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درخت انسانی معاشرے کے لئے باعث برکت: قائد انقلاب اسلامی

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इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाह हिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने कहा कि पेड़ पौधे समस्त देशो और मानवीय समाज के लिए विभूतियों का कारण हैं।

वरिष्ठ नेता ने मंगलवार को तेहरान में वृक्षारोपण दिवस के अवसर पर दो पौधे लगाने के बाद कहा कि पेड़ पौधे समस्त देशों और मानवीय समाज के लिए विभूतियों का कारण हैं। उनका कहना था कि वृक्षों की रक्षा और उनकी कटाई पर रोकथाम के लिए इस्लाम धर्म ने बहुत अधिक बल दिया है। वरिष्ठ नेता ने बड़े नगरों के आस पास के क्षेत्रों में अवैध क़ब्ज़ों की रोकथाम की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि वृक्षारोपण और जंगलों की रक्षा से संबंधित अधिकारियों से यह शिकायत है कि ऐसा होता है कि सैकड़ों वृक्ष उस स्थान से काट दिए जाते हैं जहां वृक्षों की रक्षा की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस प्रकार की कार्यवाही से ईरान के जंगलों को भीषण ख़तरा है। उन्होंने कहा कि सरकार, संसद, न्यायपालिक और नगर पालिका के समस्त अधिकारियों को इसकी रोकथाम के लिए ठोस कार्यवाही करनी चाहिए। दूसरी ओर राष्ट्रपति डाक्टर महमूद अहमदी नेजाद ने वृक्षारोपण दिवस के अवसर पर गुट निरपेक्ष आंदोलन नामक एक पार्क का उद्घाटन करते हुए कहा कि हर राष्ट्र, शांति और न्याय का इच्छुक है।

 

درخت انسانی معاشرے کے لئے باعث برکت: قائد انقلاب اسلامی

उन्होंने कहा कि हम वृक्ष लगाकर सारी दुनिया को मित्रता और शांति का संदेश देते हैं क्योंकि शांति और न्याय हर राष्ट्र की इच्छा है। इस समारोह में तेहरान मंि मौजूद विभिन्न देशों के राजदूतों ने भी भाग लिया। उन्होंने कहा कि समस्त लोगों की भागीदारी से ही विश्व में शांति और न्याय की स्थापना हो सकती है। उन्होंने कहा कि यदि समस्त लोग प्रेम और एकता से क़दम बढ़ाएं तो इस संसार में शांति और न्याय की स्थापना हो जाएगी। ज्ञात रहे कि पांच मार्च को ईरान में वृक्षारोपण दिवस मनाया जाता है और पूरे देश में लाखों वृक्ष लगाए जाते हैं।

हम यहां पर अपने प्रिय़ः अध्ययनकर्ताओं के लिए हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम के चालीस मार्ग दर्शक कथन प्रस्तुत कर रहे हैं।

1-विपत्ति व कल्याण

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि कभी कभी ऐसा होता है कि हरीस(लालची) संसारिक वस्तुओं मे से किसी को प्राप्त करना चाहता है। परन्तु वह वस्तु जब उसको प्राप्त होती है तो उसके लिए मुश्किल( समस्या) बन जाती है। और कभी कभी ऐसा होता है कि व्यक्ति परलोक के लिए कार्य करने से बचता है या उसको अरूची पूर्ण करता परन्तु जब उसको कर देता है तो उसके द्वारा उसका कल्याण हो जाता है।

2- सर्व श्रेष्ट महानता

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिहाद से बढ़कर कोई महानता नही है और नफ़्स( इन्द्रियों) को वश मे करने से बढ़कर कोई जिहाद नही है।

3-नसीहत

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि मै तुमको पाँच बातों के लिए नसीहत करता हूँ।

(1) अगर तुम पर अत्याचार किये जायें तो तुम अत्याचार न करो।

(2) अगर तुम्हारे साथ विश्वासघात किया जाये तो तुम विश्वासघात न करो।

(3) अगर तुमको झूटा कहा जाये तो क्रोधित न हो।

(4) अगर तुम्हारी प्रशंसा की जाये तो प्रसन्न न हो।

(5) अगर कोई तुम्हारी भर्त्सना करे तो विवेक से काम लो।

4--पवित्र कथन

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि पाक कलाम( पवित्र कथन) जिससे भी सुनो उसको अपनाओ (ग्रहण करो) चाहे कहने वाला उस पर खुद अमल न करे (स्वंय क्रियान्वित न हो।)

5-ज्ञान व संतोष (हिल्म)

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि कोई भी दो वस्तुऐं आपस मे मिलकर इतनी शोभनीय नही हो सकती जैसे ज्ञान व हिलम मिलकर शोभनीय हो जाता है।

6-मानव समाज की महानता

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि समस्त महानता तीन बातों मे है (1) धर्म मे गहराई के साथ चिंतन (2) विपत्तियों पर सब्र करना अर्थात धैर्य से काम लेना (3) जीविका के व्यय के लिए योजना बद्ध कार्य करना।

7-तीन विशेषताऐं

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि तीन विशेषताऐं संसार व परलोक के लिए हैं। (1) अत्याचार करने वाले को क्षमा करना। (2) नाता तोड़ने वाले के साथ नाता जोड़ना। (3) मूर्खतापूर्ण व्यवहार के समय संयम से काम लेना।

8-दुआ

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह इस बात को पसन्द नही करता कि किसी इच्छा की पूर्ति के लिए बन्दे आपस मे एक दूसरे की खुशामदें करें। परन्तु वह इस बात को पसन्द करता है कि बन्दे उससे बार बार प्रश्न करे। वह अल्लाह जिसका जाप महान है। वह इस बात को पसन्द करता है कि उससे प्रश्न किया जाये व जो कुछ उसके पास है वह उससे माँगा जाये।

9-ज्ञानी व तपस्वी

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि वह ज्ञानी जिसके ज्ञान से जनता लाभ प्राप्त करे वह सत्तर हज़ार तपस्वीयों से श्रेष्ठ है।

10-पाप से बचना

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि कोई भी व्यक्ति उस समय पाप से सुरक्षित नही रह सकता जब तक वह अपनी ज़बान को क़ाबू मे न रखे।

11-तीन फल

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो सत्य बोलता है उसके कार्य पवित्र होते हैँ।और जिसके विचार पवित्र होते हैं वह धनी होता है।और जो अपने परिवार के साथ अच्छा व्यवहार करता है उसकी आयु बढ़ा दी जाती है।

12-आलस्य से मना

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि आलस्य व कम दिली से बचों क्योंकि यह दोनो समस्त बुराईयों की जड़ हैं। जो आलस्य करेगा वह दूसरो के अधिकारों की पूर्ति नही कर पायेगा। व जो तंग दिल होगा वह हक़ पर सब्र नही कर सकेगा।

13- न्याय

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि परलय के दिन वह व्यक्ति बहुत अधिक पछताऐंगे जो संसार मे न्याय की प्रशंसा करते थे परन्तु स्वंय न्याय पूर्वक कार्य नही करते थे।

14-सिलाहे रहम (रक्त सम्बन्धियों सें मेल मिलाप)

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि सिलाहे रहम मनुष्य के क्रिया कलापों को पवित्र करता है, धन को बढ़ाता है, विपत्तियों को टालता है, परलोक के हिसाब किताब को आसान करता है व आयु को बढ़ाता है।

15-शिष्ठाचार के साथ बातचीत

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि लोगों से कहो कि श्रेष्ठ यह है कि वह जिस प्रकार अपने आपको संबोधित कराना पसंद करते है उसी प्रकार तुम से बोलें।

16-अगर मोमिन हो तो

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर तुम मोमिन हो तो अल्लाह के अतिरिक्त किसी दूसरे को अपना राज़दार न बनाओ और न अल्लाह के अतिरिक्त किसी पर भरोसा करो। क्योंकि कुऑन मे वर्णित आश्यों के अतिरिक्त सम्बन्धों के समस्त स्रोत व राज़ अल्लाह की दृष्टि मे अमान्य हैं।

 

17-मोमिन मोमिन का भाई

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि मोमिन मोमिन का भाई है। न वह उसे गाली देता है न उसे किसी वस्तु से वाँछित करता है।

18-ग़ीबत व बोहतान की परिभाषा

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने दीन बन्धु की किसी ऐसी बात को किसी से कहना जिसको अल्लाह ने छिपाया हो ग़ीबत कहलाता है। तथा किसी से उस दोष को सम्बन्धित करना जो उसमे न पाया जाता हो यह बोहतान कहलाता है।

19-गालियाँ देने वाला

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह गालियाँ देने वाले नीच व्यक्ति से क्रोधित रहता है।

20-शिष्टाचार

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि शिष्टाचारी वह है जो उस स्थान पर बैठना पसंद करे जो उसके योग्य न हो। (अर्थात निम्ण स्थान) व जब किसी से मिले तो स्वंय सलाम करे व बहस करने से बचे चाहे वह हक़ पर ही क्यों न हो।

21-सर्व श्रेष्ठ तपस्या

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने पेट व जनेन्द्री को पवित्र रखना सबसे बड़ी तपस्या है।

22-सच्चे शिया के लक्षण

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अल्लाह से न डरता हो और अल्लाह के आदेशो का पालन न करता हो वह हमारा शिया नही है।

23-- पाप का कारण

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति पाप करता है तो इस का अर्थ यह है कि उसने अल्लाह को नही पहचाना है।

24-बुद्धि

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब अल्लाह ने बुद्धि को उत्पन्न किया तो उससे प्रश्नो उत्तर किये। उससे कहा कि आगे आ तो वह आगे आगयी। जब उससे कहा कि पीछे हट तो वह पीछे हट गयी। अल्लाह ने कहा कि मैं अपनी महानता व सम्मान की सौगन्ध के साथ कहता हूँ कि मैं समस्त संसार मे तुझ से अधिक किसी से प्रेम नही करता हूँ। मैं जिसको अधिक मित्र रखता हूँ उसे पूर्ण रूप से तुझे (बुद्धि) प्रदान करता हूँ। समस्त आदेश व निषेध तथा पुरूस्कार व दण्ड तुझे (बुद्धि को) दृष्टि मे रखते हुए हैं।

25-बुद्धि के आधार पर

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह प्रलय के दिन प्रत्येक व्यक्ति का हिसाब किताब उसको प्रदान की गयी बुद्धि को दृष्टि मे रखते हुए करेगा।

26-ज्ञान

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि ज्ञानीयों से ज्ञान प्राप्त करो तथा अपने धर्म बन्धुओं को वह ज्ञान प्रदान करो। चूँकि इसी प्रकार ज्ञानीयों ने वह ज्ञान तुम्हे प्रदान किया है। तुम मे से जो भी एक दूसरे को ज्ञान प्रदान करेगा उसको ज्ञान प्राप्त करने वाले से भी अधिक फल दिया जायेगा।

27-बिना ज्ञान

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर कोई बिना ज्ञान के मनुष्यों को धार्मिक आदेश देता है तो रहमत लाने वाले फरिश्ते व दण्डित करने वाले फरिश्ते उस व्यक्ति पर लानत करते हैँ। और उसके आदेशानुसार कार्य करने वालों के पाप भी उसको सम्मिलित होंगे।

28--नरकीय ज्ञानी

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर कोई विद्वानो पर अपवाद करने मूर्खों से लड़ने या समाज को अपनी ओर आकृषित करने के उद्देश्य से ज्ञान प्राप्त करे तो ऐसे व्यक्ति का स्थान नरक है।

29-संसार व दीन (धर्म)

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह संसार अपने मित्रों व शत्रुओं दोनो को देता है। परन्तु दीन केवल अपने मित्रो को देता है।

30-तीन अवगुण

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने गुनाहों को भूल जाना। अपने पुण्यों को अधिक समझना व अपने मत को सर्व श्रेष्ठ समझना यह तीनो अवगुण मनुष्य की कमर तोड़ देते हैं।

 

31-पारसा फ़कीह के लक्षण

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम अलैहिस्सलाम ने कहा कि पारसा फ़क़ीह ( फ़कीह अर्थात धार्मिक आदेशों का ज्ञान रखने वाला पुरूष) वह है जो संसारिक मोह माया के जाल मे न फसा हो और परलोक की ओर आकृषित हो तथा आदरनीय पैगम्बर की सुन्नत (जीवन शैली) पर कार्य करता हो।

32-मनोविनोद

इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह उस व्यक्ति से प्रेम करता है जो सभा मे बैठकर मनो विनोद करे तथा लोगों को हंसाये। इस शर्त के साथ कि उसके कथनो मे अशलीलता व अभद्रता न हो।

33-तीन बुराईयां

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि तीन बुराईयाँ ऐसी हैं कि उनमे ग्रस्त व्यक्ति मरने से पहले उनके दण्ड को भुगतता है।--- (1) अत्याचार (2) रक्त सम्बन्धियों से नाता तोड़ना (3) झूटी सौगन्ध खाना कि यह अल्लाह से लड़ने समान है।

34-अल्लाह से माँगना

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह इस बात को बहुत अधिक प्रियः रखता है कि उससे प्रार्थना की जाये व जो उसके पास है उससे माँगा जाये।

35-अल्लाह से दुआ

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह की सौगन्ध कोई बन्दा अल्लाह से दुआ न करे अगर उसके द्वारा माँगी गई वस्तु उसको प्रदान न हो।

36-दुआ का उचित समय

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह उस बन्दे से अधिक प्रेम करता है जो उससे अधिक दुआ माँगता है। तुम्हे चाहिए कि सुबह को सूर्य निकलने से पहले दुआ माँगा करो। क्योकि इस समय आसमान के कपाट खुलते है और मनुष्यों को जीविका प्रदान की जाती है। तथा इस समय बड़ी दुआऐं भी स्वीकृत होती हैं।

