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रूस ने हटाया पाकिस्तान से प्रतिबंधरूस ने पाकिस्तान को हथियारों की आपूर्ति पर लगे प्रतिबंध समाप्त कर दिये हैं।

रूसी समाचार एजेंसी के अनुसार रूस ने पाकिस्तान को सैन्य उपकरणों और हथियारों की आपूर्ति पर लगे प्रतिबंध समाप्त कर दिये हैं। रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान को कई गनशिप हेलीकाप्टर उपलब्ध कराने पर वार्ता जारी है जिनमें सैन्य एम आई 25 हेलीकाप्टर शामिल हैं।

रूस के सरकारी प्रौद्योगिकी निगम के प्रमुख ने प्रतिबंध हटाए जाने की पुष्टि करते हुए कहा कि फ़ैसला किया जा चुका है कि पाकिस्तान को हेलीकाप्टर की डिलेवरी पर वार्ता जारी हैं। रोस्टिक प्रमुख ने बल देकर कहा कि पाकिस्तान और रूस के बीच बातचीत के एजेंडे में हेलीकाप्टर एमआई - 35 शामिल हैं।

फ़ार्स की खाड़ी की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने फ़ार्स की खाड़ी के क्षेत्र व उसकी सुरक्षा को अत्यंत महत्वपूर्ण बताया है। उन्होंने कहा है कि इस क्षेत्र की सुरक्षा, सभी क्षेत्रीय देशों के बीच अच्छे संबंधों पर निर्भर है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने सोमवार को तेहरान में कुवैत नरेश शैख़ सबाह अहम जाबिर सबाह से मुलाक़ात में कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान इसी आधार पर सदैव फ़ार्स की खाड़ी में अपने सभी पड़ोसी देशों के साथ अच्छे संबंधों का इच्छुक रहा है और इस समय भी वह इसी नीति पर चल रहा है। उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय देशों की आपस में निकटता और एक-दूसरे के साथ उनके अच्छे संबंध पूरे क्षेत्र के लिए लाभदायक हैं किंतु यदि इस सिद्धांत का पालन न किया गया तो क्षेत्रीय देशों के बीच मतभेद व दूरी, साझा शत्रुओं की प्रसन्नता का कारण बनेगी। वरिष्ठ नेता ने ज़ायोनी शासन की दिन प्रतिदिन बढ़ती ढिटाई को क्षेत्रीय देशों के बीच अच्छे संबंध न होने का परिणाम बताया और कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने सदैव ही क्षेत्रीय देशों के साथ खुले दिल के साथ अच्छा व्यवहार किया है।

फ़ार्स की खाड़ी की सुरक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने कुवैत व इराक़ के संबंध में विस्तार को क्षेत्र के हित में बताते हुए कहा कि सीरिया के संबंध में भी ईरान, इस देश की जनता द्वारा किए जाने वाले हर निर्णय का समर्थन करेगा। उन्होंने क्षेत्र में तकफ़ीरी गुटों के ख़तरे की ओर संकेत करते हुए कहा कि खेद की बात है कि कुछ क्षेत्रीय देश, भविष्य में स्वयं उनके लिए तकफ़ीरी गुटों की ओर से उत्पन्न होने वाले ख़तरों को समझ नहीं पा रहे हैं और निरंतर उनकी सहायता किए जा रहे हैं। वरिष्ठ नेता ने ईरान व कुवैत के आर्थिक संबंधों की ओर संकेत करते हुए कहा कि दोनों देशों के आर्थिक संबंधों मे अधिक से अधिक विस्तार का मार्ग प्रशस्त है और इस संबंध में एक नया अध्याय खुलना चाहिए।

इस भेंट में कुवैत नरेश शैख़ सबाह अहम जाबिर सबाह ने इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता को पूरे क्षेत्र का नेता व मार्गदर्शक बताया और कहा कि उनका देश, ईरान के साथ संबंधों का नया अध्याय खोलने के लिए पूरी तरह से तैयार है और तेहरान में उनकी वार्ताओं के दौरान भी आर्थिक एवं व्यापारिक संबंधों का स्तर ऊपर उठाने पर सहमति हुई है। ज्ञात रहे कि कुवैत नरेश ईरानी अधिकारियों से भेंटवार्ता के बाद सोमवार की शाम तेहरान से कुवैत के लिए रवाना हो गए।

इमाम ख़ुमैनी और उनके उत्तराधिकारी के प्रति वफ़ादारी साबित करना ज़रूरी।

तेहरान की सेंट्रल जुमे की नमाज़ के इमाम ने ईरान की इस्लामी इंक़ेलाब के संस्थापक इमाम ख़ुमैनी की बरसी को एक बार फिर शानदार तरीके से मनाये जाने का ऐलान किया है।

जुमे की नमाज़ के भाषण में आयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने इमाम ख़ुमैनी की आगामी 25वीं बरसी की ओर इशारा करते हुए कहा, इस अवसर पर भव्य समारोहों का आयोजन, इमाम ख़ुमैनी और उनके उत्तराधिकारी के प्रति वफ़ादारी साबित करनी होगी।

आयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने ईरान में शाही हुकूमत के ख़िलाफ़ 5 जून 1963 के आंदोलन को इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी की शुरूआत बताया और कहा कि 11 फ़रवरी 1979 को इस आंदोलन का नतीजा हासिल हुआ।

