
Super User
وَهُوَ الَّذِي أَنزَلَ مِنَ السَّمَاءِ مَاءً فَأَخْرَجْنَا بِهِ نَبَاتَ كُلِّ شَيْءٍ فَأَخْرَجْنَا مِنْهُ خَضِرًا نُّخْرِجُ مِنْهُ حَبًّا مُّتَرَاكِبًا
और वही है जिसने आकाश से पानी बरसाया, फिर हमने उसके द्वारा हर प्रकार की वनस्पति उगाई; फिर उससे हमने हरी-भरी पत्तियाँ निकाली और तने विकसित किए, जिससे हम तले-ऊपर चढे हुए दान निकालते है - और खजूर के गाभे से झुके पड़ते गुच्छे भी - और अंगूर, ज़ैतून और अनार के बाग़ लगाए, जो एक-दूसरे से भिन्न भी होते है। उसके फल को देखा, जब वह फलता है और उसके पकने को भी देखो! निस्संदेह ईमान लानेवाले लोगों को लिए इनमें बड़ी निशानियाँ है [6:99]
इमाम ख़ुमैनी की ज़िंदगी पर एक नज़र
चार जून सन 1989 ईसवी को दुनिया एक ऐसी महान हस्ती से बिछड़ हो गई जिसने अपने चरित्र, व्यवहार, हिम्मत, समझबूझ और अल्लाह पर पूरे यक़ीन के साथ दुनिया के सभी साम्राज्यवादियों ख़ास कर अत्याचारी व अपराधी अमरीकी सरकार का डटकर मुक़ाबला किया और इस्लामी प्रतिरोध का झंडा पूरी दुनिया पर फहराया। इमाम खुमैनी की पाक और इलाही डर से भरी ज़िंदगी इलाही रौशनी फ़ैलाने वाला आईना है और वह पैगम्बरे इस्लाम (स) की जीवन शैली से प्रभावित रहा है। इमाम खुमैनी ने पैगम्बरे इस्लाम (स) की ज़िंदगी के सभी आयामों को अपने लिये आदर्श बनाते हुये पश्चिमी और पूर्वी समाजों के कल्चर की गलत व अभद्र बातों को रद्द करके आध्यात्म एंव अल्लाह पर यक़ीन की भावना समाजों में फैला दी और यही वह वातावरण था जिसमें बहादुर और ऐसे जवानों का प्रशिक्षण हुआ जिन्होने इस्लाम का बोलबाला करने में अपने ज़िंदगी की बलि देने में भी हिचकिचाहट से काम नहीं लिया।
पैगम्बरे इस्लाम हजरत मोहम्मद (स) की पैगम्बरी के ऐलान अर्थात बेसत की तिथि भी नज़दीक है इसलिये हम इमाम खुमैनी के कैरेक्टर पर इस पहलू से रौशनी डालने की कोशिश करेंगे कि उन्होने इस युग में किस तरह पैगम्बरे इस्लाम (स) के चरित्र और व्यवहार को व्यवहारिक रूप में पेश किया।
पश्चिमी दुनिया में घरेलू कामकाज को महत्वहीन समझा जाता है। यही कारण है कि अनेक महिलायें अपने समय को घर के बाहर गुज़ारने में ज़्यादा रूचि रखती हैं। जबकि पैगम्बरे इस्लाम (स) के हवाले से बताया जाता है कि पैगम्बरे इस्लाम (स) ने एक दिन अपने पास मौजूद लोगों से पूछा कि वह कौन से क्षण हैं जब औरत अल्लाह से बहुत क़रीब होती है? किसी ने भी कोई उचित जवाब नहीं दिया। जब हज़रत फ़ातिमा की बारी आई तो उन्होने कहा वह क्षण जब औरत अपने घर में रहकर अपने घरेलू कामों और संतान के प्रशिक्षण में व्यस्त होती है तो वह अल्लाह के बहुत ज़्यादा क़रीब होती है। इमाम खुमैनी र.ह भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पदचिन्हों पर चलते हुये घर के वातावरण में मां की भूमिका पर बहुत ज़्यादा ज़ोर देते थे। कभी-कभी लोग इमाम ख़ुमैनी से कहते थे कि औरत क्यों घर में रहे तो वह जवाब देते थे कि घर के कामों को महत्वहीन न समझो, अगर कोई एक आदमी का प्रशिक्षण कर सके तो उसने समाज के लिये बहुत बड़ा काम किया है। मुहब्बत व प्यार औरत में बहुत ज़्यादा होता है और परिवार का वातावरण और आधार प्यार पर ही होता है।
इमाम खुमैनी अपने अमल और व्यवहार में अपनी बीवी के बहुत अच्छे सहायक थे। इमाम खुमैनी की बीवी कहती हैः चूंकि बच्चे रात को बहुत रोते थे और सवेरे तक जागते रहते थे, इस बात के दृष्टिगत इमाम खुमैनी ने रात के समय को बांट दिया था। इस तरह से कि दो घंटे वह बच्चों को संभालते और मैं सोती थी और फिर दो घंटे वह सोते थे और मैं बच्चों को संभालती थी। अच्छी व चरित्रवान संतान, कामयाब ज़िंदगी का प्रमाण होती है। माँ बाप के लिये जो बात बहुत ज़्यादा महत्व रखती है वह यह है कि उनका व्यवसाय और काम तथा ज़िंदगी की कठिनाइयां उनको इतना व्यस्त न कर दें कि वह अपनी संतान के पालन पोषण एवं प्रशिक्षण की अनदेखी करने लगें।
पैगम्बरे इस्लाम (स) की हदीस हैः अच्छी संतान, जन्नत के फूलों में से एक फूल है इसलिये ज़रूरी है कि माँ-बाप अपने बच्चों के विकास और कामयाबियों के लिये कोशिश करते रहें।
इमाम ख़ुमैनी बच्चों के प्रशिक्षण की ओर से बहुत ज़्यादा सावधान रहते थे। उन्होने अपनी एक बेटी से, जिन्होंने अपने बच्चे की शैतानियों की शिकायत की थी कहा थाः उसकी शैतानियों को सहन करके तुमको जो सवाब मिलता है उसको मैं अपनी सारी इबादतों के सवाब से बदलने को तैयार हूं। इस तरह इमाम खुमैनी बताना चाहते थे कि बच्चों की शैतानियों पर क्रोधित न हों, और संतान के पालने पोसने में मायें जो कठिनाइयां सहन करती हैं वह अल्लाह की निगाह में भी बहुत महत्वपूर्ण हैं और परिवार व समाज के लिये भी इनका महत्व बहुत ज़्यादा है।
इमाम खुमैनी र.ह के क़रीबी संबंधियों में से एक का कहना है कि इमाम खुमैनी का मानना था कि बच्चों को आज़ादी दी जाए। जब वह सात साल का हो जाये तो उसके लिये सीमायें निर्धारित करो। वह इसी तरह कहते थे कि बच्चों से हमेशा सच बोलें ताकि वह भी सच्चे बनें, बच्चों का आदर्श हमेशा माँ बाप होते हैं। अगर उनके साथ अच्छा व्यवहार करें तो वह अच्छे बनेंगे। आप बच्चे से जो बात करें उसे व्यवहारिक बनायें।
हजरत मोहम्मद (स) बच्चों के प्रति बहुत कृपालु थे। उन्हें चूमते थे और दूसरों से भी ऐसा करने को कहते थे। बच्चों से प्यार करने के संबंध में वह कहते थेः जो भी अपनी बेटी को ख़ुश करे तो उसका सवाब ऐसा है जैसे हजरत इस्माईल पैगम्बर की संतान में से किसी दास को ग़ुलामी से आज़ाद किया हो और वह आदमी जो अपने बेटे को ख़ुश करे वह ऐसे आदमी की तरह है जो अल्लाह के डर में रोता रहा हो और ऐसे आदमी का इनाम व पुरस्कार जन्नत है।
पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही वसल्लम की ज़िंदगी बहुत ही साधारण, बल्कि साधारण से भी नीचे स्तर की थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम उनके ज़िंदगी के बारे में बताते हैं कि पैग़म्बर (स) ग़ुलामों की दावत को स्वीकार करके उनके साथ भोजन कर लेते थे। वह ज़मीन पर बैठते और अपने हाथ से बकरी का दूध दूहते थे। जब कोई उनसे मिलने आता था तो वह टेक लगाकर नहीं बैठते थे। लोगों के सम्मान में वह कठिन कामों को भी स्वीकार कर लेते और उन्हें पूरा करते थे।
इमाम ख़ुमैनी र.ह भी अपनी ज़िंदगी के सभी चरणों में चाहे वह क़ुम के फ़ैज़िया मदरसे में उनकी पढ़ाई का ज़माना रहा हो या इस्लामी रिपब्लिक ईरान की लीडरशिप का समय उनकी ज़िंदगी हमेशा, साधारण स्तर की रही है। वह कभी इस बात को स्वीकार नहीं करते थे कि उनकी ज़िंदगी का स्तर देश के साधारण लोगों के स्तर से ऊपर रहे।
इमाम ख़ुमैनी के एक साथी का कहना है कि जब वह इराक़ के पाक शहर नजफ़ में रह रहे थे तो उस समय उनका घर, किराये का घर था जो नया नहीं था। वह ऐसा घर था जिसमें साधारण स्टूडेंट्स रहते थे। इस तरह से कहा जा सकता है कि इमाम ख़ुमैनी की जीवन स्तर साधारण स्टूडेंट्स ही नहीं बल्कि उनसे भी नीचे स्तर का था। ईरान में इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के बाद हुकूमती सिस्टम का नेतृत्व संभालने के बाद से अपनी ज़िंदगी के अंत तक जमारान इमामबाड़े के पीछे एक छोटे से घर में रहे। उनकी ज़िंदगी का आदर्श चूंकि पैग़म्बरे इस्लाम (स) थे इसलिये उन्होंने अपने घर के भीतर आराम देने वाला कोई छोटा सा परिवर्तन भी स्वीकार नहीं किया और इराक़ द्वारा थोपे गए आठ वर्षीय युद्ध में भी वह अपने उसी साधारण से पुराने घर में रहे और वहीं पर अपने छोटे से कमरे में दुनिया के नेताओं से मुलाक़ात भी करते थे।
पैग़म्बरे इस्लाम के आचरण, व्यवहार और शिष्टाचार के दृष्टिगत इमाम ख़ुमैनी ने इस्लामी इंक़ेलाब के नेतृत्व की कठिनाइयों को कभी बयान नहीं किया और कभी भी स्वयं को दूसरों से आगे लाने की कोशिश भी नहीं की। वह हमेशा यही मानते और कहते रहे कि “मुझे अगर जनता का सेवक कहो तो यह इससे अच्छा है कि मुझे नेता कहो”।
