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मंगलवार, 09 जुलाई 2013 09:58

ईश्वरीय आतिथ्य-1

ईश्वरीय आतिथ्य-1

पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम ने शाबान महीने के अन्तिम शुक्रवार को एक भाषण दिया था जो इतिहास में ख़ुत्बए शाबानिया के नाम से प्रसिद्ध है। इस भाषण में पवित्र रमज़ान के महत्व, उसकी विशेषताओं और इस महीने में ईश्वर की ओर से मनुष्य पर की जाने वाली अनुकंपाओं का उल्लेख किया गया है। इसमे रोज़ा रखने वाले के कर्तव्यों, ईश्वर की ओर से उसको प्रदान की जाने वाली अनुकंपाओं, आत्मनिर्माण, आत्ममंथन, समाजसुधार, दूसरों की सहायता और इसी प्रकार की एसी बहुत सी महत्वपूर्ण बातों को प्रस्तुत किया गया है जो सत्य के खोजियों के लिए बहुत ही लाभदायक हैं।

ख़ुत्बए शाबानिये का आरंभ इस प्रकार से होता हैः- हे लोगो, ईश्वर का महीना अपनी विभूतियों, अनुकंपाओं और पापों से क्षमा के साथ तुम्हारी ओर आ गया है। यह वह महीना है जो ईश्वर के निकट समस्त महीनों से महत्वपूर्ण है। इसके दिन भी बहुत मूल्यवान दिन हैं और इसकी रातें भी बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसका प्रत्येक क्षण अन्य क्षणों की तुलना में बहुमूल्य है। यह वह महीना है जिसमें ईश्वर ने तुम्हें दावत पर निमंत्रित किया है और इसमें ईश्वर ने तुमको महत्व एवं सम्मान प्रदान किया है। /ईश्वर ने मनुष्य को अपनी उत्तम रचना कहा है और इसीलिए उससे चाहा है कि वह अपने रचयिता तथा पालनहार से निरंतर संपर्क बनाए रखे। इसी संपर्क का नाम उपासना है। यह संपर्क मनुष्य को संतुष्ट और निर्भीक बनाए रखता है क्योंकि मनुष्य यह जानता है कि उसका पालनहार समस्याओं के समाधान तथा हर संकट के निवारण में सक्षम है और वह उसे इस जीवन में कभी अकेला नहीं छोड़ेगा। साल के बारह महीनों में की जाने वाली उपासनाएं, मनुष्य के चरित्र निर्माण में बहुत ही सहायक होती हैं। यह उपासनाएं मनुष्य के भीतर घमंड नहीं आने देतीं क्योंकि वह जानता है कि उसकी शक्ति, ज्ञान और सौंदर्य आदि सब कुछ ईश्वर की ही देन है और केवल ईश्वर ही है जो महान है। इसी आधार पर वह किसी भी सांसारिक शक्ति से भयभीत और प्रभावित नहीं होता तथा अपने परमात्मा को दृष्टि में रखकर ही किसी भी ईश्वरीय रचना पर अत्याचार नहीं करता। दूसरी ओर ईश्वर भी अपने बंदों की इन भावनाओं को प्रबल बनाने में उनकी सहायता करता है। नमाज़ का आदेश देकर जहां वह अपने बंदे, अपनी रचना अर्थात मनुष्य की, केवल अपने समक्ष सिर झुकाने की आदत डालता है और दूसरों से न डरने का साहस प्रदान करता है वहीं रोज़ा रखने का आदेश देकर मनुष्य में आत्मनिर्माण की भावना को सुदृढ़ करता है।

रोज़ा क्या है? रोज़े का सबसे सरल आयाम, भोर समय से लेकर रात की कालिमा के आरंभ होने तक खाने-पीने से दूर रहना है। यह सरल आयाम मनुष्य को भूख सहन करने, भूखे रहने पर विवश लोगों के दुख को समझने और निराशा व कामना के टकराव की उस स्थिति के पूर्ण आभास का पाठ सिखाता है जो एक भूखे और निर्धन के मन में उस समय उत्पन्न होती है जब दूसरे तो खार रहे होते हैं और वह तथा उसके बच्चे भूखे होते हैं।

