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ईरान से बातचीत, अमरीका के हित में
युद्ध विरोधी संगठन बी रिसल्ज़ ट्रेब्यूनल के एक सदस्य नें कहा है कि ईरान
से बातचीत अमरीकी हित में है। ड्रेक ऐडरियांसन्ज़ नें प्रेस टीवी से बातचीत
में कहा है कि अमरीका की सरकार को चाहिये कि वह मध्यपूर्व में युद्ध की आग
भड़काने के स्थान पर ईरान से बातचीत के बारे में सोचे। उन्होंने काँग्रेस
के कुछ सदस्यों की कट्टरपंथता और विरोधी गतिविधियों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा कि अमरीका को इन गतिविधियों के सामने झुककर देश के हित को ख़तरे में नहीं डालना चाहिये। इस युद्ध विरोधी लीडर नें कहा कि अमरीका की नीति बनाने वाले विभागों और विदेश मंत्रालय पर ज़ायोनी लाबी का वर्चस्व है जो मुख्य
रूप से ईरान के ख़िलाफ़ सक्रिय हैं।
पैग़म्बरे इस्लाम का स्वर्गवास
पैग़म्बरे इस्लाम का व्यक्तित्व सृष्टि की महानताओं और परिपूर्णताओं का चरम बिंदु है। महानता के उन पहलुओं की दृष्टि से भी जो मनुष्यों के विवेक की पहुंच के भीतर हैं जैसे सूझबूझ, बुद्धि, तत्वज्ञान, उदारता, कृपा, दया, क्षमाशीलता आदि और उन पहलुओं की दृष्ट से भी मानव बुद्धि की पहुंच से ऊपर हैं। अर्थात वह आयाम जो पैग़म्बरे इस्लाम को ईश्वर की महान विशेषताओं के प्रतीक के रूप में पेश करते हैं या ईश्वर से उनके सामिप्य के महान स्थान को उद्धरित करते हैं। इन आयामों को बस हम महानता और परिपूर्णता का नाम देते हैं और इनके बारे में बस इतना ही जानते हैं कि यह बहुत महान चीज़ें हैं। इनकी विषयवस्तु का हमें ज्ञान नहीं है। इन तथ्यों का बोध केवल ईश्वर के विशेष बंदों को ही होता है। यह तो पैग़म्बरे इस्लाम का महान व्यक्तित्व है। दूसरी ओर उनका लाया हुआ वह महान संदेश है जो मानव कल्याण तथा मानव उत्थान के लिए सबसे महान और सबसे भरोसेमंद मार्ग प श करता है। यह कहना सही होगा कि मानवता आज तक इस संदेश के सभी आयामों को पूर्ण रूप से अपने जीवन में लागू नहीं कर सकी है किंतु इसमें कोई संदेह नहीं है कि मानवता एक न एक दिन उस ऊंचाई तक आवश्य पहुंचेगी जब यह सारे आयाम उसके जीवन में रच बस जाएंगे। इस विचार का कारण यह है कि मानव विवेक दिन प्रतिदन नई चोटियां सर कर रहा है अतः यह सोचना बिल्कुल दुरुस्त है कि एक दिन मनुष्य सूझबूझ और ज्ञान के उस महान स्थान पर पहुंच जाएगा जहां इस्लाम मानव जीवन के हर भाग को अपने नियमों से सुशोभित कर चुका होगा।
पैग़म्बरे इस्लाम के एकेश्वरवाद के संदेश की सत्यता, जीवन के लिए इस्लाम का पाठ और मानव कल्याण एवं सौभाग्य के लिए इस्लाम द्वारा बयान किए गए स्वर्णिम सिद्धांत सब मिलकर मनुष्य को उस स्थान पर पहुंचा देंगे जहां उसे उसका खोया हुआ गंतव्य मिल जाएगा और अपने वांछित मार्ग पर पहुंच कर उत्थान की यात्रा पर चल पड़ेगा। हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण और अनिवार्य बात यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व के बारे में अधिक से अधिक शोध करें, उसका विशलेषण करें।
इस समय इस्लामी जगत की सबसे बड़ी समस्या सांप्रदायिकता और आपसी मतभेद है। एसे में पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व को एकता व समन्वय का केन्द्रीय बिंदु और ध्रुव बनाया जा सकता है जिन पर समस्त मुसलमानों और न्यायप्रेमी लोगों की गहरी आस्था और गहरा ईमान है। मुसलमानों के पास पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व से अधिक उज्जवल बिंदु नहीं है जिस पर सारे मुसलमानों का विश्वास और आस्था है और जिसको आधार बनाकर सबको एक प्लेटफ़ार्म पर एकत्र किया जा सकता हो और जिससे समस्त मुसलमानों और न्यायप्रेमी लोगों को हार्दिक संबंध और आत्मिक आस्था हो।
यह कोई संयोग की बात नहीं है जो आज हम देख रहे हैं कि इधर कुछ वर्षों से कुछ तत्वों ने पैग़म्बरे इस्लाम के संबंध में अनादरपूर्ण टिप्पणियां और हरकतें आरंभ कर दी हैं जैसा मध्युगीन शताब्दियों में होता था। मध्ययुगीन शताब्दियों में भी ईसाई पादरियों ने अपने भाषणों और लेखों में तथा तथाकथित कलाकृतियों में पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व को निशाना बनाया था। बीती शताब्दी में भी हमने एक बार फिर देखा कि पश्चिम के कुछ लेखकों ने पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व को अपनी ओछी हरकतों का निशाना बनाया है। कई साल गुज़र जाने के बाद हालिया वर्षों में हम फिर देख रहे हैं कि मीडिया और तथाकथित सांस्कृतिक लिटरेचर के नाम पर पैग़म्बरे इस्लाम के अनादर की कुचेष्टा की गई है।
यह सब कुछ सोची समझी साज़िश के अंतर्गत हो रहा है क्योंकि उन्होंने इस तथ्य को भांप लिया है कि मुसलमान इसी पवित्र व्यक्तित्व पर समन्वित और एकजुट हो सकते हैं इस लिए कि मुसलमानों को उनसे प्रेम और अथाम स्नेह है अतः उन्होंने इसी ध्रुव को हमले का निशाना बनाया है। अतः इस समय बुद्धिजीवियों, धर्मगुरुओं, लेखकों और कवियों सबकी ज़िम्मेदारी है कि उनसे जिनता भी हो सकता है पैग़म्बरे इस्लाम के व्यक्तित्व की महानता के आयामों को उजागर करें। मुसलमानों और ग़ैर मुस्लिमों को उनसे अवगत करवाएं। इससे मुसलमानों के बीच एकता व एकजुटता मज़बूत करने में भी मदद मिलेगी तथा इस्लाम की ओर लालायित युवा पीढ़ी का भी मार्गदर्शन हो जाएगा।
इमाम ख़ुमैनी की तत्वदर्शी दृष्टि के आधार पर इस्लामी क्रान्ति का एक महान प्रतिफल यह है कि पैग़म्बरे इस्लाम के शुभ जन्म के दिनो को एकता सप्ताह का नाम दे दिया। इस दृष्ट से भी इस मामले का महत्व कई गुना बढ़ चुका है कि बहुत से लोगों की बड़ी प्राचीन कामना था थी कि इस्लामी एकता के लिए काम किया जाए। कुछ लोग केवल बात की सीमा तक अपना नज़रिया पेश करते थे किंतु मनोकामना यह बहुत पुरानी थी। बहरहाल इस मनोकामना और इच्छा की पूर्ति के लिए व्यवहारिक क़दम उठाना आवश्यक था क्योंकि कोई भी मनोकामना व्यवहारिक प्रयास और संघर्ष के बग़ैर पूरी नहीं हो सकती। जब हमने इस दिशा में व्यवहारिक क़दम उठाने और वांछित गंतव्य तक पहुंचने के मार्ग के बारे में सोचा तो ध्रुव और केन्द्र के रूप में जो महान व्यक्तित्व हमारे सामने आया वह पैग़म्बरे इस्लाम का व्यक्तित्व था जिनकी केन्द्रीय स्थिति समस्त मुसलमानों की आस्था का स्रोत है। इस्लामी दुनिया में वह बिंदु जिस पर सब एकमत हैं और जो समस्त मुसलमानों की भावनाओं और अनुभूतियों का केन्द्र है वह पैग़म्बरे इस्लाम के अलावा कोई नहीं है। भावनाओं की मानव जीवन में बड़ी केन्द्रीय भूमिका होती है।
