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क़ुरआने मजीद और अख़लाक़ी तरबीयत

अख़लाक़ उन सिफ़ात और अफ़आल को कहा जाता है जो इंसान की ज़िन्दगी में इस क़दर रच बस जाते हैं कि ग़ैर इरादी तौर पर भी ज़हूर पज़ीर होने लगते हैं। बहादुर फ़ितरी तौर पर मैदान की तरफ़ बढ़ने लगता है और बुज़दिल तबीयी अंदाज़ से परझाईयों से डरने लगता है। करीम का ख़ुद बख़ुद जेब की तरफ़ बढ़ जाता है और बख़ील के चेहरे पर साइल की सूरत देख कर हवाईयाँ उड़ने लगती हैं।

इस्लाम ने ग़ैर शुऊरी और ग़ैर इरादी अख़लाक़ीयात को शुऊरी और इरादी बनाने का काम अंजाम दिया है और उसका मक़सद यह है कि इंसान उन सिफ़ात को अपने शुऊर और इरादे के साथ पैदा करे ताकि हर अहम से अहम मौक़े पर सिफ़त उसका साथ दे वर्ना अगर ग़ैर शुऊरी तौर पर सिफ़त पैदा भी कर ली है तो हालात के बदलते ही उसके मुतग़य्यर हो जाने का ख़तरा रहता है। मीसाल के तौर पर उन तज़किरों को मुलाहेज़ा किया जाये जहा इस्लाम ने साहिबे ईमान की अख़लाक़ी तरबीयत का सामान फ़राहम किया है और यह चाहा है कि इंसान में अख़लाक़ी जौहर बेहतरीन तरबीयत और आला तरीन शुऊर के ज़ेरे असर पैदा हो।

क़ुव्व्ते तहम्मुल:

सख़्त तरीन हालात में क़ुव्वते बर्दाश्त का बाक़ी रह जाना एक बेहतरीन अख़लाक़ी सिफ़त है लेकिन यह सिफ़त बअज़ अवक़ात बुज़दिली और नाफ़हमी की बेना पर पैदा होती है और बअज़ अवक़ात मसाअब व मुश्किलात की सही संगीनी के अंदाज़ा न करने की बुनियाद पर। इस्लाम ने चाहा है कि यह सिफ़त मुकम्मल शुऊर के साथ पैदा हो और इंसान यह समझे कि क़ुव्वते तहम्मुल का मुज़ाहेरा उसका अख़लाक़ी फ़र्ज़ है जिसे बहरहाल अदा करना है। तहम्मुल न बुज़दिली और बेग़ैरती की अलामत बनने पाये और न हालात के सही इदराक के फ़ोक़दान की अलामत क़रार पाये।

इरशाद होता है:

الَّذِينَ إِذَا أَصَابَتْهُم مُّصِيبَةٌ قَالُواْ إِنَّا لِلّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعونَ أُولَئِكَ عَلَيْهِمْ صَلَوَاتٌ مِّن رَّبِّهِمْ وَرَحْمَةٌ وَأُولَئِكَ هُمُ الْمُهْتَدُونَ إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِن شَعَآئِرِ اللّهِ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلاَ جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا وَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ

(बक़रा 156-158)

“यक़ीनन हम तुम्हारा इम्तेहान मुख़्तसर से ख़ौफ़ और भूक और जान, माल और समरात के नक़्स के ज़रीये लेगें और पैग़म्बर आप सब्र करने वालों को बशारत दे दें जिनकी शान में यह है कि जब उन तक कोई मुसीबत आती है तो कहते हैं कि हम अल्लाह के लिये हैं और उसी की बारगाह में पलट कर जाने वाले हैं। उन्ही अफ़राद के लिये परवरदिगार की तरफ़ से सलवात व रहमत है और यही हिदायत याफ़्ता लोग हैं।”

आयते करीमा से साफ़ ज़ाहिर होता है कि क़ुरआने मजीद क़ुव्वते तहम्मुल की तरबीयत देना चाहता है और मुसलमान को हर तरह के इम्तेहान के लिये तैयार करना चाहता है और फिर तहम्मुल को बुज़दिली से अलग करने के लिये

إِنَّا لِلّهِ وَإِنَّا إِلَيْهِ رَاجِعونَ

तालीम देता है और नक़्से अमवाल व अनफुस को ख़सारा तसव्वुर करने के जवाब में सलवात व रहमत का वादा करता है ताकि इंसान हर माद्दी ख़सारा और नुक़सान के लिये तैयार रहे और उसे यह अहसास रहे कि माद्दी नुक़सान, नुक़सान नही है बल्कि सलवात और रहमत का बेहतरीन ज़रीया है। इंसान में यह अहसास पैदा हो जाये तो वह अज़ीम क़ुव्वत तहम्मुल का हामिल हो सकता है और उसमें यह अख़लाक़ी कमाल शुऊरी और इरादी तौर पर पैदा हो सकता है और वह हर आन मसाइब का इस्तेक़बाल करने के लिये अपने नफ़्स को आमादा कर सकता है।

“الَّذِينَ قَالَ لَهُمُ النَّاسُ إِنَّ النَّاسَ قَدْ جَمَعُواْ لَكُمْ فَاخْشَوْهُمْ فَزَادَهُمْ إِيمَاناً وَقَالُواْ حَسْبُنَا اللّهُ وَنِعْمَ الْوَكِيلُ”

(सूरह आले इमरान आयत 174-175)

“वह जिनसे कुछ लोगों ने कहा कि दुशमनों ने तुम्हारे लिये बहुत बड़ा लश्कर जमा कर लिया है तो उनके ईमान में और इज़ाफ़ा हो गया और उन्होने कहा कि हमारे लिये ख़ुदा काफ़ी है और वही बेहतरीन मुहाफ़िज़ है जिसके बाद वह लोग नेमत व फ़ज़्ले इलाही के साथ वापस हुए और उन्हे किसी तरह की तकलीफ़ नही हुई और उन्होने रेज़ाए इलाही का इत्तेबाअ किया, और अल्लाह बड़े अज़ीम फ़ज़्ल का मालिक है।”

आयते करीमा के हर लफ़्ज़ में एक नई अख़लाक़ी तरबीयत पायी जाती है और उससे मुसलमान के दिल में इरादी अख़लाक़ और क़ुव्वते बर्दाश्त पैदा करने की तलक़ीन की गयी है। दुश्मन की तरफ़ से बेख़ौफ़ हो जाना शुजाअत का कमाल है लेकिन حَسْبُنَا اللّهُ कह कर बेख़ौफ़ी का ऐलान करना ईमान का कमाल है। बैख़ौफ़ होकर नामुनासिब और मुतकब्बेराना अंदाज़ इख़्तेयार करना दुनियावी कमाल है और रिज़ावाने इलाही की इत्तेबाअ करते रहना क़ुरआनी कमाल है। क़ुरआने मजीद ऐसे ही अख़लाक़ीयात की तरबीयत करना चाहता है और मुसलमान को इसी मंजिल कमाल तक ले जाना चाहता है।

“وَلَمَّا رَأَى الْمُؤْمِنُونَ الْأَحْزَابَ قَالُوا هَذَا مَا وَعَدَنَا اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَصَدَقَ اللَّهُ وَرَسُولُهُ وَمَا زَادَهُمْ إِلَّا إِيمَانًا وَتَسْلِيمًا

”(सूरह अहज़ाब आयत 73)

“और जब साहिबे ईमान नें क़ुफ़्फ़ार के गिरोहों को देखा तो बरजस्ता यह ऐलान कर दिया कि यही वह बात है जिसका ख़ुदा व रसूल ने हम से वादा किया था और उनकी वादा बिल्कुल सच्चा है और इस इज्तेमाअ से उनके ईमान का और तज़बा ए तसलीम में मज़ीद इज़ाफ़ा हो गया”

मुसीबत को बर्दाश्त कर लेना एक इंसानी कमाल है। लेकिन इस शान से इस्तिक़ाबाल करना कि गोया इसी का इंतेज़ार कर रहे थे और फिर उसको सदाक़त ख़ुदा व रसूल की बुनियाद क़रार देकर अपने ईमान व तसलीम में इज़ाफ़ा कर लेना वह अख़लाक़ी कमाल है जिसे क़ुरआन मजीद अपने मानने वालों में पैदा कराना चाहता है।

“وَكَأَيِّن مِّن نَّبِيٍّ قَاتَلَ مَعَهُ رِبِّيُّونَ كَثِيرٌ فَمَا وَهَنُواْ لِمَا أَصَابَهُمْ فِي سَبِيلِ اللّهِ وَمَا ضَعُفُواْ وَمَا اسْتَكَانُواْ وَاللّهُ يُحِبُّ الصَّابِرِينَ”

(आले इमरान 147)

“और जिस तरह बअज़ अंबीया के साथ बहुत से अल्लाह वालों ने जिहाद किया है और उसके बाद राहे ख़ुदा में पड़ने वाली मुसीबतों ने न उनकी कमज़ोरी पैदा की और न उनके इरादों में ज़ोअफ़ पैदा हुआ हो और न उनमें किसी तरह की जिल्लत का अहसास पैदा दुआ कि अल्लाह सब्र करने वालों को दोस्त रखता है।”

आयत से साफ़ वाज़ेह होता है कि इस वाक़ेआ के ज़रीये ईमान वालों को अख़लाक़ी तरबीयत दी जा रही है और उन्हे हर तरह के ज़ोअफ़ व ज़िल्लत से इसलिये अलग रखा जा रहा है कि उनके साथ ख़ुदा है और वह उन्हे दोस्त रखता है और जिसे ख़ुदा दोस्त रखता है उसे कोई ज़लील कर सकता है और न बेचारा बना सकता है। यही इरादी अख़लाक़ है जो क़ुरआनी तालीमात की तुर्रा ए इम्तेयाज़ है और जिससे दुनिया के सारे मज़ाहिब और अक़वाम बे बहरा हैं।

“وَعِبَادُ الرَّحْمَنِ الَّذِينَ يَمْشُونَ عَلَى الْأَرْضِ هَوْنًا وَإِذَا خَاطَبَهُمُ الْجَاهِلُونَ قَالُوا سَلَامًا”

(सूरह फ़ुरक़ान आयत 64)

“और अल्लाह के बंदे वह हैं जो ज़मीन पर आहिस्ता चलते हैं और जब कोई जाहिलाना अंदाज़ से उनसे ख़िताब करता है तो उसे सलामती का नाम का पैग़ाम देते है। यही वह लोग है जिन्हे उनके सब्र की बेना पर जन्नत में ग़ुरफ़े दिये जायेगें और तहय्यत और सलाम की पेशकश की जायेगी।”

इस आयत में भी साहिबाने ईमान और इबादुर्रहमान की अलामत क़ुव्वते तहम्मुल व बर्दाश्त को क़रार दिया गया है, लेकिन قَالُوا سَلَامًا कहकर उसकी इरादीयत और शुऊरी कैफ़ियत का इज़हार किया गया है कि यह सुकूत बर बेनाए बुज़दिली व बेहयाई नही है बल्कि उसके पीछे एक अख़लाक़ी फ़लसफ़ा है कि वह सलामती का पैग़ाम देकर दुशमन को भी राहे रास्त पर लाना चाहते हैं और उसकी जाहिलाना रविश का इलाज करना चाहते हैं।

वाज़ेह रहे कि इन तमाम आयात में सब्र करने वालों की जज़ा का ऐलान तरबीयत का एक ख़ास अंदाज़ है कि इस तरह क़ुव्वते तहम्मुल बेकार न जाने पाये और इंसान को किसी तरह के ख़सारे और नुक़सान का ख़्याल न पैदा हो बल्कि मज़ीद तहम्मुल व बर्दाश्त का हौसला पैदा हो जाये कि इस तरह ख़ुदा की मईयत, मुहब्बत, फ़ज़्ले अज़ीम और तहय्यत व सलाम का इस्तेहक़ाक़ पैदा हो जाता है जो बेहतरीन राहत व आराम और बेहद व बेहिसाब दौलत व सरवत के बाद भी नही हासिल हो सकता है।

क़ुरआने मजीद का सबसे बड़ा इम्तेयाज़ यही है कि वह अपने तालीमात में इस उन्सूर को नुमायाँ रखता है और मुसलमान को ऐसा बाअख़लाक़ बनाना चाहता है जिसके अख़लाक़ीयात सिर्फ़ अफ़आल, आमाल और आदात न हों बल्कि उनकी पुश्त पर फ़िक्र, फ़लसफ़ा, अक़ीदा और नज़रिया हो और वह अक़ीदा व नज़रिया उसे मुसलसल दावते अमल देता रहे और उसके अख़लाक़ीयात को मज़बूत से मज़बूत बनाता रहे।

जज़्बा ए ईमानी:

क़ुव्वते तहम्मुल के साथ क़ुरआने मजीद ने ईमानी जज़्बात के भी मुरक़्के पेश किये हैं जिनसे यह बात वाजेह हो जाती है कि वह तहम्मुव हिल्म को सिर्फ़ मन्फ़ी हदों तक नही रखना चाहता है बल्कि मसाइब व आफ़ात के मुक़ाबले में इसे एक मुस्बत रुख़ देना चाहता है।

فَأُلْقِيَ السَّحَرَةُ سُجَّدًا قَالُوا آمَنَّا بِرَبِّ هَارُونَ وَمُوسَى (71(

قَالَ آمَنتُمْ لَهُ قَبْلَ أَنْ آذَنَ لَكُمْ إِنَّهُ لَكَبِيرُكُمُ الَّذِي عَلَّمَكُمُ السِّحْرَ فَلَأُقَطِّعَنَّ أَيْدِيَكُمْ وَأَرْجُلَكُم مِّنْ خِلَافٍ وَلَأُصَلِّبَنَّكُمْ فِي جُذُوعِ النَّخْلِ وَلَتَعْلَمُنَّ أَيُّنَا أَشَدُّ عَذَابًا وَأَبْقَى (72(