तेहरान की सेंट्रल नमाज़े जुमा के इमाम ने बयान किया कि जब तक अमरीका इस्लामी इंक़ेलाब के प्रति अपनी दुश्मनी जारी रखेगा, ईरानी राष्ट्र इस्लामी इंक़ेलाब का मशहूर नारा अमरीका मुर्दाबाद लगाता रहेगा।

अमरीका के आर्थिक व राजनैतिक दबाव का मुक़ाबला करती रहेगी ईरानी जनता।

ईरानी पार्लियामेंट के फ़ॉरेन पॉलीसी कमीशन ने कहा है कि आज ईरान, ताक़त व सम्मान के चरम पर है।

ईरान की पार्लियामेंट मजलिसे शूरए इस्लामी में नेशनल सिक्योरिटी व फ़ॉरेन पॉलीसी कमीशन के प्रमुख अलाउद्दीन बुरूजर्दी ने गुरुवार को तेहरान में एक बैठक में कहा कि हज़रत इमाम ख़ुमैनी ने “न पूरब, न पश्चिम” के नारे के साथ इस्लामी रिपब्लिक सिस्टम की स्थापना की और बड़ी ताक़तों व महाशक्तियों के सामने डट गए। उन्होंने ईरान के विरुद्ध अमरीका की ज़ालिमाना पाबंदियों और दबाव की ओर इशारा करते हुए कहा कि बहुत से देश ईरान से सम्बंध बढ़ाना चाहते हैं लेकिन अमरीका इस रास्ते में रोड़े अटका

सीरिया में आतंकवादियों को भेजना पश्चिम के लिए आत्मघातीः नसरुल्लाह

लेबनान के हिज़्बुल्लाह संगठन के महासचिव ने अमरीका और उसके घटकों को सीरिया में आतंकवादियों को भेजने का ज़िम्मेदार बताया है कि इसका लक्ष्य सीरिया को तबाह और उसके प्रतिरोध को ख़त्म करना है।

सय्यद हसन नसरुल्लाह ने रविवार को टेलीविजन पर प्रसारित भाषण में कहा कि अमरीका और पश्चिमी देश सीरिया में तकफ़ीरियों और आतंकवादियों को भेज रहे हैं ताकि क्षेत्र में प्रतिरोध के ध्रुव को ख़त्म कर दें।

उन्होंने कहा कि सीरिया के ख़िलाफ़ षड्यंत्र की विफलता शुरु हो गयी है और यह अरब देश विदेश समर्थित आतंकवादियों के ख़िलाफ़ अंततः विजयी होगा।

सय्यद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि सीरिया के ख़िलाफ़ षड्यंत्र पश्चिम को बैकफ़ायर कर रहा है क्योंकि अब मिलिटेंट्स योरोप सहित उन देशों में वापस लौट रहे हैं जहां से वे आए हैं।

हिज़्बुल्लाह के महासचिव का यह बयान ऐसे समय आया है जब सीरियाई सेना देश के नगरों व क़स्बों से विदेश समर्थित आतंकवादियों को खदेड़ने के अभियान को आगे बढ़ा रही है।

पश्चिमी देश और क़तर, सउदी अरब तथा तुर्की जैसे उनके क्षेत्रीय घटक देश सीरिया में आतंकवादियों का समर्थन कर रहे हैं।

आर्थिक संकट के हल को देश में खोजा जाये।

इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने इंसानियत विरोधी साम्राज्यवादी मोर्चे से संघर्ष का एकमात्र रास्ता, इस मोर्चे से मुक़ाबले की विचारधारा का जारी रहना बताया है।

आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने रविवार को पार्लियामेंट स्पीकर और सांसदों से मुलाकात में, इस्लामी सिस्टम के गठन और संघर्ष की विचारधारा के आधार पर इसके बाक़ी रहने की ओर इशारा करते हुए बल दिया कि साम्राज्यवादी मोर्चे से संघर्ष के जारी रहने की विचारधारा के बिना इस्लामी व्यवस्था के सर्वोच्च लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता। सुप्रीम लीडर ने बल दिया कि पिछले 35 वर्षों के दौरान निर्णायक व महत्त्वपूर्ण दौर को इस्लामी व्यवस्था द्वारा सफलतापूर्वक तय करना और इस्लामी रिपब्लिक ईरान की तरक्की, ईरानी राष्ट्र के गंभीर, सच्चे और बुद्धिमात्तापूर्ण संघर्ष की देन है और इस विचारधारा को जारी रहना चाहिए।

सुप्रीम लीडर ने आज की दुनिया को इंसानियत की प्रतिष्ठता व उसकी नैतिकता के लुटेरों से भरी हुई बताया और स्पष्ट किया कि वह इल्म व ज्ञान से लैस होकर तथा शक्ति व धन संपत्ति प्राप्त करके, इन्सानी मुखौटा पहनकर सरलता से अपराध करते हैं और मानवीय लक्ष्यों व उमंगों से विश्वासघात करते हैं और विश्व के विभिन्न इलाक़ों में जंग की आग भड़काते हैं। उन्होंने इस बात पर बल देते हुए कि जब तक शैतान और शैतानी मोर्चा मौजूद है, संघर्ष और प्रतिरोध समाप्त होने वाला नहीं है, कहा कि यह संघर्ष उसी समय समाप्त होगा जब मानवीय समाज स्वयं को साम्राज्यवादी मोर्चे और उसके मुखिया अमरीका की दुष्टता से मुक्ति करा ले। उन्होंने कहा कि अमरीका अपने ख़ूनी पंजों को इंसानियत के शरीर, उसकी आत्मा और उसके विचारों पर गाड़े हुए है।

