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इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने एकता पर बल दिया
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईदे फित्र की नमाज़ से पहले दिये दिये अपने भाषण में एकता पर बल दिया है। वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई ने तेहरान में इस्लामी व्यवस्था के अधिकारियों, इस्लामी देशों के राजदूतों और जनता के विभिन्न वर्गों से भेंट में कहा कि इस्लामी राष्ट्रों के मध्य एकता इस्लामी जगत के शत्रुओं के षडयंत्रों के मुक़ाबले का महत्वपूर्ण कारक है। वरिष्ठ नेता ने इस्लामी देशों के हालिया परिवर्तनों और मुसलमानों के मध्य फूट डालने हेतु शत्रुओं के षडयंत्रों की ओर संकेत करते हुए कहा कि ईश्वर पर ईमान और एकता, फूट से बचने के दो महत्वपूर्ण कारक हैं। इसी प्रकार वरिष्ठ नेता ने बल देकर कहा कि यही दोनों चीज़ें, राष्ट्रों के प्रतिरोध की भी शक्ति हैं। वरिष्ठ नेता ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि जितना हो सके ईश्वर पर ईमान और एकता पर भरोसा करें। उन्होंने कहा कि काश इस्लामी देशों के अधिकारी भी इन बिन्दुओं पर ध्यान देते। टयूनीशिया, मिस्र और यमन जैसे देशों में इस्लामी जगत के शत्रुओं के फूट डालने हेतु षडयंत्रों को भली -भांति देखा जा सकता है। जनवरी वर्ष २०११ में मिस्र की जनक्रांति सफल हुई और मिस्र के पूर्व तानाशाह हुस्नी मुबारक की कठपुतली सरकार का भी अंत हो गया जिससे अमेरिका और जायोनी शासन बौखला गये और वे मिस्र की जनक्रांति को उसके सही मार्ग से हटाने के लिए नाना प्रकार के षडयंत्र आरंभ कर दिये। उनका सबसे महत्वपूर्ण हथकंडा फूट डालना रहा है। यह वह षडयंत्र है जिसका प्रयोग वे हर उस देश व स्थान पर करते हैं जहां उनके हित ख़तरे में पड़ जाते हैं। इस समय, जबकि मिस्र में हिंसात्मक झड़पें जारी हैं, मिस्री जनता के मध्य फूट डालना आग में घी डालने के समान है। यही नहीं कुछ देशों एवं शासनों ने मिस्र के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके मिस्र को गृहयुद्ध की कगार पर पहुंचा दिया है। इस प्रकार की स्थिति में ईश्वर पर ईमान और एकता वे कारक हैं जिनसे न केवल शत्रुओं के षडयंत्रों पर पानी फिर सकता है बल्कि इस्लामी जगत की बहुत सी समस्याओं का समाधान भी हो सकता है और ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता के बयान को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है।
ईरान के साथ संबन्ध विस्तार के इच्छुक हैं- ममनून हुसैन
पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने ईरान के साथ संबन्ध विस्तार पर बल दिया है। ममनून हुसैन ने शनिवार को कराची में इस्लामी गणतंत्र ईरान के काउन्सलेट के साथ भेंट में विभिन्न क्षेत्रों में ईरान के साथ संबन्ध विस्तार पर बल दिया है। ममनून हुसैन ने मेहदी सुब्हानी के साथ भेंट में कहा कि इस बात के दृष्टिगत कि ईरान के साथ पाकिस्तान के संबन्ध विस्तार, इस्लामाबाद के लिए महत्वपूर्ण हैं, हम तेहरान के साथ विभिन्न क्षेत्रों में सहकारिता और संबन्ध विस्तार के लिए अधिक से अधिक प्रयास करेंगे। पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा कि वे निकट भविष्य में ईरान की यात्रा करके वहां के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ संबन्ध विस्तार पर चर्चा करेंगे। कराची में ईरान के काउन्सलेट ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति के साथ अपनी भेंटवार्ता को सकारात्मक बताया।
पाकिस्तान ने पुनः युद्धविराम का उल्लंघन कियाः भारत
भारत ने पाकिस्तान पर पुनः युद्ध विराम का आरोप लगाया है। भारत का कहना है कि पाकिस्तान की ओर से शुक्रवार देर रात लगभग ग्यारह बजे पुनः पुंछ सेक्टर में गोलीबारी की गई। भारत के रक्षा प्रवक्ता ने कहा है कि चक्कन दां बाग क्षेत्र में भारतीय सीमा पर बनी पांच चौकियों पर पाकिस्तान की ओर से फायरिंग की गई। रक्षा विभाग के अनुसार इस दौरान पाकिस्तान की ओर से करीब सात हजार राउंड फायरिंग की गई। पुंछ में एलओसी पर स्थित दिगवार सेक्टर के अग्रिम सैन्य व नागरिक ठिकानों पर युद्धविराम का उल्लंघन करते हुए यह गोलाबारी की गई। यह गोलीबारी रात ११ बजे आरंभ हुई जो शनिवार की सुबह तक जारी रही। पाकिस्तान की ओर से ऑटोमैटिक हथियारों का इस्तेमाल किया गया। भारतीय चौकी पर मौजूद दुर्गा बटालियन के जवानों ने भी इस हमले का जवाब दिया। हालांकि इस फायरिंग में किसी भारतीय जवान के घायल होने की कोई खबर नहीं है। ज्ञात रहे कि पिछले दिनों पुंछ में पांच भारतीय सैनिकों की हत्या के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच शुक्रवार को पाकिस्तानी सेना ने एक बार फिर युद्धविराम का उल्लंघन किया।
विज्ञान के क्षेत्र का विकास आर्थिक व राजनैतिक उन्नति की भूमिका
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा है कि ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र का विकास आर्थिक व राजनैतिक उन्नति की भूमि समतल करता है।
इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने विश्वविद्यालयों के सैकड़ों शिक्षकों से मुलाक़ात में कहा कि इस प्रकार की मुलाक़ात एक सांकेतिक क़दम है जिसका उद्देश्य शिक्षक और विश्वविद्यालयों के महत्व को चिन्हित करता है जबकि इन मुलाक़ातों में विश्वविद्यालयों के शिक्षकों की बातें सुनने और विश्वविद्यालयों से जुड़े मामलों से अवगत होने का अवसर मिलता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि १२ वर्ष पूर्व देश में ज्ञान आंदोलन आरंभ हुआ जिसका का उद्देश्य ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में नई खोज और नई उपलब्धियां अर्जित करना था और यह आंदोलन आज भी निरंतरता से जारी है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने ईरान के इस आंदोलन तथा इसकी उपलब्धियों की बात स्वीकार की है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने कहा कि इन संस्थाओं के आंकड़ों के अनुसार ईरान ने इन बारह वर्षों के दौरान विज्ञान के क्षेत्र में 16 गुना अधिक विकास किया है और यदि इसी गति से यह विकास जारी रहा तो आने वाले पांच वर्षों में ईरान विश्व में चौथा स्थान प्राप्त कर लेगा।
हुसैनी आंदोलन