37-धर्म बन्धु के लिए दुआ

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि वह दुआ जिसके स्वीकृत होने की आशा अधिक होती है, और वह दुआ जो अति शीघ्र स्वीकृत होती है, वह अपने धर्म बन्धु के लिए उसकी अनुपस्थिति मे की गई दुआ है।

38-परलय के दिन नही रोयेंगे

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि परलय के दिन समस्त लोग रोयेंगे परन्तु तीन समुदाये ऐसे है जो नही रोयेंगे--- (1) व्यक्तियों का वह समुदाय जो रात्री मे जाग कर अल्लाह के नाम का जाप करता हैं। (2) व्यक्तियों का वह समुदाय जो अल्लाह के भय से संसार मे रोता हैं। (3) व्यक्तियों का वह समुदाय जो पराई स्त्रीयों पर दृष्टि नही डालता।

39-रेशम का कीडा

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि संसारिक मोह माया मे फसा व्यक्ति रेशम के कीड़े के समान है। क्योकि वह जितना अधिक रेशम अपने ऊपर लपेटता जाता है उसके बाहर निकलने का मार्ग उतना ही तंग होता जाता है। और अन्त मे वह इसी शोक मे मर जाता है।

40- द्विवादी

हज़रत इमाम बाक़िर अलैहिस्सलाम ने कहा कि द्वि वादी व्यक्ति बहुत नीच होते हैं। वह व्यक्ति के सम्मुख उसकी प्रशंसा करते हैं। तथा उसके पीछे उसकी बुराई करते हैं। अगर वह धनी होता है तो उससे ईर्ष्या करते है। और अगर वह विपत्ति मे घिर जाता है तो उसकी सहायता नही करते।

ईरान ने कराची विस्फोटों की कड़ी आलोचना की।इस्लामी गणतंत्र ईरान के विदेशमंत्रालय ने पाकिस्तान के कराची नगर के शीआ बाहुल्य क्षेत्र में बम विस्फोट की कड़ी आलोचना की है।

विदेशमंत्रालय ने सोमवार को एक बयान जारी करके पाकिस्तान की जनता और सरकार विशेषकर इस बम विस्फोट से प्रभावित लोगों के प्रति संवेदना प्रकट की है और इस आतंकवादी आक्रमण को मुसलमानों के मध्य फूट डालने का प्रयास बताया है।

बयान में पाकिस्तान की सरकार और धार्मिक हस्तियों द्वारा आतंकवादी कार्यवाहियों के विरूद्ध क़दम उठाए जाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है और विश्व के सभी देशों को याद दिलाया गया है कि वह आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष पर गंभीरता से ध्यान दें क्योंकि यह सभी देशों के लिए ख़तरा है।

रविवार को पाकिस्तान के कराची नगर के शीआ बाहुल्य क्षेत्र अब्बास टाउन में २ बम विस्फोटों में लगभग ६० लोग शहीद हो गये और २० से अधिक दुकाने तबाह हो गयीं।

सोमवार, 04 मार्च 2013 10:20

ताज-उल-मस्जिद, भोपाल

ताज-उल-मस्जिद, भोपाल

भोपाल स्थित यह मस्जिद भारत की सबसे विशाल मस्जिदों में एक है। इस मस्जिद का निर्माण कार्य भोपाल के आठवें शासक शाहजहां बेगम के शासन काल में प्रारंभ हुआ था, लेकिन धन की कमी के कारण उनके जीवंतपर्यंत यह बन न सकी। 1971 में भारत सरकार के दखल के बाद यह मस्जिद पूरी तरह से बन तैयार हो सकी। गुलाबी रंग की इस विशाल मस्जिद की दो सफेद गुंबदनुमा मीनारें हैं, जिन्हेंश मदरसे के तौर पर इस्तेामाल किया जाता है। तीन दिन तक चलने वाली यहां की वार्षिक इजतिमा प्रार्थना भारत भर से लोगों का ध्यातन खींचती है।

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) की अहादीस (प्रवचन)

यहां पर हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.) की वह अहादीस (प्रवचन) जो एक इश्वरवाद, धर्मज्ञान व लज्जा आदि के संदेशो पर आधारित हैं उनमे से मात्र चालिस कथनो का चुनाव करके अपने प्रियः अध्ययन कर्ताओं की सेवा मे प्रस्तुत कर रहे हैं।

1- अल्लाह की दृष्टि मे अहले बैत का स्थान

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पृथ्वी व आकाश के मध्य जो वस्तु भी है वह अल्लाह तक पहुँचने का साधन ढूँढती है। अल्लाह का धनयवाद है कि हम अहलेबैत सृष्टि के मध्य उस तक पहुँचने का साधन हैं।

तथा हम पैगम्बरों के उत्तराधिकारी हैं व अल्लाह के समीप विशेष स्थान रखते हैं।

2-नशा करने वालीं वस्तुऐं

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि मेरे पिता ने मुझ से कहा कि नशा करने वाली समस्त वस्तुऐं हराम (निषिद्ध) हैं। तथा नशा करने वाली प्रत्येक वस्तु शराब है।

3-सर्व श्रेष्ठ स्त्री

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि सर्व श्रेष्ठ स्त्री वह है जिसे कोई पुरूष न देखे और न व किसी पुरूष को देखे। (पुरूष से अभिप्राय वह समस्त पुरूष हैं जिन से विवाह हो सकता हो।)

4-निस्वार्थ इबादत

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि जो व्यक्ति निस्वार्थ रूप से उसकी इबादत करता है व अपने कार्यों को ऊपर भेजता है। अल्लाह उसके कार्यों का सर्व श्रेष्ठ पारितोषिक उसको भेजता है।

5-निकृष्ट व्यक्ति

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि मेरे पिता ने कहा कि मेरी उम्मत (इस्लामी समाज) मे बदतरीन (निकृष्ट) व्यक्ति वह लोग हैं जो विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पदार्थ खाते हैं, रंगबिरंगे वस्त्र पहनते हैं तथा जो मन मे आता है कह देते हैं।

6- स्त्री व अल्लाह का समीपय

एक दिन पैगम्बर ने अपने साथियों से प्रशन किया कि बताओ स्त्री क्या है? उन्होनें उत्तर दिया कि स्त्री नामूस (सतीत्व) है। पैगम्बर ने दूसरा प्रश्न किया कि बताओ स्त्री किस समय अल्लाह से सबसे अधिक समीप होती है? उन्होने इस प्रश्न के उत्तर मे अपनी असमर्थ्ता प्रकट की। पैगम्बर के इस प्रश्न को हज़रत फ़ातिमा ने भी सुना तथा उत्तर दिया कि स्त्री उस समय अल्लाह से अधिक समीप होती है जब वह अपने घर मे एकांत मे बैठे। यह उत्तर सुनकर पैगम्बर ने कहा कि वास्तव मे फ़ातिमा मेरा एक अंग है।

7- सलवात भेजने का फल

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि कि पैगम्बर ने मुझ से कहा कि ऐ फ़ातिमा जो भी तुझ पर सलवात भेजेगा अल्लाह उसको क्षमा करेगा। तथा सलवात भेजने वाला व्यक्ति स्वर्ग मे मुझ से भेंट करेगा।

8- अली धर्म गुरू व संरक्षक

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि कि पैगम्बर ने कहा कि जिस जिस का मैं मौला हूँ अली भी उसके मौला हैं। तथा जिसका मैं घर्मगुरू हूँ अली भी उसके धर्मगुरू हैं।

9- हज़रत फ़ातिमा का पर्दा

एक दिन पैगम्बर अपने एक अंधे साथी के साथ हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.) के घर मे प्रविष्ट हुए। उसको देखकर हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.) ने अपने आप को छुपा लिया। पैगम्बर ने पूछा ऐ फ़तिमा आपने अपने आपको क्यों छुपा लिया जबकि वह आपको देख भी नही सकता ? आपने उत्तर दिया कि ठीक है कि वह मुझे नही देख सकता परन्तु मैं तो उसको देख सकती हूँ। तथा वह मेरी गन्ध तो महसूस कर सकता है। यह सुनकर पैगम्बर ने कहा कि मैं साक्षी हूँ कि तू मेरे हृदय का टुकड़ा है।

10- चार कार्य

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि कि एक बार रात्री मे जब मैं सोने के लिए शय्या बिछा रही थी तो पैगम्बर मेरे पास आये तथा कहा कि ऐ फ़ातिमा चार कार्य किये बिना नही सोना चाहिए। और वह चारों कार्य इस प्रकार हैं (1) पूरा कुऑन पढ़ना (2) पैगम्बरों को अपना शफ़ी बनाने के लिए प्रार्थना करना। (3) नास्तिक मनुष्यो को प्रसन्न करना। (4) हज व उमरा करना। यह कह कर पैगम्बर नमाज़ पढ़ने लगें व मैं नमाज़ समाप्त होने की प्रतिक्षा करने लगीं। जब नमाज़ समाप्त हुई तो मैंने प्रर्थना की कि ऐ पैगम्बर आप ने मुझे उन कार्यों का आदेश दिया है जिनको करने की मुझ मे क्षमता नही है। यह सुनकर पैगम्बर मुस्कुराये तथा कहा कि तीन बार सुराए तौहीद का पढ़ना पूरे कुऑन को पढ़ने के समान है।और अगर मुझ पर व मेरे से पहले वाले पैगम्बरों पर सलवात पढ़ी जाये तो हम सब शिफ़ाअत करेगें। और अगर मोमेनीन के लिए अल्लाह से क्षमा की विनती की जाये तो वह सब प्रसन्न होंगें।और अगर यह कहा जाये कि - सुबहानल्लाहि वल हम्दो लिल्लाहि वला इलाहा इल्लल्लाहु वल्लाहु अकबर-तो यह हज व उमरे के समान है।

11- पति की प्रसन्नता

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि वाय (हाहंत) हो उस स्त्री पर जिसका पति उससे कुपित रहता हो। व धन्य है वह स्त्री जिसका पति उससे प्रसन्न रहता हो।

12- अक़ीक़ की अंगूठी पहनने का पुण्य

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि जो व्यक्ति अक़ीक़ (एक रत्न का नाम) की अंगूठी धारण करे उसके लिए कल्याण है।

13- सर्वश्रेठ न्यायधीश

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि एक दिन फ़िरिश्तों के मध्य किसी बात पर बहस( वाद विवाद) हो गयी तथा उन्होंने अल्लाह से प्रार्थना की कि इसका न्याय किसी मनुष्य से करा दे, अल्लाह ने कहा कि तुम स्वंय किसी मनुष्य को इस कार्य के लिए चुन लो। यह सुन कर उन्होने हज़रत अली अलैहिस्सलाम का चुनाव किया।

14--नरकीय स्त्रीयां

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कह कि पैगम्बर ने कहा कि मैने शबे मेराज (रजब मास की 27वी रात्री जिस मे पैगम्बर आकाश की यात्रा पर गये थे) नरक मे कुछ स्त्रीयों को देखा उन मे से एक को सिर के बालों द्वारा लटका रक्खा था और इस का कारण यह था कि वह संसार मे गैर पुरूषों(परिवार के सदस्यों के अतिरिक्त अन्य पुरूष) से अपने बालों को नही छुपाती थी। एक स्त्री को उसकी जीभ के द्वारा लटकाया हुआ था। तथा इस का कारण यह था कि वह अपने पति को यातनाऐं देती थी। एक स्त्री का सिर सुअर जैसा और शरीर गधे जैसा था तथा इस का कारण यह था कि वह चुगली किया करती था ।

15-रोज़ेदार

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति रोज़ा रखे परन्तु अपनी ज़बान अपने कान अपनी आँख व शरीर के दूसरे अंगों को हराम कार्यों से न बचाये तो ऐसा है जैसे उसने रोज़ा न रखा हो।

16- सर्व प्रथम मुसलमान

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने मुझसे कहा कि तेरे पति सर्व प्रथम मुसलमान हैं। तथा वह सबसे अधिक बुद्धिमान व समझदार है।

17- पैगम्बर की संतान की साहयता

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि अगर कोई व्यक्ति मेरी सन्तान के लिए कोई कार्य करे व उससे उस कार्य के बदले मे कुछ न ले तो मैं स्वंय उसको उस कार्य का बदला दूँगा।

18- अली व उन के अनुयायी

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने एक बार हज़रत अली अलैहिस्सलाम को देखने के बाद कहा कि यह व्यक्ति व इसके अनुयायी स्वर्ग मे जायेंगे।

19- क़ियामत का दिन व अली के अनुयायी

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि आगाह (अवगत) हो जाओ कि आप व आपके अनुयायी स्वर्ग मे जायेंगे।

20-कुऑन व अहलिबैत

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि जब मेरे पिता हज़रत पैगम्बर बीमारी की अवस्था मे अपने संसारिक जीवन के अन्तिम क्षणों मे थे तथा घर असहाब(पैगम्बर के साथीगण) से भरा हुआ था तो उन्होंने कहा कि मैं अब शीघ्र ही आप लोगों से दूर जाने वाला हूँ। (अर्थात मृत्यु होने वाली है) मैं आप लोगों के बीच अल्लाह की किताब कुऑन व अपने अहलिबैत( पवित्र वंश) को छोड़ कर जारहा हूँ। उस समय अली का हाथ पकड़ कर कहा कि यह अली कुऑन के साथ है तथा कुऑन अली के साथ है। यह दोनों कभी एक दूसरे से अलग नही होंगे यहां तक कि होज़े कौसर पर मुझ से मिलेंगे। मैं क़ियामत के दिन आप लोगों से प्रश्न करूँगा कि आपने मेरे बाद इन दोनों (कुऑन व वंश) के साथ क्या व्यवहार किया।