पैग़म्बरे इस्लाम की भांति उनके परिजनों को भी सभी मुसलमान मानते और उनसे गहरा प्रेम करते हैं। अलबत्ता शीया समुदाय उन्हें इमाम अर्थात ईश्वर की ओर से नियुक्त मार्गदर्शक भी मानता है जबकि ग़ैर शीया मुसलमान उन्हें इमाम तो नहीं मानते किंतु पैग़म्बरे इस्लाम के परिजन होने के नाते उनसे श्रद्धा रखते हैं। उन्हें एसे महान इंसानों के रूप में देखते हैं जिन्हें इस्लाम धर्म के नियमों का सबसे अधिक ज्ञान है। अतः मुसलमानों को चाहिए कि पैग़म्बरे इस्लाम के साथ ही उनके परिजनों की शिक्षाओं का पालन करते हुए स्वयं को एक प्लेटफ़ार्म पर एकत्रित करें।
विश्व की महिलाएं और विभिन्न विकल्प
इस समय महिलाएं सुरक्षित जीवन की दृष्टि से अतीत की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं। इस समय महिलाएं आर्थिक क्षेत्रों में उन्हें उचित शिक्षा सुविधा प्राप्त है और अधिकांश महिलाओं को मतदान का अधिकार भी मिल गया है। वर्तमान समय में कार्यरत महिलाओं के प्रतिशत में वृद्धि हुई है। विभिन्न देशों के आर्थिक व सामाजिक विकास में उनकी भागीदारी बढ़ रही है।
वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने महिलाओं के सामाजिक विकास की प्रक्रिया की समीक्षा के लिए एक विशेष बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में निर्धनता, शिक्षा, प्रशिक्षण, स्वास्थ्य व हिंसा आदि जैसी महिलाओं की 12 प्रमुख समस्याओं की ओर संकेत किया गया। सरकारों ने इस बैठक में वचन दिया था कि वे व्यवहारिक नीतियों और उचित कार्यक्रमों द्वारा समाज में महिलाओं के विकास में सहायता प्रदान करेंगी तथा महिलाओं से संबंधित समस्याओं जैसे पारिवारिक हिंसा, बाल विवाह और निर्धनता आदि से अधिक गंभीरता के साथ निपटेंगी। इस समय महिलाओं की समस्या और उनकी भूमिका, चर्चाओं के ज्वलंत विषयों में परिवर्तित हो चुकी है। हालांकि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति में किसी सीमा तक बेहतरी आई है किंतु आंकड़े यह दर्शाते हैं कि बीसवीं शताब्दी महिलाओं के लिए विशेषकर विकासशील देशों में बहुत अच्छी नहीं रही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं को अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए अभी लंबी यात्रा पूरी करनी है। अब भी समान कार्यों के लिए महिलाओं का वेतन पुरुषों के वेतन का 50 या 80 प्रतिशत ही होता है। विश्व के 87 करोड़ 50 लाख निरक्षरों में दो तिहाई संख्या महिलाओं की है। युद्ध में विस्थापित होने वालों में 80 प्रतिशत बच्चे और महिलाएं हैं। अमरीका में हर दूसरे मिनट एक महिला से बलात्कार होता है।
स्पष्ट है कि हालिया दशकों में पश्चिम में महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ प्रयास किए गए हैं किंतु यह सिक्के का एक रुख़ है। वास्तविकता यह है कि पश्चिम में अब भी महिला को प्रयोग के सामान के रूप में देखा जाता है। पश्चिमी समाजों में अनियंत्रित स्वतंत्रता, महिलाओं की मानवीय प्रतिष्ठा व सम्मान के लिए एक गंभीर ख़तरा है। इसके साथ ही इन देशों में महिलाओं और पुरुषों के मध्य प्राकृतिक अंतरों की अनदेखी से भी महिलाओं के लिए एक प्रकार का मानसिक संकट उत्पन्न हुआ है। उदाहरण स्वरूप स्वीडन में जब एक कंपनी की एक महिला कर्मचारी अपना काम बदलने के लिए जब अपने मालिक से अपील करती है और उसका मालिक अत्यंत अचरज से कहता है कि पता नहीं एसा क्यों हुआ? मैं तो कभी भी अपने कर्मचारियों के मध्य चाहे वह महिला हो या पुरुष कोई अंतर नहीं समझता बल्कि इसके बारे में कोई विचार भी मेरे मन में नहीं आता तो महिला कर्मचारी उत्तर में कहती है कि इसी कारण कि कंपनी का मालिक और पुरुष कर्मचारियों में कोई अंतर नहीं करता बल्कि इस प्रकार का विचार ही नहीं रखता मैं अपना काम छोड़ना चाहती हूं।
महिला आंदोलन कि जिस पर संचार माध्यमों के लक्ष्यपूर्ण प्रचारों के कारण विश्व में अधिक ध्यान दिया जा रहा है वह स्वयं महिलाओं के वास्तविक स्थान व सम्मान की ओर ध्यान नहीं दे रहा है। महिला आंदोलनों के परिणाम में महिलाओं में श्रेष्ठता व आक्रामक भावनाओं का विकास, पुरुषों के साथ तनाव में वृद्धि, परिवारों का विघटन और अवैध संतानों की संख्या में बढ़ोत्तरी के अतिरिक्त कुछ और नहीं निकला। पश्चिम में इस प्रक्रिया के कटु अनुभव के कारण महिला आंदोलन को बुद्धिजीवियों की ओर से आलोचना का सामना है।
मुस्लिम समाजों में भी महिलाओं की समस्याएं आम चिंता का विषय हैं। अलबत्ता यह कहा जा सकता है कि हालिया दशकों में इस्लामी देशों में महिलाओं की स्थिति पर अधिक ध्यान दिया गया है किंतु महिलाओं के बारे में जिन सामाजिक अधिकारों की रक्षा पर बल दिया जाता है वह धार्मिक शिक्षाओं से अधिक मेल नहीं खाते। इस समय भी बहुत से इस्लामी देशों में महिलाएं राजनैतिक भागरीदारी, मतदान और व्यवसाय के अधिकार से वंचित हैं बल्कि दूसरे शब्दों में इस प्रकार के कुछ देशों में महिलाओं को किनारे रखा गया है और उन्हें सेविका या बच्चे पैदा करने वाली प्राणी के रूप में देखा जाता है।
