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नूरी मालेकी ने इराक़ में परिवर्तन पर बल दियाइराक के प्रधानमंत्री नूरी मालेकी ने इस देश में परिवर्तन की आवश्यकता पर बल दिया है।

प्राप्त समाचारों के अनुसार नूरी मालेकी ने कहा कि विदेशी षडयंत्रों के कारण विकास की बहुत से योजनाएं बंद पड़ी हैं। उन्होंने कहा कि विदेशियों का लक्ष्य इन योजनाओं को बंद कराके लोगों को इराकी सरकार के विरुद्ध उकसाना है।

इराक के प्रधानमंत्री ने कहा कि विदेशियों के षडयंत्रों के कारण वर्षों से बहुत सी योजनाएं बंद पड़ी हैं और इस समय उनमें विशेषकर राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन की आवश्यकता है।

कराची में एक शीया वकील की हत्या कर दी गयीपाकिस्तान के सबसे बड़े नगर कराची में एक शीया वकील की गोली मार कर हत्या कर दी गयी है।

प्रेस टीवी की रिपोर्ट के अनुसार अज्ञात बंदूक धारियों ने शुक्रवार को कराची नगर में एक शीया वकील की गोली मारकर हत्या कर दी। आक्रमणकारियों की पहचान के बारे में कोई सूचना प्राप्त नहीं है। पिछले ४८ घंटों के दौरान भी आतंकवादियों ने एक वकील और तीन व्यापारियों की हत्या कर दी थी। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग ने घोषणा की थी कि पिछला वर्ष कराची की जनता के लिए सबसे रक्तरंजित वर्ष था।

ईरान की समस्त उपलब्धियां प्रतिरोध का परिणमा हैंईरान के इस्लामी संरक्षण बल सिपाहे पासदारान के एक कमांडर ने कहा है कि विश्व की बड़ी शक्तियां दबाव डालकर ईरान को प्रगति से नहीं रोक सकतीं।

ब्रिगेडियर जनरल अमीर अली हाजी ज़ादे ने कहा कि आज ईरानी राष्ट्र ने जो समस्त सफलताएं व उपलब्धियां अर्जित की हैं वह बड़ी शक्तियों के मुकाबले में इस्लामी संघर्षकर्ताओं के प्रतिरोध का परिणाम है। उन्होंने ईरान और पश्चिमी देशों के मध्य होने वाली वार्ताओं की ओर संकेत करते हुए कहा कि पश्चिमी देशों के पास ईरान के साथ वार्ता करने के अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं बचा था और इसके साथ ही ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध तीन दशकों तक अमेरिका की शत्रुतापूर्ण नीतियों के दृष्टिगत वाशिंग्टन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण नहीं रखा जा सकता।

उन्होंने लीबिया जैसे देशों द्वारा अमेरिका को विशिष्टता दिये जाने के बावजूद कहा कि पश्चिमी देश पाकिस्तान, इराक और सीरिया में अशांति के कारण हैं। उन्होंने स्वर्गीय इमाम खुमैनी के मार्ग के अनुसरण को असुरक्षा व अशांति के मुकाबले में ईरान में सफलता व शांति का कारण बताया। ब्रिगेडियर जनरल अमीर अली हाजी ज़ादे ने कहा है कि कुछ तकनीक में ईरान इतना आगे पहुंच चुका है कि कुछ बड़ी शक्तियां ईरान से सहायता मांग रही हैं।

बुधवार, 09 अप्रैल 2014 06:49

इस्राईली आतंकवाद

इस्राईली आतंकवाद

रामल्लाह में अत्याचारी ज़ायोनी फ़ौजियों का हमला, कई लोग घायल

रामल्लाह के पास बैतूनिया सिटी में ज़ायोनी जेल ओफ़र के सामने धरना देने वाले फ़िलिस्तीनियों को खदेड़ने के लिये उन पर फ़ायरिंग कर दी जिसमें तेरह फ़िलिस्तीनी नागरिक घायल हो गए

इस्राईली फ़ौजियों नें शनिवार के दिन पश्चिमी किनारे में स्थित रामल्लाह के पास बैतूनिया सिटी में ज़ायोनी जेल ओफ़र के सामने धरना देने वाले फ़िलिस्तीनियों को खदेड़ने के लिये उन पर फ़ायरिंग

