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अलअज़हर विश्वविद्यालय ने देश में हिंसा का विरोध किया
मिस्र के अलअज़हर विश्वविद्यालय के प्रमुख ने हर प्रकार की हिंसा या हिंसा भड़काने जैसी कार्यवाहियों का विरोध किया है और कहा है कि मिस्र के वर्तमान संकट का एकमात्र समाधान वार्ता है।
शैख़ अहमद तय्यब ने आज एक बयान में कहा कि सरकार शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के समर्थन की ज़िम्मेदार है और सरकार और समस्त राजनैतिक पक्षों की यह ज़िम्मेदारी है कि वह क़ीमत पर हिंसा की रोकथाम करें और वार्ता की वर्तमान संकट से निकलने का एकमात्र मार्ग है।
शैख़ुल अज़हर के बयान में आया है कि अलअज़हर विश्वविद्यालय, प्रदर्शनों के शांतिपूर्ण होने की स्ति में जनता से इन प्रदर्शनों में भाग लेने के अधिकार पर बल देता है और सरकार को भी इस अधिकार का समर्थन करना चाहिए। शैख़ अहमद तय्यब ने कहा कि सब को चाहिए कि वार्ता को स्वीकार करें क्योंकि इतिहास हर उस व्यक्ति पर जो देश या राष्ट्र से शत्रुता करे, दया नहीं करता।
ममनून हुसैन पाकिस्तान के नए राष्ट्रपति
पाकिस्तान के नव निर्वाचित राष्ट्रपति ममनून हुसैन (File photo)
पी टी वी
पाकिस्तान की सत्ताधारी मुस्लिम लीग एन की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार ममनून हुसैन को नए राष्ट्रपति के रूप में चुन लिया गया है। उन्हें 432 वोट मिले।
पाकिस्तान के इलेक्शन कमीश्नर फ़ख़रुद्दीन ने इस्लामाबाद में प्रेस कांफ़्रेंस में बताया कि राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए संसद और प्रांतीय असेंब्लियों में मतदान हुए। जिसमें 887 लोगों ने मतदान किया, 9 वोट रद्द कर दिए और 878 वोट सही थे। ममनून हुसैन 432 वोटों के साथ राष्ट्रपति चुने गए। राष्ट्रपति पद के दूसरे उम्मीदवार वजीहुद्दीन को 77 वोट मिले।
ज्ञात रहे पाकिस्तान की मुख्य विपक्षी पार्टी पी पी पी सहित कुछ दूसरी पार्टियों ने चुनाव की तारीख़ में की गयी तब्दीली के कारण राष्ट्रपति पद के चुनाव का बहिष्कार किया था।
क़ुद्स दिवस के महत्व पर चर्चा
प्रेस टीवी
ईरान की फ़िलिस्तीनी राष्ट्र की रक्षा सोसायटी की ओर से फ़िलिस्तीनी अभियान के समर्थन में तेहरान में आगामी अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस के महत्व पर चर्चा के लिए एक सम्मेलन हुआ।
रविवार को आयोजित इस सम्मेलन में ईरानी संसद की विदेश नीति और राष्ट्रीय सुरक्षा समिति के चेरयमैन अलाउद्दीन बुरुजर्दी और ईरान में फ़िलिस्तीन के इस्लामी जेहाद आंदोलन के प्रतिनिधि नासिर अबू शरीफ़ भी उपस्थित थे।
ज्ञात रहे अगस्त 1979 में ईरान की इस्लामी क्रान्ति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह ने पवित्र रमज़ान के अंतिम जुमे को अंतर्राष्ट्रीय क़ुद्स दिवस घोषित किया और पूरे विश्व के मुसलमानों से इसे मनाने की अपील की। पूरे विश्व में दसियों लाख लोग, फ़िलिस्तीनी जनता के समर्थन और उनकी भूमि पर इस्राईल के अतिग्रहण की समाप्ति की मांग में सड़कों पर रैलियां निकालते हैं।
क़रज़ावी की मिस्र में विदेशी हस्तक्षेप की मांग
क़तर में शरण लिये हुए नॉटो मुफ़्ती के नाम से मशहूर यूसुफ़ क़रज़ावी नें मिस्र पहुँचने पर पश्चिमी देशों से मिस्र में हस्तक्षेप करने की मांग की है। क़रज़ावी अपदस्थ राष्ट्रपति मोहम्मद मुरसी का समर्थन कर रहा है। क़रज़ावी नें मुसलमानों से भी मांग की है कि वह मिस्र में होने वाली घटनाओं पर चुप न बैठें। क़रज़ावी नें जामिया अलअज़हर के शेख़ की भी कड़ी आलोचना की जिसने मुरसी के पद से हटाये जाने के बारे में मिस्री फ़ौज का समर्थन किया था। क़रज़ावी के हिंसक बयानों पर जामिया अल अज़हर के उल्मा नें एक मीटिंग बुलाई है। मोहम्मद मुरसी को क़तर की सरकार का समर्थन प्राप्त था जबकि मिस्र की अबवरी सरकार मिस्र की फ़ौज को सऊदी अरब और एमारात का पूरी तरह से समर्थन प्राप्त है। सूत्रों के अनुसार फ़ार्स की खाड़ी की अरब सरकारें मिस्र के विषय में दो भागों में बँटी हुई हैं और क़तर को इस समय मिस्र के सिलसिले में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है। क़तर और सऊदी अरब दोनों देशों को अमरीका का ग़ुलाम माना जाता है लेकिन क्षेत्र में अमरीका की अच्छी सेवा करने के लिये दोनों देशों के अधिकारियों के बीच में खींचा तानी जारी है। क़तर आतंकवादियों और अमरीका के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी है जबकि सऊदी अरब एक दूसरे ऐन्गिल से अमरीका की सेवा कर रहा है। सऊदी अरब इख़वानुल मुस्लेमीन की सरकार के विरुद्ध और हुस्नी मुबारक का समर्थक था और सऊदी अरब के रियाल नें अन्तत: मिस्र में इख़वानुल मुस्लेमीन की सरकार का तख़्ता पलट दिया।
ईश्वरीय आतिथ्य-13
ईश्वर से पापों की क्षमा याचना
हे पालनहार, आज के दिन मुझसे मेरे पापों का हिसाब न ले और मेरी ग़लतियों और पापों को क्षमा कर दे और मुझे आपदाओं में ग्रस्त न कर। तुझे तेरी गरिमा और मर्यादा की सौगंध, हे मुसलमानों को गरिमा प्रदान करने वाले।
रमज़ान के पवित्र दिनों में मनुष्य ईमान के साथ ईश्वरीय पहचान के ऐसे चरण में पहुंच जाता है कि बहुत ही विनम्रता से ईश्वर से इच्छा व्यक्त करता है कि उसके पापों को क्षमा कर दे और उससे हिसाब किताब न ले और उसे दंडित न करे। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि मनुष्य के जीवन पर पापों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मनुष्य जो भी पाप करता है उस से वह अपनी आत्मा और मानस पटल को प्रदूषित कर लेता है और कल्याण और सफलता के मार्ग से दूर हो जाता है। इसीलिए पापी व्यक्ति कभी कभी इस बात का भी आभास करने लगता है कि वह ईश्वरीय अनुकंपाओं और विभूतियों से कट कर रह गया है। कुछ अवसरों पर उसका हृदय इतना गंदा और पापों से दूषित हो जाता है कि उसे किसी भी प्रकार के अत्याचार और अन्याय से संकोच नहीं होता है। पवित्र क़ुरआन जब लोगों को पाठ सिखाने के लिए पूर्वजों की कथाएं बयान करता है तो इस बिन्दु को याद दिलाता है कि हमने नगरों को उसमें रहने वालों के अत्याचारों के कारण विनष्ट किया। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों से जो बात समझ में आती है वह यह है कि समस्त ग़लतियों की जड़, संसार में सीमा से अधिक व अनुचित प्रेम व लगाव है। हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इस संबंध में कहते हैं कि हर पाप की जड़, संसार से प्रेम है।
