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सुप्रीम लीडर हज़रत आयतुल्लाह ख़ामेनईः

जो नहजुल बलाग़ा नहीं पढ़ता वह कुरान से बेखबर है।

हमें नहजुल बलाग़ा की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए, उसकी और ज़्यादा शिक्षा लेनी चाहिए, अमीरूल मोमिनीन के इस मौजें मारते ज्ञान व हिकमत के समंदर से और ज्यादा लाभान्वित होना चाहिए। यह किताब सभी पहलू स्पष्ट करती है और हमें हर तरह की शिक्षा से मालामाल करती है।

इस्लामिक रिपब्लिक ईरान की रिपोर्टर क्लब की राजनीतिक डेस्क की रिपोर्ट के अनुसार ईरान के इस्लामी इंक़ेलाब के सुप्रीम लीडर की वेबसाइट www.khamenei.ir रमज़ान के दिनों में सुप्रीम लीडर के नमाज़, नहजुल बलाग़ा और कुरान से सम्बंधित बयान रमज़ान के क्रमशः पहले, दूसरे और तीसरे दहे में प्रसारित कर रही है।

यहाँ नहजुल बलाग़ा से सम्बंधित आपके कुछ बयानों का हिन्दी अनुवाद पेश कर रहे है:

मेरे प्यारे भाईयों और बहनों नहजुल बलाग़ा से सम्पर्क पैदा करें, यह किताब लापरवाही से जगाती और जागरूक करती है, उसके शब्दों पर बहुत विचार करने की जरूरत है। आपकी सभाएं नहजुल बलाग़ा और अमीरूल मोमिनीन सलवातुल्लाह अलैह के कथनों से सुसज्जित होनी चाहियें। इसके बाद जब अल्लाह ने तौफ़ीक़ दी और एक कदम आगे बढ़ गए तो सहीफह सज्जादिया को ज़िंदगी का हिस्सा बना लें। ऐसा प्रतीत होता है कि यह दुआओं की किताब है, लेकिन वास्तव में नहजुल बलाग़ा ही की तरह शिक्षा, ज्ञान और ज़िंदगी की मार्गदर्शक है।

हमारे पास अहलेबैत अलैहिमुस्सलाम का बहुत कुछ है। अगर हम उसे सामने ले आएं तो निश्चित रूप से दुनिया हैरान रह जाएगी। जैसे नहजुल बलाग़ा, इस महान किताब पर रिसर्च होनी चाहिए, महत्वपूर्ण बातें जमा की जाएं, उन्हें अलग अलग किया जाये, उसकी तफ़सीर और व्याख्या की जाये, रियातों पर शोध व रिसर्च हो। हमारे पास ऐसी उच्च शिक्षा हैं जिनकी आज हर इंसान को जरूरत है। यह अहलेबैत अ.ह का कलाम, अहलेबैत अ.ह का बयान और वह इस्लाम है जिसे अहलेबैत अ.ह ने पहचनवाया है।

इस नहजुल बलाग़ा को पढ़िए और सीखिये। आज के दौर में केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि कई ग़ैर मुस्लिम विचारकों को जब नहजुल बलाग़ा का पता चला और उन्होंने अमीरूल मोमिनीन अ. के कलाम को पढ़ा और देखा, आपके कलाम की हिकमतें सुनी और सीखीं तो इस कलाम और इस कलाम के मालिक की महानता व महिमा पर चकित रह गये। हमें नहजुल बलाग़ा की ओर अधिक ध्यान देना चाहिए, उसकी शिक्षा लेनी चाहिए, अमीरूल मोमिनीन के इस मौजें मारते ज्ञान व हिकमत के समंदर से और ज्यादा लाभान्वित होना चाहिए। यह किताब सभी पहलू स्पष्ट करती है और हमें हर तरह की शिक्षा से मालामाल करती है। इस किताब से संबंधित अहले सुन्नत के बुज़ुर्ग उलमा के बयानात पढ़कर आदमी हैरान रह जाता है।

यह नहजुल बलाग़ा एक तरह इस्लामी शिक्षाओं का इंसाइक्लोपीडिया है। नहजुल बलाग़ा बहुत महान है और हम उससे कितने दूर हैं???? लोगों ने नहजुल बलाग़ा का केवल नाम सुन रखा है, उन्हें हरगिज खबर नहीं कि यह अमल करने की किताब है वास्तव राह बलाग़ा अमल करने की किताब है, इससे इस्लाम पहचाना जाता है। मेरी ओर से इस्लाम के दुश्मनों से कह दीजिए, उन से कह दीजिए कि जो इस्लाम की आलोचना करते हैं, ताने देते और ज़हर उगला करते हैं, जो इस्लाम पर हमले का कोई भी मौका गंवाना नहीं चाहते, उनसे कह दीजिए, नए उदारवादी लोग उन तक मेरी बात पहुंचा दें कि अगर आप इस्लाम को रद्द करना चाहते हैं तो ऐसा करने से पहले एक बार शुरू से आख़िर तक नहजुल बलाग़ा का अध्ययन कर लें। जो नहजुल बलाग़ा नहीं पढ़ता वह कुरान से बेख़बर है और जब उसे इस्लाम और कुरान की ख़बर ही नहीं तो उसे यह कहने का क्या हक पहुंचा कि इस्लाम (नऊज़ो बिल्लाह) ग़लत दीन है, उसे कोई अधिकार नही। हां उसका दिल ऐसा चाह रहा है तो करता रहे, लेकिन यह जेहालत के अतिरिक्त कुछ नहीं। कोई भी समझदार, कोई भी पढ़ा लिखा उनके इस काम को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होगा।

