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ईरान ने जीता फ्रीस्टाइल कुश्ती विश्व कप, वरिष्ठ नेता व राष्ट्रपति ने बधाई दी
ईरान ने फ्रीस्टाइल कुश्ती का विश्व खिताब जीत लिया जिस पर इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता, राष्ट्रपति और संसद सभापति ने टीम और ईरानी जनता को बधाई दी है।
ईरान ने तेहरान में शुक्रवार को टूर्नामेंट के अंतिम दिन रूस को हराने के बाद वर्ष 2013 का फ्रीस्टाइल कुश्ती विश्व कप खिताब अपने नाम कर लिया है।
टूर्नामेंट में रूस दूसरे स्थान पर रहा जबकि तीसरे स्थान पर अमरीका ने क़ब्ज़ा जमाया।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनई ने शुक्रवार की रात एक संदेश में फ्री स्टाइल विश्व कप में ईरानी टीम की खिताबी जीत तथा रोमन कुश्ती में ईरानी टीम की सफलता पर बधाई दी और आशा प्रकट की कि खेल कूद सहित विभिन्न क्षेत्रों में ईरानी युवाओं की सफलताओं के क्रम में वृद्धि होगी। ईरान राष्ट्रपति और संसद सभापति ने भी अलग अलग संदेशों में वर्ष 2013 के फ्रीस्टाइल कुश्ती विश्व कप खिताब जीतने पर ईरान की कुश्ती टीम और जनता को बधाई दी है। तेहरान में आयोजित अंतरराष्ट्रीय कुश्ती प्रतियोगिता के समापन के बाद एक भव्य समाहोह में ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदी नेजाद के हाथों जीतने वाले खिलाड़ियों को स्वर्ण पदक दिए गए।
फ्रीस्टाइल कुश्ती विश्व कप के मुक़ाबले 21 फ़रवरी को शुरू हुए थे।
ईरान, रूस, अमरीका, आज़रबाईजान, जॉर्जिया, कजाकिस्तान, जापान, बेलारूस, बुल्गारिया और तुर्की ने इस टूर्नामेंट में भाग लिया।
अमरीकी ड्रोन हमलों से आम नागरिकों को भारी नुक़सान
पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी ने आतंकवाद से लड़ाई के बहाने देश के क़बायली क्षेत्रों में किये जा रहे अमरीकी ड्रोन हमलों को प्रतिकूल बताया है। अमरीकी ड्रोन हमलों में बड़ी संख्या में मारे जा रहे आम नागरिकों की ओर संकेत करते हुए ज़रदारी ने कहा कि दोनों देशों को क्षेत्र में सक्रिय आतंकियों के विरुद्ध अभियान में कोई और मार्ग चुनना होगा।
अमरीकी सीनेट सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल के साथ भेंट में ज़रदारी ने यह भी उल्लेख किया कि इन हमलों से आम लोगों को भारी क्षति पहुंच रही है। ज़रदारी ने आतंकवादियों द्वारा पाकिस्तानी सेना और अर्धसैनिक बलों पर किये जा रहे हमलों पर भी चिंता जताई।
ईरान-पाकिस्तान गैस पाइप लाईन योजना शीघ्र होगी आरंभ
तेहरान में पाकिस्तान के राजदूत ख़ालिद अज़ीज़ बाबर ने कहा है कि निकट भविष्य में ईरान-पाकिस्तान गैस पाइप लाईन का काम आरंभ होगा।
उन्होंने तेहरान में कश्मीर दिवस के अवसर पर होने वाले कार्यक्रम में कहा कि एक ईरानी कंपनी के माध्यम से ईरान-पाकिस्तान गैस पाइप लाईन का काम शीघ्र ही आरंभ हो जाएगा और दिसंबर वर्ष 2015 में यह परियोजना पूरी हो जाएगी। ज्ञात रहे कि इससे पूर्व पाकिस्तान के केंद्रीय मंत्रीमंडल ने ईरान से पाकिस्तान गैस स्थानांतरित करने वाली पाइप लाइन परियोजना के समझौते के अंतिम स्वीकृति दे दी थी। परियोजना के लिए ईरान, पाकिस्तान को दो चरणों में 50 करोड़ डॉलर का ऋण भी देगा। ज्ञात रहे कि इस योजना के पूरा होने से प्रतिदिन दो करोड़ साठ लाख घनमीटर गैस ईरान से पाकिस्तान सप्लाई की जाएगी। इस योजना में ईरान ने अपने भाग का काम पहले ही पूरा कर लिया है।
हज़रत अली की वसीयत
महापुरुष व बुद्धिमान लोग अपने जीवन काल के बेहतरीन अनुभवों को प्रवचन व वसीयत के रूप में , परलोक की यात्रा की प्रतीक्षा कर रहे थे।
ज़बान व क़लम से बयान करते हैं ताकि आने वाले लोगों के लिए जीवन का पाठ बने। हज़रत अली अलैहिस्सलाम का संपूर्ण जीवन ही पाठ लेने योग्य है और उन्होंने विशेष अवसरों पर अपने बच्चों व साथियों को मूल्यवान वसीयतें व नसीहतें की हैं। ये सभी अनुशंसाएं मूल्यवान हैं किन्तु हज़रत अली (अ) के जीवन की अंतिम वसीयत विशेष महत्व रखती है। हज़रत अली (अ) ने अपने जीवन की अंतिम घंड़ियों में यह वसीयत की है। जिस समय वह सबसे दुष्ट व्यक्ति की विष में बुझी हुयी तलवार के घाव के कारण बिस्तर पर
