्यस्त रहे हैं एसे में क्या वास्तव में कोई यह सोच सकता है कि किसी स्थान पर एक सप्ताह के लिए एकत्रित होकर कोई समझौता किया जा सकता है? हेगल ने कहा कि सहयोग समर्पण नहीं है। चक हेगल ने ईरान से वार्ता का बचाव करते हुए कहा कि यह तार्किक है कि हम अपने शत्रुओं के साथ संयुक्त हितों का रेखांकन करें। हेगल ने कहा कि यह हमारी बुद्धिमत्ता है कि हम संयुक्ति हितों या संभावित समाधान की ओर आगे बढ़ें। हेगल ने कहा कि सभी विश्व शक्तियां और ईरान कुछ राजनैतिक मुद्दे रखते है जिन्हें वार्ता में उठाया जाना है और इसमें समय लगेगा।

सोमवार, 11 नवम्बर 2013 10:02

शहीद मुर्तज़ा मुतहरी

शहीद मुर्तज़ा मुतहरी

इतिहास में सदैव ऐसे व्यक्ति रहे हैं कि जिन्होंने जीवन में अपने अधिकारों की बलि देकर अंधविश्वासों एवं अज्ञानता से लड़ाई लड़ी है। इन समर्पित मनुष्यों ने लोगों की जागृति एवं मार्गदर्शन में अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है तथा सदैव के लिए उनकी यादें लोगों के ज़हन में बाक़ी रह जाती हैं।

इस्लामी विशेषज्ञ, कुशल लेखक एवं प्रतिभाशाली वक्ता शहीद मुर्तज़ा मुतहरी ने भी विचारों की जागृति एवं समकालीन महत्वपूर्ण विषयों की व्याख्या में उल्लेखनीय भूमिका निभाई। उनके बारे में एक सुन्दर वाक्य है कि “मुतहरी दूर से दर्शन शास्त्रियों की भांति प्रतीत होते थे, और थोड़ी दूर से वे ज्ञानियों एवं तर्क शास्त्रियों की तरह लगते थे और जो कोई भी उन्हें निकट से पहचानता था उनके अस्तित्व में रहस्यवाद की वास्तविकता एवं कोमलता का प्रकाश देखता था”

आयतुल्लाह मुतहरी का जन्म उत्तर पूर्वी ईरान के फ़रीमान में वर्ष 1920 में एक धार्मिक एवं विशिष्ट घराने में हुआ। उनके पारिवारिक वातावरण में पवित्रता एवं सदाचार का बोल बाला था और वे बालक अवस्था से ही शिष्टाचार में रूची रखते थे तथा दुराचार से दूर रहते थे, उन्होंने तीन वर्ष की आयु से ही नमाज़ पढ़नी शुरू कर दी थी। बचपन से उनका चाल चलन उनके उज्जवल भविष्य की ओर संकेत कर रहा था।

शहीद मुतहरी को क़ुरान एवं इस्लामी शिक्षाओं से असीम प्रेम एवं लगाव था, इसी कारण वे प्रारम्भिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद पवित्र नगर मशहद के धार्मिक शिक्षा केन्द्र चले गए। शहीद मुतहरी ने प्रारम्भिक इस्लामी शिक्षा वहीं ग्रहण की और वर्ष 1937 में पवित्र नगर क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र में प्रवेश किया। उन्होंने क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र में अल्लामा तबातबाई एवं इमाम ख़ुमैनी जैसे दक्ष गुरुओं से शिक्षा ग्रहण की। अधिक बुद्धिमत्ता एवं आश्चर्यजनक प्रतिभा ने शहीद मुतहरी को धार्मिक केन्द्र का विशिष्ट विद्यार्थी बना दिया। उन्होंने क़ुम में इमाम ख़ुमैनी से 12 वर्षों तक नैतिक, दर्शन, रहस्यवाद एवं धर्मशास्त्र जैसे विषयों की शिक्षा प्राप्ति की। शहीद मुतहरी ने शिक्षा के विभिन्न चरणों को इतनी तेज़ी से तय किया कि बहुत ही कम अवधि में वे शिखर पर पहुंच गए और अपने समय के प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय गुरुओं में से एक बन गए। धार्मिक केन्द्र में उनकी क्लासों में इस्लामी शिक्षाओं के प्यासे धार्मिक विद्यार्थियों की बहुत भारी संख्या होती थी और उस समय इन क्लासों की चारो ओर चर्चा थी।