दसवीं मोहर्रम की घटना, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, उनका चेहलुम और अन्य धार्मिक अवसर इस्लामी इतिहास का वह महत्वपूर्ण मोड़ हैं जहां सत्य और असत्य का अंतर खुलकर सामने आ जाता है। इमाम हुसैन के बलिदान से इस्लाम धर्म को नया जीवन मिला और तथा इस ईश्वरीय धर्म के प्रकाशमान दीप को बुझा देने पर आतुर यज़ीदियत को निर्णायक पराजय मिली। इस घटना में अनगिनत सीख और पाठ निहित हैं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने विभिन्न अवसरों पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन से मिलने वाली और नसीहतों पर प्रकाश डाला है। कार्यक्रम मार्गदर्शन के अंतर्गत हम हुसैनी आंदोलन से मिलने वाली सीख और नसीहतों को पेश करेंगे।
आपको याद दिलाते चलें कि कार्यक्रम मार्गदर्शन इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई के भाषणों से चयनित खंडों पर आधारित है।
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इमाम हुसैन के चेहलुम से हमें यह सीख मिलती है कि दुशमनों के विषैले प्रचारों के तूफ़ान के सामने सत्य और शहादत की याद को जीवित रखा जाना चाहिए। आप देखिए! ईरान की क्रान्ति से आज तक इमाम ख़ुमैनी, इस्लामी क्रान्ति, इस्लाम और ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध कितने व्यापक स्तर पर प्रौपगंडे होते रहे हैं। शत्रुओं ने हमारे शहीदों के विरुद्ध प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से रेडियो, टीवी, समाचार पत्रों और पत्रिकाओं के माध्यम से सीधे सादे लोगों के मन मस्तिष्क में कैसी कैसी बातें भर दीं? यहां तक कि हमारे देश के भीतर भी कुछ नादान लोग युद्ध के उन हंगामों के दौरान एसी बात कह देते थे जो ज़मीनी स्थिति से अनभिज्ञता का परिणाम होती थी। अब यदि इन प्रोपैगंडों के मुक़ाबले में सच्चाई को बयान न किया जाए, सत्य को सामने न लाया जाए और यदि ईरान जनता, हमारे वक्ता तथा बुद्धिजीवी और कलाकार सत्य के प्रचार प्रसार के लिए स्वयं को समर्पित न कर देंगे तो शत्रु प्रोपैगंडे के मैदान में सफल हो जाएगा। प्रोपगंडे का मैदान बहुत बड़ा और ख़तरनाक है। हमारी जनता की बड़ी संख्या क्रान्ति से मिलने वाली चेतना के कारण शत्रुओं के विषैले प्रचारों से सुरक्षित है। शत्रु ने इतने झूठ बोले और आंखों के सामने मौजूद तथ्यों के बारे में एसी ग़लत बातें कहीं कि जनता में विश्व प्रचारिक तंत्र से विश्वास ख़त्म हो गया।
अत्याचारी यज़ीदी मशीनरी अपने प्रोपैगंडों में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को दोषी ठहराती थी और यह ज़ाहिर करती थी कि अली के सुपुत्र हुसैन वह थे जिन्होंने सांसारिक लोभ के लिए न्याय पर आधारित इस्लामी सरकार के विरुद्ध विद्रोह किया था और कुछ लोगों को इस प्रोपैगंडे पर विश्वास भी हो गया था। इसके बाद जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कर्बला के मैदान में मज़लूमियत के साथ शहीद कर दिए गए तो इसे यज़ीद की विजय की संज्ञा दी गई किंतु हुसैनी आंदोलन के सही प्रचार के कारण यह सारे प्रोपैगंडे विफल हो गए।
कर्बला हमारे लिए एक अमर आदर्श है। इसका संदेश है शत्रु की शक्ति के सामने इंसान अपने क़दमों में लड़खड़ाहट न पैदा होने दे। यह आज़माया हुआ नुसख़ा है। यह बात सही है कि इस्लाम के आरंभिक काल में इमाम हुसैन अपने बहत्तर साथियों के साथ शहीद कर दिए गए किंतु इसका यह अर्थ नहीं है कि जो भी इमाम हुसैन के रास्ते पर चले या जो भी संघर्ष करे उसे शहीद हो जाना चाहिए। नहीं, ईरानी जनता ईश्वर की कृपा से इमाम हुसैन के मार्ग को आज़मा चुकी है और गौरव एवं वैभव के साथ विश्व के राष्ट्रों के बीच मौजूद है। इस्लामी क्रान्ति की सफलता से पहले जो कारनामा आपने अंजाम दिया वह इमाम हुसैन का रास्ता था। इमाम हुसैन के मार्ग पर चलने का अर्थ है दुशमन से न डरना और शक्तिशाली शत्रु के सामने भी डट जाना। आठ वर्षीय युद्ध के दौरान भी एसा ही था। हमारी जनता समझती थी कि उसके मुक़ाबले में पूरब व पश्चिम की शक्तियां तथा पूरी साम्राज्यवादी व्यवस्था आ खड़ी हुई है किंतु ईरानी जनता भयभीत नहीं हुई। हमारे प्यारे शहीद हुए, कुछ लोग घायल होकर विकलांग हो गए, कुछ लोगों को वर्षों का समय शत्रु की जेल में गुज़ारना पड़ा किंतु देश इन बलिदानों की बदौलत वैभव एवं गौरव की चोटी पर पहुंच गया। इस्लाम की पताका और ऊंची हुई। यह सब कुछ संघर्ष का प्रतिफल है।
मोहर्रम और सफ़र महीने के दिनों में हमारी जनता को अपने भीतर संघर्ष, आशूरा, शत्रु के सामने निर्भीकता, ईश्वर पर आस्था व विश्वास तथा ईश्वर के मार्ग में बलिदान की भावना को और प्रबल बनाने का प्रयास करना चाहिए और इसके लिए इमाम हुसैन से सहायता मांगनी चाहिए। मजलिसों या शोक सभाओं का आयोजन इसलिए है कि हमारे दिल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके लक्ष्यों के निकट आएं। कुछ टेढ़ी सोच और संकीर्ण विचार के लोग यह न कहें कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम हार गए अतः उनके मार्ग पर चलने वाली ईरानी जनता को चाहिए कि अपनी जान की बलि दे दे। कौन नादान इस प्रकार की बातें कर सकता है? विश्व के राष्ट्रों को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से पाठ लेना चाहिए, आत्म विश्वास का पाठ लेना चाहिए, ईश्वर पर भरोसा रखने की सीख लेनी चाहिए और यह समझना चाहिए कि यदि शत्रु शक्तिशाली है तो उसकी यह शक्ति अधिक दिनों तक बाक़ी रहने वाली नहीं है। उसे यह जानना चाहिए कि यदि शत्रु का मोर्चा विदित रूप से बहुत बड़ा और व्यापक है तो वास्तव में उसकी शक्ति बहुत कम है। क्या आप देख नहीं रहे हैं कि कई साल से दुशमन इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था को समाप्त करने का प्रयास कर रहा है किंतु उसे सफलता नहीं मिल पाई है। यह उसकी कमज़ोरी और हमारी मज़बूती के अलावा और क्या है। हम शक्तिशाली हैं, हम इस्लाम की बरकत से मज़बूत हैं। हम अपने महान ईश्वर पर भरोसा और आस्था रखते हैं अर्थात हमारे साथ ईश्वरी शक्ति है और विश्व इस शक्ति के सामने टिक नहीं सकता।
यह बहुत महत्वपूर्ण बिंदु है, यह एक सीख है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इस्लामी इतिहास के अति संवेदनशील मोड़ पर विभिन्न महान ज़िम्मेदारियों के बीच अपने सबसे महत्वपूर्ण कर्तव्य का की पहचान और उसे पूरा करने में सफल हुए। उन्होंने उस बिंदु को परखा जिसकी उस काल में आवश्यकता थी और फिर बिना किसी हिचकिचाहट के अपने कर्तव्य को पूरा किया। हर युग में मुसलमानों की यह कमज़ोरी हो सकती है कि वह अपने असली कर्तव्य की पहचान में ग़लती कर बैठें और उन्हें यह पता न हो कि किस काम को प्राथमिकता प्राप्त है और उसे आवश्य करना है तथा समय आने पर दूसरे कार्यों की उस प्राथमिका काम की ख़ातिर उपेक्षा कर देनी है, उन्हें यह न पता हो कि कौन सा काम अधिक महत्वपूर्ण है और कौन सा काम दूसरे दर्जे का है, किस काम के लिए कितना प्रयास करना चाहिए?