قَالُوا لَن نُّؤْثِرَكَ عَلَى مَا جَاءَنَا مِنَ الْبَيِّنَاتِ وَالَّذِي فَطَرَنَا فَاقْضِ مَا أَنتَ قَاضٍ إِنَّمَا تَقْضِي هَذِهِ الْحَيَاةَ الدُّنْيَا (73(

إِنَّا آمَنَّا بِرَبِّنَا لِيَغْفِرَ لَنَا خَطَايَانَا وَمَا أَكْرَهْتَنَا عَلَيْهِ مِنَ السِّحْرِ وَاللَّهُ خَيْرٌ وَأَبْقَى (74(

(सूरह ताहा आयत 71 से 74)

“पस जादूगर सजदे में गिर पड़े और उन्होने कहा कि हम हारून और मूसा के रब पर ईमान ले आये तो फ़िरऔन ने कहा कि हमारी इजाज़त के बग़ैर किस तरह ईमान ले आये बेशक यह तुमसे बड़ा जादूगर है जिसने तुम लोगों को जादू सिखाया है तो अब मैं तुम्हारे हाथ पाँव काट दूँगा और तुम्हे दरख़्ते ख़ुरमा की शाख़ों पर सूली पर लटका दूँगा ताकि तुम्हे मालूम हो जाये कि किस का अज़ाब ज़्यादा सख़्त तर है और ज़्यादा बाकी रहने वाला है। उन लोगों ने कहा कि हम तेरी बात को मूसा के दलाइल और अपने परवरदिगार पर मुक़द्दम नही कर सकते हैं। अब तू जो फ़ैसला करना चाहता है कर ले तू सिर्फ़ इसी ज़िन्दगानी दुनिया तक फ़ैसला कर सकता है और हम इसलिये ईमान ले आये हैं कि ख़ुदा हमारी ग़लतीयों और उस जुर्म को माफ़ कर दे जिस पर तूने हमें मजबूर किया था और बेशक ख़ुदा ही ऐने ख़ैर और हमेशा बाक़ी रहने वाला है।”

إِلاَّ تَنصُرُوهُ فَقَدْ نَصَرَهُ اللّهُ إِذْ أَخْرَجَهُ الَّذِينَ كَفَرُواْ ثَانِيَ اثْنَيْنِ إِذْ هُمَا فِي الْغَارِ إِذْ يَقُولُ لِصَاحِبِهِ لاَ تَحْزَنْ إِنَّ اللّهَ مَعَنَا فَأَنزَلَ اللّهُ سَكِينَتَهُ عَلَيْهِ وَأَيَّدَهُ بِجُنُودٍ لَّمْ تَرَوْهَا وَجَعَلَ كَلِمَةَ الَّذِينَ كَفَرُواْ السُّفْلَى وَكَلِمَةُ اللّهِ هِيَ الْعُلْيَا وَاللّهُ عَزِيزٌ حَكِيمٌ (40(

(सूरह तौबा आयत 40)

“अगर तुम उनकी नुसरत नही करोगे तो ख़ुदा ने उनकी नुसरत की है जब उन्हे कुफ़्फार ने दो तो दूसरा बना कर वतन से निकाल दिया और वह अपने साथी से कह रहे थे कि रंज मत करो ख़ुदा हमारे साथ है तो ख़ुदा ने उन पर अपनी तरफ़ से सुकून नाज़िल कर दिया और उनकी ताईद ऐसे लश्करो के ज़रीये कि जिनका मुक़ाबला नामुमकिन था और कुफ़्फार के कल्मे को पस्त क़रार दे दिया और अल्लाह का कल्मा तो बहरहाल बुलंद है और अल्लाह साहिबे ईज़्ज़त भी है और साहिबे हिकमत भी है।”

आयते ऊला में फ़िरऔन के दौर के जादूगरों के जज़्बा ए ईमानी की हिकायत की गयी है जहा फ़िरऔन जैसे ज़ालिम व जाबिर के सामने भी ऐलाने हक़ में किसी ज़अफ़ व कमज़ोरी से काम नही लिया गया और उसे चैलेंज कर दिया गया कि तू जो करना चाहता है कर ले। तेरा इख़्तियार ज़िन्दगानी दुनिया से आगे नही है और साहिबाने ईमान आख़िरत के लिये जान देते हैं उन्हे दुनिया की राहत की फ़िक्र या मसाइब की परवाह नही होती है।

और दुसरी आयत में सरकारे दो आलम(स) के हौसले का तज़किरा किया गया है और सूरते हाल की संगीनी को वाज़ेह करने के लिये साथी का भी ज़िक्र किया गया जिस पर हालात का संगीनी और ईमान की कमज़ोरी की बेना पर हुज़्न तारी हो गया और रसूले अकरम(स) को समझाना पड़ा कि ईमान व अक़ीदा सही रखो। ख़ुदा हमारे साथ है और जिसके साथ ख़ुदा होता है उसे कोई परेशानी नही होती है और वह हर मुसीबत का पूरे सुकून और इतमीनान के साथ मुक़ाबला करता है।

उसके बाद ख़ुदाई ताईद और इमदाद का तज़किरा करके यह भी वाजेह कर दिया गया कि रसूले अकरम(स) का इरशाद सिर्फ़ तसकीने क़ल्ब के लिये नही था बल्कि उसकी एक वाक़ेईयत भी थी और यह आपके कमाले ईमान का असर था कि आप पर किसी तरह का हुज़्न व मलाल तारी नही हुआ और आप अपने मसलक पर गामज़न रहे और इसी तरह तबलीग़ें दीन और ख़िदमते इस्लाम करते रहे जिस तरह पहले कर रहे थे बल्कि इस्लाम का दायरा उससे ज़्यादा वसीतर हो गया कि न मक्के का काम इंसानों के सहारे शुरु हुआ था और न मदीने का काम इंसानों के सहारे होने वाला है। मक्के का सब्र व तहम्मुल भी ख़ुदाई इमदाद की बेना पर था और मदीने का फ़ातेहाना अंदाज़ भी ख़ुदाई ताईद व नुसरत के ज़रीये ही हासिल हो सकता है।

अदबी शुजाअत:

मैदाने जंग में ज़ोरे बाज़ू का मुज़ाहिरा करना यकीनन एक अज़ीम इंसानी कारनामा है लेकिन बअज़ रिवायात की रौशनी में इससे बालातर जिहाद सुल्ताने जाइर के सामने कल्म ए हक़ का ज़बान पर जारी करना है और शायद इसका राज़ यह है कि मैदाने जंग के कारनामे में बसा अवक़ात नफ़्स इंसान का हमाराही करने को तैयार हो जाता है और इंसान जज़्बाती तौर पर भी दुश्मन पर वार करने लगता है जिसका खुला हुआ सुबूत यह है कि मौला ए कायनात हज़रत अली अलैहिस्सलाम मे अम्र इब्ने अब्दवद की बेअदबी के बाद इसका सर क़लम नही किया और सीने से उतर आये कि जिहादे राहे ख़ुदा में जज़्बात की शुमीलीयत का अहसास न पैदा हो जाये लेकिन सुलताने जायर के सामने कलमा ए हक़ के बुलंद करने में नफ़्स की हमराही कभी ज़ाया होते हुए मफ़ादात की तरफ़ मुतवज्जेह करता है और कभी आने वाले ख़तरात से आगाह करता है और इस तरह यह जिहाद “जिहादे मैदान” से ज़्यादा सख़्ततर और मुश्किल तर हो जाता है जिसे रिवायात ही की ज़बान में जिहादे अकबर से ताबीर किया गया है। जिहाद बिललिसान बाज़ाहिर जिहादे नफ़्स नही है लेकिन ग़ौर किया जाये तो यह जिहादे नफ़्स का बेहतरीन मुरक़्का है ख़ुसिसीयत के साथ अगर माहौल नासाज़गार हो औप तख़्ता ए दार से ऐलाने हक़ करना पड़े।

क़ुरआने मजीद ने मर्दे मुस्लिम में इस अदबी शुजाअत को पैदा करना चाहा है और उसका मन्शा यह है कि मुसलमान अख़लाकियात में इस क़दर मुक्म्मल हो कि उसके नफ़्स में क़ुव्वते बर्दाश्त व तहम्मुल हो। उसके दिल में जज़्बा ए ईमान व यक़ीन हो और उसकी ज़बान, उसकी अदबी शुजाअत का मुकम्मल मुज़ाहिरा करे जिसकी तरबीयत के लिये उसने इन वाक़ेआत की तरफ़ इशारा किया है।

“وَقَالَ رَجُلٌ مُّؤْمِنٌ مِّنْ آلِ فِرْعَوْنَ يَكْتُمُ إِيمَانَهُ أَتَقْتُلُونَ رَجُلًا أَن يَقُولَ رَبِّيَ اللَّهُ وَقَدْ جَاءَكُم بِالْبَيِّنَاتِ مِن رَّبِّكُمْ وَإِن يَكُ كَاذِبًا فَعَلَيْهِ كَذِبُهُ وَإِن يَكُ صَادِقًا يُصِبْكُم بَعْضُ الَّذِي يَعِدُكُمْ إِنَّ اللَّهَ لَا يَهْدِي مَنْ هُوَ مُسْرِفٌ كَذَّابٌ”

“फ़िरऔन वालों में से एक मर्दे मोमिन ने कहा जो अपने ईमान को छिपाये हुए था कि क्या तुम किसी शख़्स को सिर्फ़ इस बात क़त्ल करना चाहते हो कि अल्लाह को अपना परवर दिगार कहता है जबकि वह अपने दावे पर खुली दलीलें भी ला चुका है। तो अगर वह झूटा है तो अपने झूट का ख़ुद जिम्मेदार है लेकिन अगर सच्चा है तो बअज़ वह मुसीबतें आ सकती हैं जिन का वह वादा कर रहा है। बेशक ख़ुदा ज़ियादती करने वाले और शक करने वाले इंसान की हिदायत नही करता है।

इस आयते करीमा में मर्दे मोमिन ने अपने सरीही ईमान की पर्दादारी ज़रूर की है लेकिन चंद बातों का वाशिगाफ़ लफ़्ज़ों में ऐलान भी कर दिया है जिसकी हिम्मत हर शख़्स में नही हो सकती है।

यह भी ऐलान कर दिया है कि यह शख़्स खुली दलीलें लेकर आया है।

यह भी ऐलान कर दिया है कि वह अगर झूटा है तो तुम इसके झूट के ज़िम्मेदार नही हो और न तुम्हे क़त्ल करने का कोई हक़ है।

यह भी ऐलान कर दिया है कि वह अगर सच्चा है तो तुम पर अज़ाब नाज़िल हो सकता है।

यह भी ऐलान कर दिया है कि यह अज़ाब उस वईद का एक हिस्सा है वरना इसके बाद अज़ाबे जहन्नम भी है।

यह भी ऐलान कर दिया है कि तुम लोग ज़ियादती करने वाले और हक़ाइक़ में शक करने वाले हो और ऐसे अफ़राद कभी हिदायत याफ़ता नही हो सकते हैं।

और अदबी शुजाअत का इससे बेहतर कोई मुरक़्क़ा नही हो सकता है कि इंसान फ़िरऔनीयत जैसे माहौल में इस क़दर हक़ाइक़ के इज़हार की जुर्रत व हिम्मत रखता हो।

वाज़ेह रहे कि इस आयते करीमा में परवरदिगारे आलम ने उस मर्दे मोमिन को मोमिन भी कहा है और उसके ईमान को छुपाने का भी तज़किरा किया है जो इस बात की दलील है कि ईमान एक क़ल्बी अक़ीदा है और हालात व मसालेह के तहत इसको छुपाने को कतमाने हक़ से ताबीर नही किया जा सकता है जैसा कि बअज़ दुश्मनाने हक़ाइक़ का वतीरा बन गया है कि एक फ़िर्के की दुश्मनी में तक़ैय्ये की मुख़ालेफ़त करने के लिये क़ुरआने मजीद के सरीही तज़केरे की मुख़ालेफ़त करते हैं और अपने लिये अज़ाबे जहन्नम का सामान फ़राहम करते हैं।

“قَالَ مَا خَطْبُكُنَّ إِذْ رَاوَدتُّنَّ يُوسُفَ عَن نَّفْسِهِ قُلْنَ حَاشَ لِلّهِ مَا عَلِمْنَا عَلَيْهِ مِن سُوءٍ قَالَتِ امْرَأَةُ الْعَزِيزِ الآنَ حَصْحَصَ الْحَقُّ أَنَاْ رَاوَدتُّهُ عَن نَّفْسِهِ وَإِنَّهُ لَمِنَ الصَّادِقِينَ”

(युसुफ़ आयत 52)

“जब मिस्र की औरतों ने उँगलीयाँ काट लीं और अज़ीज़े मिस्र ने ख़्वाब की ताबीर के लिये जनाबे युसुफ़ को तलब किया तो उन्होने फ़रमाया कि उन औरतों से दरयाफ़्त करो कि उन्होने उँगलीयाँ काट लीं और इसमें मेरी क्या ख़ता है?अज़ीज़े मिस्र ने उन औरतों से सवाल किया तो उन्होने कि ख़ुदा गवाह है कि युसुफ़ की कोई ख़ता है। को अज़ीजे मिस्र की औरत ने कहा कि यह सब मेरा अक़दाम था और युसुफ़ सादिक़ीन में से हैं और अब हक़ बिल्कुल वाजेह हो चुका है।”