अध्ययनों से पता चलता है कि महिलाओं से संबंधित संकट, समाजों में प्रचलित व्यवस्था, मान्यताओं और शैलियों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ है। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार महिलाओं के लिए झूठे आदर्श और विकल्प कि जो आज के समाजों में प्रचलित हैं, महिलाओं को लक्ष्यहीनता, आत्ममुग्धता तथा पुरुषों के साथ परिणामहीन प्रतिबद्धता की ओर ले जा रहे हैं और उनकी महान मानवीय व प्रशिक्षण संबंधी भूमिका की उपेक्षा कर रहे हैं। दूसरी ओर मनुष्य के भविष्य में प्रभावी आदर्शों की पहचान निश्चित रूप से महिलाओं के आंदोलन में एक प्रभावशाली कारक हो सकती है। सकारात्मक विकल्प महिलाओं को सम्मान व प्रतिष्ठा प्रदान करते हैं और सामाजिक स्तर पर उनके प्रयासों को लक्ष्यपूर्ण व प्रभावी बनाते हैं।
इस्लाम के उच्च विचार इस प्रकार के आदेशों को पहचनवा कर महिलाओं को चरमपंथ और उद्देश्यहीनता से बचाता है। इस्लाम महिलाओं को साधन के रूप में देखने को पसंद नहीं करता क्योंकि महिलाएं अत्यधिक दया व कृपा के कारण मानव समाज के प्रशिक्षण में निर्णायक भूमिका निभाती हैं। इसी के साथ महिलाओं की शारीरिक व मानसिक परिस्थितियां उन्हें नुक़सान पहुंचाने की संभावनाओं को बढ़ाती है। इन वास्तविकताओं के दृष्टिगत महिलाओं की मनोवृत्ति व विशेषताओं पर ध्यान देने से उनका व्यक्तित्व संतुलित आधार पर स्थापित होता है और इससे उनके विकास की भूमिका बनती है।
इस्लाम अपनी शिक्षाओं में महिलाओं के स्थान को पुरुषों के समान समझता है और चूंकि इस्लाम वास्तविकता पर दृष्टि रखने वाला धर्म है। इसलिए वह महिलाओं की प्राकृतिक विशेषताओं को सभी चरणों में दृष्टिगत रखता है।
पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की घोषणा के आरंभ में अस्मा नामक एक महिला पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी के निकट आई और उसने उनसे पूछा कि क्या क़ुरआन में महिलाओं के बारे में कोई आयत है? पैग़म्बरे इस्लाम की पत्नी ने कहा नहीं। अस्मा पैग़म्बरे इस्लाम के पास गईं और कहा कि हे पैग़म्बर! महिलाओं का बड़ा नुक़सान हुआ है क्योंकि क़ुरआन में पुरुषों की भांति महिलाओं के लिए किसी विशेषता का उल्लेख नहीं किया गया है। इसी मध्य सूरए अहज़ाब की आयत नंबर 35 उतरी। क़ुरआन की इस आयत में महिलाओं के बारे में इस प्रकार कहा गया हैः मुस्लिम पुरुष और मुस्लिम महिलाएं, ईरान वाले पुरुष और ईमान वाली महिलाएं, ईश्वर के आदेशों का पालन करने वाले पुरुष और ईश्वर के आदेशों का पालन करने वाली महिलाएं, सच बोलने वाले पुरुष और सच बोलने वाली महिलाएं, संयमी पुरुष और संयमी महिलाएं, ध्यान रखने वाले पुरुष और ध्यान रखने वाली महिलाएं, पवित्र चरित्र वाले पुरुष तथा पवित्र चरित्र वाली महिलाएं ईश्वर को अत्यधिक याद करने वाले पुरुष और ईश्वर को अत्यधिक याद करने वाली महिलाएं ईश्वर ने इन सब के लिए क्षमा व बड़ा पुरस्कार है।
इस आयत में कह बताया गया है कि सामूहिक रूप से महिलाएं, पुरुषों की ही भांति एक रचनाकार और दायित्व स्वीकार करने वाले अस्तित्व की स्वामी हैं जिन्हें परिपूर्णता के मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए और अपनी योग्यताओं तथा क्षमताओं के अनुसार विभिन्न व्यक्तिगत और सामाजिक क्षेत्रों में भूमिका निभानी चाहिए। इस समय महिलाओं के संबंध में मौजूद मूल चुनौतियों के दृष्टिगत महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं को कौन सा मार्ग अपनाना चाहिए ताकि उनकी स्थिति पूर्ण रूप से परिवर्तित हो जाए। विशेषज्ञों का मानना है कि महिलाओं की समस्याओं के संबंध में तीनों गुटों का क्रियाकलाप अत्यंत लाभदायक और प्रभावशाली होगा।
संसार के बुद्धिजीवियों और विचारकों से आशा की जाती है कि वे वर्तमान संसार तथा महिलाओं की मानवीय क्षमताओं में आने वाले परिवर्तनों के दृष्टिगत क़ानूनों पर पुनरविचार करेंगे। दूसरा गुट उन शासकों और अधिकारियों का है जिन्हें अपने दीर्घकालीन कार्यक्रमों में महिलाओं के सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और ज्ञान संबंधी प्रगति तथा उत्थान का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए। तीसरा गुट स्वयं महिलाओं का है कि जिन्हें ज्ञान व विज्ञान के संबंध में प्रगति करके अपनी योग्यताओं और क्षमताओं में वृद्धि करनी चाहिए।
पैग़म्बरे इस्लाम (स) के ज़र्रीन अक़वाल
लिबास के आदाब और आरास्तगी ए लिबास की फ़ज़ीलत
अकसर मोतबर हदीसों से साबित है कि अपने मुनासिबे हाल नफ़ीस और उम्दा लिबास, जो हलाल कमाई से मिला हो पहनना सुन्नते पैग़म्बर (स) और ख़ुदा की ख़ुशनूदी हासिल करने का सबब है और अगर तरीक़ ए हलाल से मयस्सर न हो तो जो मिल जाये उस पर क़नाअत कर ले। यह न हो कि तरह तरह के लिबास हासिल करने की फ़िक्र इबादते ख़ुदा में हरज पैदा करने लगे अगर हक़ तआला किसी की रोज़ी में इज़ाफ़ा करे तो मुनासिब है कि उसके मुताबिक़ खाये, पहने, ख़र्च करे और बरादराने ईमानी के साथ मेहरबानी करे और जिस की रोज़ी तंग हो उसे लाज़िम है कि क़नाअत करे और अपने आप को हराम और वह चीज़ें जिन के जायज़ होने का यक़ीन नही है उन से परहेज़ करे।
मोतबर हदीस में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से नक़्ल है कि ख़ुदा वंदे आलम अपने किसी बंदे को नेमत अता फ़रमाए और उस नेमत का असर उस पर ज़ाहिर हो तो उस को ख़ुदा का दोस्त कहेगें और उस का हिसाब अपने परवरदिगार का शुक्र अदा करने वालों में होगा और अगर उस पर कोई असर ज़ाहिर न हो तो उसे दुश्मने ख़ुदा कहेगें और उस की हिसाब क़ुफ़राने नेमत करने वालों में होगा।
दूसरी हदीस में आप से नक़्ल किया गया है कि जब अल्लाह तआला किसी बंदे को नेमत अता फ़रमाए तो वह इस बात को दोस्त रखता है कि उसे नेमत का असर उस बंदे पर ज़ाहिर हो और वह (अल्लाह) देखे।
हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) से नक़्ल है कि मोमिन के लिये ज़रूरी है कि वह अपने बरादरानी ईमानी के लिये ऐसी ही ज़ीनत करे जैसी उस बैगाने के लिये करता है जो चाहता हो कि उस शख़्स को उम्दा तरीन लिबास में अच्छी शक्ल या सरापे में देखे। बसनदे मोतबर साबित है कि हज़रते अली बिन मूसा रेज़ा (अ) गर्मी के मौसम में बोरिये पर बैठा करते थे और जाड़े में टाट पर और जब घर में होते तो मोटे झोटे कपड़े पहना करते थे मगर जब बाहर जाते तो अल्लाह की नेमत के इज़हार के लिये ज़ीनत फ़रमाते थे यानी अच्छा लिबास पहनते थे।