21- हाथों का धोना

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि अपने अलावा किसी दूसरे की भर्त्सना न करो। किन्तु उस व्यक्ति की भर्त्सना की जासकती है जो रात्री से पूर्व अपने चिकनाई युक्त गंदे व दुर्गन्धित हाथो को न धोये।

22- प्रफुल्ल रहना

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि जो ईमानदार व्यक्ति ख़न्दा पेशानी (प्रफुल्ल) रहता है, वह स्वर्ग मे जाने वाला है।

23- गृह कार्य

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने अपने पिता से कहा कि ऐ पैगम्बर मेरे दोनों हाथ चक्की मे घिरे रहतें है ,एक बार गेहूँ पीसती हूँ दूसरी बार आटे को मथती हूँ।

24- कंजूसी से हानि

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि कंजूसी (कृपणता) से बचो। क्योंकि यह एक अवगुण है तथा एक अच्छे मनुष्य का लक्ष्ण नही है। कंजूसी से बचो क्योकि यह एक नरकीय वृक्ष है ।तथा इसकी शाखाऐं संसार मे फैली हुई हैं। जो इनसे लिपटेगा वह नरक मे जायेगा।

25- सखावत

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि दान किया करो क्यों कि दानशीलता स्वर्ग का एक वृक्ष है। जिसकी शाखाऐं संसार मे फैली हुई हैं जो इनसे लिपटेगा वह स्वर्ग मे जायेगा।

26- पैगम्बर व उनकी पुत्री का अभिवादन

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि वह व्यक्ति जो मुझे व आपको तीन दिन सलाम करे व हमारा अभिवादन करे उसके लिए स्वर्ग है।

27- रहस्यमयी मुस्कान

जब पैगम्बर बीमार थे तो उन्होने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा को अपने समीप बुलाया तथा उनके कान मे कुछ कहा। जिसे सुन कर वह रोने लगीं पैगम्बर ने फिर कान मे कुछ कहा तो वह मुस्कुराने लगीं। हज़रत आयशा (पैगम्बर की एक पत्नी) कहती है कि मैने जब फ़तिमा से रोने व मुस्कुराने के बारे मे पूछा तो उन्हाने बताया कि जब पैगम्बर ने मुझे अपने स्वर्गवासी होने की सूचना दी तो मैं रोने लगी। तथा जब उन्होने मुझे यह सूचना दी कि सर्वप्रथम मै उन से भेंट करूंगी तो मैं मुस्कुराने लगी।

28- हज़रत फ़तिमा के बच्चे

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि अल्लाह ने प्रत्येक बच्चे के लिए एक माता को बनाया तथा वह बच्चा अपनी माता से सम्बन्धित होकर अपनी माता की संतान कहलाता है परन्तु फ़ातिमा की संतान, जिनका मैं अभिभावक हूँ वह मेरी संतान कहलायेगी।

29- वास्तविक सौभाग्य शाली

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि मुझे अभी जिब्राईल (हज़रत पैगम्बर के पास अल्लाह की ओर से संदेश लाने वाला फ़रिश्ता) ने यह सूचना दी है कि वास्तविक भाग्यशाली व्यक्ति वह है जो मेरे जीवन मे तथा मेरी मृत्यु के बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम को मित्र रखे।

30- पैगम्बर अहलेबैत की सभा मे

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि एक दिन मैं पैगम्बर के पास गईं तो पैगम्बर ने मेरे बैठने के लिए एक बड़ी चादर बिछाई तथा मुझे बैठाया। मेरे बाद हसन व हुसैन आये उनसे कहा कि तुम भी अपनी माता के पास बैठ जाओ। तत्पश्चात अली आये तो उनसे भी कहा कि अपनी पत्नी व बच्चों के पास बैठ जाओ। जब हम सब बैठ गये तो उस चादर को पकड़ कर कहा कि ऐ अल्लाह यह मुझ से हैं और मैं इन से हूँ। तू इनसे उसी प्रकार प्रसन्न रह जिस प्रकार मैं इनसे प्रसन्न हूँ।

31- पैगम्बर की दुआ

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर मस्जिद मे प्रविष्ट होते समय कहते थे कि शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से ऐ अल्लाह मुझ पर दरूद भेज व मेरे गुनाहों को माफ़ कर व मेरे लिए अपनी दया के दरवाज़ों को खोल दे। और जब मस्जिद से बाहर आते तो कहते कि शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से ऐ अल्लाह मुझ पर दरूद भेज व मेरे गुनाहों माफा कर व मेरे लिए अपनी रहमत के दरवाज़ों को खोल दे।

32- सुबाह सवेरे उठना

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि एक दिन सुबाह सवेरे पैगम्बर मेरे पास आये मैं सो रही थी। उन्होंने मेरे पैरों को हिलाकर उठाया तथा कहा कि ऐ प्यारी बेटी उठो तथा अल्लाह के जीविका वितरण का अवलोकन करो व ग़ाफ़िल (निश्चेत) न रहो क्योकि अल्लाह अपने बंदों को रात्री के समाप्त होने व सूर्योद्य के मध्य जीविका प्रदान करता है।

33- रोगी अल्लाह की शरण मे

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि जब कोई आस्तिक व्यक्ति रोगी होता है तो अल्लाह फ़रिश्तों से कहता है कि इसके कार्यों को न लिखो क्योकि यह जब तक रोगी है मेरी शरण मे है। तथा यह मेरा अधिकार है कि उसे रोग से स्वतन्त्र करू या उसके प्राण लेलूँ।

34- स्त्रीयों का आदर

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि आप लोगों के मध्य सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति वह है जो दूसरों के साथ विन्रमतापूर्ण व्यवहार करे तथा स्त्रीयों का आदर करे।

35- दासों को स्वतन्त्र करने का फल

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि जो व्यक्ति एक मोमिन दास को स्वतन्त्र करे तो दास के प्रत्येक अंग के बदले मे स्वतन्त्रकर्ता का प्रत्येक अंग नरकीय आग से सुरक्षित हो जायेगा।

36- दुआ के स्वीकार होने का समय

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि अगर कोई मुसलमान शुक्रवार को सूर्यास्त के समय अल्लाह से कोई दुआ करे तो उसकी दुआ स्वीकार होगी।

37- नमाज़ मे आलस्य

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि मैंने अपने पिता से प्रश्न किया कि जो स्त्री व पुरूष नमाज़ पढ़ने मे आलस्य करते हैं उनके साथ कैसा व्यवहार किया जायेगा ? पैगम्बर ने उत्तर दिया कि ऐसे व्यक्तियों को अल्लाह 15 विपत्तियों मे ग्रस्त करता है। जो इस प्रकार हैं-----

(1) अल्लाह उसकी आयु को कम कर देता है। (2) उसकी जीविका को कम कर देता है (3) उसके चेहरे से तेज छीन लेता है।( 4) पुण्यों का फल उसको नही दिया जायेगा ( 5) उसकी दुआ स्वीकृत नही होगी ( 6) नेक व्यक्तियों की दुआ उसको कोई लाभ नही पहुँचायेगी(7) वह अपमानित होगा (8) भूख की अवस्था मे मृत्यु होगी (9) प्यासा मरेगा इस प्रकार कि अगर संसार के समस्त समुन्द्र भी उसकी प्यास बुझाना चाहें तो उसकी प्यास नही बुझेगी। (10) अल्लाह उसके लिए एक फ़रिश्ते को नियुक्त करेगा जो उसे कब्र मे यातनाऐं देगा। (11) उस की कब्र को तंग कर दिया जायेगा। (12) उस की कब्र अंधकारमय बनादी जायेगी। (13) अल्लाह उस के ऊपर फ़रिश्तों को नियुक्त करेगा जो उसको मुँह के बल पृथ्वी पर घसीटेंगें तथा दूसरे समस्त लोग उसको देखेंगें। (14) उससे सख्ती के साथ उसके कार्यों का हिसाब लिया जायेगा। (15)अल्लाह उसकी ओर नही देखेगा और न ही उसको पवित्र करेगा अपितु उसको दर्द देने वाला दण्ड दिया जायेगा।

38- अत्याचारी की पराजय

हज़रत फ़ातिमा ज़हरा(स.) ने कहा कि पैगम्बर ने कहा कि जब दो अत्याचारी सेनाऐं आपस मे लड़ेंगी तो जो अधिक अत्याचारी होगी उस की पराजय होगी।

यहाँ पर अपने प्रियः पढ़ने वालों के लिए हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) के चालीस मार्ग दर्शक कथन प्रस्तुत किये जारहे हैं।

 

1- इल्म की बरतरी

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि जो व्यक्ति ज्ञान प्राप्ति के मार्ग पर चलता है अल्लाह उसके लिए स्वर्ग के मार्ग को खोल देता है। और ज्ञानी को तपस्वी पर इसी प्रकार श्रेष्ठता है जिस प्रकार पूर्णिमा के चन्द्रमा को अन्य सितारों पर।

 

2-ईरान वासी व धर्म

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अगर धर्म सुरैयाँ नामक सितारे पर भी हो तो ईरान का एक पुरूष उसको प्राप्त करने के लिए वहाँ भी पहुँच जायेगा। या यह कहा कि ईरान वासी वहाँ भी पहुँच जायेंगें।

 

3-ईरानियों की धर्म आस्था

जब पैगम्बर पर सुरा-ए- जुमा नाज़िल हुआ (उतरा) और पैगम्बर इस सुरेह को पढ़ते हुए इस आयत पर पहुँचे कि -(व आख़ीरीना मिन हुम लम्मा यलहक़ुबिहिम) तो एक व्यक्ति ने प्रश्न किया कि इस से कौन लोग मुराद हैं ? उसने अपने इस प्रश्न को कई बार दोहराया परन्तु पैगम्बर ने कोई उत्तर न दिया। उल्लेखकर्ता कहता है कि हमारे मध्य सलमाने फ़ारसी उपस्थित थे पैगम्बर ने उसका हाथ उनके काँधे पर रखा तथा कहा कि अगर धर्म सुरैयां नामक सितारे पर भी पहुँच जाये तो इसके देशवासी वहाँ भी पहुँच जायेंगे।

 

4-शिफ़ाअत

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि मैं क़ियामत के दिन चार समुदायों की शिफ़ाअत करूँगा।

क-अपने अहलेबैत के मित्रों की

ख-जिन लोगों ने विपत्ति के समय मेरे अहलेबैत की आवश्यक्ताओं की पूर्ति की होगी।

ग-जो लोग दिल व जबान से मेरे अहलेबैत के मित्र रहे होंग।

घ-जिन्होंने मेरे अहलेबैत की सुरक्षा की होगी।

 

5-कथन व कर्म

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अल्लाह केवल उन कथनों को स्वीकार करेगा जिनके अनुसार कार्य भी किये गये होंगे। और केवल उन कथनों व कार्यों को स्वीकार करेगा जो निःस्वार्थ किये गये होंगें। तथा इन सबके अतिरिक्त यह भी कि वह सुन्नतानुसार किये गये हों।

 

6- नरक की आग का हराम होना

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि क्या मैं आपको उससे परिचित कराऊँ जिस पर नरक की आग हराम है? सबने उत्तर दिया कि हाँ पैगम्बर ने कहा कि जिस व्यक्ति मे गंभीरता,विन्रमता तथा दूसरों के लिए सरलता की भावना जैसे गुन पाये जायेंगे उस पर नरक की आग हराम है।

 

7- ज़ालिम की अलामतें

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अत्याचारी के अन्दर चार लक्षण पाये जाते हैं।

क- अपने से ऊपर वालों की अज्ञा की अवहेलना करता है।

ख- अपने से नीचे वालों कों कड़ाई के साथ आदेश देता है।

ग- हक़ (वास्तविक्ता) से ईर्शा रखता है।

घ- खुले आम अत्याचार करता है।

 

8- धार्मिक ज्ञान

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि धार्मिक ज्ञान के तीन विभाग हैँ।

क-आस्था से सम्बन्धित सिद्धान्तों का ज्ञान (उसूले दीन)

ख-सदाचार का ज्ञान (अखलाक़)

ग-धार्मिक निर्देशों का ज्ञान (फ़िक़्ह)

 

9-बिना ज्ञान

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि जो बिना ज्ञान के धार्मिक निर्देश देता है वह स्वंय भी मरता है तथा दूसरों को भी मारता है।

 

10-रोज़ेदार का सोना

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि रोज़े दार अगर सो भी जाये तो उस का सोना इबादत है। इस शर्त के साथ कि वह किसी मुस्लमान की चुगली न करे ।

 

11-अल्लाह का मास

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि रमज़ान अल्लाह का मास है इसमे पुण्य दो गुने हो जाते हैं व पाप मिट जाते हैं। यह मास पापों के परायश्चित करने तथा मुक्ति पाने का मास है।यह मास नरक से बचने तथा स्वर्ग प्राप्त करने का मास है

 

12- साबिर की निशानिया( लक्षण)

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि साबिर व्यक्ति की तीन निशानियाँ (लक्षण) हैं ।

(1) आलस्य नही करता -क्योंकि अगर आलस्य करेगा तो हक़ को खो देगा।

(2) दुखित नही होता क्योंकि अगर दुखित होगा तो अल्लाह का धन्यवाद नही कर सकेगा।

(3) गिला नही करता क्योंकि गिला करना अल्लाह की अज्ञा की अवहेलना है।

 

13-दुर्गन्ध

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अपने ज्ञानानुसार व्यवहार न करने वाले ज्ञानी के शरीर से नरक मे ऐसी दुर्गन्ध फैलेगी जिससे समस्त नरकवासी दुखीः हो जायेंगें। तथा सबसे बुरा नरकीय व्यक्ति वह होगा जो संसार मे दूसरों को अच्छे कार्य करने के लिए निर्देश देता था परन्तु स्वंय अच्छे कार्य नही करता था। मनुष्य उसके कहने से अच्छे कार्य करके स्वर्ग प्राप्ति मे सफल हो गये परन्तु उसे नरक मे डाल दिया गया।

 

14- संसारिक मोहमाया

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अल्लाह ने दाऊद नामक नबी को संदेश दिया कि अपने और मेरे मध्य संसारिक मोह माया मे लिप्त ज्ञानीयों को वास्ता न बनाना। क्योंकि वह आपको मेरी मित्रता से दूर कर देंगें।वह मुझे प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को मार्ग मे ही लूट लेते हैं। मैं उनके साथ सबसे छोटा व्यवहार यह करता हूँ कि उनसे अपनी इबादत के आनंद को छीन लेता हूँ।

 

15- परलोक का चुनाव

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अगर तुम परलोक की अच्छाईयों व बुराईयों पर इसी प्रकार विशवास करते जिस प्रकार संसार पर विशवास रखते हो तो अपने लिए परलोक को चुन लेते।

 

16- चार प्रश्न

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि क़ियामत के दिन कोई भी व्यक्ति आगे नही बढ़ सकता जब तक उससे निम्ण लिखित चार प्रश्न न पूछ लियें जायें।

क - अपनी आयु को किन कार्यो मे व्यतीत किया?