मुर्तज़ा मुतहरी ने सन् 1950 में ख़ुरासान प्रांत के एक प्रसिद्ध धर्मगुरु की पुत्री से विवाह किया। विवाह से पहले वे पवित्र नगर क़ुम में एक कमरे में रहते थे तथा उनकी जीवन शैली उनके सामान्य जीवन की परिचायक थी। विवाह के बाद भी उन्होंने आर्थिक सख़्तियों में जीवन व्यापन किया, यहां तक कि कभी कभी वे जीवन की आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिए अपनी किताबें बेचने पर भी विवश हो जाते थे या अपने दोस्तों से उधार लेते थे। लेकिन घर में पत्नि का इतना अधिक सम्मान करते थे कि जीवन की कठिनाईयां उनके दिलों को प्रभावित नहीं करती थीं।

सन् 1952 में शहीद मुतहरी ईरान की राजधानी तेहरान चले गए ताकि वहां व्यापक स्तर पर वैचारिक एवं सांस्कृतिक कार्य अंजाम दे सकें। उन्होंने तेहरान में मदरसों एवं तेहरान विश्वविद्यालय के इस्लामी शिक्षा विभाग में पढ़ाना शुरू किया। ऐतिहासिक, राजनीतिक, नैतिक एवं वैज्ञानिक किताबों तथा लेखों का प्रकाशन तेहरान में शहीद मुतहरी की दूसरी सक्रियताओं में से था।

शहीद मुतहरी वैज्ञानिक एवं धर्मगुरु के साथ साथ एक विचारक एवं राजनीतिक आंदोलकारी भी थे। इमाम ख़ुमैनी की गिरफ्तारी के विरोध में पांच जून वर्ष 1963 अर्थात पांज़देह ख़ुर्दाद के महान आंदोलन में शहीद मुतहरी ने प्रमुख भूमिका निभाई थी, इस प्रकार कि ईरान के तत्कालीन शासक के विरुद्ध एक ज़बरदस्त भाषण के बाद उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। किन्तु जनता के दबाव के कारण शाह का शासन शहीद मुतहरी सहित अन्य कुछ धर्मगुरुओं को स्वतंत्र करने पर विवश हो गया। जेल से आज़ाद होने के बाद शहीद मुतहरी सामाजिक आवश्यकताओं के विषयों पर पुस्तकें लिखने एवं तेरहान स्थित विभिन्न विश्वविद्यालों तथा महत्वपूर्ण मस्जिदों में भाषण देने में व्यस्त हो गए।

मुर्तज़ा मुतहरी ने अपने उच्च विचारों एवं कुशल क़लम से अंधविश्वासों का मुक़ाबला किया और इस्लाम की प्रतिरक्षा में अपनी पूर्ण शक्ति लगा दी। उन्होंने हथियारों और शक्ति के बल पर प्रतिरक्षा नहीं की, बल्कि क़ुरान, इतिहास एवं मज़बूत बौद्धिक तर्कों के आधार पर यह कार्य अंजाम दिया। यही कारण है कि सदैव युवा पीढ़ी एवं शिक्षित लोग शहीद मुतहरी के लेखों और भाषणों को उत्साहपूर्वक पढ़ते और सुनते थे तथा बड़े ही चाव से उनकी क्लासों में भाग लेते थे।