निःस्वार्थ ईमान, जेहाद और क़ुर्बानी, अल्लाह के अम्र व नही (आदेश) में फ़ना हो जाना, अल्लाह का बिना किसी शर्त आज्ञापालन और उसकी इबादत, दुनियावी और भौतिक चमक की अनदेखी, हर इंसान के प्रति दयालुता और रहेमदिली, न्याय और इंसाफ़ का ख्याल रखना, मज़लूमों, कमज़ोरों और दबे कुचले लोगों पर मेहरबानी, दीन के दुश्मनों का बहादुरी से मुक़ाबला और हर क़िस्म के हालात और हर तरह की सख्ती और परेशानी में अपनी जिम्मेदारी पर अमल करना ही अमीरूल मोमिनीन अ. की हकीमाना बातों का संदेश है जिसकी इंसान को कल भी जरूरत थी, आज भी है और कल भी रहेगी। अमीरूल मोमिनीन अ. की नहजुल बलाग़ा मानवता व इंसानियत के लिए हमेशा दर्स है। यह अमीरूल मोमिनीन (अ.स.) का वह ज़ाहिरी कैरेक्टर है जिसे हमारी सीमित निगाहें देख और महसूस कर सकती हैं, आपके ज़ाहिरी गुणों को दर्क कर सकते हैं। लेकिन उन गुणों और कमालात के आध्यात्मिक, पवित्र और रूहानी पहलुओं को समझना केवल सदाचारियों औऱ सिद्दीक़ीन के लिए संभव है। वही उनके कमालात देख सकते हैं हमारी आँखें अल्लाह के वलियों और अल्लाह के चहेते बंदों के समान देखने से असमर्थ हैं।

हिज़्बुल्लाह को आतंकवादी बताना कलंक का कारण हैआज तेहरान की केन्द्रीय नमाज़े जुमा आयतुल्लाह काज़िम सिद्दीक़ी की इमामत में अदा की गयी। उन्होंने नमाज़े जुमा के भाषण में हिज़्बुल्लाह को आतंकवादी गुटों की सूची में शामिल करने के यूरोपीय संघ के निर्णय की आलोचना करते हुए कहा कि यह एक लज्जाजनक क़दम है। उन्होंने हिज़्बुल्लाह के विरुद्ध यूरोपीय संघ की कार्यवाही को ग़ैर क़ानूनी और अनैतिक बताया और कहा कि इससे अंततः यूरोपीय संघ का ही अपमान होगा जबकि हिज़्बुल्लाह को कोई नुक़सान नहीं पहुंचेगा।

उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति में जबकि ज़ायोनी शासन एक आतंकवादी शासन है, हिज़्बुल्लाह को आतंकवादी गुटों की सूची में शामिल करना, कलंक का कारण है।

जुमे के इमाम ने कहा कि हिज़्बुल्लाह ने ज़ायोनी शासन के अजेय होने के भ्रम को चकनाचूर कर दिया है और सारी दुनिया को बता दिया है कि ज़ायोनी शासन मकड़ी के जाले से भी कमज़ोर है। आयतुल्लाह काज़िम सिद्दीक़ी ने यूरोपी संघ की ओर से एमकेओ आतंकवादी गुट को आतंकी गुटों की सूची से निकाले जाने की ओर संकेत करते हुए कहा कि हिज़्बुल्लाह एक ऐसा गुट है जो प्रतिरक्षा करता है और अपने देश के विकास और स्वतंत्र के मार्ग पर अग्रसर है।

उन्होंने मिस्र की ताज़ा स्थिति पर खेद प्रकट करते हुए कहा कि, सीरिया, मिस्र के लिए पाठ है और ज़ायोनी शासन और अमरीका ने ज़ायोनी विरोधी प्रतिरोध को तोड़ने के लिए सीरिया में युद्ध आरंभ कर रखा है और अब मिस्र की बारी आने वाली है। आयतुल्लाह काज़मि सिद्दीक़ी ने कहा कि मिस्र की स्थिति के ज़िम्मेदार अमरीका और ज़ायोनी शासन हैं।

उन्होंने धर्मगुरूओं, लेखकों और प्रतिष्ठित लोगों से अपील की है कि मिस्र की क्रांति को सफलता तक पहुंचाने के लिए वर्तमान समस्या का समाधान करें। उन्होंने मिस्र में जारी रक्तरंजित घटनाओं के ज़िम्मेदार तत्वों की निंदा करते हुए कहा कि मुसलमान, हिंसा और रक्तरंजित घटनाओं में लिप्त नहीं होता। उन्होंने पवित्र रमज़ान के महीने की विशेषताएं बयान की और कहा कि इस महीने में किए जाने वाले कर्मों का दूसरे महीनों से मुक़ाबला नहीं किया जा सकता।

यूरोपीय संघ ने अव्यवसायिक एवं पक्षपाती क़दम उठाया हैईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अब्बास एराक़ची ने लेबनान के प्रतिरोधी आंदोलन हिज़्बुल्लाह को यूरोपयी संघ द्वारा आतंकवादी संगठनों की सूची में शामिल करने के निर्णय को अव्यवसायिक एवं पक्षपाती बताया है।

मंगलवार को तेहरान में संवाददाता सम्मेलन में एराक़ची ने कहा कि यह क़दम महान लेबनानी राष्ट्र के विरुद्ध है, इस लिए कि हिज़्बुल्लाह लेबनानी समाज एवं राजनीतिक का अभिन्न अंग है जिसे लेबनानी जनता का भरपूर सम्मान एवं समर्थन हालिस है। ज़ायोनी शासन से मुक़ाबले के लिए हिज़्बुल्लाह की पूरे क्षेत्र एवं मुस्लिम जगत में बड़ी सराहना हुई है।

एराक़ची ने उल्लेख किया कि यूरोपीय संघ का यह क़दम द्वितीय विश्व युद्ध की याद दिलाता है कि जब नाज़ी विरोधी गुटों को काली सूची में डाल दिया जाता था, उन्होंने इस निर्णय को तर्कहीन एवं अजीबो ग़रीब बताया।

पाकिस्तान प्रधानमंत्री पर हमले की योजना विफलपाकिस्तानी अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ पर आत्मघाती हमला करने के षड्यंत्र को विफल करने का दावा किया है।

