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रोहिंगा मुसलमानों के विरूद्ध षड़यंत्र की कड़ी निंदा।
रिपोर्ट के अनुसार म्यांमार में बौद्ध चरमपंथियों नें मुसलमानों के नरसंहार में कोई कसर नहीं छोड़ी है। सैंकड़ों मुसलमानों को मौत की घाट उतारने के अलावा हज़ारों मुसलमानों को घर छोड़ने पर मजबूर किया गया है जो लाचारी और बेबसी की ज़िन्दगी गुज़ार रहे हैं और खाने के लिये एक एक लुकमे को तरस रहे हैं।
अत्याचारों की हद यह है कि म्यांमार सरकार नें मुसलमानों के नाम जनगणना की सूची से निकालने का सिलसिला शुरू कर दिया है। जबकि ऐतिहासिक सुबूतों से साबित है कि म्यांमार के यह मुसलमान दूसरी सदी हिजरी से ही यहाँ आबाद हैं। इस्लामी सहयोग कमेटी नें रोहिंगा क़ौम के नाम जनगणना सूची से निकालने पर कड़ा विरोध जताते हुए म्यांमार की सरकार के इस ग़ैरक़ानूनी और अत्याचारी क़दम को खुल्लम खुल्ला मानवाधिकारों का उल्लंघन बताया है।
न्यूज़ नूर ने इस सिलसिले में रोंहिंगा मुसलमानों का नाम निकाले जाने की कड़े शब्दों में निंदा के शीर्षक से एक आर्टिकल पेश कर रहा है। इस्लामी सहयोग संगठन नें अपने एक बयान में म्यांमार सरकार के इस क़दम, जिसमें रोहिंगया मुसलमानों का नाम जनगणना की लिस्ट से निकाल दिया गया है, कि कड़े शब्दों में निंदा की है। इस्लामी सहयोग कमेटी के जनरल सिक्रेट्री अयाद अमीन मदनी नें म्यांमार सरकार के इस क़दम को इन्सानी और नागरिक अधिकारों का उल्लंघन बताया है।
महिलाओं के भविष्य के लिए पश्चिम के अनुसरण की आवश्यकता नहीं
ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की भरपूर भागीदारी पर बल देते हुए कहा है कि इस्लामी क्रान्ति के आंदोलन में महिलाओं का योगदान पुरुषों से कम नहीं रहा है और हमें अपनी महिलाओं के भविष्य के लिए रोडमैप तय्यार करने हेतु पश्चिम का अनुसरण करने की कोई आवश्यकता नहीं है।
राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्रों में सक्रिय महिला बुद्धिजीवियों और कार्यकर्ताओं के सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि हम इस्लामी मूल्यों के आधार पर पुरुष को श्रेष्ठ नहीं मानते और न ही महिला और पुरुष के बीच कोई मुक़ाबला और टकराव है बल्कि वे दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। राष्ट्रपति रूहानी ने पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हरा के शुभ जन्म दिवस का हवाला देते हुए उनके महान व्यक्तित्व और गुणों से पाठ लेने की आवश्यकता पर बल दिया।
राष्ट्रपति रूहानी ने बल देकर कहा कि महिलाओं को समान सामाजिक अधिकार और अवसर प्राप्त होने चाहिए और इस संदर्भ में हमारे सामने अभी लंबा रास्ता है।
ईरान को सामूहिक विनाश के शस्त्रों की कोई आवश्यकता नहीं
ईरान की थल सेना कमांडर ने कहा है कि ईरान की सशस्त्र सेना को परमाणु और सामूहिक विनाश के हथियारों की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसका मानना है कि वह प्रचलित नये व स्थानीय हथियारों से हर प्रकार के अतिक्रमण का उत्तर दे सकती है।
ब्रिगेडियर जनरल अहमद रज़ा पूरदस्तान ने ईरान में रहने वाले विदेशी सेनाओं से संबंधित अधिकारियों से भेंट में कहा कि ईरानी राष्ट्र ने बारम्बार अपने धार्मिक विश्वासों और ईरान के वरिष्ठ नेता के फतवे को आधार बनाकर घोषणा की है कि वह परमाणु हथियारों और सामूहिक विनाश के हथियारों के प्रयोग का मुखर विरोधी है और उनके प्रयोग को न केवल ईरान बल्कि पूरी दुनिया में हराम और मानवीय प्रतिष्ठा के सिद्धांतों के विरुद्ध मानता है।