इस मक़ाम पर अज़ीज़े मिस्र की ज़ौजा का इस जुर्रत व हिम्मत से काम लेना कि भरे मजमे में अपने ग़लती का इक़रार कर लिया और ज़नाने मिस्र का भी इस जुर्रत का मुज़ाहिरा करना कि अज़ीज़े मिस्र की ज़ौजा की हिमायत में ग़लत बयानी करने के बजाए साफ़ साफ़ ऐलान कर दिया कि युसुफ़ में कोई बुराई और ख़राबी नही है। अदबी जुर्रत व शुजाअत के बेहतरीन मनाज़िर हैं जिनका तज़किरा करके क़ुरआन मजीद मुसलमान की ज़हनी और नफ़सीयाती तरबीयत करना चाहता है।

“وَجَاء مِنْ أَقْصَى الْمَدِينَةِ رَجُلٌ يَسْعَى قَالَ يَا قَوْمِ اتَّبِعُوا الْمُرْسَلِينَ (21(

اتَّبِعُوا مَن لاَّ يَسْأَلُكُمْ أَجْرًا وَهُم مُّهْتَدُونَ (22)

وَمَا لِي لاَ أَعْبُدُ الَّذِي فَطَرَنِي وَإِلَيْهِ تُرْجَعُونَ (23)

أَأَتَّخِذُ مِن دُونِهِ آلِهَةً إِن يُرِدْنِ الرَّحْمَن بِضُرٍّ لاَّ تُغْنِ عَنِّي شَفَاعَتُهُمْ شَيْئًا وَلاَ يُنقِذُونِ (24(

إِنِّي إِذًا لَّفِي ضَلاَلٍ مُّبِينٍ (25(

إِنِّي آمَنتُ بِرَبِّكُمْ فَاسْمَعُونِ (26(

“और शहर के आख़िर से एक शख़्स दौड़ता हुआ आया और उसने कहा कि ऐ क़ौम, मुरसलीन का इत्तेबाअ करो, उस शख़्स का इत्तेबाअ करो जो तुम से कोई अज्र भी नही माँगता है और वह सब हिदायत याफ़ता भी हैं, और मुझे क्या हो गया है कि उस ख़ुदा की इबादत न करो जिसने मुझे पैदा किया है और तुम सब उसी की तरफ़ पलट कर जाने वाले हो। क्या मैं उसके अलावा दुसरे ख़ुदाओ को इख़्तेयार कर लूँ जबकि रहमान कोई नुक़सान पहुचाना चाहे तो उनकी सिफ़ारिश किसी काम नही आ सकती है और न यह बचा सकते हैं, मैं तो खुली गुमराही में मुब्तला हो जाऊँगा। बेशक मैं तुम्हारे ख़ुदा पर ईमान ला चुका हूँ लिहाज़ा तुम लोग भी मेरी बात सुनो।”

आयते करीमा में उस मर्दे मोमिन के जिन फ़िक़रात का तज़किरा किया गया है वह अदबी शुजाअत का शाहकार हैं।

उसने एर तरफ़ दाईये हक़ की बेनियाज़ी का ऐलान किया कि वह ज़हमते हिदायत भी बर्दाश्त करता है और उजरत का तलबगार भी नही है।

फिर उसके ख़ुदा को अपना ख़ालिक़ कह कर मुतावज्जेह किया कि तुम सब भी उसी की बारगाह में जाने वाले हो तो अभी से सोच लो कि वहाँ जाकर अपनी इन हरकतों का क्या जवाज़ पेश करोगे।

फिर क़ौम के ख़ुदाओं की बेबसी और बेकसी का इज़हार किया कि यह यह सिफ़ारिश तक करने के क़ाबिल नही हैं, ज़ाती तौर पर कौन सा काम अंजाम दे सकते हैं।

फिर क़ौम के साथ रहने को ज़लाले मुबीन और खुली हुई गुमराही से ताबीर करके यह भी वाज़ेह कर दिया कि मैं जिस पर ईमान लाया हूँ वह तुम्हारा भी परवरदिगार है। लिहाज़ा मुनासिब यह है कि अपने परवरदिगार पर तुम भी ईमान ले आओ और मख़लूक़ात के चक्कर में न पड़ो।

“إِنَّ قَارُونَ كَانَ مِن قَوْمِ مُوسَى فَبَغَى عَلَيْهِمْ وَآتَيْنَاهُ مِنَ الْكُنُوزِ مَا إِنَّ مَفَاتِحَهُ لَتَنُوءُ بِالْعُصْبَةِ أُولِي الْقُوَّةِ إِذْ قَالَ لَهُ قَوْمُهُ لَا تَفْرَحْ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْفَرِحِينَ (77(

وَابْتَغِ فِيمَا آتَاكَ اللَّهُ الدَّارَ الْآخِرَةَ وَلَا تَنسَ نَصِيبَكَ مِنَ الدُّنْيَا وَأَحْسِن كَمَا أَحْسَنَ اللَّهُ إِلَيْكَ وَلَا تَبْغِ الْفَسَادَ فِي الْأَرْضِ إِنَّ اللَّهَ لَا يُحِبُّ الْمُفْسِدِينَ (78)

“बेशक क़ारून मूसा ही की क़ौम में से था लेकिन उसने क़ौम पर ज़ियादती की और हमने उसे इस क़दर ख़ज़ाने अता किये कि एक बड़ी जमाअत भी इसकी बार उठाने से आजिज़ थी तो क़ौम ने इससे कहा कि ग़ुरूर मत करो कि ख़ुदा ग़ुरूर करने वालो को दोस्त नही रखता है और जो कुछ ख़ुदा ने तुझे अता किया है उससे दारे आख़िरत हासिल करने की फ़िक्र कर और ज़मीन पर फ़साद न कर कि ख़ुदा फ़साद करने वालों को दोस्त नही रखता है।”

आयत से साफ़ वाज़ेह होता है कि क़ारून के बेतहाशा साहिबे दौलत होने के बावजूद क़ौम में इस क़दर अदबी जुर्रत मौजूद थी कि उसे मग़रूर और मुफ़सिद क़रार दे दिया, और यह वाज़ेह कर दिया कि ख़ुदा मग़रूर और मुफ़सिद को नही पसंद करता है और यह भी वाज़ेह कर दिया कि दौलत की बेहतरीन मसरफ़ आख़िरत का घर हासिल कर लेना है वरना दुनिया चंद रोज़ा है और फना हो जाने वाली है।

इफ़्फ़ते नफ़्स:

इंसान के अज़ीम तरीन अख़लाक़ी सिफ़ात में से एक इफ़्फ़ते नफ़्स भी है जिसका तसव्वुर आम तौर से जिन्स से वाबस्ता कर दिया जाता है, हाँलाकि इफ़्फ़ते नफ़्स का दायरा इससे कही ज़्यादा वसीअतर है और उसमे हर तरह की पाकीज़गी और पाक दामानी शामिल है। क़ुरआने मजीद ने इस इफ़्फ़ते नफ़्स के मुख़्तलिफ़ मुरक़्क़े पेश किये हैं और मुसलमानों को इसके वसीअतर मफ़हूम का तरफ़ मुतवज्जेह किया है।

“وَرَاوَدَتْهُ الَّتِي هُوَ فِي بَيْتِهَا عَن نَّفْسِهِ وَغَلَّقَتِ الأَبْوَابَ وَقَالَتْ هَيْتَ لَكَ قَالَ مَعَاذَ اللّهِ إِنَّهُ رَبِّي أَحْسَنَ مَثْوَايَ إِنَّهُ لاَ يُفْلِحُ الظَّالِمُونَ”

(सूरह युसुफ़ आयत 23)

“और ज़ुलेख़ा ने युसुफ़ को अपनी तरफ़ मायल करने की हर इम्कानी कोशिश की और तमाम दरवाज़े बंद करके युसुफ़ को अपनी तरफ़ दावत दी लेकिन उन्होने बरजस्ता कहा कि पनाह बे ख़ुदा वह मेरा परवरदिगार है और उसने मुझे बेहतरीन मक़ाम अता किया है और ज़ुल्म करने वालों के लिये फ़लाह और कामयाबी नही है।”

ऐसे हालात और माहौल में इंसान का इस तरह दामन बचा लेना और औरत के शिकंजे से आज़ाद हो जाना इफ़्फ़ते नफ़्स का बेहतरीन कारनामा है, और अलफ़ाज़ पर दिक़्क़त करने से यह भी वाज़ेह होता है कि युसुफ़ ने सिर्फ़ अपना दामन नही बचाया बल्कि नबी ए ख़ुदा होने के रिश्ते से हिदायत का फ़रीज़ा भी अंजाम दे दिया और ज़ुलेख़ा को भी मुतवज्जेह कर दिया कि जिसने इस क़दर शरफ़ और इज़्ज़त से नवाज़ा है वह इस बात की हक़दार है कि उसके अहकाम की इताइत की जाये और उसके रास्ते से इन्हेराफ़ न किया जाये और यह भी वाज़ेह कर दिया है कि उसकी इताअत से इन्हेराफ़ ज़ुल्म है और ज़ालिम किसी वक़्त भी कामयाब व कामरान नही हो सकता है।

“لِلْفُقَرَاء الَّذِينَ أُحصِرُواْ فِي سَبِيلِ اللّهِ لاَ يَسْتَطِيعُونَ ضَرْبًا فِي الأَرْضِ يَحْسَبُهُمُ الْجَاهِلُ أَغْنِيَاء مِنَ التَّعَفُّفِ تَعْرِفُهُم بِسِيمَاهُمْ لاَ يَسْأَلُونَ النَّاسَ إِلْحَافًا وَمَا تُنفِقُواْ مِنْ خَيْرٍ فَإِنَّ اللّهَ بِهِ عَلِيمٌ”

(सूरह बक़र: आयत 273)

“उन फ़ोक़रा के लिये जो राहे ख़ुदा में महसूर कर दिये गये हैं और ज़मीन में दौड़ धूप करने के क़ाबिल नही हैं, नावाक़िफ़ उन्हे उनकी इफ़्फ़ते नफ़्स की बेना पर मालदार कहते है हाँलाकि तुम उन्हे उनके चेहरे के अलामात से पहचान सकते हो, वह लोगों के सामने दस्ते सवाल नही दराज़ करते हैं हाँलाकि तुम लोग जो भी ख़ैर का इन्फ़ाक़ करोगे ख़ुदा तुम्हारे आमाल से ख़ूब बाख़बर है।

जिन्सी पाक दामनी के अलावा यह इफ़्फ़ते नफ़्स का दूसरा मुरक़्क़ा है जहाँ इंसान बदतरीन फ़क़्र व फ़ाक़ा की ज़िन्दगी गुज़ारता है जिसका अंदाज़ा हालात और अलामात से भी किया जा सकता है लेकिन उसके वाबजूद अपनी ग़ुरबत का इज़हार नही करता है और लोगो के सामने दस्ते सवाल दराज़ नही करता है कि यह इंसानी ज़िन्दगी का बदतरीन सौदा है। दुनिया का हर साहिबे अक़्ल जानता है कि आबरू की क़ीमत माल से ज़्यादा है और माल आबरू के तहफ़्फ़ुज़ पर क़ुरबान कर दिया जाता है। बेना बर इन आबरू देकर माल हासिल करना ज़िन्दगी का बदतरीन मामला है जिसके लिये कोई साहिबे अक़्ल व शरफ़ इम्कानी हुदूद तक तैयार नही हो सकता है। इज़्तेरार के हालात दूसरे होते हैं वहाँ हर शरई और अक़्ली तकलीफ़ तब्दील हो जाती है।”

“وَالَّذِينَ لَا يَشْهَدُونَ الزُّورَ وَإِذَا مَرُّوا بِاللَّغْوِ مَرُّوا كِرَامًا”

(सूरह फ़ुरक़ान आयत 73)

“अल्लाह के नेक और मुख़्लिस बंदे वह हैं जो गुनाहों की महफ़िलों में हाज़िर नही होते हैं और जब लग़वीयात की तरफ़ से गुज़रते हैं तो निहायत शरीफ़ाना अंदाज़ से गुज़र जाते हैं और उधर तवज्जोह देना भी गवारा नही करते हैं।

इन फ़िक़रात से यह बात भी वाज़ेह हो जाता है कि इबादुर्रहमान में मुख़्तलिफ़ अक़साम की इफ़्फ़ते नफ़्स पायी जाती है। जाहिलों से उलझते नही हैं और उन्हे भी सलामती का पैग़ाम देते है। रक़्स व रंग की महफ़िलों में हाज़िर नही होते हैं और अपने नफ़्स नही को उन ख़ुराफ़ात से बुलंद रखते है। इन महफ़िलों के क़रीब से भी गुज़रते हैं तो अपनी बेज़ारी का इज़हार करते हुए और शरीफ़ाना अंदाज़ से गुज़र जाते है ताकि देखने वालों को भी यह अहसास पैदा हो कि इन महफ़िलों में शिरकत एक ग़ैर शरीफ़ाना और शैतानी अमल है जिसकी तरफ़ शरीफ़ुन नफ़्स और इबादुर्रहमान क़िस्म के इंसान तवज्जोह नही करते है और उधर से निहायत दर्जा शराफ़त के साथ गुज़र जाते हैं।