हज़रत इमाम सादिक़ (अ) से नक़्ल है कि हक़ तआला ज़ीनत और नेमत के ज़ाहिर करने को दोस्त रखता है और ज़ीनत के तर्क करने और बदहाली के इज़हार को दुश्मन और इस बात को पसंद करता है कि अपने नेमत का असर अपने बंदे इस तरह देखे कि वह नफ़ीस (अच्छी) पोशाक पहने, ख़ुशबू लगाये, मकान को आरास्ता रखे, घर का सेहन कूड़े करकट से साफ़ रखे और सूरज डूबने से पहले चिराग़ रौशन कर दे कि इससे पैसों की कमी मिटती है और रोज़ी बढ़ती है।
हज़रते अमीरुल मोमिनीन (अ) से मंक़ूल है कि हक़ तआला ने एक ऐसी गिरोह भी पैदा किया है जिन पर अपनी ख़ास शफ़क़त (मेहरबानी) की वजह से रोज़ी तंग कर दी है और दुनिया की मुहब्बत उन के दिलों से उठा ली है वह लोग उस आख़िरत की तरफ़ जिस की तरफ़ ख़ुदा ने उन को बुलाया है, मुतवज्जे हैं और पैसों की कमी और दुनिया की मकरुह बातों पर सब्र करते हैं और न मिटने वाली नेमत अल्लाह ने उन के लिये तैयार की है उसका इश्तेयाक़ रखते हैं उन्होने अपनी जान ख़ुदा की मरज़ी हासिल करने के लिये दे डाली है उन का अंजाम शहादत है जब वह आलमे आख़िरत में पहुचेगें तो हक़ तआला उन से ख़ुश होगा और जब तक इस आलम में हैं जानते हैं कि एक दिन सब को मौत आना है इस लिये सिर्फ़ आख़िरत के लिये इंतेज़ाम करते रहते हैं, सोना चांदी जमा नही करते, मोटा झोटा कपड़ा पहनते हैं, थोड़ा खाने पर क़नाआत करते हैं और जा कुछ बचता है वह ख़ुदा की राह में दे डालते हैं कि यह अमल उन के लिये आख़िरत में काम आये, वह नेक लोगों के साथ ख़ुदा के लिये दोस्ती रखते हैं और बुरे लोगों के साथ ख़ुदा की मुहब्बत में दुश्मनी रखते हैं वह हिदायत के रास्ते के चिराग़ और आख़िरत में मिलने वाली नेमतों से मालामाल हैं।
युसुफ़ बिन इब्राहीम से रिवायत है कि मैं हज़रत अबी अब्दिल्लाह (अ) की ख़िदमत में जाम ए ख़ज़ पहन कर गया और अर्ज़ की कि हज़रत जामा ए ख़ज़ के लिये क्या इरशाद फ़रमाते हैं? हज़रत ने फ़रमाया कोई हरज नही है क्यों कि जिस वक़्त हज़रते इमाम हुसैन (अ) शहीद हुए जाम ए ख़ज़ ही पहने हुए थे और जिस वक्त जनाबे अमीर (अ) ने हज़रत अब्दुल्लाह बिन अब्बास को ख़वारिजे नहरवान से गुफ़्तगू के भेजा तो वह उम्दा से उम्दा पोशाक पहने हुए थे और आला दरजे की खुशबू से मुअतत्तर थे और अच्छे से अच्छे घोड़े पर सवार थे जब ख़वारिज के बराबर पहुचे तो उन्होने कहा कि तुम तो बहुत नेक आदमी हो फिर यह ज़ालिमों का सा लिबास क्यों पहने हो? और ऐसे घोड़े पर क्यों सवार हो? आप ने यह आयत पढ़ी कुल मन हर्रमा ज़ीनतल लाहिल लती अखरज ले इबादे वत तय्यबाते मिनर रिज़्क। (कह दो कि अल्लाह ने हराम की है वह ज़ीनत जो उस की इताअत से रोके औप पाक है वह रिज़्क़ जो अल्लाह ने अपने बंदों के लिये ज़मीन से पैदा किया है।) आँ हज़रत (स) ने इरशाद फ़रमाया है कि उम्दा कपड़ा पहनो और ज़ीनत करो क्यों कि यह अल्लाह को पसंद है और वह ज़ेबाइश (सजावट) को दोस्त रखता है मगर यह ज़रुरी है कि वह हलाल की वजह से हो।
मोतबर हदीस में वारिद हुआ है कि सुफ़याने सूरी जो सूफ़ी शेखों में से है मस्जिदुल हराम में आया और जनाबे इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ) को देखा कि क़ीमती कपड़े पहुने हुए बैठे हैं तो अपने दोस्तों से कहने लगा वल्लाह मैं उन के पास जाकर इस लिबास के बारे में उन्हे सरज़निश (मना) करता हूँ यह कहता हुआ आगे बढ़ा और क़रीब पहुच कर बोला: ऐ फ़रज़ंदे रसूले ख़ुदा, ख़ुदा की क़सम न कभी प़ैग़म्बरे ख़ुदा (स) ने ऐसे कपड़े पहने और न आप के आबा व अजदाद (बाप-दादा) में से किसी ने, हज़रत ने फ़रमाया कि जनाबे रसूले ख़ुदा के ज़माने में लोग तंगदस्त थे यह ज़माना दौलतमंदी का है और नेक लोग ख़ुदा की नेमतों के सर्फ़ (ख़र्च) करने में ज़्यादा हक़दार हैं और उसके बाद वही आयत जिस का अभी ज़िक्र हो चुका है तिलावत फ़रमाई और इरशाद फ़रमाया कि जो अतिया ख़ुदा का है गो उस के सर्फ़ करने में सब से ज़्यादा हक़दार हम हैं मगर ऐ सूरी, यह लिबास जो तू देखता है मैं ने फ़क़त इज़्ज़ते दुनिया के लिये पहन रखा है फिर उस कपड़े का दामन उठा कर उसे दिखाया कि नीचे वैसे ही मोटे कपड़े थे और इरशाद फ़रमाया कि यह मोटे कपड़े मेरे नफ़्स के लिये हैं और यह नफ़ीस लिबास इज़्ज़ते ज़ाहिरी के लिये। उस के बाद हज़रत ने हाथ बढ़ा कर सुफ़ियाने सूरी का जुब्बा (लम्बा कुर्ता) खींच लिया वह उस पुरानी गुदड़ी के नीचे नफ़ीस लिबास पहने हुए था, आप ने फ़रमाया वाय हो तुझ पर ऐ सुफ़ियान, यह नीचे का लिबास तूने अपने नफ़्स को ख़ुश करने के लिये पहन रखा है और ऊपर की गुदड़ी लोगों को फ़रेब देने के लिये।
हदीसे मोतबर में अब्दुल्लाह बिन हिलाल स मंक़ूल है कि मैं ने जनाबे इमाम रेज़ा (अ) की ख़िदमत में हाज़िर हो कर अर्ज़ किया कि लोगों को वह लोग बहुत ही अच्छे मालूम होते हैं जो फीका सीठा तो खाना खायें. मोटा झोटा कपड़ा पहनें और टूटे फूटे हाल में बसर करें, हज़रत ने इरशाद फ़रमाया कि ऐ अब्दुल्लाह, क्या तू यह नही जानता कि जनाब युसुफ़ (अ) पैग़म्बर भी और पैग़म्बर ज़ादे भी। इस के बा वजूद दीबा की क़बाएं पहनते थे जिस में सोने के तार बुने होते थे, आले फ़िरऔन के दरबार में बैठते थे, लोगों के मुक़द्देमात तय करते थे मगर लोगों को उन के लिबास से कुछ ग़रज़ न थी। बस वह यह चाहते थे कि अदालत में इंसाफ़ करे। इस लिये कि इस अम्र का लोगों के मामले से लिहाज़ा होना चाहिये वह सच कहने वाले हों, जिस वक़्त वादा करें उसे पूरा करें और मामेलात में अदालत यानी इंसाफ़ करें बाक़ी ख़ुदा ने जो हलाल किया है उसे किसी पर हराम नही फ़रमाया है और हराम को चाहे वह थोड़ा हो या बहुत हलाल नही किया फिर हज़रत ने वही आयत जिस का ज़िक्र हो चुका है तिलावत फ़रमाई। बाक़ी हदीसें इस फ़स्ल के मुतअल्लिक़ हमने ऐनुल हयात में ज़िक्र की हैं।