उनका कहना है कि उन्होंने एक ऐसे आतंकवादी नेटवर्क का पर्दाफ़ाश किया है जो लाहौर के बाहरी क्षेत्र राइविंड में शरीफ़ के निवास पर उन्हें आत्मघाती हमले में निशाना बनाने का षड्यंत्र रच रहा था। पुलिस और खुफिया अधिकारियों के एक संयुक्त जांच दल ने इस षड्यंत्र का पर्दाफ़ाश किया है। यह दल पूर्व प्रधानमंत्री यूसुफ़ रज़ा गीलानी के बेटे अली हैदर गीलानी के अपहरण मामले की जांच कर रहा है। अली हैदर का चुनाव प्रचार के दौरान मई में अपहरण कर लिया गया था। अली हैदर के अपहरण मामले की जांच कर रहे अधिकारियों को उत्तरी वज़ीरिस्तान के आतंकवादी संगठन के बारे में पता चला जो लाहौर में सक्रिय था और शरीफ़ के राइविंड स्थित निवास को निशाना बनाने का षड्यंत्र रच रहा था।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013 10:53

ईश्वरीय आतिथ्य-11

ईश्वरीय आतिथ्य-11

बंद दरवाज़ों की चाभियां

क़ुरआन पढ़ने और प्रार्थना करने का संबन्ध रमज़ान के पवित्र महीने में किये जाने वाले महत्वपूर्ण कार्यों में है। प्रत्येक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने समय के अनुरूप इस प्रशंसनीय कार्य को करता रहे और इससे निश्चेत न रहे। इस संदर्भ में ईरान के एक वरिष्ठ धर्मगुरू एवं पवित्र क़ुरआन के प्रसिद्ध व्याख्याकार आयतुल्लाह अब्दुल्लाह जवादी आमोली कहते हैं कि यह महीना ईश्वर की मेहमानी का महीना है और यह महीना मनुष्य को जो भोजन देता है वह क़ुरआन की शिक्षाएं और उसका ज्ञान है अतः इस महीने में अधिक क़ुरआन पढ़ा जाए। इसमें जितना अधिक क़ुरआन पढ़ा जाए उतना ही अच्छा है। किसी को यह नहीं कहना चाहिए कि क्योंकि मुझको क़ुरआन का अर्थ पता नहीं है इसलिए हमं क्यों पढ़ें? यह कोई सामान्य किताब नहीं है। यह ईश्वर के कथनों का एसा संकलन है जो हर कालखण्ड में अपने विशेष प्रभाव रखता है। इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी अपनी पुत्री को संबोधित करते हुए कहते हैं कि ईश्वरीय कृपा के स्रोत पवित्र क़ुरआन में चिंतन करो। यद्यपि उसके केवल पढ़ने के भी उल्लेखनीय प्रभाव हैं किंतु उसके बारे में सोच-विचार एवं चिंतन, मनुष्य का उच्च स्थान की ओर मार्गदर्शन करता है। सूरए मुहम्मद की आयत संख्या २४ में ईश्वर कहता है कि क्या वे क़ुरआन में सोच-विचार नहीं करते या उनके हृदयों पर ताले लगा दिये गए हैं? जबतक यह ताले नहीं खुलते या नहीं टूटते तबतक चिंतन-मनन के वैसे परिणाम नहीं प्राप्त होंगे जिनकी अपेक्षा की गई है।

प्रिय रोज़ा रखने वालो! ईश्वर से निकट होने और उसकी इच्छा को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए कुछ नियम हैं। प्रार्थना उन नियमों में से है जिनपर कार्यबद्ध रहकर इसके स्वीकार्य होने की संभावनाओं को बढ़ाया जा सकता है। ईश्वर के समक्ष नतमस्तक होने और उसकी शरण में जाने के लिए पूर्ण निष्ठा, पवित्र हृदय और अच्छे कार्यों की आवश्यकता होती है। कहते हैं कि बनी इस्राईल में एक व्यक्ति था जो संतान प्राप्ति के लिए ईश्वर से तीन वर्षों से प्रार्थना कर रहा था। जब उसने अपनी प्रार्थना के स्वीकार्य किये जाने की कोई निशानी नहीं देखी तो ईश्वर से कहा, हे ईश्वर! क्या मैं तुझसे इतना दूर हो गया हूं कि तू मेरी प्रार्थना को नहीं सुनता? या यह कि मैं निकट हूं किंतु तू मेरी प्रार्थना को स्वीकार नहीं करता। एक रात उसने स्वपन में यह सुना कि तुमने तीन वर्षों तक झूठी ज़बान, दूषित हृदय और अपवित्र नियत से मुझसे मांगा अतः जाओं ईश्वर के लिए अपनी ज़बान को बुराई से रोको, हृदय को पवित्र करो और अपनी नियत को शुद्ध करो। इस स्वपन के पश्चात उस व्यक्ति ने पापों से दूरी के लिए दृढ संकल्प कर लिया और ईश्वर ने एक वर्ष के पश्चात उसकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। बहुत से लोग ईश्वर से प्रार्थना करते हैं और उससे मांगते हैं किंतु उनकी कुछ मांगें स्वीकार नहीं होतीं। यह वास्तविकता है कि किसी भी व्यक्ति की निष्ठापूर्ण प्रार्थना कभी भी निरूत्तर नहीं रहती। इस संदर्भ में पैग़म्बरे इस्लाम (स) कहते हैं कि हर वह व्यक्ति जो ईश्वर से प्रार्थना करता है तो यदि वह अपनी प्रार्थना में कोई ग़लत चीज़ की मांग नहीं करता तो ईश्वर उसे इन तीन चीज़ों में से कोई एक चीज़ देता है। या तो उसकी प्रार्थना अविलंब स्वीकार कर ली जाती है या प्रलय के लिए उसे ज़ख़ीरा कर देता है और या फिर उस प्रार्थना की छाया में उससे कठिनाइयां दूर हो जाती हैं।