महिलाओं के बारे में पश्चिम के विचारों को आधार न बनाया जाए
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने ईरान में शिक्षित, प्रतिभावान और अच्छी विचारधारा रखने वाली वाली महिलाओं की बड़ी संख्या को इस्लामी गणतंत्र ईरान के लिए बड़ी गौरवपूर्ण ईश्वरीय विभूति बताया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने शनिवार को पैग़म्बरे इस्लाम की सुपुत्री हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा सलामुल्लाह अलैहा के शुभ जन्म दिवस के अवसर पर सैकड़ों की संख्या में महिला बुद्धिजीवियों से मुलाक़ात में महिलाओं के मामले में पश्चिम के ग़लत और रूढ़िवादी विचारों को आधार और केन्द्र बनाने से परहेज़ की सलाह दी और महिलाओं की महान क्षमताओं के सही व स्वस्थ उपयोग के लिए इस्लामी शिक्षाओं को आधार बनाने को महत्वपूर्ण रणनीति घोषित किया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने महिला के विषय को इस्लाम के मानवीय दृष्टिकोण के आधार पर परखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आध्यात्मिक ऊंचाइयों को तय करने के संबंध में महिला और पुरुष में कोई अंतर नहीं है केवल इस सफ़र के प्रारूप अलग अलग हैं अतः इस प्रक्रिया के जहां कुछ संयुक्त मंच हैं वहीं स्वाभाविक रूप से कुछ एसे मंच भी हैं जो एक दूसरे से अलग हैं।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने महिलाओं के बारे में पश्चिमी देशों में प्रकाशित होने वाली पुस्तकों का हवाला देते हुए कहा कि यदि हम महिला के बारे में तार्किक, स्वस्थ, सूक्ष्म और पथप्रदर्शक दृष्टिकोण अपनाना चाहते हैं तो रोज़गार तथा महिला व पुरुष की बराबरी जैसे विषयों में पश्चिम की विचारधारा से स्वयं को अलग करना होगा। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमें महिलाओं के बारे में पश्चिम के दृष्टिकोण से पूर्ण रूप से अवगत होना चाहिए किंतु इन दृष्टिकोणों को आधार पर केन्द्र बनाए जाने का कड़ाई से मुक़ाबला करते हुए मन को इन आधुनिक दिखने वाले पुराने विचारों तथा विदित रूप से सहानुभूतिपूर्ण दिखाई देने वाले किंतु वास्तव में विश्वासघाती विचारों से मुक्त करना होगा क्योंकि इन विचारों से मानव समाज के कल्याण व सफलता का मार्ग कदापि प्रशस्त नहीं हो सकता।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने सृष्टि व संसार के बारे में पश्चिम के भौतिकवादी दृष्टिकोण को महिला के बारे में पश्चिम के विचारों के भटकाव का मुख्य कारण बताया और कहा कि रोज़गार सहित आर्थिक मामलों में महिलाओं की क्षमताओं को सौदागरों की दृष्टि से परखना तथा महिलाओं को अपमान की निगाह से देखना भी एसे कारक हैं जिन्होंने महिलाओं के बारे में पश्चिमी विचारों को रूढ़िवादी और अन्यायपूर्ण बना दिया है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने अंनेक अंतर्राष्ट्रीय कन्वेन्शनों के मूल वैचारिक आधारों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इन आधारों पर पश्चिमी देशों आग्रह मानव समाज को ध्वस्त कर रहा है अतः सही व संतुलित विचारधारा स्थापित करने के लिए इन आधारों से बचना आवश्यक है।
महिलाओं के प्रति पश्चिम के विचारः रूढ़िवादी व पुराने
वरिष्ठ नेता ने पैगम्बरे इस्लाम की पुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म दिवस के अवसर पर इस्लामी समाज में महिलाओं के स्थान के बारे में महत्वपूर्ण बयान दिया है।