इमाम ख़ुमैनी जब भी जंग के जियालों के बीच होते तो कहते थे कि मैं जेहाद और शहादत से पीछे रह गया हूं इसलिये आपके सामने लज्जित हूं। जंग में हुसैन फ़हमीदे नामक नौजवान के शहीद होने के बाद उसके बारे में इमाम ख़ुमैनी का यह कहना बहुत मशहूर है कि हमारा नेता बारह साल का वह किशोर है जिसने अपने नन्हे से दिल के साथ, जिसकी क़ीमत हमारी सैकड़ों ज़बानों और क़लम से बढ़कर है हैंड ग्रेनेड के साथ ख़ुद को दुश्मन के टैंक के नीचे डाल दिया, उसे उड़ा दिया और ख़ुद भी शहीद हो गया।
लोगों के प्यार का पात्र बनना और उनके दिलों पर राज करना, विभिन्न कारणों से होता है और उनकी अलग-अलग सीमाएं होती हैं। कभी भौतिक कारण होते हैं और कभी निजी विशेषताएं होती हैं जो दूसरों को आकर्षित करती हैं और कभी यह कारण आध्यात्मिक एवं इलाही होते हैं और आदमी की विशेषताएं अल्लाह और धर्म से जुड़ी होती हैं। अल्लाह ने पाक क़ुरआन में वचन दिया है कि जो लोग अल्लाह पर ईमान लाए और भले काम करते हैं, अल्लाह उनका प्यार दिलों में डाल देता है। इस इलाही वचन को पूरा होते हम सबसे ज़्यादा हज़रत मुहम्मद (स) के कैरेक्टर में देखते हैं कि जिनका प्यार दुनिया के डेढ अरब मुसलमानों के दिलों में बसा हुआ है।
इमाम ख़ुमैनी भी पैग़म्बरे इस्लाम (स) के प्यार में डूबे हुए दिल के साथ इस ज़माने के लोगों के दिलों में बहुत बड़ी जगह रखते हैं। इमाम ख़ुमैनी के बारे में उनके संपर्क में आने वाले ईरानियों ने तो उनके कैरेक्टर के बारे में बहुत कुछ कहा और लिखा है ही, विदेशियों ने भी माना है कि इमाम ख़ुमैनी समय और स्थान में सीमित नहीं थे। दुनिया के विभिन्न नेताओं यहां तक कि अमरीकियों में भी जिसने इमाम ख़ुमैनी से मुलाक़ात की वह उनके कैरेक्टर और बातों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। इमाम ख़ुमैनी पूरे संतोष के साथ साधारण शब्दों में ठोस और सुदृढ़ बातें करते थे। उनके शांत मन और ठोस संकल्प को बड़ी से बड़ी घटनाएं और ख़तरे भी प्रभावित नहीं कर पाते थे। दुनिया को वह अल्लाह का दरबार मानते थे और अल्लाह की कृपा और मदद पर पूरा यक़ीन रखते थे तथा यह विषय, नेतृत्व संबन्धी उनके इरादों के बारे में बहुत प्रभावी था। इस बात को साबित करने के लिए बस यह बताना काफ़ी होगा कि जब सद्दाम की फ़ौज ने इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी के फ़ौरन बाद ईरान पर अचानक हमला किया तो इमाम ख़ुमैनी ने जनता से बड़े ही सादे शब्दों में कहा था कि “एक चोर आया, उसने एक पत्थर फेंका और भाग गया”। इमाम के यह सादे से शब्द, रौशनी और शांति का स्रोत बनकर लोगों में शांति तथा हिम्मत भरने लगे और चमत्कार दिखाने लगे। हमारी दुआ है कि उनकी आत्मा शांत और उनकी याद सदा जीवित रहे।
सिफ़ाते खु़दा
सिफ़ाते खु़दा की दो क़िस्में हैं: सिफ़ाते सुबूतिया और सिफ़ात सल्बिया। इस सबक़ में हम सिफ़ाते सुबूतिया के बारे में पढ़ेगें।
सिफ़ाते सुबूतिया उन सिफ़तों को कहते हैं जो ख़ुदा में पाई जाती हैं और वह आठ हैं:
1. ख़ुदा अज़ली व अबदी है: अज़ली है यानी उस की कोई इब्तिदा नही है बल्कि हमेशा से है और अबदी है यानी उस की कोई इंतिहा नही है बल्कि वह हमेशा रहेगा और कभी नाबूद नही होगा।
2. ख़ुदा क़ादिर व मुख़्तार है: ख़ुदा क़ादिर है यानी हर चीज़ पर क़ुदरत रखता है और वह मुख़्तार है यानी अपने कामों को अपने इरादे और इख्तियार से अंजाम देता है और कोई उसे मजबूर नही कर सकता।
3. ख़ुदा आलिम है: ख़ुदा वंदे आलम तमाम चीज़ों के बारे में कामिल तौर पर जानता है और वह हर चीज़ से वाक़िफ़ है, जिस तरह वह किसी चीज़ के वुजूद में आने के बाद उसे जानता है उसी तरह वुजूद में आने से पहले जानता है।
4. ख़ुदा मुदरिक है: यानी वह हर चीज़ को समझता है, वह कान नही रखता लेकिन तमाम बातों को सुनता है, आँख नही रखता लेकिन तमाम चीज़ों को देखता है।
5. ख़ुदा हई है: यानी वह हयात रखता है और ज़िन्दा है।
6. ख़ुदा मुरीद है: यानी वह कामों की मसलहत से आगाह है वह वही काम अंजाम देता है जिस में मसलहत हो और कोई भी काम अपने इरादे और मसलहत के बग़ैर अंजाम नही देता।
7. ख़ुदा मुतकल्लिम है: यानी वह कलाम करता है लेकिन ज़बान से नही बल्कि दूसरी चीज़ों में बोलने की क़ुदरत पैदा कर देता है और फ़रिश्तों या अपने वलियों से हम कलाम होता है। जैसा कि उस ने पेड़ में क़ुदरते कलाम पैदा की और हज़रत मूसा (अ) से बात की, इसी तरह वह आसमान को बोलने की ताक़त देता है तो फ़रिश्ते सुनते हैं और वहयी लेकर नाज़िल होते हैं।
8. ख़ुदा सादिक़ है: यानी वह सच्चा है और झूठ नही बोलता। इस लिये कि झूठ बोलना अक़्ल की नज़र से एक बुरा काम है और ख़ुदा बुरा काम अंजाम नही देता।
तमाम सिफ़ाते सुबूतिया की मज़बूत और मोहकम दलीलें बड़ी किताबों में मौजूद हैं जिन से यह मालूम होता है कि अल्लाह तआला क्यों अज़ली, अबदी, क़ादिर व मुख़्तार, आलिम, मुदरिक, हई, मुरीद, मुतकल्लिम और सादिक़ है।
ख़ुलासा
- सिफ़ाते ख़ुदा की दो क़िस्में हैं:
1. सिफ़ाते सुबूतिया 2. सिफ़ाते सल्बिया
- सिफ़ाते सुबूतिया उन सिफ़ात को कहते हैं जो ख़ुदा में पाई जाती हैं और वह सिफ़ात आठ हैं:
1. अज़ली व अबदी
2. क़ादिर व मुख़्तार
3. आलिम
4. मुदरिक
5. हई
6. मुरीद
7. मुतकल्लिम
8. सादिक़
सवालात
1. सिफ़ाते सुबूतिया की तारीफ़ बयान करें?
2. ख़ुदा के मुदरिक, हई और मुरीद होने का क्या मतलब है?
3. ख़ुदा के अज़ली व अबदी होने के क्या मअना हैं?
दसवाँ सबक़
सिफ़ाते सल्बिया
पिछले सबक़ में हमने पढ़ा कि ख़ुदा की सिफ़ात की दो क़िस्में हैं: सिफ़ाते सुबूतिया और सिफ़ाते सल्बिया। हम सिफ़ाते सल्बिया के बारे में आशनाई हासिल कर चुके और अब हम इस सबक़ में सिफ़ाते सल्बिया के बारे में पढ़ेगें।
सिफ़ाते सल्बिया उन सिफ़तों को कहते हैं जिन में ऐब व कमी और बुराई के मअना पाये जाते हैं। ख़ुदा वंदे आलम इस तरह के तमाम सिफ़ात से दूर है और उस में यह सिफ़तें नही पाई जाती हैं। आम तौर पर हमारे उलामा सात सिफ़ाते सल्बिया को बयान करते हैं:
1. ख़ुदा शरीक नही रखता: यानी ख़ुदा वाहिद है, कोई ख़ुदा के बराबर और उस के जैसा नही है, वह वाहिद है और अपने तमाम कामों को तन्हा अंजाम देता है। सिर्फ़ वही इबादत के लायक़ और सब का पैदा करने वाला है।
2. ख़ुदा मुरक्कब नही है: यानी वह कई चीज़ों से मिल कर नही बना है, न वह किसी का जुज़ है और न कोई दूसरा उस का जुज़ है वह मिट्टी, पानी, आग, हवा, हाथ, पैर, आँख, नाक, कान या दूसरी चीज़ से मिल कर नही बना है।
3. ख़ुदा जिस्म नही रखता: जिस्म उस चीज़ को कहते हैं जिस में लम्बाई, चौड़ाई और गहराई पाई जाती हो। लम्बाई, चौड़ाई और गहराई महदूद होती है लेकिन ख़ुदा वंदे आलम ला महदूद है और उस की कोई हद नही है लिहाज़ा उस की लम्बाई, चौड़ाई या गहराई का तसव्वुर नही किया जा सकता।
4. ख़ुदा दिखाई नही देता: न वह दुनिया में दिखाई देता है और न आख़िरत में दिखाई देगा। इस लिये कि वह चीज़ दिखाई देती है जो जिस्म रखती हो लेकिन हम जानते हैं कि ख़ुदा जिस्म नही रखता।
5. ख़ुदा पर हालात तारी नही होते: यानी उस में भूल, नींद, थकन, लज़्ज़त, दर्द, बीमारी, जवानी, बुढ़ापा और उन जैसी दूसरी हालतें नही पाई जाती हैं इस लिये कि ऐसी चीज़ें ऐब और कमी है और ख़ुदा तरह के ऐब से पाक है।
6. ख़ुदा मकान नही रखता: यानी ख़ुदा हर जगह है इस लियह कि वह ला महदूद है, उस की कोई हद नही है, मकान वह रखता है जो महदूद हो।
7. ख़ुदा मोहताज नही है: यानी ख़ुदा हर चीज़ से बेनियाज़ है, न वह अपनी ज़ात में किसी का मोहताज है और न सिफ़ात में। उलामा ने बड़ी किताबों में सिफ़ाते सुबूतिया की तरह सिफ़ाते सल्बिया की भी मज़बूत दलीलें बयान की हैं जिन को पढ़ने के बाद यह मालूम हो जाता है कि ख़ुदा वंदे आलम के अंदर सिफ़ाते सल्बिया क्यो नही पाई जाती है।
ख़ुलासा
- सिफ़ाते सल्बिया उन सिफ़तों को कहते हैं जिन में ऐब व नक़्स और बुराईयों के मअना पाये जाते हैं और ख़ुदा उन तमाम सिफ़तों से पाक है।
- सिफ़ाते सल्बिया सात है:
1. ख़ुदा शरीक नही रखता।
2. मुरक्कब नही है।
3. जिस्म नही रखता।
4. दिखाई नही देता।
5. उस पर हालात तारी नही होते।
6. वह मकान नही रखता।
7. वह किसी का मोहताज नही है।
सवालात
1. सिफ़ाते सल्बिया की तारीफ़ बयान करें?
