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सोमवार, 15 जुलाई 2013 07:16

ईश्वरीय आतिथ्य-6

ईश्वरीय आतिथ्य-6

दूसरों को खाना खिलाना

विश्व की जनसंख्या अब सात अरब के आंकड़े को पार कर चुकी है। विश्व जनसंख्या दिवस पर जहां विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या का उल्लेख किया गया वहीं पर यह भी बताया गया है कि संसार के बहुत से क्षेत्रों में विकास एवं प्रगति के बावजूद इस समय भूखे लोगों की संख्या बढ़कर करोड़ों में पहुंच गई है। विगत की तुलना में संसार में भूखों की संख्या में दिन-प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। भुखमरी आज के समाज की एक एसी कटु सच्चाई है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। गणना से पता चलता है कि पांच हजार बच्चे कुपोषण और भुखमरी का शिकार होकर मौत के मुंह में समा जाते हैं। यह स्थिति तो केवल भारत की है। दुनिया भर में प्रतिदिन चौदह हज़ार बच्चे खाने की कमी के कारण काल के गाल में समा जाते हैं। वर्तमान समय में विश्व में भूखों की संख्या ९२ करोड़ बताई जा रही है। यह सारे आंकड़े, सरकारी हैं और निश्चित रूप से संसार मे भूखों की संख्या इनसे अधिक ही होगी। विश्व की बहुत सी संस्थाएं और संगठन संसार से भुखमरी और कुपोषण को समाप्त करने के लिए लंबे समय से प्रयासरत हैं किंतु उसके उल्लेखनीय परिणाम सामने नहीं आए बल्कि सर्वेक्षण यह बताते हैं कि विगत की तुलना में इस समय भूखों तथा कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। इससे यह पता चलता है कि बढ़ती भुखमरी और कुपोषण इस बात को सिद्ध करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय नेतृत्व भुखमरी के विरूद्ध संघर्ष में बहुत गंभीर नहीं हैं। श्रोताओ दूसरों को खाना खिलाना एक अच्छी व प्रभावी शैली है जो समाज को भूख, कुपोषण व निर्धनता से मुक्ति दिलाती है। अनाथों, दरिद्रों और आश्रयहीन लोगों के पेट भरने का बहुत पुण्य है। यही कार्य समाज के लोगों के मध्य प्रेम व समरसता में वृद्धि का कारण भी बनता है और लोगों के बीच सहकारिता की भूमि प्रशस्त होती है। अच्छे कार्यों और लोगों की सहायता करने से लोगों के हृदय एक दूसरे से निकट हो जाते हैं। महान ईश्वर ने पवित्र क़ुरआन में इस कार्य पर बहुत अधिक बल दिया है विशेषकर पवित्र रमज़ान में खाना खिलाने पर। पवित्र रमज़ान में प्रतिदिन पढ़ी जाने वाली हर दिन से विशेष दुआओं में भी दुखी, निर्धन और जीवन की कठिनाइयों से जूझते लोगों की सहायता पर विशेष ध्यान दिया गया है। संसार में जो लोग कुछ करने की क्षमता नहीं रखते हैं या बुढ़ापे और शरीर के किसी अंग के निष्क्रिय हो जाने के कारण अपनी आवश्यकता की पूर्ति करने में सक्षम नहीं हैं उन्हें सक्षम लोंगो की सहायता की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। पवित्र क़ुरआन के अनुसार दरिद्रों, वंचितों एवं अनाथों को खाना खिलाना, आर्थिक दृष्टि से सक्षम लोगों का ही दायित्व बनता है। इस आधार पर जिसकी जैसी भी आर्थिक क्षमता है उसे चाहिये कि वह उसी के अनुरूप ग़रीबों व दरिद्रों की सहायता करे। निःसंदेह यदि धर्म की इस मूल्यवान शिक्षा को आज विश्व में लागू कर दिया जाये तो निश्चित रूप से इतने व्यापक स्तर पर विश्व में लोग भूखमरी का शिकार नहीं होंगे।

