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रूस भूमध्यसागर में युद्ध बेड़ा भेज रहा है
प्रेस टीवी
रूसी रक्षा मंत्री ने घोषणा में बताया कि सीरिया के जलक्षेत्र के निकट भूमध्यसागर की ओर रूस का नया युद्ध बेड़ा बढ़ रहा है।
रूसी रक्षा मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि यह बेड़ा बाल्टिस्क की बाल्टिक बंदरगाह से रवाना हो गया है जो भूमध्यसागर की ओर बढ़ रहा है।
इस रिपोर्ट के अनुसार रूसी नौसैनिक जहाज़ भूमध्यसागर में दूसरे बेड़े का स्थान लेने के पश्चात प्रशिक्षण अभ्यास करेगा।
इंटरफ़ैक्स न्यूज़ एजेंसी ने सैन्य सूत्र के हवाले से पिछले सप्ताह रिपोर्ट दी थी कि इस बेड़े को सीरिया में स्थिति ख़राब होने की हालत में इस देश में रह रहे रूसी नागरिकों को वहां से निकालने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
रूस, सीरिया के मुख्य घटक देशों में हैं और भूमध्यसागर में सीरिया के तर्तूस बंदरगाह में उसका नौसैनिक मरम्मत प्रतिष्ठान है।
ईरानः ड्रोन विमान उत्पादन के लिए पूर्ण क्षमता का प्रयोग
ईरान के रक्षा मंत्री ने कहा है कि ईरान विभिन्न प्रकार के ड्रोन विमानों के उत्पादन के लिए अपनी सम्पूर्ण क्षमताओं से लाभ उठाता है।
रक्षा मंत्री अहमद वहीदी ने मंगलवार को तेहरान में पत्रकारों से एक वार्ता में, हालिया दिनों में ईरान में पकड़े गये अमरीकी ड्रोन विमान, स्कैन ईगल जैसे विमान के उत्पादन के बारे में पूछे गये प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि ईरान हर प्रकार के ड्रोन विमान को व्यापक स्तर पर बना रहा है।
ईरानी रक्षामंत्री ने इसी प्रकार तुर्की और सीरिया की सीमा पर पेट्रियट मिसाइलों की स्थापना का उद्देश्य पश्चिम और इस्राईल के हितों की रक्षा बताया और स्पष्ट किया कि इस्लामी गणतंत्र ईरान, क्षेत्र में विदेशियों की उपस्थिति का विरोधी है और उसे क्षेत्र और इस्लामी जगत के हित में नहीं समझता।
रक्षा मंत्री ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि सीरिया में युद्ध और टकराव किसी भी सीरियाई पक्ष के हित में नहीं है तथा उसका सीरियाई जनता के जनसंहार के अतिरिक्त कोई परिणाम नहीं निकलेगा , कहा कि ज़ायोनी शासन को सीरिया में संकट गहराने से लाभ पहुंचेगा।
ईरान 20 प्रतिशत युरेनियम संवर्धन नहीं रोकेगाः फ़रीदून अब्बासी
प्रेस टीवी
ईरान की परमाणु ऊर्जा एजेंसी के प्रमुख फ़रीदून अब्बासी ने मंगलवार को कहा कि तेहरान जब तक आवश्यकता है उस समय तक बीस प्रतिशत युरेनियम का संवर्धन जारी रखेगा।
उन्होंने कहा कि तेहरान के शोध संयंत्र के लिए बीस प्रतिशत तक संवर्धित युरेनियम का उत्पादन ईरानी राष्ट्र का अधिकार है जिसकी ईरानी राष्ट्र रक्षा करेगा।
फ़रीदून अब्बासी ने कहा कि बीस प्रतिशत युरेनियम संवर्धन पश्चिम के राज़ी होने या विरोध करने या इस संदर्भ में उसके दृष्टिकोण अपनाने से संबंधित मुद्दा नहीं है।
ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के प्रमुख ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम के संबंध में गुट पांच धन एक के दृष्टिकोण में कोई परिवर्तन आया है। उन्होंने कहा कि आईएईए के निदेशक मंडल की बैठक में गुट पांच धन एक के प्रतिनिधियों की ओर से बयान से प्रकट होता है कि ईरान के संबंध में उनका पिछला दृष्टिकोण नहीं बदला है।
ज्ञात रहे अमरीका और उसके कुछ घटक ईरान पर शांतिपूर्ण परमाणु कार्यक्रम की आड़ में परमाणु शस्त्रों की प्राप्ति के प्रयास का आरोप लगाते हैं और इसी आरोप के बहाने अमरीका ने ईरान पर एकपक्षीय प्रतिबंध लगा दिए हैं जबकि ईरान का कहना है कि उसकी समस्त परमाणु गतिविधियां शांतिपूर्ण हैं जो आईएईए के निरीक्षण में जारी हैं और वह परमाणु अप्रसार संधि एनपीटी के सदस्य देश के नाते शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए परमाणु ऊर्जा के प्रयोग के अपने मूल अधिकार पर बल देता है।
आईएईए ने भी ईरान के परमाणु प्रतिष्ठानों का अनेक बार निरीक्षण किया है और उसे ऐसे कोई साक्ष्य नहीं मिले जिससे पश्चिमी देशों के आरोपों की पुष्टि हो।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने भी परमाणु शस्त्रों के निर्माण के वर्जित होने का फ़तवा दिया है।
ज़ायोनी परमाणु प्रतिष्ठान में काम करने वाले मर्दख़ाय वनूनो की सूचना के आधार पर जो उन्होंने 1980 के दशक में द संडे टाइम्ज़ को दी थी, अधिकाशं विशेषज्ञों का मानना है कि इस समय ज़ायोनी शासन के पास 200-300 परमाणु वारहेड्स हैं।
कितनी अजीब बात है कि मध्यपूर्व में 200 से अधिक परमाणु वारहेड्स से संपन्न ज़ायोनी शासन से पश्चिमी देश यह तक नहीं पूछते कि वह अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के निरीक्षकों को अपने परमाणु प्रतिष्ठानों के निरीक्षण की अनुमति क्यों नहीं देता और परमाणु अप्रसार संधि एनपीटी से क्यों नहीं जुड़ता।
ईरान पर आक्रमण की संभावना शून्य है-
ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रामीन मेहमान परस्त का कहना है कि ईरान पर हमले की संभावना शून्य है, क्योंकि देश वर्तमान स्थिति में रक्षा के उच्चतम स्थान पर है।
सोमवार को मेहमान परस्त ने कहा कि, किसी भी देश के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही उस समय की जाती है कि जब आक्रमणकारी को बहुत कम नुक़सान पहुंचने की संभावना होती है, किन्तु विपक्षी देश अगर तैयार है तो आक्रमणकारी को काफ़ी नुक़सान उठाना पड़ सकता है।
उन्होंने कहा कि ईरान के पास बेहतरीन सैन्य उपकरणों या शक्तिशाली रक्षा प्रणाली का मतलब यह नहीं है कि ईरान किसी देश पर हमला करने का इरादा रखता है, बल्कि अधिक शक्तिशाली ईरान, अधिक सुरक्षित रहेगा। s.m
बैतुल मुक़द्दस में 15,00 और अवैध रिहायशी इकाइयों के निर्माण की मंज़ूरी
ज़ायोनी शासन ने पूर्वी बैतुल मुक़द्दस में लगभग 1,500 और अवैध रिहायाशी इकाइयों के निर्माण के लिए प्रारंभिक मंजूरी दे दी है।
आंतरिक मामलों के इस्राईली मंत्रालय की प्रवक्ता इफ़रेट ओरबैच ने मंगलवार को कहा कि मंत्रालय ने इस परियोजना को हरी झंडी दिखा दी है।
उधर महमूद अब्बास के प्रवक्ता नबील अबू रुदैना ने इस घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि ज़ायोनी शासन की इस योजना को रुकवाने हेतु हम भरपूर प्रयास करेंगे।
