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अमरीकी अविश्वसनीय और अतार्किक हैं- आयतुल्लाह ख़ामेनेई

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि अमरीकी अविश्वसनीय और अतार्किक हैं तथा व्यवहार में वे सच्चे नहीं हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने तेहरान में रविवार की रात इस्लामी व्यवस्था के अधिकारियों के साथ भेंट में यह बात कही। उन्होंने हालिया दिनों में अमरीकियों की ओर से ईरान के साथ वार्ता के बयानों के संदर्भ में कहा कि मैंने इस वर्ष के आरंभ में भी कहा था कि अमरीका के साथ वार्ता के प्रति मैं आशावादी नहीं हूं। वरिष्ठ नेता ने कहा कि हालांकि मैंने विगत वर्षों में विशेष विषयों जैसे इराक़ के बारे में वार्ता को मना नहीं किया था। वरिष्ठ नेता ने कहा कि पिछले कुछ महीनों के दौरान अमरीकी अधिकारियों की ओर से अपनाई गई नीति ने पुनः उनके प्रति आशान्वित न होने की आवश्यकता की पुष्टि की है। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि हम सदैव ही अन्य देशों के साथ अच्छे संबन्धों के पक्षधर रहे हैं किंतु इस संदर्भ में महत्वपूर्ण बिंदु, सामने वाले पक्ष की पहचान और उसके लक्ष्यों को समझना है क्योंकि यदि उसको उचित ढंग से नहीं पहचाना गया तो क्षति उठानी पड़ सकती है। वरिष्ठ नेता ने कहा कि विश्व के देशों के साथ संबन्धों में अपने शत्रु के क्रियाकलापों को भूलना नहीं चाहिए चाहे उन्हें कारणवश हम प्रकट न करे। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने स्पष्ट किया कि कुछ पश्चिमी और क्षेत्र की कुछ कमज़ोर सरकारों के नेताओं के वर्चस्व ने ईरानी राष्ट्र के मुक़ाबले में एसा व्यापक मोर्चा खोल दिया है जो अभी तक किसी भी देश के सामने नहीं था। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान की एतिहासिक वास्तविकताओं और वर्तमान परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए कहा कि अर्थव्यवस्था एवं वैज्ञानिक प्रगति को देश के समस्त अधिकारियों की प्राथमिकता में होना चाहिए। उन्होंने ईरानी राष्ट्र के साथ ईश्वर की निरंतर सहायता की ओर संकेत करते हुए कहा कि उसकी हालिया विभूति, राष्ट्रपति चुनावों में जनता की भव्य उपस्थिति थी जिसके प्रभाव धीरे-धीरे विभिन्न क्षेत्रों में सामने आएंगे।

’’یَا أَیُّهَا الَّذِینَ آمَنُوا كُتِبَ عَلَیكُمُ الصِّیَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذَینَ مِن قَبلِكُم‘‘

 

इस आयत में यह कहा गया है कि अल्लाह नें ईमान वालों पर रोज़ा वाजिब किया है जिस तरह इस्लाम से पहले वाली क़ौमों पर वाजिब किया गया था। जब से इन्सान है और जब तक इन्सान रहेगा बहुत से चीज़ें उसकी ज़रूरत हैं जिनमें से एक इबादत है जिसका एक तरीक़ा नमाज़ है और एक रोज़ा जो रमज़ान के पवित्र महीने में लागू किया गया है।

रोज़ा, जिसे अल्लाह की तरफ़ से एक ज़िम्मेदारी कहा गया है, ख़ुदा की एक नेमत है, एक बहुत ही अच्छा मौक़ा है उन लोगों के लिये जिन्हें रोज़ा रखने की तौफ़ीक़ होती है हालांकि इसमें कुछ कठिनाइयां भी हैं और इन्सान बिना कठिनाइयों के आगे नहीं बढ़ सकता। रोज़े में थोड़ी सी कठिनाइयों को सहन कर के इन्सान को जो लाभ मिलता है वह इतना ज़्यादा है कि उसके सामने यह कठिनाइयां कुछ भी नहीं हैं। यानी यूँ समझ लीजिए कि इन्सान थोड़ा सा ख़र्च करता है लेकिन बहुत ज़्यादा पाता है। रोज़े के तीन स्टेप बयान किये गए हैं और हर एक स्टेप के लिये कुछ शर्तें हैं, जिनमें जो शर्तें होंगी वह उसी स्टेप तक पहुँचेगा।

पहला स्टेप- भूख और प्यास और दूसरी चीज़ों का रोज़ा

रोज़े का पहला स्टेप यही आम रोज़ा है यानी खाने पीने और रोज़े को तोड़ने वाली दूसरी चीज़ों से बचना। इस रोज़े के भी काफ़ी फ़ायदे हैं। यह एक एम्तेहान भी है और एक पाठ भी। यह हमें आज़माता भी है और सिखाता भी है। रोज़े के इस स्टेप के बारे में मासूम इमामों की बहुत सी हदीसें हैं जैसे एक हदीस में इमाम जाफ़र सादिक़ अ. फ़रमाते हैं-

 

’’لِیَستَوِى بِهِ الغَنِىُّ وَ الفَقِیرُ‘‘

 

ख़ुदा नें रोज़े को इसलिये वाजिब किया है ताकि इन दिनों में ग़रीब और पैसे वाले बराबर हो जाएं। आम दिनों में ग़रीब इन्सान सब कुछ नहीं खा-पी सकता, बहुत सी चीज़ों के खाने पीने का दिल चाहता है लेकिन वह नहीं खा पाता, लेकिन पैसे वाले आदमी ग़रीब की इस सिचुवेशन को नहीं समझता और नाहि समझ सकता है क्योंकि उसके पास तो सब कुछ है, जो चाहता है, जब चाहता है खाता पीता है लेकिन रोज़े की हालत में यह दोनों बराबर हैं। एक हदीस में इमाम रज़ा अ. फ़रमाते हैं-

 

’’لِكَى یَعرِفُوا اَلَم الجُوعِ وَ العَطَشِ وَ یَستَدِلُّوا عَلىٰ فَقرِ الآخِرَهِ‘‘

 

रोज़े को इसलिये वाजिब किया गया है ताकि इन्सान इस दुनिया में भूख और प्यास का एहसास करे और क़यामत की भूख और प्यास के बारे में विचार करे। क़यामत में इन्सान बहुत भूखा और प्यासा होगा और इसी भूख की हालत में उसे ख़ुदा के सामने एक एक चीज़ का हिसाब देना होगा। रोज़े के लिये ज़रूरी है कि रमज़ान में भूख और प्यास को महसूस करे और क़यामत की भूख और प्यास के बारे में सोचे। इमाम रज़ा अ. एक दूसरी हदीस में इसी चीज़ को बयान करते हुए फ़रमाते हैं-

 

’’صَابِراً عَلىٰ مَا اَصَابَهُ مِنَ الجُوعِ وَ العَطَشِ‘‘

 

रोज़े के द्वारा इन्सान को भूख और प्यास को सहन करने की एक्सर साइज़ कराई जाती है। जिन लोगों नें कभी भूख और प्यास को महसूस न किया हो, उनके अन्दर सहन करने की ताक़त नहीं होती लेकिन जो भूख और प्यास से सामना कर चुका हो वह उसे अच्छी तरह समझता है और उसे सहन करने की ताक़त भी रखता है। रमज़ानुल मुबारक में सभी रोज़ेदारों को सहन की यह ताक़त दी जाती है। इमाम . आगे फ़रमाते हैं

 

’’وَ رَائِضاً لَهُم عَلىٰ اَدَاءِ مَا كَلَّفَهُم‘‘

 

