Super User

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उस दिन महिला, पुरूष, बच्चे और बूढ़े सब ही आए थे। दूर से लोगों का एक ऐसा भव्य जनसमूह दिखाई दे रहा था

जिनके, अल्लाहो अकबर-ख़ुमैनी रहबर आकाशभेदी नारों से, उनके पैरों के नीचे धरती कांप रही थी। उस दिन गुरू-अध्यापक-धर्मगुरू-व्यापारी-कारीगर-श्रमिक और कर्मचारी सभी आए थे। ताकि विश्व के सामने व्यवहारिक रूप से इमाम ख़ुमैनी जैसे महान नेता के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम का प्रदर्शन कर सकें। उनमें से प्रत्येक की आंखों में मान-सम्मान और गौरव स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। यह लोग फूलों के गुलदस्तों और प्रेम से भरे हुए हृदयों के साथ अपने नेता के स्वागत के लिए आए थे। जिस समय सूर्य ने अपनी किरणे बिखेरनी शुरू कीं तो दूर क्षितिज से पवित्रता तथा स्वतंत्रता देखते ही राष्ट्र की ओर से "ख़ुमैनिये इमाम" ख़ुमैनिय इमाम की आवाज़े हर ओर गूंजने लगीं।

 

उस दिन, बारह बहमन १३५७ हिजरी शम्सी अर्थात की पहली फ़रवरी थी। यह दिन, ईरान में इमाम ख़ुमैनी के प्रवेश का दिन था। उन्हीं दिनों एक पश्चिमी टीकाकार ने लिखा था कि अब वास्तविक शासक के रूप में वरिष्ठ धर्मगुरूओं में से एक वरिष्ठतम धर्मगुरू, राजनेताओं के भी ऊपर आ चुका है। लंदन से प्रकाशित होने वाले समाचारपत्र टाइम्स ने इतिहास के इस वर्तमान अद्वितीय व्यक्तित्व का परिचय कराते हुए लिखा था कि इमाम ख़ुमैनी का व्यक्तित्व ऐसा है कि उन्होंने अपने भाषणों से जनता को सम्मोहित कर लिया है। वे साधारण भाषा में बोलते हैं और अपने समर्थकों का आत्मविश्वास बढ़ाते हैं। उन्होंने यह कार्य करके दिखा दिया है कि बड़ी निर्भीकता के साथ अमरीका जैसी महाशक्ति का मुक़ाबला किया जा सकता है।

इसी संदर्भ में एक फ़्रांसीसी दर्शनशास्त्री और टीकाकार एवं विचारक मीशल फ़ोको लिखते हैं कि आयतुल्ला ख़ुमैनी का व्यक्तित्व, एक चमत्कारी व्यक्तित्व है। कोई भी राजनेता या शासक अपने देश के समस्त संचार माध्यमों की सहायता के बावजूद यह दावा नहीं कर सकता कि उसके संबन्ध जनता के साथ इतने गहरे हैं।

इस्लामी क्रांति के सांस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी केवल एक राजनैतिक क्रांतिकारी नेता नहीं। इस महान व्यक्ति ने अपने जीवन का अधिकांश समय अन्याय के विरूद्ध आवाज़ उठाने में ही व्यतीत कर दिया। वे वर्तमान आदर्शों से भी आगे बढ़कर ऐसे धर्मगुरू थे जो ईश्वरीय दूतों के मार्ग और उनकी शैली का अनुसरण करते थे और वे सत्य व न्याय की स्थापना को सृष्टि की वास्तविक्ता के रूप में देखते थे। यही कारण है कि इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में आने वाली क्रान्ति, केवल ईरानी समाज से विशेष नहीं है। इस्लामी क्रांति इस्लाम और क़ुरआन से प्रभावित थी जो मानव समाज को पवित्रता, सच्चाई, स्वतंत्रता और न्याय की ओर बुलाती है। यह महत्वपूर्ण बातें सभी राष्ट्रों में सम्मान की दृष्टि से देखी जाती हैं। इस प्रकार वर्तमान संसार इस जनक्रांति की स्वतंत्रताप्रेमी और स्वावलम्बी विचार धारा से प्रभावित हुआ और इससे पूरे विश्व में व्यापक स्तर पर जागरूकता तथा जागृति उत्पन्न हुई है।

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी आत्मविश्वास और ईश्वर पर आस्था की भावना से परिपूर्ण थे। इस संदर्भ में एक तत्कालीन अमरीकी समाज शास्त्री "एलविन टाफ़लर" कहते हैं कि आयतुल्ला ख़ुमैनी ने संसार से कह दिया है कि आज के बाद विश्व पटल पर मुख्य कर्ताधर्ता के रूप में महाशक्तियों की ही गिनती नहीं होगी बल्कि सभी राष्ट्रों को शासन का अधिकार प्राप्त होगा। आयतुल्ला ख़ुमैनी हमसे कहते हैं कि महाशक्तियां, विश्व पर वर्चस्व जमाने के लिए अपने अधिकार की बात कहती हैं, उन्हें यह अधिकार प्राप्त ही नहीं है।

आधुनिक काल में आध्यात्मिक तथा वैचारिक क्रांति के रूप में ईरान की इस्लामी क्रांति को विशेष स्थान प्राप्त है। अन्य क्रांतियों की तुलना में इस्लामी क्रांति की भिन्नता का कारण वह आधुनिकताएं है जो स्वंय निहित है। इसकी इसी विशेषता के कारण तीन दशक बीत जाने के पश्चात इस्लामी क्रांति आज भी राजनैतिक एवं समाजिक विशेषज्ञों के अध्धयन का विषय बनी हुई है। इन सभी बातों के बावजूद हम यह देखते हैं कि सुनियोजित दंग से पश्चिमी सरकारों द्वारा माध्यमों से यह दर्शाने का प्रयास किया जा रहा है कि मानो इस्लामी क्रांति का समापन निकट है और इससे उत्पन्न होने वाली शासन व्यवस्था अक्षम व्यवस्था है।

अपने उदय के चौथे दशक में इस्लामी क्रांति को विशेष प्रकार की परिस्थितियों का सामना है क्योंकि यह आन्दोलन जनता के बीच से उठा है अतः इस्लामी क्रांति, एक जीवंत अस्तित्व के रूप में गतिशील और सक्रिय रही है। यह क्रांति एक के बाद एक, बहुत से उतार-चढ़ावों और बाधाओं से गुज़रती हुई अपने विकास और प्रगति के मार्ग पर अग्रसर है। राजनैतिक मामलों के टीकाकारों के अनुसार इस्लामी क्रांति, वर्तमान कालखण्ड में भी अपनी आरम्भिक ऊर्जा से संपन्न है और इसमें इस बात की क्षमता पायी जाती है कि आने वाली चुनौतियों का वह डटकर मुक़ाबला कर सके। इस क्रांति को साहसी एवं दूरदर्शी वरिष्ट नेतृत्व का समर्थन प्राप्त है जिसने सदैव के लिये ईरान के मार्ग का निर्धारण करते हुए घोषणा की है कि भविष्य में ईरानी राष्ट्र का मार्ग, वही इमाम ख़ुमैनी क्रान्ति महाशक्तियों के मुक़ाबले में प्रतिरोध, वंचितों एवं अत्याचार ग्रस्तों की रक्षा तथा विश्व स्तर पर इस्लाम एवं क़ुरआन के ध्वज को लहराने का मार्ग है। इस इस्लामी क्रांति की मुख्य समर्थक, ईरान की साहसी जनता है। इस जनता ने बड़ी ही संवेदनशील एवं संकटमयी स्थिति में लाखों की संख्या में उपस्थित होकर इस्लामी क्रांति की आकांक्षाओं और उसके महत्तव का सम्मान किया। ३० दिसंबर २००९ को निकलने वाली रैलियों में ईरानी राष्ट्र ने क्रांति की सफलता के तीन दशकों के पश्चात इस्लामी क्रांति के वैभव, महानता और उसकी आकांक्षाओं के प्रति जनसमर्थन का प्रदर्शन किया था। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के कथनानुसार जब तक कोई भी राष्ट्र पूरी जागरूकता, ईमान आस्था और दृढ़ संकल्प के साथ अपने अधिकारों का समर्थन करता रहेगा निश्चित रूप से वह विजयी रहेगा।

इस्लामी क्रांति, एक सुप्रभात के रूप में थी। ऐसे प्रभात के रूप में जिसने अत्याचारग्रस्त काल में यह विचार प्रस्तुत किया कि राजनीति में नैतिक्ता तथा आध्यात्म का मिश्रण होना चाहिए। इस विषय के दृष्टिगत यह आवश्यक है कि राजनेताओं और शासकों को चाहिए के वे सदाचार, न्याय तथा वास्तविकता की प्राप्ति को अपने कार्यक्रम में सर्वोपरि रखें ताकि पूरे विश्व में न्याय और शांति की स्थापना हो सके। इस क्रांति ने शाह के अत्याचारी शासनकाल में निराश और उदासीय लोगों को आशा और नवजीवन प्रदान किया। भाग्य ने सन १३५७ हिजरी शम्सी अर्थात १९७९ में ईरान की भूमि को स्वतंत्रता एवं ईमान से जोड़ दिया और जनता का मार्गदर्शन प्रकाशमई क्षितिज की ओर किया।

मानवीय एवं आध्यात्मिक मूल्यों इस्लामी क्रांति आई और इसने पवित्र क़ुरआन की शिक्षाओं पर आधारित समाज के गठन के लिए बड़ी संख्या में शहीद अर्पित किये। इस क्रांति में निष्ठा, स्थाइत्व और एकता, स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। इस्लामी क्रांति ने जीवित एवं गतिशील प्रक्रिया के रूप में राजनैतिक एवं समाजिक मंच पर इस्लाम की शिक्षाओं को प्रदर्शित किया। इस क्रांति ने यह दर्शा दिया कि धर्म, मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका निभा सकता है और वह उसके लिए प्रगति एवं किल्याण के मार्ग को प्रशस्त करने में भी सक्षम है। स्पेन के प्रोफ़ेसर केलबेस कहते हैं कि इस्लामी क्रांति के साथ धर्म जीवित हो गया है। दैनिक जीवन में आध्यात्मिक सुन्दरता पर ध्यान दिया गया। साथ ही अपने समाजिक संबन्धों को सुन्दर बनाने तथा उनकी मुक्ति के लिए धर्म की शक्ति एवं आध्यात्मिक आकर्षणों की ओर झुकाव, बहुत तेज़ी से बढ़ा है। यह सब कुछ विश्व समुदाय में मन एवं मस्तिष्क में इमाम ख़ुमैनी की इस्लामी क्रांति के कारण आरंभ हुआ है।

इस्लामी क्रान्ति के प्रति जनता का संकला और ईरानी जनता पर मश्वरीय अनुकंपाओं का आभार प्रकट करने का दशक भैं ग्यारह फ़रवरी अर्थात बहमन की बारहवीं तारीख़ उन आकांक्षाओं के सम्मान का दिन है जिन्हें इमाम ख़ुमैनी स्वतन्त्रता प्रेमियों के लिये उपहार स्वरूप लाये।

स्वतन्त्रता प्रभात सभी जागरूक एवं सचेत लोगों के लिए मुबारक हो।

इंग्लैंड के एक भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने दुनिया के साम्राजी राजनेताओं के एक सम्मेलन में यह एलान किया था कि हमें

चाहिए कि इस्लाम को इस्लामी देशों में गोशा नशीन कर दें। इससे पहले भी और इसके बाद भी इस काम के लिए बहुत ज़्यादा पैसे खर्च किए गए लेकिन वह कामयाब न हो सके। इमाम खुमैनी (रह) जैसे महान नेता ने इस्लामी इंक़िलाब लाकर इस्लाम को दुनिया के गोशे गोशे तक पहचनवा दिया। और बता दिया कि देखो यह एक खुदाई दीन और धर्म है जिसे दुनिया की कोई ताक़त मिटा नही सकती। आईए उसी महान हस्ती के दस बड़े कारनामों को पेश किया जा रहा है जिसने इस्लामी इंक़िलाब लाकर इस्लाम के दुश्मनों को मायूस कर दिया।

इमाम खुमैनी (रह) ने इस्लाम को एक नई ज़िन्दगी दी

बीते दो सौ बरसों से साम्राजी मशीनरियों ने यह कोशिश की है कि इस्लाम को भुला दिया जाए। इंग्लैंड के एक भूतपूर्व प्रधान मंत्री ने दुनिया के साम्राजी राजनेताओं के एक सम्मेलन में यह एलान किया था कि हमें चाहिए कि इस्लाम को इस्लामी देशों में गोशा नशीन कर दें। इससे पहले भी और इसके बाद भी इस काम के लिए बहुत ज़्यादा पैसे खर्च किए गए ताकि इस्लाम पहले स्टेप में लोगों की दरमियान से खत्म हो जाए और दूसरे स्टेप में लोगों के दिल, दिमाग़ और ज़हन से निकल जाए क्यों कि साम्राजी ताक़तो को यह मालूम था कि यह धर्म बड़ी ताक़तों की लूट घसोंट और साम्राजी ताक़तों के हर बड़ी चीज़ पर क़ब्ज़ा करने के लक्ष्य में सबसे बड़ी रुकावट है। हमारे इमाम ने इस्लाम को दुबारा ज़िन्दा किया लोगों के दिल, दिमाग़ और ज़हन में उतारा और अमली करके बताया कि देखो इस्लाम सियासत से अलग नही है।