ईश्वर ने अपने दूत हज़रत ईसा से कहा कि हे ईसा! जब तुम मुझसे प्रार्थना करते हो तो उस डूबते हुए की भांति प्रार्थना करो जिसकी कोई सुनने वाला नहीं है। हे ईसा मेरी शरण में अपने हृदय को निष्ठावान बनाओ और एकांत में मुझको अधिक से अधिक याद करो और जान लो कि मैं तुम्हारी निष्ठा से प्रसन्न हूं। प्रार्थना करते समय अपने मन और मस्तिष्क को उपस्थित करो और दुखी ढंग से विलाप करते हुए मुझसे प्रार्थना करो। कहते हैं कि किसी महापुरूष से पूछा गया कि जब प्रार्थना स्वीकार नहीं होती तो फिर ईश्वर से क्यों मांगा जाए? इसके उत्तर में उस महापुरूष ने कहा इसलिए कि ईश्वर को पहचानते हो किंतु उसकी बात नहीं मानते। कुरआन को पढ़ते हो किंतु उसपर अमल नहीं करते। ईश्वर की विभूतियों से लाभ उठाते हो किंतु उसका आभार व्यक्त नहीं करते। जानते हैं कि मृत्यु अवश्य आएगी किंतु कल के लिए कोई प्रबंध नहीं करते। यह जानते हो कि शैतान खुला शत्रु है किंतु उससे शत्रुता नहीं करते। अपनी कमियों को तो दूर नहीं करते किंतु दूसरों की कमियों को गिनवाते हैं। यदि कोई एसा है तो फिर उसकी प्रार्थना किस प्रकार से स्वीकार होगी?

रमज़ान का पवित्र महीना, अपनी आकांक्षाओं तक पहुंचने तथा आसमानी पुरूस्कार प्राप्त करने के लिए स्वर्णिम समय है अतः हमें इस अवसर को हाथ से जाने नहीं देना चाहिए और इससे पूरा लाभ उठाना चाहिए। अब जबकि कृपालु ईश्वर ने रमज़ान के अतिथियों के लिए अपनी अनुकंपाओं के द्वार खोल दिये हैं तो हमें अपनी मांगों को उसके दरबार में रखना चाहिए।। धार्मिक शिक्षाओं में मिलता है कि अन्य लोगों पर निर्भर न रहना और ईश्वर की सहायता पर विश्वास की भावना का, दुआओं या प्रार्थनाओं के पूरा होने में आश्चर्य जनक प्रभाव पाया जाता है और यह भावना दुआओं के स्वीकार्य होने की शर्तों में से है। जो चीज़ मनुष्य को ईश्वर के कृपालू और स्नेहपूर्ण दरबार की ओर खींचती है वह आवश्यकतामुक्त ईश्वर के प्रति उसके दास की निष्ठा और प्रेम है। ईश्वर का दास अपने स्वामी के प्रति जितना अधिक निष्ठावान होगा, ईश्वर का ध्यान भी उसकी ओर उतना ही अधिक होगा अतः ईश्वर के दासों की प्रार्थनाओं की स्वीकृति, उनके द्वारा ईश्वर के अतिरिक्त किसी अन्य से दिल न लगाने के अनुपात में है। पैग़म्बरे इस्लाम (स) का कथन है कि पवित्र ईश्वर ने अपने एक दूत को संबोधित करते हुए इस प्रकार कहा कि मुझको मेरी प्रतिष्ठा और मेरे सम्मान की सौगंध, जो भी मेरे अतिरिक्त किसी अन्य से लगाव रखे और मेरे पैदा किये हुए लोगों से आशा लगाए निश्चित रूप से उसकी आशा को मैं निराशा में परिवर्तित कर दूंगा और उसे अपनी निकटता और कृपा से दूर कर दूंगा। क्या मेरा दास अपनी समस्याओं के समाधान में मेरे अतिरिक्त किसी अन्य से आशा लगाता है जबकि समस्त समस्याओं के समाधान की चाबियां मेरे पास हैं। क्या उसने किसी अन्य पर भरोसा कर रखा है और वह दूसरों का दरवाज़ा खटखटाता है जबकि समस्त बंद दरवाज़ों की चाभियां मेरे पास हैं।