यानी रमज़ान के महीने में खाने पीने और दूसरी चीज़ों से परहेज़ इन्सान को इस चीज़ के लिये तैयार करता है कि जीवन की दूसरी ज़िम्मेदारियों को आसानी से पूरा करना सीख ले। यह एक तरह की तपस्या है हालांकि जाएज़ और शरई तपस्या, वरना बहुत सी तपस्याएं ऐसी हैं जिनकी इस्लाम आज्ञा नहीं देता और उनका खण्डन करता है। इन हदीसों से समझ में आता है कि रोज़े का पहला स्टेप यह है कि इन्सान के अन्दर उन लोगों के लिये हमदर्दी का एहसास जागे जो रमज़ान के दिनों में भी भूखे प्यासे रहते हैं, जिनके पास दो समय की रोटी भी नहीं होती। दुनिया की यह भूख और प्यास इन्सान को क़यामत की भूख और प्यास दिलाती है जब कोई किसी का न होगा। इन्सान कठिनाइयों और सख़्त हालात से लड़ना और उन्हें सहन करना सीखे। रोज़े की सख़्ती को सहन कर के इन्सान दूसरी वाजिब चीज़ों पर अमल करना और हराम चीज़ों से बचने की प्रैक्टिस करे। इसके अलावा बहुत सी हदीसों और मेडिकल साइंस के अनुसार रोज़े से इन्सान को तन्दुरुस्ती भी मिलती है और जब इन्सान का जिस्म रोज़े की वजह से तंदुरुस्त और हल्का हो जाता है तो उसका दिल और उसकी रूह भी नूरानी हो जाती है।

दूसरा स्टेप- गुनाहों से दूरी

रोज़े का दूसरा स्टेप गुनाहों से परहेज़ है। यानी आँखों, कानों, ज़बान यहाँ तक कि गोश्त और खाल को गुनाहों से बचाना। हज़रत अली अ. एक हदीस में फ़रमाते हैं-

 

’’ اَلصِّیَامُ اِجتِنَابُ المَحَارَمِ كَمَا یُمتَنَعُ الرَّجُلُ مِنَ الطَّعَامِ وَ الشَّرَابِ‘‘

 

जिस तरह रोज़े में खाने पीने और दूसरी हलाल चीज़ों से बचते हो उसी तरह गुनाहों से भी बचो. यह भूख और प्यास से आगे का स्टेप है। बहुत से जवान जब मेरे पास आते हैं तो मुझसे कहते हैं कि उनकी दुआ करों कि वह गुनाह न करें, गुनाहों से दूरी की दुआ करना अच्छी चीज़ है और हम सब के लिये दुआ करते हैं लेकिन अस्ल चीज़ इन्सान का अपना इरादा है। इन्सान पक्का इरादा करे कि वह गुनाह नहीं करेगा, जब इरादा कर लिया तो काम आसान हो जाएगा। रमज़ानुल मुबारक में इन्सान इसकी प्रकटिस कर सकता है। यह बहुत अच्छा मौक़ा है इसका। बीबी फ़ातिमा स. की एक हदीस है जिसमें आप फ़रमाती हैं-

 

’’مَا یَصنَعُ الصَّائِم ُ بِصِیَامِهِ إِذَا لَم یَصُن لِسَانُهُ وَ سَمعُهُ وَ بَصَرُهُ وَ جَوارِحُهُ‘‘

 

उस इन्सान को रोज़ा रखने से क्या फ़ायदा मिलेगा उसनें अपनी ज़बान, कानों, आँखों और दूसरी चीज़ों को गुनाहों से नहीं बचाया। एक हदीस में है कि एक औरत नें रसूले अकरम स. के सामने अपनी नौकरानी का अपमान किया, रसूलुल्लाह नें उसकी तरफ़ खाने की कोई चीज़ बढ़ाई और कहा- लो इसे खा लो। औरत नें कहा- मेरा रोज़ा है। आपने उससे कहा-

 

’’كیَفَ تَكُونِینَ صَائِمَۃ وَ قَد سَبَبتِ جَارِیَتِكَ‘‘

 

अब तुम्हारा रोज़ा कहाँ रहा, तुमनें अभी अपनी नौकरानी को गाली दी है।

 

’’ إنَّ الصَّومَ لَیسَ مِن الطَّعَامِ وَ الشَّرَابِ‘‘

 

रोज़ा केवल खाना पीना छोड़ देने का नाम नहीं है।

 

’’وَ إِنَّمَا جَعَلَ‌اللَّهُ ذَلِكَ حِجَاباً عَن سِوَاهُمَا مِنَ الفَوَاحِشِ مِنَ الفِعلِ وَ القَولِ‘‘

 

ख़ुदा ने रोज़े को इन्सान और गुनाहों के बीच पर्दा बनाया है। ख़ुदा चाहता है कि इन्सान गुनाहों की तरफ़ न जाए, और दूसरों का अपमान करना और उनक गाली देना भी एक गुनाह है। या दूसरों से दुश्मनी करना और दिल में उनके लिये बैर रखना, यह भी एक गुनाह है।

तीसरा स्टेप- असावधानी से बचना

रोज़े का तीसरा स्टेप हर उस चीज़ से बचना है जिसके कारण इन्सान ख़ुदा को भूल जाता है। यह रज़े का महत्वपूर्ण स्टेप है। हदीस में है कि एक बार रसूले अकरम स. नें ख़ुदा से पूछा-

 

’’یَا رَبِّ وَ مَا مِیرَاثُ الصَّومِ‘‘

 

रोज़े का क्या फ़ायदा है? ख़ुदा नें जवाब दिया-

 

’’اَلصَّومُ یُورِثُ الحِكمَةَ وَ الحِكمَةُ تُورِثُ المَعرِفَةَ وَ المَعرِفَةُ تُورِثُ الیَقِینَ فَإِذَا استَیقَنَ العَبدُ لاَ یُبَالِى كَیفَ أَصبَحَ بِعُسرٍ أَم بِیُسرٍ‘‘

 

रोज़े से इन्सान के दिल से ज्ञान और विद्या के चश्मे फूटते हैं, जब दिल में ज्ञान और विद्या आ जाती है तो उसके ज़रिये मारेफ़त (निरीक्षण) की रौशनी पैदा होती है। जब मारेफ़त की रौशनी आ जाए तो दिल में वह यक़ीन पैदा होता है जिसकी इच्छा जनाबे इब्राहीम किया करते थे। जब इन्सान यक़ीन हासिल कर लेता है तो जीवन की सारी कठिनाइयां उसके लिये आसान हो जाती हैं और सारी घटनाओं से आसानी से गुज़र जाता है। इससे समझ सकते हैं कि यक़ीन कितना महत्व रकता है। एक इन्सान जो इन्सानियत की सबसे आख़िरी मंज़िल और चोटी को सर करना चाहता है, उसके रास्ते में बहुत सी कठिनाइयां और एम्तेहान होते हैं, उन घटनाओं को आसान बनाने और हर एम्तेहान में सफल होने के लिये उसे जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है वह है यक़ीन। यक़ीन कैसे हासिल होता है? यक़ीन तक पहुँचने का एक ज़रिया रोज़ा है। उस तक पहुँचने के लिये रोज़ा रखने वाले को हर उस चीज़ से सावधान रहना चाहिये जिसके कारण वह ख़ुदा को भूल जाता है ज़रा सी असावधानी रोज़े के इस स्टेप तक के लिये हांक है। ख़ुश क़िस्मत हैं वह लोग जो रोज़े के इस स्टेप तक पहुँच जाते हैं। हमें भी ख़ुदा से दुआ करनी चाहिये, कोशिश करनी चाहिये और हिम्मत करनी चाहिये ख़ुद को यहाँ तक पहुँचाने के लिये।

सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी मेंn रमज़ान एक ईद

रमज़ानुल मुबारक की शुरुवात मुसलमानों के लिये एक बहुत बड़ी ईद है इसलिये बहुत अच्छा है कि मोमिनीन एक दूसरे को इस महीने की मुबारकबाद दें और एक दूसरे को इस महीने से ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने की सलाह दें। क्योंकि यह महीना अल्लाह के मेहमान बनने का महीना है इसलिये इस महीने में केवल वही इसका फ़ायदा उठा सकते हैं जिनके दिल में मान हो और जिनको ख़ुदा अपना मेहमान बनने की तौफ़ीक़ व शुभ अवसर दे। ख़ुदा का एक दस्तरख़्वान आम है जिस पर सारे बैठते हैं और हर दिन बैठते हैं और उस पर लगाई और सजाई गई नेमतों से फ़ायदा उठाते हैं लेकिन यह ख़ुदा का ख़ास दस्तरख़्वान है जिस पर ख़ास लोग ही बैठते हैं।

एक ज़रूरी पिलर

क़ुरआने मजीद फ़रमाता है-

 

’’ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُواْ كُتِبَ عَلَيْكُمُ الصِّيَامُ كَمَا كُتِبَ عَلَى الَّذِينَ مِن قَبْلِكُمْ‘‘(سورہ بقرہ183-(

 