यूरोपीय संसद के प्रस्ताव की ईरानी संसद में निंदाईरान की संसद ने एक प्रस्ताव पारित करके यूरोपीय संसद के उस प्रस्ताव की कड़ी आलोचना की है जिसमें ईरान में मानवाधिकार की स्थिति और चुनावों की शैली पर चिंता जताई गई थी।

258 सांसदों के समर्थन से पारित होने वाले ईरान की संसद के इस प्रस्ताव में कहा गया है कि यूरोपीय संसद ने हाल ही में ईरान के संबंध में एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें कुछ सकारात्मक बिंदु भी हैं किंतु इस प्रस्ताव का सार ईरान और यूरोपीय संघ के बीच बढ़ते संबंधों से पूर्ण विरोधाभास रखता है।

यूरोपीय संसद ने अपने प्रस्ताव में ईरान में मानवाधिकार की स्थिति पर चिंता जताई थी और कहा था कि जून 2013 में ईरान में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव जिसमें भारी मतदान के बाद राष्ट्रपति हसन रूहानी का चयन हुआ था यूरोपीय संघ के मानकों पर पूरे नहीं उतरते। ईरान की संसद ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि यूरोपीय संसद ने यह प्रस्ताव पारित करके ईरान के आंतरिक मामले में खुला हस्तक्षेप करने का प्रयास किया है।

संसद में ईरान-पाकिस्तान सुरक्षा सहयोग का बिल पासईरानी संसद ने ईस्लामी गणतंत्र ईरान की सरकार और पाकिस्तानी सरकार के बीच सुरक्षा सहयोग के प्रस्ताव को पारित कर दिया है।

कुल 228 सांसदों में से 187 ने इस प्रस्ताव के पक्ष में, 14 ने इसके विरोध में मत दिया, जबकि 6 सांसद ग़ैर हाज़िर रहे।

यह प्रस्ताव मंत्रीमंडल ने संसद में पेश किया था।

इस प्रस्ताव में सहयोग के क्षेत्रों, सहयोग की शैलियों और इस पर आने वाले ख़र्च तथा अन्य विषयों को नज़र में रखा गया है। s.m

ईरान और पाकिस्तान संयुक्त सैन्य अभ्यास करेंगेईरान और पाकिस्तान हुरमुज़गान डलडमरू मध्य में संयुक्त सैनिक अभ्यास करेंगे।

ईरान की सशस्त्र सेना के जनसंपर्क विभाग ने बताया है कि पाकिस्तान की नौसेना ईरानी नौसेना के साथ मिलकर ८ अप्रैल को संयुक्त अभ्यास आयोजित करेगी और इसके लिए पाकिस्तानी नौसेना के जहाज़ ईरान के दक्षिण में स्थित बंदरअब्बास में लंगर डाल दिये हैं।

एक वरिष्ठ सैनिक अधिकारी शहरानी ईरानी ने बताया है कि यह सैन्य अभ्यास चार दिनों तक जारी रहेगा और इसके अतिरिक्त दोनों देशों के सैन्य अधिकारी समुद्री सहकारिता को और अधिक विस्तृत करने के मार्गों के बारे में विचारों का आदान प्रदान भी करेंगे।

अफ़ग़ानिस्तान में भारी मतदान ने देश का गौरव बढ़ाया हैअफ़ग़ानिस्तान में सफ़लतापूर्वक चुनावों के आयोजन और भारी संख्या में मतदान की अफ़ग़ान राष्ट्रपति हामिद करज़ई और विश्व के कई देशों के नेताओं ने सराहना की है।

अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने कहा है कि बड़ी संख्या में लोगों ने चुनाव में अपने मतों का प्रयोग करके अफ़गानिस्तान को गौरव प्रदान किया है।

याद रहे कि शनिवार को हुए चुनाव में जनता ने बड़ी संख्या में मतदान करके देश में इतिहास रच दिया है।

अफ़गानिस्तान के चुनाव आयोग के अनुसार एक करोड़ बीस लाख मतदाताओं में से सत्तर लाख से अधिक अफ़ग़ानियों ने अपने मतों का प्रयोग किया।

ईरान और पाकिस्तान समेत अनेक देशों ने अफ़ग़ानिस्तान में सफ़लतापूर्वक चुनावों के आयोजन का स्वागत किया है।

अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी एक बयान में अफ़ग़ान जनता, सुरक्षा बलों और अधिकारियों को सफ़लतापूर्वक चुनावों के आयोजन पर बधाई दी।

उल्लेखनीय है कि चुनावों में विघ्न डानले के लिए तालिबान ने धमकियां दी थीं।

चुनाव के प्रारंभिक परिणाम इस महीने के अंत तक सामने आएंगे जबकि अंतिम परिणामों की घोषणा 14 मई तक की जाएगी।

अगर राष्ट्रपति उम्मीदवारों में से कोई भी 50 प्रतिशत वोट प्राप्त नहीं कर सका तो सबसे अधिक मत प्राप्त करने वाले दो उम्मीदवारों के बीच दूसरे चरण के चुनाव में मुक़ाबला होगा।.

नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली के विचार

हज़रत अली अलैहिस्सलाम समस्त मानवीय सदगुणों में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम का आइना थे। हज़रत अली अलैहिस्सलाम एसी महान हस्ती थे जिसके बारे में पैग़म्बरे इस्लाम ने फरमाया है” अगर समस्त वृक्ष कलम बन जायें और समस्त समुद्र सियाही बन जायें और समस्त जिन्नात हिसाब करने वाले एवं समस्त मनुष्य लिखने वाले बन जायें तब भी अली बिन अबी तालिब की विशेषताओं की गणना नहीं कर सकते”

इस महान हस्ती के कथनों, पत्रों और भाषणों को एकत्रित करके उसे नहजुल बलाग़ा नामक पुस्तक का नाम दिया गया है। यह किताब इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है कि इसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पत्रों, भाषणों और वाक्यों को एकत्रित किया गया है इस प्रकार से कि पवित्र कुरआन के बाद यह सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक मानी जाती है।

फसाहत और बलाग़त की दृष्टि से भी इस्लामी जगत के बहुत से विद्वानों ने इस पुस्तक पर ध्यान दिया है। इस किताब में एकेश्वरवाद, न्याय, रचना, उत्पत्ति, ईश्वरीय भय व सदाचारिता, सदाचारी, मोमिन और मुनाफिक़ अर्थात मिथ्याचारी व्यक्तियों की विशेषता, सामाजिक मामले,सरकारी दायित्व और पवित्र कुरआन की कुछ आयतों की व्याख्या वे विषय हैं जो इस किताब में मौजूद हैं। इसी प्रकार इस किताब में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के सदगुण, परामर्श, प्रायश्चित, महान ईश्वर पर भरोसा, नैतिक व अनैतिक विशेषताएं आदि दूसरे सैकड़ों विषय इस किताब में हैं जो सुनने और पढ़ने वालों को बहुत प्रभावित करते हैं और विषयों की भिन्नता प्यासे लोगों को तृप्त करती है।

नहजुल बलाग़ा वह किताब है जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम के उच्च विचारों के एक छोटे से भाग को बयान करती है। एक हज़ार वर्ष पूर्व हज़रत अली अलैहिस्सलाम के विचारों, कथनों और भाषणों को एकत्रित करके एक पुस्तक का रूप दिया गया और इस मूल्यवान पुस्तक का नाम नहजुल बलाग़ा रखा गया। यह वह किताब है जिसमें हज़रत अली अलैहिस्सलाम के मूल्यवान विचारों का एक प्रतिबिंबन है जिसे समय की प्राचीनता की धूल न तो पुराना कर सकी और न ही उसका वैभव कम हुआ और सब लोग हज़रत अली अलैहिस्सलाम के अथाह ज्ञान और तत्वदर्शिता के समक्ष नतमस्तक हैं यहां तक कि शत्रुओं और मित्रों दोनों ने इस किताब की प्रशंसा की है।

अलबत्ता यहां इस बात का उल्लेख आवश्यक है कि नहजुल बलाग़ा पुस्तक में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के समस्त कथन, भाषण और पत्र नहीं हैं बल्कि इस किताब के संकलनकर्ता ने अपनी रूचि के अनुसार उनके कथनों, भाषणों और पत्रों को एकत्रित किया है।

