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इस्लामी चेतना पर वरिष्ठ नेता का विचार
इस्लामी राष्ट्र की विशाल पूंजि, इस्लाम धर्म तथा मानवीय जीवन के लिए इस धर्म के व्यापक नियम, ठोस शिक्षाएं और स्पष्ट ज्ञान हैं। इस्लाम ने सृष्टि और मानवजाति के बारे में बुद्धि पर खरे उतरने वाले गहरे विचार पेश करके तथा एकेश्वरवाद के शुद्ध विचार के प्रचार, बौद्धिक नैतिकता व आध्यात्मिकता के परिचय, दृढ़ व व्यापक राजनीतिक व समाजिक व्यवस्था तथा नियमों को निर्धारित करके तथा उपासना एंव व्यक्ति संबंधी कर्तव्यों व कर्मों के निर्धारण द्वारा मानवजाति को निमंत्रण दिया है कि वह अपने मन को बुराइयों, कमज़ोरियों, नीचता तथा गंदगियों से पवित्र करे और उसे ईमान व सदभावना, प्रेम व लगाव, जैसी भावनाओं से सुसज्जित करे।
इस्लामी व्यवस्था के आरंभ से ही इसे चुनौतियों का सामना रहा है इसका कारण यह था कि विश्व के सत्ता लोभियों और धन व शक्ति के स्वामी जो सदैव अपने हितों की पूर्ति के प्रयास में रहते हैं, विश्व में किसी एसी नयी शक्ति का अस्तित्व सहन नहीं कर सकते थे जो उनके अवैध हितों के विरुद्ध सक्रिय हो। ईरान में इस्लामी क्रांति की विजय और इस्लामी व्यवस्था के गठन के साथ ही एसी शक्ति अस्तित्व में गयी। इस व्यवस्था के गठन मात्र से ही उनके लिए ख़तरा उत्पन्न नहीं हुआ था बल्कि मूल ख़तरा इस्लामी जगत में संभावित चेतना फैलने से था। यही ख़तरा आज साम्राज्यवादियों की नींद उड़ाए है। यही कारण है कि साम्राज्य की शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों का लक्ष्य इस्लामी व्यवस्था है।
एक अन्य महत्वपूर्ण वस्तु शुद्ध इस्लामी संस्कृति और उसका प्रचार है जो वास्तव में इस्लामी जगत में चेतना के रूप में सामने आया। ईरान में इस्लामी क्रांति से पूर्व, पूरे इस्लामी जगत में इस्लाम का नाम था, हर स्थान पर यह वास्तविकता मौजूद थी किंतु उसकी गहराई कहीं कम और कहीं अधिक थी। पूरे इस्लामी जगत को संयुक्त रूप से देखने और उसकी अपार संभावनाओं के साथ उसे प्रगति के मार्ग में अग्रसर करने का विचार, ईरान की इस्लामी क्रांति के बाद सामने आया और देखते देखते पूरे विश्व में फैल गया। ईरान में इस्लामी क्रांति के बाद जो सरकार बनी उसने इस्लामी शिक्षाओं और नियमों के आधार पर प्रजातांत्रिक सरकार का एसा आदर्श पेश किया जिसका उदाहरण इस से पहले कहीं नहीं मिलता।
समाजवाद और साम्यवाद जैसी विचारधाराओं की विफलता और विशेषकर पश्चिम के उदारवादी प्रजातंत्र की वास्तविकता सामने आने के बाद इस्लाम का स्वतंत्रताप्रेमी रूप पहले से अधिक स्पष्ट हुआ और इस्लामी देशों के युवा, इस्लामी न्याय व स्वतंत्रता की छत्रछाया में जीवन बिताने की कामना के साथ इस्लामी सरकार की स्थापना के लिए आगे बढ़े और विभिन्न राजनीतिक , सामाजिक व वैज्ञानिक क्षेत्रों में उन्होंने संघर्ष आरंभ किया जो अब अपने अपने देशों में विदेशी और साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध प्रतिरोध की भावना और आंदोलन को बल प्रदान कर रहे हैं।
इस्लामी जगत के बहुत से क्षेत्रों में जिनमें फ़िलिस्तीन सर्वोपरि है, युवा इस्लामी ध्वज उठाए स्वाधीनता व गौरव व स्वतंत्रता के नारे लगाते हुए शौर्य व साहस की गाथाएं लिख रहे हैं और साम्राज्यवादियों तथा उनके पिटठुओं को अपमान की खांईयों में ढकेल रहे हैं। इस्लामी जगत में चेतना की इस लहर ने साम्राज्यवादियों के सारे समीकरणों को बिगाड़ कर रख दिया है।
दूसरी ओर राजनीति और विज्ञान के क्षेत्रों में इस्लाम की स्वर्णिम शिक्षाओं और नवीन तकनीक के आधार पर विकसित इस्लामी विचारधारा और उसके विकास की प्रक्रिया ने यह सिद्ध कर दिया कि इस्लाम एक जीवित जीवनशैली है जो इस्लामी जगत के बुद्धिजीवियों और सदस्यों के लिए मार्ग खोल सकती है। कल की साम्राज्यवादी शक्तियां जो आज नये रूप में पुराना काम कर रही हैं, अपनी धूर्ततापूर्ण नीतियों द्वारा एक ओर तो इस्लामी जगत में रूढ़िवादी विचारधारा को फैला रही थीं और दूसरी ओर उसे, विदेशी विचारधाराओं के अंधे अनुसरण के जाल में उलझाए हुए थीं किंतु अब वे स्वंय इस्लामी विचारधारा और उसके विकास के सामने असहाय दिखायी दे रही हैं।
इस समय साम्राज्यवादी शक्तियां , इस्लामी जगत के विरूद्ध जो शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियां कर रही हैं वह उनकी शक्ति व आत्मविश्वास के कारण नहीं बल्कि उनकी बौखलाहट का परिणाम है। वह इस्लामी शक्ति को भांप चुकी हैं, उन्हें इस्लामी शक्ति की व्यापकता और इस्लामी शासन से ख़तरा है। यह शक्तियां उस दिन की कल्पना से ही कांप जाती हैं जब इस्लामी जगत पूरी एकजुटता के साथ उठ खड़ा हो। क्यों उस दिन इस्लामी राष्ट्र, अपनी प्राकृतिक संपत्ति, महान इतिहासिक व सांस्कृतिक धरोहरों, भौगोलिक व्यापकता और असंख्य श्रम शक्ति के बल पर, उन वर्चस्ववादी शक्तियों के हाथ तोड़ देगा जो २०० वर्षों से उनका खून चूसती और उसके सम्मान को अनदेखा करती आ रही हैं।