यूपी में डेढ़ लाख भर्तियां होंगीभारत के उत्तर प्रदेश राज्य में एक लाख ४८ हज़ार 334 पदों पर भर्ती प्रक्रिया शीघ्र आरंभ होने वाली है। इसमें 60,000 शिक्षा मित्रों को जनवरी 2014 में शिक्षक बनाया जाएगा। इसके अतिरिक्त 6000 लेखपालों, 26,000 ग्राम पंचायत अधिकारियों, 27,000 ग्राम विकास अधिकारियों तथा उच्च प्राइमरी स्कूलों में 29,334 शिक्षकों की भर्तियां होंगी। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने १२ जुलाई को जनता से जुड़े विभागों में रिक्त पदों को भरने के संबंध में विभागवार समीक्षा की। इन पदों के अलावा जनता से जुड़े विभागों में भी भर्तियां की जाएंगी। इनमें से कुछ पदों पर भर्ती प्रक्रिया इसी महीने आरंभ हो जाएगी। मुख्य सचिव ने बताया कि परिषदीय स्कूलों में कार्यरत 1,70,000 हजार शिक्षा मित्रों को प्रशिक्षित करके शिक्षक बनाया जायेगा। पहले चरण में 60,000 शिक्षा मित्रों की प्रशिक्षण प्रक्रिया दिसंबर में पूरी कर जनवरी 2014 में शिक्षक पद पर समायोजित कर दिया जाएगा।

अमरीका ईरान से सीधी वार्ता का इच्छुक, एश्टोन बनेंगी मध्यस्थअमरीका के वॉल स्ट्रीट जरनल समाचार पत्र ने वाइट हाउस के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से लिखा है कि बाराक ओबामा की सरकार, ईरान के नये राष्ट्रपति से संपर्क करने के प्रयास में है और यह काम कैथरीन एश्टोन द्वारा किया जाएगा।

समाचार पत्र वॉल स्ट्रीट जरनल के अनुसार वाइट हाउस के एक अधिकारी ने बताया है कि बाराक ओबामा की सरकार ईरान के नये राष्ट्रपति से संपर्क साधने और आगामी कुछ सप्ताहों के दौरान ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में वार्ता की इच्छुक है। इस अमरीकी समाचार पत्र के अनुसार हसन रूहानी ने ईरान के चुनाव में विजय के बाद से ही विश्व समुदाय को सकारात्मक संकेत दिये हैं। अमरीकी समाचार पत्र वॉल स्ट्रीट जरनल ने यह रिपोर्ट एसी स्थिति में प्रकाशित की है कि मंगलवार को गुट पांच धन एक के सदस्य देश, ब्रसल्ज़ में एकत्रित होकर ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में वार्ता करने वाले हैं। वॉल स्ट्रीट जरनल ने अपनी रिपोर्ट में वाइट हाउस के एक अधिकारी के हवाले से लिखा है कि वाशिंग्टन की ओर से आवश्यक संपर्क युरोपीय संघ की विदेश मंत्री कैथरीन एश्टोन के सहायता से किया जाएगा। ब्रसल्ज़ वार्ता में अमरीका की ओर से भाग लेने वाले एक अन्य अधिकारी ने भी कहा है कि हम सीधी वार्ता के लिए तैयार हैं और इस के लिए हम विभिन्न मार्गों से प्रयास कर रहे हैं । उसने कहा कि हमें ईरान की ओर से नयी बात की आशा है किंतु अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि ईरान का उत्तर क्या होगा