इमाम खुमैनी (रह) ने मुसलमानों का वक़ार बहाल किया

इमाम खुमैनी (रह) की क्रान्ति के नतीजे में पूरी दुनिया के मुसलमानों ने इज़्ज़त और सर बुलंदी का एहसास किया और इस्लाम महदूद बहसों से निकल कर सामाजी और सियासी मैदान में दाखिल हुआ। एक बड़े देश के एक मुसलमान शख्स ने जहाँ मुसलमान माईनार्टी (अल्पसंख्यक) में हैं, मुझसे कहा कि इस्लामी इंक़िलाब से पहले मैं खुद को कभी दूसरों के सामने मुसलमान ज़ाहिर नही करता था। मेरे देश के मुसलमान इस देश की रिति और प्रथा के अनुसार अपने बच्चों का नाम रखते हैं यानि इस्लामी नाम नही रख सकते अगरचे वह घर के अंदर अपने बच्चों के नाम इस्लामी रखते हैं लेकिन घर के बाहर ग़ैरे इस्लामी। इस्लामी नाम को घर के बाहर पुकारने की किसी में हिम्मत न थी लोग घर के बाहर इस्लामी नाम लेने से दूरी करते थे। हम खुद को मुसलमान कहने से शर्मिन्दगी का एहसास करते थे।

लेकिन ईरान के इस्लामी इंक़िलाब की कामयाबी के बाद हमारे यहाँ के लोग बड़े गर्व से अपना इस्लामी नाम ज़ाहिर करते हैं और अगर उनसे पूछा जाता है कि आप कौन हैं आपका नाम क़्या है तो गर्व और फख्र के साथ पहले इस्लामी नाम बताते हैं। इस प्रकार इमाम ने जो बड़ा कारनामा अंजाम दिया उसका परिणाम यह निकला कि मुसलमानों को पूरी दुनिया में इज़्ज़त का एहसास होने लगा और वह अपने मुसलमान होने और इस्लाम की पैरवी करने पर फख्र करने लगे।

आपने मुसलमानों को उम्मते वाहिदा का जुज़ होने का एहसास दिलाया

इससे पहले मुसलमान जहाँ भी था उसके लिए उम्मते वाहिदा कि कोई अहमियत नही थी। आज दुनिया के तमाम मुसलमान चाहे वह एशिया में हों या अफरीक़ा में यूरोप में हों या अमरीका में इस बात का एहसास कर रहे हैं कि वह उम्मते इस्लामिया के नाम के एक बड़े अन्तर्राष्ट्रीय समाज का भाग हैं। इमाम खुमैनी (रह) ने उम्मते इस्लामिया के प्रति लोगों में शऊर जगाया और उन्हें जागरुक किया जो अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों के मुक़ाबले में इस्लामी समाज की रक्षा के लिए सबसे बड़ा हथियार है।

इमाम खुमैनी (रह) ने दुनिया की सबसे खराब हुकूमत और शासन का खात्मा किया

इमाम खुमैनी (रह) नें ईरान की खराब और बदतर शाही हुकूमत और शासन का खात्मा कर दिया। शाही शासन का अंत इमाम खुमैनी (रह) के कुछ बड़े कारनामों में से एक है जो बिल्कुल सामने है। ईरान उस समय अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों का सबसे बड़ा और मज़बूत क़िला बन चुका था जो इमाम के इलाही और मज़बूत हाथ से ढ़ह गया।

इमाम खुमैनी (रह) ने इस्लामी शिक्षाओं और उसूलों की बुनियाद पर हुकूमत बनाई

यह वह चीज़ें हैं जो ग़ैर मुस्लिम तो ग़ैर मुस्लिम मुसलमानों के दिमाग़ों में भी नही समाती थी। यह एक बेहतरीन ख्वाब था जिसकी ताबीर के बारे में सीधे साधे मुसलमान सोच भी नही सकते थे। इमाम ने इलाही मदद के ज़रिए एक ख्वाब को हक़ीक़त में बदल दिया।

इमाम खुमैनी (रह) की तहरीक ने पूरी दुनिया में इस्लामी तहरीकों को जन्म दिया

ईरान के इस्लामी इंक़िलाब से पहले बहुत से देशों में मुस्लिम देशों समेत विभिन्न गुरूप के लोग जैसे जवान, नाराज़ लोग, आज़ादी के माँग करने वाले लोग और लेफ्ट पार्टी वाले अपनी आईडियालाजी के सहारे मैदान में उतरे थे। लेकिन ईरान के इस्लामी इंक़िलाब की कामयाबी के बाद इन सब लोगों के क़्याम की बुनियाद इस्लाम बन गया। आज इस्लामी दुनिया के इतने बड़े इलाक़े में जहाँ कही भी कोई गुरुप इस तरह की तहरीक चलाता है और अमरीका और इंग्लैन्ड जैसे इस्तेकबारों के खिलाफ आवाज़ उठाता है उसका बेस इस्लाम ही होता है और इस्लामी उसूलों को ही अपने काम की बुनियाद बनाता है इस तरह उसकी फिक्र इस्लामी फिक्र होती है।

इमाम खुमैनी (रह) ने शिया फिक़्ह में नई सोच राइज कर दी और नया नज़रिया पेश किया

हमारी फिक़्ह की बुनियाद बहुत ही मज़बूत थी और आज भी है। फिक़्हे शिया बहुत ही मज़बूत और बहुत मोहकम और बहुत मज़बूत उसूलों पर आधारित है। इमाम खुमैनी (रह) ने इस फिक़्ह को चाहे वह हुकूमती फिक़्ह हो, बढ़ाया मज़बूत किया और एक नए अंदाज़ से पेश किया। इस पवित्र फिक़्ह के विभिन्न पहलूओं को हमारे सामने स्पष्ट किया जो इससे पहले स्पष्ट और वाज़ेह न थे।

व्यक्तिगत कामों में राइज ग़लत अक़ीदों को बातिल क़रार दिया

दुनिया में यह बात मुसल्लम है कि जो लोग समाज की बड़ी पोस्ट पर होते हैं उनका विशेष तौर तरीक़ा होता है। कुछ घमंड और ग़ुरुर होता है, ऐश और आराम की ज़िन्दगी होती है और इस तरह उनका अपना विशेष ठाट बाट होता है और एक खास अंदाज़ होता है। इस दौर में बड़े शासकों के लिए प्रोटोकाल होता है और वह अपने लिए इसको अपनी सरकारी ज़िन्दगी का लाज़िमा समझते हैं और यह सब ऐसी बातें हैं जिनको दुनिया ने आज क़ुबूल भी लिया है कि जो लोग बड़ी पोस्ट पर होते हैं उनका गोया यह सब हक़ होता है हत्ता उन देशों में जहाँ इंक़िलाब आया है वहाँ के इंक़िलाबी नेता भी जो कल तक खैमों और तम्बुओं में ज़िन्दगी गुज़ारते थे और क़ैद खानों और मख़फी गाहों में छिपे रहते हैं वह जैसे ही शासन में आते हैं उनका रहन सहन बदल जाता है उनके शासनिक अंदाज़ भी बदल जाते हैं और वही सब कुछ अंदाज़ उनका भी होता है जो उनसे पहले के शासकों और बादशाहों का था। हमने तो नज़दीक से यह सारी चीज़े देखी हैं और हमारी जनता के लिए भी यह कोई नई बात नही है और कोई तअज्जुब की बात भी नही है।

इमाम (रह) ने इस तरह के नज़रियों और अक़ीदे को ग़लत क़रार दिया और सिद्ध किया कि किसी क़ौम और मुसलमानों के महबूब क़ायद और लीडर ज़ाहिदाना ज़िन्दगी के मालिक हो सकते हैं और एक सादा ज़िन्दगी गुज़ार सकते हैं एक आलीशान मुहल्लों के बजाए एक इमाम बारगाह में अपने मिलने वालों से मुलाक़ात कर सकते हैं नबियों की ज़बान, अखलाक़ और लिबास में लोगों से मिल सकते हैं। अगर शासकों और उनके मंत्रियों के दिल वास्तविकता और मारिफत के नूर से रौशन होंते हैं तो ज़ाहिरी चमक दमक, थाट बाट, इसराफ, ऐश और इशरत की ज़िन्दगी, खुद नुमाई, घमंड और ग़ुरूर और इस जैसी दूसरी तमाम बातें उनकी इस शासकीय ज़िम्मेदारियों का भाग नही समझी जाएँगी।

इमाम (रह) के बड़े कारनामों में से एक यह था कि वह अपनी व्यक्तिगत ज़िन्दगी में भी और जब आप देश और क़ौम के सबसे बड़े लीडर थे उस समय भी वास्तविकता और मारिफत का नूर उनके पूरे वजूद में जलवा कर रहा था।

इमाम खुमैनी (रह) ने ईरानी क़ौम के अंदर खुद एतिमादी और इज़्ज़ते नफ्स को ज़िन्दा किया

ज़ालिम शाह की ज़ालिम और भ्रष्टाचार में लिप्त हुकूमत और इसी तरह उसकी पिट्ठू हुकूमतों ने कई सालों तक ईरानी क़ौम को एक कमज़ोर क़ौम में बदल कर रख दिया था वह भी ऐसी क़ौम कि जिसके अंदर ग़ैरे मामूली सलाहियतें पाई जाती हैं और इस्लाम के आगाज़ से पूरी तारीख में इसका शानदार इल्मी और राजनिति माज़ी था। बाहर की ताक़तों ने काफी समय तक जिनमे कभी अंग्रेज़ों और रुसियों ने तो कभी यूरोपियों और अमरिकियों ने हमारी क़ौम की तहक़ीर की और उन्हें दबाये रखा। हमारी क़ौम के लोगों को भी यह यक़ीन हो गया था कि वह बड़े बड़े कामों को अंजाम देने की सलाहियत नही रखते हैं। देश की तरक़्क़ी और उसे बनाने में वह कुछ भी करने की ताक़त नही रखते हैं। कुछ नया करने के लिए उनके पास कुछ नही है बल्कि दूसरे ही आयें और उनके लिए काम करें उन पर शासन करें। और इस तरह हमारी क़ौम से उनका क़ौमी वक़ार छीन लिया गया था और उनकी इज़्ज़ते नफ्स का खून कर दिया गया था लेकिन हमारे इमाम ने ईरान की जनता के दरमियान क़ौमी इफ्तिखार और इज़्ज़ते नफ्स को दुबारा ज़िन्दा किया। हमारी क़ौम के अंदर ज़ाति भेद भाव और घमंड नही है लेकिन इसके अंदर इज़्ज़त और ताक़त का एहसास ज़रुर पाया जाता है।

आज हमारी क़ौम मशरिक़ और मग़रिब की मिली हुई साज़िशों और अपने खिलाफ किसी भी तरह की धौंस और धमकियों से नही डरती और किसी तरह की कमज़ोरियों का एहसास नही करती। हमारे जवान इस बात का एहसास कर रहे हैं कि वह खुद अपने देश की तरक़्क़ी में अपना रोल अदा कर सकते हैं। लोगों को अब अपनी इस ताक़त और सलाहियत का एहसास दिलाने लगा है कि वह मशरिक़ और मग़रिब की धमकियों और खतरों के मुक़ाबले में खड़े हो सकते हैं। इज़्ज़ते नफ्स का यह एहसास और यह खुद एतिमादी और वास्तविक क़ौमी इफ्तिखार इमाम (रह) ने क़ौम के अंदर दुबारा ज़िन्दा किया।

इमाम खुमैनी (रह) ने मशरिक़ और मग़रिब से वाबस्तगी का नज़रिया बातिल कर दिया

आपने सिद्ध किया कि मशरिक़ और मग़रिब से दूरी को बाक़ी रखने की पालीसि को अमल कर के दिखाया जा सकता है। दुनिया वाले यह समझ रहे थे कि या तो मशरिक़ से जुड़ना पड़ेगा या फिर मग़रिब के साथ होना पड़ेगा या तो इस ताक़त की रोटी खानी पड़ेगी या फिर उनकी चापलूसी और तारीफ करनी पड़ेगी या फिर इस ताक़त का गुन गाना पड़ेगा और हाँ में हाँ मिलाना पड़ेगी। लोग यह नही समझ पा रहे थे कि कोई क़ौम कैसे मशरिक़ से भी खुद को अलग रखे और मग़रिब से भी दूरी करे और दोनो से नाखुशी का इज़हार करे और फिर अपने पैरों पर खड़ी भी रहे ? यह कैसे मुम्किन है किसी से भी न जुड़े और किसी के भी झंडे के नीचे न जायें और दुनिया में अपना नाम रौशन करें ? मगर इमाम (रह) ने इस कारनामे को कर दिखाया और इस बात को साबित कर दिया कि मशरिक़ और मग़रिब की ताक़तों से दूरी करके भी ज़िन्दा रहा जा सकता है और इज़्ज़त और आबरु के साथ ज़िन्दगी गुज़ारी जा सकती है।

बुधवार, 12 दिसम्बर 2012 09:18

शहीद मुतह्ररी

वर्तमान समय में एसे लोग बहुत ही कम होंगे जो शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी और उनकी मूल्यवान रचनाओं से अवगत न हों।

 