भाग्यशाली वह है जो एक पाप के बाद, यद्यपि वह कितना ही छोटा क्यों न हो, ईश्वर से प्रायश्चित कर लेता है क्योंकि ईश्वर हर कर्म को चाहे वह एक कण के बराबर ही क्यों न हो देखता है और उसके बारे में प्रश्न करता है और उस समय पापी को अधिक घाटा उठाना पड़ता है। सर्वसमर्थ व महान ईश्वर बेहतरीन क्षमा करने वाला और अपने बंदों से बहुत शीघ्र ही प्रसन्न होने वाला है। इसीलिए ईश्वर को सरीउर्रेज़ा अर्थात जल्दी प्रसन्न होने वाला कहते हैं। ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में अपने बंदों से अपनी तौबा और पापों के प्रायश्चित के लिए आग्रह किया है और कहा है कि क्या यह नहीं जानते कि ईश्वर अपने बंदों की तौबा स्वीकार करता है और सदक़ा अर्थात विशेष दान जो बंदे उसके नाम पर देकर लोगों की सहायता करते हैं उसको लेता है और वही बड़ा तौबा स्वीकार करने वाला और दयालु है।
ईश्वर आवश्यकतामुक्त है और यह ऐसी स्थिति में है कि हमारे पास उसके अतिरिक्त कोई और नहीं है। उसके अतिरिक्त कौन है जो हमारे तौबा को स्वीकार कर सकता है और हमारे पापों को क्षमा कर सकता है। आइये पवित्र रमज़ान की विभूतियां भरी रातों और दिनों में ईश्वर के दरबार में, उससे अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और उससे पापों को माफ़ करने की विनती करते हैं।
ईरान के प्रसिद्ध कवि मौलवी की मसनवी में एक कथा बयान की गयी है कि एक व्यक्ति के मृत्यु का समय निकट होता है। उसके पास धन दौलत, पत्नी, घर बार और बड़ा सा बाग़ सब कुछ था। उसके पास एक पवित्र क़ुरआन भी था जो उसके पास वर्षों से था और उससे उसे बहुत लगाव था। उसने जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी पत्नी से कहा कि मेरा अंतिम समय आ गया है और मैं शीघ्र ही परलोक सिधारने वाला हूं। तुम वर्षों से मेरे साथ थी और मेरी ख़ुशी और दुखों में तुमने मेरा साथ दिया। अब तुम बताओ के मेरे बाद तुम क्या करोगी। पत्नी ने उससे कहा कि तुम तो जानते हो कि मैं इस यात्रा में तुम्हारे साथ नहीं जा सकती। तुम्हारे बाद मैं अपने जीवन को जारी रखूंगी और शायद दूसरा विवाह भी कर लूं। पुरुष ने निराश होकर अपने बाग़ की ओर देखा और कहा यहां केवल एक बंजर था मैंने उसे उपजाऊ बनाया और फिर बाग़ लगाकर हरियाली में परिवर्तित किया, हे बाग़ मैने तुम्हारे साथ बड़ी मेहनत की है अब मेरा अंतिम समय है, क्या तुम मेरे साथ आओगे या मेरी पत्नी ही की भांति मुझे धोखा दोगे। बाग़ ने कहा कि तुमने दूसरों की बोई हुई फस्ल खाई और दूसरों के लगाए हुए पेड़ से फल खाएं हैं और अब तुम अपने हाथों से लगाए गये पेड़ों से दूसरों को फल खाने देना नहीं चाहते। चलो अपना रास्ता देखो, मैंने तुम्हारे जैसे हज़ारों मालिक देखे हैं और बाद में भी तुम्हारी तरह हज़ारों मालिक देखूंगा। पुरुष बहुत दुखी हुआ और दुखद लहजे में कहने लगा। दुर्भाग्यशाली वह है जो संसारिक मायामोह में ग्रस्त हो और जब उसकी शक्ति समाप्त हो जाती है और बुढ़ापा आ जाता है तो न निकट संबंधी और परिवार काम आता है, न धन दौलत। उसके बाद उसने पवित्र क़ुरआन को अपने हाथों में लिया और कहा कि हे दुखी दिलों के साथी, हे आवश्यकता रखने वालों की पुकार, वर्षों से, मुझमें जितनी क्षमता थी, तेरी तिलावत की और तेरी सुन्दर शिक्षाओं से अपने हृदय को प्रकाशमयी किया। मैं जो कि परलोक की यात्रा पर जा रहा हूं, तो क्या तेरा प्रकाश, प्रलय की यात्रा में मेरे अंधकारमयी मार्ग को उज्जवल करेगा। पवित्र क़ुरआन से आवाज़ आईः मैं मज़बूत रस्सी हूं, जो भी मेरे साथ हो जाता है, मैं उसे अपमानित नहीं होने देता और उसे विभूतियों के घर में उतार देता हूं और ईश्वरीय पहचान के स्थान पर ईश्वर की प्रसन्नता तक पहुंचा देता हूं। संतुष्ट रहो कि मैं क़ब्र के अंधेरे में जलते हुए दिए की भांति तुम्हारे साथ हूं।
लोक परलोक के जीवन में मनुष्य के साथ सदैव रहने वाला और बेहतरीन मित्र, पवित्र क़ुरआन और सदकर्म है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम एक स्थान पर कहते हैं कि यह बात सच है कि मुसलमान पुरुष के तीन मित्र होते हैं। एक मित्र जो यह कहता है कि तेरे जीने मरने में मैं तेरे साथ हूं, वह उसका चरित्र और कर्म है। दूसरा मित्र जो यह कहता है कि मैं केवल क़ब्र के किनारे तक तेरे साथ हूं और उसके बाद तेरा साथ छोड़ दूंगा, वे उसकी संतान और पत्नी है। तीसरा मित्र कहता है कि मैं तेरे मरने तक तेरे साथ हूं वह उसकी धन दौलत है।
हम में से हर एक, जहां कहीं भी हो, एक निर्धारित समय पर, एक निर्धारित स्थान पर जिसके बारे में हमें कुछ ज्ञात नहीं है, मौत के फ़रिश्ते से भेंट करेगा। यह बात स्पष्ट है कि जो लोग ईश्वर से जुड़े होते हैं और सांसारिक मायामोह में ग्रस्त नहीं होते, उनका इस मिट्टी के शरीर से अलग होना बहुत ही सरल, सुन्दर और मनमोहक होता है और यदि मनुष्य की जान सांसारिक मायामोह में अटकी रहती है तो मिट्टी के इस शरीर अर्थात भौतिकवाद से उसका अलग होना बहुत कठिन होता है। बुद्धिमान और दूरदर्शी वह है जो सदैव इस प्रयास में रहता है कि उसके जीवन का कोई भी क्षण ईश्वर की प्रसन्नता प्राप्त करने के प्रयास के अतिरिक्त कहीं और ख़र्च न हो। महापुरुषों ने कहा है कि हर बंदे की आयु, ईश्वर की अमानत है कि मरने के बाद जिसके बारे में प्रश्न किया जाएगा और हिसाब किताब मांगा जाएगा। यदि उसमें लापरवाही की तो उसने ईश्वर की अमानत को बर्बाद किया और यदि समय से भरपूर लाभ उठाया और उसका सही उपयोग किया तो उसने ईश्वर की अमानत की बड़े अच्छे ढंग से रक्षा की है।