इस्लामी आंदोलन और इस्लामी क्रांति से आशय अंधविश्वासों और अत्याचारी शासनों के विरुद्ध आंदोलन है। जो मानवता को जंजीरों में जकड़े हुए अत्याचार व भेदभाव व जातिवाद व अश्लीलता के सहारे अपने हितों की पूर्ति करते हैं और विवश समूदायों का शोषण करते हैं । इस्लामी आंदोलन वास्तव में दो व्यवस्थाओं के मध्य टकराव का नाम है। एक विचारधारा मनुष्यों को दासता पर विवश करती है तो दूसरी विचारधारा में मनुष्यों की स्वतंत्रता मूल उद्देश्य है। इसी लिए कोई भी इस्लामी आंदोलन हो उसे विश्व की साम्राज्यवादी शक्तियों से टकराने के लिए सदैव तैयार रहना चाहिए।
कई शताब्दियों के पतन व पिछड़ेपन के बाद इस समय इस्लामी जगत के कोने कोने में मुसलमान राष्ट्र चेतना और ईश्वर के लिए उठ खड़े हुए हैं। स्वतंत्रता व स्वाधीनता तथा इस्लाम व क़ुरआन की ओर वापसी की सुगंध, इस समय बहुत से इस्लामी देशों में महसूस की जा सकती है। इस्लामी चेतना का यह अर्थ नहीं है कि वह सभी राष्ट्र जो इस चेतना का भाग हैं वह वह पूरे तार्किक प्रमाणों व वैचारिक तर्कों के साथ इस्लामी व्यवस्था के आधारों का ज्ञान रखते हैं बल्कि इसका अर्थ यह है कि हर स्थान पर मुसलमानों में इस्लामी पहचान प्राप्त करने की इच्छा दिखायी दे रही है जो निश्चित रूप से एक अच्छा संकेत है।
ग़ीबत
ग़ीबत यानी पीठ पीछे बुराई करना है, ग़ीबत एक ऐसी बुराई है जो इंसान के मन मस्तिष्क को नुक़सान पहुंचाती है और सामाजिक संबंधों के लिए भी ज़हर होती है। पीठ पीछे बुराई करने की इस्लामी शिक्षाओं में बहुत ज़्यादा आलोचना की गयी है। पीठ पीछे बुराई की परिभाषा में कहा गया है पीठ पीछे बुराई करने का मतलब यह है कि किसी की अनुपस्थिति में उसकी बुराई किसी दूसरे इंसान से की जाए कुछ इस तरह से कि अगर वह इंसान ख़ुद सुने तो उसे दुख हो। पैगम्बरे इस्लाम स.अ ने पीठ पीछे बुराई करने की परिभाषा करते हुए कहा है कि पीठ पीछे बुराई करना यह है कि अपने भाई को इस तरह से याद करो जो उसे नापसन्द हो। लोगों ने पूछाः अगर कही गयी बुराई सचमुच उस इंसान में पाई जाती हो तो भी वह ग़ीबत है? तो पैगम्बरे इस्लाम ने फरमाया कि जो तुम उसके बारे में कह रहे हो अगर वह उसमें है तो यह ग़ीबत है और अगर वह बुराई उसमें न हो तो फिर तुमने उस पर आरोप लगाया है।
यहां पर यह सवाल उठता है कि इंसान किसी की पीठ पीछे बुराई क्यों करता है? पीठ पीछे बुराई के कई कारण हो सकते हैं। कभी जलन, पीठ पीछे बुराई का कारण बनती है। जबकि इंसान को किसी दूसरे की स्थिति से ईर्ष्या होती है तो वह उसकी ईमेज खराब करने के लिए पीठ पीछे बुराई करने का सहारा लेता है। कभी ग़ुस्सा भी इंसान को दूसरे की पीठ पीछे बुराई करने पर प्रोत्साहित करता है। एसा इंसान अपने ग़ुस्से को शांत करने के लिए उस इंसान की बुराई करता है। पीठ पीछे बुराई का एक दूसरे कारण आस पास के लोगों से प्रभावित होना भी है। कभी कभी किसी बैठक में कुछ लोग मनोरंजन के लिए ही लोगों की बुराईयां बयान करते हैं और इस स्थिति में इंसान यह जानते हुए भी कि पीठ पीछे बुराई करना हराम और गुनाह है, लोगों का साथ देने और अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए दूसरे लोगों की बुराइयां सुनने लगता है और कभी कभी माहौल का उस पर इतना हावी हो जाता है कि वह ख़ुद भी बुराई करने लगता है ताकि इस तरह से अपने साथियों को ख़ुश कर सके।
पीठ पीछे बुराई करने का एक दूसरा कारण लोगों का मज़ाक उड़ाने की आदत भी है और इस तरह से मज़ाक़ उड़ा के कुछ लोग, दूसरे लोगों की हैसियत व मान सम्मान से खिलवाड़ करते हैं। कुछ लोगों दूसरों को ख़ुश करने और उन्हें हंसाने के लिए किसी इंसान की पीठ पीछे बुराई करते हैं। कुछ दूसरे लोग, हीनभावना में ग्रस्त होने के कारण, दूसरे लोगों की पीठ पीछे बुराई करते हैं ताकि इस तरह से ख़ुद को दूसरे लोगों से श्रेष्ठ और बड़ा दर्शा सके। उदाहरण स्वरूप दूसरे लोगों को बेवक़ूफ़ कहते है ताकि ख़ुद को अक़्लमंद दर्शाएं।
अब हम इस पर बातचीत करेंगे कि पीठ पीछे बुराई करने का इंसान के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है? वास्तव में इस बुराई के समाज में फैलने से समाज की सब से बड़ी पूंजी यानी एकता व यूनिटी को नुक़सान पहुंचता है और सामाजिक सहयोग की पहली शर्त यानी एक दूसरे पर विश्वास ख़त्म हो जाता है। लोग एक दूसरे की बुराई करके और सुन कर, एक दूसरे की छिपी बुराईयों से भी अवगत हो जाते हैं और इसके नतीजे में एक दूसरे के बारे में उनकी सोच अच्छी नहीं होती और एक दूसरे पर भरोसा ख़त्म हो जाता है। पीठ पीठे बुराई, ज़्यादातर अवसरों पर लड़ाई झगड़े को जन्म देती है और लोगों के बीच दुश्मनी की आग को भड़काती है। कभी कभी किसी की बुराई सार्वाजनिक करने से वह इंसान उस बुराई पर औऱ ज़्यादा हठ कर सकता है क्योंकि जब किसी का कोई गुनाह, पीठ पीछे बुराई के कारण सार्वाजनिक हो जाता है तो फिर वह इंसान उस गुनाह से दूरी या उसे छिप कर करने का कोई कारण नहीं देखता।
कुरआने मजीद में इस बुराई के नुक़सान का बड़े साफ शब्दों में बयान किया गया है और मुसलमानों को इस बुराई से दूर रहने को कहा गया है। उदाहरण स्वरूप कुरआने मजीद के सुरए हुजुरात की आयत नंबर १२ में कहा गया है। हे ईमान लाने वालो! बहुत सी भ्रांतियों से दूर रहो, क्योंकि कुछ भ्रांति गुनाह है। और कदापि दूसरो के बारे में जिज्ञासा न रखो और तुम में से कोई भी दूसरे की पीठ पीछे बुराई न करे क्या तुम में से कोई यह पसन्द करेगा कि वह अपने मरे हुए भाई का गोश्त खाए निश्चित रूप से तुम सबके लिए यह बहुत की घृणित काम है। अल्लाह से डरो कि अल्लाह तौबा (प्राश्यचित) को क़बूल करने वाला और कृपालु है।