कुछ चीज़ें ऐसी हैं जो केवल इस्लाम में नहीं हैं बल्कि उससे पहले भी दूसरी उम्मतों में रही हैं जैसे नमाज़ और ज़कात के बारे में क़ुरआने मजीद में है कि मुसलमानों से पहले यह दूसरी क़ौमों पर भी वाजिब थे।

 

’’وَأَوْصَانِي بِالصَّلَاةِ وَالزَّكَاةِ مَا دُمْتُ حَيًّا‘‘(سورہ مریم19-(

 

जनाबे ईसा अपने लोगों से कहते हैं ख़ुदा नें मुझे नमाज़ पढ़ने और ज़कात देने को कहा है। ऊपर जो आयत बयान की गई है उससे मालूम होता है कि रोज़ा भी नमाज़ और ज़कात की तरह मुसलमानों से पहले दूसरी उम्मतों पर वाजिब था, फ़रमाता है- तुम पर रोज़े को वाजिब किया गया है जिस तरह तुमसे पहले वालों पर किया गया था। इससे मालूम होता है कि इबादत के यह तीन पिलर हमेशा हर उम्मत के लिये ज़रूरी रहे हैं जिनमें से एक रोज़ा है। नमाज़ इन्सान और ख़ुदा के बीच सम्बंध का नाम है, ज़कात इन्सान के माल को पाक और शुद्ध करने का ज़रिया है और रोज़े के द्वारा दिल और आत्मा पाक होती है।

तक़वे तक पहुँचने की सीढ़ी

इस आयत में ख़ुदा फ़रमाता है-

 

’’لَعَلَّكُمْ تَتَّقُونَ‘‘

 

ताकि उसके द्वारा तुम तक़वे तक पहुँचो। इससे मालूम होता है कि रोज़ा तक़वे तक पहुँचने की एक सीढ़ी है। तक़वा यह है कि इन्सान अपने तमाम आमाल की तरफ़ पूरा ध्यान रखे कि इस काम में ख़ुदा की इच्छा है कि नहीं। इस ध्यान को तक़वा कहते हैं। इसकी अपोज़िट ग़फ़लत (लापरवाही) और बिना सोचे समझे, बिना ध्यान दिये चलते रहना है. ख़ुदा को यह बात पसंद नहीं है कि मोमिन जीवन में आँख बंद कर के सब कुछ करता रहे। मोमिन को हर हाल में और हर काम में खुली आँखों और सावधान दिल के साथ चलना चाहिये। मोमिन के लिये ज़रूरी है कि वह यह देखे कि जो काम वह कर रहा है वह अल्लाह और शरियत की मरज़ी के विरुद्ध तो नहीं हैं। जब इन्सान इस तरह से सावधान हो जाता है और हर चीज़ में अल्लाह और दीन का ध्यान रखता है तो उसके अन्दर तक़वा आ जाता है। रोज़ा उन चीज़ों में से है जो इन्सान को होशियार बनाती हैं, जिनके ज़रिये इन्सान के अन्दर तक़वा आता है। इसी लिये रोज़ा मोमिन के लिये ज़रूरी है।

जो इन्सान और समाज तक़वे के साथ जियेगा तो दुनिया और आख़ेरत की सारी अच्छाईयां उसे प्राप्त होंगी। तक़वा केवल क़यामत और जन्नत के लिये नहीं है बल्कि उसका फ़ायदा दुनिया में भी है। जिस समाज में तक़वा होगा, जो ख़ुदा के रास्ते पर होगा, जिसनें सोच समझ कर इस रास्ते को चुना हो और पूरे ध्यान से उस पर चल रहा होगा तो उसे दुनिया की नेमतें भी मिलेंगी, उस समाज में मोहब्बत, एक दूसरे की सहायता और नेक कामों में एक दूसरे का हाथ बटाने जैसे चीज़ें आम होंगी। तक़वा दुनिया और आख़ेरत दोनों में सफलता की चाभी है। आज की दुनिया इसलिये इतनी समस्याओं, कठिनाइयों और मुसीबतों में फँसी हुई है क्योंकि वह तक़वे से दूर है, गुनाहों में डूबी हुई है और डूबती जा रही है।

तक़वा तमाम नबियों की पहली और आख़िरी बात रही है। आप क़ुरआने करीम की आयतों में पढ़ते होंगे कि अल्लाह के नबी लोगों से सबसे पहली बात तक़वा के बारे में कहते थे। क्योंकि तक़वे ही के ज़रिये अल्लाह की हिदायत मिलती है और अगर तक़वा न हो तो किसी भी इन्सान या समाज को अल्लाह की हिदायत पूरी तरह से नहीं मिलती। रोज़ा सी तक़वे को हासिल करने का एक रास्ता है।

अल्लाह तआला सूरा-ए-हदीद की एक आयत में फ़रमाता है-

 

’’يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اتَّقُوا اللَّهَ وَآمِنُوا بِرَسُولِهِ يُؤْتِكُمْ كِفْلَيْنِ مِن رَّحْمَتِهِ وَيَجْعَل لَّكُمْ نُورًا تَمْشُونَ بِهِ‘‘(سورہ حدید28-(

 

ऐ ईमान वालों! अल्लाह का तक़वा अपनाओ और उसके रसूल पर ईमान ले आओ ताकि वह अपनी रहमत से तुम्हे दो फ़ायदे पहुँचाए और तुम्हे एक ऐसी रौशनी दे जिसके द्वारा तुम आसानी से रास्ता चल सको। इस आयत से पता चलता है कि तक़वा इन्सान के दिल में एक ऐसी रौशनी डाल देता है जिससे वह आसानी से आगे बढ़ता है और सारे अंधेरे दूर हो जाते हैं। जब तक इन्सान को यह न मालूम हो कि उसे कहाँ जाना है, जब तक रास्ता साफ़ न हो वह आगे नहीं बढ़ सकता। तक़वा इन्सान को मन्ज़िल का पता भी बताता है और रास्ता भी साफ़ दिखाता है।

रविवार, 21 जुलाई 2013 07:00

ईश्वरीय आतिथ्य-9

ईश्वरीय आतिथ्य-9

दूसरों की बुराइयों पर पर्दा डालें

हे मेरे पालनहार इस दिन मुझे पवित्रता और पापों से दूरी के वस्त्र से सुसज्जित कर और मुझे संतुष्टि का परिधान पहना और मुझे आज के दिन न्याय करने पर प्रोत्साहित कर और अपनी सुरक्षा द्वारा मुझे हर उस कार्य से सुरक्षित रख जिससे मैं डरता हूं, हे भयभीत होने वालों के रक्षक।

इस प्रकाशमयी दुआ में पवित्रता और दूसरों की बुराइयों और ग़लतियों को छिपाने को मनुष्य के दो आभूषणों के रूप में याद किया गया है और ईश्वर की सुन्दरतम विशेषताओं व गुणों में सत्तारूल उयूब है अर्थात बुराइयों पर पर्दा डालने वाला है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में आया है कि ईश्वर ने अपने बंदों में से हर एक के लिए चालीस पर्दे रखे हैं और जब भी बंदा गुनाहे कबीरा अर्थात बड़ा पाप करता है, तो एक पर्दा फट जाता है और यदि पाप करने के बाद वह प्रायश्चित कर लेता है यह पर्दा अपनी पहली वाली स्थिति पर लौट आता है और यदि प्रायश्चित नहीं करता और अपने पापों पर आग्रह करता रहता है तो यह समस्त पर्दों के फट जाने का कारण बनता है, तब फ़रिश्ते ईश्वर से कहते हैं, हे पालनहार तेरे बंदे ने सभी पर्दों को फाड़ दिया है। उस समय आकाश से आवाज़ आती है कि उसे अपने परों से ढांक दो, किन्तु यदि उसने पापों पर डटे रहकर उदंड्डता की तो ऐसी स्थिति में आवाज़ आती है कि अपने परों को उस पर से हटा लो। यही वह स्थान है जहां पर पापी, अपमानित और लज्जित होता है।

कितना अच्छा होता कि हम मनुष्य अपने जैसों की बुराइयां करना छोड़ दें और दयालु व कृपालु ईश्वर की भांति दूसरों की बुराइयों पर पर्दा डालने वाले बनें। इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यद्यपि ईश्वर पापों पर पर्दा डालने वाला है किन्तु मनुष्य को भी पवित्र होना और पापों से दूर होना चाहिए क्योंकि अपवित्रता का परिणाम अपमान और लज्जा है।