नहजुल बलाग़ा किताब में मौजूद पद की शैली इतनी रोचक, अनुपम और मार्मिक है कि पवित्र कुरआन के बाद अरब जगत में साहित्य और भाषा की दृष्टि से वह अद्वतीय है। इसी कारण उसका नाम नहजुल बलाग़ा रखा गया है। नहज का अर्थ है वार्ता की पद्द्धि व शैली और बलीग़ उस व्यक्ति को कहा जाता है जो अच्छी शैली में बात करे, संबोधकों के हाल को ध्यान में रखे और समय व स्थान को भी दृष्टि में रखे और संबोधक को देखकर वार्ता को संक्षिप्त या विस्तृत करे। वास्तव में प्रभावी बात को कलामे बलीग़ कहा जाता है इस प्रकार से कि संबोंधक को अच्छी लगे और उसे प्रभावित करे। क्योंकि इस किताब में आध्यात्मिक, ग़ैर आध्यात्मिक, सुन्दर और उच्च अर्थ की दृष्टि से विषय अरबी भाषा में पद साहित्य की दृष्टि से अपने चरम शिखर पर हैं। पिछले लगभग हज़ार वर्षों से विद्वान, छात्र और ज्ञान के प्यासे लोग इस किताब से लाभ उठाते रहे हैं बहुत से लोग उसमें मौजूद भाषणों आदि को याद करते हैं इस प्रकार से कि अपनी बातों को सही सिद्ध करने के लिए नहजुल बलाग़ा का सहारा लेते और उसका हवाला देते हैं। बहुत से विद्वानों एवं अध्ययनकर्ताओं ने उसकी व्याख्या की है। इस समय इस किताब का अंग्रेजी, फार्सी, तुर्की, हिन्दी, उर्दू, फ्रेंच, जर्मन, इटली और स्पेनिश आदि भाषाओं में अनुवाद हो चुका है।

नहजुल बलाग़ा में मौजूद विषयों की विभिन्न पहलुओं से समीक्षा की जा सकती है। इस किताब में मौजूद विषयों की समीक्षा इस कार्यक्रम में नहीं की जा सकती परंतु संक्षेप में हम इस किताब की महत्वपूर्ण विशेषताओं की ओर संकेत करते हैं। नहजुल बलाग़ा किताब में मौजूद विषय इतने विस्तृत व भिन्न हैं मानो ठाठे मारता अथाह सागर है जिसमें हर प्रकार के मोती मौजूद हैं। शिष्टाचार, राजनीति, धर्मशास्त्र, अधिकार, जेहाद, परिज्ञान, एकेश्वरवाद, सरकार, प्रकृति आदि वे विषय हैं जिनकी इस मूल्यवान पुस्तक में चर्चा की गयी है।

नहजुल बलाग़ा किताब की एक अन्य विषेशता यह है कि इसमें फसाहत व बलाग़त के बारे में बात की गयी है।

नहजुल बलाग़ा किताब की जो विषय वस्तु है वह इस्लामी संस्कृति के आरंभिक काल की है और इसे वरिष्ठ धर्मगुरू अबुल हसन मोहम्मद बिन हुसैन ने एकत्रित किया था। अबुल हुसैन मोहम्मद बिन हुसैन को सैयद रज़ी और शरीफ रज़ी के नाम से जाता है और उन्होंने ४०० हिजरी कमरी में विभिन्न किताबों व स्रोतों से इसे एकत्रित किया था।

सैयद रज़ी ने इस किताब के तथ्यों को तीन भागों में विभाजित किया है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के भाषण, पत्र और उनके संक्षिप्त वाक्य।

इस किताब में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के जो भाषण हैं उनमें सृष्टि के रचयिता, मनुष्य, जानवर, मनुष्य को पैदा करने का उद्देश्य, महान ईश्वर का ज्ञान, ईश्वरीय दूतों के भेजे जाने का उद्देश्य, लोक परलोक और प्रलय आदि के बारे में वार्ता की गयी है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने नहजुल बलाग़ा में आर्थिक मामलों के बारे में भी बात की है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने ज़मीनों को आबाद करने, और धन सम्पत्ति के बारे भी बात की है। इसी प्रकार आपने राजकोष, सामाजिक न्याय, निर्धनता को समाप्त करने, सरकार और समाज से संबंधित दायित्वों को बयान किया है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपने भाषणों के एक अन्य भाग को राजनीतिक एवं सरकारी मामलों व समस्याओं से विशेष करते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में कर्मचारियों, गवर्नरों, राज्यपालों, सेना, सुरक्षा बलों, सेनापतियों और कर वसूली और देश के संचालन के तरीकों को बयान करते हैं।

