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अब फ़्रेन्डली मैच होना चाहिए, नवाज़ शरीफ़
पाकिस्तान मुस्लिम लीग एन के प्रमुख और संभावित प्रधानमंत्री मियां नवाज़ शरीफ़ ने मंगलवा की शाम तहरीके इंसाफ़ पार्टी के नेता इमरान ख़ान से शौकत ख़ानम अस्पताल में मुलाक़ात की और उनके शीघ्र स्वस्थ हो जाने की दुआ की। नवाज़ शरीफ़ ने इमरान ख़ान को देखने के बाद पत्रकारों से बातचीत में कहा कि हमें देश को संकट से निकालने के लिए मिकर काम करना होगा। नवाज़ शरीफ़ ने कहा कि उन्होंने इमरान ख़ान से कहा है कि अब फ़्रेन्डली मैच होना चाहिए जिस पर इमरान ख़ान ने कहा कि हम अच्छी वर्किंग रिलेशनशिप रखेंगे।
दूसरी ओर पीपल्ज़ा पार्टी के चेयरमैन बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने कहा कि प्रतिकूल परिस्थितियों में हमने चुनाव लड़ा और अब हम सिनेट और राष्ट्रीय एसेंबली में विपक्ष की भरपूर भूमिका निभाएंगे। बिलावल हाउस कराची में राष्ट्रपति ज़रदारी की अध्यक्षता में पीपल्ज़ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बैठक हुई। बिलावल ने बैठक को वीडियो लिंक द्वारा संबोधित करते हुए कहा कि पीपल्ज़ पार्टी सहयोग और समझौते की नीति जारी रखेगी।
इसी बीच चुनावी अनियमितताओं की सूचनाओं के बीच अनेक क्षेत्रों में प्रदर्शन आरंभ हो गए हैं। बताया जाता है कि पाकिस्तान के 49 मतदान केंद्रों पर 100 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ है। इसकी वजह धांधली है। ऑबजर्बर ग्रुप फ्री ऐंड फेयर इलेक्शन नेटवर्क फाफेन के अनुसार पाकिस्तान के कुल 8,119 मतदान केंद्रों में से कम से कम 49 पर 100 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ। इस संगठन ने पाकिस्तान निर्वाचन आयोग से कहा है कि वह अंतिम नतीजों को घोषित करने से पहले सभी मतदान केंद्रों का ब्यौरा अपनी वेबसाइट पर पेश करे।
चुनावी गड़बड़ी की सूचनाओं पर कई राजनैतिक दलों ने चुनाव परिणामों को स्वीकार करने से इंकार करते हुए धरना और विरोध प्रदर्शन आरंभ कर दिया है।
माली में रक्तपात बंद होना चाहिये
ईरान के विदेशमंत्री ने अफ्रीक़ी देश माली में रक्तपात बंद किये जाने पर बल दिया है। अली अलबर सालेही ने कहा कि तेहरान सबसे पहले माली की राष्ट्रीय संप्रभुता की सुरक्षा पर बल देता है और उसका मानना है कि संबंधित पक्षों के मध्य वार्ता से माली संकट का समाधान किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ईरान ने गुट निर्पेक्ष आंदोलन के सदस्य देश के रूप में सुझाव दिया है कि इस आंदोलन की राजनीतिक और नैतिक संभावनों का प्रयोग माली संकट के समाधान के लिए किया जाना चाहिये। ईरान के विदेशमंत्री ने इसी प्रकार ओआईसी के महासचिव अकमलुद्दीन एहसान ओग़लू के साथ भेंट में भी क्षेत्र के परिवर्तनों की ओर संकेत के साथ क्षेत्रीय देशों के विकास पर बल दिया। ईरान के विदेशमंत्री ने इसी तरह अपने मिस्री समकक्ष मोहम्मद कामिल अम्र के साथ भेंट में भी द्वपक्षीय संबंधों और सीरिया तथा माली संकट के बारे में विचारों का आदान प्रदान किया।
नवाज शरीफ के शपथ ग्रहण में जा सकते हैं मनमोहन
भारत के प्रधानमंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह के न्यौते के एक दिन बाद ही पाकिस्तान के भावी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने भी उन्हें अपने शपथ ग्रहण समारोह में आने का निमंत्रण दिया है। नवाज शरीफ ने सोमवार को पत्रकारों से कहा कि वे भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को अपने शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित करेंगे। गौरतलब है कि नवाज शरीफ ने चुनाव जीतने के बाद ही भारत से संबंध सुधारने के संकेत दिए थे। मनमोहन सिंह को निमंत्रण देने के पीछे उनकी इसी मंशा को देखा जा रहा है। इससे पहले नवाज शरीफ के तीसरी बार प्रधानमंत्री पद पर ताजपोशी के लिए मुबारकबाद देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें भारत आने का न्यौता दिया था। नवाज शरीफ को लिखे पत्र में मनमोहन सिंह ने कहा कि मैं दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने के लिए आप और आपकी सरकार के साथ काम करने को तत्पर हूं। मैं आपको निमंत्रण भी देता हूं कि आप अपनी सुविधानुसार भारत दौरे पर आएं” दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी भाजपा ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नवाज शरीफ को दिए गए निमंत्रण को जल्दबाजी कहा है। भाजपा उपाध्यक्ष बलबीर पुंज ने कहा कि पाकिस्तान के भावी प्रधानमंत्री को शुभकामनाएं देना तो ठीक है लेकिन जब तक पड़ोसी देश के रुख में कोई सकारात्मक परिवर्तन नहीं दिखाई नहीं देता तब तक उन्हें भारत आने का निमंत्रण देना जल्दबाजी होगी। रविवार को भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावड़ेकर ने कहा था कि हमें खुशी है कि पाकिस्तान में लोकतंत्र के पक्ष में मतदान हुआ है और पाकिस्तान में लोकतंत्र द्वारा ही दोनों देशों के बीच संबंध सुधर सकते हैं।
शरीफ़ को बधाई के साथ भारत आने का न्योता
12 मई 2013 को लाहौर में अपने घर के बाहर पार्टी कार्यकर्ताओं से हाथ मिलाते नवाज़ शरीफ
पी टी आई
भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने रविवार को नवाज़ शरीफ़ को पाकिस्तान में हुए आम चुनाव में उनकी जीत पर बधाई देने के साथ ही उन्हें परस्पर सुविधाजनक तारीख़ पर भारत आने का न्योता भी दिया। इस जीत से नवाज़ शरीफ़ तीसरी बार पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनेंगे।
असामान्य रूप से त्वरित प्रतिक्रिया में, जबकि पाकिस्तान में मतगणना चल ही रही थी, भारतीय प्रधान मंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने भारत पाकिस्तान संबंध की नयी दिशा तय करने के लिए उनके साथ काम करने की भारत की इच्छा भी जतायी।
प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से यहां जारी बयान में कहा गया है,प्रधानमंत्री ने शरीफ़ और उनकी पार्टी पीएमएल—एन को पाकिस्तान के चुनाव में शानदार जीत के लिए बधाई दी है।
डाक्टर सिंह ने नवाज़ शरीफ़ को परस्पर सुविधाजनक तारीख़ पर भारत आने का न्योता दिया। चुनाव प्रचार के दौरान शरीफ़ ने यथाशीघ्र भारत की यात्रा करने की इच्छा जतायी थी। उन्होंने 1999 में भारत पाकिस्तान शांति प्रकिया जहां छोड़ी थी, वहां से फिर से उसे शुरू करने का भी उन्होंने निश्चय किया। वर्ष 1999 में जब शांति प्रक्रिया चल रही थी तब उन्हें तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने रक्तहीन तख़्तापलट में सत्ता से अपदस्थ कर दिया था।
सिंह ने पाकिस्तान के लोगों एवं राजनीतिक दलों को भी हिंसा की धमकी को धता बताकर बड़ी संख्या में मतदान करने के लिए बधाई दी। कल लाखों पाकिस्तानियों ने ऐतिहासिक आम चुनाव में मतदान करने के लिए तालिबानी धमकी और हिंसा केा धता बता दिया जिसके बाद पीएमएल—एन सत्ता में लौटी है। पाकिस्तान के 66 साल के इतिहास में पहली बार एक असैन्य सरकार से असैन्य नागरिक सरकार के पास सत्ता जाएगी। कल हिंसा में करीब 50 लोगों की जान चली गयी।