हालांकि पिछले तीन दशकों से वे हमारे बीच नहीं हैं किंतु उनकी रचनाओं के अध्धयन और उसकी समीक्षा से हम स्पष्ट रूप से उनकी उपस्थिति का आभास करते हैं। उस्ताद मुतह्हरी उच्च इस्लामी विचारधारा के स्वामी थे और समय से आगे चलते थे। इस समय उनकी बहुत सी रचनाओं का विश्व में प्रचलित बहुत सी भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। विश्वस्त रिपोर्ट के अनुसार हालिया वर्षों में इसतंबूल में बहुत अधिक मांग के पश्चात शहीद मुतह्हरी की "हमास ए हुसैनी" अर्थात हुसैनी शौर्य नामक पुस्तक को पुनः प्रकाशित किया गया है। यह पुस्तक तीन भागों में है। इसके अतिरिकत चीन में "इंसान और ईमान", आर्मीनिया में "इस्लाम में शिक्षा एवं प्रशिक्षण" और तुर्कमनिस्तान में "वहय और नबूवत" नामक पुस्तकों का जनता ने अत्यधिक स्वागत किया है।

 

शहीद मुतह्हरी महान विचार और अपनी स्पष्ट लेखनी के साथ एकईश्वरीय धर्म की सुरक्षा के लिए उठ खड़े हुए और उन्होंने हृदयों से कुरितियों और बुराइयों को निकाल बाहर किया। वे दर्शनशास्त्र और बहुत सी इस्लामी शिक्षाओं के प्रचारक और इसी प्रकार महान समाज सुधारक तथा वर्तमान काल में एक मुस्लिम विचारक का प्रतीक थे। इस्लामी शासन की विचारधारा की नींव डालने वाले एक महान निर्माणकर्ता की उनको संज्ञा दी जा सकती है। इस महान विचारक ने जिन विषयों को प्रस्तुत किया वे इस्लामी जगत के लिए महत्वपूर्ण और मार्गदर्शक हैं।

हिज़बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरुल्लाह कहते हैं कि संभवतः वे प्रभावी लोग जिन्होंने मुझको और शिया जगत को अत्याधिक प्रभावित किया है दो लोग हैं प्रथम शहीद मुहम्मद बाक़िर सद्र और दूसरे शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी। इन दो महान व्यकतित्वों ने हमारे लिए एक क्रातिकारी मुसलमान तथा धार्मिक शोधकर्ता की धार्मिक विचारधारा की आधारशिला रखी जिससे आज भी आस्था रखने वाले तथा स्वतंत्रताप्रेमी लाभान्वित हो रहे हैं। हम लेबनान के मुसलमान होने के नाते शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी को उनकी रचनाओं और उनकी पुस्तकों से पहचानते हैं। मैं उनकी रचनाओं और लेखों में महान मनोबल और विशेष प्रकार की सुगंध का आभास करता हूं।

मुहम्मद अब्दुल अज़ीज़, ज़ाम्बिया के एक युवा हैं। ईसाई धर्म में पाए जाने वाले विरोधाभासों के कारण उन्होंने इस धर्म को त्याग दिया और वे मुसलमान हो गए। अब्दुल अज़ीज़ कहते हैं कि अफ्रीका के एक इस्लामी केन्द्र से मैंने इस्लाम के बारे में कुछ पुस्तकें मांगी। उन पुस्तकों में शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी की भी पुस्तकें थीं। जब मैंने उनकी पुस्तकों का अध्धयन किया तो मैं बहुत ही गूढ़ और वास्तविकता पर आधारित बातों से अवगत हुआ। इससे पहले मैं पर्दे को महिलाओं के विरुद्ध तथा जेहाद को एक प्रकार का आतंकवाद समझता था किंतु शहीद मुतह्हरी ने रोचक तर्कों के आधार पर पर्दे को महिलाओं की सुरक्षा का कारक बताते हुए समाज में उसकी आत्मीय भूमिका की व्याख्या की है। वे स्पष्ट करते हैं कि जेहाद में प्रतिरक्षा के आयाम, उसके आक्रामक आयामों से कहीं अधिक बड़े हैं और इसका मुख्य उद्देश्य, अतिक्रमणकारियों के मुक़ाबले में हक़ अर्थात वास्तविकता की रक्षा करना है। यह बात मेरे लिए बहुत ही रोचक और स्वीकारीय थी। वास्तव में शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी की पुस्तकों ने इस्लाम की वास्तविकताओं को मेरे लिए स्पष्ट किया और इन्हीं पुस्तकों के अध्धयन से मैं मुसलमान हो गया।

पवित्र क़ुरआन के महान व्याख्याकार और दार्शनिक अल्लामा तबातबाई शहीद मुतह्हरी के उस्ताद थे। अपने शिष्य की प्रशंसा करते हुए वे कहते हैं कि स्वर्गीय मुतह्हरी चिंतक, विद्वान और शोधकर्ता थे। वे जागरूक थे और कुशाग्र बुद्धि तथा वास्तविकता को स्वीकार करने वाले मस्तिष्क के स्वामी थे। उनके द्वारा लिखे गए लेख और वैज्ञानिक उद्देश्यों के संदर्भ में उनके शोध आश्चर्य चकित कर देने वाले हैं। शहीद मुतह्हरी ने अपने महत्वपूर्ण जीवन के माध्यम से, जो वैज्ञानिक प्रयासों और दार्शनिक विचारधारा से परिपूर्ण है, ज्ञान तथा दर्शनशास्त्र प्रेमियों को यह संदेश पहुंचाना है कि किसी भी स्थिति में वैज्ञानिक प्रयासों और पूरिपूर्णता को भूलना नहीं चाहिए और अपने जीवन को, जो मानवता का सर्वोत्तम उपहार है आध्यात्मिक जीवन में जो मनुष्य का उच्च जीवन है उसे परिवर्तित करें। निःसंदेह, एक बुद्विजीवी वास्तविकता की ओर जो रास्ता खोलता है वह उसको अमर बना देता है तथा यह दुनिया और उसमें पाई जाने वाली हर वस्तु से अधिक मूल्यवान है।

मुसलमानों के एक वरिष्ठ धर्मगुरू आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी का मानना है कि उस्ताद मुतह्हरी की निर्भीकता और पवित्रता ने उनको चिंतन तथा इस्लामी विषयों में एक आदर्श के रूप में परिवर्तित कर दिया है। वे कहते हैं कि मुतह्हरी जनता से अलग-थलग रहने के स्थान पर चिंतन के विषयों के संदर्भ में प्रयास किया करते थे ताकि धर्म की वास्तविकता को प्रस्तुत किया जाए। वे अपने व्यवहार और रचनाओं में केवल ईश्वर की प्रसन्नता के बारे में ही सोचा करते थे और इस मार्ग में वे इस बात के लिए तैयार थे कि अपनी समाजिक स्थिति की बलि चढ़ाएं। वे पूरी निष्ठा के साथ स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के साथ थे। उनमें वैज्ञानिक जेहाद, ज्ञान, वीरता, समय की पहचान, कर्तव्यपरायणता और नैतिककता जैसी विशेषताएं उच्च स्तर पर थीं।

 

शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी का जन्म २ फ़रवरी वर्ष १९१९ ईसवी को मशहद नगर के निकटवर्ती गांव फ़रीमान में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा उनके पैत्रिक नगर पर हुई और बारह वर्ष की आयु में वे मशहद में धार्मिक शिक्षा केन्द्र गए। इसके पश्चात उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए उन्होंने क़ुम के धार्मिक शिक्षा केन्द्र का रुख़ किया। उन्होंने क़ुम में अपने १५ वर्षीय प्रवास के दौरान आयतुल्लाह बोरोजर्दी, इमाम ख़ुमैनी और अल्लामा तबातबाई जैसे महान धर्म गुरूओं से शिक्षा प्राप्त की। शहीद मुतह्हरी ने अपनी क्षमताओं, होशियारी और दूरदर्शिता के साथ विभिन्न आयामों से युवा पीढ़ी के लिए इस्लाम का वर्णन किया। इस संदर्भ में उनके प्रयास इतने प्रभावी थे कि बहुत से युवा तथा शिक्षित लोगों ने उनके विचारों से प्रभावित होकर इस्लामी शिक्षाओं की सुन्दरता का साक्षात्कार किया।

वह बात जो शहीद मुर्तज़ा मुतह्हरी को अन्य विद्वानों से अलग करती है वह यह है कि उनको अपने समय के विषयों की पूर्ण जानकारी थी और वे अपने काल की भाषा में ही बोला करते थे अर्थात वे आम लोगों की भाषा में बोला करते थे। इस विषय के दृष्टिगत कि कुछ दिगभ्रमित विचारधाराओं के कारण इस्लाम की वास्तविक शिक्षाएं स्पष्ट नहीं है उन्होंने प्रयास किया कि अपनी प्रभावी लेखनी और भाषणों से इस्लाम की वास्तविक शिक्षाओं को लोगों तक पहुंचाएं। यही कारण है कि धर्म में प्रचलित कुरीतियों को दूर करने में एक जागरूक सुधारक के रूप में मुतह्हरी की विशेष भूमिका है। उन्होंने अपने प्रिय पथप्रदर्शक इमाम ख़ुमैनी के साथ युवाओं के विचारों को फलने-फूलने तथा इस्लामी क्रांति की रूपरेखा बनने की भमिका प्रशस्त की।

उस्ताद मुतह्हरी ने इस्लामी नियमों व मूल नियमों और नैतिक शास्त्र के साथ ही साथ दर्शनशास्त्र पढ़ाना भी आरंभ किया। अपनी चिंतन शक्ति और आध्यात्मिक महानता के कारण वे दर्शनशास्त्र के जटिलताओं में नहीं फंसे रहे अपितु स्पष्ट, साधारण, और आकर्षक ढ़ंग से दार्शनिक विचारों का वर्णन करते थे। वे धार्मिक दर्शनशास्त्र को भौतिक दर्शनशास्त्र से अलग रखते थे। शहीद मुतह्हरी इस बात को बल देकर कहा करते थे कि वर्तमान युग की समस्याओं का समाधान धर्म तथा धार्मिक विचारों में निहित है।

शहीद मुतह्हरी के मतानुसार ज्ञान और आस्था, मानवता के दो मूलभूत स्तंभ हैं। वे इन दोनों को एसे दो पंखों की भांति समझते थे जो मानव को परिपूर्णता की ओर ले जाते हैं। इन दोनों में से यदि एक न हो तो मनुष्य अपना संतुलन खो बैठेगा। मानवता की मूलभूत आवश्यकता अर्थात आध्यात्म को अनदेखा करते हुए केवल ज्ञान की ओर ध्यान केन्द्रित करने से मनुष्य का जीवन संकटग्रस्त हो जाता है। यह वह समस्या है जिसमे इस समय पश्चिमी जगत बुरी तरह से फंसा हुआ है। इस संदर्भ में शहीद मुतह्हरी कहते हैं कि इस समय सबने यह समझ लिया है कि केवल ज्ञान का युग समाप्त हो रहा है और आकांक्षाओं का एक शून्य, समाजों को भयभीत किये हुए है। आस्था के बिना ज्ञान उसी प्रकार है जैसे अपनी इच्छित वस्तुओं को चुराने के लिए अर्धरात्रि में चोर के हाथ में दिया हो। यही कारण है कि स्वभाव, वास्तविकता और चरित्र की दृष्टि से वर्तमान समय में आस्था के बिना ज्ञान रखने वाले मनुष्य और कल के अशिक्षित तथा आस्था रहित मनुष्य के बीच कोई अंतर नहीं है। उनका मानना था कि मानवता का रत्न बहुत ही बहुमूल्य है और मनुष्य को चाहिए कि वह अपने जीवन को संसार में कम मूल्य में नष्ट न करे बल्कि उसको चाहिए कि वह संसार को प्रगति के लिए सीढ़ी समझे ताकि परिपूर्णता तक पहुंच सके। इस संदर्भ में वे अपनी पुस्तक "हिक्मतहा और अंदर्ज़हा" अर्थात स्वर्ण कथन और उपदेश में हज़रत अली अलैहिस्सलाम को उद्दरित करते हुए लिखते हैं कि मानव के लिए यह संसार एक शरणस्थल है जिसमें वह कुछ दिनों तक जीवन व्यतीत करता है और फिर चला जाता है।

संसार के लोग दो भागों में विभाजित हैं। एक गुट वह है जो संसार रूपी बाज़ार में स्वयं को बेच देते हैं और दास बन जाते हैं। दूसरा गुट वह है जो संसार रूपी बाज़ार में स्वयं को ख़रीदते हैं और स्वंतंत्र करते हैं।

शहीद तथा शहादत नामक पुस्तक के प्रकाशन के पश्चात उस्ताद मुतह्हरी के आध्यात्मिक आयाम अधिक स्पष्ट हुए। इस पुस्तक में वे लिखते हैं कि शहीद उस रक्त की भांति है जो समाज की रगों मं् चढ़ाया जाता है। वे स्वयं भी इस्लाम तथा क़ुरआन के मार्ग में शहीद होकर शहीदों के कारवां में सम्मिलित हो गए और उन्होंने एक परवाने की भांति वास्तविकता की शमा के साथ स्वयं को जलाया। यह कार्य उन्होंने इसलिए किया कि आधुनिक युग के अंधेरों और शंकाओं में अपनी विचारधारा से उन लोगों के मार्गदर्शक बनें जो लालायित होकर मोक्ष के मार्ग को ढ़ूढते हैं। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी उनके संबंध में कहते हैं कि मुतह्हरी आत्मा की पवित्रता, ईमान की शक्ति और सशक्त अभिव्यक्ति में अद्वितीय थे।

तुम उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे गए है, मुर्दा न समझो, बल्कि वे अपने रब के पास जीवित हैं, रोज़ी पा रहे हैं [3:169]

बुधवार, 12 दिसम्बर 2012 07:47

इस्लामी जगत और महिला अधिकार

इस्लामी जगत और महिला अधिकार

मानव समाज की आधी जनसंख्या के रूप में महिला को यद्यपि विदित रूप से दृष्टिगत रखा गया है तथा उनके अधिकारों और स्थान के बारे में बातें की जाती हैं.....