जिस प्रकार अन्य महीनों की तुलना में रमज़ान का पवित्र महिना विशेषताओं और गुणों का स्वामी होता है उसी प्रकार इस महीने में किए जाने वाले कर्मों के भी विशेष प्रकार के पारितोषिक होते हैं। इसी लिए मुसलमान इस महीने में निर्धन और दुखी लोगों की सहायता को अपना दायित्व समझते हैं और हर कोई अपनी क्षमता के अनुसार उनकी आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करता है। इसी के साथ कुछ लोग मनुष्य के जीवन को प्रकाशमयी बनाने के लिए सूर्य की भांति होते हैं। इन्हीं में से एक व्यक्ति स्वर्गीय शैख़ रजब अली नीकूगूयान थे। वे बहुत ही साधारण व सामान्य जीवन व्यतीत करते थे किन्तु उनके शिष्टाचार और परिज्ञान की चर्चा सभी लोगों की ज़बान पर थी।
शैख़ रजब अली ख़य्यात एक दर्ज़ी थे। फ़ारसी और अरबी भाषा में ख़य्यात दर्ज़ी को कहा जाता है। उन्होंने आधारिक रूप से किसी धार्मिक स्कूल या विश्वविद्यालय में ज्ञान प्राप्त नहीं किया किन्तु अधिकतर ज्ञान,परिज्ञान और आध्यात्म से जुड़े महापुरुषों की सेवा में रहते थे। उनके शिष्यों में से एक थे करबलाई अहमद तेहरानी। वे अपने उस्ताद शैख़ के बारे में कहते हैं कि शैख़ अर्थात दानशीलता और मानवता। वे बड़े ही अनोखे ढंग से निर्धनों की सेवा करते थे, यहां तक कि निर्धनों की चिंता उन्हें सोने नहीं देती थी। इसीलिए वे अपने मित्रों से बारम्बार कहते थे कि हमारी और तुम्हारी जेब एक ही है और इसमें कोई अंतर नहीं है। जब भी पैसों की आवश्यकता हो बे झिझक मुझ से मांग लेना, मुझ पर तुम्हारा अधिकार है।
वे लोगों के प्रति भलाई को ईश्वरीय प्रसन्नता का आधार मानते हैं जैसा कि पवित्र क़ुरआन में आया है कि हम केवल ईश्वर की प्रसन्नता के कारण तुम्हें खिलाते हैं न तुम से कोई बदला चाहते हैं और न आभार।
शैख़ रजब अली ख़य्यात कहते हैं कि यदि वास्तविक एकेश्वरवाद के मार्ग को खोजना चाहते हो तो लोगो से भलाई करो। बंदों से भलाई, उपासना और एकेश्वरवाद के मार्ग की भूमि प्रशस्त करता है। उन्होंने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लोगों की भलाई और विभिन्न समस्याओं के निवारण के लिए जो प्रयास किए उनके अतिरिक्त विभिन्न अवसरों पर अपने छोटे से घर में लोगों को खाना खिलाया करते थे और ईमान वालों को खाना खिलाने को विशेष महत्त्व देते थे। शैख़ रजब अली ख़य्यात का आचरण हमें एक महापुरुष के उस कथन की याद दिलाता है जिसमें उन्होंने कहा है कि ईश्वर का वास्तविक बंदा वह है जो ईश्वरीय गुणों को अपने कर्मों और व्यवहार की अंग्रिम सूचि में रखे। वह दयालु और कृपालु है, तुमको भी कृपालु बनना चाहिए। वह दानी और क्षमाशील है, तुमको भी दानी बनना चाहिए। वह भलाई और नेकी करने वाला है, तुम को भी भलाई करने वाला बनना चाहिए। तुम्हारे भीतर जितने अधिक ईश्वरीय गुण प्रकट होंगे तुम उतना ही ईश्वर की भांति बनते जाओगे और ईश्वर का उतराधिकारी बनने की योग्यता तुम में पैदा हो जाएगी।
पाकिस्तान लौटे ज़रदारी, समय से पहले त्यागपत्र दे सकते हैं
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी कई सप्ताह के निजी दौरे से आज स्वदेश लौट रहे हैं।
प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी पाकिस्तान के दौरे पर आने वाले अमरीकी विदेशमंत्री जान कैरी से इस्लामाबाद में भेंट करेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त के पहले सप्ताह में वह पिपल्ज़ पार्टी की उच्चस्तरीय बैठक की अध्यक्षता भी करेंगे और ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहान के शपथ ग्रहण समारोह में भी भाग लेंगे। रिपोर्ट में कहा गया है कि वह ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी के शपथग्रहण समारोह में भाग लेने के बाद स्वदेश वापसी पर अपने पद से त्याग पत्र देकर पुनः विदेश चले जाएंगे। ज्ञात रहे कि इससे पूर्व पाकिस्तान के प्रमुख राजनीतिक दल और विपक्षी पार्टी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी पीपीपी ने ३० जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव के बहिष्कार की घोषणा करते हुए इसमें भाग न लेने का फैसला किया था। पीपीपी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार सेनेटर रजा रब्बानी ने चुनाव आयोग पर आरोप लगाते हुए कहा था कि उम्मीद थी कि अठारहवें और बीसवीं संशोधन के बाद चुनाव आयोग स्वतंत्र होकर सकारात्मक तरीके से निर्णय करेगा किंतु ऐसा नहीं हुआ इसीलिए हमारे पास इस चुनाव के बहिष्कार के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचता।
इस्लामी जागरूकता, वर्चस्ववाद के विरोध से समाप्त नहीं होगी- वरिष्ठ नेता
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा है कि इस्लामी जागरूकता, वर्चस्ववाद के विरोध से समाप्त होने वाली नहीं है। रविवार की रात को विश्वविद्यालयों ने छात्रों ने तेहरान में आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई से भेंटवार्ता की। इस भेंटवार्ता में वरिष्ठ नेता ने क्षेत्र के कुछ देशों में घटने वाली घटनाओं की ओर संकेत करते हुए कहा कि यह घटनाएं इस बात को दर्शाती हैं कि इन देशों में इस्लामी जागरूकता की जड़ें कितनी गहरी हैं। आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने कहा कि इसको उचित ढंग से आगे न बढ़ाने तथा इसके साथ विश्वासघात के ही कारण आज मिस्र जैसे देश की स्थिति बहुत अधिक दुखदायी है। उन्होंने कहा कि छात्रों को चाहिए कि वे इस्लामी जागरूकता प्रक्रिया, इसके गतशील रहने के मार्ग में वर्चस्ववा की ओर से खड़ी की जाने वाली बाधाओं, क्षेत्रीय देशों में इस बारे में की जाने वाली ग़लतियों और इन देशों में घटने वाली घटनाओं का ईरान में जारी इस्लामी गणतंत्र ईरान की प्रक्रिया से तुलना जैसे विषयों पर विचार-विमर्श के माध्यम से अपने देश की जनता की सेवा करें। वरिष्ठ नेता ने कहा कि क्षेत्रीय स्थिति की वास्तविकता पूर्ण समीक्षा से ज्ञात होता है कि कुछ विषय इस्लामी व्यवस्था को सुदृढ़ करने का कारण रहे हैं और वे इस्लामी गणतंत्र ईरान की स्ट्रैटेजी की गइराई को बताते हैं। इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने इस्लाम के शत्रुओं की ओर से शीयों और सुन्नियों के बीच मतभेद फैलने के विषय के संदर्भ में कहा कि विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में शीयों पर अत्याचार किये जा रहे हैं क्योंकि वे समझते हैं कि शीया, इस्लामी गणतंत्र ईरान के समर्थक हैं हालांकि शत्रु को यह नहीं पता कि बहुत से देशों में हमारे सुन्नी भाई भी बड़ी निष्ठा के साथ ईरान की इस्लामी व्यवस्था का समर्थन करते हैं।