दूसरी ओर भारतीय विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने आशा जतायी कि भारत शरीफ के नेतत्व वाले पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध जारी रखेगा। शरीफ 1990—1993 तथा 1997—1999 तक प्रधानमंत्री रहे लेकिन अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। एक बार उन्हें भ्रष्टाचार के आरोपों में सत्ताच्युत होना
पाकिस्तान के चुनाव में नवाज़ की पार्टी की जीत तय
पाकिस्तान में संपन्न हुए संसदीय चुनाव के परिणामों और रुझानों के अनुसार मुस्लिम लीग नवाज़ गुट की जीत लगभग तय है।
पाकिस्तान के आम चुनावों में पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज़ (पीएमएल-एन) को बढ़त मिलने के बाद इसके प्रमुख नवाज़ शरीफ़ का तीसरी बार देश का प्रधानमंत्री बनना तय माना जा रहा है। नेशनल असेंबली की 272 सीटों में से जिन 250 सीटों के रुझान मिल रहे हैं उनके मुताबिक, पीएमएल-एन को 110 से ज्यादा सीटें मिल सकती हैं जबकि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी और इमरान ख़ान की तहरीके इंसाफ़ पार्टी लगभग 35 सीटों पर आगे चल रही है। लाहौर स्थित अपने आवास पर अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए नवाज़ शरीफ ने पीएमएल-एन की जीत की घोषणा की कहा कि अंतिम परिणाम उनकी पार्टी के लिए स्पष्ट बहुमत लेकर आएंगे ताकि उन्हें एक कमज़ोर गठबंधन की अगुवाई न करनी पड़े। पाकिस्तान के 66 वर्ष के इतिहास में पहली बार लोकतांत्रिक तरीक़े से सत्ता परिवर्तन हो रहा है। शनिवार को हुए मतदान के दौरान हुई हिंसा की विभिन्न घटनाओं में कम से कम 24 लोग मारे गए। मतदान समाप्ति के लिए पूर्वनिर्धारित समय शाम पांच बजे के बाद भी मतदान केन्द्रों पर लगी लंबी लाइनों को देखते हुए पाकिस्तान चुनाव आयोग ने मतदान के समय को एक घंटा बढ़ा दिया। देश के सबसे बड़े शहर कराची, ख़ैबर पख़तूनख़ाह और बलोचिस्तान प्रांतों में हुए कई बम विस्फोटों और हमलों के बावजूद बड़ी संख्या में लोगों ने मतदान किया। पाकिस्तान के मुख्य चुनाव आयुक्त एफ़.जी. इब्राहीम ने बताया कि मतदान में लगभग साठ प्रतिशत लोगों ने भाग लिया कि जो अभूतपूर्व है।
इल्मे तजवीद और उसकी अहमियत
तजवीद के मअना बेहतर और ख़ूबसूरत बनाना है।
तजवीद उस इल्म का नाम है जिससे क़ुरआने मजीद के अलफ़ाज़ व हुरूफ़ की बेहतर से बेहतर अदाएगी और आयात व कलेमात पर वक़्फ़ के हालात मालूम होते हैं।
इस इल्म की सबसे ज़्यादा अहमियत यह है कि दुनिया की हर ज़बान अपनी ख़ुसूसीयात में एक ख़ुसूसीयत यह भी रखती है कि उसका तर्ज़े अदा, लहज- ए- बयान दूसरी ज़बानों से मुख़्तलिफ़ होता है और यही लहजा उस ज़बान की शीरीनी, चाशनी और उसकी लताफ़त का पता देता है। जब तक लहजा व अंदाज़ बाक़ी रहता है, ज़बान दिलचस्प व शीरीन मालूम होती है। जब वह लहज-ए- अदा बदल जाता है, तो ज़बान का हुस्न ख़त्म हो जाता है। ज़रूरत है कि किसी ज़बान को सीखते वक़्त और उसमें बातचीत करते वक़्त इस बात का लिहाज़ रखा जाये कि उसके अलफ़ाज़ उस शान से अदा हों जिस अंदाज़ से अहले ज़बान अदा करते हैं।और जहाँ तक मुमकिन हो उस लहजे को बाक़ी रखा जाये जो अहले ज़बान का लहजा है इस लिए तजवीद के बग़ैर ज़बान तो वही रहेगी मगर अहले ज़बान इसे ज़बान की बर्बादी ही कहेंगें।
अरबी ज़बान में भी अलफ़ाज़ व हुरूफ़ के अलावा तलफ़्फ़ुज़ व अदा को बेहद दख़ल है और ज़बान की लताफ़त का ज़्यादा हिस्सा इसी एक बात से वाबस्ता है। इसके सीखने वाले का फ़र्ज़ है कि उन तमाम आदाब पर नज़र रखे जो अहले ज़बान ने अपनी ज़बान के लिए मुक़र्रर किये हैं और उनके बग़ैर तकल्लुम करके दूसरे की ज़बान का सत्यानास न करे।
इल्मे तजवीद के कुछ ख़ास कवाइद व ऊसूल हम यहाँ पर बयान कर रहे हैं:
हुरूफ़
चूँकि इल्मे तजवीद में क़ुरआने मजीद के हुऱूफ़ से बहस होती है, इस लिए इनका जानना ज़रूरी है।
अरबी ज़बान में हुरूफ़े तहज्जी की तादाद 29 है।
ا अलिफ़, ب बा, ت ता, ث सा, ج जीम, ح हा, خ ख़ा, د दाल, ذ ज़ाल, ر रा, ز ज़ा, س सीन, ش शीन, ص साद, ض ज़ाद, ط तोए, ظ ज़ोए, ع ऐन, غ ग़ैन, ف फ़ा, ق क़ाफ़, ك काफ़, ل लाम, م मीम, ن नून,و वाव, ه हा, ء हम्ज़ा, ى या
यह हरूफ़ अपने तर्ज़े अदा के एतेबार से मुख़तलिफ़ क़िस्म के हैं। इन अक़साम के सिलसिले में बहस करने से पहले उन मक़ामात का पता लगाना ज़रूरी है, जहाँ से यह हरूफ़ अदा होते हैं और ज़िन्हें इल्मे तजवीद में मख़रज कहा जाता है।
हरूफ़ के मखारिज
तजवीद के आलिमों ने 29 हरूफ़े तहज्जी के लिए जो मख़ारिज बयान किये हैं, उनकी तादाद सत्ताइस है। जिन्हें पाँच मक़ामात से अदा किया जाता है।
1) दहन
2) हल्क़
3) ज़बान
4) होंट
5) नाक
दहन
दहन से सिर्फ़ तीन हरूफ़ ا و ى अदा होते हैं। इस शर्त के साथ कि यह साकिन हों।
हल्क़
हल्क़ के तीन हिस्से हैं,
इब्तदाई हिस्सा—इससे غ और خ अदा होते है।
दरमियानी हिस्सा---इससे ح और ع अदा होते है।
आख़िरी हिस्सा---इससे ه और ء अदा होते है।
ज़बान
हरूफ़ की अदायगी के लिहाज़ से इसके दस हिस्से हैं।
आख़िरे ज़बान और इसके मुक़ाबिल तालू का हिस्सा, इससे ق की आवाज़ पैदा होती है।
क़ाफ़ के मखरज से ज़रा आगे का हिस्सा और उसके मुक़ाबिल का तालू, इनके मिलाने से ك की आवाज़ पैदा होती है।
ज़बान व तालू का दरमियानी हिस्सा, इनसे ج ، ش और ى की आवाज़ पैदा होती है।
ज़बान का किनारा और उसके मुक़ाबिल दाहिनी या बाई जानिब की दाढ़े मिलाने से ض की आवाज़ पैदा होती है।
ज़बान की नोक और तालू का इब्तदाई हिस्सा, इनके मिलाने से ل की आवाज़ पैदा होती है।
ज़बान का किनारा और लाम के मख़रज से ज़रा नीचे का हिस्सा, इससे ن की आवाज़ पैदा होती है।
ज़बान की नोक का निचला हिस्सा और तालू का इब्तदाई हिस्सा, इनके मिलाने से ر की आवाज़ पैदा होती है।
ज़बान की नोक और अगले ऊपरी दाँतों की जड़, ज़बान को ऊपर की जानिब उठाते हुए इस तरह ज़रा ज़रा के फ़र्क़ से ط، د، ت अदा होते है।
ज़बान की नोक और अगले ऊपरी और निचले दाँतों के किनारों से ز، س، ص की आवाज़ पैदा होती है।
ज़बान की नोक और अगले ऊपरी दोनों दाँतों का किनारा, इनके मिलाने से ث، ذ، ظ की आवाज़ पैदा होती है।
होंट
हुरूफ़ को अदा करने के लिहाज़ से इसकी दो क़िस्में हैं।
1. निचले होंट का अन्दरूनी हिस्सा और अगले ऊपरी दाँतों का किनारा इनके मिलाने से ف की आवाज़ पैदा होती है।
2. दोनों होंटों के दरमियान का हिस्सा, यहां से ب، م، و की आवाज़ निकलती है। बस इतना फ़र्क़ है कि و की आवाज़ होंटों को सिकोड़ कर निकलती है और ب व م की आवाज़ होंटों को मिलाने से अदा होती है।
नाक
ग़ुन्ने वाले हरूफ़ नाक से अदा होते हैं। जो सिर्फ़ नूने साकिन और तनवीन है। शर्त यह है कि उनका ग़ुन्ने के साथ इदग़ाम किया जाये और इख़फ़ा मक़सूद हो। नून और मीमे मुशद्दद का भी इन्हीं हुरूफ़ में शुमार होता है।