2. कम से कम पाँच सिफ़ात सल्बिया लिखें?
3. ख़ुदा जिस्म क्यो नही रखता?
4. ख़ुदा पर किस तरह के हालात तारी नही होते?
मक़सदे ख़िलक़त
हम कहाँ से आये है? हमारे आने का मक़सद क्या है? हम कहाँ जा रहे हैं? हमारा अंजाम क्या होगा? हमारी सआदत व ख़ुश बख़्ती किय चीज़ में है?
उसे किस तरह हासिल किया जा सकता है?
यह और इस तरह के दीगर अहम और बुनियादी सवालात हैं जो हमेशा से इंसान के दिल व दिमाग़ को मशग़ूल किये हुए हैं। इन सवालात का सही जवाब मालूम कर लेना इंसानी ज़िन्दगी को बेहतरीन और कामयाब ज़िन्दगी बना सकता है और उस में नाकामी उसे और उस की ज़िन्दगी को नीस्ती व नाबूदी की तरफ़ खींच सकती है। मक़सदे ख़िलक़त को जान लेना एक तरफ़ से इंसान की हक़ीक़त तलब रूह की तसकीन के सामान फ़राहम कर सकता है तो दूसरी तरफ़ से उस के हाल और मुस्तक़बिल को आपस में जोड़ सकता है।
इस्लामी नुक़्त ए नज़र से ख़िलक़ते कायनात बिला वजह और बग़ैर किसी मक़सद के नही है बल्कि कायनात की हर शय एक ख़ास ग़रज़ और मक़सद के तहत ख़ल्क़ हुई है।
बेशक ज़मीन व आसमान की ख़िलक़त, लैल न नहार की आमद व रफ़्त में साहिबाने अक़्ल के लिये क़ुदरत की निशानियां हैं। जो लोग उठते बैठते, लेटते ख़ुदा को याद करते हैं और आसमान व ज़मीन की तख़लीक़ में ग़ौर व फ़िक्र करते हैं कि ख़ुदाया, तू ने यह सब बेकार पैदा नही किया, तू पाक व बे नियाज़ है, हमे अज़ाबे जहन्नम से महफ़ूज़ फ़रमा।
(सूर ए आले इमरान आयत 190, 191)
उन्ही मख़लूक़ात में से ख़ुदा की एक बरतर और अशरफ़ मख़लूक़ जिसे इंसान कहा जाता है। परवरदिगार ने उसे अबस और बिला वजह ख़ल्क़ नही किया है बल्कि उसे अपनी ख़िलक़त का शाहकार क़रार दिया है और उस की ख़िलक़त पर अपने आप को अहसनुल ख़ालेक़ीन कहा है। इसी लिये इरशाद फ़रमाता है:
क्या तुम्हारा ख़्याल है कि हम ने तुम्हे बेकार पैदा किया है और तुम हमारी तरफ़ पलटा कर नही लाये जाओगे। (सूर ए मोमिनून आयत 115)
और एक दूसरे मक़ाम पर इरशाद होता है:
क्या इंसान का ख़्याल यह है कि उसे इसी तरह आज़ाद छोड़ दिया जायेगा।
(सूर ए क़यामत आयत 37)
यह आयात हमें चंद अहम नुकात की तरफ़ मुतवज्जेह कराती हैं:
1. इंसान की ख़िलक़त बेला वजह व अबस नही है बल्कि उस की ख़िलक़त का एक मक़सद है।
2. इंसान को ख़ल्क़ कर के उसे उस के हाल पर छोड़ नही दिया गया है।
3. ख़िलक़ते इंसानी का आख़िरी मक़सद उस का बारगाहे ख़ुदा वंदी में पलटना है।
ख़ालिक़े कायनात ने इंसानों की ख़िलक़त के कुछ दीगर असरार व रुमूज़ और अहदाफ़ व मक़ासिद को अपनी किताब क़ुरआने मजीद में बयान फ़रमाया है मिन जुमला:
1. इल्म व मारेफ़त
परवरदिगारे आलम ने इंसान की ख़िलक़त का एक मक़सद इंसानों का परवरदिगार की क़ुदरते मुतलक़ा की मारेफ़त हासिल करना क़राक दिया है इरशाद फ़रमाया:
अल्लाह वही है जिस ने सात आसमानों को पैदा किया है और ज़मीनों में भी वैसी ही ज़मीनें बनाई हैं उस के अहकाम उन के दरमियान नाज़िल होते हैं ता कि तुम्हे यह मालूम हो जाये कि वह हर शय पर क़ादिर है और उस का इल्म तमाम अशया का इहाता किये हुए हैं। (सूर ए तलाक़ आयत 12)
2. इम्तेहान आज़माइश
ख़ुदा वंदे आलम का इरशाद है:
उस ने मौत व हयात को इस लिये पैदा किया है ता कि तुम्हारी आज़माइश करे कि तुम में हुस्ने अमल के ऐतेबार से सब से बेहतर कौन है।
इम्तेहान और आज़माइशे इलाही से मुराद पोशीदा असरार व रुमूज़ को मालूम करना नही है बल्कि इस से मुराद इंसानों की इस्तेदाद व सलाहियत को रुश्द व तरक़्क़ी देने के मवाक़े फ़राहम करना है और इंसानों की आज़माइश व इम्तेहान यह है कि वह अच्छाई व बुराई के रास्ते को मुन्तख़ब करने के तमाम रास्तों को इंसानों के सामने रख दे का कि वह उन की मदद से अपनी इस्तेदाद व सलाहियत को रुश्द व तरक़्क़ी दे और सही रास्ते का इंतेख़ाब करे।
3. इबादत
परवरदिगारे आलम ने इस सिलसिले में इरशाद फ़रमाया:
और मैं ने जिन्नात और इंसानों को सिर्फ़ अपनी इबादत के लिये पैदा किया है।
(सूर ए ज़ारियात आयत 56)
इस आयत की रौशनी में इंसान की ख़िलक़त का अस्ल मक़सद इबादत व बंदगी ए परवरदिगार है। इबादत व बंदगी ए परवर दिगार को क्यों मक़सदे ख़िलक़ते इंसान क़रार दिया गया है? इस सवाल का जवाब यह है:
1. क़ुरआनी नुक़्त ए नज़र से हर मुसबत अमल जो परवर दिगार से क़रीब होने की नीयत से अंजाम दिया जाये वह इबादत है। इबादत सिर्फ़ चंद ख़ास मनासिक व आमाल ही नही हैं बल्कि उन के साथ साथ हर इल्मी, इक़्तेसादी आमाल वग़ैरह भी जो लील्लाहियत की बुनियाद पर अंजाम दिये जायें वह सब के सब इबादत हैं और इंसान अपने तमाम अहवाल व हालात यहाँ तक कि खाने पीने, सोने जागने और ज़िन्दगी व मौत में भी ख़ुदाई हो सकता है और उस से तक़र्रुब हासिल कर सकता है।
आप कह दीजिये कि मेरा नमाज़, मेरी इबादतें, मेरी ज़िन्दगी और मेरी मौत सब अल्लाह के लिये है, जो आलमीन का पालने वाला है।
अलबत्ता इस बात को हमेशा याद रखना चाहिये कि इबादत अपने ख़ास और इस्तेलाही मअना में दीन में एक बहुत अहम और ख़ास मक़ाम व मंज़िलत की हामिल है।
2. इस सिलसिले में फ़ससफ़ ए इबादत की तरफ़ तवज्जो भी निहायत ज़रुरी और अहम चीज़ है। चुनांचे हज़रत अली अलैहिस सलाम इरशाद फ़रमाते हैं कि परवरदिगार ने मख़लूक़ात को ख़ल्क़ किया जब कि वह उन की इताअत से बेनियाज़ और उन की ना फ़रमानी से अम्न व अमान में था। इस लिये कि न ही गुनहगारों की ना फ़रमानी उसे कोई नुक़सान पहुचा सकता है और न ही इताअत गुज़ारों की इताअत व फ़रमा बरदारी उसे कोई फ़ायदा पहुचा सकती है।
इंसान की दुनिया और आख़िरत में इबादत के बहुत से मुसबत असरात और हिकमतें हैं मिन जुमला:
1. एक फ़ितरी ज़रुरत
2. ख़ुद शिनासी का एक रास्ता
3. माद्दियत व माद्दा परस्ती से निजात
4. यक़ीन हासिल करना
5. रुहे इंसान की बदन पर कामयाबी
6. एहसासे सलामती और इतमीनान
7. क़ुवा ए नफ़सानी पर क़ाबू
8. क़ुरबते ख़ुदा का ज़रिया
9. अख़लाक़ व ईमान का हामी
4.रहमते इलाही
ख़ालिक़े क़ायनात ने इरशाद फ़रमाया:
और अगर आप का परवरदिगार चाह लेता तो सारे इंसानों को एक क़ौम बना देता। (लेकिन वह जब्र नही करता।) लिहाज़ा यह हमेशा मुख़्तलिफ़ ही रहेगें। अलावा उन के जिन पर ख़ुदा ने रहम कर दिया और इसी लिये उन्हे पैदा किया है।