मंगलवार, 12 मार्च 2013 12:55

ईश्वर का इरादा

ईश्वर का एक महत्वपूर्ण गुण ईश्वर होना है। ईश्वर की ईश्वरीयता के बारे बहुत कुछ कहा जा चुका है और बहुत , वही है जिसने सब को पैदा किया है और सब का पालनहार है। इसी लिए धर्म पर विश्वास की कम से कम सीमा वही है जहां त ईश्वर में आस्था रखने वाले हर व्यक्ति को पहुंचना चाहिए और यह कि इस विश्वास को साथ कि ईश्वर एक ऐसा अस्तित्व है जिसे अपने अस्तित्व के लिए किसी अन्य की कोई आवश्यकता नहीं है उसी ने सब की रचना की है और उसके के हाथ में सब कुछ है तो यह भी मानना आवश्यक है कि केवल वही उपासना योग्य है और इस्लाम में ला इलाहा इल्लल्लाह का अर्थ भी यही है अर्थात अल्लाह के अतिरिक्त कोई भी ईश्वर और उपासना योग्य नहीं है।

 

ईश्वर से संबधित ज्ञान में एक अत्यन्त जटिल विषय ईश्वर का इरादा है और इस संदर्भ में भांति भांति के प्रश्न हैं जिन पर विस्तार से चर्चा की जा सकती है, जैसे ईश्वर का इरादा उसके तुलनात्मक गुणों में से है या व्यक्तिगत गुणों में से है? या यह कि ईश्वर का इरादा हमेशा से था और हमेशा रहने वाला है या फिर कभी ऐसा भी काल था जिसमें ईश्वर का इरादा नहीं था और बाद में हो गया और कभी ऐसा भी समय आएगा जब ईश्वर का इरादा नहीं रहेगा इस प्रकार से बहुत से प्रश्न हैं जिन के उत्तर के लिए जटिल दार्शनिक चर्चा की आवश्यकता होगी किंतु यहां पर हम इस संदर्भ में कुछ मूल बातों को ही स्पष्ट करेंगे।

आम बोलचाल में इरादे के कम से कम दो अर्थ होते हैं पहला अर्थ चाहना है और दूसरा कोई काम करने का संकल्प।

पहला अर्थ बहुत व्यापक है और इसमें वस्तुओं और अपने तथा दूसरों के कामों को चाहना आदि जैसे अर्थ शामिल होते हैं किंतु दूसरा अर्थ केवल स्वयं मनुष्य के अपने काम के लिए ही प्रयोग होता है। इरादे का पहला अर्थ अर्थात चाहना, यद्यपि मनुष्य के लिए एक प्रकार की मनोदशा है किंतु बुद्धि इस की कमियों को दूर करके एक ऐसा अर्थ निकाल सकती है जो भौतिकता से परे बल्कि ईश्वर के लिए भी प्रयोग किया जा सकता हो।

ईश्वर का इरादा भी उसक बहुत से गुणों की भांति उसके अस्तित्व में है और कोई अलग वस्तु नहीं है, इसी प्रकार ईश्वर का इरादा, अन्य लोगों के इरादों से बहुत अलग होता है और ईश्वर के इरादे में चरण या भूमिकाएं नहीं होती बल्कि किसी की परिवर्तन व उत्पत्ति का मूल कारक उसका इरादा मात्र ही होता है। जैसा कि क़ुरआन मजीद के सूरए यासीन की आयत नंबर ८२ में आया है।

उसका काम तो इस प्रकार है कि जब वह किसी चीज़ का इरादा करता है तो कहता है हो जा और वह चीज़ हो जाती है।

ईश्वर के इरादे के बारे में जिन बातों की चर्चा हमने की है उनसे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर का इरादा असीमित रूप से किसी वस्तु को पैदा करने हेतु प्रयोग नहीं होता बल्कि मूल रूप से ईश्वर के इरादे से जो संबंध होता है वह पैदा होने वाली वस्तु की भलाई व हित का आयाम होता है और चूंकि भौतिक वस्तुओं के विभिन्न आयाम होते हैं और भौतिक वस्तुओं की अधिकता कुछ अन्य वस्तुओं के लिए हानिकारक सिद्ध हो सकती है इस लिए ईश्वरीय कृपा के लिए यह आवश्यक होता है कि वह सारी वस्तुओं को कुछ इस प्रकार से पैदा करे कि उनके हानिकारक आयाम कम से कम दूसरी वस्तुओं को हानि पहुंचाएं और अधिक से अधिक लाभ का कारण हों। इस कृपा व संबंध को तत्वदर्शिता व हिकमत कहा जाता है। यह जो कहते हैं कि ईश्वर तत्वदर्शी है उसका यही अर्थ है अन्यथा तत्वदर्शिता, रचनाओं से भिन्न कोई वस्तु नहीं है और न ही ऐसी कोई वस्तु अथवा गुण है जो ईश्वरीय इरादे पर प्रभाव डाले।

इस चर्चा के मुख्य बिन्दुः

• ईश्वर में आस्था रखने वाले हर व्यक्ति को कम से कम यह विश्वास होना चाहिए कि एक ऐसा अस्तित्व है जिसे अपने अस्तित्व के लिए किसी अन्य की कोई आवश्यकता नहीं है, उसी ने सब की रचना की है और उसके के हाथ में सब कुछ है और वही उपासना योग्य है।

• ईश्वर का इरादा भी उसक बहुत से गुणों की भांति उसके अस्तित्व में है और कोई अलग वस्तु नहीं है।

• ईश्वर की तत्वदर्शिता का अर्थ यह है कि वह रचनाओं को ऐसा बनाता है जिससे उनके हानिकारक आयाम कम और लाभदायक आयाम अधिक हों।

सृष्टि, ईश्वर और धर्म-22 बात करने का ईश्वर का गुण

ईश्वर के लिए जिन कामों की कल्पना की जाती है उनमें से एक बोलना और बात करना भी है। ईश्वर का बोलना और उसका कथन प्राचीन काल से ही बुद्धिजीवियों के मध्य चर्चा का विषय रहा है। यह विषय इतना महत्वपूर्ण बना कि ईश्वरीय गुणों में इस्लामी इतिहास में इसे सवार्धिक चर्चा का विषय कहा जाए तो ग़लत न होगा। यहां तक कि मूल सिद्धान्तों के बारे में चर्चा करने वाले ज्ञान को, कलाम अर्थात कथन के बारे में अत्यधिक चर्चा के कारण, इल्मे कलाम अर्थात कथनशास्त्र कहा जाता है।

चर्चा इस विषय पर होती रही है कि ईश्वर में बोलने का गुण, व्यक्तिगत है या तुलनात्मक। एक मत में ईश्वर के कथन को व्यक्तिगत गुण जबकि दूसरे मत में तुलनात्मक गुण कहा गया यही कारण है कि क़ुराने मजीद के संदर्भ में यह चर्चा बहुत अधिक दिनों तक चली क्योंकि कुरआन ईश्वर का कथन है और बुद्धिजीवियों में इस बात पर मतभेद है कि कुरआन ईश्वरीय रचना है या नहीं क्योंकि ईश्वर का कथन यदि रचना है तो वह वाजिबुल वूजूद अर्थात आत्मभू ईश्वर का गुण कैसे हो सकता है और यदि रचना नहीं है तो फिर क्या है ? क्योंकि हर वस्तु या रचना होगी या रचयिता?

अब यदि ईश्वर के कथन के बारे में यह माना जाए कि वह ईश्वर के साथ ही साथ था तो फिर इस से ईश्वर और उसके कथन में समकालीनता आवश्यक होगी जो संभव नहीं है क्योंकि ईश्वर का समकालीन कोई नहीं है, वह सदैव से है और सदैव रहेगा। वह उस समय से है जब कुछ भी नहीं था और उस समय तक रहेगा जब कुछ भी न रहेगा। इस से पूर्व ही हम स्पष्ट कर चुके हैं कि ईश्वर को समय या किसी भी सीमा से सीमित नहीं किया जा सकता। तो इस प्रकार से कथन, ईश्वर का समकालीन नहीं है तो यदि वह समकालीन नहीं है तो फिर बाद में उत्पन्न हुआ है तो फिर वह किस प्रकार ईश्वर का गुण हो सकता है? क्योंकि ईश्वर के लिए परिवर्तन की कल्पना नहीं की जा सकती। सारी चर्चा इस गुण के तुलनात्मक या व्यक्तिगत होने में है यदि ईश्वर के बोलने को उस का व्यक्तिगत गुण माना जाए तो यह सारे प्रश्न और दशाएं उत्पन्न होती हैं किंतु यदि हम उसके इस गुण को तुलनात्मक मानें तो फिर यह सारे चर्चा की समाप्त हो जाती है।

इस चर्चा में हम गहन विषयों तक नहीं जाएंगे, बस यहां पर यह बताना चाहते हैं कि यदि ईश्वर के बोलने के गुण पर विचार किया जाए तो बड़ी सरलता से यह समझ में आ जाएगा कि यह गुण तुलनात्मक है क्योंकि जैसा कि हमने तुलनात्मक गुण की परिभाषा करते समय बताया था कि इस गुण के लिए दो पक्षों को दृष्टिगत रखना होता है। इसी लिए यदि ध्यान दिया जाए तो समझ में आ जाएगा कि बात करना तुलनात्मक गुण है क्योंकि इसके लिए उसकी भी आवश्यकता है जिससे बात की जाए।

ईश्वर की सच्चाई भी चर्चा का एक विषय है अर्थात क्या ईश्वर सच्चा है और क्या वह किसी स्थिति में झूठ बोल सकता है या फिर यह है कि ईश्वर का कथन हर दशा में सत्य ही होता है?

यहां पर यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि ईश्वरीय कथन जो आदेश के रूप में हैं उनके बारे में सच या झूठ कोई विषय नहीं हैं बल्कि यह आदेश मनुष्य का कर्तव्य होते हैं किंतु यदि ईश्वरीय कथन में किसी घटना की सूचना दी गयी है या भविष्यवाणी की गयी है तो इस संदर्भ में सच व झूठ की बात की जा सकती है किंतु हमारा यह मानना है कि ईश्वर के किसी भी कथन में झूठ की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इस का प्रमाण यह है कि ईश्वर ने मनुष्य की रचना की और उसे सही मार्ग तक पहुंचाने का दायित्व स्वयं लिया। इस प्रकार से वह यदि मनुष्य से कुछ कहता है तो वह वास्तव में उसके मार्गदर्शन के लिए होता है किंतु यदि उसके कथन में झूठ की संभावना होगी तो फिर उसके हर कथन के बारे में झूठ की शंका होगी और इस प्रकार से उस पर विश्वास नहीं होगा जिससे मनुष्य के मार्गदर्शन का मूल लक्ष्य ही ख़तरे में पड़ जाएगा और यह ईश्वर की तत्वदर्शिता के विपरीत होगा।

यूं भी झूठ, प्रायः अपनी ग़लती छिपाने या किसी के भय से या फिर किसी को धोखा देने अथवा लोभ के कारण बोला जाता है और ईश्वर इन सबसे बहुत महान है इस लिए उसे झूठ बोलने की आवश्यकता ही नहीं है।

इस चर्चा के मुख्य बिंदुः

• ईश्वर में बोलने का गुण, उसके तुलनात्मक गुणों में से है क्योंकि इसके लिए दो पक्षों की आवश्यकता होती है। ईश्वर यदि बात करेगा तो इसके लिए किसी ऐसे की आवश्यकता है जिससे वह बात करे। इस प्रकार से यह गुण भी तुलनात्मक है और ईश्वर व मनुष्य के मध्य एक प्रकार के संबंध का सूचक है।

• हमारा यह मानना है कि ईश्वर के किसी भी कथन में झूठ की कल्पना भी नहीं की जा सकती, इसका प्रमाण यह है कि ईश्वर ने मनुष्य की रचना की और उसे सही मार्ग तक पहुंचाने का दायित्व स्वयं लिया। इस प्रकार से वह यदि मनुष्य से कुछ कहता है तो वह वास्तव में उसके मार्गदर्शन के लिए होता है किंतु यदि उसके कथन में झूठ की संभावना होगी तो फिर उसके हर कथन के बारे में झूठ की शंका होगी और इस प्रकार से उसपर से विश्वास उठ जाएगा।

सृष्टि, ईश्वर और धर्म-23 नास्तिकता और भौतिकता

नास्तिकता और भौतिकता का इतिहास बहुत प्राचीन है और ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर यह सिद्ध होता है कि जिस प्रकार प्राचीन काल से ही ईश्वर पर विश्वाश रखने वाले लोग थे, उसी प्रकार उसका इन्कार करने वाले भी लोग मौजूद थे किंतु उनकी संख्या बहुत अधिक नहीं थी परंतु १८ वीं शताब्दी से युरोप में धर्मविरोध का चलन आरंभ हुआ और धीरे धीरे पूरे विश्व में फैलता चला गया। यद्यपि धर्म विरोध का चलन गिरजाघरों की सत्ता और ईसाई धर्म गुरुओं की निरंकुशता तथा ईसाई धर्म के विरोध में आरंभ हुआ था किंतु समय के साथ ही साथ इस लहर ने अन्य धर्मों के अनुयाइयों को भी अपनी लपेट में ले लिया और धर्म से दूरी की भावना, अन्य देशों में पश्चिम के औद्योगिक व वैज्ञानिक विकास के साथ ही पहुंच गयी और हालिया शताब्दियों में मार्क्सवादी व आर्थिक विचारधाराओं के साथ मिल कर धर्म विरोध की भावना ने मानव समाज को त्रासदी के मुहाने पर ला खड़ा किया है।

धर्म विरोधी भावना के फैलने के बहुत से कारण हैं किंतु यहां पर हम समस्त कारणों को तीन भागों में बांट कर उन पर चर्चा करने का प्रयास करेंगे।