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन के समय भी बहुत से एसे लोग थे कि यदि उनसे कहा जाता कि अब आंदोलन का समय आ गया है किंतु यदि उन्हें यह अंदाज़ा हो जाता कि इस आंदोलन में बहुत सी कठिनाइयां हैं तो वह दूसरे दर्जे के अपने कामों में व्यस्त रहते जैसा कि हम देखते हैं कि कुछ लोगों ने यही किया भी।
इमाम हुसैन के आंदोलन में शामिल न होने वालों में कुछ एसे लोग भी थे जो धर्म का पालन करते थे। एसा नहीं था कि वह सारे लोग दुनिया परस्त थे। उस समय के इस्लामी जगत में एसे महत्वपूर्ण लोग थे जो अपने कर्तव्य का निर्वाह करना चाहते थे किंतु कर्त्वय की उन्हें पहिचान नहीं थी, परिस्थितियों की समझ नहीं थी, उसली दुशमन को पहचान नहीं पा रहे थे, वह सबसे महत्वपूर्ण तथा प्राथमिक काम को छोड़ कर दूसरे दर्जे के कार्यों और दायित्वईं लीन थे। यह इस्लामी जगत के सामने बहुत बड़ा संकट था। आज भी हम इस प्रकार के संकट में फंस सकते हैं और अधिक महत्व वाले कामों को छोड़कर महत्वहीन कार्यों में उलझ सकते हैं। मूल कार्यों पर जिन पर समाज टिका हुआ हो ध्यान देना और उन्हें चिन्हिंत करना चाहिए। कभी हमारे इसी देश में साम्राज्यवाद और अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष की बातें होती थीं किंतु कुछ लोग इसे अपना दायित्व मानने को तैयार नहीं थे अतः दूसरे कार्यों में व्यस्त थे। यदि कोई व्यक्ति स्कूल चला रहा होता था या इसी प्रकार का कोई कल्याणकारी काम कर रहा होता था तो उसकी यह धारणा होती थी कि यदि उसने क्रान्तिकारी संघर्ष में हाथ बटाना शुरू कर दिया तो फिर उसका काम कौन करेगा। वह इतने महान संघर्ष को इन साधारण कार्यों के नाम पर छोड़ देता था ताकि अपने यह काम पूरे कर ले। अर्थात अनिवार्य तथा प्राथमिकता प्राप्त कार्य की पहिचान में वह ग़लती कर रहा था।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने व्याख्यानों से यह समझा दिया कि इन परिस्थितियों में इस्लामी जगत के लिए अत्याचारी शक्तियों और शैतानी हल्क़ों के विरुद्ध संघर्ष करके मनुष्यों को मुक्ति दिलाना सबसे अधिक महत्वपूर्ण और अनिवार्य है। स्पष्ट सी बात है कि यदि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम मदीने में ही रुके रहते तथा आम जन मानस के बीच इस्लामी नियमों और आस्था संबंधी सिद्धांतों की शिक्षा दीक्षा करते रहते तो निश्चित रूप से कुछ लोगों का प्रशिक्षण हो जाता किंतु जब अपने मिशन पर वह इराक़ की ओर बढ़े तो यह सारे काम छूट गए। अब वह लोगों को नमाज़ की शिक्षा नहीं दे सकते थे, पैग़म्बरे इस्लाम के कथनों से उन्हें अवगत नहीं करा सकते थे, अब वह अनाथों और विधवाओं की सहायता भी नहीं कर सकते थे। यह सारे एसे काम थे जिन्हें इमाम हुसैन अंजाम देते थे किंतु उन्होंने इन समस्त कार्यों को एक बहुत बड़े लक्ष्य पर क़ुरबान कर दिया। यहां तक कि हज जैसे महान संस्कार को भी जिसके बारे में सभी उपदेशक और प्रचारक बात करते हैं अपने इस मिशन पर निछावर कर दिया। वह मिशन क्या था? इमाम हुसैन ने स्वयं ही अपने इस मिशन के बारे में बताया कि मैं अच्छाइयों का आदेश देना, बुराइयों से रोकना तथा अपने नाना के मार्ग पर अग्रसर होना चाहता हूं। इमाम हुसैन ने अपने एक अन्य ख़ुतबे में कहा है कि हे लोगो पैग़म्बरे इस्लाम का कथन है कि जो व्यक्ति किसी अत्याचारी राजा को देखे जो ईश्वर की हराम की हुई चीज़ों को हलाल घोषित कर रहा हो, ईश्वर से किए गए वचन को तोड़ रहा हो और वह व्यक्ति अपने कथन अथवा व्यवहार से इस स्थिति को बदलने का प्रयास न करे तो ईश्वर को यह अधिकार है कि उस व्यक्ति को उसी अत्याचारी शासक के ठिकाने पर पहुंचाए। परिवर्तन से तात्पर्य यह है कि अत्याचारी शक्ति भ्रष्टाचार फैला रही है और मनुष्यों को भौतिक एवं आध्यात्मिक पतन की ओर ले जाना चाहती है। यही कारण है कि इमाम हुसैन के आंदोलन का। यही कारण था कि इमाम हुसैन ने अधिक महत्वपूर्ण दायित्व के निर्वाह का चयन किया तथा कम महत्व वाले दायित्वों को इस महान दायित्व पर निछावर कर दिया। आज भी यह स्पष्ट होना चाहिए कि अधिक महत्वपूर्ण काम क्या हैं? हर काल में इस्लामी समाज के विरुद्ध एक मोर्चा गतिविधियों में व्यस्त रहता है। शत्रु है, शत्रु का एक मोर्चा है जो इस्लामी जगत के लिए हमेशा ख़तरे उत्पन्न करता रहता है। इस मोर्चे की पहचान आवश्यक है। यदि हमनें शत्रु को पहचानने में ग़लती की तो, यदि हमने उन स्थानों के चिन्हिंत करने में ग़लती की जहां से हम पर हमले हो रहे हैं तो हमें एसा नुकसान पहुंच सकता है जिसकी पूर्ति संभव नहीं है, हम बहुत महत्वपूर्ण अवसरों से हाध धो सकते हैं।
मशहूर वाक्य है जिसके बारे में कहा जाता है कि इमाम हुसैन का कथन है कि जीवन का अर्थ है किसी लक्ष्य के लिए समर्पित हो जाना और फिर उसके लिए संघर्ष करना। इस्लाम मनुष्य को महान लक्ष्य से परिचित कराने और उन्हें महान लक्ष्यों के मार्ग पर अग्रसर करने के लिए आया है। अब यदि मनुष्य इस मार्ग पर एक क़दम भी आगे बढ़ाता है, निष्ठा के साथ संघर्ष करता है, बलिदान करता है तो यदि उसे कठिनाइयों का भी सामना करना पड़े तो भी वह खुश होता है। क्योंकि उसे यह आभास होता है कि उसने अपने दायित्व के अनुसार महान लक्ष्य की ओर क़दम बढ़ाया है और इस मार्ग पर चलते हुए संघर्ष किया है, यह प्रयास अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है जो उसे हमेश लक्ष्य के निकट ले जाता है। यह वही चीज़ है जिसने ईरानी जनता के आंदोलन को अस्तित्व दिया और आज भी यह संघर्ष जारी है। इस क्रान्ति और इस संघर्ष ने जिस लक्ष्य का निर्धारण किया था वह एसा था जिस का फ़ायदा पूरी मानवता को प्राप्त होता है। वह लक्ष्य विश्व स्तर पर और सीमित क्षेत्र में एक देश के स्तर पर अत्याचार और भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष था और इसका लक्ष्य यह भी था कि मानवता के सामने महान लक्ष्य रखे जाएं।
इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की घटना हमें यह भी बताती है कि उन्होंने कितना महान कारनामा अंजाम दिया और साथ ही यह सीख भी देती है कि हमें भी एसा ही करना चाहिए। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने पूरी मानवता को बहुत महान सीख दी है जिसकी महानता सबके समक्ष स्पष्ट है।
बड़ी विचित्र बात है कि हमारा पूरा जीवन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के नाम से सुसज्जित है, इस पर हम ईश्वर का आभार व्यक्त करते हैं। इस महान हस्ती के आंदोलन के बारे में बहुत सी बातें कही जा चुकी हैं किंतु इसके साथ ही मनुष्य इस बारे में जितना चिंतन करे उसे शोध और अध्ययन का मौदान उतना ही बड़ा दिखाई देता है। इस महान और विचित्र घटना के बारे में आज भी सोचने और चिंतन करने के अनेक अछूते पहलू हैं। यदि ध्यानपूर्वक इस घटना की समीक्षा की जाए तो शायद यह कहा जा सके कि इंसान इमाम हुसैन के कुछ महीनों पर फैले आंदोलन से जिसकी शुरूआत मदीना नगर से मक्के की ओर प्रस्थान से हुई और इसका अंत कर्बला के मैदान में शहादत का जाम पीने पर हुआ सौ पाठ लिए जा सकते हैं, वैसे तो सौ ही नहीं हज़ारों पाठ मिल सकते हैं किंतु मैं सौ पाठ इस लिए कह रहा हूं कि उससे तात्पर्य यह है कि यदि हम सूक्ष्मता से जायज़ा लें तो सौ अध्याय निकल सकते हैं जिनमें हर अध्याय किसी भी राष्ट्र, किसी भी इतिहास और देश के लिए शासन व्यवस्था चलाने तथा ईश्वर का सामिप्य पाने का पाठ हो सकता है।
दसवीं मोहर्रम की घटना, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का आंदोलन, उनका चेहलुम और अन्य धार्मिक अवसर इस्लामी इतिहास का वह महत्वपूर्ण मोड़ हैं जहां सत्य और असत्य का अंतर खुलकर सामने आ जाता है। इमाम हुसैन के बलिदान से इस्लाम धर्म को नया जीवन मिला और तथा इस ईश्वरीय धर्म के प्रकाशमान दीप को बुझा देने पर आतुर यज़ीदियत को निर्णायक पराजय मिली। इस घटना में अनगिनत सीख और पाठ निहित हैं। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने विभिन्न अवसरों पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के आंदोलन से मिलने वाली और नसीहतों पर प्रकाश डाला है। कार्यक्रम मार्गदर्शन के अंतर्गत हम हुसैनी आंदोलन से मिलने वाली सीख और नसीहतों को पेश करेंगे।
आपको याद दिलाते चलें कि कार्यक्रम मार्गदर्शन इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनई के भाषणों से चयनित खंडों पर आधारित है।
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इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम इतिहास की महान हस्तियों के बीच सूर्य की भांति जगमगा रहे हैं। ईश्वरीय दूत, ईश्वर के सदाचारी बंदे, सब पर नज़र डालिए। यदि यह हस्तियां चांद और तारों जैसी प्रतीत होती हैं तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम उनके बीच सूर्य के समान जगमगाते हुए दिखाई देते हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के मिशन में कुछ अति महत्वपूर्ण पाठ निहित हैं। सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि इमाम हुसैन ने आंदोलन क्यों आरंभ किया। यह बहुत बड़ा पाठ है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से कहा गया कि मदीने और मक्के में आपका बड़ा आदर किया जाता है और यमन में शीयों की बहुत बड़ी संख्या है। किसी एसी जगह चले जाइए जहां यज़ीद से आपका कोई लेना देना ही न रहे और यज़ीद भी आपको परेशान न करे। आपके इतने चाहने वाले हैं, इतने शीया हैं, जाइए अपना जीवन गुज़ारिए। उपासना कीजिए, धर्म का प्रचार करें। इसके बावजूद इमाम ने विद्रोह क्यों किया? बात क्या थी?