पवित्रता, धैर्य और संयम का सबसे सुन्दर उदाहरण है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कहना है कि पवित्रता, आंतरिक इच्छाओं के मुक़ाबले में प्रतिरोध और उन पर विजयी होना है। वास्तव में जब कोई व्यक्ति अपनी आंतरिक इच्छाओं को अपनी बुद्धि और ईमान के नियंत्रण में रखता है, तो वह पवित्र रहता है। पवित्रता का फल, सुशीलता, लज्जा और शुद्धता है। एक पवित्र और सुशील व्यक्ति जो अपनी इच्छाओं को बुद्धि और ईमान के माध्यम से नियंत्रित करता है, वास्तव में अपने भीतर बेहतरीन प्रतिरोधक क्षमता का पोषण करता है। उसके भीतर सदैव एक प्रकार का निरिक्षक पाया जाता है और इस प्रकार से वह सरलता से हर काम में हाथ नहीं लगाता और उसकी नज़र अपनी समस्त करनी और कथनी पर होती है ताकि ऐसा न हो कि हाथ, ज़बान और शरीर के अन्य अंग पाप में ग्रस्त हो जाएं। बेहतरीन पवित्रता और लज्जा, ईश्वर से लज्जा है। वह मनुष्य जो ईश्वर से लज्जा करता है, जब पाप में ग्रस्त होने वाला होता है तो एक क्षण के लिए अपने सामने सृष्टि के रचियता को देखता है और उसे लज्जा आ जाती है और वह पापों से मुंह फेर लेता है।

हज़रत अली अलैहिस्सलाम मुहम्मद बिन अबी बक्र से वसीयत करते हुए कहते हैं कि जान लो कि सबसे बड़ी पवित्रता, ईश्वरीय धर्म में अवज्ञा से बचना और ईश्वर के आदेशों का पालन करना है। मैं तुमसे सिफ़ारिश करता हूं कि गुप्त और स्पष्ट रूप से अपने दिल में और अपने व्यवहार में सृष्टि के रचयिता ईश्वर से भय रखो।

ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में जिन विषयों की बहुत अधिक सिफ़ारिश की है वह ईमान और सदकर्म का प्रयास है। ईश्वर ने ईमान के बाद सदकर्म की सिफ़ारिश की है। यह इस अर्थ में है कि केवल ईमान लाना ही पर्याप्त नहीं है। सच्चा ईमान अच्छे कर्म का कारण बनता है। ईश्वर ने बारम्बार पवित्र क़ुरआन में सदकर्म करने वालों को शुभ सूचना दी है कि जो लोग सदकर्म करते हैं उन्हें वह पसंद करता है। ईश्वर की दृष्टि से कोई भी अच्छा और भला कर्म छिपा नहीं रहता और उसके निकट भले कर्म करने वालों का पारितोषिक सुरक्षित है। सूरए मरियम की आयत संख्या 96 में उन पारितोषिकों में से एक को बयान किया गया है जो संसार में ईश्वर ईमान वालों को प्रदान करता है। इस आयत में आया है कि निःसंदेह जो लोग ईमान लाए और सदकर्म किए यथाशीघ्र दयावान ईश्वर लोगों के दिलों में उनका प्रेम पैदा कर देगा।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ईमान और सदकर्म का चिन्ह मनुष्य के व्यवहार में खुलकर स्पष्ट हो जाता है। ईश्वर और ईश्वरीय दूतों की पैग़म्बरी पर ईमान, मनुष्य की आत्मा और उसके व्यवहार में सुन्दर रूप में प्रकट होता है। सच्चाई, धैर्य, ईश्वरीय भय, उच्च शिष्टाचार, इसी प्रकार त्याग और बलिदान जैसे उच्च मानवीय भावनाएं, ईश्वर पर ईमान से उत्पन्न होती हैं। यह सभी सुन्दर गुण ऐसे हैं जिन्हें सभी मनुष्य पसंद करते हैं और सभी लोग इन गुणों से संपन्न लोगों की प्रशंसा करते हैं। उदाहरण स्वरूप जो व्यक्ति संयम से काम लेते हैं और धैर्य व संयम के आभूषण से सुसज्जित होते हैं, अपने आस पास के लोगों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार के लोग लोगों के निकट प्रिय होते हैं और लोग उन्हें बहुत पसंद करते हैं।

इसी प्रकार जो लोग अमानतदार होते हैं सभी लोग उन पर विश्वास करते हैं। सच्चे और दानी लोग भी लोगों की दृष्टि में सज्जन और महापुरुष होते हैं। इन विशेषताओं और गुणों का स्रोत ईमान होता है और व्यक्ति और समाज पर इनका लाभदायक प्रभाव पड़ता है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने प्रेम की इस भावना को ईश्वरीय प्रेम का प्रतिबिंब बताया और कहा कि जब ईश्वर अपने बंदों में से किसी एक को पसंद करता है तो अपने महान फ़रिश्ते जिब्राइल से कहता है कि मैं अमुक व्यक्ति से प्रेम करता हूं तुम भी उससे प्रेम करो। जिब्राइल भी उससे प्रेम करने लगते हैं। उसके बाद वह आकाश में पुकारते हैं, हे आकाश वासियों, ईश्वर इस बंदे से प्रेम करता है तुम भी इससे प्रेम करो, तब सभी आकाशवासी उससे प्रेम करने लगेगें। उसके बाद यह प्रेम धरती पर प्रतिबिंबित होता है।

पैग़म्बरे इस्लाम का यह स्वर्ण कथन इस बात का चिन्ह है कि सृष्टि पर ईमान और भले कर्म का विस्तृत प्रतिबिंबन होता है और इससे प्राप्त लोकप्रियता की किरणें सृष्टि के कोने कोने में फैली होती है। वास्तव में इससे बढ़कर आनन्ददायक और क्या हो सकता है कि मनुष्य इस बात का आभास करे कि वह सृष्टि के सभी पवित्र और नेक लोगों का प्रिय है।

यहां तक कि कभी कभी वह लोग भी जिन्होंने ग़लतियां की हैं, मोमिन लोगों के भले कर्मों से प्रभावित हो जाते हैं और दिल ही दिल में उनकी प्रशंसा करते हैं। कितने हैं ऐसे लोग जिनके पूरे अस्तित्व पर अब भी भ्रष्टता का अंधकार नहीं छाया, पवित्र और भले लोगों के सदकर्म, उनके लिए सुन्दर और मनमोहक होते हैं और वे उसकी ओर क़दम बढ़ाते हैं। मोमिन और भले लोग इस प्रकार से लोगों में प्रिय होते हैं कि जब वह संसार से आंखें बंद कर लेते हैं, तो उनके वियोग में आंखें रोती हैं। यद्यपि वे विदित रूप से इस संसार में भौतिक स्थान से वंचित थे, उन्होंने ईश्वरीय प्रेम को अपने हृदयों में स्थान दिया और ईश्वर ने भी इसके पारितोषिक के रूप में उनके प्रेम को लोगों के हृदयों में बिठा दिया है। बहुत अधिक देखा गया है कि भले और सुकर्मी लोग जब इस संसार से चले जाते हैं तो लोग उनके लिए रोते हैं यद्यपि विदित रूप से संसार में उन्हें कोई विशेष स्थान और पद प्राप्त नहीं था।

आइये ईश्वर से यह दुआ करें कि रमज़ान के बाक़ी बचे दिनों में हमारी आत्मा को ईमान और हमारे व्यवहार को सदकर्म के आभूषण से सुसज्जित कर दे। (आमीन)

आइये कार्यक्रम के अंत में एक महान परिज्ञानी की सेवा में उपस्थित होकर शिष्टाचार का पाठ सीखते हैं, हो सकता है कि यह पाठ हमारे जीवन के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो। ईरान के एक प्रसिद्ध परिज्ञानी और धर्मशास्त्री थे जिनका नाम था सैयद अली क़ाज़ी तबातबाई। वे अल्लामा क़ाज़ी के नाम से प्रसिद्ध थे। ज्ञान के आभूषण से सुसज्जित यह विद्वान इतने विनम्र थे कि कभी भी सभा में आगे नहीं बैठते थे और जब भी अपने शिष्यों के साथ चलते थे तो कभी भी आगे नहीं चलते थे। जब भी उनके घर पर कोई मेहमान या शिष्य आता था तो उसके सम्मान में खड़े हो जाते थे। वे सभा में आने वाले छोटे बच्चों तक के सम्मान में खड़े होते थे। जब भी कोई मेहमान उनके घर आता तो वह नमाज़ को उसके सर्वाधिक शुभ व उचित अर्थात आरंभिक समय में पढ़ने के लिए मेहमान से अनुमति लेते थे और तब जा कर नमाज़ पढ़ते थे। अल्लामा क़ाज़ी नमाज़ को उसके उत्तम समय पर पढ़ने पर बहुत बल देते थे। नमाज़ के बारे में उनका दृष्टिकोण इस प्रकार थाः यदि तुमने नमाज़ की रक्षा की तो तुम्हारी सभी चीज़ें सुरक्षित रहेंगी।