कुरआने मजीद की इस आयत में पीठ पीछे बुराई करने को मुर्दा भाई के गोश्त खाने जैसा बताया गया है कि जिससे हरेक को नफ़रत होगी। कुरआने मजीद ने इन शब्दों का इस्तेमाल करके यह कोशिश की है कि पीठ पीछे बुराई की कुरूपता को अक़्लमंदों के सामने सप्ष्ट किया जाए ताकि वे ख़ुद ही इस बुराई के कुप्रभावों का अंदाज़ा लगाएं। इस तरह से कुरआने मजीद ने अपने शब्दों से अंतरात्माओं को झिंझोड़ दिया है । इसी तरह इस आयत में किसी के बारे में बुरे विचार और भ्रांति को जिज्ञासा का कारण और जिज्ञासा को दूसरे लोगों के रहस्यों से पर्दा हटने का कारण बताया है जो वास्तव में पीठ पीछे बुराई का कारण बनता है और इस्लाम ने इन सब कामों से कड़ाई के साथ रोका है।
पीठे पीछे बुराई करना इतना विनाशक कृत्य है कि पैगम्बरे इस्लाम स.अ. ने कहा है कि पीठ पीछे बुराई करना, इतनी जल्दी अच्छे कर्मों को नष्ट कर देता है जितनी जल्दी आग सूखी घास को भी नहीं जलाती। इसी लिए उन्होंने एक दूसरे स्थान पर फरमाया है कि अगर तुम कहीं हो और वहां किसी की पीठ पीछे बुराई हो रही हो तो जिसकी बुराई की जा रही हो उसकी ओर से बोलो और लोगों को उसकी बुराई से रोको और उनके पास से उठ जाओ। इस्लामी इंक़ेलाब के संस्थापक इमाम खुमैनी ने अपनी किताब चेहल हदीस में इस बुराई से बचने के लिए कहते हैं कि तुम अगर उस इंसान से दुश्मनी रखते हो जिसकी बुराई कर रहे हो तो दुश्मनी के कारण होना यह चाहिए कि तुम उसकी बिल्कुल ही बुराई न करो क्योंकि एक हदीस में कहा गया है कि पीठ पीछे बुराई करने वाले के अच्छे काम जिसकी बुराई की जाती है उसे दे दिये जाते हैं तो इस तरह से तुमने ख़ुद से दुश्मनी की है।
पीठ पीछे बुराई करने वाला अपने काम पर ध्यान देकर उस कारक पर विचार कर सकता है जिसने उसे किसी की पीठ पीछे बुराई करने पर प्रोत्साहित किया है। इसके बाद वह उस कारक को दूर करने का कोशिश करे। अगर पीठ पीछे बुराई इस लिए कर रहा है ताकि इस बुराई में ग्रस्त अपने साथियों का साथ दे सके तो उसे जान लेना चाहिए वह अपने इस काम से अल्लाह के आक्रोश को भड़काता है इस लिए बेहतर यही होगा कि वह एसी लोगों के साथ उठना बैठना न करे। अगर उसे यह लगता है कि वह गर्व के लिए और दूसरे लोगों के सामने अपनी बढ़ाई के लिए दूसरों की पीठ पीछे बुराई करता है तो उसे इस वास्तविकता पर ध्यान देना चाहिए दूसरे लोगों के सामने बढ़ाई करने से आत्मसम्मान गंवाने के अलावा और कोई नतीजा नहीं निकलेगा। अगर पीठ पीछे बुराई करने का कारण ईर्ष्या है तो उसे यह जान लेना चाहिए कि उसने दो गुनाह किये हैं। एक जलन और दूसरा पीठ पीछे बुराई करना इसके साथ ही दुनिया व आख़ेरत के नतीजों के दृष्टिगत, पीठ पीछे बुराई करने वाला किसी दूसरे से अधिक ख़ुद अपने आप को नुक़सान पहुंचाता है। इस लिए उसे इस बुराई से दूर रहने के लिए उसके नतीजों पर ध्यान देना चाहिए। इस आलोचनीय कृत्य का, लोक में कुपरिणाम के साथ ही, परलोक में अल्लाहीय प्रकोप के रूप में भी परिणाम सामने आएगा। इंसान को नतीजों से डरना चाहिए इस बात से डरना चाहिए कि अगर आज वह पीठ पीछे बुराई करके दूसरे लोगों का रहस्य सब के सामने उजागर करता है तोज कल क़यामत में अल्लाह भी उसके रहस्यों से पर्दा हटा कर उसे सब से सामने अपमानित करेगा।
अमरीका ने ईरान को दी 55 करोड़ डॉलर की पहली क़िस्त
अमरीका ने ईरान को पचपन करोड़ डॉलर की पहली क़िस्त अदा कर दी है।
उप विदेश मंत्री अब्बास इराक़ची ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि यह राशि, स्वीज़रलैंड में ईरान के खाते में डाल दी गई है और जेनेवा के परमाणु समझौते के आरंभिक क्रियान्वयन के लिए सभी आवश्यक क़दम उठाए जा चुके हैं। उन्होंने वियाना में ईरान तथा गुट पांच धन एक के बीच प्रस्तावित वार्ता के बारे में बताया कि इस चरण की वार्ता के लिए ईरान ने कोई नया प्रस्ताव नहीं रखा है क्योंकि ईरानी वार्ताकारों के सिद्धांत स्पष्ट हैं और वे ईरानी जनता के अधिकारों की रक्षा जैसे मूल सिद्धांत के आधार पर वार्ता कर रहे हैं। इराक़ची ने वियाना में ईरान व गुट पांच धन एक के बीच अंतिम चरण की वार्ता के विषयों के बारे में कहा कि इस वार्ता का उद्देश्य एक समग्र समाधान की प्राप्ति है और इसमें वे सभी विषय शामिल हैं जिनका जेनेवा समझौते में उल्लेख किया गया है। उन्होंने अमरीकी सेनेट के कुछ सदस्यों द्वारा ईरान पर नए प्रतिबंध लगाने के प्रयासों के बारे में कहा कि किसी भी प्रकार का प्रतिबंध जेनेवा समझौते का उल्लंघन होगा और इससे अंतिम चरण की वार्ता भी रुक जाएगी।
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की प्रभावी उपस्थिति
इस्लामी गणतंत्र ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रचलित सिद्धांतों और अपने अनुभावों के आधार बनाकर विश्व मंख पर प्रभावी भूमिका निभाई है। ईरान ने अपना योगदान एसे समय में दिया है कि जब 21वीं शताब्दी में अंतर्राष्ट्रीय मामले पहले से अधिक एक दूसरे से जुड़ गए हैं और यह जुड़ाव, विश्व के स्वाधीन देशों के लिए प्रभावी भूमिका निभाने के लिए अनुकूल सिद्ध हुआ है। पश्चिम ने ईरान को अलग थलग करने की बड़ी चेष्टाएं कीं किंतु आज ईरान मध्यपूर्व के प्रभावशाली देश के रूप में क्षेत्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय मंच पर गतिविधियां कर रहा है।
इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद ईरान की कूटनीति में बड़ा उतार चढ़ाव आया। उदाहरण स्वरूप ईरान पर थोपे गए युद्ध के दौरान ईरान के लिए कूटनैतिक गतिविधियां बहुत कठिन हो गईं किंतु ईरान ने राजनैतिक सूझबूझ और दूरदर्शिता के आधार पर हमेशा संतुलन बनाने और सक्रियता का प्रयास किया और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के मंच का प्रयोग करते हुए अमरीका की एकपक्षीय नीतियों पर आपत्ति जताते हुए अपनी स्थिति को मज़बूत किया। किंतु इसके साथ ही ईरान थोपे गए युद्ध के दौरान तथा परमाणु मामले में इसी प्रकार फ़िलिस्तीन संकट जैसे क्षेत्रीय मामलों में संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की नीतियों और क्रियाकलापों को संतोषजनक नहीं मानता। यही कारण है कि ईरान ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा जैसे मंचों पर उपस्थित होकर संयुक्त राष्ट्र संघ तथा सुरक्षा परिषद के ढांचे में सुधार की आवश्यकता पर आधारित अपना दृष्टिकोण पेश किया। अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के बारे में ईरान का विचार यह है कि संयुक्त राष्ट्र जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं सामूहिक हितों की रक्षा करें। ईरान आतंकवाद, मानवाधिकार, भूमंडलीकरण, मादक पदार्थ, निरस्त्रीकरण तथा अन्य क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय विषयों के बारे में सामूहिक प्रयास और तालमेल की ओर बढ़ा है। इस संदर्भ में गुट निरपेक्ष आंदोलन, ओआईसी तथा निरस्त्रीकरण में ईरान की अगुवाई की ओर संकेत किया जा सकता है।
इस योगदान से साबित होता है कि क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ईरान को प्रभावशाली देश के रूप में गतिविधियां करने से रोकने के प्रयासों के बावजूद ईरान की इस भूमिका को समाप्त नहीं किया जा सका है। इसके प्रमाण में क्षेत्र के महत्वपूर्ण मुद्दों के समाधान में ईरान की भूमिका और योगदान पर संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपीय संघ के आग्रह की ओर संकेत किया जा सकता है। अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ में ईरान की सार्थक भूमिका तथा विभिन्न अवसरों पर क्षेत्रीय मुद्दों के समाधान में ईरान की भूमिका और भागीदारी पर संयुक्त राष्ट्र संघ के ज़ोर को महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों में ईरान की प्रभावी भूमिका का प्रमाण माना जा रहा है।
ईरान ने विरोधों और रूकावटों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में अपनी मांगों और लक्ष्यों को पेश किया तथा एकांत में डाल देने के विरोधियों के प्रयासों के बावजूद ईरान ने विश्व शक्तियों के साथ सहयोग की नीति को आगे बढ़ाया। संयुक्त राष्ट्र संघ के महसचिव बान की मून तथा अन्य अधिकारियों ने ईरान की भूमिका की ओर संकेत करते हुए कहा है कि ईरान संयुक्त राष्ट्र संघ में भी सक्रिया योगदान करे, यदि ईरान कुछ प्रक्रियाओं और फ़ैसलों का विरोधी हो तब भी वह अपने प्रयास और अपनी भूमिका बढ़ाए ताकि दूसरों के विचारों और सोच पर अपना प्रभाव डाल सके। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यह सोच पायी जाती है कि ईरान मध्यपूर्व के क्षेत्र में शांति व सुरक्षा को मज़बूत बनाने और अर्थ व्यवस्था को अच्छी स्थिति में ले जाने में प्रभावी भूमिका निभा सकता है। इस्लामी गणतंत्र ईरान ने इसी प्रकार साबित कर दिया कि वह आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय युद्ध में प्रभावी भूमिका निभा सकता है क्योंकि वह स्वयं वर्षों तक आतंकवाद की भेंट चढ़ा है।
ईरान की इस्लामी क्रान्ति के सिद्धांत समरसतापूर्ण जीवन के समर्थन, विश्व की बड़ी शक्तियों की ओर से की जाने वाली धड़ेबंदी के विरोध और वैचारिक व सांस्कृतिक टकराव के बजाए आपसी सहयोग पर केन्द्रित हैं। इन लक्ष्यों की पूर्ति अंतर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा की मज़बूती की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति है।
इस समय मानव समाज के सामने चुनौतियां इतनी अधिक और जटिल हैं कि कोई देश अकेले उनका सामना नहीं कर सकता। अतः विश्व समुदाय की इन चुनौतियों से निपटने के लिए सामूहिक दायित्व परायणता तथा रणनीति आवश्यक है और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के मंच पर आपसी सहयोग अथवा नई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं का गठन किया जाना चाहिए। शांति, विकास और मानवाधिकार, मानव सुरक्षा के संबंध में महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जो एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ईरान का मानना है कि इस विषय में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को योगदान करना चाहिए। इसी लिए ईरान अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सशक्तीकरण पर आग्रह करता है और इस देश का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं सरकारों के दायरे से बाहर रहकर मानव समाज की समस्याओं को चिन्हित और उनका समधान करें। इस राजनैतिक प्रक्रिया के अंतर्गत ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में अपनी उपस्थिति का सदुपयोग करते हुए अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं को बार बार उठाया है। ईरान इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा के 68वें अधिवेशन में भाग लेने के लिए अपनी न्यूयार्क यात्रा के दौरान अंतर्राष्ट्रीय मंच पर ईरान की सजीव एवं प्रभावी उपस्थिति का चित्रण किया।