यही सबसे प्रमुख प्रश्न है। यही सबसे प्रमुख पाठ है। मैं यह नहीं कहता कि किसी ने अब तक यह बात नहीं कही। सच्चाई तो यह है कि इस बारे में बहुत काम किया गया है, बहुत मेहनत की गई है किंतु मैं एक नया दृष्टिकोण पेश करना चाहता हॅं। कुछ लोग यह कहना पसंद करते हैं कि इमाम हुसैन, यज़ीद की अधर्मी और भ्रष्ट सरकार को गिराकर अपनी सरकार बनाना चाहते थे और यही इमाम हुसैन के आंदोलन का लक्ष्य था। मेरे विचार में यह बात पूरी तरह सही नहीं है। आधी सही है। मैं यह नहीं कहता कि यह विचार पूरी तरह ग़लत है। यदि इस बात का मतलब यह है कि इमाम हुसैन ने केवल शासन पाने के लिए आंदोलन छेड़ा था तो यह ग़लत हैं। क्योंकि जब कोई शासन पाने के लिए आगे बढ़ता है वह वहीं तक जाता है जहां तक उसे लगता है कि लक्ष्य प्राप्त हो जाएगा। जैसे ही उसे महसूस होता है कि यह काम हो नहीं पाएगा उसका यही दायित्व बनता है कि क़दम पीछे खींच ले। यदि प्रमुख लक्ष्य शासन था तो वहीं तक आगे बढ़ना जायज़ है जहां तक इस लक्ष्य की प्राप्ति संभव लगे और जब यह लक्ष्य असंभव प्रतीत होने लगे तो फिर और आगे जाना सही नहीं है। अब जो लोग यह कहते हैं कि इमाम कि आंदोलन का लक्ष्य सत्य पर आधारित अलवी शासन की स्थापना करना था, यदि उनका तात्पर्य यही है तो यह दुरुस्त नहीं है। क्योंकि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पूरे आंदोलन में यह चीज़ नहीं दिखाई देती।
दूसरी ओर कुछ लोग यह विचार रखते हैं कि शासन क्या चीज़ है, इमाम तो जानते ही थे कि वह शासन प्राप्त नहीं कर सकेंगे बल्कि उन्हें क़त्ल कर दिया जाएगा और वह शहीद होने के लिए कर्बला गए थे। यह विचार बहुत दिनों तक आम रहा और शायरों ने अपने शेर में भी इसे पेश किया है। यह कहना कि इमाम हुसैन ने शहीद होने के लिए आंदोलन आरंभ किया था कोई नई बात नहीं है। उन्होंने सोचा कि अब जब ठहर कर कुछ नहीं किया जा सकता तो चलो चलकर शहीद हो जाते हैं।
हमारी धार्मिक पुस्तकों में कहीं यह नहीं कहा गया है कि इंसान जारक मौत के मुंह में कूद जाए। हमारे धर्म में एसा कुछ नहीं है। इस्लामी नियमों और क़ुरआन के भीतर जहां शहादत की बात कही गई है वहां तात्पर्य यही है कि मनुष्य किसी महान लक्ष्य के लिए निकले और इस मार्ग में मौत को गले लगाने के लिए भी तैयार रहे। यही सही इस्लामी विचारधारा है। किंतु यह सोच कि मनुष्य निकल पड़े ताकि मारा जाए और शायरों की ज़बान में उसका ख़ून रंग लाए और उसकी छींटें क़ातिल के दामन पर पड़ें तो यह एसी बात नहीं है जिसका इस महान आंदोलन से कोई संबंध हो। इस विचार में भी किसी हद तक सच्चाई है किंतु पूर्ण रूप से यह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का लक्ष्य नहीं है।
संक्षेप में यह कि जो लोग कहते हैं कि लक्ष्य शासन था या लक्ष्य शहादत थी वह लोग वास्तव में लक्ष्य और परिणाम को आपस में गडमड कर देते हैं। लक्ष्य यही नहीं था। लक्ष्य कुछ और था और इस महान लक्ष्य तक पहुंचने का दो में से एक परिणाम सामने आना था। एक था शासन और दूसरे शहादत। इमाम हुसैन दोनों परिणामों के लिए तैयार थे।
अगर हम इमाम हुसैन के लक्ष्य को बयान करना चाहें तो हमें इस तरह कहना चाहिए कि उनका लक्ष्य अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य का पालन करना था। वह धार्मिक कर्तव्य एसा था जिसे पहले कभी किसी ने अंजाम नहीं दिया था। यह एसा कर्तव्य था जिसका इस्लामी मूल्यों, नियमों, विचारों तथा ज्ञान के ढांचे में अति महत्वपूर्ण स्थान है। यह अति महत्वपूर्ण धार्मिक कर्तव्य था किंतु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के काल तक इस पर अमल नहीं हुआ। इमाम हुसैन को इस कर्तव्य का पालन करना था ताकि दुनिया के लिए यह पाठ बन जाएं उदाहरण स्वरूप पैग़म्बरे इस्लाम ने शासन स्थापित किया और सरकार का गठन पूरे इस्लामी इतिहास के लिए उदाहरण बन गया। इसी प्रकार इस कर्तव्य पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के माध्यम से अमल होना था ताकि मुसलमानों और पूरे इतिहास के लिए यह व्यवहारिक पाठ बन जाए। अब प्रश्न यह है कि इस कर्तव्य का पालन इमाम हुसैन ही क्यों करें। तो इसका उत्तर यह है कि इसके पालन की परिस्थितियां इमाम हुसैन के काल ही में उत्पन्न हुईं। यदि यह परिस्थितियां किसी अन्य इमाम के काल में उत्पन्न हुई होतीं तो वह भी इसी प्रकार कर्तव्य का पालन करे। इमाम हुसैन से पहले तथा उनके बाद में कभी भी यह परिस्थितियां उत्पन्न नहीं हुईं। तथ लक्ष्य था इस महान कर्तव्य का पालन करना। अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि वह कर्तव्य क्या था जिसका पालन इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने किया। श्रोताओ इस कर्तव्य के बारे में हम अगले कार्यक्रम में बात करेंगे। सुनना न भूलिएगा।
वरिष्ठ नेता ने डाक्टर अहमदी नेजाद को नई ज़िम्मेदारी सौंपी
शनिवार 3 अगस्त 2013 को नए राष्ट्रपति हसन रूहानी के वरिष्ठ नेता द्वार अनुमोदन समारोह में मौजूद डाक्टर अहमदी नेजाद
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ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने पूर्व राष्ट्रपति डाक्टर अहमदी नेजाद को नई ज़िम्मेदारी सौंपते हुए इस्लामी क्रान्ति हित संरक्षक परिषद का सदस्य नियुक्त किया है।
सोमवार को जारी आदेश के अनुसार वरिष्ठ नेता ने डाक्टर अहमदी नेजाद को उनके आठ वर्षीय काल में मूल्यवान कोशिशों के आधार पर, हित संरक्षक परिषद का सदस्य नियुक्त किया।
14 जुलाई को पूर्व राष्ट्रपति और उनके मंत्रीमंडल के सदस्यों के साथ भेंट में वरिष्ठ नेता ने उनकी कोशिशों को सराहा था।
ज्ञात रहे शनिवार को वरिष्ठ नेता द्वारा डाक्टर रूहानी को अनुमोदित किए जाने के बाद रविवार को उन्होंने ईरानी संसद में पद और गोपनीयता की शपथ ली।