मंगलवार, 23 जुलाई 2013 10:52

मुरसी की भूख हड़ताल

मुरसी की भूख हड़तालमिस्र में राजनैतिक संकट यथावत जारी है और इस देश के पूर्व राष्ट्रपति मुहम्मद मुरसी ने हिरासत में भूख हड़ताल आरंभ कर दी है। रूसी टीवी ने इख़वानुल मुसलेमीन के अधिकारियों के हवाले से सूचना दी है कि अपदस्थ किए गए राष्ट्रपति मुरसी ने इस भय से भूख हड़ताल आरंभ कर दी है कि कहीं उन्हें खाने में ज़हर न दे दिया जाए। इख़वानुल मुसलेमीन का कहना है कि मुरसी यथावत सेना के मुक़ाबले में डटे हुए हैं और उसके विद्रोह का विरोध कर रहे हैं, इस लिए इस बात की आशंका है कि कहीं सेना उन्हें रास्ते से न हटा दे। ज्ञात रहे कि मिस्री सेना ने मुरसी को राष्ट्रपति के पद से हटाने के बाद उन्हें और इख़वानुल मुसलेमीन के कई बड़े नेताओं को हिरासत में लेकर किसी अज्ञात स्थान पर पहुंचा दिया है। मुरसी की स्थिति के बारे में विश्व समुदाय ने भी चिंता प्रकट की है। दसूरी ओर मिस्र की सेना ने इस बात का खंडन किया है कि मुरसी को जासूसी के आरोप में हिरासत में लिया गया है। लेबनान के अलमयादीन टीवी चैनल के अनुसार मिस्री सेना के उच्चाधिकारियों ने सोमवार को इस समाचार का खंडन किया कि मुरसी को इस आरोप में हिरासत में रखा गया है कि वे दूसरे देशों के लिए जासूसी कर रहे थे। मिस्री सेना का कहना है कि इस प्रकार की अफ़वाहें जनता की भावनाओं को भड़काने के लिए फैलाई जा रही हैं। इस बीच कुछ समाचारिक सूत्रों ने रहस्योद्घाटन किया है कि मुरसी को अपदस्थ करने में अमरीका ने उनके विरोधियों की आर्थिक सहायता की थी। एक अरब वेब साइट ने सूचना दी है कि अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के इस दावे के विपरीत कि, मिस्र की घटनाओं, मुरसी को अपदस्थ किए जाने और मिस्र में नई अंतरिम सरकार बनने के मामले में अमरीका निष्पक्ष रहा है, इस प्रकार के प्रमाण सामने आ गए हैं जिनसे स्पष्ट रूप से पता चलता है कि अमरीकी सरकार ने मुरसी के विरोधियों की भरपूर सहायता की थी ताकि उनकी सरकार को गिराया जा सके। वेब साइट के अनुसार अमरीकी विदेशमंत्रालय ने मुरसी को उनके पद से हटाने के लिए उन मिस्री नेताओं व गुटों की आर्थिक सहायता की थी जिन्होंने पूर्व तानाशाह हुसनी मुबारक के विरुद्ध आंदोलन चलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। मिस्र में जारी इस तनावपूर्ण एवं संकटमयी स्थिति के बीच इख़वानुल मुसलेमीन ने देश को संकट से निकालने के लिए एक तीन सूत्रीय फ़ार्मूला पेश किया है। इस फ़ार्मूले में कहा गया है कि संविधान की परिधि में रहते हुए जनता की इच्छाओं का सम्मान किया जाए और विद्रोह करने वाले सैनिकों की गतिविधियों पर अंकुश लगाया जाए। इख़वानुल मुसलेमीन ने कहा है कि मुहम्मद मुरसी को राष्ट्रपति के पद पर बहाल किया जाए और इसी प्रकार देश के संविधान एंव संसद को भी बहाल किया जाए। प्रत्येक दशा में इस समय मिस्र की स्थिति अत्यंत संवेदनशील हो चुकी है और जनता एवं राजनितिज्ञों का दायित्व है कि वे बाहरी देशों को अपने मामलों में हस्तक्षेप करके स्थिति को अधिक जटिल बनाने की अनुमति न दें।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने ईरान से वार्ता के संबंध में अमरीकी अधिकारियों के हालिया बयानों की ओर संकेत करते हुए कहा है कि अमरीकी अविश्वसनीय, अतार्किक तथा व्यवहार में सच्चे नहीं हैं। आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामेनेई ने इस्लामी व्यवस्था के अधिकारियों के साथ भेंट में कहा कि पिछले कुछ महीनों के दौरान अमरीकी अधिकारियों की ओर से अपनाई गई नीति ने पुनः उनके प्रति आशावान न रहने की आवश्यकता की पुष्टि की है। वरिष्ठ नेता इससे पहले भी अमरीकी की ओर से ईरान के साथ सीधी वार्ता का विषय प्रस्तुत किए जाने के लक्ष्यों का वर्णन करते हुए इस तथ्य का उल्लेख कर चुके हैं कि शत्रु जिस प्रकार से प्रकट करने का प्रयास कर रहा है उसके विपरीत वह ईरानी राष्ट्र के मुक़ाबले में सक्रिय नहीं अपितु निष्क्रिय स्थिति में है और इसी कारण अमरीकी अधिकारी तर्कहीन व्यवहार दिखा रहे हैं। अमरीकी अधिकारियों के व्यवहार में महत्वपूर्ण बिंदु जिसकी ओर वरिष्ठ नेता ने भी संकेत किया है, उनकी कथनी व करनी में विरोधाभास है कि जो तर्कहीनता का चिन्ह है। इसी तर्कहीनता के आधार पर अमरीका, वार्ता को तुरुप के पत्ते के रूप में देखता है और मुस्लिम राष्ट्रों के समक्ष यह दर्शाना चाहता है कि ईरान अपने भरपूर प्रतिरोध के बावजूद अमरीका के साथ समझौता करने पर विवश हो गया है। अतः वार्ता से अमरीका का वांछित परिणाम, ईरान की तर्कसंगत बातों को सुनना, प्रतिबंधों को समाप्त करना या राजनैतिक व सामरिक हस्तक्षेप पर विराम लगाना नहीं बल्कि ईरान को यूरेनियम का संवर्धन व परमाणु ऊर्जा तैयार न करने के लिए बाध्य करना है। जैसा कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने कहा ईरान सदैव संसार के साथ सहयोग करने में विश्वास रखता है किंतु इस संबंध में महत्वपूर्ण बिंदु दूसरे पक्ष की सही पहचान और उसके लक्ष्यों को समझना है। हालिया और पिछली वास्तविकताओं से भी ईरानी राष्ट्र ने यह अनुभव प्राप्त किया है कि संसार के साथ सहयोग के संबंध में दूसरे पक्ष और उसके लक्ष्यों को सही ढंग से पहचानना चाहिए। अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपने पहले कार्यकाल में ईरान पर एकपक्षीय और अपने योरोपीय घटकों के साथ मिल कर बहुपक्षीय प्रतिबंध लगा कर ईरान के परमाणु कार्यक्रम में बाधाएं उत्पन्न करने का बहुत प्रयास किया और हालिया वर्षों में भी उन्होंने ईरान पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं। अपने दूसरे कार्यकाल में भी ओबामा अपनी पिछली नीतियों को भी जारी रखे हुए हैं केवल इस अंतर के साथ कि अपने तर्कहीन व्यवहार में उन्होंने ईरान से सीधी वार्ता का विषय भी प्रस्तुत किया है। प्रत्येक दशा में ईरान ने बारंबार बल देकर कहा है कि वह वार्ता को सकारात्मक दृष्टि से देखता है किंतु स्पष्ट सी बात है कि वार्ता का सफल होना कई बातों पर निर्भर होता है। अमरीका को ईरान के साथ वार्ता आरंभ करने से पूर्व अपनी सच्चाई को सिद्ध करना और ईरान के अधिकारों को स्वीकार करना चाहिए जिसका पहला चरण ईरानी राष्ट्र की प्रगति के मार्ग में डाली जाने वाली बाधाओं को दूर करना है-