एक अहम नुक्ता
मज़कूरा बाला आयात में ग़ौर व फ़िक्र से यह बात वाज़ेह हो जाती है कि उन अहदाफ़ व मक़ासिद में कोई इख़्तिलाफ़ और तज़ाद नही है। इस लिये कि उन में से बाज़ मुकद्देमाती और इब्तेदाई अहदाफ़ है तो कुछ दरमियानी और कुछ आख़िरी हदफ़ व नतीजा हैं।
लिहाज़ इन आयात की रौशनी में ख़िलक़ते इंसान का मक़सद, तजल्ली ए रहमते परवरदिगार और इंसान को दायमी कमाल व सआदत की राह में क़रार देना है जो इख़्तेयारी तौर पर सही और बरतर रास्ते को इख़्तियार करने और राहे उबूदियते परवर दिगार को तय करने से हासिल हो सकता है।
अल्लाह हुम्मा वफ़्फ़िक़ना लिमा तुहिब्बो व तरज़ा, वजअल अवाक़िबा उमूरिना ख़ैरा।
पैकरे शुजाअत शैख़ महमूद शलतूत
शैख़ महमूद शलतूत पांच शव्वाल सन 1310 हिजरी को मिस्र के बोहैरा इस्टेट में वाक़े शहर (इताइल बारुद) के एक देहात (मन्शात नबी मनसबर) में वहाँ के एक इल्मो अदब परवर घराने में पैदा हुए आपके बाप शैख़ मुहम्मद ने आपका नाम महमूद रखा और बेटे की तालीमो तरबीयत की राह में अन्थक कोशिश की।
तालीम का आगाज़
अभी महमूद की उम्र की सातवीं बहार नहीं गुज़री थी कि बाप का इन्तेकाल हो गया आप के चचा अब्दुल क़वी शल्तबत ने आपकी सरपरस्ती का बेड़ा उठाया। इब्तेदा से ही महमूद के तमाम कामों में महारत व इस्तेदाद के आसार नुमायाँ थे इसी लिए आपके चचा ने उलूम व मआरिफ़े इस्लामी के हुसूल की ख़ातिर गाँव के मकतब में भेज दिया।
मिस्र के मकतिब में यह क़ानून था कि दुरुसे अदबीयीत की तालीम हासिल करने से पहले तालिबे इल्म पूरे कुरआन को हिफ्ज़ करे। महमूद भी दूसरे तालिबे इल्मों की तरह हर चीज़ से पहले कुरआन को हिफ्ज़ करने में मशगूल हुए और बड़े मुख्तसर अरसे में कुरआन हिफ्ज़ कर लिया।
तकमीली तालीम
शैख़ महमूद शलतूत ने सन 1328 हिजरी में (बमुताबिक सन् 1906 ई.) में इल्मी कमालात के हुसूल की ख़ातिर इस्कन्द्रिया का सफ़र किया और इस्कन्द्रिया युनिवर्सिटी में तालीम हासिल करने लगे।
आपकी इल्मी सलाहीयत व क़ाबेलियत से वहाँ के असातीद और तालिबे इल्मों को हैरत हुई आपने अपनी अन्थक कोशिशों को बरूए कार लाकर सन् 1340 हिजरी (मुताबिक 1928) में इस्कन्द्रिया युनिवर्सिटी से वहाँ की सबसे बड़ी इल्मी सनद हासिल की। और कॉलेज की मुम्ताज़ शागिर्दी की हैसियत से आपका तआरुफ़ हुआ जबकि अभी आपकी उम्र सिर्फ 25 साल थी, आप सन् 1341 हिजरी में (फरवरी 1919 ई.) में अपनी तालीम मुकम्मल करने के बाद उसी कॉलेज में बहैसियत उस्ताद तदरीस में मशगूल हो गये।
शैख़ शलतूत की तालीमो तदरीस का ज़माना मिस्र के अवामी इन्क़ेलाब का दौर था जिसकी क़यादत सअद ज़गलूल कर रहे थे। मिस्र के शहर और देहात सअद ज़गलूल की हिमायत और ग़ासिबों के खेलाफ़ मुज़ाहेरात से छलक रहे थे शैख़ शलतूत में ग़ैर जानिब दार नहीं रहे और अपने इन्क़ेलाबी फरीज़े पर अमल करते हुए मिस्री अवाम के इन्क़ेलाब में ज़बान व कलम से ख़िदमत में मशगूल हुए।
अल अज़हर में वुरुद
शैख़ शलतूत जो शैख़ मुहम्मद मुस्तफ़ा मराग़ी से तअज्जुब खेज़ अक़ीदत रखते थे और बड़े मुताअस्सिर थे जिस वक्त शैख़ मराग़ी सन 1360 हिजरी (1938) में अल अज़हर युनिवर्सिटी के रईस थे उन्हें शैख़ महमूद शलतूत का एक मक़ाला मुतालेआ करने से शलतूत की गहरी फिक्र, अदबियाते अरब पर तसल्लुत और निगारिश में महारत का अन्दाज़ा हुआ उन्होंने शैख़ शलतूत से अल अज़हर युनिवर्सिटी की आलिया क्लासों में तदरीस की दावत दी। शलतूत जो कि इस्कन्द्रिया युनिवर्सिटी में शागिर्दों की तालीमो तरबीयत में मशगूल थे। उस दावत पर लब्बैक कहते हुए क़ाहेरा रवाना हो गये और अल अज़हर युनिवर्सिटी में बहैसियत उस्ताद के तहरीस में मशग़ूल हो गये।
आपकी पै दर पै कामयाबियाँ बाइस हुईं की सन 1361 हिजरी (मुताबिक सन 1929 ई, में आपका इन्तेख़ाब अल अज़हर युनिवर्सिटी के खुसूसी मरहले के लिए मुदर्रिस की हैसियत से हुआ।
असातीद
शैख़ शलतूत ने बहुत से असातेज़ा के सामने ज़ानू ए अदब तह किया है लेकिन तीन असातेज़ा का आपकी तॉलीमो तरबीयत में बड़ा अहम किरदार रहा है:
1- उस्ताद शैख] अलजीज़ादीः आप शैख] शलतूत के इस्कन्द्रिया कॉलेज में उस्ताद थे।
2- शैख़ अब्दुल मजीद सलीमः शैख़ सलीम ने सन 1304 हिजरी (अक्तूबर सन 1882) में मिस्र में आँख खोली, मुकद्देमाती तॉलीम हासिल करने के बाद अल अज़हर युनिवर्सिटी में दाखिल हुए और 1330 हिजरी में उसी युनिवर्सिटी से फारीगुत्तहसील हुए। तॉलीम पूरी करने के बाद आप काज़ी, मुदर्रीस, हैयते फतवा के मिम्बर की हैसियत से काम करने लगे और आप शैख़ मुहम्मद अब्दहु के शागिर्दों में शुमार होते हैं सन् 1340 हिजरी मुताबिक सन 1918 ई, में अपनी तहसीलात को मुकम्मल करने के बाद उसी कालेज में उस्ताद की जगह तदरीस करने में मशगूल हो गये। शैख़ शलतूत की तालीमो तदरीस का जमाना (सन 1341 हिजरी बमुताबिक सन 1919 ई) सअद ज़गलूल की रहबरी व क़यादत में मिस्र के अवामी इन्क़ेलाब के हम अस्र था। मिस्र के शहरों देहात सअद ज़गलूल की हिमायत और ग़ासिबों के ख़िलाफ़ मुज़ाहेरात से सरशॉर थे। शैख़ शलतूत भी बेतरफ़ व ग़ैर जानिबदार न थे और अपनी इन्क़ेलाबी ज़िम्मेदारियों पर अमल पैरा थे और अपनी ज़बान व कलम से मिस्री अवाम के इन्क़ेलाब की ख़िदमत में मसरुफ थे।
अल अज़हर युनिवर्सिटी में दाख़िला
शैख़ मुहम्मद मुस्तफ़ा मराग़ी का अल्लामा शलतूत पर काफी हद तक अक़ीदती, मज़हबी असर था शैख़ मराग़ी ने जब सन् 1360 हिजरी मुताबिक सन 1938 ई में अल अज़हर युनिवर्सिटी की रियासत व ज़आमत संभावी। उसी दौरान आपने शैख़ महमूद शलतूत का एक मक़ाला मुतालआ फ़रमाया और उनके गहरे अफ्कार, अरबी अदबीयात पर तसल्लुत और कलम व बयान पर उनके ग़ल्बे का अन्दाज़ा होता है, इसी लिए शलतूत को अल अज़हर युनिवर्सिटी के आला कलासों में तदरीस की दावत दी गई उस ज़माने में शैख़ शलतूत इस्कन्द्रिया कॉलेज में तालिबे इल्मों की तालीमो तरबीयत में मशगूल थे शैख़ मराग़ी के दावत नामे पर लब्बैक कहते हुए क़ाहेरा का सफर इख़्तेयार किया और अल अज़हर युनिवर्सिटी के सुतुहे आलिया के उस्ताद बन गए।
पै दर पै आप की कामयाबियाँ इस बात का सबब बनीं की सन 1361 हिजरी मुताबिक सन 1929 ई में अल अज़हर युनिवर्सिटी के शुसूसी मर्हले के मुदर्रीस का मर्तबा व दर्जे पर चुने जाऐं.