ग़ौरतलब है कि दिसम्बर को शुरू में, फ्रांस और ब्रिटेन सहित यूरोप के दूसरे देशों ने इस्राईली राजदूतों को तलब करके अवैध अधिकृत फिलिस्तीन में अवैध ज़ायोनी बस्तियों के निर्माण की योजना पर आपत्ति जताई थी तथा विश्व भर में इस्राईल के इस क़दम की कड़ी निंदा की गई थी।
कुछ देश, सीरिया संकट के दोहन का प्रयास कर रहे हैं,
हिज़्बुल्लाह लेबनान के प्रमुख सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा है कि अमरीका नहीं चाहता कि सीरिया संकट हल हो जाए ताकि और मौतें हों, सीरियाई सरकार की राष्ट्रीय साख ख़राब हो, किंतु इसके अलावा क्षेत्र की भी कुछ सरकारें हैं जो सीरिया में हिंसा जारी रहने का लाभ उठा रही हैं। सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि यह सोचना बहुत बड़ी भूल है कि सशस्त्र कार्यवाही के माध्यम से सीरियाई सरकार का तख्ता उलटा जा सकता है। सैयद हसन नसरुल्लाह ने विश्व विद्यालय के एक समारोह में भाषण देते हुए कहा कि सीरिया में जारी लड़ाई सरकार और जनता के बीच की लड़ाई नहीं है, यह लड़ाई एसी है जिसमें सशस्त्र संगठन रक्तपात कर रहे हैं और सरकार रक्षात्मक कार्यवाहियों में व्यस्त है। उन्होंने कहा कि सीरिया में जनता के बीच विभाजन बिल्कुल स्पष्ट हो गया है, एक ओर सरकार तथा जनता है और दूसरी ओर एक पक्ष है जो क्षेत्रीय व अंतर्राष्ट्रीय शक्तियों की मदद से सशस्त्र कार्यवाहियां कर रहा है।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि संचार माध्यम एसी रिपोर्टें दे रहे हैं कि जैसे दमिश्क़ पर विद्रोहियां का कब्ज़ा बिल्कुल निकट है, जबकि सीरिया संकट को दो वर्ष का समय बीत रहा है और कुछ संचार मध्यम आरंभ से ही कह रहे हैं कि बस दो महीने के भीतर दमिश्क़ पर विद्रोहियों का क़ब्ज़ा हो जाएगा। सैयद हसन नसरुल्लाह ने सीरियाई सरकार के विरुद्ध सशस्त्र कार्यवाहियों में लिप्त संगठनों से कहा कि इस्लामी जगत के भीतर तथा पश्चिमी देशों में कुछ सरकारें एसी हैं जो आपकी घात में बैठी हुई हैं और उन्होंने आपके लिए सीरिया के भीतर मैदान ख़ाली कर दिया है जहां आपस में लड़ें और एक दूसरे की हत्या करें तथा आप इसी जाल में फंस गए हैं।
सैयद हसन नसरुल्लाह ने कहा कि सीरिया में वार्ता से इंकार का अर्थ है हिंसा और रक्तपात का जारी रहना अतः सीरिया में जो भी राजनैतिक वार्ता के मेज़ पर आने से इंकार कर रहा है वह अपराधी और हत्याओं का ज़िम्मेदार है।
ईरान और आईएईए क बीच नई कार्य योजना पर सहमति
इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेश मंत्री अली अकबर सालेही तेहरान में आईएईए के साथ होने वाली हालिया परमाणु वार्ता को सार्थक बताया है।
विदेश मंत्री सालेही ने रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि ईरान और आईएईए वार्ता के दौरान अधिकांश मुद्दों पर आपसी समझ बनाने में सफल हो गए हैं जबकि शेष मुद्दों पर अगली बैठक में चर्चा होगी जो आगामी १३ जनवरी को तेहरान में आयोजित होगी। उन्होंने बताया कि दोनों पक्षों ने परमाणु मामले में मतभेदों को दूर करने के लिए नई कार्य योजना पर सहमति की है।
हजः संकल्प करना
हज का शाब्दिक अर्थ होता है संकल्प करना। वे लोग जो ईश्वर के घर के दर्शन का संकल्प करते हैं, उनको इस यात्रा की वास्तविकता से अवगत रहना चाहिए और उसको बिना पहचान के संस्कारों को पूरा नहीं करना चाहिए। इसका कारण यह है कि उचित पहचान और परिज्ञान, ईश्वर के घर का दर्शन करने वाले का वास्तविकताओं की ओर मार्गदर्शन करता है जो उसके प्रेम और लगाव में वृद्धि कर सकता है तथा कर्म के स्वाद में भी कई गुना वृद्धि कर सकता है। ईश्वर के घर के दर्शनार्थी जब अपनी नियत को शुद्ध कर लें और हृदय को मायामोह से अलग कर लें तो अब वे विशिष्टता एवं घमण्ड के परिधानों को अपने शरीर से अलग करके मोहरिम होते हैं। मोहरिम का अर्थ होता है बहुत सी वस्तुओं और कार्यों को न करना या उनसे वंचित रहना।
लाखों की संख्या में एकेश्वरवादी एक ही प्रकार के सफेद कपड़े पहनकर और सांसारिक संबन्धों को त्यागते हुए मानव समुद्र के रूप में काबे की ओर बढ़ते हैं। यह लोग ईश्वर के निमंत्रण को स्वीकार करने के लिए वहां जा रहे हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए आले इमरान की आयत संख्या ९७ में ईश्वर कहता है कि लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने का सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे।
एहराम बांधने से पूर्व ग़ुस्ल किया जाता है जो उसकी भूमिका है। इस ग़ुस्ल की वास्तविकता पवित्रता की प्राप्ति है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि मोहरिम हो अर्थात दूरी करो हर उस वस्तु से जो तुमको ईश्वर की याद और उसके स्मरण से रोकती है और उसकी उपासना में बाधा बनती है।
मोहरिम होने का कार्य मीक़ात नामक स्थान से आरंभ होता है। वे तीर्थ यात्री जो पवित्र नगर मदीना से मक्का जाते हैं वे मदीना के निकट स्थित मस्जिदे शजरा से मुहरिम होते हैं। इस मस्जिद का नाम शजरा रखने का कारण यह है कि इस्लाम के आरंभिक काल में पैग़म्बरे इस्लाम (स) इस स्थान पर एक वृक्ष के नीचे मोहरिम हुआ करते थे। अब ईश्वर का आज्ञाकारी दास अपने पूरे अस्तित्व के साथ ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने के लिए आगे बढ़ता है।
अपने विभिन्न प्रकार के संस्कारों और आश्चर्य चकित करने वाले प्रभावों के साथ हज, लोक-परलोक के बीच एक आंतरिक संपर्क है जो मनुष्य को प्रलय के दिन को समझने के लिए तैयार करता है। हज एसी आध्यात्मिक उपासना है जो परिजनों से विदाई तथा लंबी यात्रा से आरंभ होती है और यह, परलोक की यात्रा पर जाने के समान है। हज यात्री सफ़ेद रंग के वस्त्र धारण करके एकेश्वरवादियों के समूह में प्रविष्ट होता है और हज के संस्कारों को पूरा करते हुए मानो प्रलय के मैदान में उपस्थित है। इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम हज करने वालों को आध्यात्मिक उपदेश देते हुए कहते हैं कि महान ईश्वर ने जिस कार्य को भी अनिवार्य निर्धारित किया और पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने जिन परंपराओं का निर्धारण किया है, वे चाहे हराम हों या हलाल सबके सब मृत्यु और प्रलय के लिए तैयार रहने के उद्देश्य से हैं। इस प्रकार ईश्वर ने इन संस्कारों को निर्धारित करके प्रलय के दृश्य को स्वर्गवासियों के स्वर्ग में प्रवेश और नरक में नरकवासियों के जाने से पूर्व प्रस्तुत किया है।