सोमवार, 22 जुलाई 2013 05:55

ईश्वरीय आतिथ्य-10

ईश्वरीय आतिथ्य-10

धैर्य एवं संयम

रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखने वालों पर स्वर्ग की शीतल व सुहावना पवन बह रहा है। हमें चाहिये कि हम अपने हृदयों को इस पवित्र महीने की १३वें दिन की दुआ से प्रकाशमयी बनायें। हे ईश्वर! हे हमारे पालनहार! आज के दिन में हमें अपवित्रताओं से पवित्र रख/ जो कुछ तुमने हमारे बारे में फैसला किया है हमें उस पर धैर्य करने की कृपा कर/ सदाचारिता एवं अच्छे लोगों के साथ उठने बैठने में हमें सफल बना और अपनी सहायता से बेसहारा लोगों की सहायता कर"

जो चीज़ कठिनाइयों से मुक़ाबले के लिए मनुष्य को शक्तिशाली बनाती है वह धैर्य है। जिस धैर्य का स्रोत ईमान और ईश्वरीय भय होता है वह मनुष्य को इस योग्य बना देता है कि वह समस्याओं व कठिनाइयों के तूफान को पार कर जाता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों के कथनानुसार जिन लोगों को समस्याओं व कठिनाइयों का सामना होता है वे कुछ स्थितियों का चयन करते हैं। कुछ लोग क्रोध और निराशा की स्थिति में कठिनाइयों का सामना करते हैं और अंत में वे अवसाद का शिकार हो जाते हैं। कुछ दूसरे लोग हैं जो कठिनाइयों को सहन नहीं कर पाते हैं और अंत में वे आत्म हत्या कर लेते हैं। कुछ लोग एसे भी हैं जो समस्याओं से भागने के लिए विशेष संगीत सुनते हैं, और मादक पदार्थों अथवा हर्षोन्माद पैदा करने वाली गोलियों का सेवन करते हैं। लोगों का एक गुट ऐसा भी है जो इन तीनों प्रकार के लोगों से भिन्न होता है। यह गुट महान व सर्व समर्थ ईश्वर पर भरोसा करके धैर्य व प्रतिरोध से कठिनाइयों का सामना करता है।

इस्लामी संस्कृति में महान ईश्वर पर ईमान रखने वाला व्यक्ति कभी भी निराशा का शिकार नहीं होता है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम ने कठिनाइयों व समस्याओं से मुक़ाबले के लिए धैर्य, संयम व प्रतिरोध नाम की दवा के सेवन की अनुशंसा की है। महान ईश्वर पवित्र कुरआन में कहता है" हे ईमान लाने वालों धैर्य एवं नमाज़ से सहायता लो। निःसंदेह ईश्वर धैर्य करने वालों के साथ है"

महान ईश्वर पर आस्था रखने वाला व्यक्ति कठिनाइयों में उस ईश्वर पर भरोसा करता है और वह अपने पालनहार से ही आशा रखता है। महान ईश्वर ने भी धैर्य करने वालों को स्वर्ग देने, मार्ग दर्शन करने और अपनी विशेष कृपा का पात्र बनाने का वादा किया है। कुछ इस्लामी इतिहासों में तीन प्रकार के धैर्य की बात की गयी है। पहला, महान ईश्वर के आदेशापालन पर धैर्य है। संभव है कि उसके आदेशापालन को जारी रखने में कठिनाइयों का सामना हो है और ईमानदार व्यक्ति उस धैर्य करता है। दूसरा धैर्य है कि मनुष्य महान ईश्वर की अवज्ञा न करने पर धैर्य करता है। यह धैर्य उस समय पेश आता है जब मनुष्य का सामना पाप से होता है पंरतु ईमानदार व्यक्ति धैर्य से काम लेता और पाप करने से दूरी करता है। तीसरा धैर्य यह है कि मनुष्य विपत्तियों में भी धैर्य से काम लेता है। इन तीनों धैर्यों में वह धैर्य सबसे बेहतर व उत्तम है जो पापों के मुक़ाबले में होता है। क्योंकि पापों के मुक़ाबले में स्वयं को नियंत्रित करना कठिन कार्य है और इस पर धैर्य करने का बहुत अधिक पुण्य है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के विश्वस्त कथनों में आया है कि पापों पर धैर्य, ईश्वरीय भय के चरम शिखर पर पहुंचाता है। इस प्रकार के धैर्य के लिए पवित्र क़ुरआन हज़रत यूसुफ़ और ज़ुलैख़ा के मध्य होने वाली घटना का वर्णन करता है। पवित्र क़ुरआन की इस घटना में ज़ुलैख़ा हज़रत यूसुफ अलैहिस्सलाम को कुकर्म के लिए उकसाने हेतु नाना प्रकार की चालें चलती हैं परंतु हज़रत यूसुफ़ अलैहिस्सलाम ईश्वर से डरते और धैर्य से काम लेते हैं तथा वह कुकर्म करने के बजाये जेल में जाने को प्राथमिकता देते हैं। उनके धैर्य का परिणाम यह हुआ कि महान ईश्वर ने उनका स्थान बहुत ऊंचा कर दिया तथा मिस्र की शासन व्यवस्था उनके हाथ में दे दी।

इस्लामी शिक्षाओं में रोज़े को धैर्य का सुन्दरतम उदारहण बताया गया है। वास्तव में मनुष्य रोज़े की स्थिति में ईश्वर के आदेशापालन और पाप न करने पर धैर्य का अभ्यास करता है।