मिस्र के सुरक्षा बलों ने अल-आलम के कार्यालय पर बोला धावाप्रेस टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, मिस्र के सुरक्षा बलों ने राजधानी क़ाहिरा में स्थित, ईरान के अरबी भाषा के समाचार चैनल अल-आलम के कार्यालय पर धावा बोल दिया और सभी आवश्यक उपकरणों को ज़ब्त कर लिया है।

शनिवार को मिस्री सुरक्षा बलों ने अल-आलम के क़ाहिरा ब्यूरो चीफ़ अहमद अल-सियूफ़ी को भी गिरफ्तार कर लिया, लेकिन अपने इस कृत्य के लिए कोई विवरण उपलब्ध कराने से इनकार कर दिया।

ग़ौरतलब है कि मिस्र की सेना द्वारा राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को अपदस्थ करने के बाद से मिस्र के अधिकारियों ने मुस्लिम ब्रदरहुड द्वारा संचालित एक टीवी चैनल सहित कई चैनलों के प्रसारण पर रोक लगा दी है।

3 जुलाई को भी मिस्र के सुरक्षा बलों ने अल जज़ीरा मुबाशिर मिस्र समाचार चैनल के कार्यालयों पर छापा मारा था और उसके कम से कम पांच कर्मचारियों को हिरासत में ले लिया था।

शनिवार, 20 जुलाई 2013 06:11

ईश्वरीय आतिथ्य-8

ईश्वरीय आतिथ्य-8

क़ारून का ख़ज़ाना

आज-कल पवित्र रमज़ान के प्रकाशमय वातावरण में बीत रहा है। ये वे दिन हैं जिनमें ईश्वर वर्ष के दूसरे महीनों की तुलना में अपने बंदों पर अपनी असीम कृपा की वर्षा करता है। अपने मन व आत्मा को पवित्र रमज़ान की इस दुआ से शांति प्रदान करते हैः ईश्वर इस दिन भलाई व नेकी को मेरे लिए प्रिय बना दे और पाप व बुराई से मेरे मन में घृणा पैदा कर दे। आज के दिन अपने कोप की ज्वाला से मुझे सुरक्षा प्रदान कर। अपनी कृपा से हे विनती करने वालों की विनती सुनने वाले।

इन सुंदर व मूल्यवान क्षणों में ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हमारे मन में भले कर्मों के प्रति रुचि पैदा कर दे। जब किसी व्यक्ति को कोई कर्म अच्छा लगता है तो उसे पुनः अंजाम देता है तो वह व्यक्ति कितना सौभाग्यशाली है जिसके मन में ईश्वर भले कर्म के प्रति रुचि पैदा कर दे। इस्लाम धर्म के महापुरुषों का कहना है कि सद्कर्म अच्छी विशेषता है जो मनुष्य को परिपूर्णतः की ओर ले जाती है। भले कर्म के संबंध में हज़रत अली अलैहिस्सलाम कहते हैः भला-कर्म सदाचारी के स्वभाव में होता है जबकि बुराई, दुष्ट के स्वभाव में होती है। पवित्र क़ुरआन में बहुत सी आयतों में सदाचारियों की प्रशंसा की गयी है उन्हें मोहसेनीन शब्द के साथ याद किया गया है। इस पवित्र किताब में सदाचारियों की विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। भलाई करने वालों का मन दयालु होता है इसलिए वे दान-दक्षिणा करते हैं। पवित्र क़ुरआन में सदाचारियों की एक विशेषता यह बयान की गयी है कि वे ज़रूरतमंद व निर्धन व्यक्ति की वित्तीय सहायता करते हैं। जैसा कि सूरए आले इमरान की आयत क्रमांक 134 में ईश्वर कह रहा हैः वे ख़ुशहाली और कठिनाई दोनों ही स्थिति में अपने धन ज़रूरतमंदों में बांटते हैं, अपने क्रोध को पी जाते हैं, लोगों को क्षमा कर देते हैं और ईश्वर भलाई करने वालों को दोस्त रखता है। पवित्र क़ुरआन में सदाचारियों की एक और विशेषता यह बयान की गयी है कि वे अप्रिय घटना व विपत्ति की स्थिति में धैर्य और ईश्वर से भय रखते हैं। पवित्र क़ुरआन के शब्दों में सदाचारी कठिन स्थिति में धैर्य से काम लेते हैं और ईश्वर की मंशा पर सहमत रहते हैं। पवित्र क़ुरआन के सूरए तौबा में सदाचारियों को मिलने वाले पारितोषिक का उल्लेख किया गया है। जैसा कि सूरए तौबा की आयत क्रमांक 100 में आया हैः ईश्वर उनसे राज़ी व प्रसन्न है और उनके लिए स्वर्ग के ऐसे बाग़ बनाए हैं जिनके नीचे नहरें जारी हैं और यही बड़ी सफलता है।

पैग़म्बरे इस्लाम के कथन में आया है कि सदाचारियों पर ईश्वर की कृपा दृष्टि होगी। ईश्वर ने उनका मार्गदर्शन किया और उन्हें ज्ञान व तत्वदर्शिता प्रदान की। इसी प्रकार ईश्वर सदाचारियों का अंत भलाई पर करता है इसलिए वे मोक्ष प्राप्त करने वालों में होंगे।

आपने क़ारून और उसके ख़ज़ाने के बारे में अवश्य सुना होगा। क़ारून, हज़रत मूसा का चचेरा भाई था और उसे ईश्वरीय ग्रंभ तौरैत की बहुत जानकारी थी। वह आरंभ में मोमिन सदाचारियों की पंक्ति में था किन्तु धन-संपत्ति और घमंड उसे कुफ़्र की ओर ले गया यहां तक कि ज़मीन उसे निगल गयी। क़ारून अपनी महत्वकांक्षा में अति का शिकार था और बहुत ही कंजूस था। ईश्वर ने उसे इतना अधिक धन दिया था कि उसकी ख़ज़ानों की चाबियां शक्तिशाली व्यक्तियों के लिए उठाना बहुत कठिन हो गया था किन्तु क़ारून इन सभी अनुंकपाओं का आभार व्यक्त करने के बजाए बनी इस्राईल के सामने शेखी बघारता और निर्धनों व कमज़ोरों का अपमान करता था। जैसे जैसे क़ारून की संपत्ति बढ़ती वैसे वैसा उसका घमंड बढ़ता जाता था। बनी इस्राईल के बुद्धिमान व सदाचारी व्यक्ति क़ारून को इस बात की नसीहत करते थे कि ईश्वर ने जो कुछ तुम्हें दिया है उससे परलोक की सफलता के लिए प्रयास करो। धन-संपत्ति कुछ लोगों के विचारों के विपरीत बुरी चीज़ नहीं है। बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि मनुष्य अपनी धन-संपत्ति को किस प्रकार व्यय करता है। क़ारून अपनी विशाल धन-संपत्ति से बहुत से लाभदायक सामाजिक कार्य कर सकता था किन्तु अहंकार उसके वास्तविकता को देखने के मार्ग में रुकावट बन गया। बहुत से शुभचिंतक क़ारून से इस वास्तविकता का उल्लेख करते थे कि जिस प्रकार ईश्वर ने तुम पर कृपा की है उसी प्रकार तुम भी दूसरों के साथ भलाई करो वरना ईश्वर अपनी अनुकंपा तुमसे वापस ले लेगा। किन्तु क़ारून उन लोगों के उत्तर में कहता था कि ये धन-संपत्ति मैने अपने ज्ञान से अर्जित की है इससे तुम्हारा कोई लेना देना नहीं है कि मैं अपने धन के साथ क्या करूं। इस प्रकार क़ारून की उद्दंडता अपनी चरम को पहुंच गयी। यहां तक कि एक दिन हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने ईश्वर के आदेश से क़ारून से धार्मिक कर ज़कात की मांग की और कहा कि ईश्वर ने मुझे आदेश दिया है कि ज़रूरतमंदों का भाग तुम्हारे धन से ज़कात के रूप में ले लूं।