जी हां। रोज़ा जीवन के विभिन्न महत्वपूर्ण आयामों को पूर्ण रूप से समझने का एक मार्ग है। जब एक महीने तक अभ्यास किया जाए तो फिर कठिन से कठिन पाठ भी पूर्ण रूप से याद हो जाता है और मनुष्य उस कार्य में पूर्ण रूप से दक्ष हो जाता है जिसका प्रशिक्षण एक महीने तक प्राप्त करता है। आत्मनिर्माण, रोज़े का एसा विस्तृत आयाम है जिसपर यदि ध्यान दिया जाए तो इससे मनुष्य के व्यक्तित्व को निखारने वाले अनगिनत आयाम सामने आने लगते हैं।

रोज़ा केवल भूख और प्यास सहन करने का नाम नहीं है। रोज़ा/ इच्छाओं, भावनाओं, विचारों, शब्दों, आंखों, कानों और हाथों तथा पैरों सबको पूरे शरीर को इस प्रकार ईश्वर के समक्ष समर्पित करने का नाम है कि यह सभी भावनाएं और अंग, बस ईश्वर के लिए ही, उसकी इच्छानुसार ही काम करें।

शीयों को काफ़िर कहना इस्लामी शिक्षाओं के विरुद्ध- शैख़ुल अज़हरमिस्र के अजअज़हर विश्वविद्यालय के प्रमुख शैख़ुल अज़हर ने शियों को काफ़िर कहने का विरोध किया है। अहमद अत्तैयब ने कुछ चैनेलों द्वारा शीया मुसलमानों को काफ़िर बताए जाने का कड़ाई से विरोध करते हुए कहा कि यह बात किसी भी स्थिति में स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने कहा कि इस्लामी शिक्षाओं की छाया में शिया मुसलमानों को काफ़िर कहना सही नहीं है। शैख़ुल अज़हर ने कहा कि मुसलमानों के बीच मतभेद उत्पन्न करने के अन्तर्राष्ट्रीय षडयंत्र जारी हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में मुसलमानों के बीच एकता नितांत आवश्यक है और एकता के बिना मुसलमान गौरान्वित नहीं हो सकते। ज्ञात रहे कि शैख़ुल अज़हर अहमद अत्तयैब का यह बयान एसी स्थिति में आया है कि हालिया दिनों में मिस्र में शीया मुसलमानों के विरुद्ध वहाबियों की शत्रुतापूर्ण कार्यवाहियों में तेज़ी से वृद्धि हुई है।

रमज़ान का महीना जिसमें कुरआन उतारा गया लोगों के मार्गदर्शन के लिए, और मार्गदर्शन और सत्य-असत्य के अन्तर के प्रमाणों के साथा। अत[2:185]

सोमवार, 08 जुलाई 2013 10:13

ख़ुदा की मारेफ़त फितरी है

ख़ुदा की मारेफ़त फितरी है

ख़ुदा की मारेफ़त हासिल करना एक फ़ितरी अम्र है जो हर इंसान के अंदर पाया जाता है।

फ़ितरी होने का मतलब यह है कि इंसान को यह सिखाया नही जाता कि कोई ख़ुदा है जिसने इस दुनिया को बनाया है बल्कि अपने जम़ीर और फ़ितरत की तरफ़ मुतवज्जे होते ही वह यह जान लेता है कि किसी आलिम व क़ादिर ज़ात ने इस दुनिया को पैदा किया है, उस का दिल ख़ुदा से आशना होता है और उस की रूह की गहराईयों से मारेफ़ते ख़ुदा की आवाज़ें सुनाई देती हैं।