हज करने वाले एक ही प्रकार और एक ही रंग के वस्त्र धारण करके तथा पद, धन-संपत्ति और अन्य प्रकार के सांसारिक बंधनों को तोड़कर अपनी वास्तविकता को उचित ढंग से पहचानने का प्रयास करते हैं अर्थात उन्हें पवित्र एवं आडंबर रहित वातावरण में अपने अस्तित्व की वास्तविकताओं को देखना चाहिए और अपनी त्रुटियों एवं कमियों को समझना चाहिए। ईश्वर के घर का दर्शन करने वाला जब सफेद रंग के साधारण वस्त्र धारण करता है तो उसको ज्ञात होता है कि वह घमण्ड, आत्ममुग्धता, वर्चस्व की भावना तथा इसी प्रकार की अन्य बुराइयों को अपने अस्तित्व से दूर करे। जिस समय से तीर्थयात्री मोहरिम होता है उसी समय से उसे बहुत ही होशियारी से अपनी गतिविधियों और कार्यों के प्रति सतर्क रहना चाहिए क्योंकि उसे कुछ कार्य न करने का आदेश दिया जा चुका है। मानो वह ईश्वर की सत्ता का अपने अस्तित्व में आभास कर रहा है और उसे शैतान के लिए वर्जित क्षेत्र तथा सुरक्षित क्षेत्र घोषित करता है। इस भावना को मनुष्य के भीतर अधिक प्रभावी बनाने के लिए उससे कहा गया है कि वह अपने उस विदित स्वरूप को परिवर्ति करे जो सांसारिक स्थिति को प्रदर्शित करता है और सांसारिक वस्त्रों को त्याग देता है। जो व्यक्ति भी हज करने के उद्देश्य से सफ़ेद कपड़े पहनकर मोहरिम होता है उसे यह सोचना चाहिए कि वह ईश्वर की शरण में है अतः उसे वैसा ही व्यवहार करना चाहिए जो उसके अनुरूप हो।
यही कारण है कि शिब्ली नामक व्यक्ति जब हज करने के पश्चात इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम की सेवा में उपस्थित हुआ तो हज की वास्तविकता को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने शिब्ली से कुछ प्रश्न पूछे। इमाम सज्जाद अ. ने शिब्ली से पूछा कि क्या तुमने हज कर लिया? शिब्ली ने कहा हां, हे रसूल के पुत्र। इमाम ने पूछा कि क्या तुमने मीक़ात में अपने सिले हुए कपड़ों को उतार कर ग़ुस्ल किया था? शिब्ली ने कहा जी हां। इसपर इमाम ने कहा कि जब तुम मीक़ात पहुंचे तो क्या तुमने यह संकल्प किया था कि तुम पाप के वस्त्रों को अपने शरीर से दूर करोगे और ईश्वर के आज्ञापालन का वस्त्र धारण करोगे? शिब्ली ने कहा नहीं। अपने प्रश्नों को आगे बढ़ाते हुए इमाम ने शिब्ली से पूछा कि जब तुमने सिले हुए कपड़े उतारे तो क्या तुमने यह प्रण किया था कि तुम स्वयं को धोखे, दोग़लेपन तथा अन्य बुराइयों से पवित्र करोगे? शिब्ली ने कहा, नहीं। इमाम ने शिब्ली से पूछा कि हज करने का संकल्प करते समय क्या तुमने यह संकल्प किया था कि ईश्वर के अतिरिक्त हर चीज़ से अलग रहोगे? शिब्ली ने फिर कहा कि नहीं। इमाम ने कहा कि न तो तुमने एहराम बांधा, न तुम पवित्र हुए और न ही तुमने हज का संकल्प किया।
एहराम की स्थिति में मनुष्य को जिन कार्यों से रोका गया है वे कार्य आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में मनुष्य के प्रतिरोध को सुदृढ़ करते हैं। उदाहरण स्वरूप शिकार पर रोक और पशुओं को क्षति न पहुंचाना, झूठ न बोलना, गाली न देना और लोगों के साथ झगड़े से बचना आदि। यह प्रतिबंध हज करने वाले के लिए वैस तो एक निर्धारित समय तक ही लागू रहते हैं किंतु मानवता के मार्ग में परिपूर्णता की प्राप्ति के लिए यह प्रतिबंध, मनुष्य का पूरे जीवन प्रशिक्षण करते हैं। एहराम की स्थिति में जिन कार्यों से रोका गया है यदि उनके कारणों पर ध्यान दिया जाए तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि पशु-पक्षियों और पर्यावरण की सुरक्षा तथा छोटे-बड़े समस्त प्राणियों का सम्मान, इन आदेशों के लक्ष्यों में से है। इस प्रकार के कार्यों से बचते हुए मनुष्य, प्रशिक्षण के एक एसे चरण को तै करता है जो तक़वा अर्थात ईश्वरीय भय की प्राप्ति के लिए व्यवहारिक भूमिका प्रशस्त करता है। इन कार्यों में से प्रत्येक, मनुष्य को इस प्रकार से प्रशिक्षित करता है कि वह उसे आंतरिक इच्छाओं के बहकावे से सुरक्षित रखे और अपनी आंतरिक इच्छाओं पर नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है।
हज के दौरान जिन कार्यों से रोका गया है वास्तव में वे एसे कार्यों के परिचायक हैं जो तक़वे तक पहुंचने की भूमिका हैं। एहराम बांधकर मनुष्य का यह प्रयास रहता है कि वह एसे वातावरण में प्रविष्ट हो जो उसे ईश्वर के भय रखने वाले व्यक्ति के रूप में बनाए। हज के दौरान “मोहरिम” शीर्षक के अन्तर्गत जिन कार्यों से रोका गया है वे वहीं कार्य हैं जिनकी हानियों को वह अपने दैनिक जीवन में देखता है या वे क्षतियां जो मनुष्य दूसरों को पहुंचाता है अतः यह आवश्कय है कि हाजी, एहराम से निकलने के पश्चात अपने घर पहुंचकर इस प्रकार से जीवन व्यतीत करे कि लोगों को उससे क्षति न पहुंच और वह अपनी हर प्रकार की इच्छाओं को नियंत्रित करे तथा केवल ईश्वर के मार्ग में ही क़दम बढ़ाए।
हज करने के लिए जो कपड़े पहने जाते हैं उनका पवित्र होना आवश्यक है। वे ग़स्बी न हो और साथ ही साथ यह कपेड़े सिले हुए न हों। अलबत्ता महिलाओं के परिधान के संबन्ध में इस प्रकार की शर्त नहीं है। पुरुषों के लिए अनिवार्य है कि वे बग़ैर सिले सफेद कपड़े प्रयोग करें और उनके ऊपर या भीतर कोई भी सिला हुआ कपड़ा प्रयोग न करें। हज के समय प्रयोग किये जाने वाले कपड़ें सामान्यतः दो चादरों के समान होते हैं जिन्हें विशेष ढंग से पहना जाता है। इनको पहनने के पश्चात एहराम के अगले चरण की तैयारी की जाती है।
एहराम के पश्चात दो रकत नमाज़ पढ़ी जाती है। इस नमाज़ को पढ़ने के पश्चात एहराम का अन्तिम चरण आरंभ होता है जिसके अन्तर्गत तलबिया अर्थात “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” कहा जाता है। इस बारे में पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि जो भी व्यक्ति एहराम के दौरान ईश्वरीय पारितोषिका की प्राप्ति की आशा से पूरी निष्ठा के साथ ७० बार तलबिया कहेगा तो ईश्वर हज़ार फ़रिश्तों को गवाह बनाएगा कि उसने, उसको नरक से मुक्त कर दिया है। अब हाजी “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” कहते हुए ईश्वर के घर के दर्शन और उसकी परिक्रमा करने के लिए तैयार होता है ताकि ईश्वर के साथ हर पल अपने संपर्क को अधिक सुदृढ़ बना सके।