ख- अपनी जवानी मे क्या व्यर्थ कार्य किये?

ग - धन कहाँ से प्राप्त किया तथा कहाँ व्यय किया?

घ - तथा आन्तिम प्रश्न मेरे अहले बैत (वंश) की मित्रता के सम्बन्ध मे किया जायेगा।

 

17- अल्लाह का प्रेम

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अल्लाह अपने उस बन्दे से प्रेम करता है जो अपने कार्यों को दृढता प्रदान करता है।

 

18- मृत्यु

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि मनुष्य इस संसार मे सोया रहता है जब मृत्यु होती है तो जागता है।

 

19- सात कार्य

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि सात कार्य ऐसे हैं कि अगर कोई व्यक्ति उन मे से किसी एक को भी करे तो उस को मरने के बाद उन सातों कार्यों का बदला दिया जायेगा। वह कार्य निम्ण लिखित हैं।

क- वृक्ष लगाना।

ख- कुआ खोदना।

ग- नहर खुदवाना।

घ- मस्जिद बनवाना।

ङ- कुऑन का लिखना।

च- किसी ज्ञान की खोज करना।

छ- ऐसी संतान छोड़ना जो उसके लिए परायश्चित करे।

 

20-प्रसन्नता (ख़ुशी)

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि प्रसन्नता है उस व्यक्ति के लिए जिसके स्वंय के पाप उसको अपने दूसरे ईमानदार भाईयों के पापों को प्रकट करने से रोकते हों। प्रसन्नता है उस व्यक्ति के लिए जो दानशील हो तथा खर्च से अधिक देता हो और अपने आप को व्यर्थ बोलने व व्यर्थ कार्यों से रोकता हो।

 

21-आले मुहम्मद(पैगम्बर का वंश) की मित्रता

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि-----

क - जो व्यक्ति आले मुहम्मद से प्रेम करता हुआ मरा वह शहीद है।

ख - जान लो कि जो व्यक्ति आले मुहम्मद से प्रेम करता हुआ मरा वह क्षमा किया हुआ मरा।

ग - जान लो कि जो आले मुहम्मद से प्रेम करता हुआ मरा वह परायश्चित किया हुआ मरा।

घ - जान लो कि जो आले मुहम्मद से प्रेमं करता हुआ मरा वह अपने पूर्ण ईमान के साथ मरा।

ङ - जान लो कि जो आले मुहम्मद से ईर्शा करता हुआ मरा क़ियामत के दिन उसके माथे पर लिखा होगा कि यह अल्लाह की दया व कृपा से निराश व हताश है।

च - जान लो कि जो आले मुहम्मद से ईर्शा करता हुआ मरा वह स्वर्ग की सुगन्ध भी नही पासकता।(अर्थात वह स्वर्ग मे नही जासकता)

 

22-नरकीय स्त्री

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अपने पति को बुरा भला कहने वाली स्त्री जब तक अपने पति को प्रसन्न न करले अल्लाह उसके परायश्चित के रूप मे किसी भी कार्य को स्वीकार नही करेगा।। चाहे वह पूरे दिन रोज़ा रखे तथा पूरी रात्री इबादत ही क्यों न करे। तथा सर्व प्रथम ऐसी ही स्त्री को नरक मे डाला जायेगा। और इसी प्रकार का व्यवहार उन पुरूष के साथ किया जायेगा जो अपनी पत्नी पर अत्याचार करते हैं।

 

23-बुरी स्त्री

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि ऐसी स्त्रीयों का कोई भी पुण्य स्वीकार नही किया जायेगा जो अपने पति का सत्कार नही करतीं व उनको ऐसे कार्यों के लिए बाध्य करती हैं जिसकी वह सामर्थ्य नही रखते। तथा जब वह अल्लाह के सम्मुख जायेगीं तो उसके क्रोध का सामना करेगीं।

 

24-अकारण की गई हत्या

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि क़ियामत के दिन सर्व प्रथम अकारण की गई हत्याओं की सुनवाई होगी।

 

25-नरकीय स्त्रीयाँ

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि शबे मेराज(वह रात्री जिस मे पैगम्बर आकाशों की यात्रा पर गये) मैंने नरक मे एक स्त्री को देखा जिसको दण्डित किया जारहा था। मैंने उसके अपराध के बारे मे प्रश्न किया तो बताया गया कि इसने एक बिल्ली को बांध कर रखा और उसको खाने पीने के लिए कुछ नही दिया जिस कारण वह भूखी मर गयी। इसी कारण इस को दण्डित किया जा रहा है।

इसके बाद मैने सवर्ग मे एक ऐसी स्त्री को देखा जो संसार मे पापों मे लिप्त थी। मैंने उसके स्वर्ग मे आने के कारण को पूछा तो बताया गया कि एक बार यह एक ऐसे कुत्ते के पास से गुज़री जिस की जीभ प्यास के कारण बाहर निकली हुई थी। इस ने कपड़े को उतार कर कुएं मे डाल कर भिगोया तथा फिर उसको कुत्ते के मुहँ मे निचौड़ कर उसकी प्यास बुझाई इसी कारण इसके समस्त पाप क्षमा कर दिये गये।

 

26-मनुष्यों की इबादत

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि क़ियामत के दिन समस्त मनुष्य यह आवाज़ सुनेंगें कि कहाँ हैं वह लोग जो मनुष्यों की इबादत करते थे। उठो और उन से अपने कार्यों का बदला ले लो क्योंकि अल्लाह उस कार्य को स्वीकार नही करता जो संसार व संसार वासियों के लिए किया गया हो।

 

27-संसारिक मोह माया

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि क़ियामत के दिन जब एक समुदाय हिसाब किताब के लिए लाया जायेगा तो उनके पुण्य पहाड़ के समान होंगें परन्तु आदेश दिया जायेगा कि इनको नरक मे डाल दो। पैगम्बर के साथी प्रश्न करेंगे कि क्या यह नमाज़ नही पढ़ते थे?पैगम्बर उत्तर देंगें कि यह लोग नमाज़ भी पढ़ते थे तथा रोज़ा भी रखते थे और रात्री के समय भी इबादत करते थे परन्तु इनके दिलो मे संसारिक मोह माया थी तथा सदैव उसको प्राप्त करने के लिए तत्पर रहते थे।

 

28-जिससे प्रेम किया

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि क़ियामत के दिन प्रत्येक व्यक्ति उसके साथ होगा जिससे वह संसार मे प्रेम करता था।

 

29-अली से मित्रता

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अगर कोई यह चाहे कि मेरे साथ जीवन यापन करे मेरे साथ मरे तथा स्वर्ग के बाग मे स्थान प्राप्त करे तो उसको चाहिए कि मेरे बाद आदरनीय अली व उनके मित्रों से मित्रता करे। तथा मेरे बाद मेरे वंश के लोगों का अनुसरण करे क्योंकि वह दार्शनिक व ज्ञानी हैं तथा उनमे मेरा स्वभव पाया जाता है।और धिक्कार है ऐसे लोगों पर जो उनकी श्रेष्ठता को स्वीकार न करे व उनसे मेरे सम्बन्ध को काट दे। अल्लाह ऐसे व्यक्तियों को मेरी शफाअत प्राप्त न होने देगा।

 

30-अली से प्रेम

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि मुझे नबी बनाने वाले की सौगन्ध अगर तुम्हारे दिलों मे अली का प्रेम न हुआ तो पहाड़ के समान भी पुण्य लेकर परलोक मे जाओगे तो नरक मे डाल दिये जाओगे।

 

31-बीमारी

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि जब कोई मुसलमान बीमार होता है तो अल्लाह उसके हिसाब मे उन समस्त पुण्यों को लिख देता है जो वह स्वास्थय की अवस्था मे करता था। तथा उसके सब पाप इस तरह समाप्त हो जातें हैं जैसे वृक्ष से सूखे पत्ते गिर जाते हैं

 

32-मुसलमान नही है

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि जो व्यक्ति सुबह उठ कर मुसलमानों के कार्यों के बारे मे विचार न करे या किसी साहयता माँग रहे मुसलमान की साहयता न करे तो वह मुसलमान नही है।

 

33-ईरानीयों का अन्त

ईरानीयों के एक मुसलमान दूत ने पैगम्बर से सवाल किया कि हम ईरानियों का अन्त किस के साथ होगा? पैगम्बर ने उत्तर दिया कि तुम लोग हम मे से हो तथा तुम लोगों का अन्त मेरे व मेरे परिवार के साथ होगा। इब्ने हश्शाम नामक एक एक इतिहासकार ने उल्लेख किया है। कि यही वह समय था जब पैगम्बर ने कहा था कि सलमान हमारे अहलेबैत मे से है। --

 

34-विश्वासघात

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि अगर कोई मुसलमान यह जानते हुए भी कि मुसलमानों के मध्य मुझ से श्रेष्ठ मौजूद हैं, अपने आप को आगे बढ़ाये तो ऐसा है जैसे उसने अल्लाह, पैगम्बर तथा समस्त मुसलमानों से विश्वासघात किया हो।

 

35-अल्लाह के मार्ग पर लाना

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम से कहा कि अगर आपके द्वारा एक व्यक्ति भी अल्लाह के रास्ते पर आगया तो वह इस से अधिक अच्छा है कि आप पूरे संसार पर शसन करें।

 

36-दुआ स्वीकार नही होगी

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि मानव पर एक ऐसा समय आयेगा कि वह संसारिक मोहमाया मे फस जायेंगें। बाहर से वह नेक लगेगें परन्तु भीतर से दुष्ट होगें वह अल्लाह के प्रति अपने प्रेम को प्रकट नही करेगें उनका धर्म केवल दिखावे के लिए होगा। उनके दिलों मे नाम मात्र को भी अल्लाह का भय न होगा। अल्लाह ऐसे लोंगों को कठोर दण्ड देगा और अगर वह डूबते व्यक्ति के समान भी दुआ करेगें तो उनकी दुआ स्वीकार नही होगी।

 

37-अबूज़र

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि आकाश व पृथ्वी के मध्य अबुज़र(पैगम्बरके एक साथी का नाम) से सत्य कोई नही है।

 

38-ज्ञानी बुद्धिजीवि व दरिद्र

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि ज्ञानियों से प्रश्न करो बुद्धिजीवियों से बातें करो तथा दरिद्रों के साथ बैठो।

 

39-हाथोँ का चूमना

एक व्यक्ति ने हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) के हाथ चूमने की चेष्टा की तो पैगम्बर ने अपने हाथों को पीछे की ओर खींच लिया। तथा कहा कि अजमवासी (अरब के अलावा पूरा संसार) यह व्यवहार अपने राजाओं के साथ करते हैं। मैं राजा नही हूँ मैं तो आप ही मे से एक व्यक्ति हूँ।

 

40-पड़ोसी का भूका होना

हज़रत पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि जो व्यक्ति भोजन करके सोये इस स्थिति मे कि उसका पड़ोसी भूका हो तथा इसी प्रकार उस बस्ती के वासी जिस मे कुछ लोग भूखे हों तथा शेष भोजन करके सोजायें वह मुझ पर ईमान नही लाये। तथा क़ियामत के दिन अल्लाह ऐसे व्यक्तियों पर दया नही करेगा।

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की अहादीस (प्रवचन)

यहाँ पर अपने प्रियः अध्ययन कर्ताओं के लिए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चालीस महत्वपूर्ण कथन प्रस्तुत किये जारहे हैं

1- मित्र व शत्रु

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि आपका मित्र वह है जो आपको बुराईयों से रोके व आप का शत्रु वह है जो आपको बुरे कार्यों का निमन्त्रण दे।

2- वसीयत

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं तुमको वसीयत करता हूँ कि अल्लाह से डरो व अपने स्वास्थ का ध्यान रखकर अपनी आयु को बढ़ाओ। और उन लोगों की भाँती न बनो जो दूसरों को पाप से डराते हैं परन्तु स्वंय पाप से नहीं डरते।

3- जिहाद के प्रकार

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिहाद चार प्रकार के हैं इन मे से दो जिहाद सुन्नत हैं तथा दो जिहाद फ़र्ज़ हैं।

क- फ़र्ज़ जिहाद –

(अ) व्यक्ति का स्वंय अपने वश से लड़ना (अर्थात व्यक्ति अल्लाह के आदेशों की अवहेलना न करना) तथा यह महान् जिहाद है।