उलामा और दानिशवरों ने अपने इल्मी तजरुबों से यह साबित किया है कि अगर किसी बच्चे को पैदा होने के बाद किसी ऐसे दूर दराज़ इलाक़े में छोड़ दिया जाये जहाँ इंसानों का साया भी न पाया जाता हो, किसी तरह का कोई दीन या मज़हब मौजूद न हो तो जब यह बच्चा समझदार होगा तो ख़ुद ब ख़ुद वह उस ज़ात की तरफ़ मायल हो जायेगा जिसने इस दुनिया को पैदा किया है, हाँ यह मुमकिन है कि वह पहचान में ग़लती करते हुए किसी जानवर या पेड़ पौधे या दूसरी चीज़ों को ख़ुदा समझ बैठे लेकिन उस के इस काम से यह बात ज़रुर साबित हो जाता है कि ख़ुदा की मारेफ़त हासिल करना फ़ितरी है। इंसान की यह पाक फ़ितरत और वक़्त और ज़्यादा जलवा नुमा होती है जब वह किसी बला या मुसीबत में फंस जाता है और निजात के सारे रास्ते बंद पाता है, ऐसी सूरत में उसे अपने अंदर एक आवाज़ सुनाई देती है कि अब भी एक ज़ात ऐसी है जो उसे इस मुसीबत से निजात दे सकती है। मिसाल के तौर पर कोई ऐसा शख़्स जिस के बहुत से क़वी और ख़तरनाक जानी दुश्मन हैं जो उसे क़त्ल करना चाहते हैं उन्होने अपने हथियारों को इस लिये तैयार कर रखा है कि उस के बदन को टुकड़े टुकड़े कर डालें। वह नही जानता कि वह दुश्मनों के हाथ लग जाये और वह उसे क़त्ल कर दें, ख़ौफ़ से न रातों को नींद आती है न दिन का चैन हासिल है और निजात की उम्मीदें हर तरफ़ से ख़त्म हो गई हैं, ऐसी सूरत में अगर कोई उस से सवाल करे कि क्या कोई निजात का रास्ता है? तो वह जवाब देगा कि अब ख़ुदा ही बचा सकता है।

एक शख़्स ने इमाम जाफ़र सादिक (अ) से ख़ुदा के वुजूद के बारे में सवाल किया तो आप ने फ़रमाया: कभी कश्ती का सफ़र किया है। उसने जवाब दिया जी हाँ, फ़रमाया: क्या कभी ऐसा हुआ है कि तुम्हारी नाव डूबने लगी हो, तुम्हे तैरना न आता हो और बचने का कोई रास्ता न हो? जवाब दिया: जी हाँ। फ़रमाया क्या तुम्हारा दिल उस वक़्त किसी ऐसी चीज़ की तरफ़ मुतवज्जे था जो उस वक़्त भी तुम्हे उस ख़ौफ़नाक मन्ज़र से निजात दे सके? जवाब दिया जी हाँ फ़रमाया: वह वही ख़ुदा है जो उस वक़्त भी निजात दे सकता है जब कोई निजात देने वाला न हो और वही है जो उस वक़्त भी मदद कर सकता है जब कोई मददगार न हो। [1] उसी पाक फ़ितरत की तरफ़ इशारा करते हुए ख़ुदा वंदे आलम क़ुरआने मजीद में फ़रमाता है:

فطرة الله التی فطر الناس علیها لا تبدیل لخلق الله

यह दीन वह फ़ितरते इलाही है जिस पर उसने इंसानो को पैदा किया है, ख़िलक़ते ख़ुदा में कोई तब्दीली नही आ सकती। (सूरए रूम आयत 30)

ख़ुलासा

- ख़ुदा की मारेफ़त के फ़ितरी होने के मतलब यह है कि इंसानों को यह सिखाया नही जा सकता कि इस दुनिया का कोई पैदा करने वाला मौजूद है बल्कि उस की रूह की गहराईयों से मारेफ़ते ख़ुदा की आवाज़ सुनाई देती है।

- इंसान की यह पाक फ़ितरत उस वक़्त और जलवा नुमा होती है जब वह किसी बला मुसीबत में फंस जाता है और अपने लिये निजात के सारे रास्ते बंद पाता है, ऐसी सूरत में उस की ज़मीर कहता है कि अब भी कोई ज़ात है जो उसे बचा सकती है और वह ख़ुदा है।

 

सवालात

1. मारेफ़ते ख़ुदा के फ़ितरी होने का क्या मतलब है?