इस्लाम में औरत का महत्व

इस्लाम में औरत के महत्व को जानने से पहले इस बात पर ध्यान देना चाहिये कि इस्लाम ने इन बातों को उस समय पेश किया जब बाप अपनी बेटी को ज़िन्दा दफ़्न कर देता था और उस कुरूरता को अपने लिये सम्मान और सम्मान का कारण समझता था। औरत दुनिया के हर समाज में बहुत मूल्यहीन प्राणी समझा जाता था। औलाद माँ को बाप की मीरास में हासिल किया करती थी। लोग बड़ी आज़ादी से औरत का लेन देन करते थे और उसकी राय का कोई क़ीमत नही थी। हद यह है कि यूनान के दार्शनिक इस बात पर बहस कर रहे थे कि उसे इंसानों में से जाना जाए या यह कि इंसानों के समान एक प्राणी है जिसे इस शक्ल व सूरत में इंसान की वासना को पूरा करने के लिये पैदा किया गया है ताकि वह उससे हर तरह का फ़ायदा उठा सके वर्ना उसका इंसानियत से कोई सम्बंध नही है।

आज के ज़माने में औरत की आज़ादी और उसको बराबरी का दर्जा दिये जाने का नारा और इस्लाम पर तरह तरह के आरोप लगाने वाले इस सच्चाई को भूल जाते हैं कि औरतों के बारे में इस तरह की सम्मानजनक सोच और उसके सिलसिले में अधिकारों की कल्पना भी इस्लाम ही का दिया हुआ है। इस्लाम ने औरत को अपमान की गहरी खाई से निकाल कर सम्मान की बुलंदी पर न पहुचा दिया होता तो आज भी कोई उसके बारे में इस शैली से सोचने वाला न होता। यहूदीयत व ईसाईयत तो इस्लाम से पहले भी इन विषयों पर बहस किया करते थे उन्हे उस समय इस आज़ादी का ख़्याल क्यो नही आया और उन्होने उस ज़माने में औरत को बराबर का दर्जा दिये जाने का नारा क्यों नही लगाया

इस्लाम मर्दों से भी यह मांग करता है कि वह यौन संतोष के लिये क़ानून का दामन न छोड़े और कोई ऐसा क़दम न उठाएँ जो उनकी सम्मान व शराफ़त के विरूद्ध हो इसी लिये उन तमाम औरतों की पहचान करा दी गई जिनसे यौन सम्बंध वैध नहीं है।

 

यह आज औरत की महानता का ख़्याल कहाँ से आ गया और उसकी हमदर्दी की इतनी भावना कहाँ से पैदा हो गई?

वास्तव में यह इस्लाम के बारे में कृतघ्न व एहसान फ़रामोशी के अलावा कुछ नही है कि जिसने तीर चलाना सिखाया उसी को निशाना बना दिया और जिसने आज़ादी और अधिकारों का नारा दिया उसी पर आरोप लगा दिये। बात केवल यह है कि जब दुनिया को आज़ादी का ख़्याल पैदा हुआ तो उसने यह सोचना शुरु किया कि आज़ादी की यह बात तो हमारे पुराने लक्ष्यों के विरूद्ध है आज़ादी का यह ख़्याल तो इस बात की मांग करता है कि हर मामले में उसकी इच्छा का ख़्याल रखा जाये और उस पर किसी तरह का दबाव न डाला जाये और उसके अधिकारों की मांग यह है कि उसे मीरास में हिस्सा दिया जाये उसे जागीरदारी और व्यापार का पार्टनर समझा जाये और यह हमारे तमाम घटिया, ज़लील और पुराने लक्ष्यों के विरूद्ध है अतः उन्होने उसी आज़ादी और अधिकार के शब्द को बाक़ी रखते हुए अपने मतलब के लिये नया रास्ता चुना और यह ऐलान करना शुरु कर दिया कि औरत की आज़ादी का मतलब यह है कि वह जिसके साथ चाहे चली जाये और उसका दर्जा बराबर होने के मतलब यह है कि वह जितने लोगों से चाहे संबंध रखे। इससे अधिक इस ज़माने के मर्दों को औरतों से कोई दिलचस्पी नही है। यह औरत को सत्ता की कुर्सी पर बैठाते हैं तो उसका कोई न कोई लक्ष्य होता है और उसके कुर्सी पर लाने में किसी न किसी ताक़त वाले का हाथ होता है और यही वजह है कि वह क़ौमों की मुखिया होने के बाद भी किसी न किसी मुखिया की हाँ में हाँ मिलाती रहती है और अंदर से किसी न किसी आत्महीनता में ग्रस्त रहता है। इस्लाम उसे शक्तशाली देखना चाहता है लेकिन मर्दों के हाथों का खिलौना बन कर नही। वह उसे चयन व अधिकार देना चाहता है लेकिन अपनी व्यक्तित्व, हैसियत, सम्मान और शराफ़त का ख़ात्मा करने के बाद नही। उसकी निगाह में इस तरह के अधिकार मर्दों को हासिल नही हैं तो औरतों को कहाँ से हो जायेगा जबकि उस की सम्मान की क़ीमत मर्द से अधिक है उसकी सम्मान जाने के बाद दोबारा वापस नही आ सकती है जबकि मर्द के साथ ऐसी कोई परेशानी नही है।