दूसरा बाब
उन कपड़ों का बयान जिनका पहनना हराम है
मर्दों के लिये ख़ालिस रेशम के और ज़रतार (चमकीले तारों वाले) कपड़े पहनने हराम हैं और ऐहतियात इस में हैं कि टोपी और जेब वग़ैरह (यानी वह लिबास जो शर्मगाह छुपाने के लिये इस्तेमाल नही होता) भी हरीर (रेशमी) कपड़े का न हो और ऐहतियात यह चाहती है कि अजज़ा ए लिबास जैसे सन्जाफ़ (झालर, गोट) और मग़ज़ी (कोर पतली गोट) भी ख़ालिस रेशम की न हो और बेहतर यह है कि रेशम के साथ जो चीज़ मिली हुई हो वह मिस्ल कतान (एक क़िस्म का कपड़ा) या ऊन या सूत वग़ैरा के हो और उस की मिक़दार कम हो, यह भी ज़रुरी है कि मुर्दा जानवर की खाल का इस्तेमाल न हो चाहे उस की बग़ावत हो गई हो। यही उलमा में मशहूर है नीज़ उन हैवानात का पोस्त न होना चाहिये जिन पर तज़किया जारी नही होता जैसो कुत्ता वग़ैरह और जिन हैवानात का गोश्त हराम है मुनासिब है कि उन की खाल और बाल और ऊन और सींग और दांत वग़ैरह कुल अजज़ा (हिस्से) नमाज़ के वक़्त से इस्तेमाल न हों। समूर (लोमड़ी की तरह का एक जानवर जिस की खाल से लिबाल बनाया जाता है जिसे समूर कहते हैं।), संजाब (एक तरह का सहराई जानवर है जिस की खाल से कपड़ा बनाते हैं।) और ख़ज़ (एक क़िस्म का दरियाई चौपाया है।) के बारे में इख़्तिलाफ़ है और एहतियात इस में हैं कि इज्तेनाब करे गो बिना बर अज़हर संजाब व ख़ज़ में नमाज़ जायज़ है। बेहतर यह है कि जो कपड़े हराम जानवरों के ऊन के कपड़ों के ऊपर या नीचे भी पहने हों उन में भी नमाज़ न पढ़े कि शायद उन में बाल चिपक कर रहे गये हों।
नाबालिग़ बच्चे के वली यानी मालिक के लिये मुनासिब है कि उन को तला व हरीर पहनने से मना करे क्यों कि बसनद मोतबर जनाबे रिसालत मआब (स) से मंक़ूल है कि आप ने हज़रत अली से फ़रमाया ऐ अली, सोने की अंगूठी हाथ में न पहना करो कि वह बहिश्त में तुम्हारी ज़ीनत होगी और जाम ए हरीर न पहनना कि वह बहिश्त में तुम्हारा लिबार होगा।
दूसरी हदीस में फ़रमाया कि जाम ए हरीर न पहनो किहक़ तआला क़यामत के दिन उस के सबब जिल्द (खाल) को आतिशे जहन्नम में जलायेगा।
लोगों ने हजरत इमाम जाफरे सादिक़ (अ) से दरयाफ़्त किया कि क्या यह जायज़ है कि हम अपने अहल व अयाल (बीवी बच्चों) को सोना पहनायें? इरशाद फ़रमाया हां। अपनी औरतों और लौडियों को पहनाओ मगर नाबालिग़ लड़कों को न पहलाओ।
दूसरी हदीस में वारिद है कि आँ हज़रत ने फ़रमाया मेरे वालिद हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) अपने बच्चों और औरतों को सोने चांदी के ज़ेवर पहनाते थे और उस में कोई हरज नही है।
मुमकिन है किइस हदीस में बच्चों से मुराद बेटियां हों और यह भी हो सकता है कि नाबालिग़ लड़के भी इसमें शामिल हों मगर ऐहतेयाते यह है कि लड़कों को सोने को ज़ेवर न पहनायें।
तीसरा बाब
रूई, ऊन और कतान के कपड़े पहनने के बयान में
सब कपड़ो में अच्छा कपड़ा सूती है मगर ऊनी कपड़े को बारह महीने पहनना और अपनी आदत बना लेना मकरूह है। हाँ कभी कभी न होने के सबब से या सर्दी दूर करने की ग़रज़ से पहनना बुरा नही है चुनांचे बसनदे मोतबर हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) से मंक़ूल है कि रूई का कपड़ा पहनो कि वह जनाबे रसूले ख़ुदा और हम अहले बैत की पोशिश हैं और हज़रत रसूले ख़ुदा (स) बग़ैर किसी ज़रुरत के ऊनी कपड़ा नही पहनते थे।
दूसरी हदीस में हज़रते इमाम सादिक़ (अ) से मंक़ूल है कि ऊनी कपड़ा बे ज़रुरत नही पहनना चाहिये।
दूसरी रिवायत में हुसैन बिन कसीर से मंक़ूल है वह कहता है कि मैंने हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) को देखा कि मोटा कपड़ा पहने हुए हैं और उस के ऊपर ऊनी कपड़ा, मैंने अर्ज़ की क़ुरबान हो जाऊँ क्या आप लोग पशमीने का कपड़ा पहनना मकरुह जानते थे? हज़रत ने इरशाद फ़रमाया कि मेरे वारिद और इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ) ऊनी कपड़ा पहना करते थे मगर जब नमाज़ के लिये खडे होते तो मोटा सूती कपड़ा पहने होते थे और हम भी ऐसा ही करते हैं।
मंक़ूल है कि हज़रत रसूले ख़ुदा (स) ने फ़रमाया पाँच चीज़ें मरत वक़्त तक मैं तर्क नही करूंगा, अव्वल ज़मीन पर बैठ कर ग़ुलामों के साथ खाना खाना, दूसरा क़ातिर पर बेझूल के सवार होना, तीसरे बकरी को अपने हाथ से दुहना, चौछे बच्चों को सलाम करना, पांचवें ऊनी कपड़े पहनना।
इन सब हदीसों का ख़ुलासा और जमा करने का तरीक़ा यह है कि अगर मोमिनीन शाल और पशमीने को अपना शिआर (आदत) क़रार दें और इस कपड़े के पहनने का सबब अगर यह हो कि वह औरों से मुमताज़ रहें तो यह क़ाबिले मज़म्मत है। हां, अगर क़नाअत या ग़रीबी की वजह से या सर्दी दूर करने के लिये ऊनी कपड़ा पहनें तो कोई हरज नही है, और मेरे इस क़ौल की ताईद उस हदीस से होती है जो हज़रते अबूज़रे ग़फ़्फ़ारी से मंक़ूल है कि हज़रते रसूले ख़ुदा (स) ने फ़रमाया कि आख़िरे ज़माना में एक गिरोह ऐसा पैदा होगा जो जाड़े और गर्मी में पशमीना ही पहन करेगें और यह गुमान करेगें कि इस कपड़ों की वजह से हमें औरों पर बरतरी और रूतबा हासिल हो मगर इस गिरोह पर आसमान और ज़मीन के फ़रिश्ते लानत करेगें।
हज़रत अमीरुल मोमिनीन (अ) से मंक़ूल है कि जाम ए कतान पैग़म्बरों की पोशिश है।
हज़रते इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ) स मंक़ूल है कि कतान पहनने से बदन फ़रबा होता है।
दूसरी हदीस में आया है कि हज़रत अली बिन हुसैन (अ) जाम ए ख़ज़ हजार या पांच सौ दिरहम का ख़रीदते थे और जाड़े में उसे पहनते थे जब जाड़ा ख़त्म हो जाता था तो उसे बेच कर क़ीमत को सदक़े में निकाल देते थे।
चौथा बाब
उन रंगों का बयान जिनका कपड़ो में होना मसनून या मकरुह है
कपड़ों का सबसे बेहतर रंग सफ़ेद है फिर ज़र्द (पीला) फिर सब्ज़ (हरा) फिर हल्का सुर्ख़ और नीला और अदसी (ऊदा) गहरा सुर्ख़ कपड़ा पहनना मकरुह है ख़ास कर नमाज़ में और स्याह रंग का कपड़ा पहनना हर हाल में मकरुह है सिवाए अम्मामे और मोज़े और अबा में मगर अम्मामा और अबा भी अगर स्याह न हो तो बेहतर है।