अमरीका की विदेश संबंध परिषद में राष्ट्रपति रूहानी का भाषण, अमरीकी संचार माध्यमों से अपनी बातचीत, महासभा के अधिवेशन और निरस्त्रीकरण सम्मेलन में राष्ट्रपति रूहानी के भाषणों से क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों के बारे में ईरान की दृष्टिकोण का प्रारूप पूर्ण रूप से स्पष्ट हो गया।
सच्चाई यह है कि ईरानी जनता ने पिछले 35 साल के दौरान विभिन्न प्रकार के षडयंत्रों और थोपे गए युद्ध का सामना किया, रासायनिक हमलों का निशाना बना, टार्गेट किलिंग, आर्थिक नाकाबंदी और इसके अलावा नागरिक लक्ष्यों तक सीमित परमाणु कार्यक्रम के बारे में ग़लत आरोपों की बौछार और छवि ख़राब करने के प्रयास इन सबका सामना करने के बावजूद आज ईरान विश्व जनमत के सामने अपना वास्तविक चित्र पेश करने के संकल्प के साथ खड़ा है ताकि इस अन्याय और द्वेष का अंत कर दे।
मानवाधिकार को हथकंडे के रूप में प्रयोग करना अमरीका और अन्य पश्चिमी देशों की पुरानी शैली है जिसे वे स्वतंत्र देशों के विरुद्ध प्रयोग करते आए हैं। यह एसी स्थिति में है कि अमरीका मध्यपूर्व के देशों में लोकतंत्र की स्थापना में रुकावट बनकर खड़ा है और यह तर्क देकर कि इन देशों में चुनाव हुए तो इस्लामवादियों को बहुमत मिल जाएगा, देशों में वंशानुगत तानाशाही शासनों का समर्थन करता है। अतः ईरान ने अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ विभिन्न लक्ष्यों और कारणों से अपना सहयोग बढ़ाया है। इसका एक कारण वह नया अनुकूल वातावरण है जो ईरान की कूटनीति के लिए अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में उत्पन्न हुआ है। ईरान की प्रबल कूटनीति ने अमरीका को क्षेत्र में नए युद्ध का बिगुल बजाने से रोक दिया। ईरान ने साबित कर दिया कि वह पारस्परिक सम्मान तथा संयुक्त हितों के आधार पर अन्य देशों से सहयोग का पक्षधर है और पश्चिमी देशों से अकारण तनाव नहीं चाहता।
तथ्य यह है कि इस्लामी क्रान्ति की सफलता को 35 साल गुज़र जाने के बाद इस समय ईरान अधिक राजनैतिक एवं आर्थिक स्थिरता व शक्ति से सुसज्जित है। ईरान अपने राजनैतिक दृष्टिकोणों एवं अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों को अंतर्राष्ट्रीय रूप देने का प्रयास किया है इसका यह अर्थ है कि ईरान प्रतिबंधों और दबाव के बावजूद अतीत की तुलना में इस समय और अधिक शक्तिशाली हुआ है।
क्षैत्रीय कूटनीति की दृष्टि से देखा जाए तो ईरान इराक़ युद्ध की समाप्ति और पूर्व सोवियत संघ के विघटन के बाद नई परिस्थितियां उत्पन्न हुईं। इन परिस्थितियों में ईरान ने क्षेत्र के महत्वपूर्ण देशों जैसे रूस आदि के साथ प्रभावी सहयोग आरंभ किया और काकेशिया तथा मध्य एशिया में संयुक्त ख़तरों जैसे अलक़ायदा और आतंकवाद से निपटने के प्रयासों, उत्तर दक्षिण कोरीडोर स्थापित करने के लिए सहयोग, अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अमरीका की मनमानी पर रोक लगाने के लिए सहयोग और आर्थिक, सामरिक एवं औद्योगित सहयोग का नाम इस संदर्भ में स्पष्ट रूप से लिया जा सकता है।
इस समय ईरान क्षेत्र के एक महत्वपूर्ण देश के रूप में अन्य देशों के साथ संयुक्त हित रखता है और शत्रुओं के विरोध के बावजूद इन देशों से ईरान का सहयोग जारी है। इस समय आने वाले इन परिवर्तनों को देखते हुए पश्चिमी देश यहां तक कि अमरीका भी ईरान से अपने संबंधों को बहाल करने पर विवश है। कुछ साक्ष्यों से पता चलता है कि अमरीकी राष्ट्रपति बाराक ओबामा के दूसरे शासनकाल में ईरान के प्रति अमरीका की रणनीति में आधारभूत बदलाव आया है।
टीकाकारों का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय व क्षेत्रीय परिवर्तनों तथा अमरीका की आंतरिक परिस्थितियों के कारण अमरीका अपना रवैया बदलने और अपने ऊपर संयम रखने पर विवश हुआ है तथा अमरीका ने अपनी नीतियां लागू करने की अपनी शैली बदल ली है।
हिज़बुल्लाह लेबनान का सैन्य अभ्यास
हिज़बुल्लाह लेबनान नें लेबनान में आतंकवाद और वहाबी तकफ़ीरियों के हमलों का सामना करने के लिये सैन्य अभ्यास किया है। लेबनान की मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार हिज़बुल्लाह लेबनान नें बैरूत के दक्षिणी क्षेत्र ज़ाहिया में यह अभ्यास किये हैं जिनमें आतंकवादियों के बम धमाकों और तकफ़ीरियों के हमलों का मुक़ाबला करने और प्रभावित क्षेत्रों में मदद करने का अभ्यास शामिल है। स्पष्ट रहे कि पिछले दिनों में तकफ़ीरियों नें, जिन्हें सऊदी अरब का समर्थन प्राप्त है, बैरूत के ज़ाहिया क्षेत्र में कई बम धमाके किये हैं जिनमें दर्जनों लोग मारे गए हैं। तकफ़ीरियों के सरग़ना उमरुल अतरश नें, जो इस समय लेबनानी फ़ौज की हिरासत में है, हिज़बुल्लाह के ख़िलाफ़ और ज़ाहिया के इलाक़े में आतंकवादी हमले करने की बात स्वीकारी है। हिज़बुल्लाह लेबनान नें कहा है कि तकफ़ीरी आतंकवादियों से मुक़ाबला करना राष्ट्रीय कर्तव्य है इसलिये यह किसी एक संगठन की ज़िम्मेदारी नहीं है।