हज में महिलाओं की भूमिका
हज का वातावरण हज़रत हाजेरा और हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम के काल से ही, पुरुषों के साथ महिलाओं को समान अधिकार प्रदान करता है और इस प्रक्रिया में मानवीय व लैंगिक दोनों आयामों को दृष्टि में रखा गया है। हज एक ऐसा मंच है जो महिलाओं को समाजिक स्तर पर नये अनुभव प्राप्त करने और अन्य लोगों के साथ व्यवहार की शैलियों से परिचित कराता है।
इस्लाम के सब से बड़े प्रशिक्षण कार्यक्रम के रूप में हज अधिवेशन, वर्ष में एक बार आयोजित होता है। हज के नियम व संस्कार कुछ इस प्रकार से हैं कि उसमें, लिंगभेद, जाति , पद व सामाजिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना सभी लोगों को समान समझा गया है। सभी को हज के संस्कार करना होते हैं और स्वार्थ व अहंकार से निकलना होता है ताकि ईश्वर से निकट हुआ जा सके और स्वंय को एक नये मनुष्य के रूप में ढाला जा सके। हज संस्कारों में महिलाओं की प्रभावशाली व सराहनीय भूमिका स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। ईश्वरीय धर्म के प्राचीन इतिहास में जिन महिलाओं को ईश्वर पर आस्था, उसके प्रति ज्ञान व उसकी पहचान का प्रतीक समझा गया, उनके साथ हज संस्कारों को कुछ इस प्रकार से जोड़ दिया गया है कि आज भी हज के बहुत से संस्कार और नियमों में उनकी झलक देखी जा सकती है।
हज अत्यन्त प्राचीन संस्कार है। मक्का नगर में काबा, पृथ्वी के पहले मुनष्य हज़रत आदम अलैहिस्सलाम के युग में बनाया गया था और उस समय से अब तक, एकेश्वरवादियों और ईश्वर में आस्था रखने वालों का उपासनास्थल रहा है। हज़रत इब्राहीम के युग में कि जब हज के अधिकांश संस्कारों की आधारशिला रखी गयी, सब से मुख्य भूमिका हज़रत हाजेरा नामक एक महान महिला ने निभाई। वे हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की पत्नी और हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम की माता हैं। उनकी महानता वास्तव में उन परीक्षाओं, संघर्षों, ईश्वर पर भरोसा और उसमें आस्था का परीणाम है जो उनके जीवन में जगह जगह देखने को मिलती है जिनकी याद मक्का के वातावरण और हज के संस्कार से दिलायी गयी है। मक्का के सूखे मरुस्थल में ईश्वर पर भरोसा और अपने पुत्र इस्माईल के लिए एक घूंट पानी के लिए इधर इधर व्याकुलता में हज़रत हाजरा का दौड़ना ईश्वरीय चिन्हों में गिना गया है। हज में हाजियों को सफ़ा और मरवा नामक दो पहाड़ियों के मध्य दौड़ कर हज़रत हाजरा के उसी संघर्ष को याद करना और ईश्वर पर भरोसे में का पाठ लेना होता है। हज़रत हाजेरा ने यह सिखा दिया कि अकेलेपन और बेसहारा हो जाने के बाद किस प्रकार से कृपालु ईश्वर से आशा रखनी चाहिए।
यह कहा जा सकता है कि हज़रत इब्राहीम के साथ हज़रत हाजेरा की जीवनी, वास्तव में उपासना और ईश्वर पर आस्था का इतिहास है। निसंदेह हर मनुष्य किसी न किसी प्रकार इस तरह की परीक्षा का सामना करता है और यह परीक्षा कभी कभी बहुत कठिन होती है। इस स्थिति में संकटों और समस्याओं से निकलने के लिए, हज़रत इब्राहीम और हज़रत हाजेरा जैसे आदर्शों के पदचिन्हों पर चलना चाहिए। कु़रआने मजीद के सूरए मुमतहेना की आयत नंबर चार में कहा गया है कि तुम ईश्वर पर आस्था रखने वालों के लिए अत्यन्त सराहनीय व अच्छी बात यह है कि इब्राहीम और उनके साथ रहने वालों का अनुसरण करो।
हज़रत हाजेरा की महानता का एक अन्य आयाम, ईश्वरीय आदेशों के सामने नतमस्तक होना है। जब उन्हें अपने बेटे इस्माईल की बलि चढ़ाने के ईश्वरीय आदेश का ज्ञान हुआ तो शैतानी बहकावा अपनी चरम सीमा पर पहुंच गया। शैतान उनके पास गया कहने लगा कि इब्राहीम तुम्हारे बेटे को मार डालना चाहते हैं। हज़रत हाजेरा ने कहा कि क्या विश्व में एसा कोई है जो अपने ही बेटे को मार डाले? शैतान ने कहा वह दावा करते हैं कि यह ईश्वर का आदेश है। हज़रत हाजेरा ने कहा कि चूंकि यह ईश्वर का आदेश है इस लिए उसका पालन होना चाहिए। जो ईश्वर को पसन्द है मैं उसी में खुश हूं। ईश्वर के प्रति आस्था से परिपूर्ण हज़रत हाजेरा की इस बात ने उनकी महानता में चार चांद लगा दिये। आज हज़रत हाजेरा और हज़रत इस्माईल की क़ब्रें, हजरे इस्माईल नामक स्थान पर ईश्वरीय दूतों के साथ हैं। यह स्थान काबे के पास ही गोलार्ध आकार में मौजूद है। जो हाजी काबे की परिक्रमा करना चाहते हैं उन्हें काबे के साथ ही इस स्थान की भी परिक्रमा करनी होती है इस प्रकार से वह महिला जो ईश्वरीय आदेश के कारण मरुस्थल में अकेली रही और जिसने ईश्वरीय आदेश को सह्रदय स्वीकार किया, अन्य लोगों के लिए आदर्श बन गयी। हज़रत हाजेरा पहली महिला हैं जिन्होंने काबे के प्रति अपनी आस्था प्रकट करने के लिए उसके द्वार पर पर्दा डाला।
इस्लामी संस्कृति में यदि मनुष्य पवित्रता की सीढ़िया तय कर ले और महानता प्राप्त करने में सफल हो जाए तो वह अन्य लोगों के लिए आदर्श बन सकता है और इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि वह महिला है या पुरुष। कु़रआने मजीद में चार आदर्श महिलाओं की बात की गयी है जिन्हें ईश्वर ने धर्म में आस्था रखने वालों के लिए आदर्श कहा है। सूरए तहरीम की आयत नंबर ११ में कहा गया है और ईश्वर ने मोमिनों के लिए फिरऔन की पत्नी का उदाहरण दिया है जब उसने कहा हे पालनहार! तू मेरे लिए स्वर्ग में एक घर बना और मुझे नास्तिक फिरऔन, उसके चरित्र और अत्याचारी जाति से छुटकारा दिला।
इसके बाद की आयत में ईश्वर हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की माता हज़रत मरयम को, जिनकी एसी विशेषताए हैं जो किसी अन्य में नहीं हैं, सभी महिलाओं व पुरुषों का आदर्श बताया गया है।