जब क़ारून ने ज़कात के रूप में निकाले जाने वाले धन की मात्रा का हिसाब लगाया तो समझ गया कि उसे बहुत अधिक धन निकालना पड़ेगा इसलिए उसने ज़कात देने से इंकार कर दिया। क़ारून का भ्रष्टाचार व अत्याचार इस सीमा तक बढ़ा कि उसने अपनी स्थिति की रक्षा के लिए हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के विरुद्ध षड्यंत्र रखा और उन पर निराधार आरोप लगाए। हज़रत मूसा ने क़ारून को शाप दिया। ईश्वर ने हज़रत मूसा के शाप से भीषण भूकंप भेजा और धरती क़ारून को उसकी धन-संपत्ति के साथ निगल गयी। इस प्रकार इस घमंडी के जीवन का अंत हो गया। जो लोग उस समय तक क़ारून के धन व वैभव की कामना करते थे, समझ गए कि धन-संपत्ति से न केवल यह कि सम्मान व ईश्वर का सामिप्य प्राप्त नहीं होता बल्कि धन तबाही व बर्बादी का कारण भी बन सकता है। उन्होंने इस वास्तविकता को समझ कर कहाः यदि ईश्वर की कृपा न होती तो हम भी क़ारून का अनुसरण करते और उसी जैसा अंजाम हमारा भी होता। ईश्वर ने सूरए क़सस में आयत क्रमांक 76 से 82 के बीच क़ारून की कहानी का बहुत ही रोचक ढंग से उल्लेख किया है।

इस कहानी से यह वास्तविकता स्पष्ट होती है कि घमंड और अधिक धन का नशा कभी मनुष्य को नाना प्रकार के पाप और बुराइयों की ओर खींच ले जाता है। यहां तक मनुष्य ईश्वरीय पैग़म्बर के विरुद्ध उठ खड़ा होता है। सूरए क़सस की आयत क्रमांक 83 में इन शब्दों में निष्कर्ष पेश किया गया है। ये परलोक का घर हम उन लोगों के लिए विशेष कर देंगे जो धरती पर वर्चस्व और बुराई का इरादा नहीं रखते और अच्छा अंजाम तो सदाचारियों के लिए है। इस बात में संदेह नहीं कि धरती पर वर्चस्व जमाने व बुराई फैलाने की भावना बहुत से लोगों की निर्धनता व वंचित्ता का कारण बनेगी। इस्लाम उस संपत्ति का समर्थन करता है जो धरती पर बुराई के फैलने तथा मानवीय मूल्यों को छोड़ने, स्वयं को बेहतर समझने ता दूसरे के अपमान का कारण न बने। इस्लामी शिक्षाओं में धन-संपत्ति ज़रुरतमंदों की आवश्यकताओं को दूर करने का माध्यम तथा वंचितों घाव पर मरहम के समान होना चाहिए।

क्या आप जानते हैं कि पवित्र क़ुरआन की कौन सी आयत (परलोक के अच्छे अंजाम की ओर से) सबसे अधिक आशावान बनाती है। इस अर्थ को हज़रत अली अलैहिस्सलाम पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के हवाले इस प्रकार बयान करते है। एक दिन मैं मस्जिद में गया तो वहां उपस्थित लोगों से पूछा क्या आप लोग जानते हैं कि पवित्र क़ुरआन की कौन सी आयत सबसे अधिक आशावान बनाती है? हर एक ने अपने ज्ञान के अनुसार आयत का उल्लेख किया। कुछ लोगों ने सूरए निसा की आयत क्रमांक 48 का उल्लेख किया जिसमें ईश्वर कहता है कि वह अनेकेश्वरवाद के सिवा हर पाप को क्षमा कर देगा।

कुछ लोगों ने सूरए निसा की आयत क्रमांक 110 का उल्लेख किया जिसमें ईश्वर कह रहा हैः जो भी कोई बुरा कर्म कर बैठे या स्वयं पर अत्याचार करे फिर ईश्वर से क्षमा की प्रार्थना करे तो ईश्वर को क्षमाशील व दयावान पाएगा।

कुछ लोगों ने सूरए ज़ुमर की आयत क्रमांक 53 का नाम लिया जिसमें ईश्वर कह रहा हैः हे मेरे बंदो! यदि तुमने अपने आप पर ज़्यादती की है, तो ईश्वर की कृपा से निराश न हो क्योंकि वह सभी पापों को क्षमा करता है।

हज़रत अली ने विभिन्न दृष्टिकोण सुनने के पश्चात कहाः मैंने स्वयं पैग़म्बरे इस्लाम को यह फ़रमाते सुना है कि सूरए हूद की आयत क्रमांक 114 सबसे अधिक आशावान बनाती है। जिसमें ईश्वर कह रहा हैः हे पैग़म्बर आप दिन के दोनों किनारों (सुबह और शाम) और कुछ रात गुज़रने पर नमाज़ क़ाएम करें निःसंदेह भलाईयां बुराइयों को समाप्त कर देती हैं। ये याददेहानी है उन लोगों के लिए जो ईश्वर को याद रखते हैं। उसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम ने फ़रमायाः ईश्वर की सौगंद जिसने हमें लोगों के बीच शुभसूचना देने वाला और डराने वाला बनाकर भेजा है, जिस समय व्यक्ति वज़ू करता है उसके पाप झड़ जाते हैं और जिस समय क़िबले की ओर मुंह करके खड़ा होता है, पवित्र हो जाता है। हे अली प्रतिदिन की नमाज़ पढ़ने वाला उस व्यक्ति के समान है कि जिसके घर के सामने पानी की नहर हो और वह उसमें पांच बार नहाए।

गुट पांच धन एक ईरान के साथ तत्काल वार्ता के लिए तैयार

रूस ने कहा है कि गुट पांच धन एक, ईरान के साथ निकट भविष्य में वार्ता का नया चरण आयोजित करना चाहता है।

रूसी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी करके कहा है कि मंगलवार को ब्रसल्ज़ में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में चर्चा के लिए युरोपीय संघ की विदेश नीति प्रभारी कैथरिन एश्टन के नेतृत्व में गुट पांच धन एक के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। बयान में कहा गया है कि इस बैठक में भाग लेने वालों ने ईरान के परमाणु मामले के समाधान के लिए स्टेप बाइ स्टेप के सिद्धांत पर समग्र राजनितिक व कूटनैतिक मार्ग खोजने का संकल्प दोहराया है। रूसी विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है कि ब्रसल्ज़ बैठक में ईरान के साथ निकट भविष्य में वार्ता का नया चरण आयोजित किए जाने की तत्परता की घोषणा की गई और कहा गया कि जैसे ही ईरान पक्ष वार्ता के लिए तैयार होगा, वार्ता का अगला चरण आयोजित किया जाएगा।

मंगलवार, 16 जुलाई 2013 08:10

ईश्वरीय आतिथ्य-7

ईश्वरीय आतिथ्य-7

ईश्वर पर भरोसा

रमज़ान का पवित्र महीना ईश्वरीय दया के अथाह सागर में डुबकी लगाने का अवसर प्रदान करता है। आशा है कि इस महीने के बाक़ी बचे दिनों में हमें इस बात का सामर्थ्य प्राप्त हो सकेगा कि हम इस ईश्वरीय आतिथ्य के उचित और समर्थ अतिथि बन सकें। कार्यक्रम का आरंभ पवित्र रमज़ान महीने की एक दुआ से कर रहे हैं। प्रभुवर! इस दिन मुझे उन लोगों में शामिल कर जो हर काम में तुझ पर भरोसा करते हैं और जिन्हें तेरे निकट कल्याण प्राप्त होता है और जो तेरे निकट बंदे हैं, तुझे तेरी भलाई का वास्ता! हे प्रार्थना करने वालों की आशाओं के चरम बिंदु!