इस्लाम मर्दों से भी यह मांग करता है कि वह यौन संतोष के लिये क़ानून का दामन न छोड़े और कोई ऐसा क़दम न उठाएँ जो उनकी सम्मान व शराफ़त के विरूद्ध हो इसी लिये उन तमाम औरतों की पहचान करा दी गई जिनसे यौन सम्बंध वैध नहीं है। उन तमाम सूरतों की तरफ इशारा कर दिया गया जिनसे पिछला रिश्ता आहत होता है और उन तमाम सम्बंध को भी स्पष्ट कर दिया जिनके बाद दूसरा यौन सम्बंध सम्भव नही रह जाता। ऐसे सम्पूर्ण और संगठित जीवन व्यवस्था के बारे में यह सोचना कि उसने एकतरफ़ा फ़ैसला किया है और औरतों के हक़ में अनन्याय से काम लिया है ख़ुद उसके हक़ में अनन्याय बल्कि कृतघ्न व एहसान फ़रामोशी है वर्ना उससे पहले उसी के पिछले नियमों के अलावा कोई उस जाति का पूछने वाला नहीं था और दुनिया की हर क़ौम में उसे ज़ुल्म का निशाना बना लिया गया था।

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औरत की हैसियत

 

ومن آیاته ان خلق لکم من انفسکم ازواجا لتسکنوا الیها وجعل بینکم مودہ ورحمه (سوره روم آيت ۲۱ )

 

उसकी निशानियों में से एक यह है कि उसने तुम्हारा जोड़ा तुम ही में से पैदा किया है ताकि तुम्हे उससे ज़िन्दगी का सुकून हासिल हो और फिर तुम्हारे बीच मुहब्बत व रहमत की भावना बताया है।

आयते करीमा में दो अहम बातों की तरफ़ इशारा किया गया है

1. औरत इंसानियत का ही एक हिस्सा है और उसे मर्द का जोड़ा बनाया गया है। उसकी हैसियत मर्द से कमतर नही है।

2. औरत के वुजूद का उद्देश्य मर्द की सेवा नही है मर्द की ज़िन्दगी का सुकून है और मर्द व औरत के बीच दोतरफ़ा मुहब्बत और रहमत ज़रुरी है यह एकतरफ़ा मामला नही है।

 

و لهن مثل الذی عليهن بالمعروف و للرجال عليهن درجه (بقره آيت ۲۲۸)

 

औरतों के लिये वैसे ही अधिकार है जैसे उनके ज़िम्मे कर्तव्य हैं मर्दों को उनके ऊपर एक और दर्जा हासिल है।

यह दर्जा उस पर शासन का नही है बल्कि ज़िम्मेदारी का है, मर्दों में यह क्षमता रखी गई है कि वह औरतों की ज़िम्मेदारी संभाल सकें और इसी आधार पर उन्हे रोटी - कपड़ा और ख़र्च का ज़िम्मेदार बनाया गया है।

 

فاستجاب لہم ربہم انی لا اضیع عمل عامل منکم من ذکر و انثی بعضکم من بعض (سورہ آل عمران آیت ۱۹۵)

 

तो अल्लाह ने उनकी दुआ को क़बूल कर लिया कि हम किसी अमल करने वाले के अमल को बर्बाद नही करना चाहते चाहे वह मर्द हो या औरत, तुम में कुछ कुछ से हैं।

 

ولا تتمنوا ما فضل اللہ بعضکم علی بعض للرجال نصیب مما اکتسبوا و للنساء نصیب مما اکتسبن (سورہ نساء آیہ ۳۲)

 

और देखो जो ख़ुदा ने कुछ को कुछ से अधिक दिया है उसकी तमन्ना न करो, मर्दों के लिये उसमें से हिस्सा है जो उन्होने हासिल कर लिया है और इसी तरह से औरतों का हिस्सा है। यहाँ पर भी दोनो को एक तरह की हैसियत दी गई है और हर एक को दूसरे पर वरीयता से रोक दिया गया है।

 

و قل رب ارحمهما کما ربيانی صغيرا (سوره اسراء آيت ۲۳)

 

और यह कहो कि परवरदिगार उन दोनो (मां बाप) पर उसी तरह से उन पर रहम कर जिस तरह उन्होने मुझे पाला है।

इस आयते करीमा में माँ बाप दोनो को बराबर की हैसियत दी गई है और दोनो के साथ दयालुता भी आवश्यक बताई गई है और दोनो के हक़ में रहमत की भी ताकीद की गई है।

 

يا ايها الذين آمنوا لا يحل لکم ان ترثوا النساء کرها و لا تعضلوهن لتذهبوا ببعض ما آتيتموهن الا ان ياتين بفاحشه مبينه و عاشروهن بالمعروف فان کرهتموهن فعسی ان تکرهوا شیءا و يجعل الله فيه خيرا کثيرا (نساء ۱۹)

 

ईमान वालो, तुम्हारे लिये वैध नही है कि औरत को ज़बरदस्ती वारिस बन जाओ और न यह अधिकार है कि उन्हे अक़्द से रोक दो कि इस तरह जो तुम ने उनको दिया है उसका एक हिस्सा ख़ुद ले लो जब तक वह कोई खुल्लम खुल्ला बदकारी न करें और उनके साथ उचित व्यवहार करो कि अगर उन्हें नापसंद करते हो तो शायद तुम किसी चीज़ को नापसंद करो और ख़ुदा उसके अंदर बहुत अधिक अच्छाई व ख़ैर क़रार दे।

 

و اذا طلقتم النساء فبلغن اجلهن فامسکوا هن بمعروف او سرحوين بمعروف ولا تمسکوهن ضرارا لتعتقدوا و من يفعل ذالک فقد طلم نفسه (سوره بقره آيت ۱۳۲)