नहजुल बलाग़ा के एक भाग में नैतिकता, शिष्टाचार और शिक्षा प्रशिक्षा से जुड़े मामलों को बयान किया गया है। इसी प्रकार नहजुल बलाग़ा में अमल के साथ ज्ञान अर्जित करने, सांसारिक वस्तुओं की उपेक्षा, स्वतंत्रता, अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठाने और जीवन के मामलों को नियमबद्ध बनाने पर बल दिया गया है। सामाजिक जीवन में भी जैसे अच्छे व्यवहार, लोगों से दोस्ती और उनके साथ न्याय करना वे बातें हैं जिनकी ओर नहजुल बलाग़ा में संकेत किया गया है। इसी प्रकार इस किताब में आध्यात्मिक एवं उपासना के मामलों पर भी ध्यान दिया गया है। जैसे रातों को जागकर उपासना करने वाले, उपासना के विभिन्न कारण व लाभ, महान ईश्वर के निकट उपासकों का स्थान और पापों से दूरी में उपासन के प्रभाव की ओर इस किताब में गम्भीर रूप से ध्यान दिया गया है।

इस बीच जिस चीज़ पर ध्यान दिया जाना चाहिये वह यह है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के समस्त भाषणों और कथनों का आधार न्याय है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उन व्यक्तियों में से नहीं थे जो न्याय व सत्य की बात तो करते हैं परंतु अमल में न्याय नहीं करते। क्योंकि जबान से न्याय की बात करना बहुत सरल है किन्तु व्यवहार में न्याय पर अमल करना बहुत कठिन है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदैव अत्याचार व अन्याय का विरोध और अत्याचार ग्रस्त लोगों की सहायता करते थे। वह समाज के पीड़ित लोगों की आशा थे। वह ज़बान, कलम और तलवार सहित हर माध्यम से अत्याचारग्रस्त लोगों का साथ देते थे। दूसरे शब्दों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम न्याय की प्रतिमूर्ति थे।

नहजुल बलाग़ा के एक भाग में वे पत्र हैं जिन्हें हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने मित्रों, शत्रुओं, निकट संबंधियों, गवर्नरों को सरकार से जुड़े मामलों के बारे में लिखा है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जो पत्र गवर्नरों के नाम लिखे हैं उनमें लोगों की सेवा करने के सर्वोत्तम मार्गों को बयान किया है। इसी तरह इन पत्रों में समाज के निम्नतम व निर्धनतम वर्ग के साथ सम्मानजनक व्यवहार का उल्लेख किया गया है।

नहजुल बलाग़ा के तीसरे भाग में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के छोटे छोटे वाक्य हैं जिनमें नसीहतें व उपदेश हैं और ये कलेमाते क़ेसार के नाम से प्रसिद्ध हैं। ये छोटे छोटे वाक्य फसाहत, बलाग़त और अर्थों की दृष्टि से इतने गहरे हैं कि दोस्त दुश्मन सब पवित्र कुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों के बाद इन्हें मानवता का सबसे अच्छा मार्गदर्शक मानते हैं। इनमें से हर एक वाक्य में मानव जीवन के लिए पाठ है और उनमें जीवन के मूल्यवान रहस्य नीहित हैं।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम की पूरिपूर्णताओं एवं सदगुणों से सम्पन्न महान हस्ती को समझने के लिए उनके कथनों और भाषणों को समझने से बेहतर व उत्तम कोई अन्य मार्ग नहीं है।

रविवार, 30 मार्च 2014 08:23

अल्लामा तबातबाई

अल्लामा तबातबाईकुछ लोग ज्वलित मशाल की भांति दूसरों को प्रकाश देते हैं। ऐसे लोग अज्ञानता व शिथिलता को पसंद नहीं करते इसलिए जिस प्रकार सूर्य फूलों व फलों को पालता है उसी तरह वे भी लोगों का प्रशिक्षण करते हैं और उनके सोए हुए मन को जागृत करते हैं। ऐसे ही लोगों में अल्लामा मोहम्मद हुसैन तबातबाई भी हैं जिन्होंने अपने ज्ञान से बहुत से लोगों को लाभान्वित किया है। वह न केवल एक महान दार्शनिक व क़ुरआन के व्याख्याकार थे बल्कि इस महान हस्ती का व्यवहार व शिष्टाचार प्रशिक्षण के मूल्यवान पाठ के रूप में मौजूद हैं।