रविवार, 14 जुलाई 2013 07:17

ईश्वरीय आतिथ्य-5

ईश्वरीय आतिथ्य-5

रोज़ा और जनसेवा

सैद्धांतिक रुप से हर समाज को भलाई और परोपकार की आवश्यकता होती है। उस समाज को उत्तम समाज कहा जाता है जिसमें लोगों के संबंध आपस में प्रेम, सदभावना और सदगुणों पर आधारित होते हैं। ऐसे समाज में लोग एक दूसरे के निकट होते हैं और समस्याओं के समाधान तथा कठिनाइयों को दूर करने में वे आपस में एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं। इस प्रकार से समाज में भाईचारे, उपकार, क्षमादान और ऐसे ही अनेक सदगुण फलते-फूलते और विकसित होते हैं। प्रत्येक धर्म अपने मानने वालों को दूसरों की सहायता करने, दान-दक्षिणा करने तथा परोपकार के लिए बहुत अधिक प्रेरित करता है। वह एक स्वस्थ्य और आदर्श समाज का इच्छुक होता है। इस्लाम ने भूखों को खाना खिलाने तथा कमज़ोरों की सहायता करने को प्रशंसनीय कार्य बताया है। इस्लामी शिक्षाओं के अनुसार आवश्यकता रखने वालों की आवश्यकताओं को पूरा करना पुण्य है। इस्लाम में दूसरों विशेषकर असहाय लोगों की सहायता करने को बहुत अधिक महत्व प्राप्त है। ईश्वर ने मुसलमानों पर रोज़े को अनिवार्य किया है। ईश्वर द्वारा रोज़ा अनिवार्य करने का एक कारण यह है कि रोज़ा रखने से भूख और प्यास की पीड़ा का आभास होता है। प्रत्येक समाज में धनी और निर्धन दोनों ही प्रकार के लोग पाए जाते हैं। धनवानों में बहुत से लोग एसे हैं जिन्होंने संभवतः भूख की पीड़ा का आभास ही न किया हो क्योंकि अपनी आर्थिक स्थिति के कारण उन्हें कभी भूख का सामना ही नहीं करना पड़ा। किंतु रोज़ा रखने पर उन्हें भी भूख और प्यास की पीड़ा का आभास हो जाता है। इस प्रकार रोज़ा रखकर उनके मन में समाज के उन लोगों के प्रति करूणा उत्पन्न होती है जिनको अपने जीवन में बार-बार भूख का सामना करना पड़ता है। इस प्रकार पता चलता है कि रोज़ा अनिवार्य करने का एक कारण यह भी है कि रोज़ा रखकर रोज़ेदारों के भीतर भूख की पीड़ा का आभास उत्पन्न किया जाए। इस संबन्ध में पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद (स) के पौत्र इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम कहते हैं कि रोज़े को इसिलए अनिवार्य किया गया है ताकि इसके द्वारा धनी और निर्धन दोनों के बीच समानता लाई जा सके।

सामाजिक समरस्ता एवं एकता की भावना उत्पन्न करना भी रोज़े के प्रभावों में से एक है। इस्लाम की दृष्टि में ईश्वर का सामिप्य एवं उसकी उपासना केवल नमाज़ और रोज़े तक ही सीमित नहीं है बल्कि इसके साथ-साथ सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह और ईश्वर के दासों की सेवा तथा उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रयासरत रहना भी अत्यंत आवश्यक है। बहुत से स्थानों पर जनसेवा को इबादत कहा गया है। जनसेवा करने से भी महत्वपूर्ण, जनसेवा की भावना है और यह भावना रोज़े से अधिक सुदृढ़ होती है। वर्तमान समय में हम देखते हैं कि समाजों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना है। नैतिकता का पतन बहुत तेज़ी से हो रहा है। इस युग का मनुष्य आध्यात्म से दूर होता जा रहा है और भौतिकवाद की ओर बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है। लोग व्यक्तिगत लाभ की ओर दौड़ रहे हैं और सामूहिक या सामाजिक लाभ की उन्हें कोई चिंता नहीं है। यदि निजी हितों और समाजिक हितों में टकराव की स्थिति उत्पन्न होती है तो एसे में मनुष्य अपने निजी हितों को वरीयता देता है और सामाजिक हितों को अनदेखा कर देता है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अत्याधिक समस्याओं के कारण विश्व की वर्तमान स्थिति विस्फोटक होती जा रही है। इन समस्याओं को दृष्टिगत रखते हुए यह कहा जा सकता है कि रोज़े के माध्यम से समाज की बहुत सी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। उदाहरण जब हम रोज़ा रखते हैं तो स्वयं भूखे और प्यासे रहने की स्थिति में हमको दूसरों की भूख और प्यास का अंदाज़ा होता है फिर हम इसके समाधान के लिए क़दम उठाते हैं। यह कार्य जब व्यक्तिगत स्तर पर किया जाता है तो कुछ सीमित होता है किंतु जब पवित्र रमज़ान में रोज़ा रखने वाले इस कार्य को आरंभ करते हैं तो फिर इसकी परिधि बढ़ जाती है और बड़ी संख्या में भूखों और निर्धनों की सहायता होती है। इसी प्रक्रिया को यदि रमज़ान के बाद भी जारी रखा जाए तो स्थिति में बहुत अधिक सुधार आ सकता है।