इस अंतिम भेंट के समय हज़रत अली की इच्छानुसार उनके सभी बेटे उनके पास बैठे हुए थे। वे सब भीगी आंखों से अपने दयालु पिता को देख रहे थे ताकि उनकी बात सुनें। हज़रत अली के अनुरोध पर बनी हाशिम के बड़े व समझदार लोग भी उपस्थित थे। हज़रत अली का बिस्तर अपेक्षाकृत एक बड़े कमरे में बिछा हुआ था। जो भी कमरे में प्रविष्ट होता हज़रत अली को देख कर सहज ही रोने लगता किन्तु इमाम अली उन्हें ढारस बंधाते हुए कहते थेः धैर्य रखो, बेचैन मत हो। यदि जान जाओ कि मैं क्या सोच व देख रहा हूं तो कदापि दुखी न होगे। जान लो कि मेरी बस यही इच्छा है कि यथाशीघ्र अपने सरदार पैग़म्बरे इस्लाम (स) के पास पहुंच जाउं। मैं चाहता हूं कि अपनी दयालु व त्यागी पत्नी फ़ातिमा ज़हरा से जल्दी से जल्दी भेंट करूं।
हज़रत अली की दृष्टि सभी के पूरे अस्तित्व में समायी जा रही थी। वे एक के बाद एक सबको देखते जा रहे थे कि उनकी दृष्टि अपने सबसे बड़े बेटे हज़रत हसन पर जाकर ठहर गयी जिनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। उन्हें देख कर हज़रत अली ने आह भर कर कहाः बेटा हसन! और निकट आओ! तुम्हारे आकर्षक चेहरे को देख कर पैग़म्बरे इस्लाम की याद ताज़ा हो जाती थी। तुम में झलक पैग़म्बरे इस्लाम की इतनी अधिक झलक आती है कि आश्चर्य होता है। इमाम हसन आगे बढ़े और हज़रत अली के पास बैठ गए। फिर हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने एक संदूक़ लाने का आदेश दिया। सबके सामने संदूक़ को खोला। ज़ुल्फ़ेक़ार नामक तलवार, पैग़म्बरे इस्लाम की पगड़ी व चादर मोहरबंद पुस्तिका और स्वंय एकत्रित किए गए क़ुरआन सब एक एक करके इमाम हसन के हवाले किये और उपस्थित लोगों को गवाह बनाते हुए कहाः तुम सब गवाह रहो! मेरे बाद पैग़म्बरे इस्लाम के नाती हसन इमाम व मार्गदर्शक हैं। फिर अपना चेहरा इमाम हसन की ओर मोड़ कर उन्हें देखने लगे। कई बार उन्हें सिर से पैर तक निहारा और कहाः प्रिय हसन! और निकट आओ तुम्हारा चेहरा सबसे अधिक पैग़म्बरे के चेहरे से मिलता है और तुम्हारा शरीर भी सबसे अधिक पैग़म्बरे इस्लाम के शरीर से मिलता है। तुम दोनों पैग़म्बरे इस्लाम के पुत्र हो।
हज़रत अली ने फिर इमाम हसन को संबोधित करते हुए कहाः मेरे बेटे! मेरे बाद तुम समाज के ज़िम्मेदार होगे। यदि मेरे हत्यारे को छोड़ने का निर्णय लो तो तुम्हें अधिकार है और यदि उसे उसके कृत्य का दंड देने का निर्णय लेना तो उसके सिर पर केवल एक ही वार करना, ध्यान रहे कि बदला लेने में ईश्वरीय सीमाओं से आगे न निकलना। अब मेरे बेटे काग़ज़ व क़लम ले आओ और सबके सामने जो कह रहा हूं उसे लिखो। इमाम हसन (अ) हज़रत अली (अ) के आदेश पर क़लम काग़ज़ ले आए और अपने पिता की वसीयत को लिखने के लिए तय्यार हो गए। हज़रत अली ने कहना आरंभ कियाः ईश्वर के नाम से जो अत्यंत कृपाशील व दयावान है। यह वह लिखित बात है जिसकी अली वसीयत कर रहा हैः उसकी पहली वसीयत यह है कि वह गवाही देता है कि अनन्य ईश्वर के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं है। वही ईश्वर जो अकेला है जिसका कोई सहभागी नहीं और इस बात की भी गवाही देता है कि मोहम्मद ईश्वर के बंदे और उसके पैग़म्बर हैं।
ईश्वर के अनन्य होने व पैग़म्बरे इस्लाम की पैग़म्बरी की गवाही हज़रत अली के पूरे अस्तित्व में बचपन से ही रच बस गयी थी। हज़रत अली उस समय से पैग़म्बरे इस्लाम के रहस्यों को जानते थे जब वे हेरा नामक गुफा में जाते और एकांत में अपने ईश्वर की उपासना करते थे। ईश्वरीय संदेश वही के प्रकाश को देखते और पैग़म्बरी की महक को सूंघते थे।