धर्मविरोधी भावना के फैलने का प्रथम कारण मानसिक है अर्थात वह भानवाएं जो धर्म से दूरी और नास्तिकता के कारक के रूप में किसी भी मनुष्य में उत्पन्न हो सकती हैं जैसे भोग विलास व ऐश्वर्य की अभिलाषा और प्रतिबद्धता से दूरी की चाहत मनुष्य को धर्म का विरोध करने पर उकसा सकती है। वास्तव में लोगों को प्रायः ऐसे सुख की खोज होती है जिसे इंद्रियों द्वारा भोगा जा सके और धर्म व ईश्वर के आदेशों के पालन का सुख ऐसा है कि कम से कम इस संसार में उसे इंद्नियों द्वारा समझना हर एक के बस की बात नहीं है। दूसरी ओर निरकुंशता और दायित्वहीनता से प्रेम भी मनुष्य को धर्म की प्रतिबद्धताओं से दूर रख सकता है क्योंकि ईश्वरीय धर्म को मानने से कुछ वर्जनाएं और प्रतिबंध लागू हो जाते हैं जिनका पालन इस बात का कारण बनता है कि मनुष्य को बहुत से अवसरों पर अपना मनचाहा काम करने से रोका जाता है और इस प्रकार से उसकी स्वतंत्रता या दूसरे शब्दों में निरंकुशता समाप्त हो जाती है जो असीमित स्वतंत्रता व निरकुंशता की चाहत रखने वालों को स्वीकार नहीं होती, इसी लिए वह इसके कारक अर्थात धर्म के विरोध पर उतर आते हैं। धर्म के विरोध के बहुत से मानसिक कारकों में यह एक मुख्य और प्रभावी कारक है और बहुत से लोग जाने अनजाने में इसी भावना के अंतर्गत ईश्वर और धर्म का इन्कार करते हैं।

धर्म का विरोध करने के दूसरे प्रकार के कारक को हम वैचारिक कारक कह सकते हैं। इससे आशय वास्तव में वह आशंकाएं और संदेह हैं जो लोगों के मन में उत्पन्न होते हैं या फिर दूसरों की बाते सुनकर उनके मन में संदेह व शकांए उत्पन्न हो जाती हैं और चूंकि इस प्रकार के लोगों में वैचारिक शक्ति क्षीण और विश्लेषण क्षमता का अभाव होता है इस लिए वे अपनी अज्ञानता के कारण जब संदेहों और शंकाओं का उत्तर नहीं खोज पाते तो उसका कम से कम प्रभाव उनपर यह होता है कि वे स्वयं ही धर्म का विरोध करने लगते हैं।

इस प्रकार के कारकों को भी कई भागों में बांटा जा सकता है। उदाहरण स्वरूप वह शंकाएं जो अंधविश्वास के कारण उत्पन्न होती हैं। इसी प्रकार कभी कभी वैज्ञानिक अध्ययन भी सही रूप से धर्म की शिक्षा और वैज्ञानिक तथ्य में तालमेल बिठा न पाने के चलते धर्म के प्रति शंका उत्पन्न होने का कारण बन जाते हैं।

धर्म विरोध का एक अन्य कारक सामाजिक होता है, अर्थात कुछ समाजों में ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि धार्मिक नेता किसी न किसी प्रकार से उन परिस्थितियों के ज़िम्मेदार समझे जाते हैं और चूंकि बहुत से लोगों में सही स्थिति समझने की शक्ति नहीं होती और विश्लेषण नहीं कर पाते इस लिए वे इस प्रकार की परिस्थितियों को धर्मगुरुओं के हस्तक्षेप का परिणाम मानते हैं और फलस्वरूप धर्म के ही विरोधी हो जाते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि धर्म पर आस्था ही सामाजिक समस्याओं और परिस्थितियों की ज़िम्मेदार है।

इस भावना और इस कारक को युरोप में पुनर्जागरण काल में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। धार्मिक मामलों में गिरजाघरों के कर्ता-धर्ता लोगों ने, ईसाईयों को धर्म से दूर कर दिया और धर्मगुरुओं के क्रियाकलापों ने लोगों के मन में यह विचार उत्पन्न किया कि धर्म और राजनीति में अलगाव होना चाहिए और सामाजिक नेताओं ने ईसाई धर्म गुरुओं को सत्ता से दूर रखने के लिए इस विचार का जम कर प्रसार प्रचार किया और परिणाम स्वरूप धर्म को पहले आम लोगों की दिनचर्या से दूर किया गया और फिर उसे अलग-थलग कर दिया गया जिसके कारण बहुत से लोगों को लगने लगा कि धर्म जीवन से अलग कोई विषय है और बहुत से लोग इस का विरोध करने लगे।

ये तो कुछ ऐसे कारक थे जो मनुष्य में धर्म का विरोध करने की भावना जगाते हैं किंतु यह भी है कि बहुत से धर्म विरोधी ऐसे भी हैं जिनमें तीनों प्रकार के कारक सक्रिय होते हैं तो ऐसे लोग विरोध के साथ ही साथ शत्रुता भी करते हैं और धर्म को अपने लक्ष्यों की पूर्ति में सब से बड़ी बाधा मानते हैं।

इस चर्चा के मुख्य बिंदुः

• एक शक्तिशाली ईश्वर का अस्तित्व ईश्वरीय मत में मूल आधार है जबकि भौतिक विचारधारा में ऐसे किसी ईश्वर के अस्तित्व से इन्कार किया जाता है। दोनों मतों में यही मुख्य अंतर है।

• धर्म परायणता की भांति नास्तिकता का भी इतिहास अत्यधिक पुराना है किंतु यह विचार धारा १८ वीं शताब्दी में युरोप में पुनर्जागरण के बाद व्यापक रुप से फैलना आरंभ हुई और युरोप के वैज्ञानिक विकास के साथ ही विश्व के अन्य क्षेत्रों और अन्य धर्मों के अनुयाईयों में भी फैल गयी।

• धर्मविरोध के कई कारक होते हैं किंतु मुख्य रूप से मानसिक, सामाजिक और वैचारिक कारकों में उन्हें बांटा जा सकता है। किसी धर्मविरोधी में एक कारक होता है किंतु किसी किसी में तीनों कारक भी हो सकते हैं।

सृष्टि, ईश्वर और धर्म-24 नास्तिकता व भौतिकता-2

भ्रष्टाचार और ईश्वर के इन्कार के कारकों की समीक्षा से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन में प्रत्येक कारक को समाप्त और निवारण के लिए विशेष प्रकार की शैली व मार्ग की आवश्यकता है उदाहरण स्वरूप मानसिक व नैतिक कारकों को सही प्रशिक्षण और उससे होने वाली हानियों की ओर ध्यान देकर समाप्त किया जा सकता है। इसी प्रकार सामाजिक कारकों के प्रभावों से बचने के लिए इस प्रकार के कारकों पर अंकुश लगाने के साथ ही साथ धर्म के गलत होने और उस धर्म के मानने वालों के व्यवहार के गलत हाने के मध्य अंतर को स्पष्ट करना चाहिए किंतु प्रत्येक दशा में मानसिक व सामाजिक कारकों के प्रभावों पर ध्यान का, कम से कम यह लाभ होता है कि मनुष्य अंजाने में उस के जाल में फंसने से सुरक्षित रहता है।

इसी प्रकार वैचारिक कारकों के कुप्रभावों से बचने के लिए उचित मार्ग अपनाना चाहिए और अंधविश्वास और विश्वास में अंतर को स्पष्ट करते हुए धर्म की आवश्यकता व महत्व को सिद्ध करने के लिए ठोस व तार्किक प्रमाणों को प्रयोग करना चाहिए और इस के साथ यह भी स्पष्ट करना चाहिए के दलील व प्रमाण की कमज़ोरी निश्चित रूप से जिस विषय के लिए दलील व प्रमाण लाया गया हो उसके गलत होने का प्रमाण नहीं है। अर्थात यदि किसी तथ्य को सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत किया गया तर्क या प्रमाण कमज़ोर हो तो उससे यह नहीं सिद्ध होता है कि वह विषय भी निश्चित रूप से ग़लत है क्योंकि यह भी हो सकता है कि वह विषय सही हो उसके लिए ठोस प्रमाण भी मौजूद हों किंतु जो व्यक्ति आप के सामने प्रमाण पेश कर रहा है उसमें इतनी क्षमता न हो।

स्पष्ट है कि हम यहां पर पथभ्रष्टता और उसकी रोकथाम के मार्गों पर व्यापक रूप से यहां चर्चा नहीं कर सकते, इसी लिए अब हम अपनी चर्चा को आगे बढ़ाते हैं।

ईश्वर और धर्म के बारे में बहुत से लोग विभिन्न प्रकार के संदेह प्रकट करते हैं किंतु उनमें से सब से मुख्य आपत्ति यह है कि किस प्रकार किसी एसे अस्तित्व की उपस्थिति पर विश्वास किया जा सकता है जिसे इन्द्रियों द्वारा महसूस नहीं किया जा सके?

प्रायः इस प्रकार की शंका कम गहराई से सोचने वाले लोग प्रकट करते हैं किंतु यह भी देखा गया है कि कुछ वैज्ञानिक और पढ़े लिखे लोग भी यह प्रश्न कर बैठते हैं अलबत्ता यह लोग उन लोगों में से होते हैं जो इन्द्रियों से महसूस किये जाने के सिद्धान्त में विश्वास रखते हैं और हर उस अस्तित्व का इन्कार करते हैं जिसे वह इन्द्रियों द्वारा महसूस न कर सकें।

इस प्रकार की शंका का निवारण इस प्रकार से किया जा सकता है कि इन्द्रियों द्वारा केवल आयाम व व्यास रखने वाली वस्तुओं और अस्तित्वों को ही महसूस किया जा सकता है। हमारी जो इन्द्रियां हैं वह विशेष परिस्थितियों में उन्हीं वस्तुओं को महसूस करती हैं जो उनकी क्षमता के अनुरुप हों। जिस प्रकार से यह नहीं सोचा जा सकता कि आंख, आवाज़ों को सुने या कान रंगों को देखें उसी प्रकार यह भी नहीं सोचा जा सकता कि ब्रह्माण्ड की सारी रचनाओं को हमारी इन्द्रियां महसूस कर सकती हैं।

क्योंकि पहली बात तो यह है कि यही भौतिक वस्तुओं में भी बहुत सी एसी चीज़ें हैं जिन्हें हम इन्द्रियों द्वारा सीधे रूप से महसूस कर सकते जैसे हमारी इन्द्रियां पराकासनी किरणों को या चुंबकीय लहरों को महसूस नहीं कर सकतीं किंतु फिर भी हमें उनके अस्तित्व पर पूरा विश्वास है। या इसी प्रकार से भय व प्रेम की मनोदशा या हमारे इरादे और संकल्प यह सब कुछ मौजूद है किंतु हम इन्हें अपनी इंद्रियों से महसूस नहीं कर सकते क्योंकि मनोदशाओं और मानसिक अवस्था को इन्द्री द्वारा महसूस किया जाना संभव नहीं है। इसी प्रकार आत्मा को भी इन्द्रियों द्वारा महसूस नहीं किया जा सकता और यह यह महसूस करना या आभास करना स्वयं ही ऐसी दशा है जिसे इन्द्रियों द्वारा महसूस नहीं किया जा सकता।नहीं

इस प्रकार से यह प्रमाणित हो गया कि विदित रूप से हमारी इन्द्रियों द्वारा यदि किसी वस्तु को आभास करना संभव न हो तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं होगा कि वह वस्तु मौजूद ही नहीं है या यह कि उसका होना कठिन है।

कुछ समाजशास्त्री कहते हैं कि ईश्वर पर विश्वास और धर्म पर आस्था वास्तव में ख़तरों से भय विशेषकर भूकंप आदि जैसी प्राकृतिक आपदाओं से उत्पन्न होने वाले डर का परिणाम है और वास्तव में मनुष्य ने अपने मन की शांति के लिए ईश्वर नाम के एक काल्पनिक अस्तित्व को गढ़ लिया है और उस की उपासना भी करने लगा है और इसी लिए जैसे जैसे प्राकृतिक आपदाओं के कारणों और उनसे उत्पन्न ख़तरों से निपटने के मार्ग स्पष्ट होते जाएंगे वैसे वैसे ईश्वर पर आस्था में भी कमी होती जाएगी।

मार्क्सवादियों ने इस शंका को बहुत अधिक बढ़ा चढ़ा कर पेश किया और इसे अपनी पुस्तकों में समाज शास्त्र की एक उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत किया और इसी वचार धारा से उन्होंने अज्ञानी लोगों को जमकर बहकाया भी।

इस शंका के उत्तर में हम यह कहेंगे कि पहली बात तो यह है कि इस शंका का आधार कुछ समाज शास्त्रियों द्वारा प्रस्तुत धारणा है और इसके सही होने की कोई तार्किक दलील मौजूद नहीं है। दूसरी बात यह है कि इसी काल में बहुत से बुद्धिजीवी जिन्हें दूसरों से कई गुना अधिक विभिन्न प्राकृतिक ख़तरों के कारणों का ज्ञान था, ईश्वर के अस्तित्व पर पूरा विश्वास रखते थे। उदाहरण स्वरूप आइन्स्टाइन, क्रेसी, एलेक्सिस कार्ल आदि जैसे महान वैज्ञानिक व विचारक जिन्हों ने ईश्वर के अस्तित्व को प्रमाणित करने के लिए कई किताबें और आलेख लिखे हैं इस लिए यह कहना ग़लत है कि ईश्वर पर विश्वास, भय का परिणाम होता है। एक अन्य बात यह भी है कि यदि कुछ प्राकृतिक घटनाओं के कारणों से अज्ञानता, मनुष्य को ईश्वर की ओर आकृष्ट करे तो इसका यह अर्थ कदापि नहीं निकालना चाहिए के ईश्वर, मनुष्य के भय की पैदावार है। जैसा कि बहुत से वैज्ञानिकों व शोधों व अविष्कारों के पीछे, सुख ख्याति जैसी भावनाएं होती हैं किंतु इस से अविष्कारों पर कोई प्रभाव नहीं होता।