ईश्वरीय आतिथ्य-12
अस्तित्व की ताज़गी
ध्यान से सुनिए उस मनोहर आवाज़ को जो महान और विभूतियों से परिपूर्ण महीने के आने की शुभ सूचना देती है। अपनी समस्त अनुकंपाओं, विभूतियों और सुन्दरताओं के साथ रमज़ान का पवित्र महीना हमारे बीच आया है। यह महीना आकाश के यात्री की भांति अपने अनंत प्रकाश के साथ आया है ताकि हमारे थके हुए अस्तित्व को तरावट प्रदान करे और ईश्वर की कृपा के साथ सामिप्य को सुनिश्चित बनाए। इस बार भी रमज़ान, धीरे-धीरे हमारे हृदयों के द्वार में प्रविष्ट हो रहा है ताकि अपने आध्यात्मिक क्षणों से हमारे जीवन के दिनों और रातों को स्वयं से समन्वित करें। पवित्र रमज़ान, सुन्दर क्षणों से परिपूर्ण महीना है। एसे क्षण जिनसे लाभान्वित होने के लिए केवल उनका अनुभव ही किया जा सकता है। विभूतियों से भरी इसकी भोर, सूर्यास्त के पश्चात आध्यात्मिक वातावरण से परिपूर्ण इसके इफतार के क्षण, प्रार्थना और पवित्र क़ुरआन से एक विशेष लगाव, भोर समय उठना और सूर्योदय तक जागते रहने जैसी समस्त विभूतियां आदि सबकुछ इसी उत्तम महीने की अनुकंपाओं का भाग हैं।
महान ईश्वर ने लोगों के लिए विभिन्न कालों और स्थानों पर पवित्रता एवं आध्यात्म से परिपूर्ण वातावरण उपलब्ध करवाया है ताकि परिवर्तन के लिए उनके पास उचित अवसर हो। इन मूल्यवान अवसरों में से एक, पवित्र रमज़ान का महीना है। वास्तव में हमको इस प्रकार के प्रिय अवसरों की कितनी अधिक आवश्यकता है कि अपने ईश्वर के साथ हम एकांत में प्रार्थना एवं मंत्रणा कर सकें। रमज़ान का पवित्र महीना एक ही प्रकार से बिताई जाने वाली दैनिक जीवन शैली में परिवर्तन उत्पन्न करता है ताकि मनुष्य स्वयं को समझ सके और एसा न हो कि बुराइयों के साथ युद्ध में उसकी सांसारिक आवश्यकताएं और संसार पर उसकी निर्भर्ता, उसको अक्षम बना दे। अब जबकि जीवन की समस्याओं ने हमको बुरी तरह से थका दिया है आइए इस महीने में ईश्वरीय अनुकंपाओं की वर्षा से तृप्त होते हैं और इस महीने में, पश्चाताप के पंखों का सहारा लेकर ईश्वर की अनुकंपाओं के आकाश में उड़ान भरें। हे ईश्वर तू धन्य है कि हम एक अन्य रमज़ान का अनुभव कर रहे हैं और यह हमारा सौभाग्य है कि पुनः हम इस पवित्र महीने के साक्षी बने हैं। हे ईश्वर की अनुकंपा के महीने तुझपर सलाम हो। सलाम हो तुझपर हे पवित्रता के महीने जिसके लिए हमारी इच्छा है कि तू सदैव हमारे साथ रहे। हे ईश्वर हम आशा से भरे मन के साथ आए हैं ताकि हृदय के मरूस्थल को तेरी अनुकंपा की वर्षा से, प्रेम और ईमान के बाग़ में परिवर्तित कर सकें। हम तेरी ओर आए हैं क्योंकि मन को केन्द्रित करने के लिए तेरे अतिरिक्त किसी अन्य को हम उचित नहीं समझते। हम अपने हृदय की खिड़कियों को खोलते हैं ताकि रमज़ान का पवित्र महीना स्वर्ग की पवन की भांति हमारे मन और हमारी आत्मा को तरावट प्रदान करे।
इतिहास में मिलता है कि पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा (स) जब रमज़ान का चांद देखते थे तो काबे की ओर मुंह करके खड़े हो जाते और ईश्वर से स्वास्थ्य और सुरक्षा की प्रार्थना करते थे और नमाज़ पढ़ने, रोज़े रखने तथा पवित्र क़ुरआन पढ़ने के लिए उससे सहायता मांगते थे। जब रमज़ान का महीना आता था तो पैग़म्बरे (स) की ओर से दान-दक्षिणा और भलाइयों में वृद्धि हो जाया करती थी। दीन- दुखियों पर वे पूर्व की तुलना में अधिक स्नेह दर्शाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम लोगों से कहा करते थे कि रमज़ान के महीने में अधिक से अधिक क़ुरआन पढ़ो। एक दिन उनसे पूछा गया कि रमज़ान में सबसे अच्छा कार्य कौनसा है तो इसपर पैग़म्बरे इस्लाम (स) ने उत्तर दिया कि इस महीने में महत्वपूर्ण कार्य, ईश्वर द्वारा वर्जित की गई बातों से बचना है अर्थात ईश्वर ने जिन कार्यों को मना किया है उसे मनुष्य को नहीं करना चाहिए।
रमज़ान के विशेष कार्यक्रम में हम प्रयास कर रहे हैं कि महापुरूषों के कथनों से आपको अवगत करवाएं। आज हम आपको रोज़े के लाभ के संबन्ध में ईरान के महान तत्वदर्शी एवं वरिष्ठ धर्मगुरू हाज मिर्ज़ा जवाद आग़ा मलिकी तबरीज़ी के विचारों से अवगत करवाएंगे। उन्होंने बहुत सी पुस्तकों की रचना की है जिनमें से एक का नाम “अलमुराक़ेबात” है। अपनी पुस्तक “अलमुराक़ेबात” में आग़ा मलिकी तबरीज़ी रोज़े की विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहते हैं कि भूख, हृदय की पवित्रता एवं कोमलता का कारण बनती है और यह मनुष्य द्वारा चिंतन करने की भूमि प्रशस्त करती है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि जो भी अपने पेट को खाली रखेगा उसकी सोच महान होगी, उसके विचार महान होंगे और वह तत्वदर्शिता के संदेशों को सुनेगा। यही कारण है कि इस्लामी शिक्षाओं में मिलता है कि कुछ समय तक सोच-विचार करना सत्तर वर्षों की उपासना से अधिक महत्वपूर्ण है। मलिकी तबरीज़ी आगे लिखते हैं कि सोच या चिंतन की यह भूमिका यदि प्रशस्त हो जाए तो फिर इसके बहुत ही अच्छे परिणाम सामने आएंगे। इससे निश्चित रूप से आपको यह ज्ञात हो जाएगा कि ईश्वर ने क्यों अपने अतिथियों के लिए भूख का चयन किया है? इसका कारण यह है कि ईश्वर की पहचान और उसकी निकटता से बढ़कर कोई और चीज़ नहीं है और उससे निकट करने वाले कारणों में से एक भूख है। एसी स्थिति में मनुष्य को पता चलता है कि रोज़े रखना केवल स्वर्ग और उसकी विभूतियों के लिए नहीं हैं बल्कि यह निमंत्रण ईश्वर से निकटता के लिए है।
हज़रत ख़दीजा को दो कफ़न क्यूँ दिये गये?
