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ईरान के वर्तमान एवं नव निर्वाचित राष्ट्रपतियों की मुलाक़ातईरान के नव निर्वाचित राष्ट्रपति और वर्तमान राष्ट्रपति के बीच नई सरकार को कार्यभार हस्तांतरण करने कि लिए प्रतिनिधि के चयन पर सहमति बन गई है।

मेहर समाचार एजेंसी के अनुसार, ईरान के वर्तमान राष्ट्रपति महमूद अहमदी नेजाद ने नव निर्वाचित राष्ट्रपति हसन रूहानी के साथ मुलाक़ात की है। इस मुलाक़ात में दोनों के बीच वर्तमान सरकार का कार्यभार नई सरकार को सौंपने के लिए प्रतिनिधि के चयन पर सहमति बनी तथा अहमदी नेजाद ने नव निर्वाचित राष्ट्रपति के साथ पूर्ण सहयोग पर बल दिया।

हसन रूहानी ने इस मुलाक़ात को सार्थक बताते हुए कहा कि राष्ट्रपति अहमदी नेजाद के साथ मुलाक़ात में देश की ताज़ा राजनीतिक एवं आर्थिक स्थिति के बारे में विचार विमर्श हुआ।

उल्लेखनीय है कि ईरान में 14 जून को आयोजित हुए राष्ट्रपति चुनाव में हसन रूहानी ने 50.7 प्रतिशत मतों के साथ जीत दर्ज की थी।

3 अगस्त को वर्तमान सरकार नव निर्वाचित सरकार को पद-भार सौंप देगी।

ईरान को जेनेवा २ सम्मेलन का निमंत्रण मिलाइस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्री ने बताया है कि ईरान को जेनेवा २ सम्मेलन में भाग लेने का निमंत्रण मिल गया है।

विदेशमंत्री अली अकबर सालेही ने सोमवार को अलमयादीन टीवी चैनल से वार्ता में बताया कि ईरान को जेनेवा टू में भाग लेने के लिए मौखिक निमंत्रण दिया गया है। विदेशमंत्री ने इस बात का उल्लेख करते हुए तेहरान सीरिया के संकट के शांतिपूर्ण समाधान हेतु प्रयास जारी रखेगा कहा कि ईरान के बिना सीरिया के संकट का समाधान संभव नहीं है क्योंकि ईरान क्षेत्र का सब से अधिक प्रभावशाली देश है।

इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्री ने कहा कि प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अमरीका, जेनेवा टू सम्मेलन में ईरान की उपस्थिति का विरोधी नहीं है किंतु कुछ लोग अमरीका द्वारा विरोध हेतु प्रयास कर रहे हैं।

सोमवार, 17 जून 2013 04:21

महिला जगत

महिला जगत

आज विवाह के संबंध में बात-चीत करेंगे। यह ऐसा विषय है जो युवावस्था में प्राय: एक समस्या के रूप में सामने आता है। आरम्भ में हम इस्लामी देशों में विवाह के विषय पर चर्चा करेंगे।

पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने अपने एक विख्यात कथन में विवाह को अपनी परम्परा का एक भाग बताया है।

पवित्र क़ुरआन में विवाह का उद्देश्य दम्पतियों को एक दूसरे के पास शान्ति प्राप्त करना बताया गया है। इसे प्रेम व अनुकम्पा का सार कहा गया है। इसी लिए इस ईश्वरीय ग्रन्थ में परिवार के गठन और एक स्वस्थ पीढ़ी को जन्म देने पर अत्याधिक बल दिया गया है। परन्तु हम देखते हैं कि इतने ही अधिक बल दिए जाने पर भी, इस्लामी देशों में विवाह के ऑकड़ों में कमी आई है।और इसके परिणाम भी अनुचित निकले हैं। इस्लामी जगत में इस सामाजिक कुरीति के दो कारण हैं। इनमें से एक इस्लामी देशों पर पश्चिम के आधुनिक विचारों का प्रभाव है।