 

मानव समाज की आधी जनसंख्या के रूप में महिला को यद्यपि विदित रूप से दृष्टिगत रखा गया है तथा उनके अधिकारों और स्थान के बारे में बातें की जाती हैं किंतु महिलाओं को अभी भी बहुत सी चुनौतियों का सामना है। वर्तमान समय में बहुत से पश्चिमी देश महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के बहाने विश्व के सभी राष्ट्रों विशेषकर इस्लामी देशों पर महिलाओं के अधिकारों के हनन का आरोप लगाते रहते हैं।

एक शताब्दी से भी कम समय से पहले तक पश्चिम में महिलाएं अपने बहुत से व्यक्तिगत और समाजिक अधिकारों से वंचित थीं। यह भी एक विडंबना है कि महिला अपनी मेहनत से कमाए हुए धन, संपत्ति की भी स्वामी नहीं होती थीं। वास्तव में महिलाओं द्वारा मेहतन से कमाया गया धन या फिर उनकी समपत्ति उनके पतियों से संबन्धित होती थी। बहुत से पश्चिमी देशों में महिलाएं मतदान जैसे आंशिक अधिकार से भी वंचित थीं। पश्चिम में १९वीं शताब्दी के अंत में महिलाओं की ओर से अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिए विभिन्न प्रदर्शन किये गए जिनसे महिलाओं के भौतिक अधिकारों और उनकी स्वतंत्रता की प्राप्ति की भूमिका प्रशस्त हुई। इस वातावरण में ह्यूमनिज़्म, लिबरलिज़्म और सैक्यूलरिज़्म के आधार पर फैमिनिज़्म आन्दोलन ने अपना रूप धारण किया और फ़ैमिनिज़्म आन्दोलन का उद्देश्य, महिलाओं के छिने हुए अधिकारों की प्राप्ति बताया गया।

इस बीच पूंजीवादी समाज ने महिलाओं के अधिकारों के समर्थन का दावा करने के बावजूद अधिक से अधिक लाभ उठाने के उद्देश्य से महिलाओं को बहुत ही निम्न स्तर की विशिष्टताएं देने को ही पर्याप्त समझा। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इतिहास में महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की ओर संकेत करते हुए कहा, पश्चिम में महिला, एक इंसान होने से अधिक एक महिला है। पश्चिम ने महिला के अधिकारों के समर्थन के दावों के बावजूद उसे पुरूषों के हाथों की कठपुतली की सीमा तक गिरा दिया, महिलाओं के यौन आकर्षण को ही उजागर किया है। पश्चिमी संस्कृति महिला के नाम पर पुरूषों के हितों के लिए कार्यरत है और स्वतंत्रता के बहाने महिला की सुन्दरता को बड़ी ही सरलता से पुरूष के अधिकार में देती है। इस प्रकार से कि समाज में महिला की उपस्थिति़ को लैंगिक दृष्टि के समावेश से ही देखा जाता है और महिला होने के कारण उसके कुछ समाजिक अधिकार भी उससे छिन जाते हैं। हम पश्चिमी जगत से, जिसने महिला को पिछले कालों से लेकर अबतक अपमानित किया है, इस बारे में जवाब चाहते हैं।

पश्चिमी समाज ने महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के बहाने महिला के मानवीय सम्मान को उससे छीन लिया है और उसे कृत्रिम पुरूष में परिवर्तित कर दिया। अमरीका के हार्वड विश्व विद्यालय के प्रोफ़ेसर Harvy C. Mansfield अपने एक लेख, "न्यू फ़ेमेनिज़्म" में लिखते हैं कि फ़ैमिनिज़्म ने महिलाओं को पुरूषों की विशेषता देने के उत्साह में उसके स्त्रीत्व को ही नष्ट कर दिया। धीरे-धीरे हम एसी गैंग्सटर फ़िल्मों के साक्षी बनें जिनमें सुन्दर महिलाएं, दक्ष हत्यारों की भूमिका निभाती थीं किंतु साठ के दशक और उसके बाद के काल में हम पुरूषों के पेशों में महिलाओं की उपस्थिति के आदी हो गए हैं। विदित रूप से संसार का महिलाकरण हो गया है किंतु अभी भी संसार पुरूष प्रधान है यहां तक कि एक विचित्र सी शैली पर अधिक पुरूष प्रधान हुआ है। अभी भी महिला और पुरूष दोनों ही एसे पेशं में व्यस्त हैं जिनका मूल लड़ाई-झगड़े और ढिठाई जैसी पुरूष विशेषताएं हैं।

वे आगे कहते हैं कि विदित रूप से महिलाएं अब महिला होने का आनंद से वंचित हैं। वे जानती है कि किस प्रकार से पुरूषों का अनुसरण किया जाए किंतु उनको पता नहीं है कि वे किस प्रकार से स्वय के महिला होने को सुरक्षित रखें। प्रोफ़ेसर हार्वे का मानना है कि अपनी महिला पहचान से दूरी से महिलाएं अधिक असमंजस्य में रहेंगी।

पश्चिमी समाज में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा बढ़ती ही जा रही है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि पश्चिम में आर्थिक विकास और प्रगति के साथ साथ लैंगिक दृष्टि से महिला को इन समाजों में अनदेखा किया गया है। कार्यालयों में महिलाओं की उपस्थिति और भागीदारी के लिए उन्हें प्रेरित करना और अपने सहकर्मी पुरूषों के साथ उनकी उपस्थिति आदि वे बाते हैं जिन्हें सदा ही फ़ैमिनिज़्म विचारधारा की ओर से प्रसारित किया जाता है। बहुत से स्थानों पर इस निरंकुश उपस्थिति ने महिलाओं पर मानसिक दुष्प्रभाव डाले हैं। पश्चिम की विचारक महिलाओं के मतानुसार विभिन्न मिश्रित कार्यस्थलों में महिलाओं पर यौन उत्पीड़न तेज़ी से थोपा जा रहा है। एक अमरीकी लेखक श्रीमती मार्लिन फ़्रेंच कहती हैं कि समस्त पुरूष जो किसी भी कार्य में व्यस्त हों, यहां तक कि यदि उनमें से अधिकांश सक्रिय गतिविधियां न भी करते हों और केवल वे दर्शक ही बने रहें, सहकर्मी महिलाओं के यौन उत्पीड़न में वे एक दूसरे के साथ हैं। यह पश्चिमी लेखिका स्पष्ट करती हैं कि अमरीकी अग्निशमन केन्द्र में कार्यरत महिलाओं के कथनानुसार उनके विरुद्ध यौन उत्पीड़न की घटनाएं बहुत तेज़ी से बढ़ रही हैं। यह महिलाएं बजाए इसके कि दूसरों की जान की सुरक्षा करें उन्हें स्वयं अपनी सुरक्षा की आवश्यकता है।

वर्तमान समय में पश्चिम के औद्योगिक समाज ने, महिलाओं और पुरूषों के बीच पाए जाने वाले प्राकृतिक और आंतरिक अंतरों को अनदेखा करते हुए, कठिन कार्य करने हेतु उनके लिए समान अवसर उपलब्ध कराए हैं। उदाहरण स्वरूप खानों तथा कुछ औद्योगिक कारख़ानों में काम करने जैसे कार्यों को, जो इससे पूर्व पुरूषों से विशेष थे, महिलाओं पर थोप दिया गया है। एक ओर तो पूरषों के अधिक शक्तिशाली होने और उनमें पाए जाने वाले हिंसक झुकाव दूसरी ओर पुरूषों की तुलना में महिलाओं के कम शक्तिशाली होने के कारण उनको कार्यस्थल पर अधिक क्षति पहुंचती है। उल्लेखनीय बिंदु यह है कि सामान्यतः पुरूषों के समान कार्य करने के बावजूद महिलाओं को कम वेतन मिलता है। इस संदर्भ में मार्लिन फ़्रेंच कहती हैं कि अमरीका में बड़ी संख्या में महिलाएं वेतन के लिए कार्य करती हैं किंतु उन सभी को भेदभाव का सामना करना पड़ता है। व्यापारिक कंपनियां और संगठन यह दावा करते हैं कि महिलाओं की प्रगति के मार्ग में उन्होंने कोई बाधा उत्पन्न नहीं की है किंतु इसके बावजूद बहुत ही कम संख्या में महिलाओं की पदोन्नति होती है और प्रबंधन तथा विशेष प्रकार के कार्यों में व्यस्त महिलाओं को अपने पुरूष समकक्षियों की तुलना में वेतन कम मिलता है।

पश्चिमी समाज में बहुत सी महिलाओं को पुरूषों की उपभोग वस्तु या खिलौने के रूप में देखा जाता है। एक प्रख्यात अमरीकी लेखिका श्रीमती वेंडी शेलीत लिखती हैं कि एकल लैंगिक समाज में, हम पूर्ण रूप से अपभिज्ञ विलासी लोग केवल उनको खिलौना बनाने के लिए अवसर ढूंढते रहते हैं।

हमारे एकल लैंगिक या पुरूष प्रधान समाज ने जो चीज़ प्राप्त की है वह दुराचार के लिए समान अवसर, महिलाओं के साथ यौन उत्पीड़न, मार खाना और मृत्यु आदि के लिए समान अवसर हैं।

पश्चिमी समाजों में महिला उत्पीड़न का एक अन्य आयाम, परिवार में महिलाओं की भूमिका का फीका पड़ना या फिर समाप्त हो जाना है। पश्चिम की महिला अब मातृत्व, जीवनसाथी के संग रहने तथा परिवार के साथ रहने की भूमिका का उचित ढंग से आभास नहीं कर पाती। इसके मुक़ाबले में दिन प्रतिदिन बढ़ते तलाक़ के कारण परिवारों के विघटन और एक अभिभावक वाले परिवारों की संख्या में वृद्धि के शारीरिक और मानसिक दुष्परिणाम पश्चिमी महिलाओं और उनके बच्चों को भुगतने पड़ते हैं।

पश्चिमी समाज में महिला और पुरूष के संबन्ध, परिवर्तन की कगार पर हैं और इन दोनों भिन्न प्राणियों की सदैव एक दूसरे से तुलना की जाती है। बजाए इसके कि पुरूष और महिला साथ-साथ हों एक-दूसरे के आमाने-सामने आ गए हैं और वे एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी समझे जाते हैं। जबकि महिला और पुरूष एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा के लिए पैदा नहीं किये गए हैं। पश्चिमी की तुलना मे पवित्र इस्लाम धर्म, महिला के संबन्ध में अलग किंतु वास्तविकता पर आधारित दृष्टिकोण रखता है। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाह हिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हंै कि इस्लाम में महिलाओं की समस्त विशेषताओं को सुरक्षित रखा गया है। उससे यह नहीं कहा गया है कि महिला होते हुए वह पुरूष जैसा सोचे या पुरूषों की भांति व्यवहार करे अर्थात महिला होने की विशेषता जो महिलाओं की प्राकृतिक व स्वभाविक विशेषता और उनके समस्त प्रयासों और भावनाओं का केन्द्र है, को इस्लामी दृष्टिकोण में सुरक्षित रखा गया है।

इस्लामी विचारधारा में पुरूषों और महिलाओं के बीच लैंगिक दृष्टि से न्याय का ध्यान रखा गया है। न्याय अर्थात मानव की क्षमताओं और योग्यताओं के आधार पर अवसर उपलब्ध करवाना। इस आधार पर न्याय का मानना है कि पुरूषों और महिलाओं को वे दायित्व ही सौंपे जाएं जो उनकी स्वभाविक एवं प्राकृतिक योग्यताओं और क्षमताओं के अनुकूल हों।

इसी इस्लामी और न्यायपूर्ण दृष्टिकोण के दृष्टिगत वर्तमान समय में इस्लामी गणतंत्र ईरान में महिलाएं, देश में विभिन्न पदों पर कार्यरत हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के दिशानिर्देशन, अन्य अधिकारियों के समर्थन और इसी प्रकार महिला सांसदों के प्रयासों से महिलाओं की समाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक एवं क़ानूनी स्थिति को बेहतर करने के उद्देशय से ईरान की इस्लामी संसद शूराए इस्लामी में अब तक विभिन्न प्रस्ताव पारित किये गए हैं। इस प्रकार से महिलाओं के संबन्ध में इस्लाम के उच्च आदर्शों के आधार पर ईरान में महिलाओं की योग्यताओं के उजागर होने के लिए न्यायपूर्ण अवसर उपलब्ध हो चुके हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई कहते हैं कि महिला का सम्मान यह है कि उसे अवसर दिया जाए कि महान ईश्वर ने हर व्यक्ति के भीतर जो योग्यताएं एवं क्षमताएं उपहार स्वरूप दी हैं और जिनमें वे योग्यताएं भी हैं जो केवल महिलाओं के भीतर ही निहित हैं उन्हें परिवार, समाज, अन्तर्राष्ट्रीय स्तर, ज्ञान-विज्ञान, शोध और प्रशिक्षण के स्तर पर उजागर होनी चाहिए और यह महिला के सम्मान के अर्थ में है।