शनिवार, 13 जुलाई 2013 10:26

ईश्वरीय आतिथ्य-4

ईश्वरीय आतिथ्य-4

रोज़ा और शिष्टाचार

ईश्वरीय आतिथ्य-4 रोज़। और शिष्टाचार

मनुष्य के जीवन में शिष्टाचार को बहुत महत्व प्राप्त है। शिष्टाचार का अर्थ होता है अच्छा आचरण। शिष्टाचार न केवल व्यक्तिगत जीवन में बल्कि सामाजिक जीवन में भी बहुत प्रभावशाली होता है। लोगों को अच्छे व्यवहार वाले व्यक्ति के साथ मिलने में आनंद आता है। बहुत से लोग सदाचारियों से मिलने के लिए उत्सुक रहते हैं। अनुभव और सर्वेक्षण दोनों ही यह बताते हैं कि अन्य लोगों की तुलना में अच्छे व्यवहार वाले लोग अपने जीवन में अधिक सफल रहते हैं और उनकी सफलता का एक कारण उनका अच्छा व्यवहार होता है। समस्त धर्मों में अच्छा आचरण अपनाने पर बल दिया गया है। महापुरूषों के कथनों में भी शिष्टाचार की बहुत प्रशंसा की गई है। इस्लामी शिक्षाओं में कहा गया है कि सदाचारी लोग ईश्वर से अधिक निकट होते हैं। इन शिक्षाओं के अनुसार मनुष्य की यह विशेषता उसके लोक-परलोक में कल्याण का कारण बनती है। शिष्टाचार, मनुष्य के व्यवहार का एक ध्यान योग्य बिंदु है। मनुष्य को अच्छे व्यवहार और शिष्टाचार जैसी पूंजी को कभी भी और किसी भी स्थिति में अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। पवित्र महीने रमज़ान में दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने और सबसे प्रेमपूर्ण ढंग से मिलने पर विशेष रूप से बल दिया गया है। वैसे तो पूरे साल ही मनुष्य को सदगुणों को अपनाने के लिए प्रयासरत रहना चाहिए और यह एक प्रशंसनीय प्रयास है किंतु ईश्वर ने रमज़ान के महीने में सदगुण अपनाने पर विशेष ध्यान देने को कहा है। लोगों से प्रेमपूर्ण ढंग से मिलना, उनकी सहायता करना, भूखों को खाना खिलाना, अनाथों और विधवाओं की सहायता करना, बीमारों का कुशलक्षेम पूछने जाना, अपने परिजनों के साथ प्रेमपूर्ण संबन्धों को बनाए रखना और उसे विस्तृत बनाना, उनसे मिलने जाना और इसी प्रकार की बहुत सी अच्छी बातें, रमज़ान की शिक्षाओं का भाग हैं। इसी के विपरीत किसी की चुग़ली करने, झूठ बोलने, झूठी क़सम खाने, परनारी पर दृष्टि डालने, लड़ाई-झगड़ा करने, किसी पर आरोप लगाने और इसी प्रकार की बहुत सी बुराइयों से रोज़ेदार को रोका गया है। स्वभाविक सी बात है कि जब कोई मनुष्य रोज़े के दौरान दिये जाने वाले निर्देशों और आदेशों का पालन एक महीने तक निरंतर करेगा तो उसमें अभूतपूर्व सुधार दिखाई देगा। विषेषज्ञों का मानना है कि अपने भीतर सदगुण उत्पन्न करने के लिए मनुष्य को प्रयास करने के साथ ही साथ कुछ बाध्यकारी नियमों को भी अपनाना चाहिए तभी उसमें सही ढंग से सदगुणों का विकास हो सकेगा। सदगुणों को अपनाने और उन्हें व्यवहारिक बनाने का सबसे अच्छा अवसर रमज़ान है। रोज़े की स्थिति में जहां पर मनुष्य को दूसरों की भूख और प्यास का आभास होता है वहीं पर लंबे समय तक निरंतर भूखे और प्यासे रहने के कारण उसकी कुछ बुरी आदतें नियंत्रित हो जाती हैं। एसे में यदि मनुष्य अपने भीतर सदगुण अपनाने का प्रण कर ले तो वह बहुत सी बुरी आदतों से छुटकारा पाकर एक सदगुणी व्यक्ति बन सकता है। रमज़ान का पवित्र महीना लोगों के बीच संबन्धों की सुदृढ़ता का भी कारण बनता है। वास्तविक रोज़ेदार उस रोज़ेदार को माना जाता है जिसका रखने वाला अपने व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक तीनों प्रकार के कर्तव्यों पर ध्यान देता हो और इस महीने में ईश्वर के आदेशों का पूर्ण रूप से पालन करता हो।