पश्चिम ने अपने विशेष ऐतिहासिक सांस्कृतिक उद्देश्यों के अनतर्गत धार्मिक धारणाओं, मूल्यों यहॉं तक कि परिवार व विवाह जैसे सामाजिक मूल्यों से मुंह मोड़ लिया है कोई भी सच्चा बुद्धिजीवी या विचारक प्रगतिवाद या अश्लीलता के ख़तरनाक परिणामों को नहीं नकारता और उस स्थान के सुधारकों ने भी प्रति- दिन होते पतन व मूल्यों के संकट पर बारम्बार चेतावनी दी है। पश्चिम में अवैध तथा बिना अभिभावक के बच्चों की संख्या में वृद्धि के चिन्ताजनक आंकड़ों के समाचार मिलते रहते हैं। अवैध होने के कारण इन बच्चों के मन में घृणा तथा ईष्या भरी होती है। यह बड़े होकर हत्या, हिंसा, अतिक्रमण तथा समाज में भ्रष्टाचार फैला कर अपने मन में छिपे द्वेष को व्यक्त करते हैं। इसी आधार और हद से अधिक स्वतन्त्रता के कारण, इन देशों में युवा सबसे अधिक भ्रष्ट लोगों में गिने जाते है।

खेद से कहना पड़ता है कि इस्लामी देशों में कुछ प्रगतिवादी इस बड़े सांस्कृतिक व ऐतिहासिक अन्तर पर बिना ध्यान दिए हुए ही पश्चिमी संस्कृति के दिखावे के जाल में फॅंस जाते हैं और इसी कारण यह लोग विवाह से दूरी और कठिनाइयों से भाग कर, महिला व पुरूष के संबंधों में स्वतन्त्रता, स्नेह संबंधी भावनाओं और शिष्टाचार की क़ैद से रिहाई को ही प्रगतिवाद, विकास और उन्नति की सॅंज्ञा देने लगते हैं।

विवाह की दर में कमी आने का दूसरा कारण स्वंय इस्लामी समाजों के भीतर ढूंढना चाहिए। इस्लामी देशों में कुछ लोगों ने विवाह की वास्तविक आवश्यकता तथा उससे संबंधित उचित रीति-रिवाजों को भुलाकर, विवाह को एक अत्यन्त कठिन बन्धन, दिखावा, प्रतिस्पर्धा तथा घमण्ड करने का एक साधन बना दिया है। इन लोगों ने विवाह के लिए ग़ैर इस्लामी शर्तें लगा कर और दम्पत्ति धार्मिक भावनाओं के मापदण्ड की उपेक्षा करके मनुष्य के सबसे उत्कृष्ट संबंध को एक बहुत बड़ी समस्या का रूप दे दिया है।ख्याति प्राप्त करने को महत्व दिया जाना, समाज में वर्ग की समस्या, पोस्ट या रोज़गार की स्थिति यह सभी वो रूकावटें हैं जिन्होंने स्वस्थ व स्थाई विवाह के मार्गों को बन्द कर रखा है। उदाहरण स्वरूप भारत जैसे देश में यदि बहू अच्छा दहेज लेकर नहीं आती तो उसे पति और उसके घर वालों के क्रोध व हिंसा का सामना करना पड़ता है। और कभी कभी दहेज न होने के कारण कुछ बहुएं स्वंय को जला लेती हैं या उन्हें पति या उसके घर वालों द्वारा जला कर मार डाला जाता है। पाकिस्तान में भी दहेज देने में इतनी प्रतिस्पर्धा है कि प्राय: अपनी बेटी के विवाह के लिए पिता दीवालिया हो जाता है।

इस्लामी संस्कृति में विवाह का प्रचलन, समाज के कल्याण की ज़मानत है इसलिए इस संबंध में की जाने वाली उपेक्षा इस्लामी समाजों के किसी भी मुसल्मान की ओर से स्वीकार्य नहीं है। विशेषकर कि जब इस संबंध में युवा पीढ़ी को सबसे अधिक आधा लगता है।