हुरूफ़ की किस्में
हुरूफ़े तहज्जी की, अदा करने के अंदाज़, अहकाम और कैफ़ियात के एतेबार से मुख़्तलिफ़ क़िस्में हैं:
1.हुरूफ़े मद्:
و، ى और ا इन हुरूफ़ को हुरूफ़े मद् उस वक़्त कहा जाता है जब वाव से पहले पेश, अलिफ़ से पहले ज़बर और या से पहले ज़ेर हो और इसके बाद हमज़ा या कोई साकिन हर्फ़ हो जैसे: سबाद के हमज़े या साकिन हर्फ़ को सबब कहते हैं और मद् के माअना आवाज़ के ख़ींचने के हैं।
2.हुरूफ़े लीन:
अगर वाव और या से पहले ज़बर हो तो इन दोनो को हुरूफ़े लीन कहते हैं। लीन के माअना नर्मी है। और इन हालात में यह दोनो हुऱूफ़, मद् को आसानी से कुबूल कर लेते हैं। जैसे:خَوْفْ طَيْرْ अगर हरफ़े लीन के बाद कोई हर्फ़ साकिन भी हो तो उस हर्फ़ पर मद् लगाना ज़रूरी है।जैसे:................ मसलन कलमा ए ऐन कि इसमें या हर्फ़े लीन है और इसके बाद नून साकिन है इस बिना पर ऐन की या को मद् के साथ पढ़ना ज़रूरी है।
3.हुरूफ़े शम्सी:
यह वह हुरूफ़ हैं कि जिनसे पहले अगर अलिफ़ लाम आ जाए तो मिलाकर पढ़ने में साक़ित हो जाता है, जैसे:ت‘ث‘د‘ذ‘ر‘ز‘س‘ش‘ ص‘ ض‘ ط‘ ظ‘ل‘ ن‘ इनका लाम साक़ित हो जाता है जैसेوَالطُوْرِ‘ وَالشَّمْسِ‘ وَالتّيْنِ‘
4.हुरूफ़े क़मरी:
यह वह हुरूफ़ है कि जिनके पहले अलिफ़ लाम आ जाए तो मिलाने पर भी लाम पढ़ा जाता है मगर अलिफ़ नही पढ़ा जाता। जैसे: ا‘ ب‘ ج‘ ح‘ خ‘ ع‘ غ‘ ف‘ ق‘ ك‘ م‘ و‘ ه‘ يकि इनको मिलाकर पढ़ने में लाम साक़ित नही होता।जैसे।وَالقَمَرِ‘ وَالكاظمْينَ‘ وَالمُجَاهِدِينَ‘ وَالْخَيلِ‘ وَالَْليلِ
हुरूफ़ के कैफ़ियात व सिफ़ात
जिस तरह हुरूफ़ मुख़्तलिफ़ मखारिज से अदा होते हैं इसी तरह हुरूफ़ की मुख़्तलिफ़ सिफ़ते भी होती हैं। जैसे: इस्तेलाअ, जहर, क़लक़ला वग़ैरह। कभी मख़रज और सिफ़त में इत्तेहाद होता है जैसे: حऔर ع और कभी मख़रज एक होता है मगर सिफ़त अलग होती है जैसे: أ और ه।
1. हुरूफ़े क़लक़लह:
जीम और दाल इन हुरूफ़ की ख़ासीयत यह है कि अगर यह हुरूफ़ कलमें के आख़िर या दरमियान में हों और साकिन हों तो इन्हे इतने ज़ोर से अदा करना चाहिये कि मुतहर्रिक मालूम हों।जैसे:يَدخُلْونَ‘ لم يلد‘
2.हुरूफ़े इस्तेलाअ:
यह सात हुरूफ़ हैं ص‘ض‘ط‘ ظ‘غ‘ق‘خ‘ इन हुरूफ़ को हुरूफ़े इस्तेलाअ इसलिए कहा जाता है कि इनकी अदाएगी के लिए ज़बान को उठाना पड़ता है। जैसेخَطْ‘ يَخِصِمُون।
3.हुरूफ़ यरमलून:
यह छ: हुरूफ़ हैंي‘ر‘م‘ل‘و‘ن इन हुरूफ़ की ख़ासीयत यह है कि अगर इनसे पहले तनवीन या नूने साकिन हो तो उसे तक़रीबन साक़ित कर दिया जायेगा और बाद के हर्फ़ को मुशद्दद पढ़ा जायेगा। जैसेُمحَمَّدٌ رَسُوْ لُ الله‘ مُحَمّدٍ وَّ آلِ محمد
4.हुरूफ़े हल्क़:
यह छ: हुरूफ़ हैं, हे, ख़े, ऐन, ग़ैंन, हा और हमज़ा। इनको हल्क़ से अदा किया जाता है। इनसे पहले आने वाला साकिन नून वाज़ेह तौर पर पढ़ा जायेगा।
हुरूफ़ को अदा करने की कैफ़ियतें
हुरूफ़े तहज्जी की अदाएगी के एतेबार से चार क़िस्में हैं:
इदग़ाम
इज़हार
क़ल्ब
इख़्फ़ा
1- इदग़ाम:
इसके माअना साकिन हर्फ़ को बाद वाले मुतहर्रिक हर्फ़ से मिलाकर एक कर देना और बाद वाले मुतहर्रिक हर्फ़ की आवाज़ से तलफ़्फ़ुज़ करना है।
इदग़ाम की चार किस्में हैं:
1- इदग़ामे यरमलून
2- इदग़ामे मिसलैन
3- इदग़ामें मुताक़ारेबैन
3- इदग़ामे मुताजानेसैन
इदग़ामे यरमलून:
अगर किसी मक़ाम पर हुरुफ़े यरमलून में से कोई हर्फ़ और उससे पहले साकिन नून या तनवीन हो तो इस नून को साक़ित करके हर्फ़े यरमलून को मुशद्दद कर देंगें और इस तरह हर्फ़े यरमलून में ن का इदग़ाम हो जायेगा।जैसे اَشْهَدُ اَنْ لا اِله الا الله
इस इदग़ाम में भी दो सूरतें हैं: इदग़ामे ग़ुन्ना और इदग़ामे बिला ग़ुन्ना।
इदग़ामे ग़ुन्ना:
इसका तरीक़ा यह है कि हुरूफ़ को मिलाते वक़्त नून की हल्की आवाज़ बाक़ी रह जाये जैसा कि यरमलून के, ي‘ ر‘ مमें होता है जैसेعليٌّ وَّ َلِيُّ الله
इदग़ामे बिला ग़ुन्ना:
इसमें नून बिलकुल ख़त्म हो जाता है जैसा कि रा और लाम में होता है। जैसेَلمْ يَكٌنْ َلهْ
यरमलून में इदग़ाम की शर्त यह है कि नूने साकिन और हर्फ़े यरमलून एक ही लफ़्ज़ जुज़ न हो बल्कि दो अलग अलग लफ़्ज़ों में पाये जाते हों, वर्ना इदग़ाम जाएज़ न होगा। जैसा कि लफ़्ज़े ُد نْيَا. है कि इसमें या से पहले नूने साकिन मौजूद है लेकिन इदग़ाम नही होता।
इदग़ामे मिसलैन:
अगर दो हरफ़ एक तरह के जमा हो जायें और पहला साकिन व दूसरी मुतहर्रिक हो तो पहले को दूसरे में इदग़ाम कर देगें जैसे مِنْ نّاصرينَ लेकिन इस इदग़ाम की शर्त यह है कि पहला हर्फ़, हर्फ़े मद् न हो वर्ना इदग़ाम जाएज़ न होगा जैसेفِيْ يُوْسُفَ में इदग़ाम नही हुआ है हालाँकि في की ياसाकिन है और يوسف की يا मुतहर्रिक इसलिए कि ياहर्फ़े मद् है।
इदग़ामे मुताक़ारेबैन:
मुताक़ारेबैन उन दो हर्फ़ों का नाम है जो मख़रज और सिफ़त के एतेबार से क़रीब हों। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि बहुत से हुरूफ़ आपस में एक ही जैसे मखरज से अदा होते हैं और इन्हे क़रीबुल मख़रज कहा जाता है जैसे ‘ اَلَمْ نَخْلُقْ كُّمْ‘ قُلْ رَّ بِّ
इदगामें मुताजानेसैन:
एक जिन्स के दो ऐसे हर्फ़ जमा हो जायें जिनका मख़रज एक हो लेकिन सिफ़तें अलह अलग हों और इनमें से पहला साकिन और दूसरा मुतहर्रिक हो तो पहले को दूसरे में इदग़ाम कर दिया जायेगा जैसे
د‘ط‘ ت- قَدْ تَّبَيَّنَ – قالَتْ طّاْ’ئفة- بسطْتَّ-
ظ‘ذ‘ث- اذ ظّلموا‘ يلهثْ ذَّالك
ب‘م- اركبْ مَّعنا
د‘ج- قدْ جَّائكم
2- इज़हार:
अगर साकिन नून या तनवीन के बाद हुरुफ़े हल्क़ या हुरूफ़े यरमलून में से कोई हर्फ़ हो तो, इस नून को बाक़ायदा ज़ाहिर किया जायेगा जैसेمنْ غيْره- اَنْهار- دُنْيا- قِنُوانٌ
3- क़ल्ब:
अगर साकिन ن या तनवीन के बाद با आ जाए तो नून मीम से बदल जायेगा और इसे ग़ुन्ना से अदा किया जायेगा जैसे انبياءْ يَنْبُوْعاًयहाँ पर नून तलफ़्फ़ुज़ में मीम ही पढ़ा जाता है और जैसे َرحِيم ٌ بِكُم कि यहाँ तनवीन का नून भी तलफ़्फ़ुज़ में मीम पढ़ा जायेगा।
4- इख़फ़ा:
हुरूफ़े यरमलून, हुरूफ़े हल्क़ और बा के अलावा बाक़ी 15 हर्फ़ो से पहले साकिन नून या तनवीन हो तो इस नून को आहिस्ता अदा किया जायेगा जैसे اِنْ كانَ‘ اِنْ شاءً‘ صفّاً صفّاً‘ انداداً
तफ़ख़ीम व तरक़ीक़
तफ़ख़ीम के मअना हैं हर्फ़ को मोटा बनाकर अदा करना।
तरक़ीक़ के मअना हैं हर्फ़ को हल्का बनाकर अदा करना।
ऐसा सिर्फ़ दो हुरूफ़ में होता है ل और ر में।
रा में तफ़ख़ीम की चंद सूरतें:
• ر पर ज़बर हो जैसे:َرحمن
• ر पर पेश हो जैसे.نصرُ الله
• ر साकिन हो लेकिन उससे पहले हर्फ़ पर ज़बर हो जैसे وَ انْحَر
• ر साकिन हो लेकिन उससे पहले हर्फ़ पर पेश हो जैसे.كُرْهاً
• ر साकिन हो और उससे पहले हर्फ़ पर ज़ेर हो जैसे लेकिन उसके बाद हुरूफ़े इस्तेला(ص،ض، ط، ظ، غ، ق، خ) में से कोई एक हर्फ़ जैसे.مِْرصَاداً
• ر साकिन हो और उससे पहले कसरा ए आरिज़ हो जैसे.اِرْجِعِي.