 

और जब औरतों को तलाक़ दो और उनकी मुद्दते इद्दा क़रीब आ जाएँ तो उन्हे नेकी के साथ रोक लो वर्ना नेकी के साथ आज़ाद कर दो और ख़बरदार नुक़सान पहुचाने के उद्देश्य से मत रोकना कि इस तरह से ज़ुल्म करोगे और जो ऐसा करेगा वह अपने ही ऊपर ज़ुल्म करेगा।

ऊपर बयान होने वाली दोनो आयतों में सम्पूर्ण आज़ादी का ऐलान किया गया है। जहाँ आज़ादी का मक़सद ऑनर और शराफ़त की सुरक्षा है और जान व माल दोनो के ऐतेबार से अधिकार रखने वाला होना है और फिर यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि उन पर ज़ुल्म वास्तव में उन पर ज़ुल्म नही है बल्कि अपने ही ऊपर ज़ुल्म है इस लिये कि इससे केवल उनकी दुनिया ख़राब होती है और इंसान उससे अपनी आख़ेरत खराब कर लेता है जो दुनिया ख़राब कर लेने से कहीं अधिक बदतर बर्बादी है।

 

الرجال قوامون علی النساء بما فضل اللي علی بعض و بما انفقوا من اموالهم (سوره نساء آيت ۴)

 

मर्द, औरतों के संरक्षक हैं और इस लिये कि उन्होने अपने माल को ख़र्च किया है।

आयते करीमा से बिलकुल साफ़ स्पष्ट हो जाता है कि इस्लाम का मक़सद मर्द को शासक व स्वामी बना देना और औरत से उसकी आज़ादी छीन लेना नही है बल्कि उसने मर्द को उसकी कुछ विशेषता की वजह से घर का ज़िम्मेदार बनाया है और उसे औरत के जान माल और प्रतिष्ठा का संरक्षक बनाया है। इसके अलावा इस ज़िम्मेदारी को भी मुफ़्त नही किया है बल्कि उसके मुक़ाबले में उसे औरत के तमाम ख़र्चों का ज़िम्मेदार बना दिया है और ज़ाहिर सी बात है कि जब दफ़्तर का आफ़िसर या कारखाने का मालिक केवल तन्ख़वाह देने की वजह से सत्ता के अनगिनत अधिकार हासिल कर लेता है और उसे कोई इंसानियत का अपमान नही बताता है और दुनिया का हर मुल्क इसी पालिसी पर अमल कर लेता है तो मर्द ज़िन्दगी की तमाम ज़िम्मेदारियाँ क़बूल करने के बाद अगर औरत पर पाबंदियाँ लगा दे कि वह उसकी अनुमति के बिना घर बाहर न जाये और घर ही में उसके लिये सुकून के साधन उपलब्ध कर दे ताकि उसे बाहर न जाना पड़े और दूसरे की तरफ़ वासना व हवस भरी निगाह से न देखना पड़े तो कौन सी हैरत की बात है यह तो एक तरह का बिलकुल साफ़ और सादा इंसानी मामला है जो शादी की शक्ल में सामने आता है और मर्द का कमाया हुआ माल औरत का हो जाता है और औरत की ज़िन्दगी की पूंजी मर्द की हो जाती है मर्द औरत की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये घंटों मेहनत करता है और बाहर से पूंजी लाता है और औरत मर्द के संतोष के लिये कोई कष्ट नही करती है बल्कि उसके जीवन की पूंजी उसके वुजूद के साथ है इंसाफ़ किया जाये कि इस क़दर प्राकृतिक पूंजी से इस क़दर मेहनती पूंजी की अदला-बदली क्या औरत के हक़ में ज़ुल्म और अनन्याय कहा जा सकता है जबकि मर्द की संतोष में भी औरत बराबर की शरीक और हिस्सेदार बनती है और यह भावना एक तरफ़ा नही होता है और औरत के माल ख़र्च करने में मर्द को कोई हिस्सा नही मिलता है। मर्द पर यह ज़िम्मेदारी उसकी मर्दाना विशेषता और उसकी प्राकृतिक क्षमता की आधार पर रखी गई है वर्ना या अदला बदली मर्दों के हक़ में ज़ुल्म हो जाती और उन्हे यह शिकायत होती कि औरत ने हमें क्या सुकून दिया है और उसके मुक़ाबले में हम पर ज़िम्मेदारियों का किस क़दर बोझ लाद दिया गया है यह ख़ुद इस बात की दलील है कि यह जिन्स और माल का सौदा नही है बल्कि क्षमताओं के आधार पर काम का बटवारा है। औरत जिस क़दर सेवा मर्द के हक़ में कर सकती है उसका ज़िम्मेदार औरत को बना दिया गया है और मर्द जिस क़दर औरत की सेवा कर सकता है उसका उसे ज़िम्मेदार बना दिया गया है और यह कोई सत्ता व निर्दयता या तानाशाही नही है कि इस्लाम पर अनन्याय का आरोप लगा दिया जाएँ और उसे औरत के हक़ का बर्बाद करने वाला बता दिया जाये।