इस प्रार्थना में एक अत्यंत सुंदर एवं प्रभावी सद्गुण की बात की गई है जिस पर धार्मिक शिक्षाओं में बारंबार बल दिया गया है। यह सद्गुण है ईश्वर पर भरोसा और केवल उसी की असीम शक्ति से सहायता चाहना। इस नैतिक गुण को अरबी भाषा में तवक्कुल कहा जाता है। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने ईश्वर के प्रिय दूत जिब्रईल से पूछा कि ईश्वर पर तवक्कुल का अर्थ क्या है? उन्होंने कहा कि यह जानना कि ईश्वर की रचनाएं न तो लाभ पहुंचाती हैं और न ही हानि तथा वे कोई भी वस्तु प्रदान नहीं कर सकतीं। तवक्कुल का अर्थ है लोगों से किसी भी प्रकार की आशा न रखना। जब कोई व्यक्ति इस चरण तक पहुंच जाता है तो फिर वह अपने समस्त कर्म ईश्वर के लिए ही करता है और किसी अन्य से कोई आशा नहीं रखता। वह ईश्वर के अतिरिक्त किसी से नहीं डरता और उसे ईश्वर को छोड़ कर किसी से कोई लोभ नहीं होता। यह है तवक्कुल या ईश्वर पर भरोसे की परिभाषा।

अलबत्ता ईश्वर पर भरोसे का अर्थ यह नहीं है कि लोगों से सहायता न ली जाए क्योंकि ईश्वर ने लोगों को एक दूसरे की सहायता और कठिनाइयों के निवारण का साधन बनाया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि मनुष्य ईश्वर को ही अपने कार्यों में प्रभावी और मुख्य सहायक माने। एक व्यक्ति ने कहा कि जब भी मुझ पर सांसारिक कठिनाइयां पड़ती हैं मैं सूरए ज़ुमर की 36 आयत के इस भाग की तिलावत करता हूं कि क्या ईश्वर अपने बंदे के लिए पर्याप्त नहीं है। इस आयत की तिलावत मुझे विशेष शांति प्रदान करती है और मैं अपने हर कार्य को ईश्वर के हवाले कर देता हूं तथा केवल उसी से सहायता मांगता हूं। जी हां, हर मामले में ईश्वर पर भरोसे और उसी से आशा रखने का नाम तवक्कुल है। मोमिन व्यक्ति अपने हर काम में ईश्वर पर ही भरोसा रखता है और केवल उसी से सहायता चाहता है। सूरए तलाक़ की तीसरी आयत के एक भाग में कहा गया है कि जो कोई ईश्वर पर भरोसा करे तो ईश्वर उसके मामले के लिए पर्याप्त है। इसी प्रकार ईश्वर क़ुरआने मजीद में पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम को संबोधित करते हुए कहता हैः तो जब भी आप किसी कार्य का संकल्प कर लें तो ईश्वर पर ही भरोसा करें कि निस्संदेह ईश्वर को वे लोग प्रिय हैं जो उस पर भरोसा करते हैं।

यह आयत एक महत्वपूर्ण बिंदु की ओर संकेत करती है और वह यह कि जब किसी कार्य के लिए दृढ़ संकल्प कर लिया जाए तब ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए। इस आयत से पता चलता है कि मोमिन व्यक्ति को कर्म के साथ ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए। ऐसा न हो कि हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और बिना कोई काम किए ही ईश्वर पर भरोसे का दावा करें। इस प्रकार के तवक्कुल का कोई परिणाम नहीं होगा क्योंकि ईश्वर पर भरोसे का कदापि यह अर्थ नहीं है कि मनुष्य कार्य का संकल्प और कर्म न करे। अतः अपने प्रयासों के साथ ईश्वर पर भरोसा करने वाला मनुष्य ही उसकी विशेष अनुकंपाओं व कृपा का पात्र बनता है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का कथन है कि धीरज रखो, ईश्वर पर भरोसा करो, चिंतन करो और फिर काम करने के लिए तैयार हो जाओ। तब तुम ईश्वर के हाथों को देखोगे जो तुमसे पहले काम आरंभ कर देंगे।

रमज़ान का पवित्र महीना मुनष्य के समक्ष इस बात का मार्ग खोल देता है कि वह तेज़ी के साथ परिपूर्णता की ओर आगे बढ़े। यह महीना शिष्टाचारिक शिक्षाओं को ग्रहण करने का एक उचित अवसर है। इस महीने में ईश्वर को प्रिय व्यवहार अपना कर तथा अपने भीतर से बुराइयों व अवगुणों को दूर करके ईश्वर के सामिप्य के लिए ऊंची छलांग लगाई जा सकती है। अतः हमें प्रयास करना चाहिए कि रमज़ान के पवित्र महीने में अपने हृदय को ईश्वर के प्रेम का घर बनाएं ताकि शैतान के उकसावों के लिए कोई स्थान बाक़ी न बचने पाए। एक दिन पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने अपने साथियों से कहा कि क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें ऐसे काम से अवगत कराऊं जो शैतान को तुमसे उतना दूर कर दे जितना पूरब पश्चिम से दूर है? उनके साथियों ने बड़ी उत्सुकता से उत्तर दिया कि जी हां! हे ईश्वर के दूत! पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने कहा कि रोज़ा रखो क्योंकि रोज़ा शैतान के मुंह पर कालिख पोत देता है।

शैतान, मनुष्य का कट्टर शत्रु है। जिस दिन मानव के शरीर में ईश्वरीय आत्मा फूंके जाने के कारण उसे अन्य रचनाओं पर एक विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त हुई उसी दिन से शैतान ईर्ष्या और द्वेष की आग में जलने लगा। उसने आदम को सज्दा करने से इन्कार कर दिया और स्वयं को ईश्वर की दया और उसके सामिप्य से वंचित कर लिया। उसी के बाद से वह सदैव मनुष्य की घात में बैठा रहता है ताकि उसे परिपूर्णता के मार्ग से दूर रखे। उसके ये कुप्रयास मनुष्य के जीवन की अंतिम घड़ी तक जारी रहते हैं और वह उसे मोक्ष व कल्याण से दूर रखने का हर संभव प्रयास करता है। शैतान अपने उकसावों के माध्यम से मनुष्य के कमज़ोर बिंदुओं से लाभ उठा कर उसे पथभ्रष्ट करने का प्रयास करता है। शैतान के उकसावों में आना, मनुष्य की कमज़ोरी का चिन्ह है क्योंकि शैतान की शक्ति केवल मनुष्य को पाप करने पर उकसाने की सीमा तक ही है और वह उसे कदापि विवश नहीं कर सकता।

क़ुरआने मजीद के अनुसार शैतान का प्रभुत्व ढीले ईमान वाले ऐसे लोगों पर होता है जो उसके शासन को स्वीकार करते हैं। शैतान, पाप करने के लिए उकसाता भी है और पाप का औचित्य भी उसके मन में डालता है। सूरए नहल की आयत संख्या 99 और 100 में कहा गया है कि निश्चित रूप से शैतान को उन लोगों पर कोई नियंत्रण प्राप्त नहीं है जो ईमान लाए तथा अपने पालनहार पर भरोसा करते रहे। उसे तो केवल उन्हीं लोगों पर नियंत्रण प्राप्त है जिन्होंने उसे अपने अभिभावक के रूप में चुन लिया है। शैतान के उकसावे अत्यंत जटिल होते हैं, इस प्रकार से कि अधिकांश लोग अपने इस ख़तरनाक शत्रु द्वारा लगाई गई सेंध को नहीं समझ पाते। अलबत्ता जिन लोगों का ईमान मज़बूत होता है और जो अपने पालनहार पर भरोसा करते हैं वे शैतानी उकसावों को शीघ्र ही समझ लेते हैं और अनुचित कर्म बल्कि ग़लत सोच की ओर से भी सावधान हो जाते हैं तथा अपने पालनहार की शरण में चले जाते हैं।

मोमिन व्यक्ति अपने ईमान और ईश्वर से भय के कारण, ईश्वरीय मार्गदर्शन और शैतानी उकसावों के बीच के अंतर को भली भांति समझ लेता है। ईश्वरीय मार्गदर्शन, ईमान की सहायता से मनुष्य के अस्तित्व में प्रफुल्लता उत्पन्न करता है क्योंकि वह मनुष्य की पवित्र प्रवृत्ति से समन्वित है किंतु शैतानी उकसावे चूंकि मानव प्रवृत्ति से मेल नहीं खाते इस लिए मनुष्य को जब भी उनका सामना होता है तो उसके भीतर अप्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है। इस्लाम धर्म में उपासना संबंधी सभी शिक्षाएं शैतान और उसके उकसावों से मुक़ाबले के लिए हैं। ये शिक्षाएं उसके अधिक सावधान व होशियार होने तथा उसकी अंतरात्मा के प्रशिक्षण का कारण बनती हैं। इनमें रमज़ान के पवित्र महीने के रोज़ों का विशेष स्थान है। रोज़ा एक ऐसा कार्यक्रम है जो पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के शब्दों में शैतान को मनुष्य से दूर कर देता है और उसमें ईमान व संकल्प को दृढ़ बनाने का अवसर उत्पन्न करता है।