अल्लामा तबातबाई का घर में अपनी पत्नी और बच्चों तथा समाज के विभिन्न वर्गों व विद्वानों के साथ व्यवहार, यह सब एक महान हस्ती के जीवन के मूल्यवान आदर्श हैं। आज के कार्यक्रम में इस महान धर्मगुरु के आचरण पर चर्चा करेंगे। आशा है पसंद करेंगे।

 

अल्लामा मोहम्मद हुसैन तबातबाई एक सदाचारी व आत्मज्ञानी व्यक्ति थे। जिनकी अधिकांश रातें ईश्वर की उपासना व वंदना में गुज़र जाती थीं। पवित्र रमज़ान के महीने में सूर्यास्त से सहरी के समय तक वे नमाज़ और उपासना में लीन रहते थे। उनके होठों पर सदैव ईश्वर का स्मरण रहता और कभी भी ईश्वर को नहीं भूलते थे।

इस आडंबररहित उपासक की गहन वैज्ञानिक गतिविधियां पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के वास्ते से ईश्वर से दुआ करने में बाधा नहीं बनती थी। वे इन्हीं वास्तों को अपनी सफलता का श्रेय देते थे। जब भी पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों में से किसी एक हस्ती का नाम उनके सामने लिया जाता तो उनके चेहरे पर विनम्रता के भाव झलकने लगता विशेष तौर पर जब मानवता के अंतिम मोक्षदाता हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम का नाम लिया जाता। अल्लामा तबातबाई पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम और फ़ातेमा ज़हरा के स्थान को मनुष्य की कल्पना से परे और अलौकिक मानते थे।

अल्लामा तबातबाई की बेटी घर में अपने पिता के शिष्टाचार का इन शब्दों में वर्णन करती हैः घर में उनका व्यवहार व शिष्टाचार पैग़म्बरे इस्लाम जैसा था। कभी भी क्रोधित नहीं होते थे और कभी भी ऊंचे स्वर में उन्हें बात करते नहीं सुना। विनम्रता के साथ साथ बहुत ही दृढ़ थे और नमाज़ को उसके समय पर पढ़ने को बहुत महत्व देते थे। किसी को ख़ाली हाथ नहीं लौटने देते थे इसका कारण उनकी नर्म-दिली थी।

 

अल्लामा तबातबाई अनुशासन को मानवीय आत्मोत्थान का प्रेरक मानते थे। इसलिए वे अपने काम को योजनाबंदी के साथ अंजाम देते थे। घर में उन्हें यह पसंद नहीं था कि कोई उनके व्यक्तिगत काम को अंजाम दे। हालांकि उनके पास समय अधिक समय नहीं रहता था किन्तु इस प्रकार योजनाबंदी करते थे कि हर दिन दोपहर के समय एक घंटा अपने परिवार के सदस्यों के साथ बिताएं। वे अपने बच्चों विशेष रूप से बेटियों को बहुत महत्व देते थे और बेटियों को ईश्वर की अनुकंपा व मूल्यवान उपहार समझते थे। हज़रत अल्लामा चाहते थे कि घर में बच्चों के कान में पवित्र क़ुरआन की तिलावत की आवाज़ पड़े इसलिए वह घर में क़ुरआन की तिलावत ऊंचे स्वर में करते थे। वह जीवधारी को मारने की ओर से बहुत संवेदनशील थे यहां तक कि एक मक्खी को भी नहीं मारते थे और कहा करते थे कि जीवधारियों से जीवन नहीं छीनना चाहिए।