यह ज़रुर है कि दुनिया में ऐसे मर्द बहरहाल पाये जाते हैं जो स्वभाविक तौर पर ज़ालिम, बेरहम और जल्लाद हैं और उन्हे अगर जल्लादी के लिये कोई अवसर नही मिलता है तो उसकी संतोष का सामान घर के अंदर उपलब्ध करते हैं और अपने ज़ुल्म का निशाना औरत को बनाते हैं कि वह औरत होने के आधार पर मुक़ाबला करने के क़ाबिल नही है और उस पर ज़ुल्म करने में उन ख़तरों का अंदेशा नही है जो किसी दूसरे मर्द पर ज़ुल्म करने में पैदा होते हैं और उसके बाद अपने ज़ुल्म की वैधता क़ुरआने मजीद के इस ऐलान में तलाश करते हैं और उनका ख़्याल यह है कि क़व्वामियत निगरानी और ज़िम्मेदारी नही है बल्कि शासन और जल्लादियत है। हालाँकि क़ुरआने मजीद ने साफ़ साफ़ दो कारणों की तरफ़ इशारा कर दिया है जिसमें से एक मर्द की व्यक्तिगत विशेषता और भिन्न व विशेष हातल है और उसकी तरफ़ से औरत के ख़र्च की ज़िम्मेदारी है और खुली हुई बात है कि दोनो कारणों में न किसी तरह की हुकूमत पाई जाती है और न जल्लादियत बल्कि शायद बात उसके विपरीत नज़र आये कि मर्द में प्राकृतिक अंतर था तो उसे उस अंतर से फ़ायदा उठाने के बाद एक ज़िम्मेदारी का केंद्र बना दिया गया और इस तरह उसने चार पैसे हासिल किये तो उन्हे अकेले खाने के बजाए उसमें औरत का हिस्सा भी है और अब और औरत वह मालिक है जो घर के अंदर चैन से बैठी रहे और मर्द वह सेवक है जो सुबह से शाम तक परिवार की रोटी की तलाश में मेहनत करता रहे। यह वास्तव औरत की औरत होने की क़ीमत है जिसके मुक़ाबले में किसी दौलत, शोहरत, मेहनत और हैसियत की कोई क़दर व क़ीमत नही है।

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इस्लाम में औरत का महत्व

विवाहित ज़िन्दगी

शादी इंसानी ज़िन्दगी का महत्वपूर्ण मोड़ है जब दो इंसान अलग जेन्डर से होने के बावजूद एक दूसरे की ज़िन्दगी में सम्पूर्ण रूप से दख़ील हो जाते हैं और हर को दूसरे की ज़िम्मेदारी और उसके भावनाओं का पूरे तौर पर ख़्याल रखना पड़ता है। इख़्तिलाफ़ के आधार पर हालात और स्वभाव की मांगें भिन्न होती हैं लेकिन हर इंसान को दूसरे के भावनाओं के दृष्टिगत अपनी भावनाओं और एहसास की सम्पूर्ण क़ुरबानी देनी पड़ती है।

क़ुरआने मजीद ने इंसान को इत्मीनान दिलाया है कि यह कोई बाहरी सम्बंध नही है जिसकी वजह से उसे समस्याओं व मुश्किलों का सामना करना पड़े बल्कि यह एक प्राकृतिक मामला है जिसका इंतेज़ाम अल्लाह ने स्वभाव के अंदर रख दिया है और इंसान को उसकी तरफ़ ध्यान भी दिला दिया है। जैसा कि इरशाद होता है:

 

و من آيايه ان خلق لکم من انفسکم ازواجا لتسکنوا اليها و جعل بينکم موده و رحمه ان فی ذالک لآيات لقوم يتفکرون (سوره روم)

 

और अल्लाह की निशानियों में से यह भी है कि उसने तुम्हारा जोड़ा तुम ही में से पैदा किया है ताकि तुम्हे ज़िन्दगी का सुकून हासिल हो और फिर तुम्हारे बीच प्यार व रहमत क़रार दिया है इसमें फ़िक्र व विचार करने वालों के लिये बहुत सी निशानियाँ पाई जाती हैं।

बेशक जेन्डर में अंतर, हालात व माहौल में अंतर के बाद मुहब्बत व रहमत का पैदा हो जाना अल्लाह की क़ुदरत व रहमत की निशानी है जिसके लिये अनगिनत विभाग हैं और हर विभाग में बहुत सी निशानियाँ पाई जाती हैं। आयते करीमा में यह बात भी स्पष्ट कर दी गई है कि जोड़ा अल्लाह ने पैदा किया है यानी यह सम्पूर्ण बाहरी मसला नही है बल्कि दाख़िली तौर पर हर मर्द में औरत के लिये और हर औरत में मर्द के लिये यह क्षमता रख दी गई है ता कि एक दूसरे को अपना जोड़ा समझ कर बर्दाश्त कर सके और उससे नफ़रत व बेज़ारी का शिकार न हो और उसके बाद इस रिश्त में प्यार व रहमत का भी क़ानून बना दिया ताकि प्राकृतिक भावनाएं और मांगें पिसने न पाएँ। यह क़ुदरती सिस्टम है जिससे जुदा होना इंसान के लिये अनगिनत मुश्किलें पैदा कर सकता है चाहे इंसाने राजनीतिक हिसाब से इस अलगाव व जुदाई पर मजबूर हो या भावनाओं के कारण।

अल्लाह के दूत भी अपनी विवाहित ज़िन्दगी से परेशान रहे हैं तो उसका भी राज़ यही था कि उन पर सियासी और प्रचार के दृष्टिकोण से यह जरूरी था कि ऐसी औरतों से निकाह करें और उन मुश्किलों का सामना करें ताकि दीन को उन्नति हासिल हो सके और तबलीग व प्रचार का काम अंजाम पा सके। प्रकृति अपना काम बहरहाल कर रही थी यह और बात है कि वह शरई तौर पर ऐसी शादी पर मजबूर थे कि उनका एक कर्तव्य होता है कि दीन के प्रचार की राह में ज़हमते बर्दाश्त करें क्योकि तबलीग़ का रास्ता फूलों की सेज से नही गुज़रता है बल्कि कांटेदार वादियों से हो कर गुज़रता है।