ر में तरक़ीक़ की चंद सूरतें:
• ر साकिन हो और उससे पहले हर्फ़ पर ज़ेर हो जैसे.اِصْبِر.
• ر साकिन हो और उससे पहले कोई हर्फ़े लीन हो जैसे.خَيْرْ ، طَوْرْ
ل में तफ़ख़ीम की कुछ सूरतें:
• ل से पहले हुरूफ़े इस्तेला में से कोई हर्फ़ वाक़ेअ हो जैसे.مَطْلَعِ الْفَجْرِ
• ل लफ़्ज़े अल्लाह में हो और उससे पहले ज़बर हो जैसे.قَالَ الله
• ل लफ़्ज़े अल्लाह में हो और उससे पहले पेश हो जैसे.عَبْدُ اللهِ
ل में तरक़ीक़ की सूरतें:
• ل से पहले हुरूफ़े इस्तेला में से कोई हर्फ़ न हो जैसे.كَلِم
• ل से पहले ज़ेर हो जैसे بِسْمِ الله
वक़्फ़ व वस्ल
किसी इबारत के पढ़ने में इंसान को कभी ठहरना पड़ता है और कभी मिलाना पड़ता है। ठहरने का नाम वक़्फ़ है और मिलाने का नाम वस्ल है।
वक़्फ़:
के मुख़तलिफ़ असबाब होते हैं। कभी यह वक़्फ़ मअने के तमाम हो जाने की बेना पर होता है और कभी साँस के टूट जाने की वजह से, दोनो सूरतों में जिस लफ़्ज़ पर वक़्फ़ किया जाये उसका साकिन कर देना ज़रूरी है।
वस्ल:
के लिये आख़री हर्फ़ का मुतहर्रिक होना ज़रूरी है ताकि अगले लफ़्ज़ से मिलाकर पढ़ने में आसानी हो, वर्ना ऐसी सूरत पैदा हो जायेगी जो न वक़्फ़ क़रार पायेगा न वस्ल।
वक़्फ़ की मुख़्तलिफ़ सूरतें
हर्फ़े ت पर वक़्फ़ : इस सूरत में अगर इस तरह ت खैंच कर लिख़ी गयी है तो उसे ت ही पढ़ा जायेगा जैसे صلوات. और अगर इस तरह गोल ةलिखी गयी है तो हालत वक़्फ़ में ه हो जायेगी जैसे. صلوةٌहालते वक़्फ़ में صلوه हो जायेगी।
तनवीन पर वक़्फ़:
इस सूरत में अगर तनवीन दो ज़ेर और दो पेश से हो तो हर्फ़ साकिन हो जायेगा। और अगर दो ज़बर हों तो तनवीन के बदले अलिफ़ पढ़ा जायेगा मिसाल के तौर पर نُوْرٌ और نُوْرٍ को نُوْرْ पढ़ा जायेगा और نُوْراً को نُوْرا पढ़ा जायेगा।
वक़्फ़ व वस्ल की ग़लत सूरतें:
वाज़ेह हो गया कि वक़्फ़ व वस्ल के क़ानून के एतेबार से हरकत को बाक़ी रखते हुए वक़्फ़ करना और सुकून को बाक़ी रखते हुए वस्ल करना सही नही है।
वक़्फ़ बेहरकत:
इसकी मतलब यह है कि वक़्फ़ किया जाये और आख़िरी हर्फ़ को मुतहर्रिक पढ़ा जाये जैसे اياك نعبد مالك يوم الدينِ
वस्ल बेसकून
इसके मअने यह है कि एक लफ़्ज़ को दूसरे लफ़्ज़ से मिलाकर पढ़ा जाये लेकिन पहले लफ़्ज़ के आख़री हर्फ़ को साकिन रखा जाये जैसे. مالك يوم الديْنْको एक साथ साँस में पढ़ कर रहीम की मीम को साकिन पढ़ा जाये।
वक़्फ़ के बाद ?