2. इंसान की यह पाक फ़ितरत किस वक़्त ज़्यादा जलवा नुमा होती है?

3. वुजूदे ख़ुदा के बारे में सवाल करने वाले शख़्स के जवाब में इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने क्या फ़रमाया वाक़ेया नक़्ल कीजिये?

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[1]. हक़्क़ुल यक़ीन, शुब्बर, पेज 8

पाकिस्तान चीन के साथ संबंध विस्तार का इच्छुकपाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने घोषणा की है कि उनकी सरकार इस्लामाबाद और बीजींग के मध्य समझौतों को लागू करके दोनों देशों के संबंधों को मज़बूत बनायेगी। मोहम्मद नवाज़ शरीफ ने रविवार को चीन के ग्वांगदोन्ग प्रांत की यात्रा के दौरान कहा कि पाकिस्तान और ग्वांगदोन्ग प्रांत के मध्य सहकारिता, पाकिस्तानी और चीनी जनता के मध्य गहरे संबंधों को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ग्वांगदोन्ग प्रांत की कम्पनियों के पूंजी निवेश का स्वागत करता है। ग्वांगदोन्ग प्रांत के राज्यपाल ने भी नवाज़ शरीफ से भेंट में कहा है कि ग्वांगदोन्ग पाकिस्तान में अधिक पूंजी निवेश का इच्छुक है।

तालिबान विदेशियों के सेवक हैं, करज़ईअफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा है कि तालिबान गुट के सदस्य, विदेशियों के उद्देश्यों की पूर्ति कर रहे हैं।

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति कार्यालय से रविवार को जारी एक बयान में इस देश के राष्ट्रपति हामिद करज़ई के हवाले से यह बात कही गयी है। बयान में अफगानिस्तान के हालिया विस्फोट की भी कड़ी आलोचना की गयी है जिसमें कई अफगान बच्चे मारे गये थे।

अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने कहा कि तालिबान आम सड़कों पर बारूदी सुरंगे बिछा कर आम नागरिकों की हत्या कर रहे हैं और इससे पता चलता है कि इस गुट के सदस्य विदेशियों की सेवा कर रहे हैं। याद रहे शनिवार को अफगानिस्तान के हेलमंद और पकतीका प्रान्तों में बम विस्फोटों में ६ अफगान बच्चे मारे गये थे।

नाइजीरिया में स्कूल पर आक्रमण, 42 लोग हताहतनाइजीरिया में अलकायदा के सहयोगी आतंकी संगठन बोको हरम ने एक स्कूल पर आक्रमण करके 42 लोगों की हत्या कर दी है। आतंकियों ने देश के उत्तर-पूर्वी राज्य योबे के एक स्कूल में हमलाकर 42 लोगों की हत्या कर दी। इनमें अधिकतर स्कूली छात्र हैं। मई में ही राष्ट्रपति गुडलक जोनाथन ने योबे सहित तीन राज्यों में आतंकवादी घटनाओं के चलते इमरजेंसी लगाई थी। स्थानीय अधिकारियों ने बताया कि आतंकियों ने मामुदो के सरकारी सेकेंडरी स्कूल पर धावा बोला। स्थानीय अस्पताल के एक कर्मचारी ने बताया कि अब तक उन्हें 42 शव मिले हैं। इनमें बच्चों के अतिरिक्त स्कूली स्टाफ के भी शव हैं।