एक बार सिकंदर किसी नगर को विजय करने के लिए गया। उसने उस नगर में कुछ ऐसी बातें देखीं जो उसने पहले कभी नहीं देखी थीं। उसने देखा कि नगर का द्वार खुला हुआ है, दुकानों और घरों में दरवाज़े नहीं हैं और लोग रात के समय अपनी दुकानों को खुला छोड़ कर अपने घर चले जाते हैं। सिकंदर ने उस नगर के लोगों के व्यवहार पर ध्यान दिया तो उसे एक दूसरे के प्रति प्रेम व स्नेह के अतिरिक्त उनके बीच कुछ और दिखाई नहीं दिया। सभी एक दूसरे से प्रेम, सहयोग और भाईचारे का व्यवहार करते थे। एक अन्य बात जिसने सिकंदर का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट किया यह थी कि उस नगर में कोई क़ब्रस्तान नहीं था और हर घर के सामने ही क़ब्रें बनी हुई थीं। उसने क़ब्रों पर लिखे हए वाक्यों पर ध्यान दिया तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ की सभी का निधन पंद्रह से पैंतीस वर्ष की आयु में हुआ था।

सिकंदर ने उस नगर के एक बूढ़े व्यक्ति से पूछा कि मैंने संसार के अनेक नगरों पर विजय प्राप्त की है किंतु मैंने तुम्हारे नगर जैसा कोई शहर नहीं देखा। नगर का द्वार और प्रहरी क्यों नहीं हैं? वृद्ध ने उत्तर दिया कि प्रहरी चोरों के लिए होते हैं और यहां कोई भी चोर नहीं है। हम सब एक दूसरे का ध्यान रखते हैं और एक दूसरे की संपत्ति की रक्षा करते हैं। सिकंदर ने प्रश्न किया कि तुम लोगों के बीच एक विचित्र भाईचारा है, उसका कारण क्या है? बूढ़े व्यक्ति ने कहा कि आश्चर्य न करें क्योंकि प्रेम व स्नेह बुद्धि का चिन्ह है और यदि कहीं पर प्रेम व स्नेह न हो तो आश्चर्य करना चाहिए। यदि कोई व्यक्ति अत्याचार करना चाहता है तो उसे सबे पहले अपनी बुद्धि और अंतरात्मा को पैरों तले कुचलना होगा। क़ब्रों के संबंध में पूछे गए सिकंदर के प्रश्न के बारे में वृद्ध ने कहा कि हम इस कारण अपने घरों के सामने क़ब्रें बनाते हैं ताकि जब भी हम अपने घरों से बाहर आएं तो उन पर हमारी आंख पड़े और हमें यह नसीहत मिले की ये लोग मर चुके हैं और हमें भी मरना है अतः हम अपने व्यवहार की ओर से सावधान रहें। और क़ब्रों पर जो यह लिखा हुआ है कि किसी भी व्यक्ति की आयु पैंतीस साल से अधिक नहीं थी तो उसका कारण यह है कि हमारे जीवन में झूठ और दिखावा नहीं है। हमारे लिए जो बात मानदंड है वह मनुष्य की लाभदायक आयु है। यदि हम क़ब्र पर यह लिखें कि अमुक व्यक्ति की आयु सत्तर वर्ष थी तो यह झूठ होगा क्योंकि अपनी आयु का एक भाग वह सोकर बिताता है जबकि एक भाग में वह लाभदायक काम नहीं करता।

हिज़्बुल्लाह को नई सरकार में शामिल किया जाएः मीशल औन

मीशल औन की हिज़्बुल्लाह के महासचिव सय्यद हसन नसरुल्लाह से भेंट की यादगार तस्वीर (फ़ाइल फ़ोटो)

बैरूतः इर्ना

लेबनान की ईसाइयों की आज़ाद राष्ट्रीय पार्टी के प्रमुख मीशल औन ने लेबनान की नई सरकार में हिज़्बुल्लाह को शामिल किए जाने पर बल दिया

मीशल औन ने सोमवार को लेबनान के नए प्रधान मंत्री तम्माम सलाम द्वारा नई सरकार के गठन की प्रक्रिया शुरु किए जाने की ओर संकेत करते हुए कहा कि यदि सरकार में हिज़्बुल्लाह को शामिल न किया गया तो हम भी उसमें शामिल नहीं होंगे क्योंकि हिज़्बुल्लाह लेबनानी समाज के सबसे महत्वपूर्ण हिस्से में से एक है।

मीशल औन ने लेबनान के विभिन्न संप्रदायों के बीच मेलजोल की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि लेबनान की आज़ाद राष्ट्रीय पार्टी हिज़्बुल्लाह का सदैव समर्थन करेगी।

लेबनान के संसद सभापति नबीह बेर्री ने भी सोमवार को चौदह मार्च धड़े के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा कि जिस गुट ने सरकार के गठन को विलंबित किया है वह हिज़्बुल्लाह या अमल नहीं बल्कि चौदह मार्च धड़ा है जो हिज़्बुल्लाह को अलग करने सहित अव्यवहारिक होने वाली शर्तें लगाकर सरकार के गठन को विलंबित कर रहा है।

इससे पहले लेबनान के राष्ट्रपति मीशल सुलैमान ने भी एक संदेश में देश के भीतरी एवं क्षेत्रीय संकटों की ओर संकेत करते हुए लेबनान के नए प्रधान मंत्री तम्माम सलाम के नेतृत्व में नई सरकार के गठन पर ज़ोर दिया था।

6 अप्रैल को तम्माम सलाम लेबनान की नई सरकार के गठन के लिए चुने गए किन्तु अभी तक वह नई सरकार का गठन नहीं कर पाएं हैं।

22 मार्च 2013 को नजीब मीक़ाती ने अपने मंत्रीमंडल में चुनाव पर निरीक्षण करने वाली समिति के गठन पर सहमति न बनने के कारण लेबनान के प्रधान मंत्री के पद से त्यागपत्र दे दिया था।

सीरिया में जारी लड़ाई फ़िलिस्तीनियों के समर्थन से जुड़ी है

सीरिया के मुफ़्ती शैख़ बदरूद्दीन हस्सून ने कहा है कि अमरीका ने इराक़ युद्ध के दौरान सीरिया को सुझाव दिया था कि वह फ़िलिस्तीनियों का समर्थन छोड़ दे किन्तु राष्ट्रपति बश्शार असद ने अमरीकी सुझाव को रद्द कर दिया था और सीरिया एक मात्र अरब देश है जो इस्राईल के मुक़ाबले में डटा हुआ है।

उन्होंने अलमनार टीवी चैनल से बात करते हुए कहा कि राष्ट्रपति बश्शार असद से अमरीकी सुझाव को रद्द करते हुए कहा था कि पचास लाख फ़िलिस्तीनी विस्थापित हैं और जब तक वह अपने घरों को नहीं लौट जाते तब तक फ़िलिस्तीनियों का समर्थन जारी रहेगा। उन्होंने कहा कि सीरिया एकमात्र अरब देश है जो इस्राईल के मुक़ाबले में डटा हुआ है। उन्होंने कहा कि सीरिया की सरकार ने अमरीका से स्पष्ट शब्दों में कह दिया कि सीरिया, फ़िलिस्तीन में रहने वाले यहूदियों के विरुद्ध नहीं है बल्कि उन लोगों के विरुद्ध है जो दूसरे देशों से लाकर बसाए गये हैं और जिनके कारण फ़िलिस्तीनियों को उनके घरों से बेघर किया गया है। सीरिया के मुफ़्ती ने कहा कि सीरिया ने फ़िलिस्तीनी संगठन हमास की बड़ी सहायता की है और हमास को सीरिया की इन सहायताओं को भूलना नहीं चाहिए। उनका कहना था कि आज सीरिया संकट को दो वर्ष हो रहे हैं और आज भी अमरीका का वही सुझाव है कि सीरिया, हमास और प्रतिरोध का समर्थन बंद कर दे तो सीरिया में जारी युद्ध समाप्त हो जाएगा। उनका कहना था कि सीरिया में लड़ने वाले आतंकवादी अमरीका और ज़ायोनी शासन के पिट्ठु हैं।