स्नोडेन मामला, लातिनी अमरीकी और यूरोपीय देशों के बीच तनावअमरीकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के पूर्व जासूस एडवर्ड स्नोडेन द्वारा अमरीकी जासूसी प्रोग्राम प्रिज़्म के रहस्योद्घाटन के बाद से अमरीकी हठधर्मी और यूरोपीय देशों पर उसके दबाव से विश्व में राजनीतिक तनाव बढ़ता जा रहा है।

चार लातिनी अमरीकी देशों ने कहा है कि वे फ्रांस, इटली, स्पेन और पुर्तगाल से अपने राजदूतों को वापस बुलाने जा रहे हैं।

ब्राज़ील, अर्जेंटिना, वेनेज़ुएला और उरूगये ने ये क़दम बोलीवियाई राष्ट्रपति के हवाई जहाज़ को फ्रांस और पुर्तगाल की वायु सीमा से गुज़रने की अनुमति न देने के विरोध में उठाया है।

इस मामले पर चारों देशों ने उरूगये की राजधानी मॉनटेविडो में एक बैठक के बाद जारी बयान में कहा है कि बोलीविया के राष्ट्रपति इवो मोरालेस के हवाई ज़हाज़ को यात्रा के लिए रास्ता ने देने की घटना अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन है।

बोलीविया के राष्ट्रपति इवो मोरालेस रूस की यात्रा से वापस जा रहे थे।

यूरोपीय देशों को इस बात का संदेह था कि सीआईए के पूर्व अधिकारी एडवर्ड स्नोडेन बोलीवियाई राष्ट्रपति के हवाई जहाज़ में हैं।

दूसरी ओर स्नोडेन ने रूस के मॉस्को हवाई अड्डे पर मानवधिकार कार्यकर्ताओं से भेंट की है। स्नोडेन का कहना है कि वह रूस में राजनीतिक शरण चाहते हैं।

उनके मुताबिक़ वह तब तक वहां रहना चाहते हैं जब तक कि लातिन अमरीकी देशों में उनके सफ़र का रास्ता न खुल जाए।

एमकेओ के आरोप को ईरान ने निराधार बताया

प्रेस टीवी

ईरान ने आतंकवादी संगठन एमकेओ के इस दावे को निराधार बताया जिसमें इस आतंकवादी संगठन ने तेहरान पर गुप्त परमाणु प्रतिष्ठान के निर्माण का आरोप लगाया है।

शुक्रवार को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्बास एराक़ची ने हताश आतंकवादी गुट एमकेओर की ओर से दावे को निरे झूठ की संज्ञा दी।

ज्ञात रहे गुरुवार को एम के ओ ने यह दावा किया कि उसके पास इस बात के सुबूत हैं कि तेहरान से 70 किलोमीटर पूर्वोत्तर में स्थित दमावंद शहर में भूमिगत परमाणु प्रतिष्ठान का निर्माण हुआ है।

इस गुट ने आरोप लगाया कि यह प्रतिष्ठान भूमिगत सुरंगों की पहली श्रंख्ला के साथ 2006 से मौजूद है और चार बाहरी डिपो का हाल में निर्माण पूरा हुआ है।

ज्ञात रहे मुजाहेदीने ख़ल्क़ संगठन पर कि जिसे संक्षेप में एमकेओ कहा जाता है, 1979 की इस्लामी क्रान्ति के बाद अनेक अधिकारियों और लोगों की हत्या का आरोप है। इस संगठन के तत्व 80 के दशक में इराक़ भाग गए जहां उन्हें इराक़ के पूर्व तानाशाह सद्दाम हुसैन का समर्थन प्राप्त था और इस संगठन ने ईरानी सीमा के निकट इराक़ के दियाला प्रांत में एक सैन्य छावनी भी बनाई थी।

इराक़ी सरकार और जनता की ओर से एमकेओ के विरुद्ध बढ़ते दबाव के कारण एमकेओ के तत्व, पूर्व अशरफ़ छावनी से हटा दिए गए हैं और इस समय बग़दाद हवाई अड्डे के निकट अमरीकी कैंप लिबर्टी में रह रहे हैं।