उसके बाद क़ुरआने हकीम ने विवाहित ज़िन्दगी को मज़ीद बेहतर बनाने के लिये दोनो जोड़े की नई ज़िम्मेदारियों का ऐलान किया और इस बात को स्पष्ट कर दिया कि केवल मुहब्बत और रहमत से बात तमाम नही हो जाती है बल्कि कुछ उसके बाहरी मांगें भी हैं जिन्हे पूरा करना ज़रुरी है वर्ना दिला मुहब्बत व रहमत बे असर हो कर रह जायेगी और उसका कोई नतीजा हासिल न होगा।

 

هن لباس لکم انتم لباس لهن (سوره بقره آيت ۱۸۷)

 

औरतें तुम्हारे लिये लिबास हैं और तुम उनके लिये लिबास हो।

यानी तुम्हारा बाहरी और समाजी कर्तव्य यह है कि उनके मामलों की पर्दा पोशी करो और उनके हालात को उसी तरह ज़ाहिर न होने जिस तरह लिबास इंसान की बुराईयों को ज़ाहिर नही होने देता है। इसके अलावा तुम्हारा एक कर्तव्य यह भी है कि उन्हे जम़ाने के सर्द व गर्म से बचाते रहो और वह तुम्हे ज़माने की सर्द व गर्म हवाओं से सुरक्षित रखें कि यह विभिन्न हवाएँ किसी भी इंसान की ज़िन्दगी को ख़तरे में डाल सकती हैं और उसकी जान व प्रतिष्ठा को तबाह कर सकती हैं। दूसरी जगह इरशाद होता है:

 

نساءکم حرث لکم فاتوا حرثکم انی شءتم ) سوره بقره)

 

तुम्हारी औरते तुम्हारी खेतियाँ हैं अतः अपनी खेतियों में जब और जिस तरह चाहो आ सकते हो। (शर्त यह है कि खेती बर्बाद न होने पाये।)

इस बेहतरीन जुमले से बहुत से मसलों को हल तलाश किया गया है। पहली बात तो यह कि बात को एक तरफ़ा रखा गया है और लिबास की तरह दोनो को ज़िम्मेदार नही बनाया गया है बल्कि मर्द को सम्बोधित किया गया है कि इस रुख़ से सारी ज़िम्मेदारी मर्द पर आती है और खेती की सुरक्षा का सारा इंतेज़ाब किसान पर होता है खेत का इसका कोई सम्बंध नही होता जबकि पर्दा पोशी और ज़माने के सर्द व गर्म बचाना दोनो की ज़िम्मेदारियों में शामिल था।

दूसरी तरफ़ इस बात को भी स्पष्ट कर दिया गया है कि औरत से सम्बंध में उसकी उस हैसियत का लिहाज़ बहरहाल ज़रुरी है कि वह खेत की हैसियत रखती है और खेत के बारे में किसान को यह इख़्तियार तो दिया गया जा सकता है कि फ़स्ल की मांगों को देख कर खेत को वैसे ही छोड़ दे और खेती न करे लेकिन यह इख़्तियार नही दिया जा सकता है कि उसे तबाह व बर्बाद कर दे और समय से पहले या फस्ल के होने से पहले ही फस्ल काटना शुरु कर दे इसलिये इसे खेती नही कहते बल्कि हलाकत कहते हैं और हलाकत किसी भी क़ीमत पर वैध नही क़रार दी जा सकती।

ग्रुप 5+1 के साथ एटमी बातचीत में ईरानी राष्ट्र के अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए

तेहरान की नमाज़े जुमा के इमाम ने ग्रुप 5+1 साथ बातचीत में ईरानी राष्ट्र के अधिकारों की रक्षा की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।

आज तेहरान की सेंट्रल नमाज़े जुमा आयतुल्लाह मुहम्मद इमामी काशानी की इमामत में अदा की गयी। उन्होंने नमाज़े जुमा के ख़ुतबों में यह बयान करते हुए कि ग्रुप 5+1 के साथ एटमी बातचीत में ईरानी राष्ट्र के अधिकारों को सुनिश्चित किया जाए, कहा कि ईरानी जनता और वरिष्ठ नेता भी इस बात पर बल देते हैं और विदेशमंत्रालय को भी इसे व्यवहारिक बनाने के लिए क़दम उठाना चाहिए।

आयतुल्लाह काशानी ने ज़ोर दिया कि यूरेनियम संवर्धन और समस्त एटमी गतिविधियों को जो शांतिपूर्ण एटमी एनेर्जी के माध्यम से ईरान की चिकित्सकीय व ग़ैर चिकित्सकीय आवश्यकताओं को पूरी करती हैं, जारी रहना चाहिए और इसके बारे में तनिक भी लापरवाही नहीं की जानी चाहिए।

उन्होंने इसी तरह दुनिया के समस्त राष्ट्रों पर वर्चस्व जमाने के लिए ज़ायोनी षड्यंत्रों की ओर इशारा करते हुए कहा कि अमरीका को जो इस शासन को अपना दोस्त कहता है, यह जान लेना चाहिए कि ज़ायोनी न केवल दोस्त नहीं हैं वह अमरीका सहित पूरी दुनिया पर वर्चस्व जमाने की कोशिश में हैं।