पैगम्बरे इस्लाम की पुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म दिवस के अवसर पर ईरान की हज़ारों बुद्धिजीवियों महिलाओं ने वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई से भेंट की। इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने महिलाओं के मामले में पश्चिम के ग़लत और रूढ़िवादी विचारों को आधार और केन्द्र बनाने से बचने की सलाह दी और महिलाओं की अपार संभावनाओं के सही उपयोग के लिए इस्लामी शिक्षा को आधार बनाने को महत्वपूर्ण रणनीति घोषित किया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने महिलाओं के विषय को इस्लाम के मानवीय दृष्टिकोणों के आधार पर परखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आध्यात्मिक ऊंचाइयों को तय करने के संबंध में महिला और पुरुष में कोई अंतर नहीं है और केवल इस यात्रा के रूप अलग अलग हैं अतः इस प्रक्रिया के जहां कुछ संयुक्त मंच हैं वहीं स्वाभाविक रूप से कुछ ऐसे मंच भी हैं जो एक दूसरे से अलग हैं। वास्तव में ईरान में महिलाएं, हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को अपना आदर्श मानती हैं और यही कारण है कि आज ईरान की महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपार सफलताएं अर्जित कर रही हैं।
ईरान की महिलाओं ने इसी प्रकार, देश की इस्लामी क्रांति के आंदोलन के दौरान भी हज़रत फातेमा ज़हरा को अपना आदर्श बना कर विभिन्न क्षेत्रों में संर्घषरत पुरुषों के साथ भरपूर सहयोग किया है किंतु पश्चिम में महिलाओं की स्थिति ईरान और इस जैसे देशों के पूर्ण रूप से भिन्न है। जैसा कि वरिष्ठ नेता ने बल दिया, पश्चिम ने विभिन्न कारणों से महिलाओं के विषय की गलत समीक्षा की है और अपनी इसी गलत विचारधारा को पूर्व विश्व में प्रचलित किया और इस संदर्भ में उन्होंने किसी और को बोलने तक की अनुमति नहीं दी।
पश्चिम में महिलाओं को पूर्ण रूप से भौतिक दृष्टि से देखा जाता है बल्कि उसे एक सामान समझा जाता है। पश्चिम का प्रयास है कि वह यह विचार धारा विभिन्न देशों में फैलाए और इसे एक संस्कृति के रूप में पूरे विश्व में प्रचलित कर दे। वरिष्ठ नेता ने इसी ओर संकेत करते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि महिलाओं के बारे में पश्चिम की गलत विचारधारा के सामने डट जाना चाहिए और नयी दिखने वाली इस पुरानी व रूढ़िवादी विचारधारा को मन व मस्तिष्क से मिटा देना चाहिए
महिलाओं के प्रति पश्चिम के विचारः रूढ़िवादी व पुराने
वरिष्ठ नेता ने पैगम्बरे इस्लाम की पुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म दिवस के अवसर पर इस्लामी समाज में महिलाओं के स्थान के बारे में महत्वपूर्ण बयान दिया है।
पैगम्बरे इस्लाम की पुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा के जन्म दिवस के अवसर पर ईरान की हज़ारों बुद्धिजीवियों महिलाओं ने वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई से भेंट की। इस भेंट में वरिष्ठ नेता ने महिलाओं के मामले में पश्चिम के ग़लत और रूढ़िवादी विचारों को आधार और केन्द्र बनाने से बचने की सलाह दी और महिलाओं की अपार संभावनाओं के सही उपयोग के लिए इस्लामी शिक्षा को आधार बनाने को महत्वपूर्ण रणनीति घोषित किया।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने महिलाओं के विषय को इस्लाम के मानवीय दृष्टिकोणों के आधार पर परखने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि आध्यात्मिक ऊंचाइयों को तय करने के संबंध में महिला और पुरुष में कोई अंतर नहीं है और केवल इस यात्रा के रूप अलग अलग हैं अतः इस प्रक्रिया के जहां कुछ संयुक्त मंच हैं वहीं स्वाभाविक रूप से कुछ ऐसे मंच भी हैं जो एक दूसरे से अलग हैं। वास्तव में ईरान में महिलाएं, हज़रत फातेमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा को अपना आदर्श मानती हैं और यही कारण है कि आज ईरान की महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपार सफलताएं अर्जित कर रही हैं।