काबे के एक कोने में जिसे रुक्ने यमानी कहा जाता है, फातेमा बिन्ते असद नाम की एक अत्यन्त पवित्र महिला का चिन्ह देखा जा सकता है। वे हज़रत अली अलैहिस्सलाम की माता हैं जिन्होंने अपने पुत्र के जन्म में सहायता के लिए काबे को सहारा बनाया था। इतिहासकारों ने प्रत्यक्षदर्शियों के हवाले से लिखा है कि अचानक काबे की दीवार फटी और फातेमा बिन्ते असद काबे के भीतर चली गयीं और तीन दिन बाद, अपने बच्चे को गोद में लिए उसी स्थान से बाहर निकलीं । यह वास्तव में ईश्वरीय संदेश के स्थान और काबे में महिलाओं के लिए एक अन्य सम्मान व गौरव है तथा इस से पवित्र महिलाओं की महानता व महत्व का भी पता चलता है।
इस्लाम के उदय के बाद कुछ तथ्य, महिलाओं के हज से परोक्ष व अपरोक्ष रूप से संबंध को दर्शाते हैं। हज़रत ख़दीजा वह एकमात्र महिला हैं जो इस्लाम के उदय के कठिन समय में पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम के साथ काबे में जाकर उपासना करती थीं। इन तीन हस्तियों ने क़ुरैश क़बीले की अनेकेश्वरवादी रीति रिवाजों के विपरीत एक नयी परंपरा की आधार शिला रखी और उसका प्रदर्शन किया। इस संस्कृति में महिला व पुरुष कांधे से कांधा मिलाकर अनन्य ईश्वर के घर काबे में जाते हैं। इस्लाम के विशेष नियमों के संकलन के यह आंरभिक क़दम, भविष्य में हज के व्यापक संस्कारों की भूमिका बने। इतिहास में महिलाओं के लिए यह भी एक गौरव लिख लिया गया है कि इस्लाम के उदय के दिनों में महिलाओं ने इस्लाम के विस्तार में पैगम्बरे इस्लाम के साथ भूमिका निभाई और काबे में इस्लामी संस्कृति की आधारशिला रखी। हज के दौरान महिलाओं द्वारा पैगम्बरे इस्लाम के समक्ष आज्ञापालन की प्रतिज्ञा भी महिलाओं की महानता का एक अन्य चिन्ह है। मक्का नगर में पैग़म्बरे इस्लाम ने अपने ७३ साथियों के साथ मक्का के लोगों के साथ अक़बा नामक दूसरा जो समझौता किया था उस समय ७३ लोगों में कई महिलाएं शामिल थीं। इन लोगों ने आज्ञापालन की प्रतिज्ञा के लिए पैगम्बरे इस्लाम से समय मांगा। पैग़म्बरे इस्लाम ने मिना के मैदान में आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का समय निर्धारित किया। उन लोगों ने १३ ज़िलहिज्जा की रात पैगम्बरे इस्लाम से बात की और मक्का के नास्तिकों की अत्याधिक संवेदनशीलता के बावजूद आज्ञापालन की प्रतिज्ञा का यह कार्यक्रम आयोजित हुआ और बैअतुन्निसा के नाम से विख्यात हुआ। इस से हज में महिलाओं की भागीदारी जो उस समय तक प्रचलित नहीं थी, औपचारिक रूप से होने लगी। उसके बाद से महिलाएं भी पुरुषों के साथ काबे के पास पैगम्बरे इस्लाम की आज्ञापालन की प्रतिज्ञा करती और विभिन्न स्तरों पर उपस्थित रहतीं।
हज करने वालों को जो अंतिम काम करना होता है उसे तवाफुन्निसा अर्थात स्त्रीपरिक्रमा कहा जाता है इस प्रकार से हज के संस्कार में महिलाओं का उल्लेख मुख्य रूप से किया गया है और यह वास्तव में उन लोगों का उत्तर है जो महिलाओं के बारे में इस्लामी नियमों की आलोचना करते हैं। इस स्त्रीपरिक्रमा के बहुत से आयाम हैं। प्रोफेसर हश्मतुल्लाह क़ंबरी इस संदर्भ में कहते हैं कि तवाफुन्निसा या स्त्रीपरिक्रमा का सब से साधारण संदेश यह है कि वह हाजी को ईश्वर द्वारा महिलाओं को प्रदान चार पदों के सम्मान और उसकी भावनाओं की सराहना की ओर बुलाता है। सब से पहला माता का है, माता, त्याग प्रेम व बलिदान का साक्षात रूप होती है। इसी लिए जब माता या माता पिता के अधिकारों की बात होती है तो ईश्वरीय मार्गदर्शक सब से पहले माता के अधिकारों पर ध्यान दिये जाने पर बल देते हैं। क्योंकि माता का स्थान, प्रशिक्षण में केन्द्रीय स्थान होता है। वह ईश्वर की कृपा की वर्षा का रूप होती है और उसके इस स्थान को सभी धर्मों में स्वीकार किया गया है। उसके बाद बहन का पद है। भाई के लिए बहन का प्रेम अदभुत होता है । तीसरा पद पत्नी का होता है जो वास्तव में अत्याधिक महत्वपूर्ण होता है। एक महिला, विवाह के ईश्वरीय आदेश का पालन करते हुए वास्तव में अपना सब कुछ दांव पर लगा देती है और एक एसे जीवन में क़दम रखती है जिसके बारे में उसे कुछ ही पता नहीं होता है कि आगे क्या होने वाला है। यह महान आत्मा व त्याग का प्रदर्शन है। चौथा पद बेटी का होता है। माता पिता से बेटी के असीम प्रेम को किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है । इन भावनाओं और त्याग व बलिदान का क्या मूल्य हो सकता है? हाजियों को महिला की इन पवित्र भावनाओं का सम्मान करना होता है।
इस प्रकार से महिलाओं के बारे में इस्लामी दृष्टिकोण अत्याधिक व्यापक और विशेष हैं और उसमें महिलाओं की राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व सामाजिक भूमिकाओं को महत्व दिया गया है। महिलाओं के विषय में जो वस्तु इस्लाम को अन्य मतों से भिन्न करती है वह उनके सम्मान की रक्षा के लिए उसमें मौजूद अंतर व भिन्नता की विचारधारा है । यह अंतर व भिन्नता भेदभाव के अर्थ में कदापि नहीं है । हज ने हज़रत हाजेरा व हज़रत इब्राहीम के काल से लेकर अब तक महिलाओं और पुरुषों को समान अधिकार प्रदान किये हैं और दोनों के मानवीय व लैंगिक पहलुओं पर पूरी तरह से ध्यान दिया है। हज आज भी एक एसा उत्सव व कार्यक्रम है जहां महिलाओं को, सामाजिक स्तर पर नये अनुभव व अन्य लोगों के साथ व्यवहार की शैली सीखने की ओर बुलाया जाता है। इसी लिए हज महिलाओं के अधिकारों की रक्षा और उनकी योग्यताओं में विकास के लिए कुरआन की संस्कृति के पुनर्जगारण का एक अवसर समझा जाता है।
(एरिब डाट आई आर के धन्यवाद के साथ)
बिस्मिल लाहिर रहमानिर रहीम
अल्लाहोम्मा सल्ले अला मोहम्मदीन व आले मोहम्मद
ऐ अल्लाह मै तुझ से इल्तेजा करता हूँ, तुझे तेरी उस रहमत का वास्ता जो हर चीज़ को घेरे हुए है, तेरी उस कुदरत का वास्ता जिस से तू हर चीज़ पर ग़ालिब है, जिस के सबब हर चीज़ तेरे आगे झुकी है और जिस के सामने हर चीज़ आजिज़ है, तेरी इस जब्र्रुत का वास्ता जिस से तू हर चीज़ पर हावी है, तेरी इस इज्ज़त का वास्ता जिस के आगे कोई चीज़ ठहर नहीं पाती, तेरी उस अजमत का वास्ता जो हर चीज़ से नुमाया है, तेरी उस सल्तनत का वास्ता जो हर चीज़ पर कायेम है, तेरी उस ज़ात का वास्ता जो हर चीज़ के फ़ना हो जाने के बाद भी बाकी रहेगी, तेरे उन नामो का वासता जिन के असरात ज़र्रे ज़र्रे में तारी व सारी हैं, तेरे उस इल्म का वास्ता जो हर चीज़ का अहाता किये हुए हैं, तेरी ज़ात के उस नूर का वास्ता जिस से हर चीज़ रोशन है!