इस संबंध में जिस चीज़ की सबसे अधिक आव्शयकता है वो इस्लाम में विवाह की भावना व नियमों का ज्ञान और इस्लामी नियमों से कुछ कुरीतियों को अलग किया जाना है।

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हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़र्माते हैं- मैं पैग़म्बर के पास गया और चुप-चाप उनके सम्मुख बैठ गया।पैग़म्बर ने पूछा – अबूतालिब के पुत्र क्यों आए हो?पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम ने तीन बार अपना प्रश्न दोहराया। फिर फ़र्माया- लगता है फ़ातेमा का हाथ मांगने आए हो।

मैंने कहा- जी हॉ।पैग़म्बर ने फ़र्माया- तुमसे पहले भी कुछ लोग फ़ातेमा का हाथ मांगने आए थे, लेकिन फ़ातेमा ने स्वीकार नहीं किया, ठहरो- पहले मैं उनसे पूछ लूं।फिर वे घर के अन्दर गए और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इच्छा को हज़रत फ़ातेमा के सम्मुख रखा। हर बार के विपरीत कि फ़ातेमा अपना मुंह फेर लेती थीं, इस बार शान्तिपूर्वक और चुप बैठी रहीं। पैग़म्बर ने फ़ातेमा के चेहरे पर जब प्रसन्नता के चिन्ह देखे, तो तक्बीर कहते हुए हज़रत अली के पास वापस लौटे और प्रसन्नता से फ़र्माया – उनका मौन उनके हॉं (इच्छा) का चिन्ह है।विवाह एक मज़बूत हार्दिक बन्धन है जो एक सन्तुलित समाज के आधार को बनाता है। इसलिए यह अत्यन्त आवश्यक है कि यह बन्धन , दोनों पक्षों की चेतना, एक दूसरे की पहचान तथा इच्छा के बाद ही बॉंधा जाए। इस पवित्र बन्धन के लिए उक्त बातों को इस्लाम ने बहुत महत्व दिया है। इसी लिए रसूले ख़ुदा ने अपनी सुपुत्री के विवाह के अवसर पर उनकी इच्छा जानना चाहि थी। क्योंकि बेटी के विवाह के समय पिता की अनुमति इस्लाम में अनिवार्य है।

हमने तेहरान स्थित शहीद बेहिश्ती विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डा.मोहक़िक़ दामाद के सम्मुख जब यह प्रश्न रखा तो उन्होंने उत्तर दिया- सबसे पहले मैं यह कहना चाहूंगा जिस लड़की का विवाह एक बार हो चुका हो, और पति की मृत्यु या तलाक़ के कारण वो फिर से विवाह करना चाहे तो पिता की अनुमति ज़रूरी नहीं है। और इस्लामी क़ानून में पुत्री के विवाह पर पिता की अनुमति किसी भी प्रकार उसकी स्वतन्त्रता में बाधा नहीं बनती। कभी कभी क़ानून बनाने वाले और उनसे भी ऊपर धर्म, सार्वजनिक व्यवस्था, अधिकारों के उचित सन्तुल और व्यक्तियों के बीच संबंधों के लिए कुछ सीमाएं निर्धारित करते हैं जिनमें से एक यही हमारी चर्चा का विषय है।

परन्तु यह समाज में संकल्प की स्वतन्त्रता में बाधा के रूप में नहीं है। इसी लिए इस क्षेत्र में विश्व की लगभग सभी क़ानूनी पद्धतियों में यह सीमाएं विदित हैं जैसे फ़्रांस और दूसरी क़ानूनी व्यवस्थाओं में।इस्लाम में बेटी के विवाह के लिए पिता की अनुमति स्वंय एक क़ानून है, और यह बेटी पर पिता के वर्चस्व के अर्थ में नहीं है तथा उसकी स्वतन्त्रता को कमज़ोर नहीं करता । बड़े बड़े धार्मिक गुरूओं ने भी इस पर विभिन्न दृष्टिकोंण प्रस्तुत किए हैं। एक लड़की की मानसिक और शारिरिक व्यवस्था को देखते हुए इमाम ख़ुमैनी ने बेटी के विवाह में पिता की अनुमति को अनिवार्य माना है और नागरिक क़ानूनों ने भी इसे स्वीकार किया है। इस विषय को भली भॉंति समझने के लिए अच्छा है कि हम समकाली विद्वान शहीद मुतह्हरी के विचारों को देखें – वे कहते हैं-