ईरान की महिलाओं ने इसी प्रकार, देश की इस्लामी क्रांति के आंदोलन के दौरान भी हज़रत फातेमा ज़हरा को अपना आदर्श बना कर विभिन्न क्षेत्रों में संर्घषरत पुरुषों के साथ भरपूर सहयोग किया है किंतु पश्चिम में महिलाओं की स्थिति ईरान और इस जैसे देशों के पूर्ण रूप से भिन्न है। जैसा कि वरिष्ठ नेता ने बल दिया, पश्चिम ने विभिन्न कारणों से महिलाओं के विषय की गलत समीक्षा की है और अपनी इसी गलत विचारधारा को पूर्व विश्व में प्रचलित किया और इस संदर्भ में उन्होंने किसी और को बोलने तक की अनुमति नहीं दी।
पश्चिम में महिलाओं को पूर्ण रूप से भौतिक दृष्टि से देखा जाता है बल्कि उसे एक सामान समझा जाता है। पश्चिम का प्रयास है कि वह यह विचार धारा विभिन्न देशों में फैलाए और इसे एक संस्कृति के रूप में पूरे विश्व में प्रचलित कर दे। वरिष्ठ नेता ने इसी ओर संकेत करते हुए स्पष्ट रूप से कहा है कि महिलाओं के बारे में पश्चिम की गलत विचारधारा के सामने डट जाना चाहिए और नयी दिखने वाली इस पुरानी व रूढ़िवादी विचारधारा को मन व मस्तिष्क से मिटा देना चाहिए
दक्षिणी सूडान में हुआ आक्रमण युद्ध अपराध हो सकता है,
सुरक्षा परिषद ने दक्षिणी सूडान में संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय पर हुए आक्रमण को जिसमें 58 लोग हताहत और 100 अन्य घायल हुए थे, युद्ध अपराध की संज्ञा देने की चेतावनी दी है।
संयुक्त राष्ट्र को एक ज्ञापन देने के बहाने प्रदर्शनकारियों की आड़ में कुछ सशस्त्र लोग संयुक्त राष्ट्र संघ के मुख्यालय में प्रविष्ट हो गये और उन्होंने मुख्यालय में शरण लिए हुए लगभग पांच हज़ार लोगों पर अंधाधुंध फ़ायरिंग आरंभ कर दी। शुक्रवार को हुए इस आक्रमण पर गहरा आक्रोश व्यक्त करते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने दक्षिणी सूडान सरकार से नागरिकों के विरुद्ध भविष्य में इस प्रकार के आक्रमणों की रोकथाम करने के अधिक उपाय करने की मांग की है। सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने कड़े शब्दों में इस कृत्य की निंदा की और सर्वसम्मति से एक बयान जारी किया जिसमें नागरिकों व संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों पर हमले को युद्ध अपराध की संज्ञा देने की चेतावनी दी।
दक्षिण सूडान में संयुक्तन राष्ट्री के शीर्ष अधिकारी टोबी लैंजर ने भारत, नेपाल और दक्षिण कोरिया की शांति सेना की प्रशंसा करते हुए कहा कि उन्होंने इस घटना को 5,000 लोगों की नृशंस हत्या की घटना बनने से रोक लिया।
टोबी ने कहा कि संयुक्त राष्ट्रस आम लोगों को बचाने के लिए आवश्यकता पड़ी तो फिर से बल प्रयोग करेगा। उन्होंने कहा कि हम अपनी सुरक्षा में मौजूद लोगों की रक्षा के लिए हम हर संभव काम करेंगे। उन्होंने बताया कि शिविर के भीतर से महिलाओं और बच्चों सहित 48 शव मिले हैं, जबकि शिविर के बाहर से 10 हमलावरों के शव मिले हैं।
धार्मिक चरमपंथ पर क़ाबू पाना समय की बड़ी ज़रूरत है
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता, आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने ईरान और आज़रबाइजान के संयुक्त हितों के शत्रुओं से मुक़ाबले पर बल दिया है।