(आ) नास्तिक लोगों के साथ लड़ना

ख- सुन्नत जिहाद

(अ) शत्रु से जिहाद तथा यह जिहाद प्रत्येक उम्मत(समाज) पर अनिवार्य किया गया है। अगर यह जिहाद न किया जाये तो उम्मत(समाज) संकट मे घिर जायेगी और यह संकट स्वंय उम्मत द्वारा उत्पन्न किया गया होगा। इस प्रकार का जिहाद सुन्नत है। तथा इस जिहाद की सीमा यहाँ तक है कि इमाम उम्मत के साथ शत्रु की खोज मे निकले तथा उनसे जिहाद करे।

(आ) दूसरा सुन्नत जिहाद यह है कि मनुष्य सुन्नतों को क्रियान्वित करने के लिए प्रयास करे। हज़रत पैगम्बर ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति जो सुन्नतों व अच्छाईयों को क्रियान्वित करता है उसको उसके कार्यो का बदला दिया जायेगा। तथा क़ियामत तक जो व्यक्ति उसके द्वारा क्रियान्वित सुन्नत पर पगबध होंगे उनका पुण्य भी उसको दिया जायेगा इस प्रकार कि उस सुन्नत पर पगबध होने वालों के पुण्य मे कोई कमी नही की जायेगी।

4- संसार का बदला रूप

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कर्बला की यात्रा के समय कहा कि संसार परिवर्तित व अपरिचित होगया है। इसने परिचितों की ओर से मुहँ मोड़ लिया है। यह संसार केवल एक चरी हुई चरागाह के समान शेष रह गया है। क्या आप नही देखते कि हक़ (शोभनीय) पर अमल नही हो रहा है व बातिल(अशोभनीय) से मना नही किया जारहा है। ऐसी स्थिति मे मोमिन (आस्तिक) का मरजाना ही अच्छा है। इस स्थिति मे मैं मृत्यु को भलाई तथा अत्याचारियों के साथ जीवित रहने को मृत्यु समझता हूँ। वास्तव मे लोग संसारिक मोह माया मे फसे हैं व धर्म केवल उनके कथन तक सीमित है। जब उनको विपत्ति के समय परखा जाता है तो धार्मिक लोग कम निकलते हैं।

6 –नेअमतो की अधिकता

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह जब किसी को अपनी ओर से ग़ाफ़िल (निश्चेत) करता है तो उसको अधिक नेअमते प्रदान करता है। तथा उससे शुक्रिये (धन्यवाद) की तौफ़ीक़ (सामर्थ्य) ले लेता है।

7- इबादत(आराधना)

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि एक समुदाय अल्लाह की इबादत स्वर्ग प्राप्ति के लिए करता है। तथा यह इबादत व्यापारियों वाली इबादत है।

एक समुदाय अल्लाह की इबादत नरक के भय के कारण करता है। तथा यह इबादत दासों वाली इबादत है।

एक समुदाय अल्लाह की इबादत इस लिए करता है कि अल्लाह को इबादत योग्य समझता है।तथा यह इबादत सर्वश्रेष्ठ इबादत है व सवतन्त्रता का संकेत देती है।

8- अत्याचार न करो

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह के अतिरिक्त जिसकी कोई सहायता करने वाला न हो उस व्यक्ति पर कभी भी अत्याचार न करो।

9- आवश्यकता

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि इन तीन लोगों के अतिरिक्त आपकी अवश्यक्ता को कोई पूरा नही कर सकता (1) दीनदार (अर्थात धार्मिक व्यक्ति ) (2) वीर पुरूष (3) अच्छा व्यक्तित्व रखने वाला।

 

10- बुद्धि मत्ता व मूर्खता

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि बुद्धिजीवियों की संगत मे बैठना बुद्धिमत्ता का प्रतीक है।मुसलमानो का आपस मे झगड़ना मूर्खता का प्रतीक है। अपने कथन की स्वंय आलोचना करना ज्ञानी होने का प्रतीक है।

11- नरक से मुक्ति

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह के भय से रोना नरक से मुक्ति का कारक है।

12- कंजूस

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि दूसरों को सलाम करने से बचने वाला व्यक्ति कंजूस है।

13- पापीयों के अनुसरण का पल

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर कोई किसी के पास अल्लाह के आदेशों की अवहेलने करने के लिए एकत्रित हों तो वह जो इच्छायें ऱखते उनकी की पूर्ति न होगी और वह जिन चीज़ों से बचना चाहते हैं उनमे ग्रस्त हो जायेंगे।

14- नीचता स्वीकार नही करूँगा

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं अल्लाह की सौगन्ध के साथ कहता हूं कि मैं कभी भी नीचता को स्वीकार नही करूँगा तथा क़ियामत (प्रलय ) के दिन हज़रत फ़ातिमा ज़हरा अपने हज़रत पिता से भेंट करेगीं और उन समस्त अत्याचारों की अपने पिता से शिकायत करेंगी जो पैगम्बर की उम्मत ने उनकी संतान पर किये हैं। और वह व्यक्ति जिसने हज़रत फ़ातिमा की संतान पर अत्याचार किये वह स्वर्ग मे नही जासकता।

15- क़ियाम(आन्दोलन) के उद्देश्य

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं अपने आपको मनवाने, सुखमय जीवन व्यतीत करने,उपद्रव मचाने या अत्याचार करने के लिए नही निकला हूँ। बल्कि मैं चाहता हूँ कि इस्लामी समाज मे सुधार करू तथा लोगों को अच्छे कार्य करने के लिए प्रेरित करूँ व बुराईयों से रोकूँ व अपने नाना व पिता की सुन्नत(शैली) को क्रियान्वित करूँ।

16- शासन का अधिकार

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि हम अहलेबैत शासन के शासन कर रहे लोगों से अधिक हक़दार हैं।

17- इमाम के लक्षण

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि इमाम वह है जो कुऑनानुसार कार्य करे,न्याय के मार्ग पर चले व हक़ का अनुसरण करे तथा स्वंय को अल्लाह की प्रसन्नता के लिए समर्पित करदे।

18- शासन का अधिकार

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ लोगो अगर तुम अल्लाह से डरते हो और हक़ को हक़दार के पास देखने चाहते हो तो यह कार्य अल्लाह की प्रसन्नता के लिए बहुत अच्छा है।हम पैगम्बर के अहलेबैत शासन के अन्य अत्याचारी व व्याभीचारी दावेदारों से अधिक अधिकारी हैं।

19- अत्याचार के सम्मुख चुप रहने का फल

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ लोगो पैगम्बर ने कहा कि अगर कोई देखे कि एक अत्याचारी शासक अल्लाह द्वारा हराम की गयी चीज़ों को हलाल कर रहा है, अपने वचन से फिर रहा है, पैगम्बर की सुन्नत का विरोध कर रहा है, तथा लोगों के मध्य गुनाह व अत्याचार के आधार पर कार्य कर रहा है।तो अगर कोई इस स्थिति मे उसका क्रियात्मक व विचारात्मक विरोध न करे तो वह भी उस अत्याचारी के साथ ही नरक मे डाला जायेगा।

20- अल्लाह को नाराज़ करना

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि वह व्यक्ति कभी भी सफल नही हो सकते जो अल्लाह की प्रजा को प्रसन्न करने के लिए अल्लाह को नाराज़ करदे।

21- वफ़ादार साथी

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुहर्रम की दसवी रात्री मे कहा कि मैने अपने साथियो से अच्छे किसी के साथी नही देखे तथा अपने परिवार से वफादार कोई परिवार नही देखा अल्लाह तुम सबको अच्छा बदला दे।

22- हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथी

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने साथियों के सम्बन्ध मे कहा कि अल्लाह की सौगन्ध मैने इनकी परीक्षा कर ली है मैने इनको वीर व अडिग पाया है। यह लोग मेरे साथ कत्ल होने को इसी प्रकार तत्पर हैं जिस प्रकार एक बच्चा अपनी माता के स्तन के लिए तत्पर रहता है।

23- तसल्ली (सात्वना) के शब्द

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपनी बहन को तसल्ली(सांत्वना) देते हुए कहा कि पृथ्वीवासी मरते है तथा आकाशवासी भी सदैव जीवित रहने वाले नही हैं संसार की समस्त वस्तुओं के लिए मृत्यु है। केवल वह अल्लाह शेष रहेगा जिसने अपनी शक्ति से इस पृथ्वी को रचा है और समस्त प्राणी उसी की ओर पलटायें जायेंगे तथा वह अल्लाह एक है।

24- मृत्यु एक पुल है

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुहर्रम मास की दसवी तारीख को अपने वीर साथियों से कहा कि ऐ शरीफ़ व आदरनीय माता पिता की संतानों धैर्य व संतोष से कार्य करो कि मृत्यु एक पुल मात्र है जो तुमको दुखः दर्द से पार उतार कर अमिट नेअमतों वाले स्वर्ग मे पहुँचा देगा।

25- संसार अल्प कालीन है

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ अल्लाह के बन्दो अल्लाह से डरो व संसारिक मोहमाया के जाल मे न फसो। क्योंकि अगर ऐसा होता कि समस्त संसार एक व्यक्ति को दे दिया जाये या व्यक्ति सदैव इस संसार मे जीवित रहे तो इस कार्य के लिए पैगम्बराने खुदा सर्वश्रेष्ठ थे। परन्तु ऐसा नही है अल्लाह ने इस संसार को नष्ट करने के लिए रचा है। इस संसार की प्रत्येक नवीन वस्तु पुरानी होने वाली है यहाँ की सब नेअमते नष्ट हो जायेंगी तथा समस्त प्रसन्नताऐं दुखोः मे बदल जायेगी। यह संसारअल्प कालिक व साधारण स्थान है। अतः परलोक के लिए सामान तैयार करो व परलोक के लिए सर्वश्रेष्ठ सामान तक़वा है। अतः अल्लाह से डरो शायद इस प्रकार मुक्ति पाजाओ।

26- अपमान स्वीकार नही है

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह की सौगन्ध मैं अपमान के साथ अपना हाथ उसके(यज़ीद) हाथ मे नही दूँगा और न मैं दासों की तरह उनके(यज़ीदी सेना) सामने से मैदान से भागूँगा।

27- हराम भोजन के प्रभाव

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुहर्रम मास की दसवी तारीख को अपने शत्रु की सेना को सम्बोधित करते हुए कहा कि तुम पर धिक्कार हो शांत क्यों नही होते हो कि मेरी बात सुन सको। मैं तुम को मुक्ति के मार्ग पर बुला रहा हूँ, जो मेरी बात मानेगा वह मुक्ति पाने वालों मे से होगा व जो मेरी बात नही मानेगा वह हतात होने वालों मे से होगा। तुम सब न मेरी बात सुन रहे हो और न मेरी बात मान रहे हो। तथा ऐसा इस कारण है कि तुम्हारे पेट हराम भोजन से भरे हुए है तथा तुम्हें जो उपहार दिये गये हैं वह भी हराम हैं अतः अल्लाह ने तुम्हारे दिलों को सील कर दिया अब तुम्हारे ऊपर किसी बात का असर नही होगा।

28- दुष्ट की आधीनता

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जान लो कि कमीने के कमीने पुत्र ने मुझे मृत्यु व अपमान के दोराहे पर ला खड़ा किया है। और मैं कभी भी अपमान के मार्ग को नही चुन सकता। क्योंकि खुदा पैगम्बर व मोमेनीन अपमान को स्वीकार करने से बचते हैं। पवित्र माताओ व शरीफ़ पिताओं की संतान व स्वाभिमानी लोग यह पसंद नही करते कि मृत्यु पर किसी दुष्ट व्यक्ति की आधीनता को प्रधानता दी जाये।

29- अल्लाह का क्रोध

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह के क्रोध की यहूदियों पर उस समय अधिकता हो गयी जब उन्होंने यह कहा कि अल्लाह पुत्रवान है। व इसाईयों पर अल्लाह का क्रोध उस समय बढ़ गया जब वह तीन खुदाओं मे आस्था रखने लगे। व मजूसियों पर अल्लाह का क्रोध उस समय बढ़ गया जब वह उसको छोड़कर सूर्य व चन्द्रमा की पूजा करने लगे व अन्य समुदायों पर अल्लाह का क्रोध उस समय अधिक हो गया जब वह अपने पैगम्बर की पुत्री की संतान की हत्या करने के लिए एक जुट हो गये।

30- स्वतन्त्र व्यक्ति

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ अबुसुफ़यान के परिवार का अनुसरण करने वालो अगर तुम्हारे पास धर्म नही है और तुम परलय के दिन से नही डरते हो तो कम से कम एक स्वतन्त्र व्यक्ति की भाँती जीवन यापन करो। और अगर अपने आपको अरब कहते हो तो अपने उपकारों के बारे मे विचार करो।

31- प्राथमिक्ता व स्वर्ग

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर दो व्यक्तियों के मध्य किसी बात पर झगड़ा हो जाये तो उन दोनों मे से जो भी व्यक्ति दूसरे को मनाने मे प्राथमिकता करेगा व स्वर्ग मे जायेगा।

32- सलाम करने का फल

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि सलाम मे सत्तर पुण्य हैं जिसमे से उन्हत्तर पुण्य उस व्यक्ति के लिए है जो सलाम करे तथा एक पुण्य उस व्यक्ति के लिए है जो सलाम का जवाब दे।

33- अल्लाह का क्रोध व प्रसन्नता

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति जनता के क्रोध की परवाह किये बिना अल्लाह को प्रसन्न करने के लिए कार्य करे तो अल्लाह स्वंय उसके सम्बन्धो को जनता के मध्य अच्छा बना देता है। तथा जो व्यक्ति अल्लाह के क्रोध की परवाह किये बिना जनता को प्रसन्न करने की चेष्टा करता है तो अल्लाह उसको जनता पर ही छोड़ देता है।