चंद मोतबर हदीसों में हज़रत रसूले ख़ुदा (स) से मंक़ूल है कि सफ़ेद कपड़ा पहनो कि यह रंग सबसे उम्दा और पाक़ीज़ा है और अपने मुर्दों को भी इसी रंग का कफ़न दो।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से रिवायत की गई है कि जनाबे अमीरुल मोमिनीन (अ) अकसर अवक़ात सफ़ेद कपड़ा पहना करते थे।
हफ़्ज़ मुवज़्ज़िन ने रिवायत की है कि मैं ने जनाबे इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) को देखा कि वह क़ब्र और मिम्बरे रसूल ख़ुदा (स) के दरमियान नमाज़ पढ़ रहे थे और जर्द कपड़े मानिन्दे बही, के रंग के पहने हुए थे।
हदीसे हसन में ज़ोरारा से मंक़ूल है कि मैंने हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) को इस सूरत में मकान से निकलते देखा कि उन का जुब्बा भी ज़र्द ख़ज़ का था और अम्मामा और रिदा भी जर्द रंग की थी।
हदीसे मोतबर में हकम बिन अतबा सं मंक़ूल है कि जनाबे इमामे मुहम्मद बाक़िर (अ) की खिदमत में गया तो देखा कि गहरा सुर्ख़ कपड़ा पहने हुए हैं जो क़ुसुम (मसूर की रंगत वाला) के रंग से रंगा हुआ है। हज़रत ने फ़रमाया ऐ हकम, तू इस कपड़े के बारे में क्या कहता है? अर्ज़ किया या हज़रत जो चीज़ आप पहने हैं उसमें मैं क्या अर्ज़ कर सकता हूँ? हाँ हममें जो रंगीले जवान ऐसे कपड़े पहनते हैं हम उन को ज़रुर मतऊन (ताना देना) करते हैं, हज़रत ने इरशाद फ़रमाया कि ख़ुदा की ज़ीनत को किस ने हराम किया है, उस के बाद फ़रमायायह सुर्ख़ कपड़ा मैंने इस लिये पहना है कि मैं अभी अभी दामाद बना हूँ। (यानी शादी हुई है।)
हदीसे हसन में हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ) से मंक़ूल है कि गहरा सुर्ख़ कपड़ा पहनना सिवाए नौशा (दुल्हा) के औरों के लिये मकरुह है।
हदीसे मोतबर में युनुस से मंक़ूल है कि मैंने जनाबे इमाम रिज़ा (अ) की नीली चादर ओढ़े हुए देखा।
हसन बिन ज़ियाद से मंक़ूल है कि मैंने हज़रत अबू जाफ़र (अ) को गुलाबी कपड़े पहने हुए देखा।
मुहम्मद बिन अली से रिवायत है कि मैने हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) को अदसी रंग के कपड़े पहने देखा।
अबुल अला से मंक़ूल है कि मैंने हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) को सब्ज़ बरदे यमानी (यमन की बनी हुई हरे रंग की रिदा या शाल) ओढ़े हुए देखा।
हजरत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से मंक़ूल है कि जिबरईल माहे मुबारके रमज़ान के आख़िरी दिन नमाज़े अस्र के बाद रसूले ख़ुदा (स) पर नाज़िल हुए और जब आसमान पर वापस गये तो आं हज़रत (स) ने जनाबे फ़ातेमा ज़हरा (स) को तलब किया और फ़रमाया कि अपने शौहर अली को बुला लाओ। जब हज़रत अमीर (अ) आप की ख़िदमत में हाज़िर हुए तो आप ने उन को अपने दाहिने पहलू में बैठाया और उन का हाथ पकड़ कर अपने दामन पर रखा फिर हज़रत ज़हरा (अ) को बायें पहलू में बिठाया और उन का हाथ पकड़ कर अपने दामन पर रख फिर फ़रमाया क्या तुम वह ख़बर सुनना चाहते हो जो जिबरईले अमीन (अ) ने मुझे पहुचाई है अर्ज़ किया या रसूल्लाह बेशक। इरशाद फ़रमाया कि जिबरईल ने यह खबर दी है कि मैं क़यामत के रोज़ अर्श के दाहिने जानिब हूँगा और ख़ुदा ए तआला मुझ को दो लिबास पहनायेगा एक सब्ज़ दूसरा गुलाबी और तुम ऐ अली, मेरी दायें जानिब होगे और दो लिबास इसी क़िस्म के तुम्हे पहनाये जायेगें, रावी कहता है कि मैं अर्ज़ किया कि लोग गुलाबी रंग को मकरुह जानते हैं। हज़रत ने इरशाद फ़रमाया कि अल्लाह तआला ने हज़रते ईसा (अ) को आसमान पर बुलाया तो उसी रंग का लिबास पहनाया था।
बसनदे मोतबर जनाबे अमीर (अ) से मंक़ूल है कि स्याह लिबास न पहनो कि वह लिबास फ़िरऔन का है।
दूसरी मोतबर हदीस में मंक़ूल है कि किसी शख़्स ने हज़रते सादिक़ (अ) से दरयाफ़्त किया कि क्या मैं काली टोपी पहन कर नमाज़ पढ़ूँ? आप ने फ़रमाया काली टोपी नें नमाज़ न पढ़ो कि वह अहले जहन्नम का लिबास है।
हज़रत रसूले ख़ुदा (स0) से मंक़ूल है कि काला रंग सिवाए तीन चीज़ों यानी मोज़ा, अम्मामा और अबा के और सब लिबासों में मकरुह है।
पाँचवा बाब
कपड़े पहनने के आदाब
ज़्यादा नीचे कपड़े पहनना और आस्तीनें ज़्यादा लंबी रखना और कपड़े को ग़ुरुर की वजह से ज़मीन पर घसीटते चलना मकरूह ऐर क़ाबिले मज़म्मत है।
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ) से मंक़ूल है कि जनाबे अमीन (अ) बाज़ार तशरीफ़ ले गये और एक अशरफ़ी (सोने का सिक्का जिसका वज़्न एक तोला होता है।) में तीन कपड़े ख़रीदे पैराहन (लंबा क़ुर्ता) टख़नो तक, लुँगी आधी पिंडली तक और रिदा आगे सीने तकऔर पीछे कमर से बहुत नीचे थी ख़रीदी फिर हाथ आसमान कीतरफ़ उठाये और उस नेमत के बदले अल्लाह तआला की हम्द (तारीफ़) अदा करके दौलतसरा (घर) तशरीफ़ लाये।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने फ़रमाया है कि कपड़े वह हिस्सा जो ऐड़ी से गुज़र कर नीचे पहुचे आतिशे जहन्नम में है।
हज़रत इमाम मूसा काज़िम (अ) से मंक़ूल है कि हक़ तआला ने जो अपने पैग़म्बर (स) से यह फ़रमाया है कि व सयाबका फ़तह्हिर जिस की लफ़्ज़ी तरजुमा यह है कि अपने कपडों को पाक कर, हालांकि आं हज़रत (स) के कपड़े तो पाक व पाक़ीज़ा हा रहते थे लिहाज़ा अल्लाह का मतलब यह है कि अपने कपड़े ऊचे रखो कि वह निजासत से आलूदा न होने पाये।
दूसरी रिवायत में इसका यह मतलब भी बयान किया गया है कि अपने कपड़े उठा कर चलो ता कि वह ज़मीन पर न घिसें।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से मंक़ूल हैं कि जनाबे रसूले ख़ुदा (स) ने एक शख़्स को वसीयत फ़रमाई कि ख़बरदार, पैराहन और पाजामा बहुत नीचा न करना क्यों कि यह ग़ुरुर की निशानी है और अल्लाह तलाआ ग़ुरुर को पसंद नही करता है। यह रिवायत हसन है (यानी मुसतनद है।)