भारत, ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाईन योजना से जुड़ेगा
भारत के विदेश मंत्री सलमान ख़ुर्शीद का कहना है कि उनका देश ईरान और पाकिस्तान प्राकृतिक गैस पाइपलाईन परियोजना से पुनः जुड़ सकता है।
शुक्रवार को प्रेस टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, सलमान ख़ुर्शीद ने कहा कि अगर सभी पक्ष गंभीर हों तो हम पाकिस्तान के माध्यम से ईरान और मध्य एशिया से प्राकृतिक गैस का आयात करने के लिए तैयार हैं।
उन्होंने आगे कहा कि इस तरह की क्षेत्रीय परियोजनाओं से अंतर-निर्भरता उत्पन्न होती है जिससे भारत एवं पाकिस्तान के बीच लंबी अवधि तक के लिए सहयोग में वृद्धि होगी।
ग़ौरतबल है कि मई 2013 में भी ख़ुर्शीद ने ईरान-पाकिस्तान गैस पाइपलाईन परियोजना में शामिल होने के लिए नई दिल्ली की इच्छा से अवगत कराया था।
ईरान और पाकिस्तान ने 1995 में गैस पाइपलाईन के समझौते पर कि जिसे शांति पाइपलाईन का नाम दिया गया था हस्ताक्षर किए थे। उसके बाद ईरान ने इस पाइपलाईन को भारत तक ले जाने का प्रस्ताव दिया । 1999 में भारत और ईरान के बीच एक प्रस्तावित समझौते पर हस्ताक्षर हुए। लेकिन अमरीकी दबाव के सामने झुकते हुए 2009 में भारत इस परियोजना से पीछे हट गया।
तुर्की के प्रधानमंत्री ने इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर से मुलाक़ात की।
तेहरान के दौरे पर आए तुर्की के प्रधान मंत्री रजब तय्यब ओर्दोग़ान ने इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर से मुलाक़ात की।
बुधवार को हुई इस मुलाक़ात में सुप्रीम लीडर ने दोनों देशों की व्यापक क्षमताओं को आपसी संबंधों में विस्तार के लिए उचित पृष्ठिभूमि बताया।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने ईरान और तुर्की के बीच मौजूदा दोस्ती व भाईचारे को हालिया शताब्दियों के दौरान बेमिसाल बताया।
उन्होंने तुर्की के प्रधान मंत्री के ईरान दौरे के दौरान होने वाले समझौते के अमली होने के लिए तेहरान-अंकारा में गंभीरता को ज़रूरी बताया और कहा कि इस गंभीरता से दोनों देशों के संबंधों में अधिक स्थिरता आएगी और दोनों देशों के संबंधों और प्रगति होगी।
उन्होंने दोनों राष्ट्रों के बीच हार्दिक संबंध व रूझान का उल्लेख करते हुए कहा कि इस अवसर व परिस्थिति को सही ढंग से व्यवहारिक बनाया जाए।
इस अवसर पर तुर्की के प्रधान मंत्री रजब तय्यब ओर्दोग़ान ने तुर्की के राष्ट्रपति व जनता की ओर से ईरान को हार्दिक शुभकामनाएं पहुंचाते हुए कहा कि हम ईरान को अपना घर समझते हैं।
रजब तय्यब ओर्दोग़ान ने ईरानी राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी सहित अन्य अधिकारियों से मुलाक़ात को सकारात्मक बताया और कुछ सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर की ओर संकेत करते हुए कहा कि तुर्की को आशा है कि दोनों देशों के संबंध दिन प्रतिदिन विस्तृत होकर क्षेत्र व विश्व के लिए उदाहरण बनेंगे।
अमरीका की धमकियां केवल गीदड़ भभकियां हैं
ईरान की राजधानी तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा के इमाम ने इस्लामी क्रांति की वर्षगांठ के अवसर पर व्यापक एवं भव्य समारोहों के आयोजन का आहवान किया है।
आयतुल्लाह सैय्यद अहमद ख़ातेमी ने जुमे की नमाज़ के भाषणों में कहा कि इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में सन् 1979 में सफलता प्राप्त करने वाली ईरान की इस्लामी क्रांति की वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित होने वाले समारोहों का आयोजन आम जनता के स्तर पर होना चाहिए।
इसी प्रकार आयतुल्लाह ख़ातेमी ने अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और विदेश मंत्री जॉन केरी द्वारा ईरान को दी जाने वाली धमकियों की ओर संकेत करते हुए कहा कि अब यह धमकियां केवल गीदड़ भभकियां है और ईरानी राष्ट्र उसी स्तर पर प्रतिरोध की संस्कृति द्वारा उनका उत्तर देगा।
आयतुल्लाह ख़ातेमी ने ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के इस आश्वासन की ओर संकेत करते हुए कि ईरान परमाणु बम नहीं बनाएगा, कहा कि अमरीका एक ऐसा देश है कि जिसने जापान के नागासाकी और हिरोशीमा शहरों पर परमाणु बम मार कर हज़ारों लोगों का नरसंहार किया है।
अमरीका द्वारा हिज़्बुल्लाह को आतंकवादी गुट बताने की निंदा करते हुए आयतुल्लाह ख़ातेमी ने कहा कि हिज़्बुल्लाह आतंकवादी गुट नहीं है, इसलिए कि उसने सदैव इस्राईल के अतिक्रमणों के मुक़ाबले में लेबनान की रक्षा की है।
अफ़ग़ान राष्ट्रपति की ओबामा के बयान पर प्रतिक्रिया
अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने काबुल - वाशिंगटन सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर के लिए किसी भी प्रकार की समय सीमा निर्धारित किए जाने का विरोध करते हुए कहा है कि दोनों पक्ष, इस संबंध में सहयोग कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने आज एक बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के वार्षिक भाषण का स्वागत करते हुए इस बात को सकारात्मक क़दम बताया है कि इस भाषण में काबुल-वाशिंगटन सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर के लिए किसी भी प्रकार की समय सीमा के निर्धारण की ओर कोई संकेत नहीं किया गया है।