राष्ट्रपति के शपथग्रहण समारोह का विस्तृत ब्योरा
ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी का शपथ ग्रहण समारोह थोड़ी देर पहले संसद भवन में संपन्न हुआ जिसमें विश्व के बहुत से देशों के राष्ट्राध्यक्षों और वरिष्ठ अधिकारियों ने भाग लिया।
शपथ ग्रहण समारोह की अध्यक्षता संसद सभापति ने की। उन्होंने नये राष्ट्रपति को बधाई देते हुए कहा कि हालिया राष्ट्रपति चुनाव में जनता की 73 प्रतिशत से अधिक की भागीदारी, इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में अस्तित्व में आने वाली क्रांति के परिणाम में सामने आने वाली इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था का शानदार नमूना है।
संसद सभापति के भाषण के बाद न्यायपालिका के प्रमुख आयतुल्लाह सादिक़ आमुली लारीजानी ने निर्वाचित राष्ट्रपति को बधाई देते हुए कहा कि देश में नया राजनैतिक दौर आरंभ हो रहा है। उन्होंने कहा कि इस्लामी व्यवस्था में क़ुरआनी और इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार मनुष्य के अधिकारों पर सबसे अधिक ध्यान दिया गया है और ईरान में हर जाति और संप्रदाय के लोगों को समान अधिकार प्राप्त हैं। न्याय पालिका के प्रमुख के बाद राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने शपथ ग्रहण के बाद उन्होंने अपने भाषण में कहा कि आपके सामने शपथ ग्रहण करने के बाद अब हमने बहुत भारी ज़िम्मेदारी स्वीकार कर ली है।
उन्होंने कहा कि ईरानी जनता ने पिछले चौदह जून के राष्ट्रपति चुनाव में अपनी राजनैतिक होशियारी का शानदार नमूना पेश किया और इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था की लोकतांत्रिक व्यवस्था को विश्व के सामने पेश किया। उन्होंने कहा कि जनता के चयन और वरिष्ठ नेता की पुष्टि के बाद में जनता की सेवा पर आधारित अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करूंगा। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार की ज़िम्मेदारी होगी कि वह जनता के समान अधिकारों को उनके लिए सुनिश्चित करे और हम ईरान के सभी वर्ग के प्रतिनिधि हैं। उन्होंने विदेश नीति के संबंध में कहा कि ईरान क्षेत्र में शांति और स्थिरता का इच्छुक है।
उन्होंने कहा कि ईरान शांति और सुरक्षा का केन्द्र है। उन्होंने कहा कि हम किसी भी देश में ज़ोर ज़बरदस्ती सरकार के परिवर्तित किए जाने के विरोधी हैं और हम किसी भी देश के विरुद्ध सैन्य अतिक्रमण के विरोधी हैं। उन्होंने कहा कि आज कोई भी देश अपनी सुरक्षा को दूसरे देशों में संकट उत्पन्न करके सुनिश्चित नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि हम क्षेत्र और विश्व के सभी देशों के साथ परस्पर द्विपक्षीय सम्मान के आधार पर अपने संबंधों को विस्तृत करने पर विश्वास रखते हैं। उन्होंने ईरान पर लगे प्रतिबंधों की आलोचना करते हुए कहा कि ईरानी जनता को प्रतिबंधों और धमकियों से घुटने टेकने पर विवश नहीं किया जा सकता।
कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों की राष्ट्रपति से भेंट
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी, सीरिया के प्रधानमंत्री वाएल हल्क़ी और क्यूबा के उपराष्ट्रपति रेकार्ड केबरी सास सहित कई वरिष्ठ अधिकारियों ने राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी से भेंटवार्ता की है।
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी डाक्टर हसन रूहानी से भेंट करने वाले पहले विदेशी नेता थे। इस भेंटवार्ता में दोनों देशों के नेताओं ने आशा व्यक्त की है कि तेहरान- इस्लामाबाद के मध्य संबंधों में और अधिक विस्तार होगा। राष्ट्रपति ने इस अवसर पर कहा कि ईरान की जनता में पाकिस्तानी जनता के लिए विशेष प्रेम और दिली लगाव पाया जाता है और इसका मुख्य कारण दोनों देशों के बीच पाये जाने वाले प्राचीन ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व नैतिक संबंध हैं।
उन्होंने यह बात बल देकर कहा कि ईरान-पाकिस्तान गैस पाइप लाईन योजना के पूरा होने से दोनों देशों के मध्य सहयोग और आर्थिक संबंधों में और अधिक विस्तार होगा। पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने आशा व्यक्त की कि यह गैस परियोजना पूरी होगी। सीरिया के प्रधानमंत्री वाएल हल्क़ी ने राष्ट्रपति से भेंट की जिसमें सीरिया की ताज़ा स्थिति पर विचार विमर्श किया गया।
इस अवसर पर राष्ट्रपति हसन रूहानी ने आशा व्यक्त की कि सीरिया की सरकार, जनता और सेना एकजुट होकर संकट पर नियंत्रण पाने सफल हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि ईरान आरंभ से ही सीरिया का मित्र और समर्थक देश रहा है और भविष्य में भी रहेगा। क्यूबा के उपराष्ट्रपति से भेंट में राष्ट्रपति का कहना था कि लैटिन अमरीकी देशों के साथ संबंधों को विस्तृत करना ईरान के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है और क्यूबा उनमें सर्वोपरि है।
इस अवसर पर क्यूबा के उपराष्ट्रपति ने कहा कि उनका देश ईरान से हर क्षेत्र में संबंधों को विस्तृत करने का इच्छुक है।
रमज़ान के महीने में सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई की लाइफ़ स्टाइल
अगर हाल ही में प्रकाशित होने वाली किताब 'रोज़ा रखने के शिष्टाचार और रोज़ेदारों की परस्थितियां आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में'' का हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयानों की तारीख़ तथा आपके विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े श्रोताओं को मद्देनज़र रख कर अध्ययन किया जाए तो रमज़ान के महीने में आपके आचरण से संबंधित कई महत्वपूर्ण बातें सामने आती हैं.