34- इमाम महदी की विशेषताऐं

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम नेहज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के बारे मे कहा कि तुम लोग उनको गंभीरता, संतोष, हलाल व हराम की पहचान रखने वाले तथा लोगों को उनकी ओर आकर्षित होने व उनको लोगों से बेज़ार (अन भिज्ञय) रहने के लक्षणो के साथ पहचान सकते हो।

35- संसारिक सुख दुख

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जानलो कि संसार की प्रसन्नताऐं व दुख एक सपने के समान हैं तथा वास्तविकता परलोक मे है।

36- महत्ता का कम होना

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने मुख से ऐसी बात मत कहो जो आपकी महत्ता को कम कर दे।

37- आदर के साथ मरना

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि आदर के साथ मरना अमर हो जाना है और अपमान के साथ जीवित रहना गुमनाम हो जाना है।

38- धोखा धड़ी

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि धोखा धड़ी व बहाना बनाने को हम अहलेबैत हराम जानते हैं।

39- मृत्यु आदम के पुत्रो का हार है

मक्के से इराक़ की ओर यात्रा करते समय बनी हाशिम को सम्बोधित करते हुए हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मृत्यु आदम के पुत्रों के गले की माला है। मैं अपने पूर्वजों को देखने के लिए इस प्रकार तत्पर हूँ जैसे याक़ूब अलैहस्सलाम युसुफ़ अलैहिस्सलाम को देखने के लिए तत्पर थे ।

40- संसारिक व परलोकीय जीवन

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कूफ़े की ओर प्रस्थान करते समय कहा कि इस संसार का जीवन सुखमय व मूल्यवान है। परन्तु परलोक मे अल्लाह से मिलने वाला पुरस्कार इससे अधिक मूल्यवान है।

अगर माल इकठ्ठा करने का परिणाम इससे दूर होजाना है तो इन्सान को चाहिए कि माल मे कंजूसी न करे।

अगर इन्सान की जीविका (अल्लाह द्वारा) विभाजित होती है तो इसको प्राप्त करने मे थोड़ी सी हिर्स अच्छी है।

अगर इन्सान मृत्यु के लिए बनाया गया है तो अल्लाह के मार्ग मे क़त्ल होना कितना अच्छा है ऐ पैगम्बर की संतानो तुम पर अल्लाह की दया व कृपा हो मै शीघ्र तुम्हारे मध्य से चला जाऊँगा।

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम की अहादीस (प्रवचन)

यहां पर अपने प्रिय अध्ययन कर्ताओं के लिए हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम के चालीस मार्ग दर्शन कथन प्रस्तुत कर रहे है।

1- निःस्वार्थता पूर्ण सदुपदेश

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ मनुषयों जो निःस्वार्थ रूप से सदुपदेश दे तथा अल्लाह की किताब को अपना मार्ग दर्शक बनाए तो उसके लिए मार्ग प्रशस्त होगा व अल्लाह उसको सफ़लता देगा व उसकी अच्छाईयों को चिरस्थायी बना देगा। क्योंकि जो अल्लाह की शरण में आगया वह सुरक्षित हो गया अल्लाह का शत्रु(नास्तिक) सदैव भयभीत व निस्सहाय है। अल्लाह का अधिक ज़िक्र (यश गान) करके अपने आप को पापों से बचाओ।

2-हिदायत के लक्षणो को जानना

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जान लो कि हिदायत के लक्ष्णों को जाने बिना तुम तक़वे से परिचित नहीं हो सकते और कुऑन को त्याग देने वालों से परिचित हुए बिना कुऑन के अनुबन्धों को ग्रहण नहीं कर सकते। जब तुम यह सब जान लोगे तो उन चीज़ो से जो लागों ने स्वंय बनाली हैं परिचित हो जाओगे तथा देखोगे कि स्वार्थी लोग किस प्रकार नीचता करते है।

3- वास्तविक्ता व अवास्तविक्ता

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि हक़ (वास्तविक्ता) व बातिल (अवास्तविक्ता) के मध्य चार अँगुल का अन्तर है। जो चीज़ आपने अपनी आखोँ से देखी वह हक़ है तथा जिस चीज़ को अपने कानों से सुना वह अधिकाँश बातिल है।

4-मानव की स्वतन्त्रता व अधिकार

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह बलपूर्वक अपनी अज्ञा का पालन नहीं कराता और वह अवज्ञा से पराजित नहीं होता। उसने मनुषय को निरर्थक शासनाधीन नहीं छोड़ा है। वह उन समस्त वस्तुओं का मालिक है जो उसने मनुषयों को दी हैं और उन समस्त चीज़ों पर शक्तिमान है जिनमे उनको शक्तियाँ दी हैं। उसने मनुषयों को आदेश दिया कि जिन चीज़ों का आदेश दिया उनको ग्रहण करें तथा उसने मनुषयों को मना किया कि जिन चीज़ों से मना किया उनको न करें।

5-ज़ोह्द हिल्म व दुरुस्ती

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से प्रश्न किया गया कि ज़ोह्द क्या है ?आपने उत्तर दिया कि तक़वे को अपनाना व सांसारिक मोहमाया से मूहँ फेरना।

इमाम से प्रश्न किया गया कि हिल्म क्या है? तो आपने उत्तर दिया कि क्रोध को कम करना व इन्द्रियों को वंश में रखना।

इमाम से प्रश्न किया गया कि दुरुस्ति क्या है? आपने उत्तर दिया कि अच्छाईयों के द्वारा बुराईयों का समापन ।

6- तक़वा

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि तक़वा तौबा का द्वार व प्रत्येक ज्ञान का रहस्य है। तथा प्रत्येक कार्य की प्रतिष्ठा तक़वे से है। जो साहिबाने तक़वा (तक़वा धारण करने वाले व्यकति ) के साथ सफल रहा उसने तक़वे मे सफलता प्राप्त करली।

7-वास्तविक ख़लीफ़ा

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ख़िलाफ़त का पद उसके लिए है जो हज़रत पैगम्बर की शैली पर चलते हुए अल्ला की अज्ञानुसार कार्य करे। मैं अपनी जान की सौगन्ध खाकर कहता हूँ कि हम अहले बैत हिदायत की निशानियां व परहेज़गारी की शोभा है।

8- श्रेष्ठता व नीचता की वास्तविक्ता

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम से प्रश्न किया गया कि करम क्या है? आपने उत्तर दिया कि माँगने से पूर्व प्रदान करना व भोजन के समय भोजन कराना।

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलामसे प्रश्न किया गया कि दिनायत (नीचता) क्या है? आपने उत्तर दिया कि छोटी चीज़ें भी प्रदान करने से मना करना तथा दृष्टि का संकुचित होना।

9- परामर्श सफलता की कुँजी

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि कोई भी दो क़ौमें (जातियां) केवल सफलता प्राप्ति के लिए ही परामर्श करती हैं।

10-नीचता

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि नेअमत का शुक्रिया (धन्यवाद) अदा न करना नीचता है।

11-लज्जा व नरक

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि लज्जा नरक में जाने से उत्तम है। अर्थात अगर लज्जित होने से बचने के लिए कोई ऐसा कार्य करना पड़े जो नरक में जाने का कारण बनता हो तो उस कार्य को नहीं करना चाहिए।

12-मित्रता का गुर

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने अपने एक पुत्र से कहा कि ऐ मेरे प्रियः किसी से उस समय तक मित्रता न करना जब तक यह न देखलो कि वह किन लोगों के साथ उठता बैठता है । जब उसके व्यवहार से भली भाँती परिचित हो जाओ तथा उसके व्यवहार को पसंद करने लगो तो उससे मित्रता करो इस शर्त के साथ कि उसकी ग़लतीयों को अनदेखा करो व विपत्ति के समय उसका साथ दो।

13-अपना व पराया

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर एक पराया व्यक्ति अपने प्रेम व मैत्रीपूर्ण व्यवहार से आपसे निकटता प्राप्त कर चुका है तो वह आपका सम्बन्धि है। तथा अगर आपका एक सम्बन्धि भी आपसे प्रेम व मैत्री पूर्ण व्यवहार नहीं करता तो वह पराया है।

15-अल्लाह पर भरोसा

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति उस चीज़ पर क़नाअत (निरीहता) करता है जो अल्लाह ने उसके लिए चुनी है तो वह उस चीज़ की इच्छा नहीं करता जो अल्लाह ने उसके लिए नहीं चुनी।

16-मस्जिद में जाने के लाभ

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति निरन्तर मस्जिद में जाता है उसको आठ लाभ प्राप्त होते हैं

1- उसको अल्लाह की आयतों का ज्ञान प्राप्त होता है।

2- उसको लाभ पहुचाने वाले मित्र प्राप्त होते हैं।

3- उसको नवीनतम ज्ञान प्राप्त होता है।

4- वह जिस रहमत (दया व कृपा) को चाहता है वह प्राप्त होती है।

5- उसे सही मार्ग दर्शन वाले कथन सुनने को मिलते हैं।

6- वह कथन सुनने को मिलते है जो उसे नीचता से निकालने में सहायक होते हैं।

7- अल्लाह के सम्मुख लज्जित होने से बचने के लिए वह पापों को त्याग देता है।

8- अल्लाह के भय के कारण पापों से दूर होजाता है।

17- सर्व श्रेष्ठ आँख,कान व दिल

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि सर्व श्रेष्ठ आँख वह है जो नेकी के मार्ग को देख ले। सर्व श्रेष्ठ कान वह है जो नसीहत को सुने व उस से लाभ उठाए। सर्व श्रेष्ठ दिल वह है जिसमे संदेह न पाया जाता हो।

18-वाजिब व मुस्तहब

जब मुस्तहब्बात* वाजिबात** को नुकसान पहुँचाने लगे तो उस समय मुस्तहब्बात को त्याग देना चाहिए।

* वह कार्य जिनको अल्लाह ने मनुष्य के लिए अनिवार्य नहीं किया है। परन्तु अगर उनको किया जाये तो पुण्य प्राप्त होगा।

**वह कार्य जिनको अल्लाह ने मनुष्यों के लिए अनिवार्य किया है अगर उनको न किया जाये तो मनुष्य दण्डित होगा।

19-नसीहत

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि बुद्धिमान को चाहिए कि जब कोई उससे परामर्श ले तो उसके साथ विश्वासघात न करे।

20-इबादत के चिन्ह की महत्ता

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब तुम अपने भाई से मिलो तो उसके माथे के प्रकाशित भाग(सजदे का चिन्ह) का चुम्बन करो।

21- तज़किया

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर कोई इबादत करने के लिए अल्लाह से दुआ करे तो समझो कि उसका तज़किया हो गया है। अर्थात उसने बुराईयों को त्याग दिया है।

22-सद्व्यवहारिता के लक्षण

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि सद् व्यवहारिता के लक्षण इस प्रकार हैं--

1- सत्यता

2- कठिनाई के समय में भी सत्यता

3- भिखारियों को दान देना

4- कार्यों के बदले को चुकाना

5- अपने रिश्तेदारों से अच्छे सम्बन्ध रखना

6- पड़ौसियों की सहायता करना

7- मित्रों के बारे में वास्तविकता जानना

8- मेहमान नवाज़ (अतिथि पूजक) होना

23- आदर व वैभव

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर सम्बन्धियों के बिना आदर व शासन के बिना वैभव चाहते हो तो अल्लाह की अज्ञा का पालन करो तथा उसके आदेशों की अवहेलना न करो।

24-अहंकार, लोभ, व ईर्ष्या

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अहंकार लोभ व ईर्ष्या मनुष्य को मार डालती है।

अहंकार इससे धर्म बर्बाद होता है तथा इसी के कारण शैतान को स्वर्ग से निकाला गया।

लोभ यह आदमी की जान का शत्रु है इसी के कारण हज़रत आदम को स्वर्ग छोड़ना पड़ा।

ईर्ष्या बुराईयों की जड़ है इसी के कारण क़ाबील ने हाबील की हत्या की।

25-चिंतन

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं तुमको वसीयत करता हूँ कि अल्लाह से डरते रहो व चिंतन में लीन रहो , क्योंकि चिंतन ही समस्त अच्छाईयों का जनक है।

26-हाथों का धोना

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि भोजन से पहले हाथों को धोने से भुखमरी दूर होती है। तथा भोजन के बाद हाथों को धोने से दुखः दर्द समाप्त होते है।

27-संसार व परलोक

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि इस संसार में मनुष्य बेखबर है वह केवल कार्य करता है परन्तु उसके बारे में नहीं जानता। तथा जब परलोक में पहुँचता है तो उसको विश्वास प्राप्त होता है। अतः उस समय उसे ज्ञान प्राप्त होता है परन्तु वह वहां कोई कार्य नहीं कर सकता। अर्थात यह संसार कार्य करने की जगह है जान ने की नही व परलोक जान ने का स्थान है वहां कार्य करने का अवसर नहीं है।

28-व्यवहार

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम मनुष्यों के साथ इस प्रकार से बात चीत करो जैसी बात चीत की तुम उनसे इच्छा रखते हो।

29-पाप व पुण्य

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं डरता हूँ कि पापियों का दण्ड हमारे कारण दोगुना हो जाएगा। तथा उम्मीदवार हूँ कि पुण्य करने वालों के पुण्य का बदला भी हमारे कारण दोगुना हो जाएगा।

अर्थात अगर हमसे प्रेम करते हुए पुण्य करेगा तो उसको पुण्य का दोगुना बदला मिलेगा। व अगर कोई हमारी शत्रुता रखते हुए पाप करेगा तो उसके पाप का दण्ड दोगुना हो जायेगा।