शनिवार, 13 जुलाई 2013 06:12

ईश्वरीय आतिथ्य-3

ईश्वरीय आतिथ्य-3

रोज़ और स्वास्थ्य

पैग़म्बरे इस्लाम का कथन हैः रोज़ा रखो, स्वस्थ रहो।

वह ईश्वर जिसने मनुष्य की रचना की है और साथ ही यह भी वचन दिया है कि वह जिसे धरती पर भेजेगा उसके लिए पेट भरने का भी प्रबंध करेगा, वही ईश्वर मनुष्य को एक महीने तक विशेष समय में खाना-पानी छोड़ने का आदेश भी देता है। हमारी यह बात सुनकर आपके मन में अवश्य ही यह विचार आया होगा कि यदि ईश्वर ने सबका पेट भरने के लिए खाद्ध सामग्री देने का वचन दिया है तो फिर धरती पर इतने लोग भूखे क्यों हैं? इसका उत्तर यह है कि खाद्ध पदार्थों का अत्याचारपूर्ण भण्डारण, कई देशों की सरकारों द्वारा अतिरिक्त अनाज का समुद्र में फेंक दिया जाना ताकि विश्व स्तर पर अनाज का मूल्य गिरने न पाए और इसी प्रकार विभिन्न समाजों एवं अत्याचारी देशों में हर स्तर पर फैला हुआ अपव्यय व अन्याय, लोगों की भूख का मुख्य कारण है। अन्यथा आप देखें तो ईश्वर ने अपनी अनुकंपाएं एवं विभूतियां प्रदान करने में किसी प्रकार की कमी नहीं की है। अब आते हैं कि जब ईश्वर ने मनुष्य की शारीरिक आवश्यकता के दृष्टिगत उसके खाने का प्रबंध किया है तो फिर उसने खाने से क्यों रोका है और रोज़ा रखने का आदेश क्यों दिया है?

सृष्टि के रचयिता तथा मनुष्य के जन्मदाता ने मनुष्य की आत्मा तथा शरीर दोनों को विभिन्न प्रकार के संक्रमणों से पवित्र रखने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम निर्धारित किया है जिसपर चलकर मनुष्य अपनी आत्मा तथा शरीर दोनों को विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्त कर सकता है। रोज़ा ही वह ईश्वरीय कार्यक्रम है जिसके माध्यम से हम शरीर एवं आत्मा की बहुत सी बीमारियों से मुक्ति पा सकते हैं। रोज़ा रखने के बहुत से शारीरिक लाभ हैं जिनकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है। हो सकता है कि कुछ लोग यह सोचते हों कि एक महीने तक एक निर्धारित समय तक भूखे और प्यासे रहने से बहुत कष्ट होता होगा किंतु यही भूख और प्यास सहन करना हमारे शरीर के लिए बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है। चिकित्सकों का यह कहना है कि रोज़े के बहुत से शारीरिक लाभ हैं। बहुत से चिकित्सक अपने मरीज़ों को कई बीमारियों में कुछ दिनों तक खाने-पीने को सीमित करने की सलाह देते हैं। डाक्टरों का कहना है कि रोज़ा रखने से शरीर के सभी ऊतकों की धुलाई हो जाती है और उनमें ताज़गी आ जाती है। रोज़ा रखने से मनुष्य का पाचनतंत्र व्यवस्थित हो जाता है। इससे अपेंडिक्स का ख़तरा बहुत कम हो जाता है। अतिरिक्त वसा समाप्त हो जाती है। रोज़े से मूत्र तंत्र की सफाई होती है और पेशाब बंद होने जैसी बीमारी का ख़तरा घट जाता है। मोटापा दूर करने और अल्सर जैसी बीमारियों में रोज़ा बहुत ही सहायक सिद्ध होता है। रोज़ा मनुष्य के समस्त अंगों, ऊतकों, इन्द्रियों तथा आंतों की थकान को दूर कर देता है। चिकित्सकों का मानना है कि रोज़ा/ गुर्दे तथा यकृत की बीमारियों और साथ ही यूरिक एसिड को नियंत्रित करता है। बहुत से डाक्टरों ने जोड़ों के दर्द से छुटकारा पाने में भी रोज़े को महत्वपूर्ण बताया है। आज विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि रोज़ा रखने से शरीर की अतिरिक्त वसा घुल जाती है और इससे हानिकारक और अनियंत्रित मोटापा भी कम होता है। कमर और उसके नीचे के भागों पर दबाव कम हो जाता है तथा पाचनतंत्र, हृदय और हृदय से संबन्धित तंत्र संतुलित हो जाते हैं। शरीर के अत्यधिक कार्य करने वाले अंगों में से एक, पाचनतंत्र विशेषकर अमाशय है। सामान्य रूप से लोग दिन में तीन बार खाना खाते हैं इसलिए पाचनतंत्र लगभग हर समय भोजन को पचाने तथा खाद्य पदार्थों का अवशोषण करने और अतिरिक्त पदार्थों को निकालने जैसे कार्यों में व्यस्त रहता है। रोज़ा इस बात का कारण बनता है कि शरीर का यह महत्वपूर्ण अंग विश्राम कर सके और बीमारियों से बचा रहे तथा शरीर ऊर्जा प्राप्ति के लिए अपने भीतर एकत्रित हुई वसा को घुला कर कम कर दे। इस्लामी महापुरूषों के अन्य कथनों में मिलता है कि मनुष्य का पाचनतंत्र बीमारियों का घर है और खाने से बचना ही उसका उपचार है। इसी प्रकार से रोज़ा शरीर की प्रतिरक्षा व्यवस्था को भी सुदृढ़ करता है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार स्वस्थ रहने के लिए रोज़ा बहुत लाभदायक है। रोज़ा वास्तव में शरीर के लिए पूर्ण विश्राम और पूरे शरीर की सफ़ाई-सुथराई के अर्थ में है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रोज़ा सम्पूर्ण शरीर की सफाई करके उसके स्वास्थ्य का कारण बनता है और यह मनुष्य को बहुत सी शारीरिक बीमारियों और ख़तरों से निपटने के लिए तैयार करता है।