फ़ार्स समाचार एजेंसी. किताब और साहित्य डेस्क:
सुप्रीम लीडर विभिन्न विषयों के एक्सपर्ट हैं। जिस तरह से आप पूरी तरह से सूझबूझ और टैक्ट से राजनीतिक मुद्दों पर टिप्पणी करते हैं और अपने मार्गदर्शन से बड़ी मुश्किलें हल कर देते हैं, जिस तरह सामाजिक मुद्दों पर आपकी बातचीत जनता के लिए बरकतें लाती हैं और उन्हें एक दूसरे से क़रीब कर देती है, जिस तरह से आप देश के कलाकारों से मुलाकात के दौरान उनमें उम्मीदें जगाते और उन्हें भविष्य की दिशा दिखाते हैं उसी तरह इस्लामियात के एक बेमिसाल एक्सपर्ट और अद्वितीय मुफ़स्सिर हैं। और शायद दूसरे विषयों से संबंधित आपके हकीमाना बयान के आधार भी इस्लामियात में आपका एक्सपर्ट होना है। आप सालों से विभिन्न मुद्दों पर वार्ता और अपने विचार बयान करते आ रहे हैं लेकिन रमजान के मुबारक महीने और रोज़े के शिष्टाचार से सम्बंधित आपकी बातचीत अन्य विषयों की तुलना में अधिक है।
इस का कारण इस महीने में सार्वजनिक बैठकों का अधिक होना तथा इस दौरान दिल का (नसीहत के लिए) तैयार होना और समाज का अल्लाह से करीब होना है।
आप जहां ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर हैं वहीं महान मरजा-ए-तक़लीद भी हैं इसलिए रोज़े से संबंधित आपके बयान सही माना में मार्गदर्शक हैं। इसलिए इसी के मद्देनजर इस्लामी इंक़ेलाब पब्लीकेशन्ज़ (इंतेशाराते इंक़ेलाबे इस्लामी) ने 'रोज़े के शिष्टाचार और रोज़ेदारों की परस्थितियां'' (आदाबे रोज़ादारी व अहवाले रोज़ादारान) नामक किताब प्रकाशित कर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में रोज़े के शिष्टाचार बयान किये हैं।
यह किताब उन उल्मा, विचारकों और रात भर जाग कर इबादत करने वालों की नसीहतों ही एक कड़ी है जो कि सदियों से लोगों को रमजान के मुबारक महीने की ज़िम्मेदारियों की ओर आकर्षित करते हैं और उन्हें इस सुनहरे मौक़े से अधिक से अधिक फ़ायदा उठाने की दावत देते आ रहे हैं। रमज़ान की फज़ीलत से संबंधित उल्मा, अख़लाक़ व नैतिकता के उस्ताद यहां तक साहित्यकार और कवियों की कई पुस्तकें हैं। यह किताब इसी सिलसिले की एक कड़ी है जो कि रमज़ान से अधिक से अधिक फ़ायदा उठाने पर उभारती है लेकिन उसके कुछ अद्वितीय गुण हैं जो उसे अन्य किताबों से अलग बना देते हैं, नीचे उनमें से कुछ का उल्लेख किया जा रहा है:
ध्यान से पढ़िए ताकि किताब के रूहानी (आध्यात्मिक) माहौल का एहसास हो
यह किताब 1990 से लेकर 2011 तक यानी पिछले बाईस वर्षों के दौरान इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई की रमजान के महीने में की गई स्पीचों और नसीहतों के पर आधारित है। सुनने वालो आम लोग ही रहे हैं लेकिन कभी कभी आपके श्रोता क़ारी-ए-क़ुरआन, इस्लामी रिपब्लिक के सरकारी अधिकारी, जुमे की नमाज के नमाज़ी, युनीवर्सिटी के प्रोफ़ेसर, स्टूडेंट और कवि आदि भी रहे हैं। इसलिये किताब के चयन के लिए निम्नलिखित दो विशेषताएं मद्देनज़र रखी गई हैं:
पहले यह कि हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान रोज़े, दुआ और रमज़ान के मुबारक महीने में मोमेनीन की व्यक्तिगत, सामूहिक और राजनीतिक ज़िम्मेदारियों से संबंधित हैं।
दूसरे यह कि एक ही साल के रमज़ान में यानी चाँद दिखने से लेकर ईदुल फ़ित्र के अंत तक की अवधि में जारी हुए हों, इसलिये जो पाठक इस किताब का ध्यान से अध्ययन करेगा वह उस आध्यात्मिक माहौल में शामिल हो जाएगा जो बोलने वाले के दृष्टिगत रहा है। ऐसे में पूरी दुनिया ख़ास कर इस्लामी समाज और आबिद व ज़ाहिद मोमिनों पर पहले से रमज़ान के आध्यात्मिक और रूहानी माहौल पर चार चांद लग जाएंगे।
एक तरह के विषय, विभिन्न कोणों से
सुप्रीम लीडर के पिछले बाईस वर्षों के बयानों की एक प्रमुख विशेषता विभिन्न बातों का एक दूसरे से कनेक्ट होना है। लेकिन साथ ही यह विशेषता भी पाई जाती है कि अगर एक ही विषय विभिन्न वर्षों में बयान किया गया है तो हर बार या तो आपने एक नए कोण से रौशनी डाली है या फिर अपने विश्लेषण में एक नया प्वाइंट शामिल किया है।
इसके सबसे अच्छे उदाहरण तक़वा और इस्तिग़फ़ार से सम्बंधित आपकी बातचीत में देखे जा सकते हैं जो कि इस किताब का सबसे महत्वपूर्ण अध्याय है।
वास्तविक बहार सुप्रीम लीडर की निगाह में
आपने रमजान के मुबारक महीने की विभिन्न विशेषताओं का वर्णन किया और हर गुण इस्लामी शिक्षाओं खासकर अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम की हदीसों में बयान हुई इस महीने की किसी विशेषता को बयान करता है जैसे, रमजान का महीना रहमत और माफ़ी, अल्लाह की मेहमानी, अपने को सुधारने और तक़वा व सदाचार का महीना, माफ़ी, इस्तेग़फ़ार, पश्चाताप और अल्लाह की तरफ़ पलटने का महीना, तक़वा स्टोर करने का महीना, इबादत, दुआ और मुनाजात आदि का महीना।
इसी तरह जब रमज़ान और बहार का एक साथ आगमन हुआ तो आपने रमज़ान के महीने को बहार बताया जैसे दुआ और क़ुरआन की बहार, अपने को सुधारने और इबादत की बहार, अल्लाह से क़रीब होने की बहार, इस्तेग़फ़ार की बहार आदि। लेकिन इसके बाद आपने स्पष्ट किया कि रमज़ान केवल वसंत में होने के कारण बहार नहीं है बल्कि वसंत हो या न हो रमज़ान मोमेनीन के साल की शुरुआत और वास्तविक अर्थ में बहार है, मुसलमानों का ईमानी साल रमजान से शुरू होता है इस महीने की इबादतें को आने वाले ग्यारह महीने और अगले रमज़ान तक के लिए निवेश माना जाता है। इसलिये मुसलमानों की यही असली बहार है जिसमें अंदर को पाक किया जाता और आत्मा का पुनर्निर्माण किया जाता है।
रमज़ान की सामूहिक नसीहतें
रमज़ान और रोज़े के शिष्टाचार के बारे में इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर के बयानों की एक विशेषता यह है कि आप ने इस अध्याय में इस्लाम के सामूहिक आदेशों पर विशेष ध्यान दिया है जैसे ग़रीबों का हाल चाल पूछना, फ़क़ीरों की सहायता, अनाथ व यतीमों से प्यार, कमज़ोरों की मदद की नसीहतें और इस्राफ़, फ़ुज़ूलख़र्ची, लडाई झगड़ा और मतभेद व फूट डालने जैसी बुराइयों से बचने का आदेश।