बुधवार को आज़रबाइजान गणराज्य के राष्ट्रपति इलहाम अलीओफ़ से मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने दोनों देशों के बीच धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंधों को द्विपक्षीय संबंधों में अधिक विस्तार के लिए महत्वपूर्ण क़रार दिया।
वरिष्ठ नेता ने कहा कि द्विपक्षीय समझौतों को लागू करने में राजनीतिक इच्छाशक्ति और गंभीरता दिखानी चाहिए तथा रुकावटों को हटाकर दोनों देशों के संबंधों को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है।
वरिष्ठ नेता ने सचेत किया कि धार्मिक चरमपंथ का प्रसार मुसलमानों की एकता के लिए ख़तरा है इसलिए चरमपंथ पर क़ाबू पाने की आवश्यकता है।
उन्होंने आगे कहा कि ज़ायोनी शासन और उसके सहयोगी ईरान और आज़रबाइजान के बीच अच्छे संबंधों से प्रसन्न नहीं हैं, इसीलिए दोनों देशों के बीच तनाव उत्पन्न करने की साज़िश रचते रहते हैं।
वरिष्ठ नेता के अनुसार, मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति से इन साज़िशों का मुक़ाबला किया जा सकता है।
आज़रबाइजान के राष्ट्रपति इलहाम अलीओफ़ ने भी धार्मिक चरमपंथ को दोनों देशों की चिंताओं का कारण बताते हुए कहा कि उनका देश ईरान के साथ रिश्तों के विस्तार और उन्हें मज़बूत बनाने के लिए मज़बूत राजनीतिक इच्छाशक्ति रखता है।
अलीओफ़ ने ईरान के सम्मान को आज़रबाइजान का सम्मान बताते हुए कहा कि दोनों देशों के मज़बूत रिश्ते दूसरों को इन पर नकारात्मक प्रभाव डालने की अनुमति नहीं देंगे।
आज़रबाइजान के राष्ट्रपति ने कहा कि ईरान की उनकी यात्रा से तेहरान और बाकू के बीच उद्योग, व्यापार और पर्यटन समेत विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग में वृद्धि होगी।
पैग़म्बरे इस्लाम की झलक, इमाम ख़ुमैनी
चौदह खुरदाद वर्ष 1368 हिजरी शम्सी अर्थात चार जून वर्ष 1989 ईसवी को विश्व एक ऐसे महापुरूष से हाथ धो बैठा जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, अदम्य साहस, समझबूझ और ईश्वर पर पूर्ण विश्वास के साथ संसार के सभी साम्राज्यवादियों विशेषकर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किया और इस्लामी प्रतिरोध की पताका पूरी धरती पर फहराई।
इमाम खुमैनी का पवित्र और ईश्वरीय भय से ओतप्रोत जीवन ईश्वरीय प्रकाश को प्रतिबिंबित करने वाला दर्पण है और वह पैगम्बरे इस्लाम (स) की जीवन शैली से प्रभावित रहा है। इमाम खुमैनी ने पैगम्बरे इस्लाम (स) के जीवन के सभी आयामों को अपने लिये आदर्श बनाते हुये पशिचमी एवं पूर्वी समाजों की संस्कृति की गलत व अभद्र बातों को रद्द करके आध्यात्म एंव ईश्वर पर विश्वास की भावना समाजों में फैला दी और यही वह वातावरण था जिसमें साहसी और ऐसे युवाओं का प्रशिक्षण हुआ जिन्होने इस्लाम का बोलबाला करने में अपने जीवन की बलि देने में भी हिचकिचाहट से काम नहीं लिया ।
पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स) की पैगम्बरी की घोषणा अर्थात बेसत की वर्षगांठ की तिथि भी निकट है अतः हम इमाम खुमैनी के व्यक्तित्व पर इस आयाम से प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे कि उन्होने इस युग में किस प्रकार पैगम्बरे इस्लाम (स) के चरित्र और व्यवहार को व्यवहारिक रूप में प्रस्तुत किया।