पिता की अनुमति की शर्त का यह अर्थ नहीं है कि लड़का बौद्धिक, वैचारिक और सामाजिक विकास में एक पुरूष से कम है, क्योंकि इस विषयका संबंध नर तथा नारी के मनोविज्ञान से है। किसी भी बात पर शिघ्र ही विश्वास करने की अपनी प्रवृत्रि के कारण महिलाएं पुरूषों के प्रेम पूर्ण शब्दों पर भरोसा कर लेती हैं। और कभी कभी लोभी पुरूष, नारी की इसी भावना का अनुचित लाभ उठाते हैं। बहुत सी अनुभव हीन युवतियॉं पुरूषों के जाल में फँस जाती हैं। यही पर इस बात की आवश्यकता कि पिता, जो कि स्वंय पुरूषों की भावनाओं से भली भांति परिचित हैं, अपनी अनुभवहीन बेटी के जीवन साथी के चयन पर नियन्त्रण रखें। इस प्रकार क़ानून ने न केवल यह कि नारी का अनादर नहीं किया हैं बल्कि एक वास्तविक दृष्टिकोंण से उसका समर्थन भी किया है।

वरिष्ठ नेता की ओर से ईरानी राष्ट्र और हसन रूहानी को मुबारकबाद

प्रेस टीवी

ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने 14 जून को राष्ट्रपति पद और नगर व ग्रामीण परिषद के चुनाव में जनता की भारी उपस्थिति पर ईरानी राष्ट्र का शुक्रिया अदा किया।

शनिवार को एक संदेश में वरिष्ठ नेता ने हसन रूहानी को राष्ट्रपति पद का चुनाव जीतने पर मुबारकबाद दी।

उन्होंने कहा कि शुक्रवार को भारी संख्या में मतदाताओं की भागीदारी ने शत्रुओं को ईरानी राष्ट्र और इस्लामी व्यवस्था के बीच गहरे संबंध को दिखा दिया जिन्होंने ईरानी राष्ट्र और इस्लामी व्यवस्था के बीच विश्वास को प्रभावित करने के लिए सैकड़ों राजनैतिक, आर्थिक एवं सुरक्षा संबंधी षड्यंत्र अपनाए।

वरिष्ठ नेता ने शनिवार को जारी अपने संदेश में ज़ोर देकर कहाः कल के चुनाव में वास्तविक विजेता ईरानी राष्ट्र है जिसने बड़ी एहतेयात और समझदारी से उस मनोवैज्ञानिक युद्ध का सामना किया जिसे विश्व साम्राज्य ने छेड़ा था।

ज्ञात रहे ईरान के गृह मंत्री ने शनिवार को बताया कि 36704156 मान्य मतों में 18613329 मत हसन रूहानी को मिले जो कुल मतों का 50.7 प्रतिशत होता है।

मुशर्रफ़ पर एक और अभियोग लगाया गयापाकिस्तान में इस्लामाबाद के एक आतंकवाद निरोधक न्यायालय ने पूर्व राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ पर वर्ष २००७ में देश में आपातकाल लागू करने के दौरान कई न्यायाधीशों को नज़रबंद करने का अभियोग लगाया है।

न्यायालय ने इसी महीने अगली सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष के २३ गवाहों को पेश होने का समन भी जारी किया है। मुशर्रफ़ के विरुद्ध इस मुक़द्दमे की सुनवाई सुरक्षा कारणों से उनके फ़ार्म हाऊस में बनाई गई अस्थाई जेल में की जा रही है। परवेज़ मुशर्रफ़ पर पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की हत्या और २००६ में सैनिक कार्यवाही के दौरान बलोच नेता अकबर ख़ान बुग्ती को मारने का भी अभियोग लगाया गया है।