इस चर्चा के मुख्य बिन्दुः

• भ्रष्टाचार और ईश्वर के इन्कार के कारकों की समीक्षा से यह स्पष्ट हो जाता है कि इन में प्रत्येक कारक को समाप्त और निवारण के लिए विशेष प्रकार की शैली व मार्ग की आवश्यकता है

• ईश्वर को इन्द्रियों द्वारा यदि महसूस न किया जाए तो इसका अर्थ यह नहीं है कि उसका अस्तित्व ही नहीं है क्योंकि भौतिक वस्तुओं में भी बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें हम इन्द्रियों द्वारा सीधे रूप से महसूस नहीं कर सकते

 

• ईश्वर भय व प्राकृतिक आपदाओं से अज्ञानता की उत्पत्ति नहीं है क्योंकि विश्व के बड़े बड़े वैज्ञानिकों ने भी जिन्हें आपदाओं से कारणों का पूर्ण ज्ञान था और उनसे अंजाना भय भी नहीं रखते थे, ईश्वर के अस्तित्व पर आलेख लिखे और उसे माना है।

सृष्टि ईश्वर और धर्म २५- कारक और ईश्वर

पश्चिमी बुद्धिजीवी ईश्वर के अस्तित्व की इस दलील पर कि हर वस्तु के लिए एक कारक और बनाने वाला होना चाहिए यह आपत्ति भी करते हैं कि यदि यह सिदान्त सर्वव्यापी है अर्थात हर अस्तित्व के लिए एक कारक का होना हर दशा में आवश्यक है तो फिर यह सिद्धान्त ईश्वर पर भी यथार्थ होगा अर्थात चूंकि वह भी एक अस्तित्व है इस लिए उसके लिए भी एक कारक ही आवश्यकता होनी चाहिए जबकि ईश्वर को मानने वालों का कहना है कि ईश्वर मूल कारक है और उसके लिए किसी भी कारक की आवश्यकता नहीं इस प्रकार से यदि ईश्वर को मानने वालों की यह बात स्वीकार कर ली जाए तो इस का अर्थ यह होगा कि ईश्वर ऐसा अस्तित्व है जिसे कारक की आवश्यकता नहीं है अर्थात वह कारक आवश्यक होने के सिद्धान्त से अलग है तो इस स्थिति में ईश्वरवादियों द्वारा इस सिद्धान्त को प्रयोग करते हुए मूल कारक अर्थात ईश्वर के अस्तित्व को सिद्ध करना भी ग़लत हो जाता है । अर्थात यह नहीं कहा जा सकता था कि मूल कारक ईश्वर है बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि मूल पदार्थ और ऊर्जा भी बिना किसी कारक के अस्तित्व में आई और फिर उसमें जो परिवर्तन आए उससे सृष्टि की रचना हो गयी ।

इस शंका के उत्तर में यह कहा जाता है कि वास्तव में यदि कोई इस सिद्धान्त को कि हर अस्तित्व के लिए कारक की आवश्यकता होती है सही रूप से समझे तो इस प्रकार की शंका उत्पन्न नहीं होती वास्तव में यह शंका कारक सिद्धान्त की ग़लत व्याख्या के कारण उत्पन्न होती है अर्थात शंका करने वाले यह समझते हैं कि यह जो कहा जाता है कि हर अस्तित्व के लिए कारक की आश्यकता होती है उसमें ईश्वर का अस्तित्व भी शामिल है जबकि ईश्वर के अस्तित्व का प्रकार भिन्न होता है इस लिए यदि इस मूल सिद्धान्त को सही रूप से समझना है तो इस वाक्य को इस प्रकार से कहना होगा कि हर निर्भर अस्तित्व या संभव अस्तित्व को कारक की आवश्यकता होती है और इस इस सिद्धान्त से कोई भी इस प्रकार का अस्तित्व बाहर नहीं है किंतु यह कहना कि कोई पदार्थ या ऊर्जा बिना कारक के अस्तित्व में आ सकती है सही नहीं है क्योंकि पदार्थ और ऊर्जा का अस्तित्व संभव या निर्भर अस्तित्व है इस लिए वह इस सिद्धान्त से बाहर नहीं हो सकता किंतु ईश्वर का अस्तित्व चूंकि निर्भर व संभव अस्तित्व के दायरे में नहीं है इस लिए वह संभव व निर्भर अस्तित्व के लिए निर्धारित सिद्धान्तों से भी बाहर है।

एक शंका यह भी की जाती है कि संसार और मनुष्य के रचयता के अस्तित्व पर विश्वास, कुछ वैज्ञानिक तथ्यों से मेल नहीं खाता । उदाहरण स्वरूप रसायन शास्त्र में यह सिद्ध हो चुका है कि पदार्थ और ऊर्जा की मात्रा सदैव स्थिर रहती है तो इस आधार पर कोई भी वस्तु, न होने से , अस्तित्व में नहीं आती और न ही कोई वस्तु कभी भी सदैव के लिए नष्ट होती है जबकि ईश्वर को मानने वालों का कहना है कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना ऐसी स्थिति में की जब कि कुछ भी नहीं था और एक दिन सब कुछ तबाह हो जाएगा और कुछ भी नहीं रहेगा ।

इसी प्रकार जीव विज्ञान में यह सिद्ध हो चुका है कि समस्त जीवित प्राणी , प्राणहीन वस्तुओं से अस्तित्व में आए हैं और धीरे धीरे परिपूर्ण होकर जीवित हो गये यहां तक कि मनुष्य के रूप में उनका विकास हुआ है किंतु ईश्वर को मानने वालों का विश्वास है कि ईश्वर ने सभी प्राणियों को अलग-अलग बनाया है।

इस प्रकार की शंकाओं के उत्तर में यह कहना चाहिए कि पहली बात तो यह है कि पदार्थ और ऊर्जा का नियम एक वैज्ञानिक नियम के रूप में केवल उन्ही वस्तुओं के बारे में मान्य है जिनका विश्लेषण किया जा सकता हो और उसके आधार पर इस दार्शनिक विषय का कि क्या पदार्थ और ऊर्जा सदैव से हैं और सदैव रहेंगे या नहीं, कोई उत्तर नहीं खोजा जा सकता ।

दूसरी बात यह है कि ऊर्जा और पदार्थ की मात्रा का स्थिर रहना और सदैव रहना, इस अर्थ में नहीं है कि उन्हें किसी रचयता की आवश्यकता ही नहीं है बल्कि ब्रहमांड की आयु जितनी अधिक होगी उतनी ही अधिक उसे किसी रचयता की आवश्यकता होगी क्योंकि रचना के लिए रचयता की आवश्यकता का मापदंड, उस के अस्तित्व में आवश्कयता का होना है न कि उस रचना का घटना होना और सीमित होना।

दूसरे शब्दों में पदार्थ और ऊर्जा , संसार के भौतिक कारक को बनाती है स्वंय कारक नहीं है और पदार्थ और ऊर्जा को स्वंय ही कर्ता व कारक की आवश्यकता होती है।

तीसरी बात यह है कि ऊर्जा व पदार्थ की मात्रा के स्थिर होने का यह अर्थ कदापि नहीं है कि नयी वस्तुंए पैदा नहीं हो सकतीं और उन में वृद्धि या कमी नहीं हो सकती और इसी प्रकार आत्मा , जीवन , बोध और इरादा आदि पदार्थ और ऊर्जा नहीं हैं कि उन में कमी या वृद्धि को पदार्थ व ऊर्जा से संबधिंत नियम का उल्लंघन समझा जाए।

और चौथी बात यह कि वस्तुओं के बाद उनमें प्राण पड़ने का नियम यद्यपि अभी बहुत विश्वस्त नहीं हैं और बहुत से बड़े वैज्ञानिकों ने इस नियम का इन्कार किया है किंतु फिर भी यह ईश्वर पर विश्वास से विरोधाभास नहीं रखता और अधिक से अधिक यह नियम जीवित प्राणियों में एक प्रकार के योग्यतापूर्ण कारक के अस्तित्व को सिद्ध करता है किंतु इस से यह कदापि सिद्ध नहीं होता कि इस नियम का विश्व के रचयता से कोई संबंध है क्योंकि इस नियम में विश्वास रखने वाले बहुत से लोग और वैज्ञानिक इस सृष्टि और मनुष्य के लिए एक जन्मदाता के अस्तित्व में विश्वास रखने थे और रखते हैं।

वरिष्ठ नेता के मार्गदर्शन के बिना गैस पाइप लाइन परियोजना पूरी नहीं हो सकती थी।ईरान और पाकिस्तान के राष्ट्रपति की उपस्थिति में ईरान पाकिस्तान गैस पाइप लाइन के सोमवार को उद्घाटन के अवसर पर दोनों देशों के राष्ट्रपतियों ने इस परियोजना को दोनों देशों और पूरे क्षेत्र के राष्ट्रों के हित में बताया है।

दोनों देशों के राष्ट्रपतियों ने ईरान पाकिस्तान गैस पाइप लाइन परियोजना को तेहरान इस्लामाबाद के मध्य आर्थिक सहयोग में अधिक से अधिक विस्तार का कारण बताया है। इस अवसर पर इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति डाक्टर महमूद अहमदी नेजाद ने गैस पाइप लाइन परियोजना को ईरान और पाकिस्तान तथा क्षेत्र के अन्य देशों के मध्य सहयोग में वृद्धि की दिशा में पहला क़दम बताया है। राष्ट्रपति महमूद अहमदी नेजाद ने कहा कि यदि क्षेत्रीय देश अपना धन और प्रयास, क्षेत्रीय सहयोग की दिशा में लगाएं तो यह क्षेत्र, ज्ञान विज्ञान और औद्योगिक विकास में विदेशियों पर निर्भरता से निकल जाएगा। ईरानी राष्ट्रपति का कहना था कि पश्चिम को ईरान पाकिस्तान गैस पाइप लाइन परियोजना को रोकने का कोई अधिकार नहीं है। इस अवसर पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने भी कहा ईरान की क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनई के मार्गदर्शन और राष्ट्रपति महमूद अहमदी नेजाद के समर्थन के बिना ईरान पाकिस्तान गैस पाइप लाइन परियोजना पूरी नहीं हो सकती थी। पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि पाकिस्तान और ईरान की जनता ने परस्पर संबंधों में विस्तार का संकल्प कर लिया है और कोई भी वस्तु इस मार्ग में बाधा नहीं बन सकती, कहा कि ईरानी राष्ट्र ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के संस्थापक इमाम खुमैनी और वरिष्ठ नेता के मार्गदर्शनों में बड़ी प्रगति की है और आज पूरा विश्व ईरानियों का सम्मान और पाकिस्तान जनता ईरानियों से प्रेम करती है।

پاکستان کو امریکی دھمکیअमेरिका ने ईरान पाकिस्तान गैस पाइप लाइन परियोजना पर गहरी चिंता व्यक्त की है। वाशिंगटन में मीडिया से बातचीत करते हुए अमेरिकी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता विक्टोरिया नोलैंड ने कहा कि पाक-ईरान गैस लाइन परियोजना के बारे में पहले भी दस, पंद्रह बार घोषणाएं सुन चुके हैं, अब देखना है कि अस्ल में क्या होता है। उन्होंने कहा कि यदि इस परियोजना पर अधिक प्रगति होती है तो ईरान पर लगाए गये प्रतिबंधों को लागू किया जा सकता है। विक्टोरिया नोलैंड ने कहा कि अमेरिका इस परियोजना पर अपनी चिंता से पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से अवगत कर चुका है।

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के ऊर्जा संकट से निपटने के लिए अमेरिका बेहतर और अधिक विश्वस्नीय परियोजनाओं पर पाकिस्तान के साथ मिलकर काम कर रहा है। अमरीकी विदेशमंत्रालय की प्रवक्ता ने जिन बेहतर और अधिक विश्वस्नीय परियोजनाओं की संकेत किया है उसे पाकिस्तान सहित विश्व के अधिकांश विशेषज्ञों ने अधिक खर्चीली और कठिन परियोजनाएं बताया है। अमरीका कई वर्षों से पाकिस्तान को इस प्रकार का आवश्वासन दे रहा है किंतु अभी तक व्यवहारिक रूप से एक क़दम भी नहीं उठाया है। याद रहे ईरान और पाकिस्तान के राष्ट्रपति की उपस्थिति में ईरान पाकिस्तान गैस पाइप लाइन का सोमवार को ईरान के चाबहार क्षेत्र में उद्घाटन हो गया। ७ अरब डालर की यह परियोजना २ वर्षों में पूरी हो जाएगी। पहले भारत भी इस परियोजना से जुड़ा था किंतु वर्ष २००९ में वह इससे बाहर निकल गये। अमरीका आरंभ से ही इस परियोजना का विरोध करता रहा है।

दिल्ली गैंग रेप के मुख्य आरोपी ने आत्म हत्या कीभारत के बहुचर्चित दिल्ली गैंग रेप के मुख्य आरोपी ने तिहाड़ जेल में आत्महत्या कर ली है।