किसी लफ़्ज़ पर ठहरने के लिये यह बहरहाल ज़रूरी है कि उसे साकिन किया जाये लेकिन उसके बाद उसकी चंद सूरतें हो सकती हैं:
हुरूफ़ को साकिन कर दिया जाये इसे इसकान कहते हैं। जैसे:اَحَدْ
साकिन करने के बाद पेश की तरह अदा किया जाये उसे इशमाम कहा जाता है। जैसे نستعِيْنْ
साकिन करने के बाद ज़रा सा ज़ेर का अंदाज़ पैदा किया उसे रदम कहा जाता है। जैसे عَلَيْه
साकिन करने के बाद ज़ेर को ज़्यादा ज़ाहिर किया जाये इसे इख़्तेलास कहते हैं। जैसे: صَالِحْ
अक़सामे वक़्फ़
किसी मक़ाम पर ठहरने की चार सूरतें हो सकती हैं:
1. उस मक़ाम पर ठहरा जाये जहाँ बात लफ़्ज़ व मअना दोनो इतेबार से तमाम हो जाये जैसे.مالك يوم الدينِकि इस जुमले को बाद के जुमले اياك نعبد و اياك نستعينसे कोई तअल्लुक़ नही है।
2. उस मक़ाम पर ठहरा जाये जहाँ एक बात तमाम हो जाये लेकिन दूसरी भी उससे मुतअल्लिक़ हो जैसेمِما َرَزْقناهُم يُنْفِقُوْنْ. कि इस मंज़िल पर यह जुमला तमाम हो गया है लेकिन बाद का जुमला وَ الذِيْنَ يُمنُونَ भी उन्ही लोगों के औसाफ़ में है जिनका तज़किरा ग़ुज़िश्ता जुमले में हो चुका है।
3. उस मक़ाम पर वक़्फ़ किया जाये जहाँ मअना तमाम हो जायें लेकिन बाद का लफ़्ज़ पहले ही लफ़्ज़ से मुतअल्लिक़ हो जैसे اَلْحَمْدُ لله पर वक़्फ़ किया जा सकता है लेकिन رب العا لمين लफ़्ज़ी इतेबार से उसकी सिफ़त है, अलग से कोई जुमला नही।
4. उस मक़ाम पर वक़्फ़ किया जाये जहाँ न लफ़्ज़ तमाम हो न मअना जैसे مالك يوم الدينِमें लफ़्ज़े مالك पर वक़्फ़ कि यह बग़ैरيوم الدينِ के न लफ़्ज़ी एतेबार से तमाम है, न मअना के एतेबार से,ऐसे मौक़ों पर वक़्फ़ नही करना चाहिये।
वक़्फ़े जायज़ और लाज़िम
वक़्फ़ के मवाक़ेअ पर कभी कभी बाद के लफ़्ज़ से मिला देने में मआनी बिल्कुल बदल जाते हैं। जैसे م) قَيِماً) لَمْ يَجْعَلء لَهُ عِوَجاً कि.عِوَجاऔर قَيِما ًके दरमियान वक़्फ़े लाज़िम है। वर्ना मआनी मुन्क़लिब हो जायेगें। परवरदिगार यह कहना चाहता है कि हमारे क़ानून में कोई कजी नही है। और वह क़य्यिम (सीधा) है। अब अगर दोनो को मिला दिया गया तो मतलब यह होगा कि हमारी किताब में न कजी है न रास्ती। और यह बिल्क़ुल ग़लत है। ऐसे वक़्फ़ को वक़्फ़े लाज़िम कहा जाता है और उसके अलावा जुमला अवक़ाफ़ जायज़ हैं।
बांग्लादेश में इमारत गिरने से मरने वालों की संख्या 1000 हो गयी
बांग्लादेश में 24 अप्रैल को गिरने वाली इमारत के मलबे से मिलने वाले शवों की संख्या 1000 हो गयी है।
राजधानी ढाका के उपनगरीय क्षेत्र सावार में 24 अप्रैल को 8 मंज़िला इमारत गिर गयी थी। घटना स्थल पर अब भी सहायता कार्य जारी हैं। घटना में मारे जाने वालों की संख्या अब तक 1000 हो गयी है। इमारत में पांच गारमेंट फ़ैक्ट्रिया थीं। घटना के बाद लगभग 2500 लोगों को बचा लिया गया। फ़ैक्ट्री के अधिकारियों ने प्रभावितों को वेतन और अन्य सुविधाएं देना आरंभ कर दी हैं।
ईरानी राष्ट्र १४ जून को अपने कारनामे से विश्व वासियों को आश्चर्य में डाल देगा।
शुक्रवार को तेहरान सहित पूरे ईरान में जुमा की नमाज़ पढ़ी गयी।
तेहरान में जुमा की नमाज़ के भाषण में आयतुल्लाह अहमद खात्मी ने धर्म परायणता, वरिष्ठ नेतृत्व में श्रद्धा, नैतिकता तथा नियमों के पालन को ईरान के आगामी राष्ट्रपति की महत्वपूर्ण विशेषताएं बताया है।
उन्होंने कहा कि यदि ईरान का आगामी राष्ट्रपति इन विशेषताओं से सुसज्जित होगा तो किसी भी दशा में वह शत्रुओं के जाल में नहीं फंसेगा और धमकियों से सामने क़दम पीछे नहीं हटाएगा।
आयतुल्लाह खात्मी ने ईरान के आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए अत्याधित ध्यान तथा दूरदर्शिता को आवश्यक बताया और कहा कि यदि ईरानी राष्ट्र, राष्ट्रपति चुनाव के प्रत्याशियों के बारे में पूर्ण रूप से जांच पड़ताल करेगा तो निश्चित रूप से सब से अधिक योग्य व्यक्ति का चयन होगा। उन्होंने जून २०१३ में ईरान के राष्ट्रपति चुनाव में जनता की भारी उपस्थिति को रोकने हेतु साम्राज्यवादियों और ज़ायोनियों के व्यापक प्रयासों की ओर संकेत करते हुए बल दिया कि विश्व शक्तियां, ईरान में चुनाव वातावरण के स्वतंत्र न होने का दावा करके इस महा प्रक्रिया में विघ्न डालने का प्रयास कर रही हैं किंतु ईरानी राष्ट्र १४ जून को अपने कारनामे से विश्व वासियों को आश्चर्य में डाल देगा।
आयतुल्लाह खात्मी ने कहा कि प्रत्याशियों को भी यह जान लेना चाहिए कि यदि विदशियों ने उनका समर्थन किया तो वे ईरानी जनता की नज़रों से गिर जाएंगे।
उन्होंने इसी प्रकार हालिया दिनों में सीरिया की घटनाओं तथा पैगम्बरे इस्लाम के महान अनुयाई हुज्र बिन उदय की कब्र की अवमानना की ओर संकेत करते हुए कहा कि इस कृत्य की आलोचना में शीआ और सुन्नी धर्म गुरुओं की प्रतिक्रियाओं से यह सिद्ध हो गया कि वे संयुक्त रूप से सांप्रदायिकता के विरोधी हैं। उन्होंने हालिया दिनों में इस्राईली युद्धक विमानों के सीरिया पर आक्रणमों की ओर संकेत करते हुए बल दिया कि इन आक्रमणों से सीरियाई विद्रोहियों की गद्दारी और सीरियाई जनता के विरुद्ध इस्राईल से उनका सहयोग सिद्ध हो गया।
इस्लामी जागरुकता और धर्मगुरू अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता का भाषण
بسم اللہ الرحمن الرحیم
الحمد للہ رب العالمین و الصلاۃ و السلام علی سیدنا محمد المصطفی و آلہ الاطیبین و صحبہ المنتجبین و من تبعھم باحسان الی یوم الدین
आप सम्मानीय अतिथियों का स्वागत करता हूं और महान व कृपालु ईश्वर की सेवा में प्रार्थना करता हूं कि इस सामूहिक प्रयास में बरकत दे और इसे मुसलमानों की स्थिति में सुधार की दिशा में प्रभावी प्रगति में बदल दे। वह सुनने और क़ुबूल करने वाला है। इस्लामी जागरूकता का विषय जिस पर आप इस सम्मेलन में बहस करेंगे, इस समय इस्लामी जागत और मुस्लिम समुदाय से जुड़े मामलों में सर्वोपरि है। ऐसा आश्चर्यजनक परिवर्तन जो ईश्वर की कृपा से सही और सुरक्षित बाक़ी रह गया तो वह दिन दूर नहीं कि यह बदलाव मुस्लिम समुदाय और फिर संपूर्ण मानवता के लिए इस्लामी सभ्यता का निर्माण कर देगा। आज जो कुछ हमारी दृष्टि के सामने है और जिसका कोई भी सचेत और समझदार व्यक्ति इंकार नहीं कर सकता, यह है कि इस समय इस्लाम, विश्व के राजनैतिक व सामाजिक समीकरणों में हाशिए से निकल कर अंतर्राष्ट्रीय परिवर्तनों के निर्णायक तत्वों के केन्द्र में उच्च स्थान पर पहुंच गया है तथा जीवन, राजनीति और शासन से जुड़े मामलों तथा सामाजिक परिवर्तनों के मैदान में एक नयी कार्यशैली को प्रचारित कर रहा है। यह बात वर्तमान विश्व में जो कम्युनिज़्म और लिबरलिज़्म की विफलता के बाद गहरे वैचारिक शून्य से ग्रस्त है, बहुत सार्थक और महत्वपूर्ण है।
यह उत्तरी अफ़्रीक़ा और अरब क्षेत्र के क्रान्तिकारी एवं राजनैतिक परिवर्तनों का पहला प्रभाव है जो विश्व स्तर पर दिखाई दिया है और भविष्य में अधिक बड़ी घटनाओं की शुभसूचना दे रहा है।