नवनिर्वाचित राष्ट्रपति की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से भेंटइस्लामी गणतंत्र ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डाक्टर हसन रूहानी ने इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता से मुलाक़ात की।

रविवार की शाह डाक्टर हसन रूहानी वरिष्ठ नेता से मिले। इस मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने नव निर्वाचित राष्ट्रपति की सफलता की शुभकामना की और साथ ही कुछ आवश्यक निर्देश दिए। इस मुलाक़ात का अधिक ब्योरा नहीं आया है।

ईरान में राष्ट्रपति पद का चुनाव

14 जून को ईरान में 11वें राष्ट्रपति पद और चौथी नगर व ग्राम परिषद के चुनाव में मतदान करते इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई

ईरान में शुक्रवार को ग्यारहवें राष्ट्रपति पद और चौथी नगर व ग्राम परिषद के चुनाव के लिए मतदान आरंभ हुआ।

ईरान की इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने शुक्रवार को सुबह मतदान करने के बाद पत्रकारों से बात करते हुए चुनाव में ईरानी राष्ट्र की सही समय पर प्रभावी, उत्साहपूर्ण एवं बड़ी संख्या में उपस्थिति के महत्व पर बल दिया।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि प्रिय ईरानी राष्ट्र को चुनाव में पूरे जोश के साथ भाग लेना चाहिए और वे यह जान लें कि राष्ट्र की ख़ुशहाली व भविष्य उनकी उपस्थिति व चयन पर निर्भर होगा।

वरिष्ठ नेता ने कहा कि ईरानी जनता अपने भाग्य के निर्धारण में मुख्य भूमिका निभाती है यही कारण है कि शत्रु ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध दुष्प्रचार करते हैं।

उन्होंने ईरान में चुनाव के बारे में अमरीकी अधिकारियों की टिप्पणी के बारे में कहा कि शत्रु के विचारों का ईरानी राष्ट्र पर कभी प्रभाव नहीं पड़ा और ईरानी राष्ट्र ने अपनी आवश्यकताओं और देश के हित में स्वंय निर्णय लिया है।

जिस प्रकार शुक्रवार की सुबह से लोग मतदान केन्द्रों पर नज़र आए उससे यह प्रतीत होता है कि इस चुनाव में भी ईरानी जनता बड़ी संख्या में भाग लेकर शत्रु को मायूस और उसके षड्यंत्र को विफल बना देगी।

एक बात स्पष्ट है वह यह कि जो भी राष्ट्रपति बने किन्तु इस्लामी गणतंत्र ईरान की मूल नीति में कोई परिवर्तन नहीं होगा।

इस्लामी प्रतिरोध वर्चस्ववादी नीतियों के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावटलेबनान के इस्लामी प्रतिरोधी संगठन हिज़्बुल्लाह के महासचिव ने प्रतिरोध को ज़ायोनी शासन की वर्चस्ववादी नीतियों से मुक़ाबले के लिए एकमात्र विकल्प क़रार दिया है।

अलमनार टीवी चैनल के अनुसार, शुक्रवार को हिज़्बुल्लाह के महासचिव सैय्यद हसन नसरुल्लाह ने इस्लामी प्रतिरोध के घायल वीरों एवं शहीदों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रम में वीडियो कांफ़्रेसिंग द्वारा संबोधित करते हुए कहा कि अगर प्रतिरोध का बलिदान नहीं होता तो आज लेबनान इस्राईल का ग़ुलाम होता।

नसरूल्लाह ने उल्लेख किया कि यह प्रतिरोध ही है कि जिसके कारण लेबनान ज़ायोनी शासन इस्राईल के अतिक्रमण से स्वतंत्र हुआ और आज लेबनानी जनता सम्मानपूर्वक पानी और तेल सहति अपने देश के प्राकृतिक स्रोतों से लाभ उठा रही है।