हज़रत ख़दीजा अ. के बाप ख़ुवैलद और मां फ़ातिमा बिंते ज़ाएदा बिंते असम हैं। जिस परिवार में आपका पालन पोषण हुआ वह परिवार अरब के सारे क़बीलों में सम्मान की नज़र से देखा जाता था और पूरे अरब में उसका प्रभाव था।
हज़रत ख़दीजा अ. अपनी क़ौम के बीच एक अलग स्थान रखती थीं जिसकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। आपके स्वभाव में नम्रता थी और आपके अख़लाक़ व नैतिकता में भी कोई कमी नहीं थी इसी वजह से मक्के की औरतें आपसे जतलीं थी और आपसे ईर्ष्या करती थीं।
आप इतनी पवित्र थीं कि आपको जाहेलियत के ज़माने में भी ताहेरा (पवित्र), मुबारेका (शुभ) और सय्यदा-ए-ज़ेनान (औरतों की सरदार) के नाम से जाना जाता था। यह इस बात का प्रतीक भी है कि उस गंदे माहौल में भी आपकी ज़िंदगी पूरी तरह से पवित्र थी।
(अल-एसाबः फ़ी मअरेफ़तिस सहाबा भाग 7 पेज 600)
हज़रत ख़दीजा पर ख़ुदा का सलाम
हज़रत ख़दीजए कुबरा स. का स्थान ख़ुदा के नज़दीक इतना बड़ा था कि बहुत ज़्यादा अवसरों पर उसने आपको सलाम व दुरूद भिजवाया।
जैसा कि हज़रत मोहम्मद बाक़िर अ. फ़रमाते हैं कि जब पैग़म्बरे अकरम स. मेराज से पलट रहे थे तो जिबरईल सामने आए और कहा कि ख़ुदा वन्द आलम ने फ़रमाया है कि मेरी तरफ़ से ख़दीजा को सलाम पहुँचा देना।
(बेहारुल अनवार भाग 6 पेज 7)
जब तक आप ज़िन्दा रहीं पैग़म्बर स. ने दूसरी शादी नहीं की।
ज़हबी आपकी श्रेष्ठता (महानता) में लिखते हैः वह महान, पवित्र, समझदार, उदार और जन्नती महिला थीं। हर तरह से एक पूर्ण महिला थीं। पैग़म्बरे अकरम स. हमेशा उनकी प्रशंसा व तारीफ़ करते रहते थे और उनको दूसरी बीवियों पर वरीयता देते थे और आपका बहुत सम्मान करते थे। यही वजह थी कि हज़रत आयशा कहती हैं कि मैं ख़दीजा से हसद (ईर्ष्या) करती थी क्योंकि पैग़म्बरे अकरम स. उनको बहुत चाहते थे।
आपकी फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) के लिये यही काफ़ी है कि पैग़म्बरे अकरम स. नें आपकी ज़िन्दगी में किसी दूसरी औरत से शादी नहीं की और ना ही कनीज़ रखी। सच्चाई यह है कि हज़रत ख़दीजा आप (स.) की सबसे अच्छी बीवी और साथी थीं। आपने अपना सारा माल व दौलत इस्लाम की तरक़्क़ी के लिये दान कर दिया और उस जगह पर पहुँच गईं कि ख़ुदा वन्दे आलम नें हज़रत रसूले अकरम स. को आदेश दिया कि ख़दीजा को जन्नत में आरामदायक घर मिलने की ख़बर दे दें। (सियरे आलामुन नुबलाअ भाग 2 पेज 110)
हज़रत अली अ. फ़रमाते हैं कि पैग़म्बरे अकरम स. नें फ़रमायाः
«أفضل نساء الجنة أربع: خدیجة بنت خویلد، و فاطمة بنت محمد، و مریم بنت عمران، و آسیة بنت مزاحم امرأة فرعون»
जन्नत की सबसे महान औरतें, चार हैः ख़दीजा ख़ुवैलद की बेटी व फ़ातिमा स. मोहम्मद स.अ. की बेटी, मरियम इमरान की बेटी और फ़िरऔन की बीवी आसिया।
(सही बुख़ारी भाग 3 पेज 1388)
हज़रत ख़दीजा बहुत मालदार थीं जोकि उन्होंने अपनी मेहनत और गुणवत्ता से हासिल किया था। आपकी सम्पत्ति और दौलत के बारे में अल्लामा मजलिसी कुछ रिवायतें बयान करते हैं कि जिनके अनुसार मक्का शहर में उनसे ज़्यादा अमीर कोई नहीं था। उनके बहुत से नौकर और मवेशी थे। 80 हज़ार से ज़्यादा ऊँट आपके पास थे जिनसे आप विभिन्न क्षेत्रों में व्यापार करती थीं। आपके बहुत से देशों में फ़ार्म थे जिनमें आपके आदमी व्यापारिक काम किया करते थे। मक्का शहर में आपका बहुत बड़ा घर था। कहा जाता है कि मक्के के सभी लोग इसमें आ सकते थे।
(बिहारूल अनवार भाग 16 पेज 21 व 22)
आपने पैग़म्बरे अकरम स. से शादी के बाद अपनी सारी दौलत और सम्पत्ति इस्लाम की तरक़्की के लिये दान कर दी।
(बिहारूल अनवार भाग 16 पेज 71)
क्या हज़रत ख़दीजा पैग़म्बर से शादी के समय कुँवारी थीं?