इस्लामी जागरूकता, कि साम्राज्यवादी एवं रूढ़िवादी मोर्चे के तत्व जिसका नामक भी ज़बान पर लाने से बचते और घबराते हैं, वह अटल सच्चाई है जिसके प्रभाव इस समय लगभग पूरे इस्लामी जगत में देखे जा सकते हैं। इसका सबसे स्पष्ट चिन्ह जनमत और विशेष रूप से युवा वर्ग में इस्लाम की महानता और वैभव की बहाली की गहरी उत्सुकता, विश्व साम्राज्यवाद की वास्तविक प्रवृत्ति की जानकारी, तथा उन केन्द्रों और सरकारों की घटिया साम्राज्यवादी एवं अत्याचारी छवि का बेनक़ाब हो जाना है जिन्होंने दो शताब्दियों से भी अधिक समय से पूरब के इस्लामी व ग़ैर इस्लामी क्षेत्रों को अपने ख़ूनी पंजों में जकड़े रखा और सभ्यता व संस्कृति की आड़ में राष्ट्रों के अस्तित्व को अपने निर्दयी और आक्रामक वर्चस्ववाद की भेंट चढ़ाया।
विभूतियों से सुसज्जित इस जागरूकता के आयाम वैसे तो बहुत व्यापक हैं और रहस्यमय विस्तार रखते हैं किंतु तत्कालिक रूप से उत्तरी अफ़्रीक़ा के देशों में इसकी जो उपलब्धियां सामने आई हैं वह दिलों के भीतर भविष्य में अधिक बड़े तथा विचित्र परिणामों की आशा जगाती हैं। ईश्वर के वादों का चमत्कारिक रूप से व्यवहारिक होना हमेशा बड़े वचनों के पूरे होने की आशा बढ़ा देता है। क़ुरआन में ईश्वर के उन दो वादों की कहानी जो उसने हज़रत मूसा की माता से किए थे विशेष ईश्वरीय कार्यशैली का उदाहरण है।
जब उस कठिन घड़ी में उस संदूक़ को पानी में डालने का आदेश जारी हुआ जिसमें नवजात था तो ईश्वरीय संबोधन में यह वचन दिया गया कि हम उसे तुम्हारे पास पलटाएंगे और उसे रसूल बनाएंगे। पहला वादा जो छोटा वादा था और जिससे मां को ख़ुशी मिलने वाली थी, पूरा हुआ तो इससे पैग़म्बरी का दर्जा प्रदान किए जाने के महावचन के पूरे होने की शुभसूचना सिद्ध हुआ जो बहुत बड़ा वादा था अलबत्ता इसके लिए लंबे संघर्ष और संयम व सहनशक्ति की आवश्यकता थी। हमने बच्चे को उसकी मां के पास लौटाया ताकि उसकी आंखों को ठंडक प्राप्त है और वह दुखी न रहे और समझ ले कि ईश्वर का वादा सच्चा होता है। यह सच्चा वादा वास्तव में पैग़म्बरी प्रदान किए जाने का वादा था जो कुछ वर्ष बाद पूरा हुआ और जिसने इतिहास को नई दिशा दी।
एक और उदाहरण अल्लाह के घर पर आक्रमण करने वालों को कुचल देने वाली ईश्वरीय शक्ति की याद दिलाने से संबंधित है। ईश्वर ने आम लोगों को आज्ञापालन व अनुसरण पर तैयार करने के लिए पैग़म्बरे इस्लाम के माध्यम से इस घटना की याद दिलाई और कहा कि, अतः वह इस घर के पालनहार की उपासना करें। इसके बाद ईश्वर ने कहा कि क्या हमने आक्रमणकारियों के षडयंत्र को भ्रमित नहीं कर दिया। इस प्रकार ईश्वर ने अपने प्यारे नबी का मनोबल बढ़ाया और वचन पूरा होने का विश्वास दिलाने के लिए कहा कि ईश्वर ने तुम्हें तुम्हारे हाल पर नहीं छोड़ा। चमत्कारिक विभूतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि क्या हमने आपको अनाथ पाया तो शरण नहीं दी, आपको भटका हुआ पाया तो आपका मार्गदर्शन नहीं किया?! क़ुरआन में इस प्रकार के उदहारण बहुत से स्थानों पर आए हैं।
जब ईरान में इस्लाम को विजय मिली और उसने इस अति संवेदनशील क्षेत्र के अति महत्वपूर्ण देश में अमरीका और ज़ायोनिज़्म के दुर्ग को जीत लिया तब तत्वदर्शी और जिज्ञासा रखने वालों को पता चल गया कि यदि संयम और तत्वदर्शिता के साथ काम किया जाए तो निरंतर सफलताएं मिलती हैं, और मिलीं भी।
इस्लामी गणतंत्र ईरान की खुली सफलताएं जिन्हें शत्रु भी मानते हैं, सब ईश्वर के वादे पर विश्वास और आश्वासन, संयम व प्रतिरोध तथा ईश्वर से सहायता मांगने के कारण मिली हैं। हमारी जनता ने चिंताजनक अवसरों पर कमज़ोर इच्छाशक्ति के लोगों की इस हाहाकार के जवाब में कि अब हमारी गरदन दबोची जाने वाली है, हमेशा यह नारा लगाया कि हमारा ईश्वर हमारे साथ है और वही हमारा मार्गदर्शन करेगा।
आज यह महान अनुभव उन राष्ट्रों की पहुंच में है जिन्होंने साम्राज्यवाद और अन्याय के विरुद्ध विद्रोह की पताका फहराई है और भ्रष्ट तथा अमरीका की पिट्ठू सरकारों को ध्वस्त या डांवाडोल कर दिया है। संयम, तत्वदर्शिता, प्रतिरोध तथा ईश्वर के इस वचन पर भरोसा कि जो ईश्वर की सहायता करता है ईश्वर उसकी सहायता करता है और वह शक्तिशाली तथा महान है, मुस्लिम समुदाय के सामने इस्लामी सभ्यता की ऊंची चोटी तक जाने वाला मार्ग प्रशस्त कर देगा।
इस महत्वपूर्ण बैठक में जिसमें विभिन्न देशों और मतों से संबंध रखने वाले धर्मगुरू उपस्थित हैं इस्लामी जागरूकता के बारे में कुछ बिंदु बयान कर देना आवश्यक समझता हूं।
पहली बात तो यह है कि इस क्षेत्र के देशों में साम्राज्यवाद के पहले गुट के क़दम पड़ने के साथ ही आरंभ होने वाली इस्लामी जागरूकता की लहर धर्म तथा धार्मिक लोगों के हाथों अस्तित्व में लाई गई। सैयद जमालुद्दीन असदाबादी, मोहम्मद अब्दोह, मीर्ज़ा शीराज़ी, आख़ुन्द ख़ुरासानी, महमूदुल हसन, मोहम्मद अली, शैख़ फ़ज़्लुल्लाह, अलहाज आक़ा नूरुल्लाह, अबुलआला मौदूदी और दूसरे दसियों महान विख्यात व प्रभावी धर्मगरुओं का नाम जिनका संबंध ईरान, मिस्र, भारत और इराक़ जैसे देशों से है इतिहास के पन्नों पर हमेशा के लिए अंकित हो गया है। समकालीन युग में इमाम ख़ुमैनी का नाम प्रकाशमान तारे की भांति ईरान की इस्लामी क्रान्ति के माथे पर जगमगा रहा है। इस अवधि में सैकड़ों विख्यात और हज़ारों अपेक्षाकृत कम विख्यात धर्मगुरुओं ने विभिन्न देशों में छोटे बड़े सुधार आंदोलनों में अपनी निर्णायक भूमिका निभाई। धर्मगुरुओं के वर्ग के बाहर भी हसन अलबन्ना तथा अल्लामा इक़बाल जैसे धार्मिक सुधारकों के नामों की सूचि बहुत लंबी तथा आश्चर्यजनक है।
धर्मगुरुओं तथा धार्मिक नेताओं ने लगभग हर स्थान पर ही जनता के वैचारिक केन्द्र और भावनात्मक ढारस के ध्रुव की भूमिका निभाई है और जहां भी बड़े परिवर्तनों के अवसर पर वह मार्गदर्शन तथा नेतृत्व के लिए आगे आए और ख़तरों के सामने डटकर जनसमाजों का नेतृत्व किया उनसे जनता का वैचारिक रिश्ता और भी मज़बूत हो गया और जनता के मार्ग के निर्धारण से संबंधित उनके इशारों में और भी असर उत्पन्न हो गया। यह चीज़ इस्लामी जागरूकता के लिए जितनी महत्वपूर्ण और लाभदायक है, मुस्लिम समुदाय के शत्रुओं, इस्लाम से द्वेष रखने वालों तथा इस्लामी मूल्यों के प्रभुत्व के विरोधियों के लिए उतनी ही अप्रिय और चिंता का विषय है। इसी लिए वह प्रयास कर रहे हैं कि धार्मिक केन्द्रों की वैचारिक ध्रुव वाली स्थिति को समाप्त कर दें और आम जनमानस के लिए ऐसे नए केन्द्र गढ़ लें जिनके बारे में वह अनुभव कर चुके हैं कि राष्ट्रीय सिद्धांतों और मूल्यों पर वह सरलता से सौदेबाज़ी कर सकते हैं जबकि धर्मगुरुओं और धार्मिक लोगों का इस सौदेबाज़ी के लिए तैयार होना असंभव है।