तेहरान के इमामे जुमा ने इलाक़े में ज़ायोनियों के अपराधों की ओर इशारा करते हुए कहा कि पश्चिम को ज़ायोनी शासन से दूरी कर लेना चाहिए क्योंकि इस शासन से दोस्ती, नुक़सान के अतिरिक्त कुछ और नहीं है।

आयतुल्लाह इमामी काशानी ने इस बात पर बल देते हुए कि ज़ायोनी शासन दुनिया पर वर्चस्व जमाने की अपने षड्यंत्र में सफल नहीं हुआ और इसमें कभी वह सफल भी नहीं हो पाएगा, कहा कि इस्राईल को अलग थलग करना और उससे दूर रहना दुनिया की समस्त सरकारों और राष्ट्रों के हित में है।

उन्होंने 24 मई को ख़ुर्रम शहर की आज़ादी पर बधाई देते कहा कि ईरानी जियालों पवित्र डिफ़ेंस काल के दौरान अद्वितीय कारनामे अंजाम दिए हैं।

भारत जा रहे हैं नवाज़ शरीफ़भारत के मनोनीत प्रधानमंत्री के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने उपस्थित होने का फ़ैसला किया है।

प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री कार्यालय ने भारतीय मीडिया ज़ी न्यूज़ को यह सूचना दी है कि नवाज़ शरीफ़ सोमवार प्रातः दस बजे नई दिल्ली पहुंचेगे किन्तु अभी तक आधिकारिक रूप से इसकी घोषणा नहीं की गयी है।

पाकिस्तान की ओर से नवाज़ शरीफ़ के भारत दौरे की आधिकारिक घोषणा शनिवार को हो सकती है। इससे पूर्व पाकिस्तान के विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता तसनीम असलम ने कहा है कि शनिवार को होने वाली बैठक में यह फ़ैसला किया जाएगा कि प्रधानमंत्री भारत का दौरा करेंगे या नहीं।

दूसरी ओर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को शपथ ग्रहण समारोह में आने का न्योता देने के कारण कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी की आलोचना की है।

कांग्रेस महासचिव शकील अहमद ने कहा कि पड़ोसी देश ने अपनी धरती से संचालित आतंकवादी ढांचे को अभी तक ध्वस्त नहीं किया है इसीलिए उसके साथ बातचीत के लिए अनुकूल वातावरण नहीं है।

उन्होंने कहा कि यदि नरेंद्र मोदी, नवाज़ शरीफ़ के साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं तो ठीक है किन्तु पाकिस्तान स्थित आतंकी ढांचे को समाप्त किए बिना उसके साथ बातचीत नहीं की जानी चाहिए।

ज्ञात रहे कि दक्षेस देशों के जिन अन्य नेताओं ने शपथ ग्रहण समारोह में शामिल होने के लिए सहमति व्यक्त की है उनमें श्रीलंका के राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे, अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति हामिद करज़ई, भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोबगाय, नेपाल के प्रधानमंत्री सुशील कोइराला और मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्लाह यामीन शामिल हैं।

बांग्लादेश की ओर से स्पीकर शीरीन चौधरी भाग लेंगी क्योंकि प्रधानमंत्री शैख़ हसीना वाजिद जापान यात्रा पर होंगी।

इसी मध्य भारत के भावी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पत्नी जशोदाबेन ने कहा है कि उन्हें गर्व है कि वे नरेन्द्र मोदी की पत्नी हैं और यदि न्योता मिला तो उन्हें उनके साथ प्रधानमंत्री निवास में रहने में कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि उनमें तलाक नहीं हुआ है।

उन्होंने यह भी कहा कि यदि उन्हें बुलाया जाएगा तो वह उनके शपथ ग्रहण समारोह में भी जाएंगी।

मिस्र, कई स्थान पर सरकार विरोधी प्रदर्शनमिस्र में अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी के समर्थकों ने कई नगरों में प्रदर्शन किए हैं।

अल आलम टीवी चैनल के अनुसार मोहम्मद मुर्सी के समर्थकों और मुस्लिम ब्रदरहुड के कार्यकर्ताओं ने चुनाव के विरुद्ध प्रदर्शन किए। इस्क़ंदरिया में होने वाले प्रदर्शन में शामिल लोगों ने मोहम्मद मुर्सी की तस्वीरें अपने हाथों में उठा रखी थीं। प्रदर्शन में शामिल लोगों ने राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशी अब्दुल फ़त्ताह सीसी के विरुद्ध ज़बरदस्त नारे लगाए। मिस्र के शहर हलवान भी इसी तरह का एक बड़ा प्रदर्शन किया गया।

प्रदर्शन के दौरान लोगों ने मुर्सी सरकार के विरुद्ध विद्रोह की निंदा की और विद्रोह करने वालों पर मुक़द्दमा चलाए जाने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने आगामी चुनाव का बहिष्कार किए जाने की भी मांग की है। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि छब्बीस मई को होने वाला चुनाव एक उपहास है।

अलबुहैरा नगर में भी होने वाले प्रदर्शन में शामिल लोगों ने कहा कि पूर्व तानाशाह हुस्नी मुबारक की सरकार के ही लोगों की सत्ता में वापसी निंदनीय है। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि विद्रोह के परिणाम स्वरूप आने वाली वर्तमान सरकार के विरोधियों को दी जाने वाली यातनाएं बंद होनी चाहिए।