बुधवार, 12 दिसम्बर 2012 07:46

हज,इस्लाम की पहचान

जिस तरह से ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने मनुष्य के आत्मिक और आध्यात्मिक आदि पहलुओं पर भरपूर ध्यान दिया है, हज में इस व्यापकता को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के सामाजिक, राजनीतिक और आस्था संबंधी आयाम के बड़े भाग को प्रतिबिम्बित करता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि हज इस्लाम की पताका है।

ज़िलहिज्जा का महीना वहि अर्थात ईश्वरीय संदेश उतरने की भूमि में महान ईश्वर पर आस्था रखने वालों के महासम्मेलन का महीना है। आज इस महीने का पहला दिन है। इस महान महीने की पहली तारीख को हम अपने हृदयों को वहि की मेज़बान भूमि की ओर ले चलते है तथा महान ईश्वर के प्रेम व श्रद्धा में डूबे लाखों व्यक्तियों की आवाज़ से आवाज़ मिलाते हैं जो हज के संस्कारों में भाग लेने की तैयारी कर रहे हैं, लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक

हे ईश्वर हमने तेरे निमंत्रण को स्वीकार किया। यह पावन ध्वनि ईश्वरीय उपासना और प्रेम की वास्तविकता की सूचक है जो ईश्वर के घर का दर्शन करने वालों की ज़बान पर जारी है। हज उपासना एवं बंदगी व्यक्त करने का एक अन्य अवसर है और उससे ऐसी महानता प्रदर्शित व प्रकट होती है जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। इस महानता को समझने के लिए हज के आध्यात्मिक महासम्मेलन में उपस्थित होकर उपासना के लिए माथे को ज़मीन पर रख देना चाहिये। अब विश्व के कोने कोने से हज़ारों मनुष्य काबे की ओर जा रहे हैं। वास्तव में कौन धर्म और पंथ है जो इस प्रकार मनुष्यों को उत्साह के साथ एक स्थान पर एकत्रित कर सकता है। इस का कारण इसके अतिरिक्त कुछ और नहीं है कि महान ईश्वरीय धर्म इस्लाम लोगों के हृदयों पर शासन कर रहा है और यह इस धर्म की विशेषता है जो श्रृद्धालुओं को इस तरह काबे की ओर ले जा रहा है जैसे प्यासा व्यक्ति पानी के सोते की ओर जाता है।

काबे के समीप लाखों मुसलमानों के एकत्रित होने से पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेहि व सल्लम के जीवन के कुछ भागों की याद ताज़ा हो जाती है। पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने जीवन के अंतिम हज में मुसलमानों को भाई चारे और एकता का आह्वान किया तथा एक दूसरे के अधिकारों का हनन करने से मना किया और कहा हे लोगो! मेरी बात सुनो शायद इसके बाद मैं तुमसे इस स्थान पर भेंट न करूं। हे लोगों! तुम्हारा जीवन और धन एक दूसरे के लिए आज के दिन और इस महीने की भांति उस समय तक सम्मानीय हैं जब तुम ईश्वर से भेंट करोगे और उन पर हर प्रकार का अतिक्रमण हराम है। अब मुसलमानों के विभिन्न गुट व दल इस्लामी जगत के प्रतिनिधित्व के रूप में सऊदी अरब के पवित्र नगर मक्का और मदीना गये हैं ताकि इस्लामी इतिहास की निर्णायक एवं महत्वपूर्ण घटनाओं की याद ताजा करें। पैग़म्बरे इस्लाम की अनुशंसाओं को याद करें और एक दूसरे के साथ भाई चारे व समरसता के साथ उपासना की घाटी में क़दम रखें। विशेषकर इस वर्ष कि जब इस्लामी जागरुकता व चेतना तथा मुसलमानों की पहचान की रक्षा, बहुत महत्वपूर्ण विषय हो गई है।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस्लामी जागरुकता हज के मौसम में मुसलमानों के एक स्थान पर एकत्रित होने का एक प्रतिफल है। इस आधार पर इस्लामी जागरुकता को मज़बूत करने के लिए हज का मौसम एक मूल्यवान अवसर है जो विभिन्न धर्मों व सम्प्रदायों के लोगों के मध्य एकता व वैचारिक समरसता से व्यवहारिक होगा।

इस्लाम एक परिपूर्ण धर्म के रूप में मनुष्य की समस्त आवश्यकताओं पर ध्यान देता है और वह मनुष्य की समस्त प्राकृतिक आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाला है। इस्लाम ने मनुष्य के अस्तित्व की पूर्ण पहचान के कारण महान ईश्वर ,मनुष्य और मनुष्यों के एक दूसरे के साथ संबंध के बारे में विशेष व्यवहार व क़ानून निर्धारित किया है। हज और उसके संस्कार इसी कार्यक्रम में से हैं जो मनुष्य की प्रगति व विकास में प्रभावी हो सकता है। जिस प्रकार धर्म ने मनुष्य के आध्यात्म एवं चरित्र आदि जैसे पहलुओं पर ध्यान दिया है हज के मौसम में उसकी व्यापकता को देखा जा सकता है।

हज इस्लाम की एक पहचान है और वह धर्म के राजनीतिक सामाजिक एवं आस्था संबंधी पहलुओं के बड़े भाग को प्रतिबिंबित करने वाला है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि हज इस्लाम की पताका है। पताका वह प्रतीक होता है जिसके माध्यम से एक संस्कृति की विशेषताओं को बयान करने का प्रयास किया जाता है। पूरे विश्व से मुसलमान हज के महासम्मेलन में एकत्रित होते हैं। भौतिक सीमाओं से हटकर विभिन्न राष्ट्रों के काले- गोरे समस्त मुसलमान एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और सांस्कृतिक विशेषताओं व अंतरों पर ध्यान दिये बिना वे समान व संयुक्त कार्य अंजाम देते हैं। यह संयुक्त कार्य किसी विशेष व्यक्ति या राष्ट्र से विशेष नहीं है। इस प्रकार के महासमारोह में है कि इसके संस्कार उसके लक्ष्यों की जानकारी के साथ मनुष्य का मार्गदर्शन एक पहचान की ओर करता है। इस आधार पर धार्मिक पहचान की प्राप्ति को हज का एक प्रतिफल समझा जा सकता है। इस प्रकार से कि एक पूर्वी मामलों के विशेषज्ञ Bernard lewis स्वीकार करते हैं" परेशानी की घड़ी में इस्लामी जगत में मुसलमानों ने बारम्बार यह दर्शा दिया है कि वे धार्मिक समन्वय के परिप्रेक्ष्य में अपनी धार्मिक पहचान बहाल कर लेते हैं। वह पहचान जिसका मापदंड राष्ट्र या क्षेत्र नहीं होता, बल्कि इस की परिभाषा इस्लाम ने की है।

ईश्वरीय संदेश उतरने की पावन भूमि में हज आयोजित होने से हज करने वाले के लिए इस्लामी संस्कृति की विशेषताओं व इस्लामी पहचान सेअवगत होने की भूमि प्रशस्त होती है और हज करने वाला दूसरी संस्कृतियों के मध्य अपनी इस्लामी संस्कृति की पहचान उत्तम व बेहतर ढंग से प्राप्त कर सकता है। विश्वस्त इस्लामी स्रोतों पर संक्षिप्त दृष्टि डालने से दावा किया जा सकता है कि हज इस्लाम की व्यापकता का उदाहरण है। पैग़म्बरे इस्लाम हज के कारणों को बयान करते हुए उसकी तुलना समूचे धर्म से करते हैं। मानो महान ईश्वर नेविशेष रूप से इरादा किया है कि हज को उसके समस्त आयामों के साथ एक उपासना का स्थान दे। हज के हर एक संस्कार व कर्म का अपना एक अलग रहस्य है और यही रहस्य है जो हज को विशेष अर्थ प्रदान करता है तथा हज करने वाले के भीतर गहरे परिवर्तिन का कारण बनता है। हज में सफेद वस्त्र धारण करने से लेकर सफा व मरवा नाम की पहाड़ियों के मध्य तेज़ तेज़ चलने, काबे की परिक्रमा, अरफात और मेना नाम के मैदानों में उपस्थिति तक क्रमशः मनुष्य की आत्मा रचनात्मक अभ्यास के चरणों से गुज़रती है ताकि हाजी के मस्तिष्क एवं व्यवहार में गहरा परिवर्तन उत्पन्न हो सके। इस उपासना का पहला लाभ यह है कि हज यात्रा आरंभ होने के साथ सांसारिक लगाव व मोहमाया समाप्त होने लगती है। हज भौतिकि लगाव से मुक्ति पाने का बेहतरीन मार्ग है। हज पर जाने वाला व्यक्ति मानो हाथों और पैरों में पड़ी भौतिक लालसाओंकी बैड़ियों से मुक्ति प्राप्त करके महान परिवर्तन की ओर बढ़ता है। हर प्रकार के व्यक्तिगत, जातीय और वर्गिय भेदभाव से मुक्ति हज का दूसरा सुपरिणाम है। सफेद वस्त्र धारण करने का एक रहस्य यही है कि मनुष्य रंग और हर उस चीज़ से दूर व अलग हो गया है जो सामाजिक एवं जातीय भेदभाव का सूचक हो।

इस्लाम में उपासना का रहस्य यह है कि मनुष्य धार्मिक दायित्वों के निर्वाह से स्वयं को सर्वसमर्थ व महान ईश्वर से निकट कर सकता है। हज में उपासना की एक विशेषता यह है कि इस आध्यात्मिक यात्रा में मनुष्य ईश्वरीय भय एवं सामाजिक सदगुणों से सुसज्जित होता है। यह इस्लाम द्वारा मनुष्य के व्यक्तिगत और सामाजिक तथा विभिन्न पहलुओं पर ध्यान दिये जाने का सूचक है। इस आधार पर महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन में जहां हज की बात करता है वहां इसके अनगिनत लाभों का भी उल्लेख करता है। सूरये हज की २७ वीं तथा २८वीं आयतों में हम पढ़ते हैं" हे पैग़म्बर लोगों को सार्वजनिक रूप से हज के लिए आमंत्रित करें ताकि वे पैदल और लमबी यात्रा के कारण कमज़ोर हो जाने वाली सवारियों पर बैठकर हर ओर से तुम्हारी ओर आयें ताकि वे इसके विभिन्न लाभों को देखें"

पवित्र क़ुरआन की इन आयतों में हर प्रकार के व्यक्तिगत सामाजिक राजनीतिक भौतिक एवं आध्यात्मिक लाभ शामिल हैं। इस्लामी जगत सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्रों में हज के विभिन्न लाभों को देख सकता है। यह हज की विशेषताएं हैं जो अध्यात्म और दूसरे मनुष्यों से प्रेम की भावना के साथ मुसलमानों में मज़बूत होती हैं।

सबसे अच्छी चीज़ बोध है जिसे ईश्वरीय घर का दर्शन करने वाला हाजी प्राप्त कर सकता है। उसे यह जानना चाहिये कि वह कहां जा रहा है महान ईश्वर ने उस पर कितनी बड़ी कृपा की है। हज करने वाला इस वास्तविकता को समझ जाता है कि उसे पूरा प्रयास करना चाहिये ताकि इस यात्रा का आध्यात्मिक लाभ उठा सके और महान ईश्वर से सामिप्य का सौभाग्य प्राप्त कर सके।

हज के इस शुभ अवसर पर हम महान ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं और हाजियों के लिए शुभ कामनाओं के साथ अपनी आज की चर्चा को हज़रत इमाम जाफर सादिक़ अलैहिस्सलाम के एक स्वर्ण कथन से समाप्त कर रहे हैं। आप कहते हैं"जब भी हज करने का इरादा करो, हज पर जाने से पहले अपने हृदय को बाधाओं से मुक्त करो और महान ईश्वर के लिए अपने हृदय को शुद्ध बना लो समस्त कार्यों को अपने पालनहार के हवाले कर दो और अपने हर काम में ईश्वर पर भरोसा करो और ईश्वर के आदेशों के प्रति नतमस्तक रहो। संसार और उसमें मौजूद आराम और लोगों को छोड़ दो तथा अपने ऊपर लोगों के अनिवार्य अधिकारों के निर्वाह का प्रयास करो अपनी चीज मित्रों सहयात्रियों और धन सम्पत्ति और जवानी पर भरोसा मत करो। क्योंकि इस बात का भय है कि यह सारी चीज़ें तुम्हारी शत्रु व परीक्षा हो जायें ताकि इस बात का पता चल सके कि किसी को भी ईश्वर के अतिरिक्त कोई अन्य की शरण स्थल नहीं है।(एराब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)