उन्होंने एकजुट अफ़ग़ानिस्तान पर ओबामा के बल को काबुल की दीर्घावधि सहमति और द्विपक्षीय हितों से संबंधित बताया और अफ़ग़ानिस्तान में शांति प्रक्रिया की शुरुआत के लिए काबुल-वाशिंगटन सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उल्लेखनीय है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने वार्षिक भाषण में कहा था कि अफ़ग़ान सरकार की ओर से सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर की स्थिति में इस देश में कुछ अमेरिकी सैनिक ही रहेंगे। यह ऐसी स्थिति में है कि काबुल-वाशिंगटन सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर के लिए अमेरिकी मांग के मुक़ाबले में अफ़ग़ानिस्तान की सरकार अब तक डटी हुई है और हामिद करज़ई ने तालेबान के साथ शांति वार्ता की शुरुआत में अमेरिकी सहायता और सहयोग को समझौते पर हस्ताक्षर से सशर्त किया है
हेजाब
ईश्वरीय धर्मों विशेष रूप से इस्लाम में हेजाब एक पवित्र शब्द है। हेजाब महिला की प्रवृत्ति का भाग है इसलिए पूरे मानव इतिहास में महिलाएं स्वाभाविक रूप से हेजाब की ओर उन्मुख रहीं। दांपत्य जीवन में स्थिरता, महिलाओं की सुरक्षा, यौन भ्रष्टाचार की रोकथाम, स्वस्थ समाज की रचना, महिला के स्थान की सुरक्षा और समाज की आम मर्यादाओं की रक्षा, हेजाब के प्रभाव में शामिल हैं। इसके अतिरिक्त सभा में महिला की सही उपस्थिति तथा विभिन्न मंचों पर उसकी उपयोगी उपस्थिति के लिए प्रभावी तत्व है।
पिछली शताब्दी से हेजाब को एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक चिंता के रूप में देखा जा रहा है कि जिससे बहुत से सामाजिक संबंध प्रभावित हुए हैं यहां तक कि कुछ पश्चिमी समाजों में महिलाओं में हेजाब की ओर रुझान को पूंजिपतियों व राजनेताओं के हितों के लिए ख़तरा समझा जा रहा है। इसके विपरीत साम्राज्यवादी और शैतानी ताक़तें विभिन्न शैलियों से हेजाब के स्थान पर महिलाओं में बेहेजाबी और अश्लीलता लाना चाहती हैं। वे, स्वतंत्रता, पुरुष और महिला के समान अधिकार जैसे धूर्त्तापूर्ण नारों की आड़ में अपने इस बुरे लक्ष्य को व्यवहारिक बनाते हैं। उदाहरण स्वरूप अलजीरिया पर नियंत्रण के लिए फ़्रांसीसी साम्राज्यवादी इस निष्कर्श पर पहुंचे कि इस समाज के ताने बाने को उखाड़ कर उनकी क्षमताओं को समाप्त कर दें और इस काम के लिए उन्होंने सबसे पहले महिलाओं को प्रयोग किया। फ़्रांसीसी साम्राज्यवादियों ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि महिलाओं को अपने नियंत्रण में कर लें तो सभी चीज़ें उसके पीछे पीछे चली आएंगी। ब्रिटेन के उपनिवेश मंत्रालय भी अट्ठारहवी शताब्दी में इस्लामी देशों पर क़ब्ज़ा करने के मार्गों में से एक मार्ग महिलाओं में बेहेजाबी के चलन को मानता था।
ईरान में पिछली एक शताब्दी के दौरान साम्राज्य ने अपने पिट्ठु द्वारा महिलाओं में बेहेजाबी के चलन के लिए बहुत प्रयास किए। इस संदर्भ में रज़ा शाह पहलवी ने तुर्की के दौरे की वापसी पर ईरान में धार्मिक मूल्यों विशेष रूप से हेजाब को ख़त्म करने के लिए विभिन्न शैलियां अपनायीं और उसने तुर्की के तानाशाह अतातुर्क की ओर से हेजाब रोकने के लिए अपनायी गयी शैली का अनुसरण करते हुए ऐसा किया था। इस प्रकार रज़ा शाह ने 7 जनवरी 1936 को महिलाओं के हेजाब पर रोक लगाने की आधिकारिक रूप से घोषणा की। इस क़ानून के बनने से बहुत सी महिलाएं जो अपना हेजाब नहीं उतारना चाहती थीं, घर में नज़रबंद होकर रह गयीं। महिलाओं के विश्वविद्यालय में प्रवेश पर रोक लग गयी और महिला शिक्षक भी बेहेजाब अवस्था में स्कूल जाने पर मजबूर हुयीं। ईरान के शहरों में पुलिस महिलाओं व लड़कियों के सिरों से हेजाब खींच लेती थी। इसके बावजूद महिलाएं अपने आवरण की रक्षा के लिए प्रतिरोध करती थीं और अंततः 1941 में रज़ा शाह ईरान से चला गया और हेजाब पर लगी रोक भी ख़त्म हो गयी।
इस प्रकार ईरानी महिलाओं ने सिद्ध कर दिया कि वे धार्मिक मूल्यों विशेष रूप से हेजाब की संरक्षक हैं। ईरान में जिस समय इस्लामी क्रान्ति जारी थी, महिलाओं ने सभी मंचों पर हेजाब का पालन करते हुए पुरुषों के साथ पहलवी शासन से संघर्ष किया। आज भी हम देख रहे हैं कि ईरान की प्रतिभाशाली महिलाएं सभी सामाजिक, आर्थिक, वैज्ञानिक व खेल के मैदान में प्रभावी रूप से सक्रिय हैं। यही कारण है कि वर्तमान स्थिति में भी ईरान के शत्रु ईरान में बेहेजाबी की संस्कृति को फैलाने का प्रयास कर रहे हैं। इस संदर्भ में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई बल देते हैं कि साम्राज्यवादी सरकारों के कुछ गुप्तचर तंत्र इस्लामी क्रान्ति से मुक़ाबले के लिए ईरानी समाज में भ्रष्टाचार और नैतिक गिरावट के प्रसार तथा युवाओं के इस ओर बहकाव को सबसे प्रभावी मार्गों में मानते हैं।
हर व्यक्ति की पहचान और उसका व्यक्तित्व उसकी जीवन शैली और स्वाभाव पर निर्भर होता है। हेजाब व आवरण मुसलमान महिला के स्वाभाव और उसकी सही जीवन शैली को दर्शाता है। प्रश्न यह उठता है कि साम्राज्यवादी और उसके पिट्ठू, मुसलमान महिलाओं के हेजाब करने से इस सीमा तक क्यों भयभीत हैं और हेजाब करने वाली महिलाओं का विरोध क्यों करते हैं?