30-बुद्धि हिम्मत व धर्म

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जिसके पास बुद्धि नहीं उसके पास शिष्टाचार नहीं। जिसके पास साहस नहीं उसके पास वीरता नहीं। जिसके पास धर्म नहीं उसके पास लज्जा नहीं।

31-ज्ञान व शिक्षा

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने ज्ञान से दूसरों को शिक्षित करो तथा दूसरों के ज्ञान से स्वंय शिक्षा ग्रहण करो।

32-आदर व वैभव<यh3>

अगर सम्बन्धियों के बिना आदर व शासन के बिना वैभव चाहते हो तो अल्लाह की अज्ञा का पालन करो तथा उसके आदेशों की अवहेलना न करो।

33-धन, दरिद्रता, भय व आनंन्द

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि बुद्धि से बढ़कर कोई धन नहीं, अज्ञानता से बढ़कर कोई दरिद्रता नहीं, घमंड से बढ़कर कोई भय नहीं व सद्व्यवहार से बढ़कर कोई आनंन्द नहीं।

34-ईमान का द्वार

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि हज़रत अली इमान का दरवाज़ा हैं। जो इसमे प्रविष्ठ हो गया वह मोमिन है तथा जो इससे बाहर होगया वह काफ़िर है।

35-अहलेबैत का हक़

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि हज़रत मुहमम्द को पैगम्बर बनाने वाले अल्लाह की सौगन्ध जो भी हम अहलेबैत के हक़ में कमी करेगा अल्लाह उसके अमल में कमी करेगा।

36-सलाम

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो सलाम करने से पहले बात करना चाहे उसकी किसी बात का उत्तर न दो।

37-श्रेष्ठता

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि किसी कार्य को अच्छाई के साथ शुरू करना व इच्छा प्रकट करने से पहले दान देना बहुत बड़ी श्रेष्ठता है।

38-ज्ञान प्राप्ति

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करो अगर उसको सुरक्षित न कर सको तो लिखकर घर में रखो।

39- अल्लाह की प्रसन्नता

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि केवल अल्लाह की प्रसन्नता का ध्यान रखने वाला जब अल्लाह से कोई दुआ करता है तो उसकी दुआ स्वीकार होती है।

40-अनुज्ञापी

हज़रत इमाम हसन अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो अल्लाह का अनुज्ञापी हो जाता है अल्लाह समस्त वस्तुओं को उसका अनुज्ञापी बना देता है।

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम की अहादीस (प्रवचन)

प्रियः अध्ययन कर्ताओं के लिए यहाँ पर हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम के चालीस महत्वपूर्ण कथनो को प्रस्तुत किया जारहा हैं। जिनका अनुसरण करके मनुष्य अपने आपको एक विशिष्ठ व्यक्ति बनासकता है

1- स्वर्ग की सम्पत्ति

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने पुण्यों को छुपाना विपत्तियो पर सब्र (संतोष) करना व विपत्तियों का गिला न करना यह स्वर्ग की सम्पत्ति है।

2- पारसा (विरक्त) व्यक्ति की विशेषताऐं

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि पारसा व्यक्ति वह है जो हलाल कार्यों मे उलझ कर अल्लाह के धन्यवाद को न भूले तथा हराम कार्यो के सम्मुख अपने धैर्य को बनाए रखे।

3- प्रेम

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने मित्रों से प्रेम करो क्योंकि अगर तुम उनके साथ प्रेम नही करोगे तो वह एक दिन तुम्हारे शत्रु बन सकते हैं। तथा अपने शत्रुओं से भी प्रेम करो क्योकि वह इस प्रकार एक दिन आपके मित्र बन सकते है।

4- व्यक्ति का मूल्य

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने अलैहिस्सलाम ने कहा कि हर व्यक्ति का मूल्य उसके द्वारा किये गये पुण्यों के बराबर है।

5- इबादत ज्ञान व कुऑन

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि इबादत से कोई लाभ नही है अगर इबादत तफ़क़्क़ो (धर्म निर्देशों को समझने का ज्ञान) के साथ न की जाये। ज्ञान से कोई लाभ नही अगर उसके साथ चिंतन न हो। कुऑन पढ़ने से कोई लाभ नही अगर अल्लाह के आदेशों को समझने का प्रयत्न न किया जाये।

6- इच्छाओं की अधिकता

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं आप लोगों के विषय मे दो बातों से डरता हूँ

1- इच्छाओं की अधिकता जिसके कारण व्यक्ति परलोक को भूल जाता है।

2- इद्रियों का अनुसरण जो व्यक्ति को वास्तविक्ता से दूर कर देता है।

7- मित्रता

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने मित्र के शत्रु से मित्रता न करो क्योंकि इससे आपका मित्र आपका शत्रु हो जायेगा।

8- सब्र के प्रकार

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि सब्र तीन प्रकार का है।

1-विपत्ति पर सब्र करना।

2-अज्ञा पालन पर सब्र करना।

3-पाप न करने पर सब्र करना।

9- दरिद्रता

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने ने कहा कि जो व्यक्ति दरिद्रता मे लिप्त हो जाये और यह न समझे कि यह अल्लाह की ओर से उस के लिए एक अनुकम्पा है तो उसने एक इच्छा को समाप्त कर दिया। और जो धनी होने पर यह न समझे कि यह धन अल्लाह की ओर से ग़ाफ़िल (अचेतन) करने के लिए है तो वह भयंकर स्थान पर संतुष्ट हो गया।

10- प्रसन्नता व दुखः

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मर जाओ परन्तु अपमानित न हो, डरो नहीं बेझिजक रहो क्योंकि यह जीवन दो दिन का है। एक दिन तेरे लिए लाभ का है तथा एक दिन हानि का लाभ से प्रसन्न व हानि से दुखित न हो क्योकि इन्ही दोनो के द्वारा तुझे परखा जायेगा।

11- मशवरा (परामर्श)

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने ने कहा कि जो व्यक्ति भलाई चाहता है वह कभी परेशान नही होता । तथा जो अपने कार्यों मे मशवरा करता है वह कभी लज्जित नही होता।

12- देश प्रेम

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि शहरों की आबादी देश प्रेम पर निर्भर है।

13- ज्ञान

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि ज्ञान के तीन क्षेत्र हैं

1- धार्मिक आदेशों का ज्ञान

2- शरीर के लिए चिकित्सा ज्ञान

3- बोलने के लिए व्याकरण का ज्ञान

14- विद्वत्ता पूर्ण कथन

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि विद्वत्ता पूर्ण बात करने से मान बढ़ता है।

15- दरिद्रता व दीर्घायु

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने आपको दरिद्रता व दीर्घायु का उपदेश न दो।

16- मोमिन

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मोमिन (आस्तिक) को अपशब्द कहना इस्लामी आदाशों की अवहेलना है। मोमिन से जंग करना कुफ़्र है। व उसके माल की रक्षा उसके जीवन की रक्षा के समान है।

17- पढ़ना व चुप रहना

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि पढ़ो ताकि ज्ञानी बनो। चुप रहो ताकि हर प्रकार की हानि से बचो।

 

18- दो भयानक बातें

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि दरिद्रता के भय व अभिमान ने मनुष्य को हलाक (मार डालना) कर दिया है।।

19- अत्याचारी

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अत्याचार करने वाला, अत्याचार मे साहयता करने वाला तथा अत्याचार से प्रसन्न होने वाला तीनों अत्याचारी हैं।

20- सरहानीय सब्र (धैर्य)

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि विपत्तियों पर सब्र करना सराहनीय हैं परन्तु अल्लाह द्वारा हराम (निषिद्ध) की गयी वस्तुओं से दूर रहने पर सब्र करना यह अति सराहनीय है।

21- धरोहर वस्तुओं का लौटाना

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अमानत (धरोहर) रखी हुई वस्तुओं को वापस लौटाओ। चाहे वह पैगम्बरों की सन्तान के हत्यारों की ही क्यों न हों।

22- प्रसिद्धि

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने आपको प्रसिद्ध न करो ताकि आराम से रहो । अपने कार्यों को छुपाओ ताकि पहचाने न जाओ। अल्लाह ने तुझे दीन समझा दिया है अतः तेरे लिए कोई कठिनाई नही है न तू लोगों को पहचान न लोग तुझे पहचाने।

23- छः समुदायों का दण्ड

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह छः समुदायों को उनके छः अवगुणो के कारण दण्डित करेगा।

1-अरबों को तास्सुब( अनुचित पक्ष पात ) के कारण

2-ग्रामों के मुख्याओं को उनके अहंकार के कारण

3- शसकों को उनके अत्याचार के कारण

4- धर्म विद्वानों को उनके हसद (ईर्ष्या) के कारण

5- व्यापारियों को उनके विश्वासघात के कारण

6- ग्रामवासियों को उनकी अज्ञानता के कारण

24- इमान के अंग

इमान अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि इमान के चार अंग हैं।

1- अल्लाह पर भरोसा।

2- अपने कार्यों को अल्लाह पर छोड़ना।

3- अल्लाह के आदेशों के सम्मुख झुकना।

4- अल्लाह के फ़ैसलों पर राज़ी रहना।

25- सद्व्यवहारिक उपदेश

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने व्यवहार को अच्छाईयों से सुसज्जित करो ।तथा गंभीरता व सहिष्णुता को धारण करो।

26- बुरे कार्यों से दूरी

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि दूसरे लोगों के कार्यों मे अधिक सख्त न बनो। तथा बुरे कार्यों से दूर रह कर अपने व्यक्तित्व को उच्चता प्रदान करो।

27- मनुष्य की रक्षा

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि कोई व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसकी सुरक्षा का प्रबन्ध अल्लाह की और से न होता हो । वह सुरक्षा करने वाले कुए में गिरने दीवार के नीचे दबने व नरभक्षी पशुओं से उसकी रक्षा करते हैं । परन्तु जब उसकी मृत्यु का समय आजाता है तो वह अपनी सुरक्षा को उससे हटा लेते है।

28-भविषय

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मानव पर एक ऐसा समय आयेगा कि उस समय कोई प्रतिष्ठा न पायेगा मगर एक ऐसा आदमी जिसकी कोई अहमियत न होगी।उस समय अल्लाह के आदेशों की अवहेलना करने वाले को सद् व्यवहारी व बुद्धिमान तथा विश्वासघाती को धरोहर समाझा जायेगा। उस समय सार्वजनिक समप्ति को व्यक्तिगत सम्पत्ति व सदक़ा देने को हानि समझा जायेगा।इबादत को लोगों पर अत्याचार ज़रिया बनाया जायेगा। ऐसे समय में स्त्रीयां शासक होंगी दासियों से परामर्श किया जायेगा तथा बच्चे गवर्नर होंगें।

29- झगड़े के समय होशयारी

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि झगड़े के समय ऊँटनी के दो साल के बच्चे के समान बन जाओ क्योंकि न उससे सवारी का काम लिया जासकता है और न ही उसका दूध दुहा जासकता है।अर्थात झगड़े से इस प्रकार दूर रहो कि कोई आपको उसमे लिप्त न कर सके।

30- दुनिया

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब यह दुनिया किसी को चाहती है तो दूसरों की अच्छाईयां भी उससे सम्बन्धित कर देती है। तथा जब किसी से शत्रुता करती है तो उसकी अच्छाईयां भी उससे छीन लेती हैं।

31- अशक्त व्यक्ति

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि कमज़ोर व्यक्ति वह है जो किसी को अपना मित्र न बना सके। तथा उससे अधिक कमज़ोर वह व्यक्ति है जो किसी को मित्र बनाने के बाद उससे मित्रता को बाक़ी न रख सके।

32- -पापों का परायश्चित

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि गुनाहाने कबीरा (बड़े पापों) का परायश्चित यह है कि दुखियों के दुखः को दूर किया जाये तथा सहायता चाहने वालों की सहायता की जाये।

33- बुद्धि मत्ता का लक्ष्ण

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब मनुष्य की अक़्ल कामिल(बुद्धि परिपक्व )हो जाती है तो वह कम बोलने लगता है।

34- अल्लाह से सम्पर्क

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अल्लाह से अपना सम्पर्क बनाता है तो अल्लाह दूसरे व्यक्तियों से भी उसका सम्बन्ध स्थापित करा देता है। जो परलोक के लिए कार्य करता है अल्लाह उसके सांसारिक कार्यों को स्वंय आसान कर देता है। तथा जो अपनी आत्मा को स्वंय उपदेश देता है अल्लाह उसकी रक्षा करता है।

35- कमी व वृद्धि

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि दो व्यक्ति मेरे कारण मारे जायेंगे (1) वह व्यक्ति जो प्रेम के कारण मुझे अत्य अधिक बढ़ायेगा (2)वह व्यक्ति जो शत्रुता के कारण मुझे बहुत कम आंकेगा।

36- किसी के कथन को कहना

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि आप जब भी कोई कथन सुनो तो पहले उसको बुद्धि के द्वारा समझो तथा परखो बाद में किसी दूसरे से कहो। क्योंकि ज्ञान को नक़्ल करने वाले बहुत हैं परन्तु उसके नियमों का पालन करने वाले बहुत कम है।

37- पापों से दूरी का फल

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति पाप करने की शक्ति के होते हुए भी पाप न करे वह फ़रिश्तों के समान है। तथा धर्म युद्ध में शहीद होने वाले व्यक्ति को भी उससे अधिक बदला नहीं दिया जायेगा।

38- पापों का अप्रियः अन्त

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि याद रखो कि पापों का आनंद शीघ्र समाप्त हो जाता है। तथा पापों का अप्रियः अन्त सदैव बाक़ी रहता है।

39- दुनिया की विशेषता

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि सांसारिक मोह माया की विशेषता यह है कि यह धोखा देती है, हानि पहुँचाती है व चली जाती है।