असातिदः-
शैख शलतूत ने बहुत से असातेज़ा के महज़र से कस्बे फैज़ किया है लेकिन तीन असातेज़ा का आपकी तॉलीमो तरबीयत में बड़ा अहम किरदार रहा है:
1. उस्ताद शैख] अलजीज़ादीः आप शैख] शलतूत के इस्कन्द्रिया कॉलेज में उस्ताद थे।
2. शैख़ अब्दुल मजीद सलीमः शैख़ सलीम ने सन् 1304 हिजरी (अक्तूबर सन 1882) में मिस्र में आँख खोली, मुकद्देमाती तॉलीम हासिल करने के बाद अल अज़हर युनिवर्सिटी में दाखिल हुए और 1330 हिजरी में उसी युनिवर्सिटी से फारीगुत्तहसील हुए। तॉलीम पुरी करने के बाद आप काज़ी, मुदर्रीस, हैयते फतवा के मिम्बर की हैसियत से काम करने लगै और आप शैख़ मुहम्मद अब्दहु के शागिर्दों में शुमार होते हैं।
शैख़ अब्दुल मजीद सलीम, तक़रीब बैनल मज़ाहिब के संस्थापकों में से एक और उस तन्ज़ीम के सरगर्म रुक्न थे। आप की ख़ास सिफ़त सराहत और शुजाअत थी। यही वजह है कि जब आपने देखा कि सन 1368 हिजरी में हुकूमत अल अज़हर युनिवर्सिटी के उमूर में मुदाख़ेलत कर रही है तो आपने बे नज़ीर सरीह इक़्दाम करते हुए अल अज़हर युनिवर्सिटी की रियासत व ज़आमत से इस्तिफा दे दिया। दरबारे शाह का रईस दीवान, जो आपके इस इक़्दाम से बेहद नाराज़ था अब्दुल मजीद सलीम को घमकी दे बैठा और बोलाः इस इक़्दाम से उन्हे बहुत से ख़तरात का सामना करना पड़ेगा। शैख़ सलीम ने कमाले शुजाअत व सराहत के साथ जवाब दिया कि जब तक मैं अपने घर और मस्जिद के दरमीयान हरकत कर रहा हूँ मुझे कोई ख़तरा लाहक़ नहीं है। (बी आज़ार शीराज़ी सन 1379 श सफहा 24)
शैख़ सलीम ने तक़रीब और इस्लामी इत्तेहाद के मैदान में बरसों सई व कोशिश के बाद 10 सफर सन् 1374 हिजरी बरोज़े पन्ज शन्बा इस दारे फ़ानी को अलविदा कहा। (खफाजी, जिल्द 1, सफहा 306)
शैख़ मुहम्मद मुस्तफ़ा मराग़ी: शैख़ मराग़ी सन् 1303 हिजरी मुताबिक मार्च सन 1881 ई शहरे मराग़ा में पैदा हुए, जो मिस्र के सोहाज इस्टेट का तआल्लुका है। इब्तेदाई तालीम के बाद कुरआने मजीद हिफ्ज़ करने में मशगूल हुए और बड़ी मुख़्तसर मुद्दत में हाफिज़े कुरआन बन गए। आप शैख़ मुहम्मद अब्दहु के शागिर्दों और मुरीदों में से थे और उनके अफ्कार से मुत्अस्सिर होकर तक़रीब की राह पर गामज़न हुए थे।
रशीद रज़ा ने आपके बारे में लिखा हैः आप शैख़ मुहम्मद अब्दहु के ख़ालिस तरीन भाईयों और मुरीदों में से थे। (बी आज़ार शीराज़ी सन 1379 श सफहा 24)
जिस वक्त मुहम्मद अब्दहु ने सुडान का सफ़र किया तो उन्हें अपने साथ ले गए और आप वहाँ मुक़द्देमात के फ़ैसले में मशगूल हुए शैख़ शलतूत अपने उस उस्ताद की इन अल्फाज़ में तारीफ़ करते हैं: शैख़ मुहम्मद मराग़ी के पास जो कुछ इल्म अक़्ल व अफ्कार थे वह सब जनाब मुहम्मद अब्दहु के शागिर्द होने की वजह से थे।
मजमा दारुत तक़रीब के रईस जनाब मुहम्मद तक़ी क़ुम्मी उनके बारे में लिखते हैं किः आप (शैख़ मराग़ी) बा वकार और बा शख्सियत इन्सान थे और वड़ी मुनज्ज़म और वसीअ फिक्रो नज़र के मालिक थे। आप बड़े फ़आल थे और अशख़ास के दरमीयान तअल्लुकात बनाने और बुनियादी नुकात पर इत्तेफाक़े राय पैदा करने में बहुत बड़ा हिस्सा रखते थे उन्होंने बहुत से उलमा व बुज़ुरगाने दीन की जिनमें सरे फ़ेहरिस्त शैख़ मुस्तफ़ा अब्दुल रज्ज़ाक़ और शैख़ अब्दुल मजीद सलीम थे, के लिए माहौल साज़गार किया। (बी आज़ार शीराज़ी सन 1379 श सफहा 65)
शैख़ मराग़ी ने बहुत से इल्मी आसार क़ुरआन और इस्लामी मआरिफ़ के मैदान में छोड़े हैं जिनमें से एक (अवलिया उल महजूरीन) है जिसमें कुरआन के तर्जुमे लुग़वी अबहास और सुर ए लुकमान, हुजरात, हदीद, अस्र व गरा की तफ्सीर पर मुश्तमिल दुरुस हैं। (अहमदी सन 1383 श, सफहा 54)
आपने माहे रमज़ान सन् 1368 हिजरी में इस दारे फ़ानी को अलविदा किया और आपके जनाज़े को अज़ीमुश्शान तशीय के बाद बीबी सय्यदा नफीसा के मक़बरे में दफ़्न किया गया। (मिजाहिद, सन 1994 ई जिल्द 1, सफहा 400)
शागिर्दान
1. अब्बास महमूद एक़ाद
अब्बास महमूद एक़ाद, शायर, मोजद्दद, नक़्क़ाद और मिस्र के मारुफ व मशहूर ख़बर निगार थे। सन 1311 हिजरी मुताबिक सन 1889 ई में शहरे इस्वान में आँख खोली, आपका अस्ली पेशा ख़बर निगारी था लेकिन शेर गोई में बहुत माहिर थे, आपके अक्सर आसार जिनमें आपका दीवाने शेर, वहीयुल अरबईन, हदियतुल करवान और आबेरानुस्सबील, शेरो शायरी के मैदान में और दो किताब अबक़रीयता मुहम्मद और अबक़रीयता उमर, इस्लामी शख़्सीयात के सिलसिले में तॉलीफ़ की है। (अल्मुन्जद फील आलाम, सफ़हा 471)
2. शैख़ अली अब्दुर रज़्ज़ाक
अल अज़हर युनिवर्सिटी से इस्तिफ़ा
शैख़ मुस्तफ़ा मराग़ी मुसम्मम थे कि अल अज़हर में अपने इस्लाही प्रोप्रामों को अमली जामा पहनायेंय़ इसी लिए मिस्री हुकूमत की तव्ज्जोह मबज़ूल कराने के लिए अपना इस्लाही लाएह ए अमल हुकूमते वक्त को पेश किया और शैख़ शलतूत ने भी कई मकाला लिख कर शैख़ मराग़ू के प्रोग्रामों की हिमायत की और उनके इस्लाही लाएह ए अमल को अल अज़हर युनिवर्सिटी की अमली सक़ाफ़ती हालत के बेहतर बनाने की राह में मोवस्सर इक्दाम करार दिया।
फासिद और मग़रीब से वाबस्ता मिस्री हुकूमत ने इस लाएह की मुख़ालेफ़त की लेहाज़ा शैख़ मराग़ू ने ऐतेराज़ के तौर पर अल अज़हर युनिवर्सिटी की रियासत व ज़आमत से इस्तेफा दे दिया। मिस्र की हुकूमत ने आपका इस्तीफा कबूल करते हुए शैख़ मुहम्मद ज़वाहरी को अल अज़हर युनिवर्सिटी का नया रईस चुन लिया। उन्होंने अल अज़हर की ज़आमत व क़यादत संभालते ही दरबारी प्रोग्रामों को इजरा करना शुरु कर दिया लेकिन ज़िन्दा दिल उलमा की मुख़ालेफ़त से र बरु हुए। ज़वाहरी ने अपने को मुख़ालेफ़ीन के मौज मारते समन्दर के रुबरु देख कर उस मुख़ालेफ़त के अस्ली अवामील को माज़ूल कर दिया जिन में शैख़ शलतूत भी थे जिन्हें सन 1352 हिजरी में अपनी पोस्ट से बर्खास्त कर दिया गया।
आप माज़ूली के बाद बेकार नहीं बैठे रहे और अपने शागिर्द शैख़ अली अब्दुर्रज़्ज़ाक के साथ शरई मोहकमे की वकालत में और अख़बार की कालम नवीसी में मशगूल हो गये। आप अपने उसूली और बुनियादी मौकिफ़ से ज़र्रा बराबर पीछे नहीं हटे और अपने मक़ालों का अल अज़हर के अन्दर इस्लाहात की ज़रुरत पर ताकिद करते रहे।
अल अज़हर के ज़िम्मेदारों को बहुत जल्द ऐहसास हो गया कि बुज़ुर्ग असातिज़ा जैसे शलतूत के न होने से अल अज़हर युनिवर्सिटी की हैसियत पर हर्फ़ आ रहा है लेहाज़ा सन 1257 हिजरी मुताबिक सन् 1935 में दोबारा आप को अल अज़हर युनिवर्सिटी में तदरीस की दावत दी गई इस तरह आप उसी साल दुबारा अल अज़हर के शरीअत कॉलेज में पढ़ाने लगे।
इमाम ख़ुमैनी की बर्सी पर वरिष्ठ नेता का अति महत्वपूर्ण भाषण
इस्लामी क्रांति के महान नेता और इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी की २४वीं बरसी पर वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई के अति महत्वपूर्ण भाषण के कुछ भाग।
हम ईश्वर के आभारी हैं कि उसने हमें एक बार पुनः इस बात का अवसर दिया कि हम ऐसी तिथि पर इमाम खुमैनी को श्रद्धांजलि अर्पित करें और उनमें अपनी आस्था की घोषणा करें। यद्यपि इमाम खुमैनी सदैव हमारे राष्ट्र में जीवित हैं किंतु ४ जून की तिथि इमाम खुमैनी से ईरानी जनता की आस्था के प्रदर्शन का दिन है। इस वर्ष इसी तिथि के साथ इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम का शहादत दिवस तथा ५ जून के निर्णायक जन प्रदर्शनों की वर्षगांठ है। ५ जून की घटना अत्यन्त संवेदनशील समय में अत्यन्त संवेदनशील घटना है। मैं इस संदर्भ में संक्षेप में कुछ बातें कहना चाहूंगा उसके बाद अपने मुख्य विषय पर बात करूंगा।