मिस्र इस्लामी जागरूकता का केन्द्रः आयतुल्लाह ख़ातेमीआयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने मिस्र को इस्लामी जागरूकता का केन्द्र बताया है। तेहरान में जुमे की नमाज़ के भाषण में उन्होंने कहा कि मिस्र, इस्लामी जागरूकता का केन्द्र है और पिछले वर्ष इस देश की जनता ने मतदान के दौरान इस्लामवादियों को वोट दिया था किंतु जिन लोगों ने मिस्र में सत्ता संभाली उन्हीं लोगों ने इस देश में सैनिक विद्रोह की भूमिका प्रशस्त की। आयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने मिस्री जनता से मांग की है कि वह इस्लामी जागरूकता की रक्षा करे और इस बात की कदापि अनुमति ने दे कि उनका देश, मिस्र के पूर्व तानाशाह हुस्नी मुबारक के काल की भांति ज़ायोनी शासन का घरआंगन बन जाए। आयतुल्लाह अहमद जन्नती ने आगे कहा कि मिस्र में जिन लोगों ने सरकार का गठन किया था उनका आरंभ में तो यह नारा था कि ज़ायोनी शासन का विरोध किया जाएगा किंतु बाद में उन्होंने सत्ता में पहुंचते ही ज़ायोनी शासन से मित्रता की और अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में अपना राजदूत भेजा। आयतुल्लाह ख़ातेमी ने मिस्र के एक वरिष्ठ शीया धर्मगुरू शेख हसन शहाता की शहादत का एक उल्लेख करते हुए कहा कि ब्रिटेन ने ही उस वहाबी विचारधारा की आधारशिला रखी जो आज निर्दोष लोगों का ख़ून बहाकर स्वयं को आगे बढ़ा रही है। उन्होंने कहा कि इस बात की आशा की जाती है कि सुन्नी संप्रदाय के धर्मगुरू इस बात की घोषणा करेंगे कि वहाबी विचारधारा का इस्लामी शिक्षाओं से कोई संबन्ध नहीं है। आयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने कहा कि १४ जून के राष्ट्रपति चुनाव में जनता ने बढ़चढ कर भाग लिया और इस चुनाव में ७२ प्रतिशत मतदाना ने साम्राज्यवादियों के षडयंत्रों को विफल बना दिया।

लेबनान और सीरिया के संबंध में हिज़बुल्लाह नीतियां सराहनीयहिज़बुल्लाह के महासचिव सैयद हसन नसरूल्लाह ने विश्वास दिलाया है कि क्षेत्र की वर्तमान परिस्थितियों में हिज़बुल्लाह सफल रहेगा।

समाचार पत्र अस्सफ़ीर की रिपोर्ट के अनुसार, सैयद हसन नसरूल्लाह ने हिज़बुल्लाह के कमांडरों से भेंट में कहा कि उन पर और हिज़बुल्लाह के विरुद्ध संचार माध्यमों और राजनैतिक आक्रमणों से हिज़बुल्लाह के क्रियाकलापों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा बल्कि वर्तमान स्थिति के परिणाम हिज़बुल्लाह के हित में ही निकलेंगे। उन्होंने हिज़बुल्लाह के कमांडरों को विश्वास दिलाया है कि आगामी कुछ दिनों में हिज़बुल्लाह की नीतियों के सही होने का पता चल जाएगा और सब पर स्पष्ट हो जाएगा कि हिज़बुल्लाह ने चाहे लेबनान हो या सीरिया ग़लत नीति

पाकिस्तान के क़बायली इलाक़े में ड्रोन हमले सात हताहतपाकिस्तान के क़बायली क्षेत्र उत्तरी वज़ीरिस्तान में होने वाले ड्रोन हमलों में 7 लोग मारे गए।

सूत्रों के अनुसार उत्तरी वज़ीरिस्तान के डांडे दरपा ख़ैल में मंगलवार बीती रात चार अमरीकी ड्रोन विमानों ने चार मिसाइल फ़ायर किए। हमले में घर और गाड़ी को निशाना बनाया गया जिसमें 7 लोग मारे गए। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि ड्रोन हमलों में अनेक लोग घायल भी हुए हैं। हमले के बाद भी देर तक ड्रोन विमान इस क्षेत्र के ऊपर उड़ते रहे जिससे लोगों में भय व्याप्त रहा।