ऐ हकीकी नूर! ऐ पाक व पाकीज़ा! ए सब पहलों से पहले, ऐ सब पिछलो से पिछले ( ए अल्लाह मेरे सब गुनाह माफ़ कर दे जो अताब का मुस्तहक बनाते हैं! ऐ अल्लाह! मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जिन की वजह से बालाएं आती हैं! ऐ अल्लाह मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जो तेरी नेमतों से महरूमी का सबब बनते हैं! ऐ अल्लाह, मेरे वोह सब गुनाह बख्श दे जो दुआएं कबूल नहीं होने देते! ए अल्लाह, मेरे वोह सब गुनाह माफ़ कर दे जो मुसीबत लाते हैं! ऐ अल्लाह, मेरी इन सारी खाताओं से दर गुज़र कर जो मैंने जान बूझ कर या भूले से की हैं! ए अल्लाह, मैं तुझे याद करके तेरे करीब आना चाहता हूँ! तेरी जनाब में तुझी को अपना सिफारशी ठहराता हूँ, और तेरे करम का वास्ता दे कर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मुझे अपना कुर्ब अता कर) मुझे अदाए शुक्र की तौफीक दे और अपनी याद मेरे दिल में डाल दे!
ऐ अल्लाह, मैं तुझ से खोज़ू व खुशू और गिरया व ज़ारी से अर्ज़ करता हूँ के तू मेरी भूल चूक माफ़ कर, मुझ पर रहम फार्म और तू में मेरा जो हिस्सा मुक़र्रर किया है, मुझे इस पर राज़ी, काने और हर हाल में मुतमईन रख! ए अल्लाह, मै तेरे हजूर में इस शख्स की मानिंद सवाल करता हूँ जिस पर सख्त फाके गुज़र रहे हों, जो मुसीबतों से तंग आकर अपनी ज़रुरत तेरे सामने पेश करे, जो तेरे लुत्फो करम का ज्यादा से ज्यादा खाहिश्मंद हो! ऐ अल्लाह, तेरी सल्तनत बहुत बड़ी है, तेरा रुतबा बहुत बुलंद है, तेरी तदबीर पोशीदा है, तेरा हुकुम साफ़ ज़ाहिर है, तेरा कहर ग़ालिब है, तेरी कुदरत कार फरमा है, और तेरी हुकूमत से निकल जाना मुमकिन नहीं है! ऐ अल्लाह, मेरे गुनाह बख्शने, मेरे ऐब ढाँकने और मेरे किसी बुरे अमल को अच्छे अमल से बदलने वाला तेरे सिवा कोई नहीं है! तेरे इलावा और कोई माबूद नहीं है! तू पाक है, और मै तेरी ही हम्दोसेना करता हूँ!
मैं ने अपनी ज़ात पर ज़ुल्म किया और अपनी नादानी के बाएस बेग़ैरत बन गया! मै यह सोच कर मुतमईन हो गया के तू ने मुझे पहले भी याद रखा और अपनी नेमतों से नवाज़ा है! ऐ अल्लाह, ऐ मेरे मालिक, तू ने मेरी कितनी ही बुराईयों की परदापोशी की, कितनी ही सख्त बालाओं को मुझ से टाला, कितनी ही नाज़िशों से मुझ को बचाया, कितनी ही आफतों को रोका! और मेरी कितनी ही ऐसी खूबियाँ लोगो में मशहूर कर दीं जिन का मै अहल भी ना था! ऐ अल्लाह, मेरी मुसीबत बढ़ गयी है, मेरी बदहाली हद से गुज़र गयी है, मेरे नेक अमाल कम हैं, दुनयावी तालुक्कात के बोझ ने मुझ को दबा रखा है, मेरी उम्मीदों की दराजी ने मुझे नफा से महरूम कर रखा है, दुनिया ने अपनी झूटी चमक दमक से मझे धोका दिया है, और मेरे नफस ने मझे मेरे गुनाहों और मेरी टाल मटोल के बाअस फरेब दिया है! ऐ मेरे आका अब मै तेरी इज्ज़त का वास्ता दे कर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मेरी बदअमालियाँ और ग़लतकारियां मेरी दुआ के कबूल होने में रुकावट ना बने!
मेरे जिन भेदों से तू वाकिफ है इन की वजह से मुझे रुसवा ना करना, मै ने अपनी तन्हाईयों में जो बदी, बुराई और मुसलसल कोताही की है और नादानी, बढ़ी हुई खाहिशाते नफस और गफलत के सबब जो काम किये हैं मुझे उनकी सजा देने में जल्दी ना करना! ऐ अल्लाह, अपनी इज्ज़त के तुफैल हर हाल में मुझ पर मेहरबान रहना, और मेरे तमाम मामलात में मुझ पर करम करते रहना! ऐ मेरे अल्लाह, ऐ मेरे परवरदिगार, तेरे सिवा मेरा कौन है जिस से मै अपनी मुसीबत को दूर करने और अपने बारे में नज़रे करम करने का सवाल करूँ! ऐ मेरे माबूद और मेरे मालिक, मै ने खुद अपने खिलाफ फैसला दे दिया क्योंके मै हवाए नफस के पीछे चलता रहा और मेरे दुश्मन ने जो मुझे सुनहरे खाव्ब दिखाए मै ने इन से अपना बचाओ नहीं किया, चुनान्चेह इस ने मुझे खाहिशात के जाल में फंसा दिया, इस में मेरी तकदीर ने भी इस की मदद की! इस तरह मै ने तेरी मुक़र्रर की हुई बाज़ हदें तोड़ दीं और तेरे बाज़ अहकाम की नाफ़रमानी की!
बहरहाल तू हर तारीफ़ का मुस्तहक है और जो कुछ पेश आया इस में खता मेरी ही है! इस बारे में तुने जो फैसला किया, तेरा जो हुक्म जारी हुआ और तेरी तरफ से मेरी जो आजमाईश हुई इस के खिलाफ मेरे पास कोई उज्र नहीं है! ऐ मेरे माबूद, मै ने अपनी इस कोताही और अपने नफस पर ज़ुल्म के बाद माफ़ी मांगने के लिए हाज़िर हुआ हूँ! मै अपने किये पर शर्मसार हूँ, दिल शिकस्ता हूँ, मै अपने करतूतों से बाज़ आया, बक्शीश का तलबगार हूँ, पशेमानी के साथ तेरी जनाब में हाज़िर हूँ, जो कुछ मुझ से सरज़द हो चूका, उस के बाद मेरे लिए ना कोई भागने की जगह है और ना कोई ऐसा मददगार जिस के पास मै अपना मामला ले जाऊं! सिर्फ यही है के तू मेरी माज़रत कबूल कर ले, मुझे अपने दामने रहमत में जगह देदे! ऐ मेरे माबूद, मेरी माफ़ी की दरखास्त मंज़ूर कर ले, मेरी सख्त बदहाली पर रहम कर और मेरी गिरह कुशाई फर्मा दे! ऐ मेरे परवरदिगार, मेरे जिस्म की नातवानी, मेरी जिल्द की कमजोरी और मेरी हड्डियों की नाताक़ती पर रहम कर!