पश्चिमी जगत में घरेलू कामकाज को महत्वहीन समझा जाता है। यही कारण है कि अनेक महिलायें अपने समय को घर के बाहर व्यतीत करने में अधिक रूचि रखती हैं। जबकि पैगम्बरे इस्लाम (स) के हवाले से बताया जाता है कि पैगम्बरे इस्लाम (स) ने एक दिन अपने पास मौजूद लोगों से पूछा कि वे कौन से क्षण हैं जब महिला ईश्वर से बहुत निकट होती है? किसी ने भी कोई उचित उत्तर नहीं दिया। जब हज़रत फ़ातिमा की बारी आई तो उन्होने कहा वह क्षण जब महिला अपने घर में रहकर अपने घरेलू कामों और सन्तान के प्रशिक्षण में व्यस्त होती है तो वह ईश्वर के अत्यन्त निकट होती है। स्वर्गीय इमाम खुमैनी भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पदचिन्हों पर चलते हुये घर के वातावरण में माता की भूमिका पर अत्यिधक बल देते थे। कभी-कभी लोग इमाम ख़ुमैनी से कहते थे कि महिला क्यों घर में रहे तो वे उत्तर देते थे कि घर के कामों को महत्वहीन न समझो, यदि कोई एक व्यक्ति का प्रशिक्षण कर सके तो उसने समाज के लिये बहुत बड़ा काम किया है। स्नेह व प्रेम स्त्री में बहुत अधिक होता है और परिवार का वातावरण और आधार प्रेम पर ही होता है।
इमाम खुमैनी अपने कर्म और व्यवहार में अपनी पत्नी के बहुत अच्छे सहायक थे। इमाम खुमैनी की पत्नी कहती हैः चूंकि बच्चे रात को बहुत रोते थे और सवेरे तक जागते रहते थे, इस बात के दृष्टिगत इमाम खुमैनी ने रात के समय को बांट दिया था। इस प्रकार से कि दो घंटे वे बच्चों को संभालते और मैं सोती थी और फिर दो घंटे वे सोते थे और मैं बच्चों को संभालती थी। अच्छी व चरित्रवान सन्तान, सफल जीवन का प्रमाण होती है। माता पिता के लिये जो बात बहुत अधिक महत्व रखती है वह यह है कि उनका व्यवसाय और काम तथा जीवन की कठिनाइयां उनको इतना व्यस्त न कर दें कि वे अपनी सन्तान के लालन-पालन एवं प्रशिक्षण की अनदेखी करने लगें।
पैगम्बरे इस्लाम (स) का कथन हैः अच्छी संतान, स्वर्ग के फूलों में से एक फूल है अतः आवश्यक है कि माता-पिता अपने बच्चों के विकास और सफलताओं के लिये प्रयासरत रहें।
इमाम ख़ुमैनी बच्चों के प्रशिक्षण की ओर से बहुत अधिक सावधान रहते थे। उन्होने अपनी एक बेटी से, जिन्होंने अपने बच्चे की शैतानियों की शिकायत की थी कहा थाः उसकी शैतानियों को सहन करके तुमको जो पुण्य मिलता है उसको मैं अपनी समस्त उपासनाओं के सवाब से बदलने को तैयार हूं। इस प्रकार इमाम खुमैनी बताना चाहते थे कि बच्चों की शैतानियों पर क्रोधित न हों, और सन्तान के लालन-पालन में मातायें जो कठिनाइयां सहन करती हैं वे ईश्वर की दृष्टि में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और परिवार व समाज के लिये भी इनका महत्व बहुत अधिक है।
स्वर्गीय इमाम खुमैनी के निकट संबंधियों में से एक का कहना है कि इमाम खुमैनी का मानना था कि बच्चों को स्वतंत्रता दी जाए। जब वह सात वर्ष का हो जाये तो उसके लिये सीमायें निर्धारित करो। वे इसी प्रकार कहते थे कि बच्चों से सदैव सच बोलें ताकि वे भी सच्चे बनें, बच्चों का आदर्श सदैव माता पिता होते हैं। यदि उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तो वे अच्छे बनेंगे। आप बच्चे से जो बात करें उसे व्यवहारिक बनायें।