बुधवार, 12 दिसम्बर 2012 07:44

हज हज़रत इमाम अली की दृष्टि में

ईश्वरीय संदेश वही के उतरने की ज़मीन मक्का पर इस समय ईश्वरीय प्रेम में डूबे हुए लोग बहुत बड़ी संख्यामें उपस्थत हैं। हर वर्ष इन दिनों विभिन्न राष्ट्रों के मुसलमान इस आध्यात्मिक स्थल की यात्रा करते हैं ताकि उनके विचार व ईमान शुद्ध हो जाए। हज का अर्थ उद्देश्य व क़दम बढ़ाना है। ऐसा क़दम जो मन से सभी सांसारिक मोहमाया, भौतिक इच्छाओं व अहम को निकाल कर ईश्वर की ओर बढ़ाया जाता है। इसलिए ईश्वर के निमंत्रण पर जिस व्यक्ति के लिए भी हज के महासम्मेलन में उपस्थित होना संभव है, वह ईश्वर के शांति के घर की ओर जाता है ताकि विशेष स्थान पर विशेष संस्कारों द्वारा अपने मन व आत्मा को पवित्र करे और इस्लामी इतिहास के एक काल को दृष्टि में रखे। वास्तव में हज पर जाना, ईश्वर के सामने आत्मसमर्पण व उसके सामिप्य व आज्ञापालन के उच्च चरण की ओर क़दम बढ़ाना है जिससे एक आम मुसलमान भविष्य के बारे में सोचने वाला, शीघ्र समाप्त होने वाले आनंदों पर ध्यान न देने वाला, आत्मसंयमी और कुल मिलाकर एक ईमान वाला व्यक्ति बन जाता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम के ख़ुतबों पर आधारित नहजुल बलाग़ा नामक किताब में हज का विषय भी उन मूल्यवान ज्ञानों में शामिल है जिसका हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने बड़े की सुंदर ढंग से अर्थपूर्ण उल्लेख किया है। हज का सबसे महत्वपूर्ण प्रभाव मनुष्य की आत्मा व मन में परिवर्तन है। जो लोग हज सच्चे मन से करते हैं वे पूरी आयु इसके आत्मिक प्रभाव का अपने भीतर आभास करते हैं। शायद यही कारण है कि हज मनुष्य की पूरी आयु में केवल एक बार अनिवार्य है। हज के आश्चर्यचकित प्रभाव के दृष्टिगत श्रद्धालु बड़े हर्षोल्लास के साथ हज यात्रा पर जाते हैं। हाजी अपने हर क़दम पर ईश्वर से अधिक से अधिक निकट होता जाता है और अपने वास्तविक प्रियतम व पूज्य की हर स्थान पर उपस्थिति का आभास करता है। इसलिए हज को एक नये जन्म से उपमा दी गयी है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नहजुल बलाग़ा में एक ख़ुतबे में उत्साह भरे हाजियों की भीड़ का इस प्रकार चित्रण करते हैः महान ईश्वर ने अपने घर का हज तुम पर अनिवार्य किया वह घर जिसे लोगों के लिए क़िबला बनाया। हाजी प्यासों की भांति जो पानी तक पहुंचते हैं, विभिन्न गुट में वहां पहुंचते हैं और हर्षोल्लास से भरे कबूतरों के समान उसकी ओर बढ़ते हैं। हर त्रुटि से पाक ईश्वर ने हज को अपनी महानता के सामने लोगों की दीनता तथा अपनी प्रतिष्ठा के सामने उनके आत्मसमर्पण को प्रकट करने के लिए अनिवार्य किया है।

प्रायः विश्व में प्रचलित आधिकारिक, सामाजिक व राजनैतिक वर्गीकरण का मानदंड किसी विशेष भूभाग की जनता, जाति या विभिन्न शीर्षकों के अंतर्गत संयुक्त भौतिक हित होते हैं।

जबकि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के शब्दों में इस्लाम में इनमें से कोई भी मानदंड स्वीकार्य नहीं है बल्कि मनुष्यों के वर्गीकरण का मानदंड सृष्टि के रचयिता पर विश्वास व मानवीय मूल्य व अधिकार हैं। यह मूल्यवान विचार किसी भी उपासना की तुलना में सबसे अधिक हज में अपने व्यवहारिक रंग में दिखता है कि जहां भौगोलिक सीमाओं का कोई महत्व नहीं रह जाता और श्वेत, श्याम, पीले, और लाल वर्ण के लोग चाहे विद्वान हों या अनपढ़, शक्तिशाली हों या कमज़ोर सबके सब एक सादे वस्त्र में मतभेदों से दूर हाजियों के रूप में ईश्वर के अतिथि होते हैं। यह विश्व के मुसलमानों की आस्था की एकता का सबसे आकर्षक व सुदंर अध्याय है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इन एकमत व एकजुट मनुष्यों की पवित्र काबा की परिक्रमा को ईश्वरीय अर्श के निवासियों की परिक्रमा से उपमा देते हुए कहते हैः वे उन फ़रिश्तों जैसे हो गए जो ईश्वर के अर्श के चारों ओर परिक्रमा करते हैं। अर्श सातवें आकाश पर ईश्वरीय गुणों के प्रतीक उस स्थान को कहते हैं जिसकी फ़रिश्ते परिक्रमा करते हैं।

हज़रत अली की दृष्टि में जो हाजी सही ढंग से हज करने में सफल हो जाते हैं वे वास्तव में ईश्वरीय दूतों के क़दमों की जगह पर क़दम रखते हैं और ईश्वर की बंदगी व उसके प्रति आत्मसमर्पण की दृष्टि से ईश्वरीय दूतों की भांति प्रतिबद्ध हो जाते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम हाजियों की ओर संकेत करते हुए कहते हैः वे पैग़म्बरों के स्थानों पर ठहरे हुए हैं।

इस्लामी शिक्षाओं के आधार पर वह पहले व्यक्ति जिन्होंने काबे की आधारशिला रखी वह हज़रत आदम अलैहिस्सलाम थे। हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को जब स्वर्ग से निकाला गया तो उन्होंने अपनी ग़लतियों की ईश्वर से क्षमायाचना के लिए एक फ़रिश्ते के दिशा निर्देश पर हज के संस्कार अंजाम दिए। इसके बाद ईश्वरीय दूत हज़रत नूह अलैहिस्सलाम ने उस समय हज किया जब उनकी नाव भयानक तूफ़ान से सुरक्षित बच गयी। काबा, हज़रत इब्राहीम द्वारा पुनर्निर्माण से पूर्व भी लोगों का उपासना स्थल था किन्तु समय बीतने के साथ इसकी दीवारें ख़राब होकर मिट रही थीं। इसलिए ईश्वर के आदेश पर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्साम ने अपने सुपुत्र हज़रत इसमाईल अलैहिस्सलाम की सहायता से काबे के स्तंभों को फिर से उठाया और फिर दोनों हस्तियों ने हज किये। इस्लामी शिक्षाओं में हज़रत मूसा, हज़रत यूनुस, हज़रत ईसा, हज़रत दाउद और हज़रत सुलैमान जैसे ईश्वरीय दूतों के भी हज करने का उल्लेख मिलता है। वास्तव में सभी ईश्वरीय दूत हज के वैश्विक दायित्व से अवगत रहे और इस संस्कार की रक्षा पर नियुक्त रहे हैं।

हज अपने कठिन संस्कारों के दृष्टिगत मन की निष्कपटता व बंदगी को परखने के लिए बहुत बड़ी परीक्षा है। इस संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः क्या इस वास्तविकता को नहीं देखते कि ईश्वर ने आदम के समय के लोगों से लेकर इस संसार के अंतिम व्यक्ति तक सारे मनुष्यों की परीक्षा ली,,, फिर अपने घर को पथरीली, सबसे संकीर्ण घाटियों व सबसे कम वनस्पति वाले भूभाग पर बेडौल पहाड़ों, गर्म रेतों व कम पानी वाले सोतों के बीच ऐसी बस्ती में स्थापित जहां ऊंट, गाय और भेड़ बकरी के किसी और प्रकार का पशु-पालन संभव नहीं है।

यदि ईश्वर चाहता तो अपने बड़े उपासना स्थलों व काबे को बाग़ों व नदियों के बीच तथा घने व फलदार वृक्षों से समृद्ध मैदानी क्षेत्र में एक दूसरे से निकट आबादी व एक दूसरे से जुड़े घरों के पास, या सुनहरे रंग के गेहुं के खेतों के पास या हरे भरे बागों में, पानी से समृद्ध भूभागों और आवाजाही वाले मार्ग पर स्थापित करता किन्तु इस स्थिति में परीक्षा की सरलता के दृष्टिगत हाजियों का पारितोषिक भी कम हो जाता और यदि काबे के पत्थरों के स्तंभ कि जिस पर ईश्वर का घर टिका हुआ है और काबे की दीवारों के पत्थर सबके सब पन्ने व चमकते हुए लाल मणि के होते तो मनों से संदेह कम हो जाता और इबलीस के कुप्रयास का दायरा सीमित हो जाता और लोगों के मन से चिंताएं व असमंजस समाप्त हो जाता किन्तु ईश्वर अपने बंदों की हर प्रकार से परीक्षा लेता है ताकि इस प्रकार उनके मन से अहंकार को निकाल दे और उनकी आत्माओं की गहराई में विनम्रता को रचा बसा दे ताकि यह सब ईश्वर की कृपा के द्वार उसके लिए खुलने व सरलता से उसके क्षमाकिये जाने का कारण बने।

ईश्वर सूरए हज की आयत क्रमांक 27 में हज को ऐसी उपासना कहता है जिसके अनेक लाभ व विभूतियां हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने संक्षिप्त वर्णन में इसके कुछ लाभों का उल्लेख किया है। हज़रत अली की दृष्टि में सामाजिक व राजनैतिक दृष्टि से हज का व्यापक प्रभाव मुसलमानों के सम्मान, धर्म के स्तंभों के सुदृढ़ होने और शत्रु के मुक़ाबले में उनकी शक्ति व वैभव का कारण बनेगा। ईश्वर के घर के पास हर वर्ष होने वाला यह महासम्मेलन मुसलमानों के लिए एक अवसर है कि वे अपनी क्षमताओं व शक्तियों को संगठित व बंधुत्व को सुदृढ़ करें तथा शत्रुओं के षड्यंत्रों को निष्क्रिय करने के लिए उपाय व कार्यक्रम बनाएं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः ईश्वर ने धर्म को शक्तिशाली करने के लिए हज को अनिवार्य किया।

इस्लामी शिक्षाओं में इस बिन्दु की ओर संकेत किया गया है कि हज मुसलमानों की आर्थिक शक्ति को बढ़ा कर उन्हें वित्तीय कठिनाइयों से निकाल सकता है। आज के मुसलमान की सबसे बड़ी समस्या विदेशों पर उनकी आर्थिक निर्भरता है। यदि हज के संस्कारों के साथ साथ इस्लामी जगत के अर्थशास्त्रियों के सेमिनार व सम्मेलन आयोजित हों और विशेषज्ञ मुसलमानों के निर्धनता व विदेशों पर निर्भरता के चंगुल से बाहर निकलने के बारे में सोचें व सार्थक योजनाएं प्रस्तुत करें तो इस्लामी जगत अपने अपार संसाधनों व निहित संपत्ति से इस्लामी जगत की निर्धनता व अभाव को समाप्त कर सकता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम हज को निर्धनता व सामाजिक पाप की समाप्ति का कारण बताते हुए कहते हैः हज व उमरे से निर्धनता दूर होती है और पाप धुल जाते हैं।

इसलिए मुसलमान हज का सम्मान करते हैं और ईश्वरीय संदेश वही के उतरने से विशेष इस भूभाग पर जगह जगह पर ईश्वर की याद को ताज़ा करते हैं। इस दृष्टि से हज मनुष्य के लिए एक सुंदर आध्यात्मिक सैर है जिससे ईश्वर की महानता का भव्य प्रदर्शन होता है। यही कारण है कि हज़रत अली ने हज के महत्व के संबंध में कहाः ईश्वर ने काबे को इस्लाम का चिन्ह क़रार दिया है। जो लोग सही इस्लाम को समझने में ग़लती करते या दिगभ्रमित हो जाते हैं उन्हें चाहिए कि शोध व चिंतन मनन द्वारा वास्तविक इस्लाम को हज में देखें।(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)

बुधवार, 12 दिसम्बर 2012 07:42

हज और इस्लामी जागरूकता

मक्का जाने के लिए ईश्वर की ओर से लोगों को हज के आम निमंत्रण की घोषणा, जिसे व्यवहारिक बनाने के लिए लोग पैदल और सवारी से, दूर और निकट के मार्गों से, हर प्रकार की कठिनाइयों को सहन करने के साथ ईश्वर के घर पहुंचते हैं। इस विषय ने इस्लामी राष्ट्रों तथा मुसलमान जातियों को छोटी और बड़ी नदियों की भांति एक दूसरे से मिला दिया है जो ईश्वर के घर में मानव रूपी महान समुद्र के रूप में दिखाई देते हैं। मानव रूपी इस महासागर में समान आस्था और व्यवहार में एकेश्वरवाद जैसी बातों से इस बड़ी भीड़ से अजेय तथा शक्तिशाली अस्तित्व सामने आता है जो मुसलमानों के वैश्विक सम्मान का कारण बनता है।

 