रमज़ान का पवित्र महीना पवित्रता और हृदय को पापों व ग़लतियों से दूर रखने का महीना है ताकि मनुष्य स्वच्छ व पवित्र मन के साथ अपने पालनहार की सेवा में उपस्थित हो सके। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम कहते हैं" रमज़ान वह महीना है जिसके रोज़ों को ईश्वर ने तुम पर अनिवार्य किया है और जो भी उसके रोज़ों को ईश्वरीय दायित्व समझ कर रखेगा उसके पाप क्षमा कर दिये जायेंगे और वह व्यक्ति उस दिन की भांति हो जायेगा जिस दिन अपनी मां के पेट से पैदा हुआ है"

पवित्र रमज़ान महीने और उसमें रोज़ा रखने वालों का महत्व ईश्वर के निकट बहुत अधिक है। इस प्रकार से कि महान ईश्वर ने कुछ फरिश्तों को यह कार्य सौंपा है कि वे इस महीने में रोज़ा रखने वालों के लिए दुआ और प्रायश्चित करें। इस संबंध में हज़रत इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम कहते हैं" निःसंदेह ईश्वर के पास कुछ फरिश्ते हैं जो पूरे रमज़ान महीने में रोज़ा रखने वालों के लिए प्रायश्चित करते हैं"

पवित्र कुरआन और कुछ दुआओं में भी पवित्र रमज़ान का ६४ बार नाम लिया गया है जो इस महीने की महानता एवं विशेषता का सूचक है। उनमें कुछ नाम इस प्रकार हैं, प्रायश्चित का महीना, दया का महीना, क़ुरआन का महीना, विभूति का महीना, धैर्य का महीना, आजीविका का महीना, दान का महीना पवित्रता का महीना और क़ुरआन पढ़ने का महीना।

रमज़ान के पवित्र महीने में महान ईश्वर अपने बंदों की ओर क्षमा का द्वार खोल देता है ताकि वे पवित्र क़ुरआन को पढ़ने, दुआ करने और रमज़ान महीने की रातों व दिनों की विभूतियों से लाभ उठायें तथा अपने आध्यात्मिक स्थान में वृद्धि करें। मनुष्य इस विभूतिपूर्ण महीने में आध्यात्म की सीढ़ियों को अधिक तीव्र गति से तय कर सकता है।

रमज़ान का अर्थ पत्थर पर सूरज का प्रचंड गर्मी के साथ चमकना है। रमज़ान महीने के लिए इस प्रकार के शब्द का चयन विशेष सूक्ष्मता का परिचायक है। क्योंकि गर्म होने की बात करना यानी दूसरे शब्दों में महान ईश्वर की कृपा व दया के सूरज की छत्रछाया में मनुष्य का परिवर्तित हो जाना है ताकि वह इस महीने में अपनी आंतरिक इच्छाओं का मुक़ाबला कर सके। रमज़ान का पवित्र महीना आंतरिक भूख -प्यास के मुक़ाबले में धैर्य व प्रतिरोध का महीना है। इसी कारण पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम ने कहा है कि चूंकि रमज़ान का महीना पापों को जला देता है और उन्हें भस्म कर देता है इसलिए रमज़ान के लिए इस प्रकार के नाम का चयन किया गया है"

महान ईश्वर के निकट रमज़ान महीने का बहुत महत्व है। उसने इस महीने को अपना महीना कहा है। श्रोता मित्रो जैसाकि आप जानते हैं कि उपासना के कार्यों में हर एक का ईश्वर के निकट प्रतिदान है और ईश्वर ने उसे एक दायित्व के रूप में मनुष्यों के लिए निर्धारित किया है। जिस तरह रमज़ान महीने के रात दिन और घंटे दूसरे महीनों के रात दिन व घंटों से बहुत बेहतर व उत्तम हैं उसी प्रकार रमज़ान महीने में रखा जाने वाला रोज़ा भी दूसरे महीनों में रखे जाने वाले रोज़ों से बहुत बेहतर व श्रेष्ठ है और उसका विशेष प्रतिदान है। पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहि व आलेही व सल्लम कहते हैं" ईश्वर ने कहा है कि रोज़ा हमारे लिये है और मैं स्वयं उसका प्रतिदान दूंगा"

रोज़ा मनुष्य में परलोक की भावना को जागृत करता है। हज़रत इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम कहते हैं"रोज़ा अनिवार्य होने का रहस्य यह है कि मनुष्य भूख व प्यास के स्वाद को चखे और ईश्वर के निकट विनम्र हो जाये तथा आवश्यकता का आभास करे। अपने कार्य के प्रतिदान को चाहे और धैर्य को अपनाये ताकि अंत में यह आवश्कता प्रलय में उसकी आवश्यकता की ओर ध्यान देने की भूमिका बने" पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम तथा उनके पवित्र परिजनों के कथनों से जो निष्कर्ष निकलता है वह यह है कि खाने पीने से दूरी के साथ ही मनुष्य की पांचों ज्ञानेन्द्रियों को एक नियत समय में अनुचित कार्यों से दूर व पवित्र होना चाहिये। रोज़ा रखने वाले मनुष्य को चाहिये कि उसके साथ उसका हृदय भी रोज़े से हो और ग़लत व दूषित सोचों से दूर हो। हज़रत अली अलैहिस्सलाम इस संबंध में कहते हैं" हृदय का रोज़ा ज़बान के रोज़े से बेहतर है और ज़बान का रोज़ा पेट के रोज़े से बेहतर है"

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रोज़े से हटकर अब एक महान हस्ती की संक्षिप्त जीवनी पर प्रकाश डाल रहे हैं।