आयतुल्लाह तबातबाई की बेटी अपने पिता के अपनी मां के साथ व्यवहार के संबंध में कहती हैः मेरे पिता का मेरी मां के साथ व्यवहार मैत्रीपूर्ण व सम्मानजनक था और सदैव इस प्रकार व्यवहार करते थे जैसे मां को देखने को उत्सुक हो। हमने कभी भी उनके बीच मतभेद नहीं पाया। वे आपस में दो मित्र की भांति थे। मेरे पिता मेरी मां के बारे में कहते थेः यदि उनका साथ न होता तो मैं पठन-पाठन और लिखने में सफल न होता। जिस समय मैं विचारों में लीन होता और न लिख रहा होता था तो वह मुझसे बात नहीं करती थीं ताकि मेरे विचारों का क्रम न टूटने पाए और मुझे थकान से बचाने के लिए हर घंटे मेरा कमरा खोल देतीं और चाय रख जाती थीं। इन्हीं महिला ने मुझे यहां तक पहुंचाया। वह मेरी भागीदार थीं। जो कुछ किताबें मैंने लिखी हैं उसका आधा पुण्य मेरी धर्मपत्नी के लिए है।

 

जिस समय अल्लामा तबातबाई की पत्नी वर्ष 1344 हिजरी शम्सी को बीमार हुयीं उस समय अल्लामा तबातबाई अपनी पत्नी को घर के काम के लिए उठने नहीं देते थे। इस संदर्भ में अल्लामा के बेटे कहते हैः मेरी मां मरने से 27 दिन पहले अस्पताल में भर्ती हुयीं और इस दौरान मेरे पिता उनके पास से एक क्षण के लिए नहीं हटे। अपनी समस्त गतिविधियां रोक दीं और उनकी देखभाल की।

ईश्वर की पहचान रखने वालों की एक विशेषता विनम्रता भी है। अल्लामा तबातबाई बहुत ही हल्के क़दम से रास्ता चलते थे और उनका वस्त्र सादा था जिससे घमंड नहीं झलकता था। यह बात भी रोचक है कि रोटी ख़रीदने के लिए पंक्ति में खड़े होते थे और अपना काम किसी के हवाले करने के लिए तय्यार नहीं होते थे।

अल्लामा तबातबाई के एक शिष्य अपने उस्ताद के व्यवहार के बारे में कहते हैः तीस वर्ष मैं उनके साथ रहा हूं। वह ज्ञान की प्राप्ति में इच्छुक लोगों को बहुत पसंद करते और छात्रों के साथ इतना घुल-मिल कर रहते कि हर कोई यह समझता था कि वह अल्लाम का विशेष मित्र है।

उनका शिष्टाचार सबको सम्मोहित करता था क्योंकि वह स्वंय को कभी भी दूसरों से बेहतर नहीं समझते थे। अपनी वैज्ञानिक व दार्शनिक रचनात्मकता को इतने सादे ढंग से बयान करते थे कि हम ये समझते थे कि मानो यह बिन्दु सभी संबंधित किताबों में मौजूद है किन्तु जब किताब देखते तो पता चलता कि यह केवल उन्हीं की खोज थी। वह कभी भी यह नहीं कहते थे कि इस विषय पर इतनी मेहनत की इतना परीश्रम किया या यह मेरी पहल है। अल्लामा तबातबाई के एक और शिष्य उनके पढ़ाने के व्यवहार के बारे में कहते हैः मुझे याद नहीं है कि मैंने अपनी पूरी शिक्षा के दौरान अल्लामा को एक बार भी क्रोधित देखा हो या छात्रों पर चीख़े चिल्लाए हों या तनिक भी अपमान जनक बात कही हो। बहुत ही धीरे और शांत अंदाज़ में पढ़ाते थे। जब कोई उन्हें उस्ताद कह कर संबोधित करता तो कहते थेः यह शब्द पसंद नहीं है। हम यहां इकट्ठा हुए हैं ताकि सहयोग व विचार विमर्श से इस्लामी शिक्षाओं व वास्तविकताओं को समझें।

 

ईरान के एक बड़ी धर्मगुरु आयतुल्लाह जवादी आमुली को वर्षों अल्लामा तबातबाई के शिष्य रहने का सौभाग्य रहा है। वह अल्लामा के बारे में कहते हैः मुझे याद है कि 1971 में मैं मक्का जाना चाहता था। मैं सलाम करने और विदा होने के लिए गया। अल्लामा से कहाः काबे के दर्शन का इरादा है। कोई नसीहत कीजिए जो यात्रा में मेरे काम आए और रसद रहे। उन्होंने एक आयत मेरे लिए पढ़ा और कहाः ईश्वर कहता हैः मुझे याद करो ताकि मैं तुम्हें याद करूं। और आगे कहाः ईश्वर की याद में रहो ताकि ईश्वर तुम्हें याद रखे। यदि ईश्वर इंसान को याद रखे तो वह अज्ञानता से मुक्ति पाता है और यदि किसी काम में फस गया है तो ईश्वर छोड़ नहीं देता कि वह परेशान हो जाए और यदि नैतिक समस्या में फस जाए तो ईश्वर जिसके अच्छे नाम हैं और अच्छी विशेषताएं उसके अस्तित्व का भाग है, इंसान को याद रखेगा।