अनन्य ईश्वर व हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम की पैग़म्बरी की गवाही के बाद हज़रत अली (अ) ने समाज के सबसे महत्वपूर्ण मामलों का चार आधारों पर उल्लेख किया। वे चार आधार ईश्वर से भय व इच्छाओं से मुक्ति, मुसलमानों के बीच एकता व समरस्ता, वंचितों व दरिद्रों की सहायता और सामाजिक सुरक्षा व शांति हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने छोटी किन्तु अमर व अथाह अर्थ समेटे हुए अपनी वसीयत में जो स्वतंत्रताप्रेमियों व बुद्धिमान लोगों के लिए एक स्थायी पथप्रदर्शक है, इस प्रकार फ़रमायाः मैं, आप लोगों और अपने बच्चों व परिवार के सदस्यों तथा जिन तक हमारा संदेश पहुंचे ईश्वर से भय रखने, मामलों को सुव्यवस्थित रूप से अंजाम देने और एक दूसरे से मेलजोल की अनुशंसा करता हूं। क्योंकि मैंने स्वंय पैग़म्बरे इस्लाम से सुना हैः लोगों के बीच मेल जोल कराना कई वर्ष के रोज़ों व नमाज़ से बेहतर है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी वसीयत का आरंभ ईश्वर का भय रखने से करते हैं क्योंकि ईश्वर के निकट सबसे अधिक सम्मानीय वही है जिसके मन में उसका भय सबसे अधिक है। सांसारिक तड़क-भड़क से स्वतंत्रता और सांसारिक मायामोह से पीछा छुड़ाना ईश्वर से भय रखने वाले की मुख्य विशेषता है जिसकी हज़रत अली (अ) अनुशंसा कर रहे हैं। जब व्यक्ति ईश्वर से भय रखेगा और उसके मन में चमक-दमक से भरे इस संसार का तनिक भी मोह नहीं होगा उस समय उसे इतनी शांति व स्वतंत्रता का आभास होगा कि वह सत्य के सिवा कुछ और नहीं कहेगा।
इसके बाद हज़रत अली अलैहिस्सलाम मामलों में सुव्यवस्था पर ध्यान व सामाजिक नियमों के प्रति कटिबद्धता को सभी स्वतंत्रताप्रेमियों व अच्छे लोगों के लिए आवश्यक बताते हैं और ईश्वर से भय के साथ साथ मामलों के सुनियोजित प्रबंधन पर बल देते हैं। एक प्रगतिशील व उच्च समाज में सामाजिक संबंध की सबसे आवश्यक व सफलता की पहली शर्त मामलों का सुव्यवस्थित प्रबंधन है। इमाम अली इसी प्रकार लोगों के बीच मेल-जोल व मैत्रीपूर्ण संबंध पर बल दिया और इसे इस्लामी समाज की आवश्यकताओं में गिनवाया है। निःसंदेह एक दूसरे से मनमुटाव व मतभेदों को हवा देना, एकता व विकास तथा उचित व्यक्तिगत व सामाजिक परिवर्तन के मार्ग में रुकावट है। लड़ाई-झगड़ा व गुटीय विवाद मानसिक व सामाजिक स्वास्थय के ख़राब होने तथा हर समाज के उचित विकास के मार्ग में रुकावट है। हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपने जीवन के अंतिम क्षणों में एकता बनाए रखने पर देते हुए लोगों के बीच मेल-जोल पैदा करने के लिए हर प्रकार के निष्ठा भरे प्रयास व मुस्लिम समाज में विभिन्न वर्गों के साथ सौहार्द को आम नमाज़ रोज़ों से बेहतर बताया है। इसके बाद मुसलमानों विशेष रूप से अनाथों व दरिद्रों की समस्याओं के निदान के महत्व के बारे में इन शब्दों में कहते हैः ईश्वर के लिए अनाथों के संबंध में सावधान रहो! ऐसा न हो कि वे कभी पेटभरे और कभी भूखे रह जाएं।
हज़रत अली मुसलमानों व वंचितों की समस्याओं के निदान की आवश्यकता के संबंध में समाज के सबसे अधिक कमज़ोर व संवेदनशील वर्ग अर्थात अनाथ बच्चों की ओर संकेत करते हैं और उनकी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति पर बल देते हैं। हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी वसीयत में अनाथों के बारे में सिफ़ारिश के पश्चात पड़ोसियों के अधिकारों पर बल देते हुए कहते हैः ईश्वर के लिए अपने पड़ोसियों के साथ अच्छा व्यवहार करो क्योंकि पैग़म्बरे इस्लाम ने उनके बारे में तुम्हें सिफ़ारिश की है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी अंतिम वसीयत में क़ुरआन पर ध्यान और इस अमर किताब के आदेशों के पालन पर बल देते हैं और नमाज़ पढ़ने की धर्म के मूल स्तंभों के रूप में सिफ़ारिश करते हैं और हज अंजाम देने के लिए ईश्वर के घर में उपस्थित होने पर बल देते हुए कहते हैः ईश्वर के लिए क़ुरआन पर ध्यान दो, ऐसा न हो कि दूसरे इसके आदेशापालन में तुमसे आगे निकल जाएं। ईश्वर के लिए नमाज़ पर ध्यान दो कि यह तुम्हारे धर्म का स्तंभ है और अपने ईश्वर के घर के अधिकार का पालन करो कि जब तक हो उसे ख़ाली न छोड़ो यदि इसका सम्मान न किया तो ईश्वरीय प्रकोप का शिकार हो जाओगे।