पड़ोसी देशों के विरुद्ध दुश्मन की साज़िशों के प्रति सचेत करते हुए हसन नसरुल्लाह ने कहा कि कुछ अरब संचार माध्यम सीरिया में साम्प्रदायिक सद्भावना बिगाड़ने और नस्लीय दंगे भड़काने का प्रयास कर रहे हैं।

हिज़्बुल्लाह के महसचिव ने हज़रत अबुल फ़ज़्लिल अब्बास (अ) को वफ़ादारी और दूर दृष्टि का प्रतीक बताया।

इस सम्मेलन में लेबनान में ईरान और सीरिया के राजदूत भी उपस्थित थे।

तुर्की के प्रधानमंत्री प्रदर्शनकारियों के नेताओं से भेंट करेंगे।तुर्की के प्रधानमंत्री गत ११ दिनों से इस देश में प्रदर्शन कर रहे लोगों के नेताओं से भेंट करेंगे।

तुर्की से प्राप्त समाचारों के अनुसार सोमवार को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद इस देश के उप प्रधानमंत्री बुलंत आर्निक ने बताया कि प्रधानमंत्री रजब तैयब अर्दोगान मंगलवार को प्रदर्शनकारियों के नेताओं से भेंट करेंगे किंतु उन्होंने यह नहीं बताया कि इस भेंट के लिए किन नेताओं को निमंत्रण दिया जाएगा।

इसके साथ ही तुर्की के उप प्रधानमंत्री ने बल दिया कि गैर कानूनी प्रदर्शनों की तुर्की में अधिक दिनों तक अनुमति नहीं दी जा सकती। आर्निक ने बताया कि हमारे प्रधानमंत्री ने प्रदर्शन कारियों के कुछ नेताओं को मिलने का समय दिया है और इस भेंट में उन्हें वास्तविकताओं से अवगत कराया जाएगा तथा प्रधानमंत्री उनकी मांगें भी सुनेंगे। याद रहे इस्तांबूल में नगरपालिका द्वारा एक पार्क में शापिंग माल के विरुद्ध में होने वाले प्रदर्शन, पूरे देश में फैल गये तथा पिछले ११ दिनों से जारी हैं। प्रदर्शनकारियों को शांत करने के लिए सरकार के सभी प्रयास विफल हो चुके हैं और प्रदर्शनकारी, सरकार की नीतियों के विरुद्ध नारे लगा रहे हैं। प्रदर्शनों के दौरान पुलिस से होने वाली झड़पों में अब तक २ लोग मारे गये तथा लगभग पांच हज़ार लोग घायल हो चुके हैं।

एस-300 मिज़ाइल प्रणाली पर सहमति की तेहरान को आशामास्को में ईरानी राजदूत मोहम्मद रज़ा सज्जादी ने कहा है कि तेहरान को आशा है कि एस-300 मिज़ाइल रक्षा प्रणाली की आपूर्ति के मुद्दे पर रूस के साथ सहमति बन जाएगी।

सज्जादी ने सोमवार को मास्को में कहा कि तेहरान इस संदर्भ में पाए जाने वाले मतभेदों को वार्ता द्वारा समाप्त करना चाहता है ताकि तेहरान - मास्को संबंधों में किसी भी प्रकार का कोई काला अध्याय नहीं रहे।

उल्लेखनीय है कि 2011 में मास्को द्वारा इस्लामी गणतंत्र ईरान को पूर्व समझौते के अनुसार, एस-300 मिज़ाईल रक्षा प्रणाली की आपूर्ति में नाकामी के बाद तेहरान ने जिनेवा स्थित अंतरराष्ट्रीय विवाचन न्यायालय में रूसी हथियार निर्माता कंपनी रोसोबोरोनएक्सपोर्ट के विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई थी।

सज्जादी ने उल्लेख किया कि अगर मास्को समझौते का सम्मान करता है तो ईरान अपनी शिकायत वापस लेने के लिए तैयार है।