इस स्थिति में धर्मगुरुओं का दायित्व और भी बढ़ जाता है। उन्हें चाहिए कि पूरी समझदारी, सूक्ष्मदर्शिता और शत्रु की धोखापूर्ण चालों एवं हथकंडों की पूरी पहिचान के साथ घुसपैठ के हर मार्ग को बंद कर दें और शत्रु की इस योजना को विफल बना दें। सांसारिक विभूतियों के रंगारंग दस्तरख़्वान पर बैठना बहुत बड़ी विपत्ति है। धनवानों और शक्तिशाली लोगों से संबंध और उनके उपकार तले दब जाना तथा भ्रष्ट शक्तियों का नमक खाना धर्मगुरुओं से जनता के विमुख हो जाने और लोकप्रियता तथा विश्वास के समाप्त हो जाने का ख़तरनाक कारण है। अहं और पद का लोभ जो कमज़ोर इच्छशक्ति के लोगों को शक्ति व दौलत के केन्द्रो के निकट ले जाता है, भ्रष्टाचार एवं गुमराही में ग्रस्त होने की भूमिका है।
इस समय आशावर्धक इस्लामी जागरूकता के आंदोलनों में कभी कभी ऐसे दृष्य भी दिखाई देते हैं जो एक ओर अविश्वसनीय वैचारिक केन्द्र गढ़ने की अमरीका और ज़ायोनिज़्म के एजेंटों की चेष्टा और दूसरी ओर इच्छाओं के ग़ुलाम "क़ारूनों" की अपने प्रदूषित ख़ैमे में धार्मिक नेताओं और पवित्र लोगों को घसीट लेने की कोशिश के परिचायक हैं। धर्मगुरुओं, धार्मिक विषयों के विशेषज्ञों तथा धार्मिक लोगों को चाहिए कि बहुत सावधान और चौकस रहें।
दूसरा बिंदु मुस्लिम देशों में इस्लामी जागरूकता के आंदोलन के लिए दीर्घकालीन लक्ष्यों के निर्धारण का है। ऐसे महान लक्ष्य जो जनता की जागरूकता को सही दिशा दें और उसे ऊंचाई तक पहुंचाएं। इस महान लक्ष्य की पूरी पहिचान के बाद ही रोडमैप तैयार किया जा सकता है तथा उसमें स्थित कम और मध्यम दूरी के लक्ष्यों को रेखांकित किया जा सकता है। यह निश्चित लक्ष्य प्रकाशमान इस्लामी सभ्यता के निर्माण से कम कुछ नहीं हो सकता। मुस्लिम समुदाय राष्ट्रों और देशों पर फैले अपने विशाल अस्तित्व और विविध आयामों के साथ क़ुरआन की वांछित सभ्यता तक पहुंचे। इस सभ्यता की मूल और आम पहिचान यह है कि मनुष्य उन सभी भौतिक एवं आत्मिक क्षमताओं लाभान्वित हो जो ईश्वर ने मनुष्य के उत्थान और कल्याण के लिए सृष्टि में तथा स्वयं उसके अस्तित्व के गहराइयों में रख दी हैं। जनशासन, क़ुरआन से लिए गए क़ानून, इंसान की नित नई आवश्यकताओं पर ज्ञानपूर्ण बहस तथा उनकी पूर्ति, रूढ़िवाद, ग़लत परम्पराओं और दूसरों की नक़ल उतारने से परहेज़, जन सम्पत्ति एवं सुविधा, ब्याज ख़ोरी और कमीशन ख़ोरी से पवित्र अर्थ व्यवस्था जैसी इस सभ्यता की विदित विशेषताओं को मानवीय शिष्टाचार के प्रचार, विश्व के अत्याचारग्रस्त लोगों के समर्थन एवं मेहनत, लगन और नई पहल के रूप में देखा जा सकता है बल्कि दिखाई देना चाहिए। मानव विज्ञान से लेकर शिक्षा व प्रशिक्षण की औपचारिक व्यवस्था तक, अर्थ व्यवस्था और बैंकिंग व्यवस्था से लेकर तकनीक व तकनीकी पैदवार तक, आधुनिक संचार माध्यमों से लेकर कला और सिनेमा तक और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों तक हर क्षेत्र में ज्ञानपूर्ण एवं विशलेषक दृष्टि यह सब इसी सभ्यता के अटूट भाग हैं।
अनुभव से सिद्ध हो गया है कि इन लक्ष्यों का प्राप्त होना संभव है और यह हमारे समाजों की क्षमताओं की पहुंच में है। इस लक्ष्य को उतावलेपन के साथ तथा हीनभावना में ग्रस्त होकर नहीं देखना चाहिए। अपनी क्षमताओं के संबंध में हीन भावना ईश्वरीय विभूतियों के इंकार के अर्थ में है। ईश्वरीय सहायता और सृष्टि के नियमों से मिलने वाली मदद से निश्चेत रहना ईश्वर के बारे में ग़लत विचारधारा रखने वालों की खाई में गिर जाने के समान है। हम साम्राज्यवादी शक्तियों के राजनैतिक, आर्थिक और ज्ञान के क्षेत्र के बंधनों को तोड़ सकते हैं और मुट्ठी भर साम्राज्यवादी शक्तियों के नियंत्रण में जकड़े विश्व के राष्ट्रों के अधिकारों को बहाल करने की प्रक्रिया में मुस्लिम समुदाय को अग्रिणी बना सकते हैं।
ईमान, ज्ञान, शिष्टाचार और निरंतर संघर्ष की अपनी विशेषताओं के माध्यम से इस्लामी सभ्यता, मुस्लिम समुदाय तथा समूची मानवता को उच्च विचारों और महान शिष्टाचारों से सुसज्जित कर सकती है तथा भौतिकवादी अत्याचारी विचारधारा एवं घटिया व दूषित नैतिकता से जो पश्चिम की वर्तमान संस्कृति के मूल स्तंभों में गिनी जाती है मुक्ति का नया मोड़ बन सकती है।
तीसरा बिंदु यह है कि इस्लामी जागरूकता के आंदोलन में इस बात पर हमेशा ध्यान रहे कि राजनीति, शिष्टाचार और जीवन शैली में पश्चिम का अनुसरण करने के कैसे कड़वे और भयानक अनुभवों से हमें गुज़रना पड़ा है।
एक शताब्दी से अधिक समय तक पश्चिम की साम्राज्यवादी सरकारों की संस्कृति व राजनीति का अनुसरण करने के परिणामस्वरूप मुस्लिम देश विनाशकारी विपदाओं जैसे राजनैतिक निर्भरता और अपमान, आर्थिक अभाव व गरीबी, नैतिक पतन, विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में शर्मनाक पिछड़ेपन में ग्रस्त हो गए। हालांकि इस्लामी समुदाय इन समस्त क्षेत्रों में गौरवपूर्ण अतीत का स्वामी रहा है। इन बातों को पश्चिम से शत्रुता नहीं समझना चाहिए। हम भौगोलिक अंतर के आधार पर मनुष्यों के किसी समूह से शत्रुता नहीं रखते। हमने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पाठ सीखा है जिन्होंने मनुष्यों के बारे में कहा है कि वह या तो तुम्हारे सहधर्मी हैं या सृष्टि में तुम्हारे समान हैं।
हमे आपत्ति अत्याचार, साम्राज्यवाद, अतिक्रमण, भ्रष्टाचार, नैतिक पतन और उन कार्यवाहियों पर है जो साम्राज्यवाद तथा साम्राज्यवादी शक्तियों ने हमारे राष्ट्रों पर थोप दी हैं। आज भी हम उन देशों में जहां इस्लामी जागरूकता की बयार जनान्दोलनों और क्रान्ति के तूफ़ान का रूप धार चुकी है अमरीका तथा क्षेत्र में उसके पिट्ठुओं के हस्तक्षेप, धौंस और ज़बरदस्ती के दृष्य देख रहे हैं। उनकी धमकियों तथा प्रलोभनों का राजनेतनओं के निर्णयों और कार्यवाहियों तथा महान जनान्दोलन पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। इस चरण में हमें अतीत के अनुभवों से पाठ लेना चाहिए। जिन लोगों ने वर्षों, अमरीकी वादों से आस लगाई और अत्याचार को आधार बनाकर राजनीति की वह अपनी जनता की एक भी समस्या का समाधान नहीं खोज सके और न स्वयं अत्याचार से बच सके और न जनता को बचा सके। अमरीका के सामने हथियार डाल देने के बाद वह एक भी फ़िलिस्तीनी मकान को जो फ़िलिस्तीन की धरती पर बना हुआ था ध्वस्त होने से नहीं बचा सके।
चौथा बिंदु यह है कि आज इस्लामी जागरूकता को सबसे बड़ा ख़तरा मतभेदों की आग और इन आंदोलनों को सांप्रदायिक एवं धार्मिक तथा जातीय टकराव में परिवर्तित कर देने की साज़िश से है। इस समय तेल के बदले मिलने वाले डालरों और बिके हुए राजनेताओं की सहायता से पश्चिमी तथा ज़ायोनी एजेंसियों के हाथों पूर्वी एशिया से लेकर उत्तरी अफ़्रीक़ा और विशेष रूप से अरब क्षेत्र में पूरी गंभीरता और सूक्ष्मता से यह जाल बिछया जा रहा है। वह दौलत जो जनता के कल्याण और भलाई के लिए प्रयोग हो सकती थी धमकियों, कुफ़्र के फ़तवों, टारगेट किलिंग, बम धमाकों, मुसलमानों का ख़ून बहाने तथा दीर्घकालीन द्वेष की आग भड़काने पर ख़र्च हो रही है। जो लोग संयुक्त इस्लामी जगत की शक्तियों को अपने दुष्टतापूर्ण लक्ष्यो के लिए ख़तरनाक समझते हैं मुस्लिम समुदाय के भीतर विवाद की आग को अपने शैतानी लक्ष्यों की पूर्ति के सरल मार्ग के रूप में देख रहे हैं। वह फ़िक़ह, धर्मशास्त, इतिहास और हदीस जैसे विषयों से संबंधित मतभेदों को जो स्वभाविक भी हैं दूसरों को काफ़िर ठहराने, ख़ून बहाने, और विवाद की आग भड़काने के हथकंडे के रूप में प्रयोग कर रहे हैं।