यही कारण है कि हज, जिस समय एकता तथा समरस्ता स्थापित करने का कारण बने, दूरियां समाप्त करे, हृदयों को एक दूसरे के निकट लाए, और लोगों को निरभर्ता तथा अपमान से मुक्ति दिलाए उस समय यह एक महान एवं प्रभावी उपासना हो जाती है। दूसरे शब्दों में वास्तविक हज, न केवल लोगों के व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सामाजिक जीवन में भी गहरे परिवर्तन लाती है। हज़ एक सामूहिक उपासना है। ईश्वर ने भी हज को इसी रूप में चाहा है ताकि इसके माध्यम से समस्त मुसलमानों के हित व्यवहारिक हो सकें अन्यथा इस बात की भी संभावना पाई जाती थी कि लोग, किसी निर्धारित समय पर नहीं बल्कि वर्ष के किसी भी दिन और किसी भी महीने मक्के आएं तथा व्यक्तिगत रूप से हज अंजाम दें। खेद की बात है कि विगत में हज व्यक्तिगत विषयों तक ही सीमित थी और हाजी, हज करने के बाद उसके सामाजिक और राजनैतिक आयामों की ओर ध्यान दिये बिना तथा इस्लामी जगत की समस्याओं पर सामूहिक विचरण के बिना ही अपने-अपने घरों को वापस चले जाते थे।

 

सन १९७९ में ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के पश्चात इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक स्वर्गीय इमाम खु़मैनी ने उन लोगों से जो, विश्व के विभिन्न एवं दूरस्थ क्षेत्रों से ईश्वर के घर अर्थात एकेश्वरवाद के केन्द्र में उपस्थित होने के लिए आना चाहते हैं उनसे आत्माविहीन हज को सार्थक और एकता प्रदान करने वाली हज में परिवर्तित करने की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि इन महान संसकारों को पहचानो। उन्होंने कहा कि इन शैतानी शक्तियों से भयभीत न हो। इस महान अवसर पर ईश्वर पर भरोसा करते हुए अनेकेश्वरवाद तथा शैतान की सेना में मुक़ाबले में एकता व एकजुटता का समझौता करो और मतभेदों तथा झगड़ों से बचो।

 

उसी समय से हज, जागरूक बनाने और मुसलमानों की एकता में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गया। इसी दिशा में मुसलमानों की एकता का आयोजन और अनेकेश्वरवादियों से विरक्तता की घोषणा जैसे समारोह, इस्लामी राष्ट्रों के बीच इस्लामी जागरूका की दो निशानियां एवं नारे हैं। यह समारोह प्रतिवर्ष हज के अवसर पर ईरान की ओर से तथा विभिन्न देशों के हाजियों की सम्मिलिति से, आयोजित होते हैं। हाजियों के बीच यह आयोजन इतने अधिक प्रभावी रहे हैं कि वर्ष १९८७ में इन्हें सऊदी अरब के सुरक्षा बलों की हिंसक कार्यवाही का सामना करना पड़ा था जिसके परिणाम स्वरूप हज़ारों की संख्या में ईरानी तथा विदेशी हाजी शहीद और घायल हुए।

 

इस समय हज के लिए १८० से अधिक देशों के लगभग दो करोड़ हाजी ऐसी स्थिति में सऊदी अरब में एकत्रित हुए हैं कि जब क्षेत्र में इस्लामी जागरूकता और स्वतंत्रता प्राप्ति की इच्छा की लहर बहुत तेज़ी से फैल चुकी है। इस विषय ने हज जैसे महासम्मेलन के लिए विगत की तुलना में इस वर्ष बिल्कुल ही अलग वातावरण उत्पन्न कर दिया है। ट्यूनीशिया, मिस्र, बहरैन, लीबिया और यमन आदि देशों में जनान्दोलन, इन देशों के निर्भर एवं अत्याचारी शासकों की नीतियों के विरोध में हैं जो अब महाआन्दोलन में परिवर्तित हो चुके हैं।

 

इस समय हज का मौसम इस्लामी राष्ट्र की न्याय एवं सम्मान प्राप्ति की आकांक्षाओं को सुदृढ़ करने, सूचनाओं के आदान-प्रदान और बाईमान लोगों के अनुभवों से लाभ उठाने साथ ही इस्लामी जागरूकता की लहर को आगे बढ़ाने एवं निर्भर शासकों के वर्चस्व से मुक्ति के लिए बहुत ही उचित अवसर एवं स्थान है।

 

यह बात स्पष्ट है कि क्रांतियों को अपनी सफलता की प्रक्रिया में बहुत सी धमकियों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। अरबी-इस्लामी बसंत तथा उत्तरी अफ़्रीक़ा और मध्यपूर्व के देशों के नए जनान्दोलनों को भी इस समय बहुत सी सामाजिक, आर्थिक एवं रानजैतिक समस्याओं का सामना है। इसीलिए पश्चिमी सरकारें, जो सदा ही क्षेत्र के तानाशाहों की समर्थक रही हैं, एक ओर तो मुसलमानों के मध्य मतभेद के बीज बो रही हैं और दूसरी ओर स्वयं को मानवप्रेमी और क्रांतियों का समर्थक दर्शाते हुए मुसलमानों के स्रोतों का दोहन जारी रखना चाहती हैं। एक विद्वान के अनुसार हालिया इस्लामी जागरूकता अग्नि और प्रकाश के समान है। यह इस अर्थ में है कि इस्लामी जागरूकता के कारण तानाशाहों और वर्चस्ववादी शक्तियों के हृदयों में चिंता की अग्नि एवं भय पाया जाता है और चमकते प्रकाश ने हृदयों को प्रजवलित कर रखा है। ऐसी स्थिति में हाजियों की होशियारी एवं जागरूकता और उनका एक दसूरे के साथ विचार-विमर्श शत्रुओं के प्रयासों को विफल बना सकता है। धार्मिक समानताओं पर बल और उनके बीच एकता एवं समरस्ता तथा लोगों को इस्लाम की वास्तविकता से अवगत करवाना आदि जैसी बातें, लोगों की योग्यताओं और उनकी क्षमताओं से लाभ उठाने तथा एक दूसरे के अनुभवों को स्थानांतरित करने की भूमिका उपलब्ध करती हैं।

 

हज वह अवसर है जिसे ईश्वर ने समस्याओं के समाधान के लिए मुसलमानों के बीच विचारों के आदान-प्रदान और एक दूसरे की स्थिति से अवगत होने के लिए उपलब्ध करवाया है। पिछले ३३ वर्षों के दौरान ईरानी हाजी अन्य देशों के हाजियों को अपनी इस्लामी क्रांति की वास्तविकताओं से अवगत करवाकर जो, ईश्वर पर भरोसे तथा एकता व एकजुटता के माध्यम से भीतरी तानाशाही और विदेशी वर्चस्व पर विजय प्राप्ति से संभव हुई, हाजियों में आशा की किरण जगा रहे हैं।

 

क्रांति के पश्चात की विभिन्न चुनौतियों और ख़तरों के बारे में उनके अनुभव तथा उनसे मुक़ाबले के मार्ग अब अन्य क्रांतिकारी भाइयों के लिए सहायक एवं मार्गदर्शक सिद्व हो सकते हैं। इसी प्रकार हज के अवसर पर मिस्र, लीबिया और ट्यूनीशिया के हाजियों के लिए इस हज में यह अवसर उपलब्ध हो चुका है कि वे अपने अनुभवों को बहरैन, यमन, जार्डन तथा अन्य देशों के अपने मुसलमान भाइयों को बताएं ताकि ईश्वर पर भरोसा करके इस्लामी जगत की दो मूल समस्याओं अर्थात विदेशियों पर निर्भर तानाशाह शासकों और पश्चिमी वर्चस्ववादियों से मुक्ति प्राप्त की जा सके।

 

फ़िलिस्तीन का विषय जो सदैव ही विद्वानों के बीच विचार-विमर्श का मुद्दा रहा है, इस वर्ष हज के दौरान "फ़िलिस्तीन अज़ बहर ता नहर" के रूप में चर्चा में सर्वोपरि रहेगा। हज में होने वाले सम्मेलन भी विद्वानों के विचारों से लाभ उठाते हुए क्षेत्रीय विषयों के संबन्ध में नए उपाय प्रस्तुत करते हैं। वास्तव में इस वर्ष हज वर्चस्ववादियों पर निर्भर तानाशाहों से मुक्ति प्राप्त करने वाले लोगों की उपस्थिति में उस नए अर्थ के साक्षी होगी जो अंततः इस्लामी राष्ट्र की गरिमा, एकता और सम्मान का कारण बनेगी।(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)

बुधवार, 12 दिसम्बर 2012 06:46

इमाम खु़मैनी

ईरान की इस्लामी क्रांति इमाम खुमैनी की उस पुकार से आंरभ हुई जिस की ध्वनि आज विश्व के कोने कोने में सुनाई दे रही है।

ईरान के शोषित समाज में जिस पर शक्तिशाली व अत्याचारी शासकों का राज था पीड़ा से कराहती, जनता के कानों से अचानक एक धर्मगुरू की पुकार टकराई अत्याचार व शोषण की दीवारें ढह गयीं और स्वतंत्रता व स्वाधीनता के गीत कानों में रस घोलने लगे और फिर स्वतंत्रता का यह गीत ईरानी राष्ट्र के हर सदस्य की ज़बान पर आ गया और अन्ततः रूहुल्लाह मूसवी खुमैनी नामक एक महान व अद्वीतीय व्यक्तिव ने इतिहास की एक अत्यन्त आश्चर्यजनक घटना अर्थात क्रांति को अस्तित्व प्रदान कर दिया और शताब्दियों तक स्वतंत्रता व स्वाधीनता के वियोग में छटपटाते राष्ट्र में स्वाधीनता व स्वतंत्रता स्थापित कर दी। यही कारणा है कि ईरान की इस्लामी क्रांति की इमाम खुमैनी से अलग कोई कल्पना नहीं की जा सकती।

 

ईरान की जिस इस्लामी कांति ने वर्तमान विश्व में जो परिवर्तन किये और जिस की सफलता व शक्ति ने विश्ववासियों को दांतों तले उंगुली दबाने पर विवश कर दिया उस का नेतृत्व करने वाली हस्ती अर्थात इमाम खुमैनी का व्यक्तित्त संभवतः इस क्रांति से भी अधिक आश्चर्य जनक है।

इमाम खुमैनी के महान कार्य उन की व्यक्तिगत विशेषताओं की ही भांति अनगिनत हैं किंतु यदि देखा जाए तो इमाम खुमैनी ने जो पहला संदेश दिया वह ईश्वर पर भरोसा और विश्व साम्राज्य विशेषकर अमरीका के चंगुल से छुटकारा प्राप्त करना था ।

इमाम खुमैनी के अनुसार सरकार को जनता के लिए जनता के साथ और जनता की सेवा में होना चाहिए वे सदैव आत्मविश्वास और स्वाधीनता पर अत्याधिक बल देते थे क्योंकि पूर्वी व पश्चिमी शक्तियों के हस्तक्षेपों को समाप्त करने के लिए आत्मविश्वास के अतिरिक्त कोई अन्य साधन नहीं है और यह भावना उसी समय उत्पन्न होती है जब मनुष्य के अस्तित्व में कोई बड़ी क्रांति आए।

इमाम खुमैनी का आशय समस्त क्षेत्रों में स्वाधीनता था किंतु इस के साथ ही वे आत्ममुग्धता को स्वाधीनता के मार्ग की बाधा समझते थे तथा आत्मविश्वास और आत्मनिर्भरता को स्वाधीनता बल्कि मानसिक स्वाधीनता के लिए आवश्यक समझते थे। इमाम खुमैनी ने वर्ष उन्नीस सौ इक्यासी में ईरान के शिक्षा मंत्री से भेंट में कहाः

हमें वर्षों तक परिश्रम करना होगा स्वंय को खोजना होगा, अपने पैरों पर खड़ा होना और स्वाधीनता तक पहुंचना होगा इस स्थिति में हमें पूरब या पश्चिचम की आवश्यकता नहीं होगी और यदि हम ऐसा करने में सफल हो गये तो विश्वास रखें कि कोई भी शक्ति हमें अघात नहीं लगा सकता। यदि हम वैचारिक दृष्टि से स्वाधीन होंगे तो वे किस प्रकार से हमें नुकसान पहॅंचा सकते हैं।

इमाम खुमैनी ने इसी प्रकार अपने एक भाषण में कहाः आप विश्वास करें यदि चाहेंगे तो हो जाएगा यदि जाग जाए तो चाहेंगे । आप जागें यह समझें कि जर्मन जाति आर्य जाति से और पश्चिम वाले हम से श्रेष्ठ नहीं हैं। यदि कोई राष्ट्र यह विश्वास कर लें कि हम बड़ी शक्तियों के सामने डट सकते हैं तो उस का यह विश्वास उस में वह क्षमता उत्पन्न कर देगा जिस के बल पर वह बड़ी शक्तियों के सामने डट जाएगा। यह जो सफलता आप को मिली है उसका यह कारण है कि आप को विश्वास हो गया था कि आप में इस की क्षमता है।