भारत-ईरान संबंधों का विकास तेहरान की प्राथमिकताईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉक्टर हसन रूहानी ने कहा है कि भारत-ईरान संबंधों का विकास तेहरान की विदेश नीति की प्राथमिकताओं में शामिल है।

उन्होंने अपने नाम भारतीय प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह के बधाई संदेश के जवाब में कहा है कि उन्हें पूरी आशा है कि उनके राष्ट्रपति काल में भारत के साथ ईरान के संबंध अधिक विकसित होंगे। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डॉक्टर हसन रूहानी ने कहा कि ईरानी और भारतीय राष्ट्र साझा ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों के स्वामी हैं और आशा है कि दोनों देशों की सरकारों और राष्ट्रों के बीच सहयोग में विस्तार, द्विपक्षीय संबंधों के अतिरिक्त क्षेत्रीय शांति और स्थिरता का भी कारण बनेगा। उल्लेखनीय है कि भारत के प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने ईरान के ग्यारहवें राष्ट्रपति चुनाव में जीत पर डॉक्टर हसन रूहानी को अपने देश की सरकार और राष्ट्र की ओर से बधाई देते हुए आशा व्यक्त की थी कि ईरानी राष्ट्र के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के शासनकाल में ईरान और भारत के बीच द्विपक्षीय संबंधों और सहयोग में अधिक विस्तार आएगा।