आंतरिक टकराव के मैदान का ध्यानपूर्वक जायज़ा लिया जाए तो इन विडम्बनाओं के पीछे शत्रु का हाथ स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। यह धोखेबाज़ हाथ हमारे समाजों में पायी जाने वाली अज्ञानता, संकीर्ण सोच और सांप्रदायिकता को प्रयोग कर रहा है और आग में तेल डाल रहा है। इस मामले में धार्मिक एवं राजनैतिक हस्तियों और समाज सुधारकों का दायित्व बहुत अधिक है। इस समय लीबिया किसी अलग अंदाज़ से, मिस्र और ट्यूनीशिया किसी और ढंग से, सीरिया किसी और मार्ग से, पाकिस्तान किसी अलग अंदाज़ से और इराक़ तथा लेबनान एक अलग ढंग से इस ख़तरनाक ज्वाला में जल रहे हैं। बहुत सावधान रहने और समाधान खोजने की आवश्यकता है। यह भोलापन होगा कि हम इन सारी चीज़ों को धार्मिक और जातीय भावनाओं तथा तत्वों से जोड़ दें। पश्चिमी मीडिया और बिके हुए क्षेत्रीय संचार माध्यमों के प्रचारिक अभियान में सीरिया की विनाशकारी लड़ाई को शीया सुन्नी टकराव का रंग देने का प्रयास किया जा रहा है और सीरिया तथा लेबनान में इस्लामी प्रतिरोध के शत्रुओं तथा ज़ायोनियों को सुरक्षित मार्ग देने का प्रयास किया जा रहा है। हालांकि सच्चाई यह है कि सीरिया की लड़ाई के पक्ष शीया और सुन्नी नहीं है बल्कि यह लड़ाई ज़ायोनियों के विरुद्ध संघर्ष के समर्थकों और विरोधियों के बीच है। न तो सीरिया की सरकार शीया सरकार है और न उसके विरुद्ध लड़ने वाले इस्लाम विरोधी गुट, सुन्नी हैं। इस भयानक संकट की आग भड़काने वालों की कला यह है कि उन्होंने यह आग भड़काने में भोले लोगों की धार्मिक भावनाओं को कैश कराया है। इस मैदान और इसमें विभिन्न स्तर पर सक्रिय लोगों को ध्यान से देखकर हर न्यायप्रेमी व्यक्ति स्थिति को भलीभांति समझ सकता है।
यही प्रोपैगंडा बहरैन के बारे में भी झूठ और धोखे के एक अलग रूप में जारी है। बहरैन में जनता मताधिकार तथा राष्ट्रों को प्राप्त अन्य अधिकारों से वंचित है, यह जनता अपनी क़ानूनी मांगों के साथ सामने आयी है। प्रश्न यह है कि यह अत्याचारग्रस्त जनता यदि शीया है और वहां धर्म विरोधी सरकार सुन्नी होने का दिखावा करती है तो क्या इसे शीया सुन्नी झगड़ा ठहरा देना उचित है।
यूरोपीय और अमरीकी साम्राज्यवादी सरकारें और क्षेत्र में उनके पिट्ठू यही प्रचार कर रहे हैं किंतु क्या यह सच्चाई हैं। यह बातें धर्मगुरुओं तथा न्यायप्रेमी सुधारकों को चिंतन व मंथन करने का निमंत्रण देती हैं।
पांचवां बिंदु यह है कि इस्लामी जागरूका के आंदोलनों की सही दिशा को परखने के लिए फिलिस्तीन संकट के संबंध में उसकी नीति को देखना चाहिए। साठ साल से अब तक इस्लामी जगत के हृदय पर फ़िलिस्तीन पर क़ब्ज़े की घटना से बड़ा कोई घाव नहीं लगा है।
फिलिस्तीन की त्रास्दी पहले दिन से अब तक जनसंहार, टारगेट किलिंग, विध्वंस, क़ब्ज़े और इस्लामी पवित्र स्थलों के अपमान पर आधारित रही है। इस अतिग्रहणकारी शत्रु के विरुद्ध प्रतिरोध पर सभी इस्लामी संप्रदाय एकमत हैं और समस्त स्वस्थ व सच्चे राष्ट्रीय आंदोलनों तथा दलों का यह संयुक्त बिंदु रहा है। इस्लामी देशों में यदि किसी भी दल या गुट ने इस धार्मिक तथा राष्ट्रीय दायित्व को अमरीका की धौंसपूर्ण इच्छा के कारण या किसी अन्य तर्कहीन बहाने से भुलाने की चेष्टा की तो उसे यह आशा नहीं रखनी चाहिए कि उसको इस्लाम का वफ़ादार और देश प्रेम के उसके दावे को सच समझा जाएगा।
यह कसौटी है। जो भी बैतुल मुक़द्दस की स्वतंत्रता और फ़िलिस्तीनी जनता तथा धरती की मुक्ति के नारे को स्वीकार न करे या उसे हाशिए पर डालने की चेष्टा करे तथा प्रतिरोधक मोर्च से विमुख हो जाए वह आरोप और संदेह के दायरे में आ जाएगा।
इस्लामी जगत को चाहिए कि हर जगह और हर समय इस स्पष्ट और आधारभूत कसौटी को दृष्टिगत रखे। शत्रु के धोखे और फ़रेब से दृष्टि हटने न दीजिए। हमारी निश्चेतना हमारे शत्रुओं के लिए स्वर्णिम अवसर उपलब्ध कराएगी।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम से हमें यह पाठ मिला है कि यदि मोर्चे पर कोई सोया तो यह न समझे कि उसका शत्रु भी सो जाएगा। इस्लामी गणतंत्र ईरान मंए भी इस संदर्भ में हमारे अनुभव बड़े पाठदायक हैं। ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के साथ ही अमरीका और पश्चिम की साम्राज्यवादी सरकारों ने जो लंबे समय से ईरान की भ्रष्ट सरकार को अपनी मुट्ठी में किए हुए थीं और हमारे देश के राजनैतिक आर्थिक एवं सांस्कृतिक भविष्य का निर्धारण अपने हाथ से करती थीं, समाज की भीतरी तहों में फैली ईमान और आस्था की शक्ति को साधारण वस्तु समझ बैठी थीं, तथा इस्लाम और क़ुरआन की जनता को एकजुट और सही मार्ग पर अग्रसर कर देने की क्षमता से अनभिज्ञ थीं, वे अचानक अपनी इस निश्चेतना से जागीं। उनकी सरकारी संस्थाओं, इंटेलीजेन्स एजेंसियों और नीति निर्धारक केन्द्रों ने गतिविधियां आरंभ कीं कि किसी तरह इस खुली हुई पराजय से स्वयं को बचा सकें।
इन तीस पैंतीस वर्षों में उनके विभिन्न षडयंत्र हमने देखे हैं। किंतु दो तत्वों ने हमेशा इन चालों को विफल बना दिया है। एक है इस्लामी सिद्धांतों पर दृढ़ता से डटे रहना और दूसरे हर मंच पर जनता की उपस्थिति।
यह दोनों बातें हर मोड़ पर सफलता और समाधान की कुंजी सिद्ध हुईं। पहला तत्व ईश्वर के वादों पर सच्चे ईमान और दूसरा तत्व निष्ठापूर्ण प्रयासों की अनुकंपाओं और सही व्याख्या व विशलेषण से प्राप्त होता है। जो राष्ट्र अपने नेताओं की सच्चाई और निष्ठा का विश्वास कर ले वह मैदान को अपनी उपस्थिति से चार चांद लगा देती है। जहां भी जनता दृढ़ संकल्प के साथ मैदान में डट जाती है वहां कोई भी शक्ति उसे पराजित नहीं कर सकती। यह उन समस्त राष्ट्रों के लिए आज़माया हुआ नुस्ख़ा है जो मंच पर अपनी उपस्थिति से इस्लामी जागरूकता के संबंध में निर्णायक भूमिका निभा रही हैं।
ईश्वर से आप सब के लिए और सभी मुस्लिम राष्ट्रों के लिए सहायता, मार्गदर्शन और कृपा की दुआ करता हूं। والسلام علیکم و رحمۃ اللہ و برکاتہ۔
बांग्लादेश में विपक्षी दलों की हड़ताल
बांग्लादेश में मुख्य विपक्षी बीएनपी तथा अनेक इस्लामवादी संगठनों ने प्रदर्शनकारियों पर सुरक्षा बलों के हमले के विरोध में दो दिन की हड़ताल की घोषणा की है।
बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी तथा उसके घटक संगठनों ने यह हड़ताल सुरक्षा बलों के आक्रमणों में बड़ी संख्या में प्रदर्शनकारियों के मारे जाने के विरोध में बुलाई है। प्रदर्शनकारी ईश निन्दा के विरुद्ध कड़ी सज़ा का क़ानून बनाए जाने की मांग कर रहे थे।