इस तरह गुणों व अच्छाईयों को हासिल करने और नैतिक बुराइयों से परहेज़ का दायरा निजी जीवन से आगे बढ़कर पूरे इस्लामी समाज की पहचान बन जाता है। साथ ही व्यक्ति या ज़्यादा से ज़्यादा परिवार के सुधार तक सीमित नसीहत और उपदेश में अंतर भी बखूबी स्पष्ट हो जाता है जिसमें व्यक्ति और घर के सुधार के साथ समाज सुधार और उसे आवश्यक इस्लामी रूप देने की ताकीद हो। समाजशास्त्र पर चर्चा के दौरान निश्चित रूप से इस्लामी समाज को पेश आने वाले मुश्किल राजनीतिक जोखिम पर भी बहस होगी और उन पर टिप्पणी की जाएगी। इसलिए इस संदर्भ में इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने इस्लामी शिक्षाओं तथा इस्लामी इतिहास के उतार चढ़ाव के मद्देनजर मुसलमानों के पतन के कारणों पर रौशनी डाली और अंतर्दृष्टि और धैर्य को हर तरह की लापरवाही, दुनियापरस्ती, सत्ता की वासना, घमण्ड, अहंकार, वित्तीय भ्रष्टाचार और नैतिक गिरावट की समाप्ति का रास्ता बताया है। यही बातें कई महत्वपूर्ण और प्रभावशाली इस्लामी हस्तियों के पतन का कारण बनती रही हैं।
रमज़ान के महीने में मुस्लिम राष्ट्रों की ओर ध्यान / वर्षों पहले इस्लामी जागरूकता का बयान
इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर अपने रमज़ान भर के बयानों में दुनिया भर के मुसलमानों, मज़लूम क़ौमों खासकर फ़िलिस्तीनी राष्ट्र के हालात पर चर्चा करते रहे हैं।
इमाम खुमैनी ने रमज़ान के अंतिम जुमे (जुमअतुल विदा) को विश्व क़ुद्स दिवस निर्धारित किया था। इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर द्वारा विश्व क़ुद्स दिवस के जुलूसों में भाग लेने की ताकीद से आपके रमज़ान के शिष्टाचार से सम्बंधित नसीहतों का दायरा समय और परिस्थितियों की आवश्यकताओं के मद्देनजर समाज और देश से बढ़कर पूरे इस्लामी जगत में फैल जाता है। इस किताब के पाठक को पता चल जाएगा कि इस्लामी जागरूकता का शब्द आज प्रचलित हआ है लेकिन इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर इसका वर्षों पहले से तज़किरा करते आ रहे हैं और जैसा कि आज यह एक ऐसी वास्तविकता बन चुकी है कि जिसका इंकार असम्भव है।
महत्वपूर्ण बयान
रमज़ान के महीने में इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर के सबसे महत्वपूर्ण बयान मुसलमानों के दो कभी न खत्म होने वाले आसमानी भंडार यानी अल्लाह की किताब और अहलेबैत अ. की हदीसों से व्युत्पन्न मूल इस्लामे मोहम्मदी की शिक्षाओं पर आधारित हैं जिन्हें आपने बहुत अच्छी शैली और पिछले बाईस वर्षों में बयान किया है।
इसके महत्वपूर्ण हिस्से निम्नलिखित हैं:
अ. कुरआने करीम की तिलावत के साथ उसे समझने और उससे परिचित होने की ताकीद। इसलिए कि यह सभी व्यक्तिगत और सामूहिक संकटों से नजात का नुस्खा है।
आ. तक़वा, दुआ, मुनाजात, इस्तेग़फ़ार, माफी और पश्चाताप आदि की कुरान और हदीस खासकर नहजुल बलाग़ा की रौशनी में पूर्ण और व्यापक व्याख्या।
इ. मौलाए काएनात हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी का विश्लेषण, इसलिए कि आप बहादुरी, तक़वा, न्याय व इंसाफ़ और अल्लाह की हुकूमत की मिसाल हैं।
रमज़ान के महीने में सुप्रीम लीडर की लाइफ़ स्टाइल
इस किताब का अगर यह ध्यान रखकर अध्ययन किया जाये कि आप ने कौन सी बात कब और किन लोगों में कही है तो इससे रमज़ान के महीने में हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के जीवन शैली की कई महत्वपूर्ण बातें सामने आएँगी जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:
• तिलावते कुरान की सभाओं का आयोजन
• ईमानी और नैतिक सुधार पर जोर
• विभिन्न क्षेत्रों से जुड़े लोगों, शिक्षकों, छात्रों आदि की मेजबानी, उनकी बातें सुनना और उनसे बातचीत करना।
• जुमे की नमाज की इमामत
• शबे क़द्र और अमीरुल मोमिनीन की शहादत की ओर विशेष ध्यान
• इस्लामी दुनिया के मौजूदा हालात पर टिप्पणी, विश्व क़ुद्स दिवस के जुलूस में हिस्सा लेने पर बल
सब कुछ यही नहीं
कुरान, नहजुल बलाग़ा, इस्लामी इतिहास, फ़िलिस्तीन, क़ुद्स तथा दुआ आदि से संबंधित इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर के सभी बयान इस किताब में शामिल नहीं किए गए हैं। किताब के सेट करने वाले अली रेज़ा मुख़तारपूर क़ह्रवूदी के अनुसार उन्होंने इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर के केवल रमज़ान ही के बयानोंम से कुछ बयान या उनके अंश चुना है। लेकिन इन्हीं सारे विषयों पर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनई के अनगिनत भाषण हैं जिन्हें सेट करने के लिए कई किताबें लिखने की जरूरत है।
आख़री बात यह कि इस किताब में शामिल हुए बयान में डेट का ध्यान रखा गया है लेकिन किसी विशेष विषय के लिए सूची से मदद ली जा सकती है।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में
अल्लाह के इम्तेहान में सफलता के लिये तक़वा ज़रूरी है।
इम्तेहान हर एक का
भाइयों और बहनों! हम सब को इम्तेहान देना है और हम सबसे इम्तेहान लिया जाएगा। अगर हम एक एक इन्सान को देखें, तो हमें मालूम होगा कि सब इन्सानों को आज़माया गया है और इसी तरह हम क़ौमों को देखें तो हमें पता चलेगा कि हर क़ौम को इम्तेहान देन पड़ा है। अलबत्ता सबका इम्तेहान एक जैसा नहीं है बल्कि यह इम्तेहान विभिन्न प्रकार के होते हैं। कभी ऐसा होता है कि इन्सान को किसी काम से बहुत ज़्यादा फ़ायदा हो सकता है लेकिन वह काम हराम होता है। अब इन्सान सोचता है कि क्या करे, यह उसके लिये इम्तेहान का समय है। कभी थोड़ा बहुत या ज़्यादा पैसा उसे मिल रहा होता है लेकिन ग़लत रास्ते से यह उसके इम्तेहान का समय है। कभी वह एक ग़लत बात कहकर या झूठ बोलकर बहुत बड़ा लाभ उठा सकता है यहाँ उसका इम्तेहान है। कहीं कोई बात कहना ज़रूरी होती है लेकिन इन्सान उसे कहने से डरता है कि कहीं वह किसी मुसीबत में न फँस जाए। यहाँ भी उसके इम्तेहान का समय होता है। ऐसे अवसर में तक़वा (सदाचार) इन्सान के काम आता है।
इसी तरह क़ौमों का भी इम्तेहान होता है। जब उन्हें कोई ताक़त मिल जाए, हुकूमत मिल जाए, बहुत बड़ी सफलता मिल जाए, इल्म के मैदान में आगे बढ़ जाएं, साइंस और टेक्नालॉजी में आगे निकल जाएं, यहाँ से उनका इम्तेहान शुरू होता है। हुकूमत और ताक़त तक पहुँच कर अगर एक क़ौम सही इस्लामी और इन्सानी मूल्यों पर बाक़ी रहती है तो वह इस इम्तेहान में सफल है और अगर वह ख़ुदा को भूल जाए, इन्साफ़ को छोड़ दे, मूल्यों की ओर कोई ध्यान न दे तो वह असफल है। क़ुरआने मजीद सूरए नस्र में रसूले अकरम स. से फ़रमाता है।
’’بِسْمِ اللَّهِ الرَّحْمَنِ الرَّحِيمِ ۔إِذَا جَاء نَصْرُ اللَّهِ وَالْفَتْحُ۔ وَرَأَيْتَ النَّاسَ يَدْخُلُونَ فِي دِينِ اللَّهِ أَفْوَاجًا‘‘(سورہ نصر۔۱،۲،۳(