राम सिंह ने तिहाड़ जेल में फांसी लगाकर जान दे दी। सूचना के अनुसार राम सिंह ने सुबह लगभग पांच बजे आत्म हत्या की। सूत्रों के अनुसार जब पेशी के लिए तिहाड़ जेल में बंद आरोपियों को न्यायालय ले जाने की तैयारी हो रही थी तब जेल अधिकारियों को पता चला कि दिल्ली गैंगरेप के आरोपी राम सिंह ने जेल नंबर 3 में आत्म हत्या कर ली है। जब सुरक्षाकर्मी राम सिंह के सेल में पहुंचे तो देखा उसका शव लटक रहा है। उसने जेल में ही फांसी लगा ली थी। राम सिंह की आज साकेत कोर्ट में पेशी होने वाली थी। इस घटना पर राम सिंह के वकील ने कहा कि इसमें षडयंत्र की बू आ रही है क्योंकि तिहाड़ जेल में कोई आत्महत्या कर ही नहीं सकता है। ज्ञात रहे कि गत सोलह दिसंबर की रात दिल्ली में गैंग रेप की यह घटना हुई थी और राम सिंह और उसके साथियों ने एक चार्टर्ड बस में एक छात्र के साथ गैंग रेप करने के बाद उसे बस से बाहर फेंक दिया था। इस बीच भारत की राजधानी में रविवार को दिन दहाड़े पैंतीस साल की एक महिला के साथ चलती कार में बलात्कार किया गया। दिल्ली पुलिस ने बताया है कि पांच लोगों ने महिला के साथ बलात्कार किया। इन लोगों में से कुछ महिला के जानकार हैं। महिला को पूर्वी दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर के पास से सुबह नौ बजे अपहृत किया गया और फिर उसके साथ चलती कार में बलात्कार किया गया। इसके बाद महिला को अचेत अवस्था में प्रगति मैदान मेट्रो स्टेशन के पास छोड़ दिया गया। पुलिस ने कहा कि मामले की जांच जारी है और आरोपियों की खोज की जा रही है।

ईरान, इराक को गैस निर्यात करेगा।इस्लामी गणतंत्र ईरान के तेल मंत्री ने इराक़ के साथ गैस निर्यात के समझौते की जानकारी दी है।

ईरान के तेल व गैस मंत्री रुस्तम क़ासेमी ने शनिवार को इराक़ की राजधानी बगदाद में अपने इराकी समकक्ष से भेंट के बाद घोषणा की है कि दोनों देशों ने इस बात पर सहमति प्रकट की है कि बीस जून तक ईरान इराक़ को गैस निर्यात करना आरंभ कर देगा।

गुरुवार को एक प्रतिनिधिमंडल के साथ बगदाद पहुंचने वाले ईरानी तेल मंत्री ने बल दिया कि बगदाद गैस निर्यात के बाद दक्षिणी ईरान से इराक़ के बसरा नगर के लिए भी ईरान गैस निर्यात आरंभ कर देगा।

ईरान के तेल मंत्री ने इस समझौते को ईरान व इराक के मध्य तेल सहयोग में एक बहुत बड़ा परिवर्तन बताया और कहा है कि इराक़ के मार्ग से सीरिया तक ईरान की गैस पहुचाने हेतु पाइप लाइन बिछाने पर भी चर्चा हुई। उन्होंने बताया था कि इस संदर्भ में त्रिपक्षीय वार्ता शीघ्र ही आरंभ हो जाएगी।

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम की अहादीस (प्रवचन)

अपने प्रियः अध्ययन कर्ताओं के लिए यहाँ पर हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम के चालीस मार्ग दर्शक कथन प्रस्तुत कर रहे हैं।

1-प्रतिदिन के कार्यो का हिसाब

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि वह प्रत्येक मुसलमान जो हमे पहचानता है(अर्थात हमे मानता है) उसे चाहिए कि प्रति रात्री अपने पूरे दिन के कार्यों का हिसाब करे, अगर पुण्य किये हों तो उनमे वृद्धि करे। और अगर पाप किये हों तो उनके लिए अल्लाह से क्षमा याचना करे। ताकि परलय के दिन अल्लाह से लज्जित न होना पड़े।

2-ईर्ष्या व धोखा

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अपने भाई को धोखा दे और उसको निम्ण समझे, तो ऐसे व्यक्ति को अल्लाह नरक मे डालेगा। और अपने मोमिन भाई से ईर्ष्या रखने वाले व्यक्ति के दिल से इमान इस प्रकार समाप्त हो जायेगा जैसे नमक पानी मे घुलकर समाप्त हो जाता है।

3-पारसाई व अत्याचार

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह की सौगन्ध हमारी विलायत केवल उसको प्राप्त होगी जो पारसा होगा, संसार के लिए प्रयासरत होगा तथा अपने भाईयों की अल्लाह के कारण सहायता करेगा।और अत्याचार करने वाला हमारा शिया नही है।

4- अल्लाह पर विश्वास

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो व्यक्ति अल्लाह पर विश्वास करेगा अल्लाह उसके संसारिक व परलोकीय कार्य को हल करेगा। और प्रत्येक वस्तु जो कि उस से गुप्त है उसके लिए सुरक्षित करेगा ।

5-निर्बलता

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि कितना निर्बल है वह व्यक्ति जो विपत्ति के समय सब्र न कर सके और अल्लाह से नेअमत मिलने पर उसका धन्यवाद न कर सके और कठिनाईयों का निवारण न कर सके।

6-सदाचारिक आदेश

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर किसी ने तुम से नाता तोड़ लिया है तो उससे नाता जोड़ो। जिसने तुमको कुछ देने से जान बचाई तुम उसको देने से पीछे न हटो। जिसने तुम्हारे साथ बुराई की है तुम उसके साथ भलाई करो। अगर किसी ने तुमको अपशब्द कहे हैं तो तुम उसको सलाम करो। अगर किसी ने तुम्हारे साथ शत्रुता पूर्ण व्यवहार किया है तो तुम उसके साथ न्याय पूर्वक व्यवहार करो। अगर किसी ने तुम्हारे ऊपर अत्याचार किया है तो उसको क्षमा कर दो जैसा कि तुम चाहते हो कि तुम्हे क्षमा कर दिया जाये। हमे यह अल्लाह के क्षमादान से यह सीखना चाहिए क्या तुम नही देखते हो कि वह सूर्य अच्छे व बुरे दोनो प्रकार के व्यक्तियों के लिए चमकाता है। व अच्छे व बुरे सभी लोगों के लिए वर्षा करता है।

7-धीमे बोलना

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि धीरे बोला करो क्योंकि अल्लाह ज़ाहिर व बातिन ( प्रत्यक्ष व परोक्ष) सब कार्यों से परिचित है। अपितु वह तो प्रश्न करने से पहले जानता है कि आप क्या चाहते हो।

8-अच्छाई व बुराई

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि समस्त अच्छाईयां व बुराईयां आपके सम्मुख हैं। परन्तु आप इन दोनों को परलय से पहले नही देख सकते। क्योंकि अल्लाह ने समस्त अच्छाईयों को स्वर्ग मे तथा समस्त बुराईयों को नरक मे रखा है। क्योंकि स्वर्ग व नरक की सदैव रहने वाले हैं।

9-इस्लाम

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने परिवार की जीविका का प्रबन्ध करने के लिए कार्य करना अल्लाह के मार्ग मे जिहाद करने के समान है।

10-परलोक के लिए कार्य

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि वर्तमान मे इस संसार मे कार्य करो क्योकि उन के द्वारा परलोक मे सफल होने की आशा है।

11-अहले बैत के मित्रों की सहायता का फल

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि क़ियामत के दिन वह सब व्यक्ति जन्नतमे जायेंगे जिन्होने हमारे मित्रों की शाब्दिक सहायता भी की होगी।

12-दिखावा बहस व शत्रुता

इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि दिखावे से बचो क्योकि यह समस्त उत्तम कार्यो को नष्ट कर देता है। बहस(वाद विवाद) करने से बचो क्योकि यह व्यक्ति को हलाकत मे डालती है। शत्रुता से बचो क्योंकि यह अल्लाह से दूर करती है।

13-आत्मा की पवित्रता

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब अल्लाह अपने किसी बन्दे पर विशेष कृपा करता है तो उसकी आत्मा को पवित्र कर देता है। और इस प्रकार वह जो भी सुनता है उसकी समस्त अच्छाईयों व बुराईयों से परिचित हो जाता है। फिर अल्लाह उसके हृदय मे ऐसी बात डालता है जिससे उसके समस्त कार्य सरल हो जाते हैं।

14-अल्लाह से सुरक्षा की याचना

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि आपके लिए अवश्यक है कि अल्लाह से भलाई के लिए याचना करो। तथा अपनी विन्रमता, गौरव व लज्जा को बनाए रखो।

15-दुआ

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अल्लाह से अधिक दुआ करो क्योंकि अल्लाह अधिक दुआ करने वाले बन्दे को पसंद करता है। और अल्लाह ने मोमिन व्यक्तियों से वादा किया है कि उनकी दुआओं को स्वीकार करेगा। अल्लाह क़ियामत के दिन मोमिनो की दुआ को पुण्य के रूप मे स्वीकार करेगा और स्वर्ग मे उनके पुणयों को अधिक करेगा।

16-निस्सहाय मुसलमान

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि आपको चाहिए कि निस्सहाय मुसलमानो से प्रेम करो और अपने आपको बड़ा व उनको निम्ण समझने वाला व्यक्ति वास्तव मे धर्म से हट गया है। और ऐसे व्यक्तियों को अल्लाह निम्ण व लज्जित करेगा। हमारे जद( पितामह) हज़रत पैगम्बर ने कहा है कि अल्लाह ने मुझे निस्सहाय मुसलमानो से प्रेम करने का आदेश दिया है।

17-ईर्श्या

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि किसी से ईर्श्या न करो क्योंकि ईर्श्या कुफ़्र की जड़ है।

18-प्रेम बढ़ाने वाली चीज़ें

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि ऋण देने, विन्रमता पूर्वक व्यवहार करने और उपहार देने से प्रेम बढ़ता है।

19-शत्रुता बढ़ाने वाली चीज़ें

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अत्याचार, निफ़ाक़ (द्वि वादीता) व केवल अपने आप को ही चाहने से शत्रुता बढ़ती है।

20-वीरता धैर्य व भाईचारा

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि वीरता को युद्ध के समय, धैर्य को क्रोध के समय व भईचारे को अवश्यकता के समय ही परखा जा सकता है।

21-निफ़ाक़ के लक्षण

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो झूट बोलता हो, वादा करने के बाद उसको पूरा न करता हो तथा अमानत मे खयानत करता हो( अर्थात अमानत रखने के बाद उसको वापस न करता हो) तो वह मुनाफ़िक़ है। चाहे वह नमाज़ भी पढ़ता हो व रोज़ा भी रखता हो।

22-मूर्ख झूटा व शासक

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि मूर्ख से परामर्श न करो, झूटे से मित्रता न करो, व शासको के प्रेम पर विश्वास न करो।

23-नेतृत्व के लक्षण

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि क्रोधित न होना, दुरव्यवहार को अनदेखा करना, जान व माल से सहायता करना,तथा सम्बन्धो को बनाये रखना नेतृत्व के लक्षण हैं।

24-कथन की शोभा

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने आश्य को दूसरों तक पहुचाना, व्यर्थ की बोलचाल से दूर रहना व कम शब्दो मे अधिक बात कहना कथन की शोभा है।

25-मुक्ति

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि व्यर्थ न बोलना, अपने घर मे रहना व अपनी ग़लती(त्रुटी) पर लज्जित होना मुक्ति पाने के लक्षण हैं।

26-प्रसन्नता

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि सफल पत्नि नेक संतान व निस्वार्थ मित्र के द्वारा प्रसन्नता प्राप्त होती है।

27-महानता

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि सद् व्यवहारिता, क्रोध का कम होना व आखोँ को नीचा रखना महानता के लक्षण हैं।

28-अंधकार मय जीवन

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अत्याचारी शासक,चरित्रहीन पड़ोसी और निर्लज व अपशब्द बोलने वाली स्त्री जीवन को अंधकार मय बना देते हैं।

29नमाज़-

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि नमाज़ को महत्व न देने वाला हमारी शिफ़अत प्राप्त नही कर सकता।

30-ज़बान हाथ व कार्य

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर मनुष्य बुरी ज़बान बुरे हाथ व बुरे कार्यों से अपने को दूर रखे तो वह सब चीज़ो से सुरक्षित रहेगा।

31-नेकियां

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि नेकी करने मे शीघ्रता करनी चाहिए अधिक नेकियों को भी कम समझना चाहिए व कभी भी नेकियों पर घमँड नही करना चाहिए।

32-इमान

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अगर किसी व्यक्ति मे निम्ण लिखित तीन विशेषताऐं नही पाई जाती तो उसका इमान उसको कोई लाभ नही पहुँचायेगा। (1) धैर्य कि मूर्ख की मूर्खता को दूर करे। (2) पारसाई कि उसको हराम (निशेध) कार्यों से दूर रखे। (3)सद् व्यवहार जिससे लोगों का सत्कार करे।

33-ज्ञान-

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि ज्ञान प्राप्त करो व गंभीरता व सहनशीलता के साथ उसके द्वारा अपने आप को सुसज्जित करो। अपने गुऱूओं व शिष्यों का आदर करो व घमंडी ज्ञानी न बनो क्योंकि तुम्हारा दुर व्यवहार तुम्हारी वास्तविक्ता को समाप्त कर देगा।