कुछ पश्चिमी दार्शनिकों के ग़लत विचारों की दर्शन एवं तर्कशास्त्र की भाषा में आलोचना शहीद मुतहरी की एक अन्य विशेषता थी। उनका मानना था कि एक इस्लामी आंदोलन की आवश्यकता है, अतः इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वे हर प्रकार की विकृतियों एवं अंधविश्वासों का डटकर मुक़ाबला करते थे। वर्ष 1969 में फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए सहायता सामग्री एकत्रित करने हेतु उन्होंने एक घोषणापत्र जारी किया जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें गिरफ़्तार करके जेल में अलग थलग कोठरी में क़ैद कर दिया गया। वे अपने एक भाषण में मुसलमानों विशेषकर ईरानी जनता का ध्यान फ़िलिस्तीनियों की दुर्दशा की ओर खींचते हुए कहते हैं कि अगर हम स्वयं का सम्मान करना चाहते हैं, अगर हम स्वयं को मूल्यवान बनाना चाहते हैं, अगर हम ईश्वर और उसके दूत के समक्ष सम्मान प्राप्त करना चाहते हैं, विश्व के राष्ट्रों की दृष्टि में प्रतिष्ठित होना चाहते हैं तो हमें मानवता की सहायता को पुनर्जीवित करना होगा। यदि पैग़म्बरे इस्लाम जीवित होते तो आज किया करते? किन मामलों पर विचार करते? मैं ईश्वर की सौगंध खा कर कहता हूं कि पैग़म्बरे इस्लाम आज अपनी क़ब्र में यूहूदियों से बहुत नाराज़ हैं। अगर कोई यह न कहे तो उसने पाप किया है। यदि मैं यह नहीं कहूं तो ईश्वर की सौगंध मैं ने पाप किया, और जो कोई भी वक्ता या उपदेशक ऐसा न कहे तो उसने पाप किया है। ईश्वर की सौगंध और ईश्वर की क़सम इस मामले के प्रति हम ज़िम्मेदार हैं। ईश्वर की सौगंध हमारा कर्तव्य है। ईश्वर की सौगंध हम अनभिज्ञ हैं, यदि इमाम हुसैन (अ) जीवित होते तो कहते यदि तुम मेरे लिए शोक सभाएं आयोजित करना चाहते हो, मेरे लिए मातम करना चाहते हो तो आज तुम्हारा नारा फ़िलिस्तीन होना चाहिए, आज इस शहर की दीवारें एवं द्वार फ़िलिस्तीन के नारों से हिल उठते।

फ़िलिस्तीनी जनता के बारे में शहीद मुतहरी का भाषण हिलाकर रख देने वाला और इतना प्रभावित करने वाला है कि अभी भी कभी कभी ईरान के विभिन्न संचार माध्यमों से फ़िलिस्तीन के पीड़ितों के समर्थन में प्रसारित होता है।

जेल से बाहर आने के बाद भी शहीद मुतहरी ने प्रतिरोध एवं प्रयास जारी रखा और निरंतर तेहरान की महत्वपूर्ण मस्जिदों में भाषण देते रहे। अतः 1974 में उनके भाषणों पर प्रतिबंध लगा दिया गया और यह प्रतिबंध इस्लामी क्रांति की सफलता अर्थात 1979 तक जारी रहा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई शहीद मुतहरी के अद्वितीय व्यक्तित्व का विवरण देते हुए कहते हैं कि धर्मगुरु शहीद मुतहरी शिक्षा दीक्षा को अपना महत्वपूर्ण कर्तव्य समझते थे। वे केवल क्लास में शिक्षक नहीं थे बल्कि घर में मित्रों के बीच एवं समारोह तथा बैठकों में भी एक कुशल शिक्षक माने जाते थे। वे पवित्र, क़ुरान के ज्ञानी तथा ईश्वर के उपासक एवं रात्रि की विशेष नमाज़ों के पढ़ने वाले थे। ज्ञान, जानकारी और सीखने सिखाने को महत्व देते थे। वे अपने मूल्यवान जीवन के अंत तक ज्ञान के ठाठें मारते हुए समुद्र के बावजूद, ज्ञान प्राप्त करने में रूची रखते थे।

किन्तु शहीद मुतहरी के समस्त मूल्यवान जीवन में उनकी महत्वपूर्ण सेवाओं में पढ़ाने, भाषण देने एवं पुस्तकों की रचनाओं के द्वारा इस्लाम के मूल सिद्धांतों की व्याख्या है। विशेषकर यह प्रक्रिया वर्ष 1972 से वर्ष 1979 के बीच वामपंथियों के प्रचारों में वृद्धि एवं मुसलमान वामपंथियों के अस्तित्व में आने के बाद से चरम पर पहुंच गई। उस समय शहीद मुतहरी, इमाम ख़ुमैनी के आदेशानुसार सप्ताह में दो दिन क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र में पढ़ाने जाते थे और वहां महत्वपूर्ण विषयों पर भाषण देते थे तथा तेहरान में भी अपने घर एवं अन्य स्थानों पर क्लासों का आयोजन करते थे। वर्ष 1976 में धर्मशास्त्र कॉलेज में एक कम्युनिस्ट प्रोफ़ैसर के साथ वैचारिक वाद विवाद के कारण वे समय पूर्व ही सेवानिवृत्त हो गए। उन्हीं वर्षों में शहीद मुतहरी ने अपने कुछ धर्मगुरु साथियों के साथ मिलकर जामेऐ रूहानियत मुबारिज़ तेहरान नामक संगठन की आधारशीला रखी।