इमाम खुमैनी का एक अन्य महान कार्य जिसे एक चमत्कार भी कहा जा सकता है यह था कि उन्हों ने अपने महान अभियान द्वारा सैंकड़ों वर्षों से जारी उस षडयन्त्र को एक झटके में विफल कर दिया जिसके अंतर्गत यह प्रचार किया जा रहा था कि धर्म का राजनीति से कोई संबंध नहीं है और कोई भी धर्म विशेषकर इस्लाम सरकार चलाने की क्षमता नहीं रखता ।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई इमाम खुमैनी द्वारा इस्लाम के आधार पर सरकार गठन के संदर्भ में कहते हैः

जिस विषय की मुस्लिम और गैर मुस्लिम कल्पना भी नहीं करते थे वह धर्म और वह भी इस्लाम धर्म के आधार पर एक राजनीतिक व्यवस्था का गठन था यह वह लक्ष्य था जिस की साधारण मुसलमान कल्पना भी नहीं कर सकता था और न ही उस के बारे में सोच सकता था इमाम खुमैनी ने इस कल्पना को व्यवहारिक बनाया जिसे यदि चमत्कार कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी।

इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह ने राजनीति में इस्लामी शैलियों को व्यवहारिक बनाया तथा इस के साथ ही उन्हों ने शासकों के लिए जो वर्जनाए और सीमाएं निर्धारित कीं उससे इस पूरी व्यवस्था की आधार शिला को सुदृढ़ता प्राप्त हो गयी।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई इस संदर्भ में कहते हैः

विश्व में यह विषय स्वीकार किया जा चुका है कि जो लोग सरकार में होते हैं या जिन के कांधों पर समाज के नेतृत्व का बोझ होता है उन में कुछ विशेष नैतिक गुण होने चाहिएं घंमड , ऐश्वर्य प्रेम , सुखभोग ,अहंकार और स्वार्थ एसी वस्तुएं हैं जिन के बारे में विश्व वासियों ने यह सोच लिया है कि यह चीज़ें शासकों और राजनेताओं में होती ही हैं यहां तक कि उन देशों में भी जहां क्रांति के बाद सरकार बनी है जो लोग कल तक क्रांतिकारी के रूप में शिविरों में रहते थे गुफाओं में छुपे रहते थे वह लोग भी सरकार में आते ही अपनी जीवन शैली बदल लेते हैं और उन का ढब वही हो जाता है जो अन्य शासकों का होता है इसे हम ने निकट से देखा है और यह वस्तु अब जनता के लिए भी आश्चर्य जनक नहीं है किंतु इमाम खुमैनी ने इस गलत धारणा को समाप्त कर दिया उन्हों ने यह दर्शा दिया कि किसी राष्ट्र का एक अत्यन्त लोकप्रिय नेता और विश्व भर के मुसलमानों का नेता अत्यन्त साधारण जीवन शैली अपना सकता है और भव्य महलों के स्थान पर एक छोटे से इमाम बाड़े में अपने अतिथियों का स्वागत कर सकता है।

इमाम खुमैनी के बारे में पश्चिम के पत्रकार राबिन वूड्स वर्थ ने उन से उन के घर में भेंट के पश्चात लिखा। जैसे ही इमाम खुमैनी द्वार से भीतर आए मुझे लगा कि उन के अस्तित्व से आध्यात्म का पवन बह रहा है । मानो उन के कत्थई लबादे , काली पगड़ी और सफेद दाढ़ी के पीछे से आत्मा व जीवन की लहरें उठ रही हैं यहां तक कि कमरे में उपस्थित सारे लोग उन के व्यक्तित्तव में खो गये , उस समय मुझे लगा कि उन के आते ही हम सब बहुत छोटे हो गये और यह लगने लगा कि जैसे वहां उन के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। उन्हों ने मेरे सारे मापदंडो और शब्दों को उलट पुलट दिया जिनके द्वार मुझे लगता था कि मैं उन के व्यक्तित्व का वर्णन कर सकता हूं। मुझे लगा मानो वह मेरे अस्तित्व पर छा गये तो क्या कोई साधारण व्यक्ति एसा हो सकता है ? मै ने तो आज तक किसी भी बड़े नेता या बड़ी हस्ती को उन से अधिक महान नहीं पाया , मैं उन की छोटी सी प्रशसां में बस यही कह सकता हूं कि वह मानो अतीत में ईश्वरीय दूतों की भांति हैं या फिर यह कि वे इस्लाम के मूसा हैं जो फिरऔन को अपनी भूमि से बाहर निकालने के लिए आए हों ।

निश्चित रूप से इस पश्चिमी पत्रकार ने इमाम खुमैनी को किसी सीमा तक पहचान लिया था। फिरऔन वास्तव में अत्याचारी तानाशाह और स्वंय को सब से बड़ा समझने वाले हर शासक का प्रतीक है। ईश्वरीय दूत हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने प्राचीन मिस्र के अत्याचारी शासक और स्वंय को ईश्वर कहने वाले फिरऔन के विरुद्ध संघर्ष किया और उस का विनाश किया था। इमाम खुमैनी ने भी विश्व में वर्तमान फिरऔनों के विरूद्ध संघर्ष की जो लहर उत्पन्न की थी आज वह राष्ट्रों में तूफान का प्रंचड रूप धार कर शक्ति व सत्ता के बल पर मनमानी करने वाली शक्तियों की नैया डूबो रही है और साम्राज्यवाद के डगमगाते बेड़ों के बौखलाए नाविक इसी लिए ईरान और ईरान की इस्लामी क्रांति तथा इस्लामी व्यवस्था को विभिन्न षडयन्त्रों का लक्ष्य बना रहे हैं किंतु इमाम खुमैनी के मार्ग पर चलने वाला ईरानी राष्ट्र हर वर्ष इमाम खुमैनी के बरसी के अवसर पर विशेषरूप से यह प्रतिज्ञा करता है कि उन के मार्ग पर चलते हुए अत्याचारियों व साम्राज्यवादियों के विरूद्ध संघर्ष जारी रखेगा।

इस संसार में जीवन और मृत्यु का चक्र किसी से न रुका है और न ही रूकेगा जीवन व मृत्यु का यह क्रम , धूप छांव और दिन रात की भांति अनवरत जारी है मृत्यु व विनाश हर शरीर के लिए है इस बात की घोषणा कुरआने मजीद ने की है किंतु यदि यह एक अटल वास्तविकता है तो फिर कुछ लोगों को अमर क्यों कहा जाता है ? वास्तव में हमने कभी सोचा कि अमरत्व प्राप्त कैसे होता है? यदि इस विषय पर विचार किया जाए तों हमें पता चलेगा कि मृत्यु व विनाश शरीर के लिए होता है विचार मृत्यु व विनाश चक्र की परिधि से बाहर होते हैं विचारों में इतनी शक्ति होती है कि वह जीवन व मृत्यु के अनवरत चलते इस चक्र को जीवन बिन्दु पर रोक देता है।

यही कारण है कि शारीरिक रूप से नज़रों से ओझल हो जाने के बावजूद महापुरूष अपने विचारों के कारण सदैव जीवित रहते हैं। इस वास्तविकता को यदि कोई आज के युग में अपनी आंखों से देखना चाहे तो उसे ईरान और विश्व के उन क्षेत्रों की यात्रा करनी चाहिए जहां साम्राज्यवाद के विरुद आंदोलन चल रहा है या उस की आहटें सुनाई देने लगी हैं । इन स्थानों में उसे आज भी कि जब इस्लामी ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह की उन्नीसवीं बरसी मनाई जा रही है इमाम खुमैनी अपने विचारों व संदेशों के कारण जीवित नज़र आएंगे।

रचना से रचनाकार की महानता का बोध होता है ईरान की इस्लामी क्रांति इमाम खुमैनी के अनथक प्रयासों और निरंतर संघर्ष तथा ईश्वर के मार्ग में त्याग का परिणाम है जिसे स्वंय इमाम खुमैनी ने ईश्वरीय चमत्कार कहा है वे कहते हैः

समाज में एक समाज की मानसिकता में परिवर्तना आया जिसे मैं सिवाए इस के कि यह एक ईश्वरीय चमत्कार व ईश्वरीय सकंल्प था कोई और नाम नहीं दे सकता।

इसी प्रकार वे एक अन्य स्थान पर कहते हैः

इस में ईश्वर का हाथ है यह ईश्वरीय मामला है लोग स्वंय ही ऐसी शक्ति के स्वामी नहीं हो सकते यह ईश्वर का निर्णय था जिसने भौतिकवाद में विश्वास रखने वालों के सारे समीकरण बिगाड़ दिये ।

इस संदर्भ में केनेडा के बुद्धिजीवी राबर्ट कैलिस्टोन कहते हैः

मैं पश्चिम का नागरिक और गैर मुस्लिम हूं किंतु मेरी दृष्टि में यह एक चमत्कार है कि एक धार्मिक क्रांति वर्तमान समय में इस प्रकार से सफल हो जाए और न्याय की स्थापना की ओर अग्रसर हो इस क्रांति को निश्चित रूप से ईश्वरीय सहायता प्राप्त है।

यही कारण है कि विश्व के एक अत्यन्त संवेदनशील क्षेत्र में इमाम खुमैनी के नेतृत्व में आने वाली इस्लामी क्रांति ने विश्व साम्राज्य की शांत व सुरक्षित समझी जाने वाली छावनी अर्थात ईरान में पांव पसार कर बैठे अमरीकी साम्राज्य को बौखलाकर भागने पर विवश कर दिया।

ईरान में इस्लामी क्रांति की सफलता के साथ ही पहली बार एक मुस्लिम देश ने पश्चिम की महाशक्तियों को सफलता के साथ चुनौती दी, उन की अक्षमता को सिद्ध किया और उन के हितों के लिए गंभीर ख़तरे उत्पन्न कर दिये। इमाम खुमैनी ने ईश्वर व धर्म पर भरोसा करके एक ऐसा आंदोलन आरंभ किया और फिर उसे सफल बनाया जिसने धर्म व आध्यात्म के पतन की भविष्यवाणी करने वाले समस्त पश्चिमी विचारकों व बुद्धिजीवियों के भौतिकवाद पर आधारित ज्ञान के खोखलेपन को सिद्ध कर दिया।

यदि देखा जाए तो इस्लामी क्रांति सोलहवीं शताब्दी के बाद से पश्चिम के मुक़ाबले में इस्लाम की प्रथम विजय समझी जा सकती है। रोचक तथ्य तो यह है कि ईरान की क्रांति का निर्देशक इस्लाम था और नेशनलिज्म , कैप्टालिज़्म कम्यूनिज्म और सोशलिज्म जैसे किसी भी पश्चिमी इज्म या विचारधारा की इस क्रांति में कोई भूमिका नहीं थी। ईरान की इस्लामी क्रांति से पश्चिम की शत्रुता का संभवतः एक कारण यह भी है।

इमाम खुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने ईश्वर की असीम शक्ति पर भरोसे के साथ ही क्रांति की सफलता में जनता की महत्वपूर्ण भूमिका पर भी बहुत बल दिया है। ईरान में इस्लामी क्रांति के इतिहास का ज्ञान रखने वालों को भलीभांति ज्ञान है कि इमाम खुमैनी ने इस्लामी क्रांति की पूरी प्रक्रिया में जनता पर अत्याधिक भरोसा किया और उसे आगे ले आए।

फ्रांस के प्रसिद्ध समाजशास्त्री व विचारक मिशल फोको ने जो इस्लामी क्रांति की सफलता के समय ईरान में उपस्थित थे लिखा हैः

मैं यह बात स्वीकार करता हूं कि १८ वीं शताब्दी के बाद से समस्त समाजिक परिवर्तन आधुनिकता की दिशा में थे किंतु केवल ईरान की क्रांति एक ऐसा समाजिक आंदोलन है जो आधुनिकता के सामने खड़ी हो गयी।

इमाम खुमैनी ने वर्तमान युग में धर्म की क्षमताओं को उजागर कर दिया और ईरान में इस्लाम के आधार पर एक सरकार का गठन करके यह सिद्ध कर दिया कि जो इस्लाम पैगम्बरे इस्लाम सल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम लाए थे वह किस प्रकार सर्वकालिक है। लगभग तीन दशकों से इस्लामी गणतंत्र ईरान की सफलता इस का सब से बड़ा प्रमाण है।

बुधवार, 12 दिसम्बर 2012 06:41

जामा मस्जिद, दिल्ली

जामा मस्जिद का निमॉण सन् 1656 में सम्राट शाहजहां ने किया था. यह पुरानी दिल्ली में स्थित है.

यह मस्जिद लाल और संगमरमर के पत्थरों का बना हुआ है।

लाल किले से महज 500 मी. की दूरी पर जामा मस्जिद स्थित है जो भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है।

इस मस्जिद का निर्माण 1650 में शाहजहां ने शुरु करवाया था। इसे बनने में 6 वर्ष का समय और 10 लाख रु.लगे थे। बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर से निर्मित इस मस्जिद में उत्तर और दक्षिण द्वारों से प्रवेश किया जा सकता है। पूर्वी द्वार केवल शुक्रवार को ही खुलता है। इसके बार में कहा जाता है कि सुल्तान इसी द्वार का प्रयोग करते थे। इसका प्रार्थना गृह बहुत ही सुंदर है। इसमें ग्यारह मेहराब हैं जिसमें बीच वाला महराब अन्य से कुछ बड़ा है।

इसके ऊपर बने गुंबदों को सफेद और काले संगमरमर से सजाया गया है

जामा मस्जिद, दिल्ली, 1852.