५ जून १९६३ की घटना से यह सिद्ध हो गया कि जब जनता मैदान में उतर आती है, जब जनता किसी आंदोलन का समर्थन करती है तो वह आंदोलन जारी रहता है और उसे विजय प्राप्त होती है। ५ जून १९६३ की घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि जनता धर्मगुरुओं के साथ है। इमाम खुमैनी की गिरफ्तारी के साथ ही तेहरान और कुछ अन्य नगरों में इतना भारी विरोध हुआ कि सरकारी मशीनरी हरकत में आ गयी और जनता का बर्बरता के साथ दमन किया, असंख्य लोग, बहुत अधिक लोग, मारे गये, तेहरान की सड़कें, इस राष्ट्र के सपूतों के रक्त से लाल हो गयीं और ५ जून की घटना तानाशाह के क्रूर चेहरे को पूर्ण रूप से सामने ले आयी। किंतु १५ जून १९६३ की घटना में एक महत्वपूर्ण बिन्दु जो है और जिस पर हमारी जनता को ध्यान देना चाहिए वह यह है कि तेहरान और कुछ अन्य नगरों में क्रूरता से किये गये जनसंहार पर विश्व की तथाकथित मानवाधिकार संस्थाओं ने कोई आपत्ति नहीं की। जनता और धर्मगुरु मैदान में अकेले रह गये। इमाम खुमैनी जनता के साथ मैदान में अकेले रह गये किंतु वे वास्तविक अर्थ में एक ईश्वरीय मार्गदर्शक थे और इसी लिए उन्होंने इतिहास और लोगों के सामने अपने ठोस संकल्प का प्रदर्शन किया।
इमाम खुमैनी में तीन विश्वास थे जिनसे उन्हें संकल्प मिलता था, साहस मिलता था और प्रतिरोध की शक्ति मिलती थी। ईश्वर पर भरोसा, जनता पर विश्वास और स्वंय पर भरोसा। इस प्रकार के विश्वासों की झलक इमाम खुमैनी के सभी निर्णयों में सही अर्थों में दिखायी देती है। इमाम खुमैनी ने अपने ह्रदय से लोगों से बात की और जनता ने भी अपने पूरे अस्तित्व से उनकी बात का उत्तर दिया, मैदान में कूद पड़े और मर्दों की तरह डट गये और इस प्रकार से वह आंदोलन जिसे विश्व के किसी भी क्षेत्र में सहानुभूति नहीं मिल रही थी और जिसने न ही किसी के सामने सहायता के लिए हाथ फैलाया, धीरे धीरे सफलता की ओर बढ़ने लगा और अन्ततः सफल हो गया।
ईश्वर में विश्वास के मामले में इमाम खुमैनी कुरआने मजीद की उस आयत को यथार्थ करते हैं जिसमें कहा गया है कि और वह जिन से लोगों ने कहा कि लोग तुम्हारे विरुद्ध एकत्रित हो गये हैं इस लिए उनसे डरो तो इससे उनके विश्वास में वृद्धि हो गयी और उन्होंने कहा कि ईश्वर हमारे लिए पर्याप्त है और वह सब से अच्छा रक्षक है। इमाम खुमैनी को उस पर पूरा विश्वास था। इमाम खुमैनी को ईश्वर पर पूरा भरोसा था और ईश्वरीय वचन में विश्वास था इसी लिए उन्होंने ईश्वर के लिए अपना अभियान आरंभ किया, काम किया, बातें कीं और फैसले किये और उन्हें भली भांति ज्ञात था कि यदि तुम ईश्वर की सहायता करोगे तो ईश्वर तुम्हारी सहायता करेगा, ईश्वरीय वचन है और इसे हर हाल में पूरा होना है।
जनता में विश्वास के संदर्भ में, इमाम खुमैनी को इस अर्थ का सम्पूर्ण रूप से ज्ञान था। इमाम खुमैनी का मानना था कि यह राष्ट्र ऐसा राष्ट्र है जिसका ईमान गहरा और जिसकी बुद्धि तीव्र है तथा यह साहसी है इस लिए यदि इस राष्ट्र को योग्य नेता मिल जाएं तो यह राष्ट्र विभिन्न क्षेत्रों में सूर्य की भांति चमक सकता है, इमाम खुमैनी को इस पर विश्वास था। यह राष्ट्र अपने गौरवपूर्ण अभियान को दिल्ली से काला सागर तक ले जा सकता है, इस तथ्य को इमाम खुमैनी ने इतिहास में पढ़ा था, वे ईरानी राष्ट्र को पहचानते थे और उस पर उन्हें भरोसा था। इमाम खुमैनी की दृष्टि में जनता, प्रिय थी, और जनता के शत्रु अत्याधिक घृणित थे। यह जो आप देखते हैं कि इमाम खुमैनी, साम्राज्यवादी शक्तियों से मुक़ाबले में एक क्षण के लिए भी चुपचाप नहीं बैठते थे उसका मुख्य कारण यह था कि साम्राज्यवादी शक्तियां मानव कल्याण की शत्रु थीं और इमाम जनता के शत्रुओं से शत्रुता रखते थे।
आत्मविश्वास के संदर्भ में इमाम खुमैनी ने ईरानी जनता को " हम में क्षमता है " का मंत्र सिखाया किंतु इस से पूर्व कि ईरानी जनता को यह सिखाएं उन्होंने स्वंय अपने भीतर, हम में क्षमता है । वर्ष १९६३ में इमाम खुमैनी ने कुम में छात्रों के मध्य और हर प्रकार के अभावों से जूझते हुए, मुहम्मद रज़ा शाह को जो अमरीका और विदेशी शक्तियों के समर्थन के कारण निरंकुश होकर पूरे ईरान पर शासन कर रहा था, धमकी दी कि यदि तुम इसी प्रकार से आगे बढ़ते रहे और इसी मार्ग पर चलते रहे तो मैं ईरानी जनता से कह दूंगा कि तुम को ईरान से निकाल बाहर करे! यह कौन कहता है? कुम में रहने वाला एक धर्म गुरु, जिसके पास न हथियार है, न साधन हैं, न संसाधन हैं और न ही धन है और न ही अंतरराष्ट्रीय समर्थन, केवल ईश्वर के भरोसे , आत्म विश्वास के कारण ही इस मैदान में कदम जमाया जा सकता है। जब इमाम खुमैनी देश निकाले के बाद वापस आए तो इसी स्थान पर उन्होंने बख्तियार सरकार को धमकी दी और ऊंचे स्वर में यह घोषणा की कि मैं बख्तियार सरकार को तमांचा मारूंगा, मैं सरकार निर्धारित करूंगा। यह आत्मविश्वास था। इमाम खुमैनी को स्वंय पर, अपनी क्षमताओं पर विश्वास था। इमाम खुमैनी के कामों में, उनकी बातों में यही आत्मविश्वास, ईरानी राष्ट्र में पहुंचा। मेरे दोस्तो! १०० वर्षों तक हमारे ईरानी राष्ट्र को यह समझाया गया था कि तुम लोगों में क्षमता नहीं है, तुम लोग अपना देश नहीं चला सकते, तुम लोग सम्मान प्राप्त नहीं कर सकते, तुम लोग निर्माण नहीं कर सकते, तुम लोग ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ सकते, यह नहीं कर सकते वह नहीं कर सकते, और हमें भी इस पर विश्वास हो गया था।
अन्य राष्ट्रों पर वर्चस्व के लिए शत्रुओं का एक प्रभावशाली हथकंडा यही क्षमता का न होना है ताकि इस प्रकार से राष्ट्र निराश हों और यह समझने लगें कि हम में कुछ करने की क्षमता ही नहीं है। इस हथकंडे के कारण ईरानी राष्ट्र राजनीति, ज्ञान विज्ञान, अर्थ व्यवस्था जैसे सभी क्षेत्रों में १०० वर्ष पीछे हो गया। इमाम खुमैनी न परिस्थितियां बदल दीं, वर्चस्व के इस हथकंडे को महाशक्तियों के हाथ से छीन लिया और ईरानी राष्ट्र से कहा कि तुम में क्षमता है, हमें साहस प्रदान किया, ठोस फैसला करना सिखाया, हमारा आत्मविश्वास लौटाया और हम में यह भावना जगायी कि हम में क्षमता है, हम आगे बढ़े, काम किया, इसी लिए ईरानी राष्ट्र इन ३० वर्षों में सभी क्षेत्रों में विजयी रहा।
आंदोलन के आरंभ में भी ईश्वर पर भरोसा, जनता पर भरोसा और अपने आप पर भरोसा ही वह मुख्य तत्व था जिसने इमाम खुमैनी को शक्ति प्रदान की और उनके सारे फैसलों में यह तीन विश्वास प्रभावी और मुख्य तत्व रहे हैं। इमाम खुमैनी के जीवन के अंतिम क्षण तक किसी ने भी हमारे इमाम खुमैनी के अस्तित्व में अवसाद, निराशा, असमंजस, थकन या झुकने की भावना का कोई लक्षण नहीं देखा। वे बूढ़े हो रहे थे किंतु उनका ह्रदय जवान था, उनकी आत्मा जीवित थी। इसी लिए उन्होंने दूसरों पर निर्भर ईरान को, आत्मनिर्भर व स्वाधीन बना दिया।
अत्याचारी पहलवी शासन की पहले ब्रिटेन पर और बाद में अमरीका पर निर्भरता के बारे में बहुत से विषय हैं जिनसे हमारे युवाओं को अवगत होना चाहिए। इन शासकों की निर्भरता लज्जाजनक स्थिति तक पहुंच गयी थी। क्रांति की सफलता के बाद एक अमरीकी कूटनैतिक ने इस बारे में बताया और लिखा भी। उसने लिखा कि हम ईरान के नरेश को बताते थे कि आपको अमुक चीज़ की आवश्यकता है या अमुक वस्तु की आवश्यकता नहीं है! यह वही बताते थे कि ईरान को किससे संबंध स्थापित करना चाहिए और किस से संबंध तोड़ लेना चाहिए, तेल को कितनी मात्रा में निकालना चाहिए, इतनी मात्रा में बेचना चाहिए, किसे बेचना चाहिए , किसे नहीं बेचना चाहिए! देश अमरीकी नीतियों से, अमरीकी योजना से चल रहा था और उससे पूर्व बिट्रेन की नीतियों से चल रहा था। यह निर्भर देश एक स्वाधीन देश बना। इस देश पर भ्रष्ट, गद्दार, भौतिक व पाश्विक सुख भोग में व्यस्त शासक राज करते थे, उनके स्थान पर अब जनता के प्रतिनिधि आ गये, इन ३३-३४ वर्षों में जिन लोगों के हाथ में इस देश की सत्ता रही, वह सब जनता के प्रतिनिधि थे। क्रांति से पूर्व हम ने ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र में कोई कारनामा नहीं किया था। आज अन्य लोग हमारे बारे में बता रहे हैं, अंतरराष्ट्रीय संगठन ईरान के बारे में सूचना दे रहे हैं कि ईरान में वैज्ञानिक विकास, विश्व के औसत से ११ गुना अधिक है। यह कम है? वैज्ञानिक विकास का आंकलन करने वाली संस्थाओं का कहना है कि वर्ष २०१७ तक ईरान विश्व में विज्ञान के क्षेत्र में चौथे स्थान पर पहुंच जाएगा। यह साधारण बात है? जिस देश का विज्ञान का क्षेत्र में कोई कारनामा नहीं था आज इस चरण पर पहुंच गया है।