इमाम ख़ुमैनी के निर्वासन के दौरान यद्यपि शहीद मुतहरी उनसे टेलीफ़ोन और पत्राचार द्वारा निरंतर संपर्क में रहे, किन्तु वर्ष 1976 में वे नजफ़े अशरफ़ की यात्रा करने में सफल रहे और वहां उन्होंने इमाम ख़ुमैनी के साथ मुलाक़ात में क्रांति के महत्वपूर्ण मुद्दों एवं धार्मिक शिक्षा केन्द्रों के बारे में विचार विमर्श किया। इस्लामी क्रांति का नया चरण आरम्भ होने के बाद, शहीद मुतहरी ने स्वयं को पूर्ण रूप से इस्लामी क्रांति की सेवा में समर्पित कर दिया और फिर क्रांति के समस्त चरणों में उन्होंने मुख्य भूमिका निभाई। इमाम खुमैनी के पैरिस प्रवास के दौरान शहीद मुतहरी वहां गए और क्रांति के महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में उनसे विचार विमर्श किया तथा उसी यात्रा के दौरान इमाम ख़ुमैनी ने उन्हें इस्लामी क्रांति परिषद के गठन की ज़िम्मेदारी सौंपी। इस्लामी क्रांति की सफलता तक शहीद मुतहरी सदैव एक निष्ठावान, सहानुभूति रखने वाले एवं सक्षम सलाहकार के रूप में इमाम ख़ुमैनी की सेवा में रहे। क्रांति की सफलता के बाद, आशा थी कि शहीद मुतहरी क्रांति के जारी रहने के मार्ग में आने वाली कठिनाईयों के निवारण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेंगे, किन्तु शत्रु कि जो इस दूरदर्शी राजनीतिज्ञ एवं विचारक हस्ती के महत्व को भली भांति जानता था उसने अपने मोहरों द्वारा उनको शहीद कर दिया। इस दक्ष विचारक को पहली मई सन् 1979 को रात के अंधेरे में ऐसी स्थिति में कि जब वे एक राजनीतिक एवं वैचारिक बैठक से बाहर निकल रहे थे शहीद कर दिया गया। यह जघन्य अपराध फ़ुरक़ान नामक चरमपंथी गुट के एक सदस्य ने अंजाम दिया कि जिसके ख़तरे के बारे में शहीद मुतहरी पहले ही चेतावनी दे चुके थे। इस नृशंस घटना के बाद इमाम ख़ुमैनी ने शहीद मुतहरी की प्रशंसा करते हुए उन्हें अपने जिगर का टुकड़ा बताया था।

ईरान ने सय्याद-2 मिज़ाइल का उत्पादन शुरू कर दियाईरान ने स्वदेशी मिज़ाइल सय्याद-2 की उत्पादन इकाई का उद्घाटन कर दिया है।

ईरान के रक्षा मंत्री ब्रिगेडियर जनरल हुसैन दहक़ान ने शनिवार को बताया कि मिज़ाइल को हवाई हमलों का मुक़ाबला करने के लिए डिज़ाइन एवं निर्मित किया गया है।

रक्षा मंत्री के अनुसरा, मिज़ाइल में ठोस ईंधन का प्रयोग होता है, यह संकर नेविगेशन प्रणाली से सुसज्जित है और इसमें उच्च संचालन क्षमता है।

जनरल हुसैन दहक़ान के अनुसार, इसे स्वदेशी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के आधार पर निर्मित किया गआ है, सय्याद-2 एक मध्य दूरी तक मार करने वाला मिज़ाइल है।

दहक़ान ने उल्लेख किया कि यह मिज़ाइल, हेलीकाप्टरों, ड्रोन विमानों और तेज़ रफ़्तार से उड़ने वाले लक्ष्यों को भेदने में सक्षम है।