कुछ लोग कहते हैं कि हज़रत ख़दीजा नें पैग़म्बरे अकरम स. से शादी करने से पहले दो लोगों कि जिनके नाम अतीक़ बिन आएज़ मख़ज़ूमी और अबी हाला बिन अलमुज़िरुल असदी हैं, शादी की थी।
(बिहारूल अनवार भाग 16 पेज 10)
लेकिन बहुत से इतिहास कारों और विद्वानों नें जैसे
अबुल क़ासिम कूफ़ी, अहमद बलाज़री, सय्यद मुर्तज़ा किताबे शाफ़ी में और शेख़ तूसी काफ़ी के सारांश में लिखते है कि ख़दीजा अ. नें जब पैग़म्बरे अकरम स. से शादी की तो वह कुँवारी थीं। कुछ समकालीन लेखक जैसे अल्लामा सय्यद जाफ़र मुर्तज़ा नें भी यही बात कही है और अपनी बात को साबित करने के लिये किताबें लिखी हैं।
(अल-इस्तेग़ासा भाग 1 पेज 70)
हज़रत ख़दीजा की शादी के समय उनकी आयु
शादी के समय आपकी आयु कितनी थी इस बार में मतभेद पाया जाता है। कुछ लोग कहते हैं कि आप चालीस साल की थी लेकिन बैहेक़ी कहते हैं-
«... بلغت خدیجة خمسا و ستین سنة، و یقال: خمسین سنة، وهو أصح»
यानी ख़दीजा नें 65 साल ज़िन्दगी की और कुछ लोग कहते हैं 50 साल ज़िन्दगी की, यही बात सही है। वह दूसरी जगह लिखते हैं-
«أن النبی تزوج بها وهو ابن خمس و عشرین سنة قبل أن یبعثه الله نبیا بخمس عشرة سنة»
यानी रसूले ख़ुदा स. की आयु शादी के समय 25 साल थी और उन्होंने बेसत से 15 साल पहले शादी की।
(दलाएलुन नुबूव्वः भाग 2, पेज 71 व 72)
इसलिये बैहिक़ी के कथन के अनुसार हज़रत ख़दीजा देहांत के समय 50 साल की थीं और आपका देहांत बेसत के 10 साल बाद हुआ और आपकी शादी बेसत से 15 साल पहले हुई इस तरह से आप की आयु शादी के समय 25 साल थी।
कुछ इतिहास कार शादी के समय आपकी आयु 28 साल बताते हैं।
शज़रातुज़्ज़हब में लिखा है-
»و رجح کثیرون أنها ابنة ثمان و عشرین«
बहुत से इतिहास कारों नें इस बात वरीयता दी है कि वह शादी के समय 28 साल
की थीं।
)شذراتالذهب فی أخبار من ذهب، ج1، ص14(
इब्ने असाकिर नें तारीख़ो मदीनातिद दमिश्क़ (पेज 193, जिल्द 2) में, ज़हबी नें सियरे आलामुन नुबलाअ में और इरबेली ने कश्फ़ुल ग़म्मा में इब्ने अब्बास से नक़्ल किया है कि वह कहते हैं ख़दीजा शादी के समय 28 साल की थीं।
हज़रत ख़दीजा की तीन वसीयतें
जब हज़रत ख़दीजा की बीमारी बढ़ गई तो आपनें पैग़म्बरे अकरम से फ़रमाया कि उनकी वसीयत को सुन लें फिर आपनें फ़रमाया- ऐ रसूले ख़ुदा स. मेरी वसीयत यह है कि मेरी जो कमियां आपके हक़ को अदा करने में रह गईं हैं उनको माफ़ कर दें। पैग़म्बरे अकरम स. नें फ़रमाया- ऐसा बिल्कुल नहीं है मैंने तुम से किसी कमी को नहीं देखा है। तुमनें अपनी पूरी कोशिश और ताक़त रिसालत के अधिकारों के अदा करने में लगा दी है। सबसे ज़्यादा कठिनाइयां तुमनें मेरे साथ उठाईं हैं। अपने सारी दौलत को तुमनें ख़ुदा के रास्ते पर निछावर कर दिया है।
फिर आपनें फ़रमाया मैं आप स. से वसीयत करती हों अपनी बेटी फ़ातिमा स. के बारे में यह मेरे बाद यतीम और अकेली हो जाएगी बस कोई क़ुरैश की औरतों में से उसे परेशान न करे, कोई उसको थप्पड़ न मारे, कोई उसको डांटे नहीं, कोई उसके साथ सख़्ती न करे।
और मेरी तीसरी वसीयत जोकि मैं अपनी बेटी फ़ातिमा से करुँगी कि वह उस को बता दें क्योंकि मुझे आप (स.) के सामने कहते हुए शर्म आती है।
पैग़म्बरे अकरम कमरे से बाहर चले गए उस समय हज़रत ख़दीजा अ. नें हज़रत फ़ातिमा अ. से कहा- ऐ मेरी प्यारी बेटी पैग़म्बरे अकरम स. से कह देना मैं क़ब्र से डरती हूँ मुझे अपनी से चादर से जो आप स. वही के आने के समय ओढ़ते हैं, में कफ़न दें। जब हज़रत फ़ातिमा नें यह बात पैग़म्बर स. को बताई तो आप स. नें जल्दी से वह चादर फ़ातिमा स. को दे दी, उन्होंने अपनी माँ जनाबे ख़दीजा स. को ला कर दी। यह देख कर हज़रत ख़दीजा बहुत ख़ुश हुईं।
हज़रत ख़दीजा का कफ़न जन्नत से आया