अतीत में हमारा ऐसा देश था कि यदि हम एक सड़क या राजमार्ग बनाना चाहते, कोई बांध या कारखाना बनाना चाहते तो हमें विदेशियों के सामने हाथ फैलाना पड़ता ताकि विदेशी इंजीनियर आएं और हमारे लिए बांध बनाएं, सड़क बनाए, कारखाने बनाएं किंतु आज इस देश के युवा, विदेशियों पर ध्यान दिये बिना, हज़ारों कारखाने, सैंकड़ों बांध पुल और सड़कें बना चुके हैं।
स्वास्थ्य व उपचार के क्षेत्र में ज़रा सी जटिलता रखने वाले आप्रेशन के लिए हमारे रोगी को, युरोप के अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ते थे वह भी यदि उसके पास पैसे होते और यदि न होते तो उसे मर जाना होता था। आज हमारे देश में अत्याधिक जटिल आप्रेशन होते हैं वह भी केवल तेहरान में नहीं बल्कि देश के सुदूर नगरों में भी। ईरानी राष्ट्र को इस क्षेत्र में विदेशियों की आवश्यकता नहीं है और ईरानी राष्ट्र इस अत्यंत महत्वपूर्ण क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो चुका है।
हम यह बातें इस लिए नहीं कर रहे हैं कि झूठा गौरव उत्पन्न हो जाए, खुश हों और यह कहें कि चलो धन्य है ईश्वर! हम सफल हो गये, सब खत्म हो गया, नहीं, हमारे सामने अभी लंबा रास्ता है। मैं आप से कह रहा हूं, यदि हम स्वंय की अत्याचारी शाही काल के ईरान से तुलना करें तो यह विशेषताएं नज़र आएंगी किंतु यदि हम वांछित इस्लामी देश ईरान से तुलना करें तो हमारे सामने अभी लंबा समय है। रोडमैप भी हमारे सामने है। हमारा रोडमैप क्या है? हमारा रोडमैप वही है इमाम खुमैनी के सिद्धान्त हैं, वही सिद्धान्त जिनके सहारे उन्होंने पीछे रह जाने वाले अपमानित राष्ट्र को इस गौरवशाली व विकसित राष्ट्र में बदल दिया। हमारे लिए इमाम खुमैनी का केवल नाम लेना ही पर्याप्त नहीं है हमें उनके सिद्धान्तों पर प्रतिबद्ध भी रहना चाहिए। इमाम खुमैनी अपने सिद्धान्तों के साथ ईरानी राष्ट्र के लिए अमर हैं।
घरेलू राजनीति में, इमाम खुमैनी का यह सिद्धान्त है कि जनता के मतों पर भरोसा किया जाए, राष्ट्र में एकता बनायी जाए, जनाधार बढ़ाया जाए, अधिकारियों में सुखभोग न पैदा होने पाए, अधिकारी, राष्ट्र के हितों पर ध्यान रखे। विदेश नीतियों में, इमाम खुमैनी का यह सिद्धान्त है कि वर्चस्ववादी व हस्तक्षेप करने वाली शक्तियों के सामने डट जाया जाए, मुसलमान राष्ट्रों से पर भाई चारे का संबंध स्थापित किया जाए, सभी देशों के साथ समानता के आधार संबंध स्थापित किया जाए, सिवाए उन देशों के जो ईरान के विरुद्ध शत्रुता करते हैं, ज़ायोनियों के विरुद्ध संघर्ष, फिलिस्तीन देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष, विश्व भर के पीड़ितों की सहायता, अत्याचारियों का मुकाबला। इमाम खुमैनी का वसीयत नामा हमारे सामने है।
संस्कृति के क्षेत्र में इमाम खुमैनी का सिद्धान्त यह है कि पश्चिम की निरंकुश संस्कृति को नकारा जाए, रूढ़िवाद को नकारा जाए, धर्म पराणता में दिखावे से बचा जाए, इस्लामी नैतिकता व शिक्षाओं की रक्षा तथा समाज में अश्लीलता व भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष किया जाए। अर्थ व्यवस्था में इमाम खुमैनी का सिद्धान्त, राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था पर भरोसा है। आत्म निर्भरता पर भरोसा है। उत्पादन व वितरण में आर्थिक न्याय है, अभावग्रस्त लोगों की रक्षा है। इमाम अत्याचारपूर्ण व्यवस्था के विरोधी थे।
और अब चुनाव के बारे में जो एक महत्वपूर्ण और वर्तमान समय का विषय है। वास्तव में चुनाव उन तीनों विश्वासों का प्रदर्शन है जो इमाम खुमैनी में था और जिसे हम में होना चाहिए। ईश्वर पर भरोसा, क्योंकि यह कर्तव्य है। यह हमारा कर्तव्य है कि हम अपने देश के भविष्य निर्धारण में हस्तक्षेप करें, राष्ट्र के हर सदस्य का यह कर्तव्य है। जनता में विश्वास का प्रदर्शन है क्योंकि चुनाव जनता के संकल्प का प्रतीक है यह जनता है जो देश के अधिकारियों का चयन करती है और आत्मविश्वास का प्रदर्शन है क्योंकि जो भी मतपेटी में अपना मत डालता है, यह समझता है कि उसने देश के भविष्य निर्धारण में अपनी भूमिका निभा दी, यह बहुत महत्वपूर्ण है। तो चुनाव ईश्वर में विश्वास, जनता में विश्वास और अपने ऊपर विश्वास का प्रदर्शन है।
चुनाव में मुख्य मुद्दा, राजनीतिक कारनामा अंजाम देना है कारनामे का क्या अर्थ होता है? कारनामा अर्थात वह गौरवशाली काम जिसे उत्साह के साथ किया जाए। आप ने इन ८ प्रत्याशियों में से जिसे भी वोट दिया वह आप का वोट इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के लिए मत समझा जाएगा क्योंकि मतदाता के रूप में या प्रत्याशी के रूप में जो भी इस मैदान में क़दम रखता है उसका अर्थ यह होता है कि वह इस व्यवस्था में विश्वास रखता है, चुनाव प्रक्रिया में विश्वास रखता है। देश से बाहर हमारे शत्रु, बेचारे यह सोच रहे हैं कि इस चुनाव को इस्लामी व्यवस्था के विरुद्ध एक चुनौती बना दें, जबकि चुनाव, इस्लामी व्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ा अवसर है। उन्हें आशा है चुनाव ठंडा रहेगा ताकि यह कह सकें कि जनता को इस्लामी व्यवस्था से रूचि नहीं है, या चुनाव के बाद हंगामें करें जैसा कि अत्याधिक उत्साह के साथ आयोजित होने वाले पिछले चुनाव के बाद उन्होंने किया था। जो लोग यह सोचते हैं कि इस देश में बहुसंख्यक इस्लामी व्यवस्था के विरोधी और मौन धारण किये हैं वह यह भूल गये हैं कि ३४ वर्षों से हर वर्ष क्रांति की सफलता की वर्षगांठ पर इस देश के सभी नगरों में विशाल जन समूह एकत्रित होता है और अमरीका मुर्दाबाद के नारे लगाते हैं। चुनाव से लोगों को निराश करने के लिए वे संचार माध्यमों में बैठ कर नित नयी बातें और दावे करते हैं कभी कहते हैं कि चुनाव पूर्व नियोजित है, कभी कहते हैं कि चुनाव स्वतंत्र नहीं है, कभी कहते हैं कि चुनाव जनता की नज़र में कानूनी नहीं हैं। वे न तो हमारी जनता को पहचानते हैं, न हमारे चुनाव के बारे में कुछ जानते हैं और न ही इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था के बारे में जानकारी रखते हैं और जो लोग रखते भी हैं वह भी अन्याय करते हैं और इसमें उन्हें संकोच भी नहीं होता।
विश्व के किस देश में विभिन्न प्रकार के प्रत्याशियों को प्रसिद्ध हस्तियों से लेकर अंजान लोगों तक को देश के और राष्ट्रीय संचार माध्यमों से समान रूप से लाभ उठाने का अवसर दिया जाता है? विश्व के किस देश में ऐसा होता है। अमरीका में है? पुंजीवादी देशों में है? चुनाव में भाग लेने के लिए केवल एक वस्तु है जो निर्णायक होती है और वह है कानून। इसी कानून के आधार पर कुछ लोग आ सकते हैं , कुछ लोग नहीं आ सकते। कानून ने शर्तें रखी हैं, योग्यता का निर्धारण किया है, किंतु विदेशों में बैठे शत्रु इन सब चीज़ों की अनदेखी करते हैं और जो मन में आता है बोलते हैं किंतु ईरानी राष्ट्र अपनी उपस्थिति द्वारा और अपने संकल्प द्वारा, इन सभी हथकंडों का उत्तर देगा और ईरानी राष्ट्र का उत्तर, करारा और ठोस होगा।
एक वाक्य सम्मानीय प्रत्याशियों से भी कहना चाहूंगा। प्रत्याशी इन कार्यक्रमों में, बड़ी अच्छी तरह, एक दूसरे की आलोचना करते हैं, यह उनका अधिकार है, जो चीज़ भी उन्हें लगे उस पर वह टिप्पणी और उसकी आलोचना कर सकते हैं किंतु उन्हें ध्यान रखना चाहिए कि आलोचना, देश के बेहतर भविष्य की रचना के उद्देश्य से की जानी चाहिए, दूसरे के अपमान तथा नकारात्मकता व अन्याय के लिए नहीं। इस बात पर ध्यान दें। मेरे दृष्टिगत कोई प्रत्याशी नहीं है। यह विदेशी संचार माध्यम कहते हैं कि मैं अमुक प्रत्याशी को चाहता हूं यह झूठ है, मेरे दृष्टिगत कोई नहीं है, मैं वास्तविकताएं बताता हूं। मैं अपने उन भाइयों से जो इस देश की जनता का विश्वास जीतना चाहते हैं यह कहना चाहूंगा कि सकारात्मक आलोचना करें आलोचना सरकार के कामों की अनदेखी के अर्थ में न हो चाहे यह सरकार चाहे उस से पहले वाली सरकारें। लंबे समय से विभिन्न सरकारें सत्ता में आयीं, हज़ारों परियोजनाएं पूरी की गयीं इस देश के विकास का मूल ढांचा तैयार किया गया इन सब को बताए, कमियां और गलतियां भी बताए। आज हमारे देश में जो भी सत्ता संभालेगा, उसे शून्य से आरंभ नहीं करना होगा। विज्ञान में प्रगति हुई है विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति हुई है उसे हाथ से नहीं जाने देना चाहिए केवल इस बहाने से आज महंगाई है, हम इन सब वास्तविकताओं का इन्कार नहीं कर सकते। निश्चित रूप से आर्थिक समस्याएं हैं, मंहगाई है। इशांल्लाह जो सत्ता संभालेगा वह इन समस्याओं का समाधान खोज लेगा, यह ईरानी राष्ट्र की इच्छा है किंतु इसका यह अर्थ नहीं होना चाहिए कि यदि हम वर्तमान समस्याओं के लिए कोई समाधान दृष्टि में रखते हैं तो उसके कारण आज तक जो भी हुआ है उसका इन्कार करें। उसके बाद जनता को असंभव वचन दें। मैं सभी प्रत्याशियों से कहता हूं इस प्रकार से बात करें कि यदि अगले वर्ष इसी समय उनकी बयान को कैसिट उनके सामने लगाया जाए तो वह लज्जित न हों, इस प्रकार के वचन दें कि यदि बाद में आप को आप के वचन याद दिलाए जांए तो वचन पूरे न होने का ज़िम्मेदार इनको उनको बनाना पड़े और यह कहना न पड़े कि इन लोगों ने ऐसा नहीं होने दिया। आप लोग जो काम कर सकते हों उसी का वचन दें।