हज़रत अली अपनी मूल्यवान व अमर वसीयत के अंतिम भाग से पूर्व ईश्वर के मार्ग में जान व माल से संघर्ष, भले कर्म करने व बुरे कर्मों से दूर रहने, एक दूसरे के साथ मेल-जोल व मित्रता की सिफ़ारिश करते हैं और फिर अपनी वसीयत के अंतिम भाग में कहते हैः हे अब्दुल मुत्तलिब के बेटो! ऐसा न हो कि मेरी शहादत के बाद तुम अपनी आस्तीनें चढ़ा कर बाहर निकल आओ और मुसलमानों के ख़ून से हाथ रंग लो और यह कहने लगो कि मोमिनों के अमीर मार दिए गए। जान लो कि मेरे हत्यारे के अतिरिक्त कोई और न मारा जाए। जान लो अगर तलवार के इस वार के कारण मैंने संसार को अलविदा कह दिया तो तुम भी उसे केवल एक ही वार लगाना।
मक्का मस्जिद हैदराबाद, भारत
मक्का मस्जिद हैदराबाद, भारत में स्थित एक मस्जिद और ऐतिहासिक इमारत है। यह भारत का सबसे पुराना और बड़ा मस्जिद है।
मुहम्मद क़ुली क़ुत्ब शाह, हैदराबाद के 6वें सुलतान ने 1617 मे मीर फ़ैज़ुल्लाह बैग़ और रंगियाह चौधरी के निगरानी मे इसका निर्माण शुरू किया था।
यह काम अब्दुल्लाह क़ुतुब शाह और तना शाह के वक़्त में ज़ारी रहा और 1694 में मुग़ल सम्राट औरंग़ज़ेब के वक़्त में पुरा हुआ।
कहते है कि इसे बनाने मे लगभग 8000 राजगीर और 77 वर्ष लगे।
महान क्रान्ति का जश्न
११ फरवरी २०१२ को ईरान की इस्लामी क्रांति को सफल हुए ३३ वर्षों का समय हो गया है और अब इस क्रांति का ३४वां वर्ष आरंभ हो रहा है। इस क्रांति को सफल हुए जितने दिन गुज़र रहे हैं यह क्रांति दिन प्रतिदिन सुदृढ़ व मज़बूत होती जा रही है। २२ बहमन अर्थात ११ फरवरी को ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ पर निकाली जाने वाली विशेष रैलियों में जनता की भव्य उपस्थिति और उसके सुदृढ़ होने की सूचक है। जनता की यह उपस्थिति इस बात की सूचक है कि ईरान की इस्लामी क्रांति के प्रभाव व संदेश असीम सोते की भांति निकल कर पूरे दुनिया में फैल रहे हैं। इस क्रांति का बाक़ी रहना और दिन प्रतिदिन उसका उन्नति करना इस क्रांति की इस्लामी पहचान के सुपरिणाम हैं। ईरान की इस्लामी क्रांति की पहचान, २०वीं शताब्दी की समस्त क्रांतियों से भिन्न सांस्कृतिक एवं धार्मिक है। यह क्रांति उस समय सफल हुई जब पूरा विश्व दो ध्रुवों में बंटा हुआ था। एक शक्ति का ध्रुव पूर्व सोवियत संघ था जो धर्म को राष्ट्रों का अफीम समझता था और उसका आधार मार्कस्वादी विचारधारा थी जबकि शक्ति का दूसरा ध्रुव अमेरिका था। इस शक्ति का आधार भी उदारवाद था और वह धर्म को व्यक्तिगत वस्तु मानता था। उदारवाद का आधार मानवतावाद है और इस विचार धारा में धर्म का कोई स्थान नहीं है। इसी कारण ईरान की इस्लामी क्रांति का आधार पूरी तरह धार्मिक व सांस्कृतिक था और वह साम्राज्य विरोधी बड़ी घटना थी। इस क्रांति के बारे में ईरान की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय हज़रत इमाम ख़ुमैनी ने बेहतरीन वाक्य कहा है। वह कहते कहते हैं कि इस्लामी क्रांति प्रकाश का झमाका थी। पश्चिमी बुद्धिजीवियों एवं विश्लेषकों ने ईरान की इस्लामी क्रांति को दो ध्रुवीय विश्व में ऐसे राजनीतिक भूकंप का नाम दिया जिसने अंतर्राष्ट्रीय समीकरण को परिवर्तित कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्व में अत्याचारी व्यवस्था का बोलबाला था और विश्व के विभिन्न क्षेत्र दोनों ब्लाकों व ध्रुवों में बंटे हुए थे। वारसा और नैटो सैनिक संगठन इस अन्यायपूर्ण व्यवस्था के रक्षक थे। इन दोनों ध्रुवों से बाहर और इन पर निर्भर हुए बिना कोई भी परिवर्तन या क्रांति सफल नहीं होती थी। ईरान की इस्लामी क्रांति "न पूरब, न पश्चिम" के नारे के साथ सफल हुई। स्वर्गीय हज़रत इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में ईरान की इस्लामी क्रांति ने अपने आरंभ में ही अत्याचारी शासक मोहम्मद रज़ा की सरकार और साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष आरंभ कर दिया था। २०वीं शताब्दी में यह पहली बार था जब एक धर्मगुरू ने देशी एवं विदेशी तानाशाहों एवं साम्राज्य के विरुद्ध न्याय की आवाज़ उठाई और धर्म को राष्ट्रों के संघर्ष के स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया। ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता से पूर्व तक समस्त स्वतंत्रता प्रेमी एवं विश्व में साम्राज्य विरोधी आंदोलनों का झुकाव मार्कस्वादी विचारधारा की ओर होता था और वे पूर्व सोवियत संघ की सहायता से पश्चिमी साम्राज्य के विरुद्ध संघर्ष करते थे। साम्यवाद के विरोधी भी उदारवाद की विचारधारा पर भरोसा करके अत्याचारी कम्युनिस्ट सरकारों से संघर्ष करते थे। इस संबंध में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पूर्वी युरोप के देशों में स्वतंत्रता प्रेमी आंदोलनों का इतिहास अध्ययन योग्य है। ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता एक ओर अमेरिका के लिए बड़ा आघात थी तो दूसरी ओर वह रूस की कम्युनिस्ट सरकार के लिए भी आघात थी जो धर्म को राष्ट्रों के लिए अफीम समझता व कहता था। ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता ने वास्तव में साम्राज्यवाद विरोधी पताका को पूर्व सोवियत संघ के हाथों से ले लिया। इसी कारण शक्ति के दोनों ध्रुवों ने इस्लामी क्रांति की सफलता को अपने और अपने समर्थकों व घटकों के लिए ख़तरा समझा तथा उन्होंने एकजुट होकर इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले को अपनी कार्यसूचि में रखा। पूर्व सोवियत संघ से संबंधित वामपंथी गुट आरंभ में ही ईरान की इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले के लिए उठ खड़े हुए और उन्होंने ईरान के उत्तरी एवं पश्चिमी क्षेत्रों में गृहयुद्ध आरंभ कराने की चेष्टा की। रूस के वामपंथी गुटों के नारों के खोखला होने और उनकी वास्तविकताओं का ज्ञान ईरानी राष्ट्र को हो जाने के कारण इस्लामी क्रांति के विरुद्ध इन गुटों का सशस्त्र आंदोलन विफल हो गया परंतु अमेरिका ने इस्लामी क्रांति की सफलता के आरंभ से ही अपने समस्त स्वतंत्रता प्रेमी एवं लोकलुभावन नारों के साथ इस क्रांति से अपनी शत्रुता व द्वेष को स्पष्ट कर दिया और ईरान के विरुद्ध किसी भी प्रकार की राजनीतिक एवं सैनिक कार्यवाही में संकोच से काम नहीं लिया। सत्तालोलुप लोगों का समर्थन और विद्रोह करवाना ईरान की इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले हेतु अमेरिकी कार्यवाहियों का एक भाग था। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी के अनुयाई छात्रों ने तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर, जो ईरानी राष्ट्र के विरुद्ध जासूसी करने एवं षडयंत्र रचने के केन्द्र में परिवर्तित हो चुका था, नियंत्रण कर लिया जिससे ईरानी राष्ट्र से अमेरिका के क्रोध में और वृद्धि हो गयी। अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने ईरान के विरुद्ध राजनीतिक कार्यवाहियों के साथ सैनिक एवं आर्थिक कार्यवाहियों का आदेश दिया। तेहरान में अमेरिकी दूतावास पर नियंत्रण हो जाने के बाद जिमी कार्टर ने समस्त राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को ईरान से तोड़ लिया और ईरान पर आर्थिक प्रतिबंध लगाये जाने की सूचना दी। इस प्रतिबंध पर स्वर्गीय हज़रत इमाम खुमैनी की प्रतिक्रिया शिक्षाप्रद है। १६ दिसंबर वर्ष १९७९ को इमाम ख़ुमैनी ने इस संबंध में कहा"हम इसके पश्चात इस बात की अनुमति नहीं देंगे कि बाहरी लोग हमारे देश में आयें और हम पर शासन करें, हम स्वयं अपने स्वीमी हैं। वे जितना भी दबाव डालना चाहते हैं डालें और आर्थिक घेराबंदी के लिए जितना भी षडयंत्र करना चाहें, करें। हम आर्थिक प्रतिबंधों से नहीं डरते हैं" इमाम खुमैनी ने जिमी कार्टर को संबोंधित करते हुए कहा" क्या दुनिया श्री कार्टर का अनुसरण करती है कि जब वे कहेंगे कि आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया जाये तो पूरी दुनिया कहेगी जी हां हम आर्थिक प्रतिबंध लगा देगें। यह उन