40- अन्तिम चरण के अनुयायी

हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मानवता पर एक ऐसा समय आयेगा कि जब इस्लाम केवल नाम मात्र के लिए होगा।कुऑन केवल एक रस्म बनकर रह जायेगा। उस समय मस्जिदें नई व सुसज्जित परन्तु मार्ग दर्शन से खाली होंगी। तथा इन मस्जिदों को बनाने वाले धरती के सबसे बुरे प्राणी होंगे वह फ़िसाद फैलायेंगे। जो फ़िसाद से दूर भागना चाहेगा वह उसको फ़िसाद की ओर पलटायेंगें।अल्लाह तआला अपनी सौगन्ध खाकर कहता है कि मैं ऐसे व्यक्तियों को इस प्रकार फसाऊँगा कि सूझ बूझ रखने वाले भी परेशान हो जायेंगे। हम अल्लाह से चाहते हैं कि हमारी असतर्कता को अनदेखा करे।

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम की अहादीस (प्रवचन)

अपने प्रियः अध्ययन कर्ताओं के लिए यहाँ पर हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम के चालीस मार्ग दर्शक कथन प्रस्तुत किये जारहे है।

1- विश्वास

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि दुखित करने वाली विपत्तियों मे प्रसन्न रहना प्रथम श्रेणी का विश्वास है।

2- आत्मा की महानता

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति महान आत्मा रखता है वह संसार को निम्ण समझता है।

3- संसार महत्ता का तत्व नही है

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि महत्वपूर्ण व्यक्ति वह है जो संसार को अपनी महत्ता का तत्व न समझे

4- असत्य से दूरी

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि झूट से बचो चाहे वह छोटा हो या बड़ा चाहे वह मज़ाक़ (मनोविनोद) मे कहा गया हो या वास्तव मे बोला गया हो।क्योकि जो छोटा झूट बोलता है उसको बड़ा झूट बोलने का भी मनो बल प्राप्त होता है।

5- आत्म रक्षा

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि समस्त भलाई इसमे है कि मनुष्य अपने व्यक्तित्व की रक्षा करे।

6- बुरी संगत

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि----

1-कभी झूट बोलने वालों के पास न बैठो क्योंकि वह मरीचिका के समान है।वह क़रीब(समीप) को आप से दूर व दूर को आपसे क़रीब करता है।

2- कभी फ़ासिक़ (अल्लाह के आदेशों की खुले आम अवहेलना करने वाला) के पास न बैठो क्योंकि वह आपको एक लुक़्मे या इससे भी कम पर बेंच देगा।

3-कभी कंजूस के पास न बैठो क्योकि वह तुम्हे तुम्हारी अवश्यकता के समय छोड़ देगा।

4- कभी मूर्ख के पास न बैठो क्योंकि वह आपको लाभ पहुचाना चाहेगा परन्तु आपको हानि होगी।

5- कभी भी उसके पास मत बैठो जिसने अपने रक्त सम्बन्धियों से नाता तोड़ लिया हो क्योंकि कुऑन ने ऐसे व्यक्ति को मलऊन कहा है। मलऊन अर्थात अल्लाह की दया व कृपा से दूर।

7- व्यर्थ बोलने से दूरी

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि मुसलमान के अध्यात्म की विशेषता यह है कि वह न व्यर्थ बोलता है न व्यर्थ बहस करता है। वह धैर्यवान,संतोषी व सदाचारी होता है।

8- कार्यों का अंकन

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ आदम की संतानों अगर तुम अपनी आत्मा को नसीहत करते रहो, अपने कार्यों का अंकन करते रहो व अल्लाह के भय को अपने ऊपर व पारसाई को अपने अन्दर स्थान दो तो कभी भी ख़ैर (भलाई) से दूर नही हो सकते हो।

9- दुआ का परिणाम

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि मोमिन अपनी दुआ से तीन परिणाम प्राप्त करता है। या उसकी दुआ दुनिया मे पूरी हो जाती है। या उसके लिए परलोक मे जमा हो जाती है। या उससे विपत्तियाँ दूर हो जाती है।

10- विवाहित की नमाज़

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि विवाहित व्यक्ति की दो रकत नमाज़ अविवाहित की सत्तर रकत नमाज़ से श्रेष्ठ है।

11- मुक्ति के उपाय

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि तीन वस्तुऐं मोमिन की मुक्ति का कारण हैं ।

1-लोगों की चुग़ली न करना।

2-अपने आपको उन कार्यों मे वयस्त रखना जो उसे संसार व परलोक मे लाभ पहुँचाए।

3-अपने पापों पर रोना। (परायश्चित करना)

12- स्वर्ग का अभीलाषी

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो स्वर्ग का अभिलाषी है उसे चाहिए कि अच्छाईयों की ओर बढे व बुराईयों से दूर रहे। जो नरक से भय खाता है उसे चाहिए कि अपने पापों की अल्लाह से माफ़ी माँगे और हराम की हुई चीज़ो से दूर रहे।

13- मोमिन को देखना

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि एक मोमिन का दूसरे मोमिन के चेहरे को प्रेम पूर्वक देखना इबादत है।

14- पारसाई

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह को इससे प्रियः कोई बात नही लगती कि कोई उसको पहचान ने के बाद अपने आपको पारसा बना ले।

अल्लाह इस बात को भी प्रियः रखता है कि उससे प्रत्येक वस्तु माँगी जाये।

15- क्षमा

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर एक व्यक्ति आपकी दाहनी ओर खड़ा होकर आपको अपशब्द कहे और बाँयी ओर आकर क्षमा माँगले तो उसको क्षमा कर दो।

16- अल्लाह का बन्दो पर अधिकार

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह का अधिकार यह है कि उसकी इबादत की जाये तथा किसी दूसरे को उसका सम्मिलित न किया जाये। अगर निस्वार्थ रूप से ऐसा किया जाये तो अल्लाह की ज़िम्मेदारी है कि वह तुम्हारे संसारिक व परलोकीय कार्यों को सुधारे तथा जो तुम उससे चाहे तुम्हे दे।

17- पिता का पुत्र पर अधिकार

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने पिता के अधिकार को जानो क्योंकि वह तुम्हारी जड़ है तथा तुम उसकी शाख़ा हो । जानलो कि अगर वह न होता तो तुम भी न होते। जिस समय भी अपने अन्दर कोई ऐसी चीज़ देखो जिससे तुम्हे प्रसन्नता हो तो जानलो कि वह तुमको तुम्हारे पिता से मिली है। क्योंकि तुम्हारी प्रसन्नता व नेअमत का आधार तुम्हारे पिता है। तुम्हे चाहिए कि अल्लाह का धन्यवाद करो।

18- अल्लाह की अज्ञा पालन

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह तथा उन लोगों की अज्ञा पालन को जिनकी अज्ञा पालन को अल्लाह ने अनिवार्य किया है प्राथमिकता दो ।

19- माता का संतान पर अधिकार

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि तुम्हारे ऊपर तुम्हारी माता का अधिकार यह है कि तुम यह जान लो कि उसने तुमको वहां उठाया जहाँ कोई किसी को उठा नही सकता। उसने इस प्रकार अपना दूध तुमको पिलाया कि कोई दूसरा नही पिला सकता। वह माता ही है जिसने प्रसन्नता पूर्वक अपने हाथों पैरों आँखों कानों व बालों को तुम्हारी देख रेख के लिए ढाल( कवच) बना दिया। समस्त दुख दर्द को तुम्हारे जन्म के समय तक सहन किया। वह तुम्हारा पेट भरकर व स्वंय भूकी रहकर तथा तुम्हे ढक कर व स्वंय खुली रहकर तुम्हे पानी पिलाकर व स्वंय प्यासी रहकर तुम्हे साये मे रख कर व स्वंय धूप मे रहकर खुद संकट मे रहकर व तुम्हे सुखः प्रदान करके खुद जाग कर व तुम्हे सुला कर के भी प्रसन्न रहती थी। उसका पेट तुम्हारे अस्तित्व का ठिकाना तथा उसकी गोद तुम्हारे आराम की जगह व उसके स्तन तुम्हारे जलपान का केन्द्र थे तथा उसकी जान सदैव तुम पर निछावर थी। उसने संसार के समस्त कष्टों को तुम्हारे कारण सहन किया इस सब को दृष्टि मे रख कर अपनी माता के स्थान को पहचानो व तुम इतनी सामर्थ्य नही रखते हो कि ऐसा कर सको परन्तु अल्लाह की सहायता से।

20- ज्ञान

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर मनुष्य यह जान ले कि ज्ञान मे कितना लाभ है तो उसको अपने दिल का खून बहाकर व भँवर मे फसकर भी प्राप्त करे।

21- पवित्र व्यक्तियों की संगत मे बैठने की महत्ता

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि पवित्र लोगों की संगत पवित्रता की ओर बुलाती है व ज्ञानीयों की संगत बुद्धि को बढाती है।

22- वह पाप जो दुआ की स्वीकृति के मार्ग मे बाधक हैं

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि बद नियती, आन्तरिक अपवित्रता, अपने भाईयों के साथ विशवासघात, दुआ के स्वीकृत होने मे आस्था न रखना, अपनी वाजिब नमाज़ों को देर से पढ़ना, दान व सहायता के त्याग के कारण अल्लाह से दूर हो जाना तथा अपशब्द बोलना ऐसे पाप हैं जिनके कारण दुआ स्वीकृत नही होती।

23- अमरता को त्यागने वाले

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि आश्चर्य है ऐसे लोगों पर जो नशवरीय संसार के लिए तो कार्य करते हैं, परन्तु अमर रहने वाले परलोक के लिए कार्य नही करते।

24- दोष लगाने का फल

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो लोगों पर उस चीज़ का दोष लगाता जो उनमे पायी जाती है। तो वह उस पर उन चीज़ों का दोष लगायेंगे जो उसमे नही पायी जाती हैं।

25- संसार मार्ग है लक्ष्य नही है

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह के नेक बन्दे संसास मे संसार प्राप्ति के लिए कार्य नही करते बल्कि वह संसार मे परलोक के लिए कार्य करते हैं।

26- अल्लाह की शरण

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऐ अल्लाह मैं हिर्स, क्रोध की तीव्रता, ईर्ष्या व बुरा संरक्षण करने से बचने के लिए तेरी शरण चाहता हूँ।

27- पापीयों के पास बैठने से मना

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि पापीयों के पास बैठने, अत्याचारीयों की सहायता करने व अल्लाह के आदेशों की अवहेलना करने वालों से बचो उनके उपद्रव से चौकस रहो तथा उनसे दूर रहो।

28- अल्लाह के दूतों के विरोध का फल

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि यह जानलो कि जो अल्लाह के नुमाइन्दों( दूतों) का विरोध करे व अल्लाह के धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म का अनुसरण करे व अल्लाह के दूतों को छोड़ कर अपनी राय को मनवाने के लिए बल दे तो ऐसे व्यक्ति को नरक की आग मे डाला जायेगा।

29- अल्लाह की शक्ति व उसका समीपय

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह से डरो क्योंकि व तुम से शक्तिशाली है। अल्लाह से लज्जा व शर्म करो क्योंकि वह आपसे बहुत क़रीब(समीप) है।

30- मित्रता व शत्रुता

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि किसी से भी शत्रुता न करो चाहे आप यह भी सोचते हों कि वह आपको कोई हानि नही पहुँचा सकता। व इसी प्रकार किसी से मित्रता समाप्त न करो चाहे आप यह सोचते हो कि वह आपको कोई लाभ नही पहुचा सकता।

31- कान का फल

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि प्रत्येक वस्तु के लिए एक फल है तथा कान का फल पवित्र कथन है।

32- आत्मा का आदर

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी आत्मा को आदरनीय समझेगा उसकी दृष्टि मे संसार की कोई महत्ता न होगी।

33- सत्यता व वफ़ादारी

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि समस्त कार्यों की अच्छाई सत्यता मे है तथा समस्त कार्यों का अच्छा अन्त वफ़ादारी मे है।

34- चुग़ली

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि चुग़ली करने से बचो क्योंकि यह नरकीय कुत्तों का भोजन है।

35- दानि व कंजूस

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि सख़ी( दानि) अपनी दानशीलता से प्रसन्न होता है। व कंजूस अपने माल पर फ़ख्र (गर्व) करता है।

36- स्वर्ग का लिबास(परिधान)

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर कोई किसी मोमिन को पहनने के लिए वस्त्र देगा तो अल्लाह उसको स्वर्ग मे हरे रंग का परिधान देगा।

37- मोमिन का व्यवहार

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि मोमिन का व्यवहार यह है कि वह तंगी के समय मे भी दान करता है। तथा जब उसके पास धन की अधिकता होती है तो वह उस अधिकता के अनुसार दान करता है। वह मनुष्यों के मध्य न्याय स्थापित करता है व दूसरों को सलाम करने मे प्राथमिकता करता है।

38- सुख मय जीवन

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि मैं किसी के लिए भी यह पसंद नही करता कि वह संसार मे केवल सुखमय जीवन व्यतीत करे और कोई कष्ट न झेले।

39- शीघ्र मिलने वाले दण्ड व पुरूस्कार

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि दूसरों के साथ की गई भलाई का फल अन्य पुण्यों की अपेक्षा शीघ्र प्रदान किया जायेगा। तथा अत्याचार का दण्ड अन्य पापों की अपेक्षा शीघ्र दिया जायेगा।

40- दुआ व विपत्तियाँ

हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ने कहा कि दुआ विपत्तियों को टालती है यहां तक कि अनिवार्य रूप से आने वाली विपत्तियों को भी टाल देती है। दुआ आई हुई व आने वाली समस्त विपत्तियों को टाल देती है।