हजरत मोहम्मद (स) बच्चों के प्रति बहुत कृपालु थे। उन्हें चूमते थे और दूसरों से भी ऐसा करने को कहते थे। बच्चों से प्रेम करने के संबंध में वे कहते थेः जो भी अपनी पुत्री को प्रसन्न करे तो उसका पुण्य ऐसा है जैसे हजरत इस्माईल पैगम्बर की सन्तान में से किसी दास को दास्ता से स्वतंत्र किया हो और वह व्यक्ति जो अपने पुत्र को प्रसन्न करे वह एसे व्यक्ति की भांति है जो ईश्वर के भय में रोता रहा हो और एसे व्यक्ति का पुरस्कार स्वर्ग है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे वआलेही वसल्लम का जीवन बहुत ही साधारण, बल्कि साधारण से भी निम्न स्तर का था। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके जीवन के बारे में बताते हैं कि पैग़म्बर (स) दासों के निमंत्रण को स्वीकार करके उनके साथ भोजन कर लेते थे। वे धरती पर बैठते और अपने हाथ से बकरी का दूध दूहते थे। जब कोई उनसे मिलने आता था तो वे टेक लगाकर नहीं बैठते थे। लोगों के सम्मान में वे कठिन कामों को भी स्वीकार कर लेते और उन्हें पूरा करते थे।
स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी भी अपने जीवन के सभी चरणों में चाहे वह क़ुम के फ़ैज़िया नामक धार्मिक शिक्षा केन्द्र में उनकी पढ़ाई का काल रहा हो या इस्लामी गणतंत्र ईरान के नेतृत्व का समय उनका जीवन सदैव, अत्यधिक साधारण स्तर का रहा है। वे कभी इस बात को स्वीकार नहीं करते थे कि उनके जीवन का स्तर देश के साधारण लोगों के स्तर से ऊपर रहे।
इमाम ख़ुमैनी के एक साथी का कहना है कि जब वे इराक़ के पवित्र नगर नजफ़ में रह रहे थे तो उस समय उनका घर, किराये का घर था जो नया नहीं था। वह एसा घर था जिसमें साधारण छात्र रहते थे। इस प्रकार से कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमैनी का जीवन स्तर साधारण छात्रों ही नहीं बल्कि उनसे भी निम्न स्तर का था। ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के पश्चात शासन प्रणाली का नेतृत्व संभालने के बाद से अपने जीवन के अंत तक जमारान इमामबाड़े के पीछे एक छोटे से घर में रहे। उनके जीवन का आदर्श चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) थे अतः उन्होंने अपने घर के भीतर आराम देने वाला कोई छोटा सा परिवर्तन भी स्वीकार नहीं किया और इराक़ द्वारा थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में भी वे अपने उसी साधारण से पुराने घर में रहे और वहीं पर अपने छोटे से कमरे में विश्व के नेताओं से भेंट भी करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण, व्यवहार और शिष्टाचार के दृष्टिगत इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी क्रांति के नेतृत्व की कठिनाइयों को कभी व्यक्त नहीं किया और कभी भी स्वयं को दूसरों से आगे लाने का प्रयास भी नहीं किया। वे सदैव यही मानते और कहते रहे कि “मुझे यदि जनता का सेवक कहो तो यह इससे अच्छा है कि मुझे नेता कहो”
इमाम ख़ुमैनी जब भी युद्ध के जियालों के बीच होते तो कहते थे कि मैं जेहाद और शहादत से पीछे रह गया हूं अतः आपके सामने लज्जित हूं। युद्ध में हुसैन फ़हमीदे नामक किशोर के शहीद होने के पश्चात उसके बारे में इमाम ख़ुमैनी का यह वक्तव्य बहुत प्रसिद्ध है कि हमारा नेता बारह वर्ष का वह किशोर है जिसने अपने नन्हे से हृदय के साथ, जिसका मूल्य हमारी सैकड़ों ज़बानों और क़लम से बढ़कर है हैंड ग्रेनेड के साथ स्वंय को शत्रु के टैंक के नीचे डाल दिया, उसे नष्ट कर दिया और स्वयं भी शहीद हो गया।
लोगों के प्रेम का पात्र बनना और उनके हृदयों पर राज करना, विभिन्न कारणों से होता है और उनकी अलग-अलग सीमाएं होती हैं। कभी भौतिक कारण होते हैं और कभी व्यक्तिगत विशेषताएं होती हैं जो दूसरों को आकर्षित करती हैं और कभी यह कारण आध्यात्मिक एवं ईश्वरीय होते हैं और व्यक्ति की विशेषताएं ईश्वर और धर्म से जुड़ी होती हैं। ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में वचन दिया है कि जो लोग ईश्वर पर ईमान लाए और भले कार्य करते हैं, कृपालु ईश्वर उनका प्रेम हृदयों में डाल देता है। इस ईश्वरीय वचन को पूरा होते हम सबसे अधिक हज़रत मुहम्मद (स) के व्यक्तित्व में देखते हैं कि जिनका प्रेम विश्व के डेढ अरब मुसलमानों के हृदय में बसा हुआ है।