ग़लतियों में से है जो बुद्धि से परे यह बड़ी शक्तियां करती हैं वह सोचती हैं कि अब हमारे पास एक शक्ति है और समस्त लोग और पूरा विश्व हमारा अनुसरणकर्ता है" अमेरिका की वर्चस्वादी नीति के मुक़ाबले हेतु इस परिवेष्टन का ईरानी राष्ट्र के दृढ़ संकल्पों पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। अमेरिका ने ईरान के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही के लिए सद्दाम को उकसाया और उसने ईरान के विरुद्ध आठ वर्षीय युद्ध आरंभ कर दिया। इस युद्ध में अमेरिका, रूस और उनके घटकों ने ईरान के विरुद्ध सद्दाम सरकार को हर प्रकार के आधुनिकतम शस्त्रों से लैस किया परंतु अंत में सद्दाम और उसके समर्थकों को पराजय का कटु स्वाद चखना पड़ा और ईरानी राष्ट्र की भूमि का एक इंच भी इराकी अधिकार में नहीं रहा। ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता के पहले दशक में उस पर आर्थिक परिवेष्टन और द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे लम्बा युद्ध थोप दिया गया परंतु इससे ईरान की इस्लामी क्रांति कमज़ोर नहीं हुई। यद्यपि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने क्रांति की सुरक्षा के मार्ग में अपने दसियों हज़ार शूरवीर युवाओं की आहूति दी और ईरान की आधार भूत सुविधाओं को बहुत क्षति पहुंची परंतु ईरान की इस्लामी क्रांति ने इन कड़े प्रतिबंधों और सद्दाम द्वारा थोपे युद्ध के कारण बड़ी ही मूल्यवान उपलब्धियां अर्जित कीं और स्वतंत्रता एवं स्वयं पर भरोसा करके विभिन्न क्षेत्रों में उसने असाधारण प्रगति की। ईरान ने ज्ञान- विज्ञान के क्षेत्र में जो प्रगतियां की हैं उनका आरंभ उसने इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान या युद्ध की समाप्ति के बाद किया था। ईरान ने ये उपलब्धियां उस स्थिति में अर्जित की हैं जब अमेरिका ने ईरान को प्रगति से रोकने के लिए हर प्रकार की बाधा व समस्या उत्पन्न कर रखी है। अमेरिकी सरकार ने गत ३३ वर्षों से ईरान पर विभिन्न क्षेत्रों में प्रतिबंध लगा रखा है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान पर इन प्रतिबंधों का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा है और ईरान के विरुद्ध इस प्रकार के प्रतिबंधों में जितनी वृद्धि होगी उससे ईरान की इस्लामी क्रांति से मुक़ाबले में अमेरिका की अक्षमता अधिक स्पष्ट होगी। ईरान की इस्लामी क्रांति का अतल सोता सूखने वाला नहीं है और गत एक वर्ष से उत्तरी अफ्रीक़ा से लेकर मध्यपूर्व के विभिन्न इस्लामी देशों में जनक्रांतियां आरंभ हो चुकी हैं जो ईरान की इस्लामी क्रांति के संदेशों के क्षेत्र और पूरे विश्व में पहुंचने की सूचक हैं। इन जनक्रांतियों में स्वतंत्रता प्रेम और न्याय को आधार बनाना इस बात का सूचक है कि इन जनांदोलनों ने ईरान की इस्लामी क्रांति को अपना आदर्श बनाया है। २२ बहमन अर्थात ११ फरवरी की रैलियों में ईरानी जनता की भव्य उपस्थिति इस बात की परिचायक है कि इसकी जड़ें ईरानी जनता के हृदयों में हैं और अमेरिका एवं उसके घटकों का दबाव ईरान पर जितना अधिक होगा उतना ही ईरानी जनता और अधिकारियों के मध्य क्रांति की आकांक्षाओं की सुरक्षा हेतु समरसता व एकता में वृद्धि होगी।
ईरान में क़ाहिर-313 नामक युद्धक विमान का अनावरण
इस्लामी क्रांति की सफलता की वर्षगांठ के अवसर पर मनाए जाने वाले स्वतंत्रता प्रभावत के तीसरे दिन ईरानी विशेषज्ञों के हाथों तैयार स्थानीय लड़ाकू विमान क़ाहिर-313 का अनावरण किया गया। इस अवसर पर राष्ट्रपति अहमदी नेजाद, रक्षा मंत्री वहीदी और सशस्त्र सेना के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। राष्ट्रपति अहमदी नेजाद ने इस नए युद्धक विमान के अनावरण समारोह में कहा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान की रक्षा प्रगति किसी भी देश पर आक्रमण के लिए नहीं बल्कि प्रतिरक्षा के लिए हैं। उन्होंने कहा कि क़ाहिर-313 की डिज़ाइनिंग और निर्माण, ईरानी