34-विश्वास

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि जब ऐसा समय आजाये कि चारों ओर अत्याचार व्याप्त हो व मनुष्य धोखे धड़ी व दंगो मे लिप्त हों तो ऐसे समय मे किसी पर विश्वास करना कठिन है।

35-संसारिक मोह माया

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि संसारिक मोहमाया के कारण मनुष्य को दुख प्राप्त होता है। तथा संसारिक मोह माया से दूरी मनुष्य को हार्दिक व शारीरिक सुख प्रदान करती हैं।

36-अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अम्र बिल मारूफ़ व नही अनिल मुनकर (अच्छे कार्य करने के लिए उपदेश देना व बुरे कार्ययों से रोकना) करने वाले व्यक्ति मे इन तीन गुणो का होना अवश्यक है (1) जिन कार्यों के बारे मे उपदेश दे रहा हो या जिन कार्यों से रोक रहा हो उन के बारे मे ज्ञान रखता हो। (2) जिन कोर्यों के लिए उपदेश दे रहा हो या जिन कार्यो से रोक रहा हो वह स्वंय उन पर क्रियान्वित हो। (3) अच्छे कार्यों के करने के लिए उपदेश देते समय व बुरे कार्यों से रोकते समय विन्रमता को अपनाये।

37-अत्याचारी शासक

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो अत्याचारी शासक से समपर्क बनायेगा वह ऐसी विपत्ति मे घिरेगा जिस पर सब्र (धैर्य ) करना कठिन होगा।

38-प्रियतम

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरा प्रियतम भाई वह है जो मुझे मेरी बुराईयों से अवगत कराये।

39-भटका हुआ

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि जो अपने से बड़े ज्ञानीयों की उपस्थिति मे लोगों को अपनी अज्ञा पालन का आदेश दे वह बिदअत पैदा करने वाला व भटका हुआ है।

40-सिलहे रहम (रक्त सम्बन्धियों से सम्बन्ध रखना )

हज़रत इमाम सादिक़ अलैहिस्सलाम ने कहा कि अपने भाईयों के साथ सिलहे रहम करो चाहे यह सलाम करने व सलाम का जवाब देने के द्वारा ही हो। क्योंकि सिलहे रहम व अच्छे कार्य मनुष्य को गुनाहो से बचाते हैं। व परलय के हिसाब को आसान करते हैं।

महिला दिवस शर्मसार,बहरैन में 230 महिलाओं को भीषण यातनाएंबहरैन की तानाशाही सरकार ने जेल में 230 बहरैनी महिलाओं को भीषण यातनाएं दी हैं।

अलमनार टीवी चैनल की रिपोर्ट के अनुसार, बहरैन की तनाशाही सरकार अब तक 11 क्रांतिकारी महिलाओं को शहीद कर चुकी है। आठ मार्च महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है जबकि बहरैन की तानाशाही सरकार महिलाओं के विरुद्ध भीषण अपराध कर रहा है और उनके मूल अधिकारों का हनन कर रहा है। पिछले दो वर्षों में बहरैनी प्रशासन ने जेल में बंद 230 महिलाओं को भीषण यातनाएं दी हैं जबकि बहरैनी सुरक्षा बलों की यातनाओं और अत्याचारों से अब तक 11 महिलाएं शहीद हो चुकी हैं। बहरैनी जनता देश में लोकतंत्र और सुधार की मांग कर रही है और बहरैनी प्रशासन अमरीका और सऊदी अरब की सहायता से जनता का दमन कर रहा है।

पाकिस्तानी उच्चतम न्यायालय ने सरकारी रिपोर्ट रद्द कीपाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने कराची के अब्बास टाऊन पर जांच रिपोर्ट को रद्द करते हुए सैन्य गुप्तचर एजेन्सी और आईएसआई को तीन दिन में रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। उच्चतम न्यायालय ने इसी प्रकार सिंध सरकार से भी तीन दिन में दोबारा रिपोर्ट मांग ली है। कराची अशांति केस की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश इफ़्तेख़ार मुहम्मद चौधरी ने प्रभावितों को सरकारी निवास देने का आदेश भी दिया है। उच्चतम न्यायालय ने आदेश दिया कि अब्बास टाउन घटना से संबंधित सरकारी रिपोर्ट संतोषजनक नहीं है इसीलिए तीन दिन के भीतर दोबारा रिपोर्ट कराची रजिस्ट्री में दाख़िल की जाए। उच्चतम न्यायालय ने इसी प्रकार आदेश दिया कि सिंध प्रांत में 15 से बीस आतंकवाद निरोधी न्यायालय का गठन किया जाए। कराची अशांति केस की सुनवाई 21 मार्च तक के लिए टाल दी गयी।

शनिवार, 09 मार्च 2013 06:56

एतेमाद व सबाते क़दम

كانهم بنين مرصوص

वह लोग सीसा पिलाई हुई दिवार की तरह हैं।

सूरः ए सफ़ आयत न. 5

नहजुल बलाग़ा में हज़रत अली अलैहिस्लाम का यह क़ौल नक़्ल हुआ हैं-

يوم لک و يوم عليک

एक रोज़ तुम्हारे हक़ में और दूसरा तुम्हारे ख़िलाफ़ है। इस से मालूम होता है कि ज़िन्दगी हमेशा ख़ुशगवार या एक ही हालत पर नही रहती, बल्कि ज़िन्दगी भी दिन रात की तरह रौशन व तारीक होती रहती है। यह कभी खुश गवार होती है, तो कभी पुर दर्द बन जाती है ! कुछ लोग ख़ुशो खुर्रम रहते हैं तो कुछ लोग रोते बिलखते जिन्दगी बसर करते हैं। इन बातों से मालूम होता है कि ज़िन्दगी में हमेशा नशेब व फ़राज़ आते रहते हैं।

लिहाज़ा समाजी ज़िन्दगी के लिए रुही ताक़त की ज़रूरत होती है ताकि उसकी मदद से मुश्किलों व दुशवारियों के सामने हमें आँख़े न झुकानी पड़े और मायूस होने व हार मानने के बजाए, हम साबित क़दम रहकर उनका मुक़ाबेला करें और एक एक करके तमाम मुशकिलों का ख़ात्मा कर सकें।

यक़ीनन साबित क़दम रहने की आदत की बुनियाद घर के माहौल में रखी जाती है और माँ बाप अपने बच्चों में एतेमादे नफ़्स व सबाते क़दम पैदा करने के लिए माहौल बनाते हैं।

हमारा अक़ीदा है कि तमाम अच्छे इंसानों की तरक़्क़ी व बलंदी की इब्तेदा और तमाम बुरे लोगों की पस्ती की शुरुवात उनके घर के माहौल से होती है और वह उन कामों को घर से ही शुरू करते है।

दूसरे लफ़्ज़ों में यह कहा जा सकता है कि किसी भी इंसान की तरक़्क़ी व तनज़्ज़ुली उसकी ज़िन्दगी के माहौल से अलग नही हो सकती।

पेड़ चाहे जितना भी मज़बूत क्यों न हो उसकी यह ताक़त उसकी जड़ से जुदा नही हो सकती। क्योंकि ज़मीन की ताक़त ही इस पेड़ को मज़बूती अता करती हैं। लिहाज़ा घर के तरबियती माहौल की ज़िम्मेदारी है कि वह बच्चों के अन्दर सबाते क़दम का जज़बा पैदा करें। देहाती समाज में रहने वाले बच्चों में एतेमात और सबाते क़दमी ज़्यादा पाई जाती हैं। क्यों कि उस समाज में लड़कियाँ और लड़के बचपन से ही अपने माँ बाप के साथ सख़्त और मेहनत के काम करना सीख जाते हैं। उन्हीं कामों की वजह से उनके अन्दर धीरे - धीरे सबाते क़दमी का जज़बा परवान चढ़ता जाता है। शहरों में रहने वाले मालदार घरों के अक्सर बच्चों में हिम्मत व तख़लीक़ कम पाई जाती है, क्योंकि वह अमली तौर पर मुश्किलों का सामना कम करते हैं। इस तरह के जवान ख़्वाब व ख़्याल में ज़िन्दगी गुज़ारते हैं और ज़िन्दगी की सच्चाई से बहुत कम वाक़िफ़ होते हैं। माँ बाप को चाहिए कि अपने बच्चों को धीरे धीरे ज़िन्दगी की सच्चाईयों से आगाह करायें और उन्हें ज़िन्दगी की हक़ीक़त यानी ग़रीबी व फ़क़ीरी और दूसरे तमाम मसाइल के बारे में भी बतायें। क्योंकि इस तरह के बच्चे जब समाजी ज़िन्दगी में क़दम रखते हैं तो सबाते क़दम के साथ मुशकिलों का सामना करते हैं और एक एक करके तमाम मुशकिलों से निजात हासिल कर लेते हैं।

जो एतेमाद, मेहनत और कोशिश के ज़रिये हासिल होता है, वह किसी दूसरी चीज़ से हासिल नही होता। ख़ुदा वंदे आलम ने इंसान को पैदा करने के बाद उसे उसके कामों में आज़ाद छोड़ कर उसकी पूरी शख़्सीयत को उनकी मेहनत व कोशिश से वाबस्ता कर दिया है।

ليس للانسان الا ما سعی

इंसान के लिये कुछ नही है, मगर सिर्फ़ उसकी कोशिश व मेहनत की वजह से। लेकिन एक अहम नुक्ता यह है कि कभी ऐसा भी हो सकता है कि बच्चों की मेहनत व कोशिश के बावजूद उनके काम में कोई ख़ामी रह जाये। ऐसी सूरत में वह वालदैन अक़्लमंद समझे जाते हैं जो अपनी औलाद के मुस्तक़बिल की ख़ातिर इन ख़ामियों को मामूली व छोटा समझते हुए उन्हे नज़र अंदाज़ कर देते हैं और उनकी हिम्मत बढ़ाते हुए उनके अंदर जुरअत और कुछ करने के हौसले को ज़िन्दा रखते हैं।

गुनाहगार वालिदैन

बहुत से घराने ऐसे होते हैं जो अपनी जिहालत व नादानी की वजह से अपने बच्चों की बर्बादी के असबाब ख़ुद फ़राहम करते हैं। कुछ वालिदैन ऐसे भी होते हैं जो अपने बच्चों के शर्माने, झिझकने, हिचकिचाने, कम बोलने, तन्हा रहने, बच्चों के साथ न ख़ेलने वगैरा को फ़ख्र की बात समझते हैं और उनको बहुत बाअदब बच्चों की शक्ल पेश करते हैं, जबकि यह काम उनकी शख़्सियतों की कमज़ोरीयों को और बढ़ा देता हैं। वह इस बात से बेख़बर होते हैं कि शर्माने और झिझकने वाले लोग नार्मल नही होते, क्योंकि शर्माने व घबराने वाले लोग आम इंसानों वाली आदतों से महरूम होते हैं। वह लोग यह सोचते हैं कि हम लोगों से दूर रह कर ख़ुद को एक अज़ीम िंसान की शक्ल में पहचनवा सकते हैं जबकि हक़ीक़त में उनके इस झूटे चेहरे के पीछे उनका कमज़ोर वुजूद होता है जो उन्हे इस बात पर उकसाता है।

हमें यह बात हमेशा याद रखनी चाहिये कि सही व सालिम बच्चे वह हैं जो अपना दिफ़ाअ करने की सलाहियत रखते हों और अगर उन पर ज़्यादतियाँ की जायें तो वह उनके आगें न झुकें और मन्तक़ी ग़ौरो फ़िक्र के साथ उन ज़्यादतियों का मुक़ाबला करें।

सालिम बच्चे वही हैं जो अपनी गुफ़तगू के ज़रिये अपने एहसास व अफ़कार को बयान कर सकें। यह बात भी याद रखनी चाहिये कि वही लोग समाजी ज़िन्दगी में नाकाम होते हैं जिनकी रूह कमज़ोर और बीमार होती है, इसलिये कि बहादुर व ताकतवर इंसान हर तरह की मुश्किल से जम कर मुक़ाबला करते हैं और कामयाब होते हैं। जंगे जमल में हज़रत अली (अ) ने अपने फ़रज़न्द मुहम्मदे हनफ़िया से इस तरह फ़रमाया:

تزول الجبال و لا تزول

पहाड़ अपनी जगह छोड़ दें मगर तुम अपनी जगह से मत हिलना। यह हज़रत अली (अ) की तरफ़ से तरबीयत का एक नमूना है। यानी यह बाप की तरफ़ से अपने बेटे की वह तरबियत है, जिसे हम तमाम मुसलमानों को नमूना ए अमल बनाना चाहिए ताकि अपने बच्चों की तरबीयत भी इसी तरह कर सकें।

तारीख़ में है कि जब तैमूर लंग ने अपने दुश्मनों से शिकस्त खा कर एक वीराने में पनाह ली तो उसने वहाँ यह मंज़र देखा कि एक चयूँटी गेंहू के एक दाने को अपने बिल तक पहुचाने की कोशिश कर रही है, मगर जैसे ही वह उस तक पहुचती है, दाना नीचे जमीन पर गिर जाता है। तैमूर कहता है कि मैने देखा कि 65वी बार वह कीड़ा अपने मक़सद में कामयाब हुआ और उसने उस दाने को घोसलें में पहुचाँया। तैमूर कहता है कि इस चीज़ ने मेरी आँखे खोल दीं और मैं शर्मीदा होकर पुख़्ता इरादे के साथ फिर से उठ खड़ा हुआ और अपने दुश्मनों के ख़िलाफ़ जंग की और आख़िरकार उन्हे हरा कर ही दम लिया।