इमाम ख़ुमैनी भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्रेम में डूबे हुए हृदय के साथ इस काल के लोगों के हृदय में अनउदाहरणीय स्थान रखते हैं। इमाम ख़ुमैनी के बारे में उनके संपर्क में आने वाले ईरानियों ने तो उनके व्यक्तित्व एंव प्रवृत्ति के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा है ही विदेशियों ने भी माना है कि इमाम ख़ुमैनी समय और स्थान में सीमित नहीं थे। विश्व के विभिन्न नेताओं यहां तक कि अमरीकियों में भी जिसने इमाम ख़ुमैनी से भेंट की वह उनके व्यक्तित्व और बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इमाम ख़ुमैनी पूरे संतोष के साथ साधारण शब्दों में ठोस और सुदृढ़ बातें करते थे। उनके शांत मन और ठोस संकल्प को बड़ी से बड़ी घटनाएं और ख़तरे भी प्रभावित नहीं कर पाते थे। संसार को वे ईश्वर का दरबार मानते थे और ईश्वर की कृपा और सहायता पर पूर्ण विश्वास रखते थे तथा यह विषय, नेतृत्व संबन्धी उनके इरादों के बारे में बहुत प्रभावी था। इस बात को सिद्ध करने के लिए बस यह बताना काफ़ी होगा कि जब सद्दाम की सेना ने इस्लामी क्रांति की सफलता के तुरंत बाद ईरान पर अचानक आक्रमण किया तो इमाम ख़ुमैनी ने जनता से बड़े ही सादे शब्दों में कहा था कि “एक चोर आया, उसने एक पत्थर फेंका और भाग गया”। इमाम के यह सादे से शब्द, प्रकाश और शांति का स्रोत बनकर लोगों में शांति तथा साहस भरने लगे और चमत्कार दिखाने लगे। इमारी दुआ है कि उनकी आत्मा शांत और उनकी याद सदा जीवित रहे।
तेहरान हवाई अड्डे पर उतरा जहाज़ घाना का हैः विदेश मंत्रालय
ईरानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मर्ज़िया अफ़्ख़म
ईरान के विदेश मंत्रालय ने तेहरान के मेहराबाद हवाई अड्डे पर एक अमरीकी विमान के उतरने के संबंध में प्रसारित समाचारों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि इस हवाई जहाज़ में घाना का एक प्रतिनिधिमंडल सवार था और इस देश की सरकार के अनुसार इस जहाज़ का स्वामी अमरीका है और इस जहाज़ को ग़ाना के राष्ट्रपति कार्यालय ने किराए पर लिया है।
इरना के अनुसार ईरानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मर्ज़िया अफ़्ख़म ने पत्रकारों को बताया कि इस हवाई जहाज़ में ग़ाना के कुछ अधिकारियों का प्रतिनिधिमंडल सवार था कि जिसकी अगुवाई घाना के राष्ट्रपति के भाई कर रहे थे और इस जहाज़ के कर्मी दल में कोई भी अमरीकी नहीं था।
उन्होंने बताया कि ईरान और घाना द्विपक्षीय संबंधों में विस्तार के लिए कोशिश कर रहे हैं और पिछले हफ़्ते घाना का एक प्रतिनिधिमंडल ईरान आया था ताकि दो साल पहले ग़ाना के राष्ट्रपति के ईरान दौरे के समय जो सहमति हुयी थी उसकी समीक्षा करे।
यह प्रतिनिधिमंडल ईरान के अफ़्रीक़ी मामलों के उपविदेश मंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान सहित कई अधिकारियों से भेंटवार्ता के बाद गुरुवार को स्वदेश रवाना हो गया।
दूसरी ओर ईरान ने दक्षिण कोरियाई सरकार व राष्ट्र के प्रति नौका दुर्घटना पर संवेदना प्रकट की है।
शुक्रकवार को ईरानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता मर्ज़िया अफ़्ख़म ने इस हृदयविदारक घटना पर दुख प्रकट किया जिसमें दर्जनों दक्षिण कोरिया नागरिक ख़ास तौर पर हाई स्कूल के छात्रों की मौत हो गयी।