बुधवार, 10 जुलाई 2013 09:32

ईश्वरीय आतिथ्य-2

ईश्वरीय आतिथ्य-2

पैग़म्बरे इस्लाम कहते हैं कि रमज़ान के महीने में तुम्हारा सांस लेना तसबीह अर्थात ईश्वर का जाप ह और इसमें तुम्हारी नींद उपासना है। इस महीने में तुम्हारे कार्य ईश्वर के निकट स्वीकार्य हैं और तुम्हारी प्रार्थनाएं भी स्वीकार्य हैं। बस तुम सदभावना और पवित्र मन से अपनी बातों को ईश्वर के समक्ष रखो और ईश्वर से प्रार्थना करो कि वह इस महीने में तुम्हें रोज़ा रखने का सामर्थ्य प्रदान करे और पवित्र क़ुरआन का पाठ करने या उसे पढ़ने का तुम्हें अवसर प्रदान करे। दुर्भाग्यपूर्ण व्यक्ति वह है जिसके पापों को ईश्वर इस महीने में क्षमा न करे। इस महीने की भूख और प्यास से प्रलय के दिन की भूख और प्यास को याद करो और निर्धनों तथा वंचितों को दान दो। श्रोताओ, ईश्वर ने मनुष्य को हर स्थिति में अपनी ज़बान पर नियंत्रण रखने का आदेश दिया है। क्योंकि देखने में यह आता है कि अनियंत्रित ज़बान, मनुष्य के बड़े-बड़े पापों का कारण बनती है। कहते हैं कि किसी पाप पर ईश्वर किसी को उस समय तक दंडित नहीं करता जबतक उस पाप को मनुष्य व्यवहारिक रूप न दे दे। मनुष्य के मन में बहुत सी बातें आती हैं। अच्छी भी और बुरी भी। इनको मन से बाहर लाकर लोगों के बीच फैलाने का काम सबसे पहले ज़बान करती है। इसी प्रकार किसी बुरे कार्य के बारे में सुनने का काम कान करते हैं परन्तु उन्हें आगे बढ़ाने का काम जीभ द्वारा ही किया जाता है।

लड़ाई-झगड़ा, अपशब्द कहना, किसी का मज़ाक़ उड़ाना, किसी का दिल दुखाना आदि यह सारे ही कार्य ज़बान करती है। यह छोटी सी ज़बान बड़ी-बड़ी लड़ाइयों, शत्रुता और मन-मुटाव का कारण बन जाती है। इसीलिए रोज़े में ज़बान पर नियंत्रण रखने पर बहुत अधिक बल दिया गया है और शायद इसीलिए रोज़े की स्थिति में सोने को भी पुण्य माना गया है क्योंकि उस स्थिति में मनुष्य की ज़बान काम नहीं करती और वह अनेक पापों से बचा रहता है।

ज़बान की एक अन्य ख़तरनाक बुराई, ग़ीबत अर्थात किसी के पीठ पीछे बातें बनाना है। यह बुराई, लोगों की बातें इधर-उधर फैलने का कारण बनने के अतिरिक्त, अकारण ही लोगों की दृष्टि में किसी व्यक्ति का सम्मान कम होने का कारण बनती है। फिर कही गयी बातें यदि सच हों तो भी चूंकि किसी के बारे में उसके पीठ पीछे कहा गया है इसलिए यह पाप मानी जाती हैं और यदि झूठ हों तब तो उसका दंड और भी बढ़ जाता है। ग़ीबत को क़ुरआन में इतना बड़ा पाप कहा गया है कि जैसे किसी ने अपने मरे हुए भाई का मांस खाया हो।

झूठ बोलना और झूठी सौगंध खाना भी ज़बान का ही काम है। इस प्रकार ज़बान, अनेक संबन्धों के टूटने, शत्रुता उत्पन्न करने, घृणा बढ़ाने, लोगों को दुखी और अपमानित करने का काम करने के कारण ही शरीर का ख़तरनाक अंग मानी जाती है। आध्यात्मिक शिक्षाओं के अनुसार ज़बान ही परलोक में मनुष्य के सबसे अधिक दंडित किये जाने का कारण बनेगी। जबकि दूसरी ओर यही ज़बान यदि नियंत्रित रहकर सकारात्मक कार्य करने लगे तो रोज़े की स्थिति में ईश्वर की प्रशंसा करके ही नहीं बल्कि किसी को शिक्षा देकर, पढ़ाई में किसी की सहायता करके, किसी के अच्छे कार्य की प्रशंसा करके, किसी की पीड़ा को बांटकर, किसी दुखी को सांत्वना देकर, किसी निराश को आशा बंधाकर, किसी को बुराई से रोककर, किसी के टूटते संबन्धों को जोड़कर और इसी प्रकार के अन्य छोटे-छोटे परन्तु महत्वपूर्ण कार्य करके न केवल अपने मालिक का सम्मान बढ़ा सकती है, परिवार और समाज में शांति प्रवाह कर सकती है बल्कि परलोक में मनुष्य को ईश्वर के समक्ष लज्जित होने और दंडित होने से भी बचा सकती है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि एक महीने तक ज़बान को नियंत्रित रखने का अभ्यास, बचे हुए ग्यारह महीनों में मनुष्य के व्यक्तित्व को कितना महान बना सकता है।