जब हज़रत ख़दीजा का निधन हुआ और आपकी रूह जन्नत की तरफ़ चली गई तो पैग़म्बर स. नें आपको ग़ुस्ल दिया और काफ़ूर लगाया और जब यह चाहा कि उसी चादर से आपको कफ़न दें जिसकी वसीयत हज़रत ख़दीजा नें की थी, उसी समय जिबरईल आए और कहने लगे ऐ ख़ुदा के रसूल आप पर ख़ुदा का सलाम व दुरूद हो। ख़ुदा वन्दे आलम नें कहा है कि क्योंकि ख़दीजा नें अपनी सारी सम्पत्ति उसके लिये निछावर कर दी इसलिये उनका कफ़न ख़ुदा की तरफ़ से होगा। फिर जिबरईल नें कफ़न रसूल स. को दिया और कहा कि यह कफ़न जन्नत का है जिसको ख़ुदा नें हज़रत ख़दीजा को उपहार में दिया है। पैग़म्बर स. नें पहले अपनी चादर से जनाबे ख़दीजा को कफ़न दिया दिया उसके बाद उस कफ़न को जिसे जिबरईल लाये थे उस पर ओढ़ाया, इसी लिये हज़रत ख़दीजा दो कफ़न के साथ दफ़्न हुईं।
सुप्रीम लीडर आयतुल्लाह ख़ामेनई के बयान की रौशनी में
उसकी याद
’’يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا اللَّ هَ ذِكْرًا كَثِيرًا ۔وَسَبِّحُوهُ بُكْرَةً وَأَصِيلًا ۔هُوَ الَّذِي يُصَلِّي عَلَيْكُمْ وَمَلَائِكَتُهُ لِيُخْرِجَكُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ وَكَانَ بِالْمُؤْمِنِينَ رَحِيمًا ۔تَحِيَّتُهُمْ يَوْمَ يَلْقَوْنَهُ سَلَامٌ وَأَعَدَّ لَهُمْ أَجْرًا كَرِيمًا ‘‘
ऐ ईमान वालों! अल्लाह को ज़्यादा से ज़्यादा याद करो। और रात दिन उसकी तसबीह करो। वह और उसके फ़रिश्ते तुम पर दुरूद भेजते हैं ताकि वह तुम्हे अंधेरों से निकाल कर रौशनी में ले आएं और अल्लाह मोमिनीन पर मेहरबान है।
जब मैं इस आयत को देखता हूँ तो मुझे लगता है कि मुझे इस आयत को हमेशा पढ़ना चाहिये और इसमें विचार करना चाहिये और पिर इस पर अमल करना चाहिये। मुझे और आप सब को इसकी ज़रूरत है। यह आयतें हिजरत के छठे साल में अवतरित हुईं हैं यानी बद्र, ओहद और अहज़ाब की जंगों के बाद उतरी हैं यानी जब मुसलमानों को कई परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है इसके बाद यह आयतें आती हैं और उनसे कहती हैं- अल्लाह को ज़्यादा से ज़्यादा याद करो। यानी कहीं ऐसा न हो कि इन जंगों में सफलता के बाद तुम दुनिया में मस्त हो जाओ और ख़ुदा को भूल जाओ बल्कि इसके बाद तुम्हे पहले से ज़्यादा उसकी ओर ध्यान देना है।
यहाँ मुझे इमाम सादिक़ अ. की एक हदीस याद आ रही है। आप फ़रमाते हैं-
’’مَا مِن شَىءٍ إِلَّا وَ لَهُ حَدّ یَنتَهِى إِلَیهِ‘‘
अल्लाह की ओर से हर हुक्म की एक हद है जिस पर उसका अन्त होता है-
’’إِلَّا الذِّكر‘‘
लेकिन उसकी याद के लिये कोई अन्त नहीं है। कोई ऐसी हद नहीं कि जहाँ पहुँच कर इन्सान यह कहे कि उससे आगे अल्लाह को याद करने की ज़रूरत नहीं है। फिर इमाम ख़ुद ही समझाते हुए फ़रमाते हैं-
’’فَرَضَ اللَّهُ عَزَّ وَ جَلَّ الفَرَائِضَ، فَمَن أَدَاهُنَّ فَهُو حَدُّهُنَّ‘‘
अल्लाह नें जो चीज़ वाजिब की है उस पर अमल करते ही उसकी हद ख़त्म हो जाती है।
’’وَ شَهرُ رَمَضَانَ فَمَن صَامَهُ فَهُوَ حَدُّهُ‘‘
जैसे अगर किसी ने रमज़ान में रोज़े रख लिये तो रमज़ान के बाद उस पर रोज़े वाजिब नहीं हैं क्योंकि उसकी हद यही है-
’’وَ الحَجُّ فَمَن حَجَّفَهُو حَدُّهُ ‘‘
किसी पर हज वाजिब हुआ, उसनें हज किया तो उसकी हद का अन्त हो गया। इसी तरह ज़कात दे दी, ख़ुम्स दे दिया तो उसकी हद ख़त्म हो गई यानी उसके बाद वह इस साल वाजिब नहीं होगा। इसी तरह दूसरी चीज़ों की भी हद है और उनका अन्त इसी हद पर हो जाता है।
’’إِلَّا الذِّكرَ فَإِنَّ اللَّهَ عَزَّ وَ جَلَّ لَن یَرضَ مِنهُ بِالقَلِیلِ وَ لَم یَجعَل لَه حَدّاً یَنتَهِى إِلَیهِ ‘‘
लेकिन ख़ुदा की याद की कोई हद नहीं है, इसका कोई अन्त नहीं है इस लिये ख़ुदा इस बात पर राज़ी नहीं है उसको कुछ समय याद किया जाए और बस उस के बाद इमाम नें इस आयत की तिलावत की।
’’يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا اذْكُرُوا اللَّهَ ذِكْرًا كَثِيرًا‘‘
अल्लाह को क्यों याद करें?
अल्लाह को क्यों हमेशा याद करें और याद रखें इसका कारण बाद वाली आयत बताती है-
’’هُوَ الَّذِي يُصَلِّي عَلَيْكُمْ وَمَلَائِكَتُهُ ‘‘
इस लिये कि ख़ुदा और उसके फ़रिश्ते तुम पर दुरूद भेजते हैं। ख़ुदा और फ़रिश्तों की ओर से दुरूद का क्या मतलब है? ख़ुदा की ओर से दुरूद यानी उसकी रहमत और फ़रिश्तों की ओर से दुरूद यानी मोमिनीन के लिये इस्तेग़फ़ार-
’’وَ یَستَغفِرُونَ لِلَّذِینَ آمَنُوا ‘‘
ख़ुदा यह रहमत क्यों भेजता है और फ़रिश्ते मोमिनीन के लिये इस्तेग़फ़ार क्यों करते हैं?