एक साम्यवादी विचारधारा वाला व्यक्ति जो अल्लामा तबातबाई के प्रभाव में मुसलमान हो गया था, उनके द्वारा स्वंय के मुसलमान होने के बारे में कहता हैः जनाब तबातबाई ने मुझे एकेश्वरवादी बनाया। आठ घंटे हमने आपस में बहस की। एक साम्यवादी को एकेश्वरवादी बनाया। वह हर नास्तिक की बात को सुनते थे किन्तु कभी अप्रसन्न व क्रोधित नहीं होते।

जब अल्लामा तबातबाई पवित्र क़ुरआन की व्याख्या पर आधारित किताब अलमीज़ान लिख रहे थे तो उस पवित्र नगर क़ुम के धार्मिक केन्द्र के एक धर्मगुरु ने अल्लामा की प्रशंसा की तो उन्होंने उनसे कहाः प्रशंसा मत कीजिए कि संभव है मैं आपकी प्रशंसा से प्रसन्न हो जाउं और मेरी नियत की पवित्रता व निष्ठा समाप्त हो जाए और एक बार धार्मिक केन्द्र के एक धर्मगुरु ने अल्लामा तबातबाई को अपने लेख पर टिप्पणी के लिए दिया तो उन्होंने उसे पढ़ने के बाद कहाः आपने क्यों अपने लिए दुआ की और कहा कि हे प्रभु! मुझे अपनी आयतों को समझने का अवसर प्रदान कर। क्यों ईश्वर की कृपा के दस्तरख़ान पर दूसरों को शामिल न किया... जबसे मैने ख़ुद को पहचाना उस समय से अपने लिए व्यक्तिगत दुआ नहीं की।

 

अल्लामा तबातबाई और ईरान की इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक हज़रत इमाम ख़ुमैनी एक दूसरे के मित्र थे और यह मित्रता बहुत पुरानी थी और अल्लामा तबातबाई इमाम ख़ुमैनी का बहुत सम्मान करते थे।अल्लामा तबातबाई ईरान में इस्लामी क्रान्ति आने से पहले ईरान की सामाजिक स्थिति से बहुत असंतुष्ट थे और शाह और उसके शासन से अप्रसन्न थे...

अमरीका की ओर से अल्लामा को निमंत्रण पर उनका जवाब अल्लामा के व्यवहार का बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है। विश्व साम्राज्य के प्रतीक अमरीका ने अल्लामा के उच्च वैज्ञानिक स्थान के दृष्टिगत शाह से कहा था कि वह अल्लामा से निवेदन करे कि वह अमरीका में पूरब का दर्शनशास्त्र पढ़ाएं। शाह ने अमरीकियों के इस संदेश को उन तक पहुंचा और उन्हें डाक्ट्रेट की मानद उपाधि देने की भी पेशकश की किन्तु अल्लामा तबातबाई ने न तो अमरीका जाना और न ही वहां के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़ाना स्वीकार किया और न ही शाह की ओर से डाक्ट्रेट की मानद उपाधि के प्रस्ताव को। जब शाह के दरबार से उन पर दबाव डाला गया तो उन्होंने कहाः मुझे शाह का कोई डर नहीं है और उसकी ओर से डाक्ट्रेट की मानद उपाधि स्वीकार करने के लिए तय्यार नहीं हूं।

अल्लामा तबातबाई के व्यक्तित्व का एक और रोचक पहलु यह है कि वह शायरी भी करते थे। उन्होंने बहुत सी प्रसिद्ध कविताएं कही हैं जिनमें मुरा तन्हा बुर्द, पयामे नसीम और हुनरे इश्क़ उल्लेखनीय हैं जो अल्लामा की आत्मज्ञान से भरी हुयी कविता है।