राष्ट्र के आत्मविश्वास, जागरूकता और विकास की ओर अग्रसर रहने का चिन्ह है। उन्होंने कहा कि यह सफलता उस राष्ट्र ने प्राप्त की है जो कई हज़ार वर्षों के इतिहास और संस्कृति व सभ्यता का स्वामी है। इस समारोह में रक्षा मंत्री ब्रिगेडियर जनरल अहमद वहीदी ने भी कहा कि क़ाहिर-313 युद्धक विमान को रडार नहीं पकड़ सकते और यह अत्याधुनिक विमान है। उन्होंने कहा कि ईरान पूरी दुनिया में अपने हितों की रक्षा कर रहा है। जनरल वहीदी ने कहा कि क़ाहिर युद्धक विमान आक्रमण की भरपूर क्षमता रखता है ईरान के रक्षा विशेषज्ञों के योग्यता, क्षमता और साहस का मुंह बोलता प्रमाण है। ज्ञात रहे कि पिछले सप्ताह ईरानी वैज्ञानिकों ने एक जैविक कैप्सूल के साथ पीशगाम नामक रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा था और घोषणा की गई है कि अगले ग्रीष्मकाल में ज़फ़र नामक उपग्रह धरती की कक्षा में भेजा जाएगा। इस प्रकार ईरान ने यह दर्शा दिया है कि शत्रुओं विशेष कर साम्राज्यवादी शक्तियों के प्रतिबंधों और षड्यंत्रों के बावजूद वह विज्ञान व तकनीक के क्षेत्र में निरंतर प्रगति करता जा रहा है। ईरान की युवा पीढ़ी, शत्रुओं के कुप्रचारों के विपरीत अपने देश से बहुत अधिक प्रेम करती है तथा देश को प्रगति एवं विकास की चोटियों तक पहुंचाने के लिए अथक मेहनत कर रही है।
وَهُوَ الَّذِي جَعَلَ لَكُمُ النُّجُومَ لِتَهْتَدُوا بِهَا فِي ظُلُمَاتِ الْبَرِّ وَالْبَحْرِ ۗ قَدْ فَصَّلْنَا الْآيَاتِ لِقَوْمٍ يَعْلَمُونَ
और वही है जिसने तुम्हारे लिए तारे बनाए, ताकि तुम उनके द्वारा स्थल और समुद्र के अंधकारों में मार्ग पा सको। जो लोग जानना चाहे उनके लिए हमने निशानियाँ खोल-खोलकर बयान कर दी है [6:97]
इमाम सादिक़ अलैहिस सलाम का अख़लाक़
अल्लामा इब्ने शहर आशोब लिखते हैं कि एक दिन हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) ने अपने एक नौकर को किसी काम से बाज़ार भेजा। जब उस की वापसी में बहुत देर विलंब हुआ तो आप उस की तलाश में निकल पड़े, देखा कि वह एक जगह पर लेटा हुआ सो रहा है, आप उसे जगाने के बजाए उस के सरहाने बैठ गये और पंखा झलने लगे जब वह जागा तो आप ने उस से कहा कि यह तरीक़ा सही नही है। रात सोने के लिये और दिन काम करने के लिये है। आईन्दा ऐसा न करना। (मनाक़िब जिल्द 5 पेज 52)
अल्लामा अली नक़ी साहब लिखते हैं कि आप उसी मासूम सिलसिले की एक कड़ी हैं जिसे अल्लाह तआला ने इंसानों के लिये आईडियल और नमून ए अमल बना कर पैदा किया है। उन के सदाचार और आचरण जीवन के हर दौर में मेयारी हैसियत रखते हैं। विशेष विशेषताएँ जिन के बारे में इतिकारों ने ख़ास तौर पर लिखा है वह मेहमान की सेवा, ख़ौरात व ज़कात, चुपके से ग़रीबों की मदद करना, रिश्तेदारों के साथ अच्छा बर्ताव करना, सब्र व हौसले के काम लेना आदि है।
एक बार एक हाजी मदीने आया और मस्जिदे रसूल (स) में सो गया। आँख खुली तो उसे लगा कि उस की एक हज़ार की थैली ग़ायब है उसने इधर उधर देखा, किसी को न पाया एक कोने इमाम सादिक़ (अ) नमाज़ पढ़ रहे थे वह आप के पहचानता नही था आप के पास आकर कहने लगा कि मेरी थैली तुम ने ली है, आप ने पूछा उसमें क्या था, उसने कहा एक हज़ार दीनार, आपने कहा कि मेरे साथ आओ, वह आप के साथ हो गया, घर आने के बाद आपने एक हज़ार दीनार उस के हवाले कर दिये वह मस्जिद में वापस आ गया और अपना सामान उठाने लगा तो उसे अपने दीनारों की थैली नज़र आई। यह देख वह बहुत शर्मिन्दा हुआ और दौड़ता हुआ इमाम की सेवा में उपस्थित हुआ और माँफ़ी माँगते हुए वह थैली वापस करने लगा तो हज़रत ने उससे कहा कि हम जो कुछ दे देते हैं वापस नही लेते।