ऐ वोह ज़ात जिस ने मुझे वजूद बख्शा, मेरा ख्याल रखा, मेरी परवरिश का सामान किया, मेरे हक में बेहतर की और मेरे लिए ग़ज़ा के असबाब फराहम किये! बस जिस तरह तू ने इस से पहले मुझ पर करम किया और मेरे लिए बेहतरी के सामन किये, अब भी मुझ पर वो पहला सा फज़ल व करम जारी रख! ऐ मेरे माबूद, मेरे मालिक, ऐ मेरे परवरदिगार, मै हैरान हूँ के क्या तू मुझे अपनी आतिशे जहन्नम का अज़ाब देगा हालांकि मै तेरी तौहीद का इकरार करता हूँ, मेरा दिल तेरी मार्फ़त से सरशार है, मेरी ज़बान पर तेरा ज़िक्र जारी है, मेरे दिल में तेरी मुहब्बत बस चुकी है और मै तुझे अपना परवरदिगार मान कर सच्चे दिल से अपने गुनाहों का एतेराफ करता हूँ, और गिडगिडा कर तुझ से दुआ मांगता हूँ! नहीं ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि तेरा करम इस से कहीं बढ़ कर है के तू इस शख्स को बेसहारा छोड़ दे जिसे तुने खुद पाला हो या उसे अपने से दूर कर दे जिसे तू ने खुद अपना कुर्ब बख्शा हो या उसे अपने यहाँ से निकाल दे जिसे तुने खुद पनाह दी हो, या उसे बालाओं के हवाले कर दे जिस का तुने खुद ज़िम्मा लिया हो और जिस पर रहम किया हो, यह बात मेरी समझ में नहीं आती!
ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे मौला, क्या तू आतिशे जहन्नम को मुसल्लत कर देगा इन चेहरों पर जो तेरी अजमत के बायेस तेरे हजूर में सज्दारेज़ हो चुके हैं, इन ज़बानों पर जो सिद्क़ दिल से तेरी तौहीद का इकरार करके शुक्रगुजारी के साथ तेरी मधा कर चुकी हैं, इन दिलों पर जो वाकई तेरे माबूद होने का ऐतेराफ कर चुके हैं, इन दिमागों पर जो तेरे इल्म से इस कद्र बहरावर हुए के तेरे हुज़ूर में झुके हुए हैं या इन हाथ पाँव पर जो इताअत के जज्बे के साथ तेरी इबादतगाहों की तरफ दौड़ते रहे और गुनाहों के इकरार करके मग्फेरत तलब करते रहे? ऐ रब्बे करीम, ना तो तेरी निस्बत ऐसा गुमान ही किया जा सकता है और ना ही तेरी तरफ से हमें ऐसी कोई खबर दी गयी है! ऐ मेरे पालने वाले तू मेरी कमजोरी से वाकिफ है, मुझ में इस दुनिया की मामूली आज्मायीशों, छोटी छोटी तकलीफों और इन सख्तियों को बर्दाश्त करने की ताब नहीं जो अहले दुनिया पर गुज़रती हैं हालांकि वोह आजमाईश, तकलीफ और सख्ती मामूली होती है और इस की मुद्द्त भी थोड़ी होती है, फिर भला मुझ से आखेरत की ज़बरदस्त मुसीबत क्योंकर बर्दाश्त हो सकेगी, जब की वहां की मुसीबत तूलानी होगी और इस में हमेशा हमेशा के लिए रहना होगा और जो लोग इस में एक मर्तबा फँस जायेंगे इन के अज़ाब में कभी कमी नहीं होगी क्योंकि वो अज़ाब तेरे गुस्से, इंतकाम और नाराजगी के सबब होगा जिसे ना आसमान बर्दाश्त कर सकता है ना ज़मीन! ऐ मेरे मालिक, फिर ऐसी सूरत में मेरा क्या हाल होगा जबकि मै तेरा एक कमज़ोर, अदना, लाचार, और आजिज़ बंदा हूँ ! ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे मौला, मै तुझ से किस किस बात पर नाला व फरयाद और आहोबुका करूँ? दर्दनाक अज़ाब और इसकी सख्ती पर या मुसीबत और इस की तवील मीयाद पर! बस अगर तू ने मुझे अपने दुश्मनों के साथ अज़ाब में झोंक दिया और मुझे इन लोगों में शामिल कर दिया जो तेरी बालाओं के सज़ावार हैं और अपने अहिब्बा और औलिया के और मेरे दरम्यान जुदाई डाल दी तो ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे मालिक, ऐ मेरे मौला, ऐ मेरे परवरदिगार, मै तेरे दिया हुए अज़ाब पर अगर सब्र भी कर लूं तो तेरी रहमत से जुदाई पर क्योंकर सब्र कर सकूंगा? इस तरह अगर मै तेरे आग की तपिश बर्दाश्त भी कर लूं तो तेरी नज़रे करम से अपनी महरूमी को कैसे बर्दाश्त कर सकूंगा और इस के इलावा मै आतिशे जहन्नुम में क्योंकर रह सकूंगा जबके मुझे तो तुझ से माफ़ी की तवक्का है. बस ऐ मेरे आका, ऐ मेरे मौला, मै तेरी इज्ज़त की सच्ची क़सम खा कर कहता हूँ के अगर तू ने वहां मेरी गोयाई सलामत रखी तो मै अहले जहन्नम के दरम्यान तेरा नाम लेकर तुझे इस तरह पुकारूँगा जैसे करम के उम्मेदवार पुकारा करते हैं, मै तेरे हुज़ूर में इस तरह आहोबुका करूंगा जैसे फरयाद किया करते हैं और तेरी रहमत के फ़िराक में इस तरह रोवूँगा जैसे बिछुड़ने वाले रोया करते हैं! मैं तुझे वहां बराबर पुकारूंगा के तू कहाँ है ऐ मोमिनो के मालिक, ऐ आरिफों की उम्मीदगाह, ऐ फर्यादीयों के फरयादरस, ऐ सादिकों के दिलों के महबूब, ऐ इलाहिल आलमीन, तेरी ज़ात पाक है, ऐ मेरे माबूद, मै तेरी हम्द करता हूँ!