यह एक नबी की सपलता है कि जब ख़ुदा उसे ताक़त और हुकूमत देता है और लोग उसके लाए हुए धर्म की रौशनी में झुंड बनाकर आते हैं। वह यहाँ घमण्ड नहीं करता, ख़ुद को बहुत बड़ा नहीं समझता और ख़ुदा को भूलता नहीं है क्योंकि यहाँ उसका इम्तेहान का समय है और यहाँ उसे बहुत ज़्यादा संभल कर रहना है। इसलिये ख़ुदा हुक्म देता है
’’فَسَبِّحْ بِحَمْدِ رَبِّكَ وَاسْتَغْفِرْهُ إِنَّهُ كَانَ تَوَّاباً‘‘
यहाँ पर ख़ुदा को याद कीजिए। ख़ुदा के नाम की माला जपिये, उसकी हम्द कीजिए। क्योंकि यह सफलता इन्सान का कारनामा नहीं है बल्कि ख़ुदा की ओर से है।
पैग़म्बरे ख़ुदा जैसा एक लीडर यहाँ बिल्कुल सावधान है कि कहीं ऐसा न हो कि मुसलमान इस सफलता के कारण ख़ुदा को भूल जाएं। ऐसे में तक़वा ही काम आता है। अगर क़ौम के अन्दर तक़वा होगा तो वह ख़ुदा को याद रखेगी और सफलता की ओर बढ़ती जाएगी लेकिन अगर उसके अन्दर तक़वा न हो तो उसका हाल भी वही होगा जो दुनिया की बहुत सी क़ौमों का हुआ। उनके अन्दर घमण्ड आ गया, वह अपने आपको बड़ा समझने लगीं, उन्होंने अत्याचार शुरू कर दिया, कमज़ोरों को दबाना और लूटना शुरू कर दिया, बुरा रास्ता अपना लिया ख़ुद भी गुमराह हुईं और दूसरों को भी गुमराह किया और फिर मुँह के बल नीचे आईं, हमारे सामने इसकी एक मिसाल सोवियत यूनियन है। जब उन्हें हुकूमत और ताक़त मिली तो उन्होंने ख़ुदा और धर्म के विरुद्ध लड़ना शुरू कर दिया और खुले आम यह ऐलान किया कि हमनें अपने मुल्क से ख़ुदा को निकाल दिया है। लेकिन अन्जाम क्या हुआ उसके कई टुकड़े हो गए।
जनाबे नूह की क़ौम
जो लोग जनाबे नूह पर ईमान लाए थे वह बहुत ही ख़ास लोग थे। जनाबे नूह नें अपनी क़ौम के बीच 950 साल तबलीग़ की लेकिन कुछ ही लोग ईमान लाए, फिर ख़ुदा नें उन मोमिनीन का इम्तेहान लेना तो जनाबे नूह को कश्ती बनाने का हुक्म दिया। जब जनाबे नूह कश्ती बनाते थे तो लोग उन पर हँसते थे। आम तौर से कश्ती समन्दर के पास बनाई जाती है लेकिन जनाबे नूह उसे शहर के बाहर जहाँ दूर दूर तक समन्दर नहीं था, बना रहे थे। जब लोग वहाँ से गुज़रते और जनाबे नूह और उनके साथियों को कश्ती बनाता हुआ देखते थे तो उन पर हँसते थे और उनका मज़ाक़ उड़ाते थे। जनाबे नूह के साथी नहीं जानते थे कि वह कश्ती क्यों बना रहे हैं और उन्हें नही मालूम था कि ज़मीन से पानी निकलेगा और आसमान भी बारिश बरसाएगा, लेकिन उनका ईमान इतना मज़बूत था कि लोगों की तरफ़ कोई ध्यान नहीं दिया। यह लोग समाज के मामूली लोग थे और जो उनके विरोध में थे वह पैसे वाले, ताक़त वाले, प्रोपगण्डे वाले, बड़ी पोस्टों वाले और समाज के बड़े लोग थे ऐसे लोगों के सामने अपने ईमान पर डटे रहना और उन्हें बर्दाश्त करना आसान काम नहीं है, इसके लिये बहुत पक्के ईमान की ज़रूरत है। उन्होंने कभी जनाबे नूह से नहीं पूछा कि हम कश्ती क्यों बना रहे हैं बल्कि अल्लाह के नबी नें जो कहा वह करते रहे। फिर जब अज़ाब का समय आया और आसमान से बारिश बरसने लगी और ज़मीन से भी पानी निकलने लगा तो जनाबे नूह नें अपने साथियों से कहा- कश्ती में बैठ जाओ। वह लोग सवार हुए और अपने साथ हर जानवर का एक जोड़ा भी ले लिया क्योंकि ख़ुदा का हुक्म था। तूफ़ान शुरू हुआ, सारे काफ़िर डूब गए। केवल वह मोमिनीन और जानवर बचे जो जनाबे नूह के साथ कश्ती में बैठे थे। ख़ुदा नें जनाबे नूह पर ईमान लाने वालों का इम्तेहान लिया। दूसरों नें अल्लाह के नबी का म़ज़ाक़ उड़ाया लेकिन जो लोग नूह पर ईमान ला चुके थे वह आख़िर तक उनके साथ रहे और इम्तेहान में सफल हुए।
आसानी के दिनों का इम्तेहान
कभी ऐसा भी होता है कि कठिनाइयों के दिनों में इतना सख़्त इम्तेहान नहीं होता जितना आराम के दिनों में होता है। मैंने बहुत से लोगों को देखा है जिन्होंने कठिनाइयों मे बहुत अच्छे इम्तेहान दिये लेकिन आराम के दिनों में सफल नहीं हो सके। कठिनाइयों को बहुत अच्छी तरह उन्होंने सहेन किया लेकिन जब उन्हें आसानियां मिलीं तो लड़खड़ा गए, गुनाहों में डूब गए, बर्बाद हो गए। जनाबे नूह से ख़ुदा फ़रमाता है-
’’قيل يا نوح اهبط بسلام منا وبركات عليك وعلي امم ممن معك‘‘
जब तूफ़ान थम गया और कश्ती रुक गई तो ख़ुदा नें जनाबे नूह से कहा- ऐ नूह उतर जाइये, हमारी ओर से सलामती और बरकतें है आपके लिये और आपके साथियों में से कुछ के लिये। अजीब है, ख़ुदा नें बचाया उन सब को लेकिन सलामती और बरकतें केवल कुछ लोगों के लिये हैं। इसका मतलब यह है कि उनमें से कुछ ऐसे हैं जिनके लिये अल्लाह की ओर से सलामती और बरकतें नहीं हैं। फिर फ़रमाता है-
’’وامم سنمتعهم ثم يمسهم منا عذاب اليم‘‘
इनमें से कुछ ऐसे हैं जिनको हम सब कुछ देंगे और वह मज़ा उड़ाएंगे लेकिन फिर उन पर हमारा अज़ाब होगा। यानी जब आसानियों में हम हम उनको आज़माएंगे तो वह अपने ईमान से भी हाथ धो बैठेंगे।
इसका मतलब यह है कि कठिनाइयों से ज़्यादा सख़्त इम्तेहान आसानियों में होता है। इस इम्तेहान में कौन सफल होता है? केवल वह लोग जिनके पास तक़वा होता है जब हम दुनिया के झमेलों में फँस जाते हैं, जब हलाल हराम को भूल जाते हैं, जब ख़ुदा हमारे दिलों से निकल जाता है तो बड़े बड़े लोग ख़ुदाई इम्तेहान में फ़ेल हो जाते हैं। उनको केवल एक चीज़ बचा सकती है और वह है तक़वा। इसी सूरए नूह में ख़ुदा फ़रमाता है-
’’تلك من انباء الغيب نوحيها اليك ما كنت تعلمها انت ولا قومك من قبل هذا فاصبر ان العاقبه للمتقين‘‘
यह सब ग़ैब की बातें हैं जो हमनें आपको बताईं हैं। यह बातें न आपको मालूम थीं और न आपकी क़ौम वालों को। इसलिये आप सब्र कीजिए और जान लीजिये कि अच्छा अन्जाम केवल उनका है जिनके पास तक़वा है। यह आयत इस बात की तरफ़ इशारा कर रही है कि ईमान के इम्तेहान में वही लोग नाकाम हुए हैं जिन्होंने तक़वे को छोड़ा है और जिनके पास तक़वा था वह आख़िर तक सफल रहे। आज हम और आप आसानी और आराम के दिन गुज़ार रहे हैं। होशियार रहें कि हमारा इम्तेहान कब लिया जाता है। सफलता के लिये तक़वा ज़रूरी है। क्या करें? करना केवल यह है कि ख़ुदा के रास्ते पर चलें। उसकी आज्ञा का पालन करें। उसके हुक्म पर चलें। उसनें जो वाजिब किया है उसे न छोड़ें। जो उसनें हराम किया है उससे बचें। रोज़े को इसी लिये वाजिब किया गया है ताकि हमारे अन्दर तक़वा आए।
’’كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ‘‘