इस ज़माने में तो यह हालात सब के देखे हुए है कि जब यह ख़बर होती है कि अनाज मुश्किल से मिलेगा तो जिस के पास जितना संभव होता है वह ख़रीद कर रख लेता है मगर इमाम सादिक़ (अ) के किरदार का एक वाक़ेया यह है कि एक बार आप के वकील मुअक़्क़िब ने कहा कि हमें इस मंहगाई और क़हत में कोई परेशानी नही होगी, हमारे पास अनाज का इतना ख़ज़ाना है कि जो बहुत दिनों तक हमारे लिये काफ़ी होगा। आपने फ़रमाया कि यह सारा अनाज बेच डालो, उसके बाद जो हाल सब का होगा वही हमारा भी होगा जब अनाज बिक गया तो कहा कि आज से सिर्फ़ गेंहू की रोटी नही पकेगी बल्कि उसमें आधा गेंहू और आधा जौ मिला होना चाहिये और जहाँ तक हो सके हमें ग़रीबों की सहायत करनी चाहिये।
आपका क़ायदा था कि आप मालदारों से ज़्यादा ग़रीबों की इज़्ज़त किया करते थे, मज़दूरों की क़द्र किया करते थे, ख़ुद भी व्यापार किया करते थे और अकसर बाग़ों में ख़ुद भी मेहनत किया करते थे। एक बार आप फावड़ा हाथ में लिये बाग़ में काम कर रहे थे, सारा बदन पसीने से भीग चुका था, किसी ने कहा कि यह फ़ावड़ा मुझे दे दीजिये मैं यह कर लूँगा तो आपने फ़रमाया कि रोज़ी कमाने के लिये धूप और गर्मी की पीड़ा सहना बुराई की बात नही है। ग़ुलामों और कनीज़ों पर वही मेहरबानी रहती थी जो उस घराने की शान थी।
इस का एक आश्चर्यजनक वाक़ेया यह है जिसे सुफ़यान सौरी ने बयान किया है कि मैं एक बार इमाम (अ) की सेवा गया तो देखा कि आपके चेहरे का रंग बदला हुआ है, मैंने कारण पूछा तो फ़रमाया कि मैंने मना किया था कि कोई मकान के कोठे पर न चढ़े, इस समय जो मैं घर आया तो देखा कि एक कनीज़ जिस का काम बच्चे की देख भाल करना है, उसे गोद मे लिये सीढ़ियों से ऊपर जा रही थी मैंने देखा तो वह भयभीत हो गई कि बच्चा उस के हाथ से झूट कर गिर गया और मर गया। मुझे बच्चे के मरने का इतना अफ़सोस नही जितना इस बात का दुख है कि उस नौकरानी पर इतना भय कैसे हावी हो गया फिर आपने उस कनीज़ को बुलाया और कहा डरो नही मैं ने तुम को अल्लाह की राह में आज़ाद कर दिया। उस के बाद बच्चे के कफ़न और दफ़्न में लग गये।
(सादिक़े आले मुहम्मद पेज 12, मनाक़िबे इब्ने शहर आशोब जिल्द 5 पेज 54)
किताब मजानिल अदब जिल्द 1 पेज 67 में है कि आप के यहाँ कुछ मेहमान आये हुए थे, खाने के मौक़े पर कनीज़ को खाना लाने का आदेश दिया। वह सालन की बड़ा प्याला लेकर जब दस्तर ख्वान के नज़दीक पहुची तो अचानक प्याला हाथ से छूट गया। उस के गिरने से इमाम (अ) मेहमानों के कपड़े ख़राब हो गये, कनीज़ काँपने लगी, आपने ग़ुस्से के बजाए उसे अल्लाह की राह में आज़ाद कर दिया कि तू जो मेरे भय से काँपती है शायद यही आज़ाद करना कफ़्फ़ारा हो जाये।
फिर उसी किताब के पेज 69 में आया है कि एक ग़ुलाम आप के हाथ धुला रहा था कि अचानक लोटा हाथ से झूट कर सीनी में गिरा और पानी की छींटे आप के मुँह पर पड़ीं, ग़ुलाम घबरा गया आपने फ़रमाया डरो नही, जाओ मैंने तुम्हे अल्लाह की राह में आज़ाद कर दिया।
अल्लामा मजलिसी की किताब तोहफ़तुज़ ज़ायर में है कि आप की आदत में इमाम हुसैन (अ) की ज़ियारत पर जाना शामिल था। आप सफ़्फ़ाह और मंसूर के दौर में भी ज़ियारत के लिये जाते थे। करबला की आबादी से लगभग चार सौ क़दम के फ़ासले पर उत्तर की तरफ़ नहरे अलक़मा के किनारे बाग़ों में आप का बाग़ उसी ज़माने में का बना हुआ है।
पाकिस्तान में मार्टर गोलों से आक्रमण ८ हताहत
पाकिस्तान के क़बाइली क्षेत्र पर मार्टर गोलों से किये जाने वाले आक्रमण में ८ लोग मारे गये हैं।
पाकिस्तानी सूत्रों के अनुसार पाकिस्तान के दक्षिणी वज़ीरिस्तान क्षेत्र में शुक्रवार की रात कई मार्टर गोले गिरे जिससे दो लोगों की मृत्यु हो गयी और ४ अन्य घायल हो गये।
सुरक्षा सूत्रों के अनुसार यह मार्टर गोले अफगानिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्रों से फायर किये गये थे।
शुक्रवार प्रातः ही इसी क्षेत्र में मार्टर गोलों से किये जाने वाले आक्रमण में ६ लोग मारे गये थे किंतु इस आक्रमण की सरकारी सूत्रों ने पुष्टि नहीं की है किंतु स्थानीय सूत्रों का कहना है कि दक्षिणी वज़ीरिस्तान के अंगूरा, स्पेनवाम और नोदेशतिया गांवों पर मार्टर गोले गिरे।
पाकिस्तान व अफगानिस्तान की सीमा पर सुरक्षा बलों के मध्य होने वाली झड़पों में प्रायः सीमावर्ती क्षेत्रों के निर्दोष नागरिक मारे जाते हैं।