’’لِيُخْرِجَكُم مِّنَ الظُّلُمَاتِ إِلَى النُّورِ ‘‘
ताकि आपको अंधेरों से निकाल कर रौशनी में ले आएं। कौन से अंधेरे? हमारे दिलों के अंधेरे। हमारी सोच के अंधेरे, हमारे अख़लाक़ के अंधेरे और इस तरह के दूसरे अंधेरे।
ख़ुदा की याद के स्टेप
ख़ुदा की याद के कई स्टेप हैं। सब लोग एक स्टेप में नहीं हैं। कुछ सबसे ऊपर हैं जैसे अल्लाह के नबी, नेक लोग, ख़ुदा के ख़ास बंदे। हमारी पहुँच वहाँ तक नहीं है जहाँ यह लोग हैं बल्कि हमें पता भी नहीं कि वहाँ है क्या? उनके बारे में हज़रत अली अ. फ़रमाते हैं-
’’اَلذِّكرُ مَجَالِسَةُ المَحبُوبِ‘‘
ज़िक्र (ख़ुदा की याद) अपने महबूब के संग होना है। उसके साथ बैठना है। यह ख़ुदा के ख़ास बंदों के लिये एक दूसरी जगह फ़रमाते हैं-
’’اَلذِّكرُ لَذَّةُ المُحِبِّینَ‘‘
ज़िक्र मोहब्बत करने वालों के लिये आनन्द है। एक यह स्टेज है जिससे हम जैसे लोग काफ़ी दूर हैं। एक आम स्टेज है यही नमाज़, यही इबादत, यही दुआ, यही तसबीह और इस तरह की चीज़ें। इनके द्वारा हम ख़ुदा का ज़िक्र कर सकते हैं और उसको याद कर सकते हैं।
ख़ुदा की याद के फ़ायदे
इसके भी बहुत फ़ायदे हैं। एक फ़ायदा यह है कि यह हमारे दिल को गंदगियों से पाक करता है। हमारे दिल पर ग़लत अच्छाइयों का जो हमला होता है उनसे दिल को बचाता है। दिल को छोटी छोटी चीज़ों से बहुत ख़तरा है। हमारे दिल पर बहुत सी चीज़ों का असर गोता है । बहुत सी चीज़ों की ओर खिचता है। यह हर चीज़ की ओर खिचना चाहिये. इस पर हर चीज़ का असर नहीं होना चाहिये। यह ख़ुदा का घर है इसमें हर एक को जगह नहीं देना चाहिये। लेकिन हर एक घुसने की कोशिश करता है। दिल को उनसे कैसे बचाया जाए? उसी ख़ुदा की याद द्वारा। जंग के मैदान में कोई सिपाही जम कर लड़ता है, डटकर हमला करता है, बहादुरी के साथ दुश्मन का मुक़ाबला करता है लेकिन बहुत लड़खड़ा जाते हैं, भाग जाते हैं। दिल के मैदान में दुश्मन के वही बहादुरी के साथ लड़ सकता है जो ख़ुदा को याद करता हो। दिल में ख़ुदा की याद बसाने वाला इन्सान उस बहादुर सिपाही की तरह है जो पूरी ताक़त के साथ दुश्मन से लड़ता है और से अपने मुल्क में घुसने नहीं देता। क़ुरआने मजीद तो यहाँ तक फ़रमाता है-
’’إِذَا لَقِيتُمْ فِئَةً فَاثْبُتُواْ وَاذْكُرُواْ اللّهَ كَثِيرًا‘‘
जंग के मैदान में जब दुश्मन से सामना हो तो डटे रहो और अल्लाह को ज़्यादा से ज़्यादा याद करो। यानी जंग के मैदान में भी ख़ुदा की याद ज़रूरी है। फिर फ़रमाता है-
’’لَّعَلَّكُمْ تُفْلَحُونَ‘‘
इससे तुम्हे सफ़लता मिलेगी। अल्लाह की याद किस तरह सफलता दिला सकती है? इस तरह से कि उसकी याद से दिल मज़बूत होगा, जब दिल मज़बूत होगा तो क़दम लड़खड़ाएंगे नहीं। बदन तभी भाग खड़ा होता है जब दिल कमज़ोर हो लेकिन दिल मज़बूत हो तो बदन अपनी जगह जमा रहता है। यह सिद्धांत केवल जंग के मैदान के लिये नहीं है बल्कि अल्लाह की याद हर मैदान में सफलता का कारण बनती है।
दो हदीसें
ख़ुदा की याद के बारे में इमाम मोहम्मद बाक़िर अ. की एक हदीस है जिसमें इसका रोल बयान किया गया है। इमाम फ़रमाते हैं-
’’ثَلاثُ مِن أَشدِّ مَا عَمِلَ العِبَادُ‘‘
तीन चीज़ें ऐसी हैं जिन पर अमल करना बड़ा कठिन होता है-
’’اِنصَافُ المُؤمِنِ مِن نَفسِهِ‘‘
यानी जहाँ पर सिचुवेशन यह है कि अपने फ़ायदे में हक़ को छोड़ना हो या हक़ के लिये ख़ुद का नुक़सान पहुंचाना हो वह हक़ का साथ दे चाहे उसमें उसका अपना नुक़सान हो। आपको मालूम हो कि दूसरा सही है और आप ग़लत तो आप ख़ुद को ग़लत कहें। यह बहुत कठिन है लेकिन एक मोमिन को यही करना चाहिये। दूसरा काम क्या है?
’’وَ مَوَاسَاةُ المَرءِ اَخَاهُ ‘‘
यानी हर हाल में, हर सिचुवेशन में अपने मोमिन भाई की सहायता करना। और तीसरी चीज़’
’وَ ذِكرُاللَّهِ عَلىٰ كُلّ حَالٍ ‘‘
हर हाल में ख़ुदा को याद रखना। फिर समझाते हुए फ़रमाते हैं-
’’وَ هُوَ أَن یَّذكُرَ اللَّهَ عَزَّوَجَلَّ عِندَ المَعصِیَةِ یُهِمُّ بِهَا ‘‘
ख़ुदा की याद का मतलब यह है कि जब वह गुनाह करने जाए तो ख़ुदा याद आ जाए और ख़ुदा की याद उसे गुनाह करने से रोक ले। ख़ुदा को याद करे और गुनाहों से दूर हो।
’’فَیَحُولُ ذِكرُ اللَّهِ بَینَهُ وَ بَینَ تِلكَ المَعصِیَةِ وَ هُوَ قُولُ اللَّهِ عَزَّ وَجَلَّ إِنّ الذّین اتَّقَوا إِذَا مَسّهُم طَائِف مِّنَ الشّیطَانِ تَذَكَّرُوا ‘‘
अल्लाह की याद उसके और गुनाह के बीच आ जाती है और उसे गुनाह से रोक देती है। फिर इमाम फ़रमाते हैं यह तप़सीर है क़ुरआन की इस आयत की-
’’إِنّ الذّین اتَّقَوا إِذَا مَسّهُم طَائِف مِّنَ الشّیطَانِ تَذَكَّرُوا ‘‘
जब शैतान उन्हें बहकाता है और उन्हें गुनाह की ओर ले जाता है तो उन्हें ख़ुदा याद आ जाता है-
’’فَإِذَا هُم مُبصِرُونَ‘‘
और ख़ुदा की यह याद इस बात का कारण बनती है कि उनकी आँखें खुल जाती हैं।
इसी से मिलती जुलती एक हदीस इमाम सादिक़ अ. की भी है। इमाम फ़रमाते हैं-
’’وَ ذِكرُ اللَّهِ فِى كُلِّ المَوَاطِنِ ‘‘
हर समय हर जगह ख़ुदा को याद करो-
’’اَمَّا اِنِّى لَا أَقُولُ سُبحَانَ اللَّهِ وَ الحَمدُلِلَّهِ وَ لاَ إِلٰهَ إِلّاَ اللَّهَ وَ اللَّهُ أَكبَرُ‘‘
लेकिन ख़ुदा को याद करने का मतलब यह नहीं है कि इन्सान-
’’سُبحَانَ اللَّهِ وَ الحَمدُلِلَّهِ وَ لاَ إِلٰهَ إِلّاَ اللَّهَ وَ اللَّهُ أَكبَرُ‘‘
पढ़ता है।
’’وَ إِن كَانَ هَذَا مِن ذَاكَ‘‘
अगरचे यह भी ज़िक्र है। लेकिन यहाँ मेरे कहने का मतलब यह ज़िक्र नहीं है।
’’وَلٰكِن ذِكرُهُ فِى كُلِّ مَوطِنٍ إِذَا هَجَمتَ عَلٰى طَاعَتِهِ اَو مَعصِیِتِهِ‘‘
अल्लाह को याद करने का मतलब यह है कि जब तुम ख़ुदा का आज्ञा पालन करो या गुनाह की ओर क़दम बढ़ाओ तो ख़ुदा तुम्हे याद हो। ख़ुदा की यह याद इन्सान को गुनाहों से बचाती है और से अल्लाह का बंदा बनाती है।