हमारे देश में हमारे संविधान के अनुसार, राष्ट्रपति को अत्याधिक अधिकार प्राप्त होता है , हमारे देश में राष्ट्रपति के सामने यदि कोई सीमा है कोई अंकुश है तो वह केवल कानून का है। यह भी सीमा नहीं है, कानून मार्गदर्शक होता है, सीमा नहीं होता। कानून हमें यह बताता है कि मार्ग पर कैसे चलें। कुछ लोग इस गलत विचारधारा के कारण कि यदि हम शत्रुओं को विशिष्टता देंगें तो हम पर उनका आक्रोश कम हो जाएगा, व्यवहारिक रूप से उनके हितों को राष्ट्रीय हितों पर प्राथमिकता देते हैं। यह गलती है। उनका क्रोध इस लिए है कि आप उपस्थित हैं, इस लिए है कि इस्लामी गणतंत्र व्यवस्था है। इस लिए वे क्रोधित हैं कि इमाम खुमैनी, लोगों में और देश की योजनाओं में जीवित हैं।
यदि जनता शक्तिशाली होगी, समर्थ होगी, अपनी आवश्यकताओं को कम कर लेगी तो समस्याओं स्वंय ही समाप्त हो जाएंगी और यदि आज आर्थिक समस्या का समाधान खोज लिया जो मुख्य विषय है तो शत्रु ईरानी राष्ट्र के सामने निहत्था हो जाएगा। बहरहाल महत्वपूर्ण यह है कि संकल्प, ईश्वर पर भरोसा, जनता पर भरोसा, अपने आप पर भरोसा, चुनावी प्रत्याशियों के लिए, और जनता के लिए आवश्यक है। दस दिनों के बाद मेरे दोस्तो! मेरे भाइयो! एक बड़ी परीक्षा का दिन है और हमें आशा है कि इस बड़ी परीक्षा में ईश्वर इस राष्ट्र को बड़े अच्छे परिणाम देगा।
सीरिया में कोई भी सदस्य पकड़ा नहीं गयाः हिज़्बुल्लाह
प्रेस टीवी
लेबनान के जनप्रतिरोध आंदोलन हिज़्बुल्लाह ने उन रिपोर्टों का खंडन किया है जिनमें यह दावा किया गया था कि सीरिया में विदेश समर्थित आतंकवादियों ने हिज़्बुल्लाह के कुछ सदस्यों को पकड़ लिया है।
शनिवार को हिज़्बुल्लाह की ओर से जारी बयान में आया हैः सीरिया में प्रतिरोध आंदोलन का एक भी वीर नहीं पकड़ा गया है।
इस बयान में आया हैः हिज़्बुल्लाह, अरब और विदेशी मीडिया द्वारा बोले जा रहे झूठ की ओर से कड़ाई से सचेत करता है और अपनी पार्टी से संबंधित समाचार को शुद्ध रूप से फैलाने पर बल देता है।
ज्ञात रहे हिज़्बुल्लाह का यह बयान उन मीडिया रिपोर्टों पर प्रतिक्रिया स्वरूप आया है जिसमें यह दावा किया गया था कि सीरिया में तथाकथित फ़्री सीरियन आर्मी के मिलिटेंट्स ने दमिश्क़ में हिज़्बुल्लाह के अबुल फ़ज़्लिल अब्बास ब्रिगेड के कुछ सदस्य को पकड़ लिया है।
ज्ञात रहे इमाम सीरिया में विदेश समर्थित आतंकवादियों से हुसैन अलैहिस्सलाम की बहन हज़रत ज़ैनब के दमिश्क़ स्थित रौज़े की रक्षा के लिए अबुल फ़ज़्लिल अब्बास ब्रिगेड 2012 में तय्यार की गयी।
अमरीकी ड्रोन आक्रमण पर पाकिस्तान की कड़ी प्रतिक्रिया
शुक्रवार को अमेरिका की ओर से उत्तरी वज़ीरिस्तान पर किये गये ड्रोन हमले पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अमेरिकी प्रभारी राजदूत को तलब करके कड़ा विरोध किया है। पाकिस्तानी सूत्रों के अनुसार विरोधपत्र इस देश के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के निर्देश पर शनिवार की दोपहर भेजा गया। याद रहे कि शुक्रवार को उत्तरी वजीरिस्तान में किए गए अमेरिकी ड्रोन हमले में सात लोग मारे गए थे। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि अमेरिकी राजदूत को यह संदेश भेज दिया गया है कि पाकिस्तान अपनी सीमा में किए जाने वाले ड्रोन हमलों की निंदा करता है और यह कि यह हमले पाकिस्तान की संप्रभुता और सुरक्षा के विरूद्ध है। पाकिस्तान में नवाज़ शरीफ ने प्रधानमंत्री पद संभालने के बाद अपने पहले भाषण में अमरीका के ड्रोन आक्रमणों का विरोध किया था जिसके तत्काल बाद अमरीका ने पुनः पाकिस्तान में ड्रोन आक्रमण कर दिया। पाकिस्तानी विदेशमंत्रालय के बयान में अमेरिका से ड्रोन हमले तुरंत बंद करने की मांग भी की गई है। बयान में बताया गया है कि अमरीकी प्रभारी राजदूत को को प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के निर्देश पर शनिवार की शाम विदेशमंत्रालय में तलब किया गया। शुक्रवार को किया जाने वाला ड्रोन हमला नवाज़ शरीफ़ के बतौर प्रधानमंत्री शपथ लेने के बाद पहली ड्रोन हमला है
एकजुटता समय की महत्वपूर्ण ज़रूरत है
ईरान की इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने शुक्रवार की सुबह तेहरान में इस्लामी देशों के राजदूतों एवं ईरानी अधिकारियों को संबोधित करते हुए अपने मार्ग की पहचान और शत्रु की चालों के प्रति होशियारी को वर्तमान समय में मुस्लिम समुदाय की महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी क़रार दिया और कहा कि शत्रु की मूल साज़िश मुसलमानों में मतभेद उत्पन्न करना है, अतः इस्लामी जगत की महत्वपूर्ण आवश्यकता एकजुटता, सहयोग और समन्वय है।
वरिष्ठ नेता ने साम्राज्यवादी शक्तियों की ईश्वरीय दूतों विशेषकर पैग़म्बरे इस्लाम (स) से शत्रुता की ओर संकेत करते हुए कहा कि मार्क्सवाद एवं उदारवाद जैसे दर्शनों की नाकामी के बाद कि जो मानवता के कल्याण में विफल हो गए, आज निगाहें और हृदय इस्लाम की ओर हैं, इसलिए इस्लाम से शत्रुता ख़तरनाक क़दम है।
इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने उल्लेख किया कि पैग़म्बरे इस्लाम (स) का अपमान इस शत्रुता का एक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि विश्वास करने योग्य नहीं है कि इस्लामोफ़ोबिया और मुसलमानों के बीच फूट डालने की साज़िशें, विश्व की वर्चस्ववादी शक्तियों की सहायता के बग़ैर संभव हैं।
वरिष्ठ नेता ने इस बिंदु की ओर संकेत करते हुए कि पश्चिमी देश अतीत में साम्राज्यवाद द्वारा अपने हितों की आपूर्ति करते थे और आज मुसलमानों के बीच फूट डालकर अपने हित साधना चाहते हैं, कहा कि मानवाधिकार और लोकतंत्र समर्थन के नारे लगाकर पश्चिमी देश अपने दामन से साम्राज्यवाद के धब्बे मिटा नहीं सकते।
किसी भी प्रत्याशी को मत देना, इस्लामी व्यवस्ता को मत देना है
तेहरान की केन्द्रीय जुमा की नमाज़ के इमाम आयतुल्लाह अहमद ख़ातेमी ने कहा है कि पिछले चुनावों की भांति आगामी राष्ट्रपति चुनाव में भाग लेकर ईरानी जनता इस्लामी व्यवस्था के ख़िलाफ़ दुश्मन की साज़िशों पर पानी फेर देगी और ईरानी क्रांति के मित्रों एवं समर्थकों को प्रसन्न करेगी।
अहमद ख़ातेमी ने जुमे की नमाज़ के ख़ुतबो में उल्लेख किया कि राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशियों में से किसी भी एक को मत देना वास्तव में इस्लामी व्यवस्था को मत देना है।
आयतुल्लाह ख़ातेमी ने कहा कि राष्ट्र के दुश्मन एक विशेष प्रत्याशी को इस्लामी व्यवस्था का प्रतिनिधि क़रार देकर यह साज़िश रच रहे हैं कि अगर वह प्रत्याशी चुनाव जीत जाता है तो कह सकें कि ईरान में पहले से ही राष्ट्रपति चयनित हो जाता है और अगर वह चुनाव हार जाता है तो दावा कर सकें कि ईरान में इस्लामी व्यवस्था की लोकप्रियता कम हो गई है।
आयतुल्लाह ख़ातेमी ने यह उल्लेख करते हुए कि इस्लामी व्यवस्था ने किसी विशेष प्रत्याशी का समर्थन नहीं किया है कहा कि चुनाव के आयोजन के बाद अगर किसी उम्मीदवार को किसी भी प्रकार की कोई आपत्ति हो तो उसे न्याय प्रणाली द्वारा निर्धारित मार्ग अपनाना चाहिए।