हेजाब का सबसे बड़ा प्रभाव, नग्न संस्कृति से दूरी और परिवार व समाज की मज़बूती के रूप में सामने आता है। इस बात में संदेह नहीं कि इस्लामी देशों में नग्नता में विस्तार को साम्राज्यवादी उन पर क़ब्ज़ा करने के महत्वपूर्ण हथकंडे के रूप में देखते हैं। साम्राज्यवादी, देशों के विशाल आर्थिक और मानवीय स्रोतों को लूटने तथा उन पर राजनैतिक वर्चस्व जमाने के लिए सबसे पहले सांस्कृतिक हथकंडा अपनाकर देशों को भीतर से खोखला करते हैं ताकि इस प्रकार उन पर क़ब्ज़ा कर सकें। इस्लामी देशों में पश्चिम, धार्मिक पहचान में कमी या महिलाओं में बेहेजाबी को सबसे प्रभावी हथकंडा समझता है। स्पेन के इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि मुसलमानों में आस्थाओं की ओर से लापरवाही, महिलाओं में बेहेजाबी का चलन, तथा पुरुषों में भ्रष्टाचार, इस देश पर पश्चिम के राजनैतिक वर्चस्व का कारण बना था।
विगत से आज तक मुसलमान महिला की पहचान को ख़त्म करने के लिए हेजाब को ख़त्म करने की कोशिश निरंतर जारी है ताकि महिला अपने व्यक्तित्व व आकांक्षाओं की रक्षा के बजाए वर्चस्ववादियों व पूंजीपतियों की लक्ष्यों को पूरा करे। महिलाओं में बेहेजाबी और मुसलमान समाज में अश्लीलता व नैतिक भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना, साम्राज्यवादियों के लक्ष्य हैं क्योंकि साम्राज्यवादी तत्व इस्लामी देशों की राष्ट्रीय एवं धार्मिक संस्कृति में पैठ बनाने के लिए हेजाब की समाप्ति को सबसे महत्वपूर्ण समझते हैं।
इस संदर्भ में ब्रिटेन का पुराना जासूस मिस्टर हम्फ़्रे कहता है, “ महिलाओं को बेहेजाब करने के लिए बहुत अधिक कोशिश करना चाहिए ताकि मुसलमान महिलाएं बेहेजाबी की ओर लालायित हों। महिलाओं से उनका हेजाब उतरवाने के बाद युवाओं को उनके पीछे पड़ने के लिए उकसाएं ताकि मुसलमानों के बीच भ्रष्टाचार प्रचलित हो।”
पश्चिम में हेजाब से घृणा का कारण यह भी है कि पश्चिम महिला को एक आम व व्यापारिक यौन उत्पाद तथा पुरुषों की अवैध इच्छाओं को पूरा करने वाली साधन के रूप में चाहता है। वे महिलाओं की स्वतंत्रता के नाम पर उसे बेलगाम यौन संबंध बनाने तथा अनुचित कपड़े पहनने के लिए प्रेरित करते हैं।
न्यूयॉर्क में महिलाओं के मामलों के कार्यकर्ता सबालूस कहते हैं,“ हमारे समाज में महिला पुरुषों का समर्थन पाने के लिए सौंदर्य के हास्यास्पद मानदंड की भेंट चढ़ती है। हमने स्वतंत्रता के नाम पर कूड़ेदान बनाया है और उसमें हर उस चीज़ को डाल दिया है जिसे हम महिलाओं की स्वतंत्रता को सीमित करने वाला समझते हैं।” इस संदर्भ में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता कहते है, “ पश्चिम की नज़र में आप महिलाएं हेजाब न करें इसका कारण यह नहीं है कि वे आपकी स्वतंत्रता चाहते हैं बल्कि इसका कारण कुछ और है। पश्चिम महिला को पुरुष की आंखों के स्पर्श और अवैध संबंध के लिए चाहता है।”
साम्राज्य महिलाओं को हेजाब से दूर करने के लिए, उनके नैतिक मूल्यों में परिवर्तन लाने का प्रयास कर रहा है। शत्रु इस बात को समझ चुका है कि पश्चिम विरोधी इस्लामी देशों से युद्ध प्रभावी मार्ग नहीं है क्योंकि वे ईमान की शक्ति से मुक़ाबला करते हैं। इसलिए वह नर्म युद्ध अर्थात मनोबल, ईमान और आस्था को कमज़ोर करने की कोशिश कर रहा है। स्पष्ट सी बात है कि युवाओं में बेलगाम यौन संबंध व बेहेजाबी का चलन नर्म युद्ध की महत्वपूर्ण शैली है। फ़्रांस के इस्लाम विरोधी लेखक मीशल हुलबाक कहता है, “ मुसलमानों को मार कर इस्लाम के ख़िलाफ़ जंग नहीं जीती जा सकती केवल उन्हें भ्रष्ट बनाकर इस सफलता को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए मुसलमानों के सिरों पर बम गिराने के बजाए मिनी स्कर्ट गिराएं।”
जबसे साम्राज्यवादियों की ललचायी नज़र इस्लामी देशों के स्रोतों पर पड़ी, उस समय से उन्होंने हेजाब को निशाना बनाया क्योंकि वे मुसलमान महिलाओं के हेजाब को इस्लाम की पहचान और पूरे मुसलमान समाज के इस्लामी व्यक्तित्व की स्वाधीनता के बाक़ी रहने का बड़ा कारण मानते हैं और इसे अपने राजनैतिक व आर्थिक पैठ बनाने के मार्ग में रुकावट समझते हैं। पश्चिमी सरकारें समझ गयी हैं कि हेजाब महिलाओं की सबसे मज़बूत ढाल है। पश्चिमी सरकारें यह भी समझती हैं कि यदि वे हेजाब को महिलाओं के सिर से उतरवाने में सफल हो जाएं तो बाद वाले क़दम उठाना उनके लिए सरल हो जाएगा।
इस संदर्भ में प्रसिद्ध ईरानी बुद्धिजीवी उस्ताद शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी लिखते है, “ बेहेजाबी न केवल यह कि पश्चिम के नीच पूंजीवादी समाज की पहचान का हिस्सा और पश्चिमी पूंजीपतियों के भोग विलास और भौतिकवाद का बुरा परिणाम है बल्कि ऐसा साधन है जिसे वे मानव समाजों को संवेदनहीन बनाने और उन्हें ज़बरदस्ती अपनी वस्तुओं का उपभोक्ता बनाने के लिए प्रयोग करते हैं।”
बेहेजाबी का एक दुष्परिणाम यह है कि इससे श्रंगार की चीज़ों और अश्लील वस्त्र ख़रीदने पर ग़ैर ज़रूरी ख़र्च बढ़ता है। इस बात में संदेह नहीं कि इन चीज़ों से पूंजीपति बहुत लाभ कमाते हैं। उस्ताद मुतह्हरी लिखते है, “ हेजाब का एक उच्च परिणाम पश्चिम की ओर से पेश की गयी उपभोक्तावादी संस्कृति का अंत और उनके रंगीन बाज़ारों की चहल-पहल का ख़त्म होना भी है। इसी सिद्धांत के अनुसार साम्राज्य विभिन्न अप्रत्यक्ष हथकंडों से हेजाब को क्षति पहुंचाना चाहता है। क्योंकि वह धागे के इस मज़बूत मोर्चे को तोड़ना चाहता है ताकि फ़ैशन फैलाने वाले, सूत की कतायी, महिलाओं के रंगीन कपड़ों की बुनायी, श्रंगार के ज़रूरी उपकरण, और नाना प्रकार के रंगों के उत्पादन के कारख़ने का चक्र चल पड़ें और इस प्रकार करोड़ों महिलाओं की ज़रूरतों को कि जिसका कारण स्वयं साम्राज्य है, पूरी करे।”