हदीसे मोतबर में मंक़ूल है कि हज़रते अमीर मोमिनीन (अ) जब कपड़े पहनते थे तो आस्तीनों को खींच खींच कर देखा करते थे और ऊंगलियों से जितनी बढ़ जाती थीं उतनी कतरवा डालते थे।
जनाबे रसूले ख़ुदा (सः) ने हज़रत अबूज़र से फ़रमाया कि जो शख़्स अपने कपड़े ग़ुरुर की वजह से ज़मीन पर घिसटता हुआ चलता है हक़ तआला उस की तरफ़ रहमत की नज़र न देखेगा। मर्द का पाजामा आधी पिंडली तक होना चाहिये और टख़ने तक भी जायज़ है और उससे ज़्यादा आतिशे जहन्नम में है। (इसका मतलब भी वही ग़ुरुर और घमंड है।)
छठा बाब
उस लिबास के पहनने का बयान जो औरतों और काफ़िरों के लिये मख़सूस है
मर्दों के लिये औरतों का मख़सूस लिबास जैसे मक़ना, महरम (अंगिया) बुरक़ा वग़ैरह पहनना हराम है इसी तरह औरतों के लिये मर्दों का मख़सूस लिबास पहनना हराम है जैसे टोपी, अम्मामा, क़बा वग़ैरह और काफ़िरों का मख़सूस लिबास जैसे जुन्नार या अंग्रेज़ी टोपियाँ वग़ैरह मर्द औरत किसी के लिये जायज़ नही है।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर (अ) से मंक़ूल है कि औरत के लिये मर्द की शबीह बनना जायज़ नही है क्यो कि जनाबे रसूले ख़ुदा (स) ने उन पर मर्दों पर जो औरतों की शबीह बने और उन औरतों पर जो मर्दों की शबीह बनें लानत की है।
हज़रत इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ) से रिवायत है कि ख़ुदा ए अज़्ज़ा व जल ने अपने पैग़म्बरों में से एक पैग़म्बर को वही भेजी कि मोमिनों से कह दो कि मेरे दुश्मनों के साथ खाना न खायें और मेरे दुश्मनों के से कपड़े न पहनें और मेरे दुश्मनों की रस्म व रिवाज को न बरतें वरनायह भी मेरे दुश्मनों के जैसे हो जायेगें।
सातवां बाब
अमामा बाँधने के आदाब
सर पर अम्मामा बाँधना सुन्नत है और तहतुल हनक बाँधना सुन्नत है और अम्मामे का एक रुख़ आगे की तरफ़ और दूसरा पीछे की तरफ़, मदीने के सादात के तर्ज़ पर डाल लेना सुन्नत है। शेख़े शहीद अलैहिर्रहमा ने फ़रमाया है कि खड़े हो कर अम्मामा बाँधना सुन्नत है।
जनाबे रसूले ख़ुदा सल्ललाहो अलैहे व आलिही वसल्लम से मंक़ूल है कि अम्मामा अरबों का ताज है जब वह अम्मामा छोड़ देगें तो ख़ुदा उन की अज़मत खो देगा।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से मंक़ूल हैं कि जो शख़्स अम्मामा सर पर बाँधे और तहतुल हनक न बाँधे और फिर ऐस दर्द में मुबतला हो जाये जिस की दवा मुम्किन न हो तो उस को चाहिये कि ख़ुद को मलामत करे।
हज़रत इमाम रेज़ा अलैहिस सलाम से मंक़ूल है कि जनाबे रसूले ख़ुदा (स) ने अम्मामा बाँधा और उस का एक सिरा आगे की तरफ़ डाला और दूसरा पीछे की तरफ़ और हज़रत जिबरईल ने भी ऐसा ही किया।
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस सलाम से मंक़ूल है कि बद्र के फ़रिश्तों के सर पर सफ़ेद अम्मामे थे और उन के पल्ले छुटे हुए थे।
हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से मंक़ूल है कि जनाबे रसूले ख़ुदा (स) जनाबे अमीरुल मोमिनीन अलैहिस सलाम के सरे मुबारक पर अपने दस्ते हक़ परस्त से अम्मामा बाँधा और एक सिरा अम्मामे का आगे की तरफ़ लटका दिया दूसरा कोई चार उंगल कम पीछे की तरफ़ फिर इरशाद फ़रमाया जाओ और आप चले गये फिर फ़रमाया आओं चुंनाचे अप हाज़िर ख़िदमत हुए और फ़रमाया वल्लाह, फ़रिश्तों के ताज इसी शक्ल के हैं।
फ़िक़ा ए रिज़वी में मज़कूर है कि जिस वक़्त अम्मामा सर पर बाँधे तो यह दुआ पढ़े, बिस्मिल्लाहि अल्ला हुम्मा अरफ़ा ज़िकरी व आला शानी व अइज़नी बे इज़्ज़तेका व अकरमनी बे करमेका बैना यदैक व बैना ख़ल्क़ेक़ा अल्ला हुम्मा तव्वजनी बेताजिल करामते वल इज़्ज़े वल क़ुबूले। (अल्लाह के नाम से शुरु करता हूँ या अल्लाह मेरा नाम बुलंद कर, मेरा रुतबा बढ़ा और तेरी इज़्ज़त का वास्ता मेरा इज़्ज़त में इज़ाफ़ा कर, और अपने करम से अपनी मख़्लूक़ में मेरा इकराम ज्यादा कर, या अल्लाह करामत व इज़्ज़त और क़बूलियत का ताज मुझे पहना।)
मकारिमे अख़लाक़ में किताबे निजात से नक़्ल किया है कि यह दुआ पढ़े, अल्ला हुम्मा सव्वमनी बे सीमा इल ईमाने व तव्वजनी बे ताजिल करामते व क़ल्लिदनी हबलुल इस्लामे वला तख़्ला रिबक़ताल ईमाने मिन उनक़ी। (या अल्लाह ईमान की निशानी से मेरी शिनाख़्त हो, और मुझे बज़ुर्गी का ताज इनायत किया जाये, तस्लीम व रेज़ा का क़लादा मेरी गर्दन में पड़ा रहे और रिश्त ए ईमान आख़िरी वक़्त तक मुन्क़ता न हो।)
और कहा है कि अम्मामा खड़े हो कर बाँधना चाहिये।
जनाबे रसूले ख़ुदा (स) के पास कई क़िस्म की टोपियाँ थी जो पहना करते थे।
उन लंबी लंबी टोपियों के बारे में जिन को हरतला कहते हैं यह वारिद है कि उन का पहनना यहूदियों का लिबास है और उलामा का क़ौल है कि मकरूह है।
बाज़ अहादीस से ज़ाहिर होता है कि टोपी के नीचे के किनारे को ऊपर की तरफ़ मोड़ लेना मकरुह है।
हज़रत रसूले ख़ुदा (स) से मंक़ूल है कि जिस ज़माने में मेरी उम्मत में तुर्की टोपियाँ पहनने का रिवाज ज़्यादा होगा ज़िना भी उन में ज़्यादा हो जायेगा। तुर्की टोपियों से ज़ाहिरन क़ादूक़ और बकताशी और उसी की जैसी टोपियाँ मुराद हैं।
लेबनान में राष्ट्रीय एकता पर ज़ोर
हिज़बुल्लाह के डिप्टी सिक्रेट्री जनरल नें लेबनान में राष्ट्रीय एकता पर बल दिया है। हिज़बुल्लाह के सिक्रेट्री जनरल शेख़ नईम क़ासिम नें कल दक्षिणी बैरूत में होने वाले धमाके की आलोचना करते हुए कहा कि ज़ाहिया में आतंकवादी कार्यवाही एक सिलसिला वार परिदृश्य है जिसका उपयुक्त जवाब बहुत जल्दी ही संयुक्त राष्ट्रीय सरकार का गठन है। शेख़ नईम क़ासिम नें कहा कि संयुक्त राष्ट्रीय सरकार के गठन से ही लेबनान को तबाह व बर्बाद होने से बचाया जा सकता है। इसी बीच लेबनान के अंतरिम प्रधानमंत्री नें भी कल के धमाके को एक साज़िश बताया और कहा कि इस बर्बरता के दोषी लोगों का उद्देस्य देश में सांप्रदायिक और आन्तरिक संकट पैदा करना है।
रूस ने इराक को १३ सैन्य हेलीकाप्टर दिये