मैं हैरान हूँ की यह क्योंकर होगा की तू इस आग में से एक मुस्लिम की आवाज़ सुने जो अपनी नाफ़रमानी की पादाश में इस के अंदर क़ैद कर दिया गया हो, अपनी मुसीबत की सजा में इस अज़ाब में गिरफ्तार हो और जुर्मो खता के बदले में जहन्नुम के तबकात में बंद कर दिया गया हो मगर वोह तेरी रहमत के उम्मीदवार की तरह तेरे हुज़ूर में फरयाद करता हो, तेरी तौहीद को मानने वालों की सी जुबान से तुझे पुकारता हो और तेरी जनाब में तेरी रबूबियत का वास्ता देता हो! ऐ मेरे मालिक, फिर वो इस अज़ाब में कैसे रह सकेगा जबके इसे तेरी गुज़िश्ता राफ्त ओ रहमत की आस बंधी होगी या आतिशे जहन्नम उसे कैसे तकलीफ पहुंचा सकेगा जबके उसे तेरी फज़ल और तेरी रहमत का आसरा होगा या इस को जहन्नम का शोला कैसे जला सकेगा जबकि तू खुद इस की आवाज़ सुन रहा होगा और जहाँ वो है तू इस जगह को देख रहा होगा या जहन्नुम का शोर उसे क्योंकर परेशान कर सकेगा, जबकि तू इस बन्दे की कमजोरी से वाकिफ होगा या फिर वो जहन्नुम के तबकात में क्योंकर तड़पता रहेगा जबकि तू इस की सच्चाई से वाकिफ होगा या जहन्नुम की लपटें इस को क्योंकर परेशान कर सकेंगी जबकि वो तुझे पुकार रहा होगा! ऐ मेरे परवरदिगार, ऐसे क्योंकर मुमकिन है के तू वो तो जहन्नुम के निजात के लिए तेरे फज्लो करम की आस लगाये हुए हो और तू उसे जहन्नुम ही में पड़ा रहने दे! नहीं, तेरी निस्बत ऐसा गुमान नहीं किया जा सकता, ना तेरे फज़ल से पहले कभी ऐसी सूरत पेश आयी और ना ही यह बात इस लुत्फो करम के साथ मेल खाती है जो तू तौहीद परस्तों के साथ रवा रखता रहा है, इस लिए मै पुरे यकीन के साथ कहता हूँ के अगर तुने अपने मुन्कीरों को अज़ाब देने का हुक्म ना दे दिया होता और इनको हमेशा जहन्नुम में रखने का फैसला ना कर लिया होता तो तू ज़रूर आतिशे जहन्नुम को ऐसा सर्द कर देता के वो आरामदेह बन जाती और फिर किसी भी शख्स का ठिकाना जहन्नुम ना होता लेकिन खुद तू ने अपने पाक नामो की क़सम खाई है के तू तमाम काफिर जिन्नों और इंसान से जहन्नुम भर देगा और अपने दुश्मनों को हमेशा के लिए इसमें रखेगा! तू जो बहुत ज्यादा तारीफ के लायेक है और अपने बन्दों पर एहसान करते हुए अपनी किताब में पहले ही फरमा चुका है : "क्या मोमिन, फ़ासिक़ के बराबर हो सकता है? नहीं, यह कभी बाहम बराबर नहीं हो सकते"! ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे मालिक, मै तेरी इस कुदरत का जिस से तुने मौजूदात की तकदीर बनाई, तेरे इस हतमी फैसले का जो तू ने सादिर किये हैं और जिन पर तू ने इन को नाफ़िज़ किया है इन पर तुझे काबू हासिल है! वास्ता देकर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के हर वो जुर्म जिस का मै मुर्तकिब हुआ हूँ और हर वो गुनाह जो मैंने किया हो, हर वो बुराई जो मैंने छुपा कर की हो और हर वो नादानी जो मुझ से सरज़द हुई हो, चाहे मैंने उसे छुपाया हो या ज़ाहिर किया हो, पोशीदा रखा हो या अफशा किया हो इस रात 1 और ख़ास कर इस साअत में बख्श दे. मेरी हर ऐसी बदअमली को माफ़ करदे जिस को लिखने का हुक्म तुने किरामन कातेबीन को दिया हो, जिन को तुने मेरे हर अमल की निगरानी पर मामूर किया है और जिन को मेरे अजा व जवारेह के साथ साथ मेरे अमाल का गवाह मुक़र्रर किया है, फिर इन से बढ़ कर तू खुद मेरे अमाल के निगरान रहा है और इन बातों को भी जानता है जो इन की नज़र से मख्फी रह गयीं और जिन्हें तुने अपनी रहमत से छुपा लिया और जिन पर तुने अपने करम से पर्दा डाल दिया! ऐ अल्लाह, मै तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मुझे ज्यादा से ज्यादा हिस्सा दे हर इस भलाई से जो तेरी तरफ से नाज़िल हो, हर उस एहसान से जो तू अपने फज़ल से करे, हर उस नेकी से जिसे तू फैलाये, हर उस रिजक से जिस में तू वुसअत दे, हर उस गुनाह से जिसे तू माफ़ करदे, हर उस ग़लती से जिसे तू छुपा ले! ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे माबूद, ऐ मेरे आका, ऐ मेरे मौला, ऐ मेरे जिस्मो जान के मालिक, ऐ वो ज़ात जिसे मुझ पर काबू हासिल है, ऐ मेरी बदहाली और बेचारगी को जान्ने वाले, ऐ मेरे फिकरो फाका से आगही रखने वाले, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, मै तुझे तेरी सच्चाई और तेरी पाकीजगी, तेरी आला सेफात और तेरे मुबारक नामो का वासता देकर तुझ से इल्तेजा करता हूँ के मेरे दिन रात के औकात को अपनी याद से मामूर कर दे के हर लम्हा तेरी फरमाबरदारी में बसर हो, मेरे अमाल को कबूल फर्मा , यहाँ तक के मेरे सारे आमाल और अज्कार की एक ही लए हो जाए और मुझे तेरी फरमाबरदारी करने में दवाम हासिल हो जाए! ऐ मेरे आका, ऐ वो ज़ात जिस का मुझे आसरा है और जिस की सरकार में, मै अपनी हर उलझन पेश करता हूँ! ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, ऐ मेरे परवरदिगार, मेरे हाथ पाँव में अपनी इताअत के लिए कुवत दे, मेरे दिल को नेक इरादों पर कायेम रहने की ताक़त बख्श, और मुझे तौफीक दे के मै तुझ से करार, वाकई डरता रहूँ और हमेशा तेरी इताअत में सरगर्म रहूँ ताकि मै तेरी तरफ सबक़त करने वालों के साथ चलता रहूँ, तेरी सिम्त बढ़ने वालों के हमराह तेज़ी से क़दम बढाऊँ, तेरी मुलाक़ात का शौक़ रखने वालो की तरह तेरा मुश्ताक रहूँ, तेरे मुखलिस बन्दों की तरह तुझ से नज़दीक हो जाऊं, तुझ पर यकीन रखने वालों की तरह तुझ से डरता रहूँ, और तेरे हुज़ूर में जब मोमिन जमा हों मै उन के साथ रहूँ! ऐ अल्लाह, जो शख्स मुझ से कोई बदी करने का इरादा करे, तू उसे वैसी ही सज़ा दे और जो मुझ से फरेब करे तू उस को वैसी ही पादाश दे! मुझे अपने उन बन्दों में करार दे जो तेरे यहाँ से सबसे अच्छा हिस्सा पाते हैं जिन्हें तेरी जनाब में सबसे ज्यादा तक़र्रुब हासिल है और जो ख़ास तौर से तुझ से ज्यादा नज़दीक हैं क्योंकि यह रूतबा तेरे फज़ल के बग़ैर नहीं मिल सकता! मुझ पर अपना ख़ास करम कर और अपनी शान के मुताबिक मेहरबानी फर्मा ! अपनी रहमत से मेरी हिफाज़त कर, मेरी ज़बान को अपने ज़िक्र में मशगूल रख, मेरे दिल को अपनी मुहब्बत की चाशनी अता कर, मेरी दुआएं कबूल करके मुझ पर एहसान कर, मेरी खताएं माफ़ करदे और मेरी नाज़िशें बख्श दे! चूंके तुने अपने बन्दों पर अपनी इबादत वाजिब की है, इन्हें दुआ मांगने का हुक्म दिया है और इनकी दुआएं कबूल करने की ज़िम्मेदारी ली है, इसलिए ऐ परवरदिगार, मै ने तेरी ही तरफ रुख किया है और तेरे ही सामने अपना हाथ फैलाया है! बस अपनी इज्ज़त के सदके में मेरी दुआ कबूल फरमा और मुझे मेरी मुराद को पहुंचा! मुझे अपने फजल ओ करम से मायूस ना कर, और जिन्नों और इंसानों में से जो भी मेरे दुश्मन हों मुझ को इन के शर से बचा! ऐ अपने बन्दों से जल्दी राज़ी हो जाने वाले, इस बन्दे को बख्श दे जिस के पास दुआ के सिवा कुछ नहीं, क्योंकि तू जो चाहे कर सकता है, तू ऐसा है जिस का नाम हर मर्ज़ की दवा है, जिस का ज़िक्र हर बीमारी से शिफा है, और जिस की इताअत सबे बेनेयाज़ कर देने वाली है, इस पर रहम कर जिस की पूंजी तेरा आसरा और जिस का हथियार रोना है! ऐ नेमतें अता करने वाले, ऐ बलाएँ टालने वाले, ऐ अंधेरों से घबराये हुओं के लिए रोशनी, ऐ वो आलिम जिसे किसी ने तालीम नहीं दी, मुहम्मद (सा) और आले मुहम्मद (सा) पर दरूद ओ सलाम भेज और मेरे साथ वो सुलूक कर जो तेरे शायाने शान हो!