इस संसार में एसे रत्न व हस्तियां पैदा हुई हैं जो मानवता के जीवन का मार्ग दर्शक रही हैं। इन हस्तियों ने अपनी दूरगामी दृष्टि, ज्ञान, सोच और अपने हृदय की सच्चाई से मानवता के जीवन को सुगंधित बना दिया और हर काल में दूसरों के लिए आदर्श रही हैं। इन हस्तियों में से एक दिवंगत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद शहाबुद्दीन मरअशी नजफी हैं जो एक धर्मशास्त्री, अध्ययनकर्ता और इतिहासकार हैं और उन्होंने ७० से अधिक वर्षों तक ईरान के पवित्र नगर क़ुम मंर शिक्षा देकर बहुत अधिक शिष्यों का प्रशिक्षण किया। उन्होंने पवित्र नगर कुम में एक बहुत बड़ा पुस्तकालय छोड़ा है। यह इस्लामी जगत का तीसरा सबसे बड़ा पुस्तकालय है और इस समय इस पुस्तकाल में मशीन से छपी ढ़ाई लाख से अधिक पुस्तकें मौजूद हैं जबकि दो हज़ार हस्तलिखित पुस्तकें हैं। आयतुल्लाह नजफी मरअशी पुस्तकों को एकत्रित करने और एक पुस्तकालय बनाने के कारण के बारे में कहते हैं" मैं एक बार इराक़ के नजफ नगर की बाज़ार से गुज़र रहा था। मैंने देखा कि एक दुकान पर छात्र बहुत अधिक आ- जा रहे हैं। मैंने पूछा कि क्या बात है। उत्तर में कहा गया कि जिस विद्वान का निधन हो जाता है उसकी किताबों को यहां लाकर नीलाम करते हैं। इसके बाद मैं अंदर गया तो देखा कि लोग घेरा बनाकर खड़े हुए हैं। एक व्यक्ति किताबों को लाया है और उसने इनकी नीलामी लगा रखी है। लोग बोली बोलते हैं और जो सबसे अधिक बोली लगाता है वही किताब को ख़रीद लेता है। लोगों के मध्य एक अरब व्यक्ति भी बैठा था और उसकी बग़ल में पैसे का एक थैला था और किताब का सबसे अधिक मूल्य वही देता और किताब ख़रीद लेता था और दूसरों को किताब ख़रीदने का अवसर ही नहीं देता था। मैं समझ गया कि क़ाज़िम नाम का यह व्यक्ति बग़दाद स्थित ब्रिटिश काउंसलेट का दलाल है। वह पूरे सप्ताह किताबें खरीदता है और हर शुक्रवार को उन्हें बग़दाद ले जाकर ब्रिटिश काउंसलेट के हवाले कर देता है। इसके बाद से आयतुल्लाह नजफी मरअशी ने विशेषकर हस्तलिखित किताबों की लूट को रोकने का निर्णय किया। इस आधार पर वह प्रतिदिन शिक्षा दीक्षा के बाद रातों को चावल कूटने की एक दुकान पर काम करने लगे और अपना खाना कम कर दिया तथा किराये पर पढ़ी जाने वाली नमाज़ पढ़कर और रोज़ा रखकर पैसा कमाते और किताब ख़रीदते। इस प्रकार उन्होंने किताब एकत्रित करने का कार्य किया। चूंकि इस महान धर्मगुरू की आय पर्याप्त नहीं थी इसलिए वह अपने पूरे जीवन में एक बार भी हज न कर सके परंतु अपने विभूतिपूर्ण जीवन में उन्होंने १४८ से अधिक पुस्तकें, पुस्तिकायें और लेख लिखे हैं।

आरोप लगाना दुश्मन की प्लानिंग का हिस्साअहलेबैत न्यूज़ एजेंसी (अबना) की रिपोर्ट के अनुसार सय्यद हसन नसरुल्लाह नें बैरूत में लेबनान के विभिन्न संगठनों को सम्बोधित करते हुए कहा कि जब एक दुश्मन आपके सामने हो और आपकी मर्यादा, शराफ़त और जनता को ललकार रहा हो तो आपकी ज़िम्मेदारी है कि उसके मुक़ाबले में अपना बचाव करें और जब लेबनान में हिज़बुल्लाह प्रभावी और मज़बूत है तो उसे निशाना बनाया जाना नैचुरल बात है।

हिज़बुल्लाह, लेबनान के प्रमुख नें आगे कहा कि हमारे विरोधी ग्रुप नेशनल पॉलीसी पर बात करने के लिये गंभीर नहीं हैं जबकि लेबनान का बचाव सभी लेबनानियों की ज़िम्मेदारी है।

सय्यद हसन नसरुल्लाह नें कहा कि कोई भी क़ीमत चुकाए बिना लेबनान पर सत्ता नहीं कर सकता और अगर कभी ऐसा हुआ कि लेबनान की फ़ौज को हार का सामना करना पड़े तो या फ़ौज बिखर जाए तो न शांति होगी न स्थिरता होगी न देश होगा न कोई ज़मीन बाक़ी बचेगी।

सय्यद हसन नसरुल्लाह नें कहा कि हिज़बुल्लाह नें दुश्मन के साथ युद्ध के साथ ही आरोपों का भी मुक़ाबला किया है क्योंकि आरोप लगाना दुश्मन की प्लानिंग का हिस्सा है और उसका डट कर मुक़ाबला करना चाहिये।

अमरीकी राजदूत को निष्कासित किया जाए-मुर्सी समर्थकमुहम्मद मुर्सी के समर्थकों ने मिस्र से अमरीकी राजदूत के निष्कासन की मांग की है। मुर्सी के हज़ारों समर्थकों ने रविवार को क़ाहिरा में विरोध प्रदर्शन करते हुए मुहम्मद मुर्सी के राष्ट्रपति पद से अपदस्त होने में अमरीका की भूमिका की भर्त्सना की और मिस्र से अमरीकी राजूदत के निष्कासन की मांग की। इन प्रदर्शनकारियों ने इसी प्रकार मुर्सी को पुनः राष्ट्रपति पद पर लाए जाने की भी मांग की है। मुर्सी समर्थकों ने इसी प्रकार मिस्र के अलमंसूरा नगर में महिला प्रदर्शनकारियों पर आक्रमण की कड़े शब्दों में निंदा की। उधर मुर्सी समर्थक महिलाओं के एक दल ने भी प्रदर्शन कर रही महिलाओं पर आक्रमण के विरोध में रक्षामंत्रलय की ओर मार्च किया।