रूस ने १३ सैनिक हेलीकाप्टर इराक के हवाले कर दिया। प्राप्त समाचारों के अनुसार रूस और इराक के बीच सैनिक समझौते के अनुसार रूस ने एम आई-२८, १३ सैनिक हेलीकाप्टरों को इराक के हवाले कर दिया। रूसी हेलीकाप्टरों की यह दूसरी खेप है जिसे चार जनवरी को इराक के हवाले किया गया। आशा है कि इराक इन हेलीकाप्टरों का प्रयोग अलअंबार प्रांत में आतंकवादियों से मुकाबले में करेगा। रूस-इराक सैनिक समझौते के अनुसार रूस इससे पहले एम आई-२८, १५ हेलीकाप्टरों को इराक के हवाले कर चुका है। सैन्य समझौते के अनुसार इराक, रूस से एम आई२८- और एम आई-३५ चालिस हेलीकाप्टरों की खरीदारी रूस से करेगा। वर्ष २०१२ में इराक के प्रधानमंत्री नूरी मालेकी की रूस यात्रा के दौरान इस समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे।
मुशर्रफ अदालत में नहीं पेश हो सकते। वकील
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ के एक वकील ने रविवार को कहा कि मुशर्रफ बीमारी के कारण सोमवार को देशद्रोह मामले की सुनवाई में पेश नहीं होंगे। याद रहे पाकिस्तान के सत्तर वर्षीय पूर्व राष्ट्रपति को गुरुवार के दिन इस्लामाबाद में देशद्रोह मामले की सुनवाई के लिए स्थापित विशेष अदालत जाते हुए अचानक रास्ते में दिल की तकलीफ के कारण रावलपिंडी के सैन्य अस्पताल ले जाया गया था। उन्होंने नवम्बर २००७ में पाकिस्तान में आपातकाल लागू करने और न्यायपालिका को हटाने पर मुशर्रफ इस समय एक विशेष अदालत में राजद्रोह के के मुकद्दमे का सामना कर रहे हैं किंतु मुशर्रफ़ के वकीलों का कहना है कि उन पर देशद्रोह के मुकदमे का मूल कारण राजनीतिक है। मुशर्रफ के एक वरिष्ठ वकील अहमद रजा कोसूरी ने कहा कि हम अदालत में मौखिक अनुरोध करेंगे कि अभी तक मुशर्रफ की स्थिति बेहतर नहीं हुई तो उन्हें पेशी से छूट दी जाए । पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह की अचानक बीमारी के कारण राजनीतिक पर्यवेक्षकों और मीडिया का मानना है कि मुशर्रफ को उपचार के लिए सऊदी अरब या संयुक्त अरब अमीरात भेजा जा सकता है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस तरह के कदम से सरकार और शक्तिशाली सेना के बीच संभावित टकराव से बचा जा सकता है।
गचीन खदान का निरीक्षण अगले तीन सप्ताहों के दौरान, सालेही
इस्लामी गणतंत्र ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के प्रमुख ने कहा है कि आईएईए के निरीक्षक दक्षिणी ईरान में स्थित गचीन खदान का निरीक्षण अगले दो तीन सप्ताहों में करने वाले हैं।
अली अकबर सालेही ने रविवार को तेहरान में कहा कि आईएईए के साथ ईरान का सहयोग जारी रहेगा।
उन्होंने इस बात का वर्णन करते हुए कि गचीन के निरीक्षण की तिथि का निर्धारण नहीं हुआ है कहा कि ईरान उन सभी ६ विषयों पर प्रतिबद्ध है जिसपर आईएईए के प्रमुख यूकिया अमानो के साथ सहमति हुई थी।
अराक के भारी पानी के परमाणु संयत्र और गचीन खदान का निरीक्षण उन्हीं छे विषयों में शामिल है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के प्रमुख ने अली अकबर सालेही ने बल दिया कि ईरान की परमाणु गतिविधियों के बारे में यूकिया अमानो की हालिया रिपोर्ट उनकी पहली वाली रिपोर्टों की तुलना में अपेक्षाकृत सकारात्मक थी।
मिस्र में झड़पें चिंताजनक
ईरान ने मिस्र में झड़पों पर चिंता व्यक्त की है।
विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता मरज़िया अफ़ख़म ने मिस्र में सुरक्षा बलों और प्रदर्शनकारियों के मध्य झड़पों पर चिंता व्यक्त की है। विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता ने मिस्र में हालिया झड़पों पर खेद प्रकट करते हुए कहा कि ईरान, मिस्र की हालिया घटनाओं पर नज़र रखे हुए है। मरज़िया अफ़ख़म ने स्पष्ट किया कि ईरान, मिस्र में समस्त पक्षों से धैर्य व संयम की अपील करता और शांति बनाने रखने का अह्वान करता है तथा तेहरान इस देश में मतभेद के समाधान के लिए राष्ट्रीय वार्ता के आयोजन का इच्छुक है।
विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि मिस्र में मतभेद को समाप्त करने का सबसे बेहतरीन विकल्प आपसी वार्ता है और मिस्री अधिकारियों को इसी विकल्प पर ध्यान देना चाहिए।
नूरी मालेकी ने अलअंबार प्रांत को पाक करने का संकल्प लिया
इराक़ी प्रधान मंत्री नूरी अलमालेकी ने देश के पश्चिमी प्रांत अलअंबार से सभी आतंकवादी गुटों का सफ़ाया करने का संकल्प दर्शाया जहां अलक़ाएदा के आतंकवादियों ने दो नगरों के कुछ हिस्सों पर नियंत्रण कर रखा है।
प्रेस टीवी के अनुसार इराक़ी प्रधान मंत्री ने शनिवार को कहा, “ हम पीछे नहीं हटेंगे यहां तक कि सभी आतंकवादियों का सफ़ाया कर दें और अंबार में जनता को सुरक्षा प्रदान कर दें।”
इराक़ी प्रधान मंत्री का यह बयान ऐसी स्थिति में आया है जब इराक़ी सुरक्षाबलों और अंबार प्रांत के सुन्नी क़बीले के लोग, अलक़ाएदा के मिलिटेंट्स से लड़ रहे हैं कि जिनका अंबार प्रांत के फ़ल्लूज़ा और रमादी नगरों के कुछ क्षेत्रों पर क़ब्ज़ा है।
फ़ल्लूजा और रमादी नगरों में सुरक्षा बलों और अलक़ाएदा के आतंकवादियों के बीच पिछले कुछ दिनों से घातक लड़ायी जारी है।
इस बीच एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार अंबार प्रांत के फ़ल्लूजा और रमादी नगरों में इराक़ी सुरक्षाबलों ने मिलिटेंट्स के क़ब्ज़े से क्षेत्रों को आज़ाद कराने के अभियान के दौरान अलक़ाएदा के 55 आतंकवादियों को मार गिराया
इराक़ी कमान्डर अली ग़ैज़ान मजीद ने शनिवार को कहा कि इराक़ी सैनिकों ने दो सुरक्षा अभियान के दौरान दर्जनों सशस्त्र लोगों को मार गिराया।
सूत्रों के अनुसार रमादी और फ़ल्लूजा में इन झणपों के दौरान इराक़ी सेना के 8 जवान हताहत हुए।
रमादी शहर के अलबू फ़रज इलाक़े में इराक़ी सेना के पहले अभियान में 25 मिलिटेंट्स मारे गए।
दूसरी ओर फ़ल्लूजा शहर के गर्मा इलाक़े के निकट इस्लामी स्टेट आफ़ इराक़ ऐन्ड लिवंट के बड़ी संख्या में मौजूद मिलिटेंट्स पर, हुए हमले में, 30 मिलिटेंट्स मारे गए।